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Kanakdhara Stotram | धनप्रदायिनी श्री कनकधारा स्तोत्रम्

Kanakdhara Stotram | धनप्रदायिनी श्री कनकधारा स्तोत्रम् 

पुराणों में कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक वर्णन मिलता है।  श्री कनकधारा स्तोत्र के रचनाकार आदि शंकराचार्य है । एक बार शंकराचार्य किसी ब्राह्मणी के घर भिक्षाटन के लिए गए उस समय उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा देने के लिए कुछ भी नहीं था ऐसा जानकर शंकराचार्य ने  इस स्तोत्र  का पाठ किया पाठ करते ही स्वर्ण मुद्रा की वर्षा होने लगी( यह पौराणिक भाषा है ) उसी समय से यह स्तोत्र कनकधारा स्तोत्र के नाम से जाना जाने लगा।
Kanakdhara-Stotram-Mahalaxmi
Kanakdhara-Stotram-Mahalaxmi

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अङ्गीकृताऽखिल-विभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गळदेवतायाः ॥1॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपा-प्रणहितानि गताऽऽगतानि।
मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपद-वीभ्रमदानदक्ष आनन्द-हेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणर्द्ध मिन्दीवरोदर-सहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥


आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।
आकेकरस्थित-कनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥


बाह्वन्तरे मधुजितः श्रित कौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला, कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥


कालाम्बुदाळि-ललितोरसि कैटभारे-धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति-भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥


प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत् प्रभावान् माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थर-मीक्षणार्धं मन्दाऽलसञ्च मकरालय-कन्यकायाः ॥7॥


दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा मस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्म-घर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाहः ॥8॥

इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्ट-कमलोदर-दीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजभामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर-वल्लभेति।
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणाश्रयायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै ॥11॥

नमोऽस्तु नालीक-निभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधि-जन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृत-सोदरायै नमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै ॥12॥

नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥13॥

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥14॥

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥15॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नन्दनानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्-वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यत् ॥16॥

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूर-तरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुविबुधभाविताशयाः ॥18॥

Kanakdhara Stotram | धनप्रदायिनी श्री कनकधारा स्तोत्रम् 

Hindi Translation of Kanakdhara Stotram | श्री कनकधारा स्तोत्र का हिंदी अनुवाद 

जिस प्रकार भ्रमरी अधखिले पुष्पों से अलंकृत तमाल-drum का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो दृष्टि श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्री अंगों पर लगातार पड़ता रहता है एवं जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है वैसे देवी भगवती महालक्ष्मी की कृपादृष्टि मेरे लिए मंगल प्रदान करने वाली हो।।1।।

जिस प्रकार भ्रमरी कमल पंखुरियों पर लगातार मंडराती रहती है, वैसे ही जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर निरंतर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जावश लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टि मुझे अपार धन संपत्ति प्रदान करें ।।2।।

जो देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, श्रीहरि को भी प्रसन्न करने वाली है तथा जो नीलकमल के अन्तः भागवत मनोहर लगती है, उन लक्ष्मीजी के अर्धखुले नेत्रों की दृष्टि पल भर के लिए मेरे ऊपर भी पड़े।।3।।शेषशय्या पर सोये हुए भगवान विष्णु की पत्नी श्री लक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करे, जिनकी पुतली तथा बरौनियां अनंग के वशीभूत हो अधखुले तथा निर्निमेष (अपलक) नयनों से देखने वाले आनंदकंद श्री मुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।।4।।



 जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कृपा दृष्टि मेरा कल्याण करें।।5।।

जिस प्रकार मेघों की घनी घटा में बिजली चमकती है, उसी तरह जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्याम वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो सभी लोकों को जन्म देने वाली है, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मेरा कल्याण करें ।।6।

समुद्र कन्या कमला की वह मंद, अलस, मंथर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, वही दृष्टि मेरे ऊपर भी पड़े।।7।।

भगवान विष्णु की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र मेघरूपी दयारूपी अनुकूल वायु से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषादरूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वर्षा करें।।8।।

दिव्य बुद्धि युक्त मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि मात्र से स्वर्ग पद को सहज ही धारण कर लेते हैं, पद्‍मासना पद्‍मा की वह विकसित कमल-गर्भवत कांतिमयी नजर से मुझे मनोवांछित फल प्रदान करें।।9।।

जो सृष्टि उत्पत्ति के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में स्थित होती है तथा प्रलय के समय शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) रूप में विराजमान होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की नित्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को मेरा नमस्कार है।।10।।

