अगर आपके जीवन में कोई परेशानी है, जैसे: बिगड़ा हुआ दांपत्य जीवन , घर के कलेश, पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध, निसंतान माता पिता, दुश्मन, आदि, तो अभी सम्पर्क करे. +91-8602947815
Showing posts with label Shubh Grah-Ashubh grah | शुभ ग्रह - अशुभ ग्रह. Show all posts
Showing posts with label Shubh Grah-Ashubh grah | शुभ ग्रह - अशुभ ग्रह. Show all posts

Neech graha - vakri grah | ज्योतिष में नीच ग्रह और वक्री ग्रह

Neech graha - vakri grah | ज्योतिष में नीच ग्रह और वक्री ग्रह 


केस – 1
एक जातक ज्‍योतिषी के पास पहुंचता है और अपनी कुण्‍डली दिखाता है। ज्‍योतिषी जातक से कहता है कि आपकी कुण्‍डली कन्‍या लग्‍न की है, लेकिन बुध अस्‍त होने के कारण आप कुछ कर नहीं पा रहे हैं। लग्‍न में बुधादित्‍य (सूर्य और बुध के साथ होने का योग) के बावजूद आपकी कुण्‍डली असरदार नहीं रह गई है। जातक ज्‍योतिषी से इसका उपाय पूछता है। कुण्‍डली के कारक ग्रहों का उपचार बताने के बजाय ज्‍योतिषी जातक को बुध के उपाय बताकर भेज देता है।

केस – 2

पुस्‍तक में पढ़कर अपनी कुण्‍डली का विश्‍लेषण कर रहे व्‍यक्ति को पता चलता है कि शनि के वक्री होने के कारण उसके सारे काम उल्‍टे हो रहे हैं और आने वाली महादशा भी शनि की ही है। इससे परेशान हुआ व्‍यक्ति ज्‍योतिषियों के चक्‍कर निकालने लगता है। वह हर ज्‍योतिषी से यही पूछता है कि वक्री शनि का उपचार क्‍या है। जबकि वास्‍तव में उसकी कुण्‍डली में शनि अकारक है। यानि उसकी जिंदगी में शनि की बजाय अन्‍य ग्रहों का रोल अधिक है।

ऐसे ही कई उद्धरण ज्‍योतिषियों के पास आते हैं और आम लोग भी ग्रहों के अस्‍त या वक्री होने से परेशान नजर आते हैं। ज्‍योतिष की मूल रूप से दो शाखाएं हैं। सिद्धांत और फलित। सिद्धांत शाखा में जहां ज्‍योतिषीय गणनाओं के बारे में विस्‍तार से दिया गया है वहीं फलित ज्‍योतिष में ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों का मनुष्‍य के जीवन पर प्रभाव के बारे में विशद वर्णन है। समय के साथ सिद्धांत और फलित शाखाओं में समय के साथ दूरी बनती जा रही है। एक ओर जहां फलित की पुस्‍तकों के ढेर लग रहे हैं वहीं सिद्धांत ज्‍योतिष उपेक्षित होती जा रही है। इसी का नतीजा है कि सिद्धांत में दिए गए शब्‍दों को फलित ज्‍योतिष में भली भांति समझे जाने के बजाय उनके सामान्‍य शब्‍दों के अनुरूप ही अर्थ निकाले जाने लगे हैं। पहले पहल नौसिखिए ज्‍योतिषियों ने इन शब्‍दों के शाब्दिक अर्थों का प्रयोग किया, बाद में तो कई पुस्‍तकों तक में इन शब्‍दों के गलत अर्थ आ गए। इससे आम लोगों में भी ज्‍योतिषीय शब्‍दों को लेकर भ्रांतियां बढ़ती जा रही हैं। वास्‍तव में शब्‍दों के अर्थ समझना विषय को समझने से पहले जरूरी है।

वक्री और मार्गी का असर
सिद्धांत ज्‍योतिष में स्‍पष्‍ट किया गया है कि वक्री क्‍या होता है। हम सामान्‍य विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें तो पता चलेगा कि सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्धवृत्ताकार कक्षा में चक्‍कर लगा रहे हैं। चूंकि पृथ्‍वी भी सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगा रही है, अत: सापेक्ष गति के कारण ऐसा दिखाई देता है। अगर सौर मण्‍डल में ग्रहों का मार्ग पूर्णत: वृत्ताकार होता तो कभी कोई ग्रह वक्री या मार्गी नहीं होता, लेकिन दीर्धवृत्ताकार चक्‍कर निकालने के कारण पृथ्‍वी से देखे जाने पर ये ग्रह कभी अधिक तेज गति से चलते हुए तो कभी धीमी रफ्तार से चलते हुए दिखाई देते हैं। वास्‍तव में कोई भी ग्रह उल्‍टी चाल से नहीं चलता है। सिद्धांत ज्‍योतिष ने यह तो स्‍पष्‍ट कर दिया कि कब ग्रह की मार्गी गति होती, कब अतिचाल होगी और कब वक्री गति होगी, लेकिन फलित ज्‍योतिष में इसके असर के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है कि ग्रहों की इस चाल का से क्‍या और क्‍यों असर में बदलाव आता है। इसका एक सिद्धांत यह भी बताया जाता है कि ग्रह के वक्री होने पर वह किसी राशि विशेष में अधिक समय तक ठहरकर सूर्य और अन्‍य नक्षत्रों से मिली राशियों को पृथ्‍वी की ओर भेजता है। इससे वक्री ग्रह का प्रभाव सामान्‍य के बजाय उच्‍च की भांति हो जाता है। वहीं दूसरी ओर अतिचाल के कारण ग्रह कम समय के लिए राशि में ठहरता है और नक्षत्रों से मिली रश्मियों को अपेक्षाकृत कम समय के लिए जातक की ओर भेजता है। ऐसे में उसका प्रभाव नीच की भांति हो जाता है।

प्रकृति में नहीं होता बदलाव
फलित ज्‍योतिष में हर ग्रह और राशि (नक्षत्रों के समूह) की प्रकृति के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गई है। ग्रहों के रंग, दिशा, स्‍त्री-पुरुष भेद, तत्‍व और धातु के अलावा राशियों के गुणों के बारे में भी बताया गया है। ग्रहों और राशियों की प्रकृति स्‍थाई होती है। इनके प्रभाव में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन मूल प्रकृति में कभी बदलाव नहीं होता। जब कोई ग्रह अपनी नीच राशि में जाता है तो यह माना जाता है कि इस राशि में ग्रह का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है और उच्‍च राशि में अपना सर्वाधिक प्रभाव देता है। सूर्य मेष राशि में, चंद्रमा वृष में, बुध कन्‍या में, शनि तुला में, मंगल मकर में, गुरु कर्क में और शुक्र मीन राशि में उच्‍च का होता है। इसका तात्‍पर्य यह हुआ कि इन राशियों में ग्रहों का प्रभाव अधिक होगा। दूसरी ओर सूर्य तुला में, चंद्रमा वृश्चिक में, बुध मीन में, शनि मेष में, मंगल कर्क में, गुरु मकर में और शुक्र कन्‍या राशि में नीच का प्रभाव देते हैं। यहां इन ग्रहों का प्रभाव सबसे कम होता है। अब प्रभावों में बढ़ोतरी हो या कमी, न तो ग्रह की और न ही राशि की प्रकृति में कोई बदलाव आता है। ऐसे में किसी ग्रह के नीच या उच्‍च होने पर उसके प्रभाव को नीच या उच्‍च नहीं कहा जा सकता है।

ग्रहों की बत्ती नहीं बुझती
ज्‍योतिष में सौरमण्‍डल के अन्‍य ग्रहों के साथ सूर्य को भी एक ग्रह मान लिया गया है, लेकिन वास्‍तव में सूर्य ग्रह न होकर एक तारा है। ग्रह जहां सूर्य की रोशनी से चमकते हैं वहीं सूर्य खुद की रोशनी से दमकता है। पृथ्‍वी से परीक्षण के दौरान हम देखते हैं कि कई बार ग्रह सूर्य के बहुत करीब आ जाते हैं। किसी भी ग्रह के सूर्य के करीब आने पर ज्‍योतिष में उसे अस्‍त मान लिया जाता है। आमतौर पर दस डिग्री से घेरे में सभी ग्रह अस्‍त रहते हैं। सिद्धांत ज्‍योतिष के अस्‍त के कथन को भी फलित ज्‍योतिष में गलत तरीके से लिया जाने लगा है। अस्‍त ग्रह के लिए यह मान लिया जाता है कि अमुक ग्रह ने अपना प्रभाव खो दिया, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। ग्रह खुद की किरणें भेजने के बजाय नक्षत्रों से मिली किरणें जातकों तक भेजते हैं। बुध और शुक्र सूर्य के सबसे करीबी ग्रह हैं। छोटे कक्ष में लगातार चक्‍कर लगा रहे ये ग्रह सर्वाधिक अस्‍त होते हैं। अन्‍य ग्रह भी समय समय पर अस्‍त और उदय होते रहते हैं। फलित ज्‍योतिष के अनुसार इन ग्रहों के अस्‍त होने का वास्‍तविक अर्थ यह है कि नक्षत्रों (तारों के समूह) से मिल रहे किरणों के प्रभाव को अब ग्रह सीधा भेजने के बजाय सूर्य के प्रभाव के साथ मिलाकर भेज रहे हैं। ऐसे में ग्रह का प्रभाव यथावत तो रहेगा ही उसमें सूर्य का प्रभाव भी आ मिलेगा। इसी वजह से तो बुधादित्‍य के योग को हमेशा बेहतरीन माना गया है।

ज्‍योतिष फलादेश में दशा और गोचर सिद्धांत

ज्‍योतिष फलादेश में दशा और गोचर सिद्धांत

किसी भी जातक की कुण्‍डली (Kundali) वास्‍तव में जातक के जन्‍म के समय आकाशीय पिण्‍डों की स्थिति दर्शाने वाला चार्ट (Chart) होता है। कोई जातक अपने जीवन के बीसवें, तीसवें अथवा पचासवें साल में जब ज्‍योतिषी (Astrologer) को कुण्‍डली दिखाता है तो ज्‍योतिषी के पास कुण्‍डली के विश्‍लेषण के साथ इवेंट्स (Events) की गणना के लिए मुख्‍यत: तीन विधियां होती हैं।

पाराशरीय पद्धति (Parashar system of astrological calculation) में किसी भी जातक की आदर्श आयु 120 साल मानते हुए हर ग्रह (Planet) को एक निश्चित अवधि दी गई है। दशाओं का यह क्रम इस प्रकार रहता है…

केतू (Ketu) – यह दशा 7 साल चलती है।
शुक्र (Shukra) – इसकी दशा 20 साल तक चलती है।
सूर्य (Surya) – इसकी दशा 6 साल तक चलती है।
चंद्र (Chandra) – इसकी दशा 10 साल तक चलती है।
मंगल (Mangal) – इसकी दशा 7 साल चलती है।
राहू (Rahu) – इसकी दशा 18 साल चलती है।
गुरु (Guru) – इसकी दशा 16 साल चलती है।
शनि (Shani) – इसकी दशा 19 साल चलती है।
बुध (Buddh) – इसकी दशा 17 साल चलती है।

इन सभी वर्षों को जोड़ा जाए तो कुल अवधि 120 साल होती है। यह अवधि बीत जाने के बाद फिर से पहली दशा शुरू हो जाती है। मान लीजिए कि किसी जातक का जन्‍म सूर्य के नक्षत्र में हुआ है। तो उसे पहली दशा केतू की मिलेगी, फिर शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल आदि। इसी प्रकार जो जातक गुरु की दशा में पैदा होगा उसे आगे शनि, बुध, केतू, शुक्र आदि दशाएं इसी क्रम में मिलेंगी। इसके साथ ही नक्षत्र के चार चरण होते हैं। जितने चरण बीत जाते हैं, भोगने वाली दशा भी उतनी ही कम होती जाती है। मसलन किसी जातक का जन्‍म आर्द्रा के द्वितीय चरण में हुआ है तो उसकी दशा राहू की दशा होगी, लेकिन भोग्‍य दशाकाल 18 साल के बजाय 13 साल ही रह जाएगा।

अंतरदशा (Anterdasha)
चूंकि महादशा की अवधि अधिक होती है, ऐसे में दशाओं को बाद में अंतरदशा में तोड़ा गया। जिस प्रकार नक्षत्रों के क्रम से दशा बनाई गई, उसी प्रकार नक्षत्रों (Nakshatras) को जिस क्रम में तोड़ा गया है, उसी क्रम में अंतरदशाएं भी बनाई गई है। हर महादशा में नौ नौ अंतरदशाएं होती हैं। उदाहरण के तौर पर हम शुक्र की महादशा लेते हैं। शुक्र की 20 साल की दशा में शुक्र का अंतर तीन साल चार महीने के करीब होता है। इसी प्रकार शुक्र में सूर्य का अंतर लगभग एक साल का होता है। जितने समय की महादशाएं होंगी, उसी अनुपात में अंतरदशाओं का क्रम होगा।

शुक्र शुक्र – यह करीब तीन साल चार महीने का समय होगा।
शुक्र सूर्य – यह करीब एक साल का समय होगा।
शुक्र चंद्र – यह करीब डेढ़ साल का समय होगा।
शुक्र मंगल – यह करीब एक साल दो महीने का समय होगा।
शुक्र राहू – यह करीब तीन साल का समय होगा।
शुक्र गुरू – यह करीब ढाई साल का समय होगा।
शुक्र शनि – यह करीब तीन साल तीन माह का समय होगा।
शुक्र बुध – यह करीब पौने तीन साल का समय होगा।
शुक्र केतू – यह करीब एक साल तीन महीने का समय होगा।

इस प्रकार हर अंतरदशा को एक निश्चित अवधि मिलेगी। कुण्डली में जैसी स्थिति दशानाथ की होगी, यानी जिस ग्रह की महादशा चल रही है, वैसी ही स्थिति मोटे तौर पर जातक (Jataka) की भी होगी। शुक्र की महादशा बीस साल तक रहती है, ऐसे में यह तो नहीं कहा जा सकता कि बीस साल तक जातक का समय पूरा अच्‍छा या पूरा खराब जाएगा। ऐसे में बीस साल की अवधि को बांट दिया गया है। अब हर दशा में अंतरदशा स्‍वामी की जैसी स्थिति होगी, जातक का समय वैसा ही जाएगा। मान लीजिए यह कुण्‍डली वृषभ लग्‍न के जातक की है। ऐसे में शुक्र की महादशा में शनि का अंतर कमोबेश अच्‍छा ही जाएगा। क्‍योंकि वृषभ लग्‍न में शुक्र लग्‍न का अधिपति है और शनि इस लग्‍न का कारक ग्रह है।

यदि अंतरदशा वाले समय से अधिक सूक्ष्‍म समय के लिए हमें जातक का अच्‍छा या खराब समय ज्ञात करना हो तो इसके लिए प्रत्‍यंतर दशा का प्रावधान है। गणना की विधि एक बार फिर ही रहेगी, कि दशा के भीतर अंतरदशा और उस अंतरदशा के नौ नौ भाग किए जाएंगे। हर अंतरदशा के वे नौ भाग अंतरदशा को मिले समय में से उसी प्रकार विभक्‍त किए जाएंगे जिस प्रकार दशा में से अंतरदशा का काल निर्धारण किया गया था।

अब तक बताई गई विधि पाराशर पद्धति से दशा की गणना की विंशोत्‍तरी (120 साल की गणना) पद्धति है। वर्तमान में पारंपरिक गणनाओं में इसी का सर्वाधिक इस्‍तेमाल होता है। दूसरी विधि कुछ अधिक क्लिष्‍ट है। इसे गोचर विधि (Transit method) कहेंगे। मूल कुण्‍डली की तुलना में वर्तमान में आकाशीय पिण्‍डों की क्‍या स्थिति है। उसे पश्चिम में ट्रांजिट होरोस्‍कोप ( Transit horoscope) कहते हैं और पूर्व में उसे तात्‍कालिक गोचर स्थिति के नाम से जाना जाता है।

इसके अनुसार आपकी जन्‍म कुण्‍डली में बैठे ग्रहों की तुलना में वर्तमान में ग्रहों का जो गोचर है, वह बताता है कि इस साल या प्रश्‍न पूछते समय आपकी क्‍या स्थिति है। इस विधि में पूर्व स्‍थापित नियमों की तुलना में ज्‍योतिषी की व्‍यक्तिगत मेधा (Skill) और इंट्यूशन (Intution) ही अधिक काम करते हैं। कुछ सिद्धांत हो पहले से बताए गए हैं, वे केवल फलादेश की मदद भर कर पाते हैं। इसके इतर भारतीय पद्धति में किसी व्‍यक्ति की चंद्र राशि से ग्रहों को गोचर को लेकर अधिक विस्‍तृत फल देखने को मिलते हैं। ये फल भी कम या अधिक मात्रा में विंशोत्‍तरी दशा के फलों को मैच करते हुए पाए जाते हैं।

अगर आप अपनी कुण्‍डली में वर्तमान दशा जानना चाहते हैं तो पहले देखिए कि वर्तमान में आपकी महादशा कौनसी चल रही है। प्रिंट की गई कुण्‍डली में यह आखिरी पेजों में दी गई होती है। लग्‍न का अधिपति और कारक ग्रह की दशा सामान्‍य तौर पर किसी भी जातक के लिए सर्वाधिक अनुकूल समय होती है। महादशा के बाद देखिए कि कौनसी अंतरदशा चल रही है। अनुकूल महादशा में अगर प्रतिकूल अंतरदशा हो तो वह दौर जातक के लिए खराब दौर होता है। महादशा अनुकूल हो और अंतरदशा प्रतिकूल हो, इसके बाद देखिए कि अंतरदशा के दौर अनुकूल है या प्रतिकूल। अगर अंतरदशा का दौर अनुकूल है तो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आप बेहतर परिणाम लाने की सामर्थ्‍य रखेंगे।

दूसरी ओर प्रोग्रेस्‍ड होरोस्‍कोप अथवा गोचर की बात की जाए तो प्रत्‍येक कुण्‍डली में हमें विश्‍लेषण करना होगा कि किस ग्रह को वर्तमान में देखा जा रहा है और कुण्‍डली के अनुसार किसी ग्रह का गोचर आपकी कुण्‍डली के लिए कितना अनुकूल अथवा प्रतिकूल रहेगा। प्रोग्रेस्‍ड होरोस्‍कोप के लिए आपको लंबे अभ्‍यास की जरूरत होती है। ऐसे में नए लोगों के लिए यही सलाह है कि वे पाराशर के विंशोत्‍तरी दशा सिस्‍टम से ही ज्ञात करें कि उनका वर्तमान दौर कैसा चल रहा है।