हे देवी । शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।।11।।

जो सृष्टि उत्पत्ति के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में स्थित होती है तथा प्रलय के समय शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) रूप में विराजमान होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की नित्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को मेरा नमस्कार है।।10।।

हे देवी ! शुभ कर्मों का फल प्रदान करने वाली श्रुतिरूप में आपको नमस्कार है। रमणीय गुणों की सिंधुरूपा रतिरूप में आपको प्रणाम है। कमल वन में रहने वाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को मेरा नमस्कार है तथा पुष्टिरूपा पुरुषोत्तम प्रिया को शत शत नमन है।।11।।

कमलवत कमला देवी को मेरा नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को प्रणाम है। चंद्रमा और सुधा की सहोदरी बहन तथा भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। ।।12।।

कमल के समान नेत्रों वाली हे मातेश्वरी ! आप सम्पुर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाली हो, राज्य देने में समर्थ तथा सारे पापों को हर करने वाली मुझे भी आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर हमेशा मिलता रहे।।13।।

जिनकी कृपा दृष्टि के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूं।।14।।

हे विष्णु प्रिये ! तुम कमल वन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में नीलकमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, गंध और माला इत्यादि से सुशोभित हो। तुम्हारी झांकी अत्यंत ही मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी, मुझ पर प्रसन्न हो।।15।।

दिशाओं द्वारा सुवर्ण-कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक (स्नान) संपादित होता है, संपूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रात: काल नमस्कार करता हूं ।।16।।

कमल के समान नेत्र वाले, भगवान् केशव की कामिनी पत्नि, हे कमले ! मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूं, तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। आप मेरे ऊपर अपनी कृपा दृष्टि प्रदान करें ।।१७।।

जो उपासक प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस लोक में महान गुणवान और अत्यंत भाग्यवान. होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके विचारो को जानने के लिए लालायित रहते हैं।।18।।


Kanakadhara Stotram
Kanakadhara Stotram - In sanskrit with meaning
- composed by Sri Adi Shankaracharya

कनकधारा स्तोत्रम् - अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
Kanakadhara Stotram - Angam Hareh Pulaka Bhusanam Aashrayanti
Devi Lakshmi
Devi Lakshmi 

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥
Anggam Hareh Pulaka-Bhuussannam-Aashrayantii
Bhrngga-Anggan[a-I]eva Mukula-[A]abharannam Tamaalam |
Anggii-Krta-Akhila-Vibhuutir-Apaangga-Liilaa
Maanggalya-Daa-[A]stu Mama Manggala-Devataayaah ||1||

Meaning:
1.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Who always dwell in the Body of Hari like an ornament of Ecstatic Delight (Pulaka), ...
1.2: ... Like the Bees which delightfully decorate (dwelling over) the half-open Flowers of the Tamala tree (with their ecstatic humming sound),
1.3: Who has contained within Her Body the entire Opulence of the Universe, (and She showers Wealth) through the Play of Her Divine Glance (Apanga Leela),
1.4: May that Glance bring Auspiciousness in my Life; that Divine Glance of the Mangala Devata (Godhead of Auspiciousness and Welfare),

flowers



Devi Lakshmi
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥
Mugdhaa Muhur-Vidadhatii Vadane Muraareh
Prema-Trapaa-Prannihitaani Gataagataani |
Maalaa Drshor-Madhukarii-[I]va Mahotpale Yaa
Saa Me Shriyam Dishatu Saagara-Sambhavaayaah ||2||

Meaning:
2.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Who is charmed (by Hari), and incessantly directs Her Glances on the Face of Murari,
2.2: (The Glances) Filled with Love and Bashfulness, directed towards Hari, go out in this moment (Out of Love) and return in the next moment (out of Bashfulness),
2.3: As if the series of Glances have taken the form of (a series of) Female Bees (Madhukari) who go round and round a Huge Water Lily (Mahotpala),
2.4: May She bestow on me (Her Glance filled with) Sriyam (Good Fortune), She Who has arisen out of the Ocean (Sagara Sambhava),

flowers



Devi Lakshmi
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्_
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्_
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥
Vishva-Amare[a-I]ndra-Pada-Vibhrama-Daana-Dakssam_
Aananda-Hetur-Adhikam Mura-Vidvisso-[A]pi |
Iissan-Nissiidatu Mayi Kssannam-Iikssanna-Ardham_
Indiivaro[a-U]dara-Sahodaram-Indiraayaah ||3||