विशोत्तरी दशा फल
* सूर्य - सूर्य यदि बली हो तो इसकी दशा में धन लाभ, अधिक सुख, राज-सम्मानादि, पुत्रलाभ, हाथी आदि धनों का लाभ, वाहन का लाभ, राजा की अनुकम्पा प्राप्त होती है। जबकि निर्बल सूर्य की दशा में जातक महान कष्ट, धन-धान्य का विनाश, राजक्रोध, प्रवास, राजदण्ड, धनक्षय, ज्वरपीड़ा, अपयश, स्वबन्धुओं से वैमनस्यता, पितृकष्ट, भय आदि अशुभ फलों को प्राप्त करता है।
* चन्द्र - बली चन्द्रमा की दशा में जातक को धन-धान्य सौभाग्यादि की वृद्धि, घर में मांगलिक कार्य, वाहन सुख, राजदर्शन, यत्न से कार्य-सिद्धि, घर में धनागम, राज्यलाभ, सुख, वाहन प्राप्ति एवं धन एवं वस्त्रदि का लाभ होता है। निर्बल चन्द्रमा अपनी दशा में जातक को धन हानि, जड़ता, मानसिक रोग, नौकरों से पीड़ा, मातृकष्ट आदि अशुभ फल प्रदान करता है।
* मंगल - बली मंगल अपनी दशा में जातक को राज्यलाभ, भूमिप्राप्ति, धन-धान्यादि का लाभ, राजसम्मान, वाहन, वस्त्र आदि का लाभ करता है। जबकि मंगल के निर्बल होने से यही मंगल अपनी दशा में धन-धान्य का विनाश कष्ट आदि अशुभ फल प्रदान करता है।
* राहु - इस छाया ग्रह के बली होने पर जातक को राहु की दशा में धन-धान्यादि संपत्ति का अभ्युदय, मित्र एवं मान्य जनों की सहानुभूति से कार्यसिद्धि, वाहन, पुत्र-लाभ आदि शुभ फल प्राप्त होते हैं। यही ग्रह यदि पाप प्रभाव में हो तो जातक को स्थान भ्रष्ट, मानसिक रोग, पुत्र-स्त्री का विनाश एवं कुभोजन प्रदान करता है।
* गुरू - बली गुरु अपनी दशा में राज्य की प्राप्ति, महासुख, राजा से सम्मान, यश, घोड़े-हाथी आदि की प्राप्ति, देव-ब्राह्मण में निष्ठा, वेद-वेदान्तादि का श्रवण, पालकी आदि की प्राप्ति, कल्याण, पुत्र कलत्रदि का लाभ प्रदान करता है। हीनबली गुरू की दशा में जातक को स्थाननाश, चिन्ता व पुत्रकष्ट, महाभय, पशु-चौपायों की हानि, आदि अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
* शनि - बली शनि की दशा में जातक राजसम्मान, सुन्दर यश, धनलाभ, विद्याध्ययन से स्वान्त सुख, हाथी, वाहन, आभूषण आदि का सुख, घर में लक्ष्मी की कृपा आदि शुभ फल प्राप्त करता है। यही शनि यदि हीनबली हो तो शस्त्र से पीड़ा, स्थान का विनाश, महाभय, माता-पिता से वियोग, पुत्र कलत्रदि को पीड़ा, बन्धन आदि पीड़ा प्राप्त होते हैं।
* बुध - बुध अपनी दशा में जातक को सुख, धन-धान्य का लाभ, सुकीर्त्ति, ज्ञानवृद्धि, राजा की सहानुभूति, शुभ कार्य की वृद्धि, रोगहीनता, व्यापार से धनलाभ आदि शुभ पुल प्रदान करता है। बलविहीन बुध राजद्वेष, मानसिक रोग, विदेश भ्रमण, दूसरे की नौकरी, कलह तथा मूत्रकृच्छ रोगादि प्रदान करता है।
* केतु - केतु के शुभ होने अर्थात् बलयुक्त होने पर राजा से प्रेम, मनोनुकूल वातावरण देश या ग्राम का अधिकारी, वाहनसुख, सन्तानोत्पत्ति, विदेशभ्रमण, तथा पशु आदि का लाभ प्रदान करता है। बलविहीन केतु की दशा में दूरगमन, शारीरिक कष्ट, पराश्रित, बन्धुनाश, स्थान विनाश, मानसिक रोग, अधम व्यक्ति का संग और रोगरूपी अशुभ फलों की प्राप्ति होती है।
शुक्र - बलवान शुक्र अपनी दशा में जातक को राज्याभिषेक की प्राप्ति, वाहन, वस्त्र, आभूषण, हाथी, घोड़े पशु आदि का लाभ, सुस्वादु भोजन, पुत्र-पौत्रदि का जन्म आदि शुभ फलों की प्राप्ति होती है। बलविहीन शुक्र अपनी दशा में जातक को स्वबन्धु-बान्धवों में वैमनस्यता, पत्नी की पीड़ा, व्यवसाय में हानि, गाय भैंस आदि पशुओं की हानि, स्त्री पुत्रदि या अपने बन्धु-बान्धवों का विछोह देता है।

Functional benefic and malefic for all ascendants | शुभ ग्रह और पाप ग्रह

Functional benefic and malefic for all ascendants | शुभ ग्रह और पाप ग्रह

नैसर्गिक शुभ ग्रह - क्रियात्मक शुभ ग्रह और नैसर्गिक अशुभ ग्रह - क्रियात्मक अशुभ ग्रह 

Functional Malefics for the Lagna: -

Aries- Mercury, Mars and Jupiter (Mild)
Taurus- Mars, Venus and Jupiter
Gemini- Jupiter (KP), Saturn (Mild) and Venus (Mild)
Cancer- Mercury, Saturn and Jupiter
Leo- Moon, Saturn (Mild) and Jupiter (Mild)
Virgo- Jupiter (KP), Sun, Mars and Saturn
Libra- Mercury, Jupiter (Mild) and Venus (Mild)
Scorpio- Venus, Mars and Mercury (Mild)
Sagittarius- Moon, Venus (Mild) and Mars (Mild)
Capricorn- Sun, Jupiter and Mercury (Mild)
Aquarius- Moon, Mercury and Saturn (Mild)
Pisces- Saturn, Sun, Mercury(KP) and Venus

Functional Benefics for the Lagna - 

Aries- Mars, Sun and Jupiter
Taurus- Mercury and Saturn
Gemini- Mercury and Venus
Cancer- Moon and Mars
Leo- Sun and Mars
Virgo- Mercury and Venus
Libra- Saturn
Scorpio- Jupiter, Moon and Sun
Sagittarius- Jupiter, Mars and Sun
Capricorn- Saturn and Venus
Aquarius- Saturn and Venus
Pisces- Jupiter, Moon and Mars

Auspicious planets and inauspicious planets | Shubh grah paap graha

शुभ ग्रह: चन्द्रमा, बुध, शुक्र, गुरू हैं
पापी ग्रह: सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु हैं

ज्योतिष में गुरु, शुक्र, चंद्रमा और बुध को शुभ और शनि, मंगल, राहु और केतु को अशुभ ग्रह माना गया है। 

सूर्य सभी ग्रहों का राजा है और उसे क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है। बुध, चंद्रमा, शुक्र और गुरु एक-दूसरे के लिए भी शुभ ग्रह माने गए हैं, जबकि सूर्य, मंगल, शनि और राहु अशुभ फल देने वाले ग्रह माने जाते हैं। कुंडली के बारह भावों में छठा, आठवां और बारहवां भाव अशुभ (त्रिक) भाव माने जाते हैं। अष्टम भाव सबसे ज्यादा अशुभ माना गया है। षष्ठम भाव से षष्ठम यानी एकादश भाव तथा अष्टम भाव से अष्टम यानी तृतीय भाव भी अशुभ होते हैं। इन भावों का अध्ययन करते समय नक्षत्र की स्थिति देखना भी बहुत जरूरी है। आठवें भाव से बारहवां भाव यानी सप्तम भाव और तीसरे से बारहवां यानी द्वितीय भाव को मारक भाव और इन भावों के स्वामी ग्रहों को मारकेश कहा जाता है। शुभ ग्रह केंद्र भाव के साथ ही तीसरे, छठे या ग्याहरवें भाव का स्वामी होकर अशुभ फलदायी हो जाता है। यदि ऐसी स्थिति अशुभ ग्रह की होती है तो वे सामान्य फल देते हैं। यदि कोई शुभ और बलवान ग्रह 1, 2, 4, 5, 7, 9 या 10वें भाव में होते हैं तो व्यक्ति भाग्यशाली होता है। 

ग्रहो का नैसर्गिक स्वभाव :-
हर एक ग्रह का अपना स्वभाव और स्थिति होती है जिसे ग्रहो का स्वभाव या गुण-दोष कहते है।

ज्योतिष में नैसर्गिक नाम का उपयोग किया जाता है कई जातक नैसर्गिक का मतलब नही जानते होंगे।

ज्योतिषशास्त्र में ग्रह राशियों नक्षत्र आदि को प्राकृतिक रूप से जो स्थिति, रूप रंग, स्वभाव,कार्य आदि प्रदान किया गया है उसे नैसर्गिक कहते है।दूसरी तरह इस तरह भी कह सकते है जो स्थिति प्रकृति द्वारा निहित कर दी गई हो उसे ज्योतिषशास्त्र में नैसर्गिक कहेंगे। 

नवग्रहो में सूर्य क्रूर स्वभाव का ग्रह है।
यह अपने ऊपर किसी का भी शासन नही पसंद करता है।

चंद्र एक सौम्य ग्रह है यह न नैसर्गिक रूप से शुभ है न पाप, न क्रूर।कुंडली में अपनी और अन्य ग्रहो के योग संयोग की स्थिति के अनुसार शुभ और अशुभ रहता है।

मंगल यह ग्रहो का सेनापति है यह अत्यंत क्रूर स्वभाव का है।इसके ऊपर शुभ ग्रहो गुरु शुक्र शुभ बुध, जैसे ग्रहो का प्रभाव होने से इसकी क्रूरता कम हो जाती है और पाप ग्रहो शनि राहु के प्रभाव से इसकी क्रूरता में वृद्धि होती है।

बुध इसे ग्रहो में युवराज का पद प्राप्त है।यह नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह है कुंडली में अकेला होने पर, बली होने पर विशेष शुभ रहता है।बाकि जैसे ग्रहो के साथ होता है वेसे गुण दोष उन ग्रहो के इसके अंदर समाहित हो जाते है।

गुरु(बृहस्पति) यह ज्योतिष में नैसर्गिक रूप से सबसे ज्यादा शुभ ग्रह है।यह सदैव कल्याण करने वाला होता है।कुंडली में स्थिति किसी तरह अशुभ हो जाने पर परेशानी भी देता है।

शुक्र यह भी एक शुभ ग्रह है।यह सांसारिक भोग विलास का प्रमुख कारक है।

शनि यह पाप ग्रहो की श्रेणी में आता है।यह जातक को उसके शुभ-अशुभ कर्म के अनुसार शुभ-अशुभ फल देता है।किसी भी चीज का अंत का नाम शनि है।

राहु-केतु यह दोनों पाप ग्रह है।

राहु स्वभाव से धूर्त है और चालक प्रवृत्ति वाला है।

केतु में राहु की तरह इस तरह की धूर्तता नही है।यह जिस राशि या जिस ग्रह के साथ होता है उस राशि या ग्रह के स्वभाव के अनुसार फल करता है।

साधारणत चन्‍द्र एवं बुध को सदैव ही शुभ नहीं गिना जाता। पूर्ण चन्‍द्र अर्थात पूर्णिमा के पास का चन्‍द्र शुभ एवं अमावस्‍या के पास का चन्‍द्र शुभ नहीं गिना जाता। इसी प्रकार बुध अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ होता है और यदि पापी ग्रह के साथ हो तो पापी हो जाता है।

यह ध्‍यान रखने वाली बात है कि सभी पापी ग्रह सदैव ही बुरा फल नहीं देते। न ही सभी शुभ ग्रह सदैव ही शुभ फल देते हैं। अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों जैसे ग्रह का स्‍वामित्‍व, ग्रह की राशि स्थिति, दृष्टियों इत्‍यादि पर भी निर्भर करता है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे।

जैसा कि उपर कहा गया एक ग्रह का अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों पर निर्भर करता है और उनमें से एक है ग्रह की राशि में स्थिति। कोई भी ग्रह सामान्‍यत अपनी उच्‍च राशि, मित्र राशि, एवं खुद की राशि में अच्‍छा फल देते हैं। इसके विपरीत ग्रह अपनी नीच राशि और शत्रु राशि में बुरा फल देते हैं।

ग्रहों की उच्‍चादि राशि स्थिति इस प्रकार है
ग्रह उच्च राशि नीच राशि स्‍वग्रह
राशि 1 सूर्य,मेष तुला सिंह 2चन्द्रमा, वृषभ वृश्चिक कर्क 3 मंगल, मकर कर्क मेष, वृश्चिक 5गुरू, कर्क मकर धनु, मीन 6 शुक्र, मीन कन्या वृषभ, तुला 7शनि, तुला मेष मकर, कुम्भ 8 राहु, धनु मिथुन —- 9 केतु मिथुनधनु —-

उपर की सारिणी में कुछ ध्‍यान देने वाले बिन्‍दु इस प्रकार हैं –

1. ग्रह की उच्‍च राशि और नीच राशि एक दूसरे से सप्‍तम होती हैं। उदाहरणार्थ सूर्य मेष में उच्‍च का होता है जो कि राशि चक्र की पहली राशि है और तुला में नीच होता है जो कि राशि चक्र की सातवीं राशि है।

2. सूर्य और चन्‍द्र सिर्फ एक राशि के स्‍वामी हैं। राहु एवं केतु किसी भी राशि के स्‍वामी नहीं हैं। अन्‍य ग्रह दो-दो राशियों के स्‍वामी हैं।

3. राहु एवं केतु की अपनी कोई राशि नहीं होती। राहु-केतु की उच्‍च एवं नीच राशियां भी सभी ज्‍योतिषी प्रयोग नहीं करते हैं।

4. मित्र एवं शत्रु ग्रह-
सूर्य चन्द्र, मंगल, गुरू शनि, शुक्र बुधचन्द्रमा सूर्य, बुध कोई नहीं शेष ग्रहमंगल सूर्य, चन्द्र, गुरू बुध शेष ग्रहबुध सूर्य, शुक्र चंद्र शुक्र, शनिगुरू सुर्य, चंन्‍द्र, मंगल शुक्र, बुध शनिशुक्र शनि, बुध शेष ग्रह गुरू, मंगलशनि बुध, शुक्र शेष ग्रह गुरुराहु, केतु शुक्र, शनि सूर्य, चन्‍द्र, मंगल गुरु, बुध

मित्र-शत्रु का तात्पर्य यह है कि जो ग्रह अपनी मित्र ग्रहों की राशि में हो एवं मित्र ग्रहों के साथ हो, वह ग्रह अपना शुभ फल देगा। इसके विपरीत कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या शत्रु ग्रह के साथ हो तो उसके शुभ फल में कमी आ जाएगी।

शुभ और पाप ग्रहों का फलादेश में बहुत महत्‍व है। यह ध्‍यान रखने वाली बात है कि सभी पापी ग्रह सदैव ही बुरा फल नहीं देते। न ही सभी शुभ ग्रह सदैव ही शुभ फल देते हैं। अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों जैसे ग्रह का स्‍वामित्‍व, ग्रह की राशि स्थिति, दृष्टियों, और दशा इत्‍यादि पर भी निर्भर करता है |


पाप ग्रह कब देते हैं शुभ फल | When do malefic planets give auspicious results
ज्योतिष शास्त्र में मंगल, शनि, राहु केतु को पाप ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है और सूर्य को क्रूर ग्रह कहा जाता है. परंतु यहां यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि यह ग्रह शुभ फलों को प्रदान नहीं करते. अपितु हम इस तथ्य को बताने का प्रयास करना चाहेते हैं कि कुण्डली में कौन से भाव में बैठे यह पाप ग्रह कब शुभ फल प्रदान करने वाले बन जाते हैं. पाप ग्रह 3 6, 8 और 12वें भाव में बैठे होने पर शुभ फल प्रदान करने वाले माने जाते हैं.

दशा फल के लिए तृतीय, षष्ठम, अष्टम और द्वादश भाव अशुभ माने जाते हैं अत: इन स्थानों में बैठे अशुभ ग्रह शुभ फलों के देने वाले हो जाते हैं.

केन्द्र स्थान में | Malefic in the Kendra

केन्द्र भाव को सुरक्षा स्थान कहा जाता है यह विष्णु स्थान है, इसलिए इनमें स्थित ग्रह प्राय: अशुभ व अनिष्ट फल नहीं देते और अशुभ तथा पाप ग्रह भी अनिष्ट नहीं कर पाते और वह शुभता देने वाले हो जाते हैं.

पाप ग्रह शुभ ग्रहों से दृष्ट | Malefic planets aspected by auspicious planets

नैसर्गिक पाप ग्रह सूर्य, शनि, मंगल औत राहु-केतु यदि पाप भावों में स्थित हों तो अपनी दशा में प्रेम एवं सहयोग प्रदान करने वाले हो जाते हैं. रोग-ऋण का नाश तथा बाधा और कष्ट को समाप्त करके मान सम्मान में वृद्धि करने वाले बनते हैं.

इसी प्रकार पाप ग्रह दुष्त भाव के स्वामी कहीं भी स्थित होकर यदि शुभ ग्रहों से या शुभ भावों के स्वामीयों से युक्त या दृष्ट हों तो वह दुष्ट ग्रह भी अपनी दशा में रोग, दोष, पीडा़, भय से मुक्ति दिलाकर वैभव बढाने वाले होते हैं.

दिग्बली पाप ग्रह | Digbali (Directional Strength) Malefic Planet

दिग्बली पाप ग्रह की दशा भी प्राय: स्वास्थ्य, सम्मान, धन सुख व समृद्धि दिया करती है. क्रूर या पाप ग्रह मंगल, शनि, सूर्य दिग्बली होने पर सदा शुभ एवं अच्छे फल देते हें.