Meaning:
3.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Who is capable of granting the position of the Chief of the Devas of the (Three) Worlds (i.e. Indra Deva) by a mere Wish,
3.2: And also (capable of) overflowing the Enemy of Mura (i.e. Sri Hari) with great Joy,
3.3: May a little of that Glance (of Grace), even for a moment rest on me from Her Half-Closed Eyes,
3.4: (The Eyes with) Splendour resembling the Blue Lotuses,

flowers



Devi Lakshmi
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्_
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥
Aamiilita-Akssam-Adhigamya Mudaa Mukundam_
Aananda-Kandam-Animessam-Anangga-Tantram |
Aakekara-Sthita-Kaniinika-Pakssma-Netram
Bhuutyai Bhaven-Mama Bhujangga-Shaya-Angganaayaah ||4||

Meaning:
4.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Whose fully opened Eyes have captured within it the Joyous Form of Mukunda,
4.2: And the Unwinking Eyes are (now) showering great Joy filled with great Love (Tantra of Ananga or Kamadeva),
4.3: From the corner of that Eye, let a ray of Glance take Wing, ...
4.4: ... And come to me; (Come to me) from the Consort of Bhujaga Sayana (the one resting on the Serpent),

flowers



Devi Lakshmi
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥
Baahv[u]-Antare Madhu-Jitah Shrita-Kaustubhe Yaa
Haaraavali-Iva Hariniilamayii Vibhaati |
Kaama-Pradaa Bhagavato-[A]pi Kattaakssa-Maalaa
Kalyaannam-Aavahatu Me Kamala-[A]alayaayaah ||5||

Meaning:
5.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Who resides between the Arms (i.e. in the Heart) of Madhujita (Conquerer of demon Madhu) where lies the Kaustubha Mani, ...
5.2: ... There She shines like Haravali (A String of Pearls) which are Harinila (Yellowish-Blue),
5.3: Who gives rise to Love even in Bhagavan through the string of Her Kataksha (Side Glances),
5.4: May those (Side Glances) bring Auspiciousness to me (by touching my Life); (Those Side Glances of the One) Dwelling in Lotuses,

flowers



Devi Lakshmi
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्_
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्_
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥
Kaala-Ambu-Da-Ali-Lalito[a-U]rasi Kaittabha-Arer_
Dhaaraadhare Sphurati Yaa Taddid-Anggane[a-I]va |
Maatuh Samasta-Jagataam Mahaniiya-Muurtir_
Bhadraanni Me Dishatu Bhaargava-Nandanaayaah ||6||

Meaning:
6.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Who play like a Bee on the Bosom of the enemy of Kaitabha (i.e. Sri Hari), which is like a Black Water-Bearing (Cloud) ...
6.2: ... (The Play which is) Like Lightning flashing over the Cloudy Sky,
6.3: O Mother, Your Form is the most Glorious in all the Universe,
6.4: (May that Auspicious Form) bestow Auspiciousness to me (by touching my Life); (The Auspicious Form of the) Gladdener of the Bhargava lineage,

flowers



Devi Lakshmi
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥
Praaptam Padam Prathamatah Kila Yat-Prabhaavaan
Maanggalya-Bhaaji Madhu-Maathini Manmathena |
Mayyaa-Patet-Tad-Iha Mantharam-Iikssanna-Ardham
Manda-Alasam Ca Makaraalaya-Kanyakaayaah ||7||

Meaning:
7.1: (Salutations to Mother Lakshmi) By Whose Power indeed (Manmatha) first obtained a place; ...
7.2: ... Manmatha (Kamadeva) (obtained a place) on the slayer of Madhu (i.e. Sri Hari); (That Hari) Who is always connected with the conferrer of Happiness (i.e. Devi Mahalakshmi),
7.3: May that Power from the (Glance of the) Gentle Half-Open Eyes fall on me now,
7.4: (That Glance which is) Soft and Gentle; (That Glance) of the Daughter of the Ocean,

flowers



Devi Lakshmi
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम्_
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥
Dadyaad Daya-Anupavano Dravinna-Ambu-Dhaaraam_
Asminn-Akin.cana-Vihangga-Shishau Vissannnne |
Dusskarma-Gharmam-Apaniiya Ciraaya Duuram
Naaraayanna-Prannayinii-Nayana-Ambu-Vaahah ||8||

Meaning:
8.1: (Salutations to Mother Lakshmi) May She bestow the Wind of Her Mercy and Shower of Her Wealth ...
8.2: ... to this Utterly Destitute, who is helpless like a child of a Bird, and downcast (with Poverty), ...
8.3: ... and remove forever the Heat of Sinful Activities (from life),
8.4: May the Shower of the Rain (of Mercy) from the Eyes of the Beloved of Narayana (bestow this),

flowers



Devi Lakshmi
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र_
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥
Issttaa Vishisstta-Mata-Yo-[A]pi Yayaa Dayaa-[Aa]rdra_
Drssttyaa Trivissttapa-Padam Sulabham Labhante |
Drssttih Prahrsstta-Kamalo[a-U]dara-Diipti-Rissttaam
Pussttim Krssiisstta Mama Pusskara-Vissttaraayaah ||9||