पाप ग्रह का दु:स्थान से संबंध | Relationship of Inauspicious Planet with the Inauspicious House

पाप ग्रह का दु:स्थान से संबंध होने या उसका स्वामीत्व होने पर दुख, दरिद्र व शत्रु का नाश करता है. दु:स्थान में स्थित पाप ग्रह यदि शुभ व योग कारक ग्रहों से युक्त या दृष्ट हों तो वह अपनी दशा अन्तर्दशा में रोग, शोक से मुक्ति दिलाकर स्वास्थ्य, सम्मान एवं सुख समृद्धि को प्रदान करते हैं. पाप ग्रह प्राय: दु:स्थान में स्थित होकर अनिष्ट व अशुभ का नाश करते हैं.

केन्द्र और त्रिकोण से संबंध | Relation between Kendra and Trikon

शुभ ग्रह केन्द्र व त्रिकोण में सुभ फल देते हैं किंतु पाप ग्रह जिसमें कमजोर चंद्रमा, पापयुक्त बुध, सूर्य, शनि और मंगल केन्द्र के स्वामी होने पर अपना पाप फल नहीं दे पाते. यदि कोई पाप ग्रह केन्द्रेश एवं त्रिकोणाधीश भी हो तो उस स्थित में वह शुभ बन जाता है और ऎसा ग्रह अपनी दश अन्तर्दशा में स्वास्थ्य, सुख सम्मान की वृद्धि करता है.


What are functional malefic and Functional benefic planets?

Each ascendant in Vedic astrology has certain planets that although are benefic in nature, become malefic for that particular ascendant. This is why Jupiter and Moon conjunction may not always be good. Also, Rahu and Ketu are always acting as functional malefic for all ascendants.

In Cancer ascendant, Jupiter becomes a functional malefic planets along with Saturn, Rahu and Ketu. When Moon comes in conjunction with Jupiter in 6th, 8th or 12th house, it will have adverse results than good results since Jupiter rules the 6th house of disease for the native. I have seen cases where Jupiter and Moon conjunction was in the 12th house for Cancer ascendant causing mental illness while sitting in the Nakshatra of Rahu. Why? because Moon represents the mind while Jupiter is the lord of disease and in conjunction with the moon in Nakshatra of Rahu that itself represents illusion. These placement represents disease of the mind.

Natural Malefic are Rahu, Ketu, Saturn and Mars. Although some consider Sun to be a malefic but it not. Sun is cruel planet not a malefic one.

Natural Malefics are considered good at Dusthana which are 6,8 and 12 house. The philosophy behind this that bad things at bad places are good.

But sometimes these natural malefic will become functional benefics due to their Rashi ownership falling is auspicious bhava then their placement in dusthana is bad. For example greatest functional benefic for Venus Ascendant (Taurus and Libra) people is Saturn, and if it is posted in dusthana then it will hamper the destiny of native seriously.

Therefore all depends on the Ascendant of native, to ascertain which planets are bad and good.

Functional malefic are any planet whose moolatrikona sign is in 6th, 8th or 12th house.

Functional benefic planets are those who rule the trikona house for the ascendant and do not have their moolatrikona sign in 6th, 8th or 12th house; some kendra lords if they are friendly to the ascendant also become functional benefic.

Rest of the planets that are not in functional benefic or malefic table are considered functional neutral, they give results according to their dignity as in house and sign placement.

Also for Taurus and Scorpio ascendant Venus and Mars are not really considered functional malefic even though their moolatrikon sign is placed in the 6th house. Ascendant lord is always the most benefic planet; for these two ascendants their lords become functional natural, giving results based on their sign placement and house placement.
--------

Lordship of 6th, 8th and 12th houses make planets functional malefic. 

Funtional benefic - Planet is considered to be a functional benefic when it lords the trine but is simultaneously not lording 6th, 8th or 12th house. Only in case of Gemini and Aquarius the lordship of 12th house is overlooked.

Functional Malefics for the Lagna: -
Aries- Mercury, Mars and Jupiter (Mild)
Taurus- Mars, Venus and Jupiter
Gemini- Jupiter (KP), Saturn (Mild) and Venus (Mild)
Cancer- Mercury, Saturn and Jupiter
Leo- Moon, Saturn (Mild) and Jupiter (Mild)
Virgo- Jupiter (KP), Sun, Mars and Saturn
Libra- Mercury, Jupiter (Mild) and Venus (Mild)
Scorpio- Venus, Mars and Mercury (Mild)
Sagittarius- Moon, Venus (Mild) and Mars (Mild)
Capricorn- Sun, Jupiter and Mercury (Mild)
Aquarius- Moon, Mercury and Saturn (Mild)
Pisces- Saturn, Sun, Mercury(KP) and Venus

Functional Benefics for the Lagna - 
Aries- Mars, Sun and Jupiter
Taurus- Mercury and Saturn
Gemini- Mercury and Venus
Cancer- Moon and Mars
Leo- Sun and Mars
Virgo- Mercury and Venus
Libra- Saturn
Scorpio- Jupiter, Moon and Sun
Sagittarius- Jupiter, Mars and Sun
Capricorn- Saturn and Venus
Aquarius- Saturn and Venus
Pisces- Jupiter, Moon and Mars


Functional Malefic - Planet is considered to be a functional malefic when it lords any of the Dusthanas - 6th, 8th or 12th house. Also, both of planets sign in angular houses creates Kendrapati Dosha (KP) for the planet and the planet performs as functional malefic for the native. KP happens when Lagna falls in any of the dual Signs, but the planet also lording Lagna is exempted from the dosha.

For example - For Gemini, both Mercury and Jupiter lord two angular houses each; since Mercury also lords Lagna, KP is only considered for Jupiter, who becomes functional malefic for the chart.

One important aspect to consider here is when the Mool-Trikona sign of the planet falls in Dusthana, the severity of its malefic nature increases; when its other sign falls in Dusthana, its mildly malefic.

For Example - Venus is functionally more malefic for Pisces Lagna due to libra sign falling in 8th house, as compared to Libra lagna where though taurus falls in 8th house, but the mool-trikona for Venus falls in lagna. Some even consider that planet is functional benefic as far it lords Lagna, but my books suggest that lordship of any Dusthana has prominent impact on the native.

Scriptures suggest to NOT tag luminaries as functional malefic but with my experience Moon is highly functional malefic for Sagittarius Lagna, hence I include luminaries as well.


Functional benefic or Malefic is decided based on Lagna, even a planet that is natural malefic can be become functional benefic according to lordship. For example Saturn is natural malefic but for Taurus ascendant Saturn being both Kendra and Trine lord it becomes functional benefic.

General rule of thumb for accessing functiona benefic,

The lord of Lagna should always be considered benefic even it has dual lordship. For example for Aries Lagna Mars is considered benefic even it has 8th lordship.

If a planet owns both Kendra and Trine then it becomes best functional benefic and it is called Yogakaraka. For example for Libra ascendant Saturn being 4th and 5th lord becomes Yogakaraka. For Cancer ascendant Mars being 5th and 10th lord becomes Yogakaraka.

The lord 5th should also be considered benefic even it has dual lordship. For example for Aquarius Lagna Mercury becomes lord of 5th and 8th house should be considered benefic.

The lord of 9th house should also be considered benefic even it has dual lordship. Because of 9th house is called bhagya sthana.

कुण्‍डली में कारक ग्रह और भाग्‍योदय ग्रह (Your lucky planet) | कारक, अकारक और मारक ग्रह:-

कुण्‍डली में कारक ग्रह और भाग्‍योदय ग्रह (Your lucky planet) | कारक, अकारक और मारक ग्रह:-

Karak graha, Akarak, Marak grah & Lucky planet

कारक ग्रह और भाग्‍योदय ग्रह

कारक ग्रह: 
‘कारक’ ग्रह के निर्धारण की विभिन्न विधियां इस प्रकार हैं: 

1. महर्षि पाराशर तथा अन्य आचार्यों ने द्वादश भावों के कारक ग्रह इस प्रकार बताए हैं। 
प्रथम भाव- सूर्य, 
द्वितीय भाव-बृहस्पति, 
तृतीय भाव- मंगल, 
चतुर्थ भाव - चंद्रमा व बुध, 
पंचम भाव- बृहस्पति, 
षष्ठ भाव- मंगल व शनि, 
सप्तम भाव - शुक्र, 
अष्टम भाव- शनि, 
नवम भाव - बृहस्पति व सूर्य, 
दशम भाव- सूर्य, बुध, बृहस्पति व शनि, एकादश भाव- बृहस्पति और 
द्वादश भाव- शनि। 

2. स्थिर कारक: 
सूर्य- पिता का, 
चंद्रमा-माता का, 
बृहस्पति-गुरु व ज्ञान का, 
शुक्र पत्नी व सुख का, 
बुध-विद्या का, 
मंगल भाई का, 
शनि नौकर का और राहु म्लेच्छ का स्थिर कारक है। 

3. जैमिनी चर कारक: यह ग्रहों के अंशों पर निर्भर करता है। 
सर्वाधिक अंश वाले ग्रह को ‘आत्म कारक’, उससे कम अंश वाले ग्रह को ‘अमात्य कारक’, उससे कम अंश वाले को ‘भ्रातृ कारक’, 
उससे कम अंश वाले को ‘पुत्र कारक’ और सबसे कम अंश वाले ग्रह को ‘दारा कारक’ या पत्नी कारक’ की संज्ञा दी जाती है। 

‘आत्म’ और ‘अमात्य’ कारक जातक का भला करते हैं। राहु/केतु कोई कारक नहीं होते। 

यदि लग्नेश ही आत्म कारक हो तो उसकी दशा बहुत शुभकारी होती है। 
‘आत्म’ कारक ग्रह यदि अष्टमेश भी हो तो उसके शुभ फल में कमी आती है। 

4. योगकारक: प्रत्येक ग्रह केंद्र (1, 4, 7, 10 भाव) का स्वामी होकर निष्फल होता है, परंतु त्रिकोण (1,5,9 भाव) का स्वामी सदैव शुभ फल देता है। एक ही ग्रह केंद्र और त्रिकोण का एक साथ स्वामी होने पर ‘योगकारक’ (अति शुभ फलदायी) बन जाता है। जैसे सिंह राशि के लिए मंगल, और तुला लग्न के लिए शनि ग्रह। लग्नेश केंद्र और त्रिकोण दोनों का स्वामी होने से सदैव योगकारक की तरह शुभफलदायी होता है। लग्नेश को 6, 8, 12 भाव के स्वामित्व का दोष नहीं लगता। 

5. परस्पर कारक: जब ग्रह अपनी उच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि के होकर केंद्र में स्थित होते हैं तो ‘परस्पर कारक’ (सहायक) होते हैं। दशम भाव में स्थित ग्रह अन्य कारकों से अधिक फलदायी होता है। कुछ आचार्य पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह को भी ‘कारक’ की संज्ञा देते हैं। 

जब कोई ज्‍योतिषी (Astrologer) आपसे कहता है कि आपका भाग्‍योदय होने वाला है, या कहे कि आपका अच्‍छा समय चल रहा है या कहे कि फलां दौर आपका सबसे अनुकूल समय था, तो उस समय ज्‍योतिषी आपकी कुण्‍डली (Kundali) के कारक ग्रह की दशा को देख रहा होता है। पारम्‍परिक भारतीय ज्‍योतिष और कृष्‍णामूर्ति पद्धति (KP) में कारक ग्रहों के अर्थ अलग अलग होते हैं। पहले हम यह समझ लें कि कारक ग्रह और भाग्‍यशाली ग्रह (Your lucky planet) कौनसे हैं और हमारी कुण्‍डली का किस प्रकार प्रभावित करते हैं।

कृष्‍णामूर्ति के अनुसार जीवन की किसी भी घटना के घटित होने में कुछ ग्रहों (Planet) की विशिष्‍ट भूमिका होती है। किस ग्रह की कितनी भूमिका है, उसका समय क्‍या है, यह जानने के लिए हम उस घटना से संबंधित भाव और ग्रहों का अध्‍ययन करते हैं। कृष्‍णामूर्ति पद्धति के अनुसार विश्‍लेषण करने पर हम पाते हैं विवाह (Marriage) कराने वाले कारक ग्रह अलग हैं और नौकरी दिलाने वाले अलग, इसी प्रकार जीवन की कमोबेश हर घटना में कुछ कारक ग्रहों की भूमिका होती है। मसलन दूसरे, छठे और दसवें भाव के कारक (Significator) ग्रह आपको नौकरी (Job) दिलाते हैं और दूसरे, पांचवें, सातवें और ग्‍यारहवें भाव के कारक ग्रह आपके विवाह के लिए देखे जाएंगे।

पाराशरीय पद्धति (Parashar method) में कारक ग्रहों की भूमिका कुछ अलग है। पाराशर कहते हैं किसी भी कुण्‍डली में एक केन्‍द्र (First, fourth, seventh or tenth house) और एक त्रिकोण (one, five or nine) का अधिपति उस कुण्‍डली का कारक ग्रह है। यह कारक ग्रह इतना बलवान होता है कि कई बार लग्‍न अधिपति (Lagna lord) और राशि अधिपति (Moon sign lord) की तुलना में भी अधिक प्रबलता से परिणाम देता है।

जब किसी जातक की कुण्‍डली में कारक ग्रह की दशा आती है तो चाहे कम या अधिक जातक को लाभ होता है। जीवन के जिस काल में कारक ग्रह की दशा आएगी, वह काल जातक के लिए सर्वश्रेष्‍ठ समय होगा। जब बात उपचारों की आती है तो ज्‍योतिषी सबसे पहले आपकी कुण्‍डली के कारक ग्रह का ही उपचार करना चाहेगा। और अगर कारक ग्रह की दशा चल रही हो तो उस दौर में कारक ग्रह को बलवान बनाना जातक के लिए सर्वाधिक अनुकूल और परिणाम देने वाला सिद्ध होता है।

कारक ग्रह की महादशा (Mahadasha) हो, अंतरदशा हो (Anthardasha), प्रत्‍यंत्‍र दशा (Pratyantar dasha) हो या चाहे कारक ग्रह का अनुकूल गोचर (Transit) ही क्‍यों न चल रहा हो, वह साल, महीना, दिन अथवा घंटा भी आपके लिए अनुकूल (Favorable) होगा। आइए देखते हैं कि किस लग्‍न (Lagna) में कौनसा ग्रह कारक होता है और उसे किस प्रकार बल दिया जा सकता है।

मेष लग्‍न (Mesha lagna)
मेष लग्‍न की कुण्‍डली में कोई एक ऐसा ग्रह नहीं होता जो एक केन्‍द्र और एक त्रिकोण का अधिपति हो। ऐसे में पंचम भाव जो कि कुण्‍डली का त्रिकोण है, का अधिपति सूर्य है। ऐसे में मेष लग्‍न में सूर्य कुण्‍डली का कारक ग्रह होगा। किसी मेष लग्‍न के जातक को सूर्य की दशा, अंतरदशा में माणक पहनने की सलाह दी जा सकती है। बशर्ते सूर्य कोई अन्‍य योगकारक युति न बना रहा हो। ऐसे में हम कहेंगे कि मेष लग्‍न की कुण्‍डली में लग्‍न का अधिपति मंगल (Mars) और पंचम भाव का अधिपति सूर्य (Sun) कारक ग्रह हैं।

वृषभ लग्‍न (Vrishubha lagna)
वृषभ लग्‍न में एक केन्‍द्र और एक त्रिकोण का अधिपति शनि होता है। यह नौंवे और दसवें घर का अधिपति होता है। वृषभ लग्‍न वाले जातकों के लिए शनि की दशा, अंतरदशा अथवा प्रत्‍यंतर दशा कमोबेश अनुकूल होती है। अगर दिन देखा जाए तो शनि का नक्षत्र और दिन का कोई समय देखा जाए तो शनि की होरा वृषभ लग्‍न के जातकों के लिए अनुकूल साबित होती है। ऐसे में हम कहेंगे कि वृषभ लग्‍न में शुक्र (Venus) लग्‍नाधिपति होने के कारण और शनि (Saturn) कारक ग्रह हैं।

मिथुन लग्‍न (Mithuna lagna)
मिथुन द्विस्‍वभाव लग्‍न है। इसके साथ ही लग्‍न और त्रिकोण का अधिपति बुध ही है। प्रथम, पंचम और नवम भाव को त्रिकोण माना जाता है। ऐसे में बुध लग्‍न और चतुर्थ भाव का अधिपति होने के कारण कुण्‍डली का प्रमुख कारक ग्रह साबित होता है। इसके साथ ही पंचम भाव का अधिपति शुक्र भी मिथुन लग्‍न में अनुकूल प्रभाव देने वाला होता है। शुक्र के दूषित नहीं होने पर हम कह सकते हैं कि मिथुन लग्‍न में बुध (Mercury) और शुक्र (Venus) कारक ग्रह हैं।

कर्क लग्‍न (Karka lagna)
इस लग्‍न में पंचम भाव यानि त्रिकोण तथा दशम भाव यानि केन्‍द्र का अधिपति मंगल ही है। ऐसे में कर्क लग्‍न में सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह मंगल होता है। यही इस लग्‍न का कारक ग्रह है। अगर मंगल अनुकूल स्थिति में नहीं बैठा है और अनुकूल ग्रहों से युति नहीं बना रहा है तो जातक को मूंगे की अंगूठी अथवा लॉकेट पहनाया जा सकता है। कर्क राशि का अधिपति चंद्रमा है। ऐसे में कर्क लग्‍न के दो कारक ग्रह हमें मिलते हैं मंगल (Mars) और चंद्रमा (Moon)।

सिंह लग्‍न (Simha lagna)
सिंह लग्‍न में भी मंगल ही कारक ग्रह की भूमिका में दिखाई देता है। चौथे भाव में स्थित वृश्चिक राशि और नवम भाव में स्थित मेष राशि का आधिपत्‍य मंगल के पास ही है। ऐसे में वह एक केन्‍द्र और एक त्रिकोण का अधिपति बनकर उभरता है। चूंकि सिंह राशि का स्‍वामी सूर्य है। ऐस में सिंह लग्‍न के जातकों के लिए सूर्य (Sun) और मंगल (Mars) कारक ग्रह हैं। ग्रहों की स्थिति के अनुसार उन्‍हें मूंगा अथवा माणक पहनाया जा सकता है। साथ ही सूर्य और मंगल की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र और होरा भी जातक के लिए अपेक्षाकृत अनुकूल साबित होंगे।