Meaning:
9.1: (Salutations to Mother Lakshmi) By Her Merciful Glance even the most Distinguished (and Difficult) Desires, ...
9.2: ... like a Position in Heaven is obtained with ease; Such is the Power of Her Glance moist with Compassion,
9.3: That Glance which is like the Splendour contained within the interior of a Lotus, a Lotus which is blossoming (by being) Thrilled with Joy, ...
9.4: May that Glance Nourish my Wishes; That Merciful Glance of the One Seated on the Lotus,

flowers



Devi Lakshmi
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥
Giir-Devate[aa-I]ti Garudda-Dhvaja-Sundarii-[I]ti
Shaakambharii-[I]ti Shashi-Shekhara-Vallabhe[a-I]ti |
Srsstti-Sthiti-Pralaya-Kelissu Samsthitaayai
Tasyai Namas-Tri-Bhuvanai[a-E]ka-Guros-Tarunnyai ||10||

Meaning:
10.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Who is called as "Gir Devata" (Goddess of Speech), "Garuda Dhwaja Sundari" (The Beautiful Consort of the One with Garuda as Emblem), ...
10.2: ... "Shakambhari" (Who sustains everyone with Vegetation) and "Shashi Sekhara Vallabha" (Who is the beloved of the One with Moon on the Head),
10.3: Who eternally abides during the Divine Play of Sristhi (Creation), Sthiti (Maintenance) and Pralaya (Destruction),
10.4: To Her, Who is the ever Youthful Consort of the One Guru of all the Worlds, the Three Worlds offer their Reverential Salutations,

flowers



Devi Lakshmi
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥११॥
Shrutyai Namo-[A]stu Shubha-Karma-Phala-Prasuutyai
Ratyai Namo-[A]stu Ramanniiya-Gunna-Arnnavaayai |
Shaktyai Namo-[A]stu Shata-Patra-Niketanaayai
Pussttyai Namo-[A]stu Purussottama-Vallabhaayai ||11||

Meaning:
11.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Salutations to You as Shruti (Vedas), Who produces Auspicious Results of Works (when Shruti is followed in our lives),
11.2: Salutations to You as Rati, Who is an Ocean of Good Qualities,
11.3: Salutations to You as Shakti, Who abide within the Abode of Hundred Petals (Lotus of Kundalini), (and)
11.4: Salutations to You as Pussti (Nourishment) Who is the beloved of Purushottama,

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Devi Lakshmi
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥
Namo-[A]stu Naaliika-Nibha-[A]ananaayai
Namo-[A]stu Dugdho[a-U]dadhi-Janma-Bhuutyai |
Namo-[A]stu Soma-Amrta-Sodaraayai
Namo-[A]stu Naaraayanna-Vallabhaayai ||12||

Meaning:
12.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Salutations to You Who has the Face resembling a Lotus,
12.2: Salutations to You Who was born from the Ocean of Milk,
12.3: Salutations to You Who resides within the beauty of the Nectar of the Moon, (and)
12.4: Salutations to You Who is the most beloved of Sri Narayana,

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Devi Lakshmi
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥१३॥
Sampat-Karaanni Sakale[a-I]ndriya-Nandanaani
Saamraajya-Daana-Vibhavaani Saroruha-Akssi |
Tvad-Vandanaani Duritaa-Haranno[a-U]dyataani
Maam-Eva Maatar-Anisham Kalayantu Maanye ||13||

Meaning:
13.1: (Salutations to Mother Lakshmi) (Whose Lotus-Like Eyes are) the cause of Prosperity (Externally), and also the cause of great Joy in all the Senses (Internally),
13.2: (And) Whose Lotus-Like Eyes holds the Power to bestow a Kingdom,
13.3: Singing Your Glories awakens Your Grace to remove the Difficulties and Sinful Tendencies from our Lives, ...
13.4: ... (Therefore) O Mother, May I always be blessed to Serve You and Sing Your Glories,

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Devi Lakshmi
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
संतनोति वचनाङ्गमानसैस्_
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥१४॥
Yat-Kattaakssa-Samupaasanaa-Vidhih
Sevakasya Sakala-Artha-Sampadah |
Samtanoti Vacana-Angga-Maanasais_
Tvaam Muraari-Hrdaye[a-I]shvariim Bhaje ||14||

Meaning:
14.1: (Salutations to Mother Lakshmi) The Worship of Whose Merciful Glance is the ...
14.2: ... entire Devotion and Wealth of Her Servants,
14.3: (Therefore) May my Speech, Body and Mind be enveloped by ...
14.4: ... Your Worship; You Who are the beloved Goddess residing within the Heart of Murari (i.e. Sri Hari),

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Devi Lakshmi
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१५॥
Sarasija-Nilaye Saroja-Haste
Dhavalatama-Amshuka-Gandha-Maalya-Shobhe |
Bhagavati Hari-Vallabhe Manojnye
Tri-Bhuvana-Bhuuti-Kari Prasiida Mahyam ||15||

Meaning:
15.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Who abides in the Lotus and holds Lotus in Her Hands,
15.2: Who is dressed in Dazzling White Garments and decorated with the most Fragrant Garlands (She radiates a Divine Aura),
15.3: O Goddess, You are Dearer than the Dearest of Hari and the most Captivating,
15.4: You are the Source of Well-Being and Prosperity of all the Three Worlds; O Mother, Please be Gracious to me,

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Devi Lakshmi
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट_
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष_
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥१६॥
Dig-[G]hastibhih Kanaka-Kumbha-Mukha-Avasrsstta_
Svar-Vaahinii-Vimala-Caaru-Jala-Pluta-Anggiim |
Praatar-Namaami Jagataam Jananiim-Ashessa_
Loka-Adhinaatha-Grhinniim-Amrta-Abdhi-Putriim ||16||

Meaning:
16.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Who (is bathed) by the Dig Hastis (Elephants of the Directions), Who are pouring (Waters) from the mouth of Golden Pitchers, ...
16.2: ... The Water which is Pure and Stainless and flowing from the Celestial Regions; Her Body bathed by Celestial Waters is appearing Shining Beautiful,
16.3: In the Early Morning I Salute this Eternal Mother of the Universe, ...
16.4: ... Who is the Consort of the Supreme Lord of the Universe, and the Daughter of the Nectar Ocean,

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Devi Lakshmi
कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥
Kamale Kamala-Akssa-Vallabhe
Tvam Karunnaa-Puura-Taranggitair-Apaanggaih |
Avalokaya Maam-Akin.canaanaam
Prathamam Paatram-Akrtrimam Dayaayaah ||17||

Meaning:
17.1: (Salutations to Mother Lakshmi) O Mother Kamala, O the Lotus-Eyed Beloved (of Sri Hari), ...
17.2: You kindly (look at me) with Your Eyes filled with the waves of Compassion, ...
17.3: ... Look at me who is utterly Destitute, ...
17.4: ... and the first person deserving Your unreserved Compassion,

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Devi Lakshmi
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥
Stuvanti Ye Stutibhir-Amuubhir-Anvaham
Trayiimayiim Tri-Bhuvana-Maataram Ramaam |
Gunna-Adhikaa Gurutara-Bhaagya-Bhaagino
Bhavanti Te Bhuvi Budha-Bhaavitaa-Shayaah ||18||

Meaning:
18.1: (Salutations to Mother Lakshmi) Those who glorify with this Hymn, everyday, ...
18.2: ... the Ramaa (Devi Lakshmi) Who is Trayimayi (The embodiment of the Three Vedas) and Mother of the Three Worlds, ...
18.3: ... will be filled with abundant Virtues, and be blessed with the destiny of very Venerable persons,
18.4: They will become Wise in the World by Your Grace awakening their Wisdom.

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04. Devi Aparadha Kshamapana Stotram
05. Dakshinamurthy Stotram
06. Ganesha Pancharatnam
07. Ganga Stotram
08. Jagannathashtakam
09. Kalabhairava Ashtakam
10. Kalika Ashtakam
11. Kamakshi Stotram
12. Kanakadhara Stotram
13. Lakshmi Nrisimha Karavalambam
14. Lalita Panchakam
15. Meenakshi Pancharatnam
16. Narmadashtakam
17. Nirvana Shatakam
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विश्वंभरा वसुधानी प्रतिष्ठा हिरण्यवक्षा जगतो निवेशनी
(Vishvambharaa Vasudhaanii Pratisstthaa Hirannya-Vakssaa Jagato Niveshanii)

I meditate on the Earth Who is Vishvambhara (All-Bearing), Vasudha (All-Producing), Pratishtha (Our Foundation), Hiranyavaksha (Having Golden Bosom) and Jagato Niveshani (Our Dwelling Place).

(Bhoomi Sukta verse 6: From Atharva Veda)

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