कन्‍या लग्‍न (Kanya lagna)
कन्‍या राशि का अधिपति बुध है। यहां लग्‍न यानी त्रिकोण और केन्‍द्र यानी दशम भाव का अधिपति बुध ही है। ऐसे में इस लग्‍न वाले जातकों के लिए बुध ही कारक ग्रह होगा। इसके साथ ही नवम भाव यानी त्रिकोण का अधिपति शुक्र है। भले ही कन्‍या लग्‍न में दूसरे भाव का अधिपति होने के कारण शुक्र की उतनी शुभता नहीं रहती है, लेकिन बुध का मित्र होने के कारण शुक्र को भी भाग्‍यकारक ग्रह माना जाता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि कन्‍या लग्‍न में बुध (Marcury) और शुक्र (Venus) कारक ग्रह होंगे और जातक को आवश्‍यकता के अनुरूप पन्‍ना अथवा डायमंड पहनाया जा सकता है।

तुला लग्‍न (Tula lagna)
हालांकि इस लग्‍न का अधिपति शुक्र है, लेकिन शुक्र का मित्र शनि एक केन्‍द्र यानी चौथे भाव और एक त्रिकोण यानी पांचवे भाव का अधिपति है। दूसरे कोण से देखें तो तुला राशि में शनि उच्‍च का होता है। ऐसे में अगर किसी जातक का तुला लग्‍न है और शनि अनुकूल स्थिति में बैठा हो तो जातक जीवन में बहुत प्रगति करता है। शनि की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र और होरा में अनुकूल परिणाम प्राप्‍त करता है। भले ही शुक्र लग्‍न के साथ अष्‍टम भाव का अधिपति हो, लेकिन तुला लग्‍न में शनि (Saturn) और शुक्र (Venus) दोनों ही कारक ग्रह की भूमिका में होते हैं।

वृश्चिक लग्‍न (Vrishuchik lagna)
यह कुछ कठिन लग्‍न है। वृश्चिक लग्‍न का स्‍वामी मंगल है, लेकिन मंगल की दूसरी राशि मेष छठे भाव का प्रतिनिधित्‍व करती है। दूसरी ओर एक त्रिकोण का स्‍वामी गुरु है, लेकिन गुरु की ही एक राशि धनु दूसरे भाव का प्रतिनिधित्‍व कर रही है। दूसरे त्रिकोण नवम भाव का स्‍वामित्‍व चंद्रमा के पास है। ऐसे में मात्र चंद्रमा ही पूर्णतया शुद्ध होकर वृश्चिक लग्‍न का कारक ग्रह बनता है, लेकिन चंद्रमा का उपचार भी गले में मोती का लॉकेट बनाकर पहनाने से नहीं किया जाता। ऐसे में वृश्चिक लग्‍न के जातकों को आंशिक रूप से गुरु, आंशिक रूप से मंगल (Mars) और सावधानी से चंद्रमा (Moon) का उपचार बताया जा सकता है।

धनु लग्‍न (Dhanu lagna)
धनु राशि का स्‍वामी गुरु है। चूंकि लग्‍न त्रिकोण का भाग है और एक केन्‍द्र यानी चतुर्थ भाव में पड़ रही राशि मीन का आधिपत्‍य भी गुरु के पास है। दूसरी ओर नवम भाव यानी त्रिकोण का स्‍वामी सूर्य भी है। ऐसे में धनु लग्‍न में हमें दो कारक ग्रह मिलते हैं। गुरु और सूर्य। धनु लग्‍न के जातक को गुरु के रत्‍न पुखराज अथवा सुनहला अथवा सूर्य के रत्‍न माणक का उपचार बताया जा सकता है। सामान्‍य तौर पर धनु लग्‍न के जातकों को गुरु (Jupiter) और सूर्य (Sun) की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र और होरा में अनुकूल परिणाम प्राप्‍त होते हैं।

मकर लग्‍न (Makar lagna)
मकर राशि का अधिपति शनि है। शनि का मित्र शुक्र ही इस लग्‍न का कारक ग्रह साबित होता है। शुक्र की पहली राशि वृषभ मकर लग्‍न में पंचम भाव और दूसरी राशि तुला दशम भाव का प्रतिनिधित्‍व करती है। ऐसे में एक केन्‍द्र और एक त्रिकोण का अधिपति होने के कारण शुक्र ही इस लग्‍न का कारक है, दूसरी ओर शनि तो प्रभावी भूमिका निभाता ही है। ऐसे में मकर लग्‍न के जातकों को अनुकूलता प्राप्‍त करने के लिए शुक्र (Venus) रत्‍न हीरा अथवा जरिकॉन का उपयोग करना चाहिए। कुछ मामलों में शनि (Saturn) की अनुकूलता के लिए सावधानी से नीलम धारण करना चाहिए।

कुंभ लग्‍न (Kumbh lagna)
कुंभ राशि का अधिपति शनि है, लेकिन शनि की ही दूसरी राशि मकर यहां बारहवें भाव का प्रतिनिधित्‍व्‍ कर रही है। ऐसे में कुंभ लग्‍न में आंख मूंदकर शनि का उपचार तो किया ही नहीं जा सकता। लेकिन शुक्र यहां फिर एक केन्‍द्र और ए‍क‍ त्रिकोण का अधिपति बनकर उभरता है। इस बार शुक्र की पहली राशि वृषभ कुंभ लग्‍न के चौथे भाव और दूसरी राशि तुला नवम भाव यानी त्रिकोण का आधिपत्‍य लिए हुए है। ऐसे में शुक्र का रत्‍न हीरा अथवा जरिकॉन इन जातकों को पहनाया जा सकता है। शुक्र (Venus) की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र अथवा होरा इन जातकों के लिए अनुकूल साबित होती है।

मीन लग्‍न (Meen lagna)
मीन राशि का अधिपति गुरु है। लग्‍न खुद केन्‍द्र और त्रिकोण दोनो है। गुरु की ही राशि धनु केन्‍द्र यानि दसवें भाव का प्रतिनिधित्‍व कर रही है। ऐसे में मीन लग्‍न का कारक ग्रह गुरु (Jupiter) ही होगा। इसके साथ पंचम भाव का चंद्रमा अगर निर्दोष हो, यानी किसी पाप ग्रह अथवा छह आठ बारह भाव के अधिपति के साथ न हो तो चंद्रमा भी कारक भी भूमिका निभाता है। ऐसे में मीन लग्‍न के जातक को गुरु के रत्‍न पुखराज और सुनहला तथा चंद्रमा (Moon) के रत्‍न मोती का उपचार बताया जा सकता है। इन जातकों के लिए गुरु की दशा, अंतरदशा, नक्षत्र और होरा अनुकूल सिद्ध होते हैं।

आमतौर पर लोगों को अपनी राशि तो फिर भी पता होती है, लेकिन लग्‍न के बारे में जानकारी नहीं होती। ऐसे में किसी ऑनलाइन टूल से आपको अपनी अपनी कुण्‍डली बना लेनी चाहिए, अगर ऑफलाइन बनी हुई है तो उसमें देखिए कि बीचों बीच जो भाव होता है, उसमें एक अंक लिखा हुआ होता है। आमतौर पर लग्‍न को “ल.” लिखकर इंगित किया जाता है। इस लग्‍न में जो अंक लिखा हुआ मिले, वही आपकी राशि है। मसलन एक लिखा हो तो मेष, दो वृषभ, तीन मिथुन, चार कर्क, पांच सिंह, छह कन्‍या, सात तुला, आठ वृश्चिक, नौ धनु, दस मकर, ग्‍यारह कुंभ और बारह लिखा हो तो अपना लग्‍न मीन जानिए। आपकी कुण्‍डली में जिस राशि में चंद्रमा हो, वह आपकी चंद्र राशि कहलाएगी।

कुंडली में कारक, अकारक और मारक ग्रह:-



मारक ग्रह

निम्न ग्रह पीड़ित होने पर अधिक हानिकारक (मारक) बन जाते हैं:- 
1. अष्टमेश 
2. अष्टम भाव पर दृष्टिपात करने वाले ग्रह। 
3. अष्टम भाव स्थित ग्रह 
4. द्वितीयेश और सप्तमेश 
5. द्वितीय और सप्तम भाव स्थित ग्रह 
6. द्वादशेश 
7. 22वें द्रेष्काॅण का स्वामी 
8. गुलिका स्थित भाव का स्वामी 
9. ‘गुलिका’ से युक्त ग्रह। 
10. षष्ठेश, व षष्ठ भाव में स्थित पापी ग्रह आदि। 

‘कारक’ व ‘मारक’ फलादेश 

1. एक बली ‘कारक’ ग्रह अपनी भाव स्थिति, स्वामित्व भाव और दृष्ट भाव को शुभता प्रदान करता है। 
2. केंद्र (1, 4, 7, 10) भाव में स्थित ‘कारक’ की दशा पूर्ण शुभ फल देती है। पनफर (2, 5, 8, 11) भाव में स्थित ‘कारक’ की दशा मध्यम फल’ और अपोक्लिम (3, 6, 9, 12) भाव में स्थित ‘कारक’ की दशा साधारण फल देती है। यह फलादेश ग्रह की दशा-भुक्ति में जातक को प्राप्त होता है। 
3. पापकत्र्तरी योग में तथा पाप दृष्ट ‘कारक’ के शुभ फल में कमी आती है। 
4. वक्री ‘कारक’ शुभ ग्रह अधिक शुभ फलदायी होता है। 
5. किसी भाव का ‘कारक’ यदि उसी भाव में स्थित हो तो उस भाव संबंधी फल में कमी या कठिनाई देता है। यह स्थिति ‘कारको भाव नाशाय’ के नाम से प्रसिद्ध है। 
6. एक ‘कारक’ ग्रह की दशा में अन्य ‘कारक’ की भुक्ति उत्तम फलदायी होती है। 
7. ‘कारक’ ग्रह की दशा में संबंधित ‘मारक’ ग्रह की भुक्ति निम्न फल देती है। 
8. यदि ‘कारक’ और ‘मारक’ ग्रहों में दृष्टि आदि का संबंध न हो तो ‘मारक’ ग्रह की भुक्ति कष्टकारी होती है। 
9. एक ‘मारक’ ग्रह की दशा में अन्य ‘मारक’ ग्रह की भुक्ति अत्यंत अशुभ फल देती है। 
10. जब किसी भाव का ‘कारक’ उस भाव से 1, 5, 9 भाव में गोचर करता है और बलवान (स्वक्षेत्री या उच्च) होता है तो उस भाव का उत्तम फल व्यक्ति को मिलता है। 
11. गोचर में भावेश और भाव ‘कारक’ की युति, दृष्टि आदि संबंध होने पर उस भाव संबंधी शुभ फल प्राप्त होता है। एक साथ ‘कारक’ और ‘मारक’ फलादेश दर्शाती कुंडली

उदाहरण:-
प्रस्तुत है श्री लाल बहादुर शास्त्री की कुंडली विवेचन, पूर्व प्रधानमंत्री जन्म समय राहु दशा बाकी- 10 वर्ष 7 मास 19 दिन। लग्नेश बृहस्पति पंचम भाव और मित्र राशि में स्थित होकर ‘कारक है। उसकी लग्न भाव और नवम भाव स्थित दशमेश बुध व पंचमेश मंगल पर दृष्टि है। नवमेश सूर्य और दशमेश बुध का राशि विनिमय ‘राजयोग’ का निर्माण करते हैं। बुध की दशा में उन्हें राजयोग का फल अन्य भुक्तियों में मिला और बुध-गुरु की दशा-भुक्ति में वे प्रधानमंत्री बने। बुध सप्तमेश (मारक) भी है। बुध की दशा में द्वितीय भाव स्थित द्वि तीयेश (मारक) शनि की भुक्ति ने प्रबल मारकेश का फल दिया। उनकी ताशकंत में अचानक हृदयाघात से मृत्यु हो गई थी।

लग्न अनुसार ग्रहो की शुभता और अशुभता (Shubh grah ashubh grah) Auspicious planets and inauspicious planets in kundali

लग्न अनुसार ग्रहो की शुभता और अशुभता (Shubh grah ashubh grah) Auspicious planets and inauspicious planets in kundali


मेष लग्न:- मेष लग्न के लिए सूर्य, मंगल, गुरु और चंद्र शुभ और शुक्र, बुध व शनि अशुभ होते है। 

वृष लग्न:- वृष लग्न में सूर्य, शुक्र, बुध शुभ, शनि अत्यंत शुभ और चंद्र, गुरु, मंगल अशुभ होते है। 

मिथुन लग्न:- मिथुन लग्न में बुध, शुक्र और शनि शुभ होते है इस लग्न में शनि शुभ नवम भाव त्रिकोण का स्वामी होने के साथ-साथ दुःख स्थान अष्टम भाव का स्वामी भी होता है जिस कारण बहुत थोडा अशुभ भी होगा।लेकिन इस लग्न में शनि की मूलत्रिकोण राशि नवम भाव में है जिस कारण वह अशुभ न होकर शुभ ही माना जायेगा।बृहस्पति दो केन्द्रो का स्वामी होने के कारण केन्द्राधिपति दोष से युक्त है अतः अशुभ है।चंद्र द्वितीय मारक भाव का स्वामी है फिर भी चंद्र मारक नही होगा,अतः सामान्य है।मंगल, गुरु और सूर्य अशुभ है। 

कर्क लग्न:- कर्क लग्न में चंद्र, गुरु शुभ, मंगल अत्यंत शुभ और बुध, शुक्र, शनि अशुभ है।सूर्य सम है। 

सिंह लग्न:- इस लग्न में सूर्य, गुरु शुभ तथा मंगल अत्यंत शुभ होता है।बुध, शुक्र, चंद्र और शनि अशुभ होते है। 

कन्या लग्न:- कन्या लग्न में बुध, शुक्र शुभ, शनि पंचमेश-षष्ठेश होने के कारण माध्यम शुभ व मंगल प्रबल अशुभ, सूर्य चंद्र, गुरु अशुभ होते है। 

तुला लग्न:- तुला लग्न में शुक्र, बुध शुभ, शनि चतुर्थेश-पंचमेश होकर अत्यंत शुभ और सूर्य, गुरु, मंगल अशुभ, चंद्र सौम्य ग्रह होने से दशम भाव केंद्र का स्वामी होने से सम है। 

वृश्चिक लग्न:- वृश्चिक लग्न में सूर्य, चंद्र व गुरु शुभ होते है।शनि तृतीयेश व चतुर्थेश होने के कारण माध्यम है।शुक्र व बुध अशुभ होते है।

धनु लग्न:- इस लग्न में गुरु, सूर्य और मंगल शुभ तथा चंद्र, शुक्र, और शनि अशुभ है।बुध केंद्राधिपत्य दोष से पीड़ित है, किन्तु सूर्य के साथ बुध का सम्बन्ध प्रबल राजयोग कारक होगा। 

मकर लग्न:- इस लग्न में शनि, बुध शुभ, शुक्र पंचमेश-दशमेश केंद्र-त्रिकोण स्वामी होकर अत्यंत शुभ है।चंद्र सम है।गुरु, सूर्य और मंगल अशुभ होते है। 

कुम्भ लग्न:- इस लग्न में शनि, बुध शुभ, शुक्र चतुर्थेश-नवमेश केंद्र-त्रिकोण का स्वामी होकर अत्यंत शुभ होता है।चंद्र, गुरु और मंगल अशुभ है, सूर्य सम है। 

मीन लग्न:- मीन लग्न में गुरु, मंगल, चंद्र शुभ होते है।सूर्य, बुध, शुक्र व शनि अशुभ होते है।


लग्न के अनुसार जो ग्रह शुभ है लेकिन कुंडली में निर्बल, कमजोर,पीड़ित आदि अवस्था में है तो उसे उस ग्रह का रत्न, धातु या उस ग्रह से सम्बंधित अभिमंत्रित जड़ धारण करके बलवान करना चाहिए।

जो ग्रह लग्न अनुसार अशुभ है उन ग्रहो से सम्बंधित वस्तुओ का दान, मन्त्र जप, स्त्रोत्र आदि का जप और पाठ करके उनकी अशुभता में कमी लाई जा सकती है।

ग्रहों को नैसर्गिक ग्रह विचार रूप से शुभ और अशुभ श्रेणी में विभाजित किया गया है। बृहस्पति, शुक्र, पक्षबली चंद्रमा और शुभ प्रभावी बुध शुभ ग्रह माने गये हैं और शनि, मंगल, राहु व केतु अशुभ माने गये हैं। सूर्य ग्रहों का राजा है और उसे क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है। बुध, चंद्रमा, शुक्र और बृहस्पति क्रमशः उत्तरोत्तर शुभकारी हैं, जबकि सूर्य, मंगल, शनि और राहु अधिकाधिक अशुभ फलदायी हैं।

कुंडली के द्वादश भावों में षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव अशुभ (त्रिक) भाव हैं, जिनमें अष्टम भाव सबसे अशुभ है। षष्ठ से षष्ठ - एकादश भाव, तथा अष्टम से अष्टम तृतीय भाव, कुछ कम अशुभ माने गये हैं। अष्टम से द्वादश सप्तम भाव और तृतीय से द्वादश - द्वितीय भाव को मारक भाव और भावेशों को मारकेश कहे हैं। 

केंद्र के स्वामी निष्फल होते हैं परंतु त्रिकोणेश सदैव शुभ होते हैं। 

नैसर्गिक शुभ ग्रह केंद्र के साथ ही 3, 6 या 11 भाव का स्वामी होकर अशुभ फलदायी होते हैं। ऐसी स्थिति में अशुभ ग्रह सामान्य फल देते हैं। 

अधिकांश शुभ बलवान ग्रहों की 1, 2, 4, 5, 7, 9 और 10 भाव में स्थिति जातक को भाग्यशाली बनाते हैं। 2 और 12 भाव में स्थित ग्रह अपनी दूसरी राशि का फल देते हैं। शुभ ग्रह वक्री होकर अधिक शुभ और अशुभ ग्रह अधिक बुरा फल देते हैं राहु व केतु यदि किसी भाव में अकेले हों तो उस भावेश का फल देते हैं। परंतु वह केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित होकर त्रिकोण या केंद्र के स्वामी से युति करें तो योगकारक जैसा शुभ फल देते हैं। 

लग्न कुंडली में उच्च ग्रह शुभ फल देते हैं, और नवांश कुंडली में भी उसी राशि में होने पर ‘वर्गोत्तम’ होकर उत्तम फल देते हैं। 

बली ग्रह शुभ भाव में स्थित होकर अधिक शुभ फल देते हैं। 

पक्षबलहीन चंद्रमा मंगल की राशियों, विशेषकर वृश्चिक राशि में (नीच होकर) अधिक पापी हो जाता है। 

चंद्रमा के पक्षबली होने पर उसकी अशुभता में कमी आती है। 

स्थानबल हीन ग्रह और पक्षबल हीन चंद्रमा अच्छा फल नहीं देते। 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...