पितृ दोष के योग - लाल किताब के ऋण और उपाय | Yogas for Pitra Dosha Lal kitab rina and Remedies
बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं. जिनमें पितृ दोष, मातृ दोष, भ्रातृ दोष, मातुल दोष, प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है. इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है. पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं. उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :-
राहु सूर्य पिता का दोष, राहु चंद्र माता दोष, राहु बृहस्पति दादा का दोष, राहु-शनि सर्प और संतान का दोष होता है।
ग्रह युति से कुंडली दोष:-
1. राहु या केतु की सूर्य से युति या दृष्टि संबंध (पिता के परिवार की ओर से दोष)।
2. राहु या केतु का चन्द्रमा के साथ युति या दृष्टि द्वारा संबंध (माता की ओर से दोष)। चंद्र राहु पुत्र की आयु के लिए हानिकारक।
3. राहु या केतु की बृहस्पति के साथ युति अथवा दृष्टि संबंध (दादा अथवा गुरु की ओर से दोष)।
4. मंगल के साथ राहु या केतु की युति या दृष्टि संबंध (भाई की ओर से दोष)।
5. शनि-राहु चतुर्थी या पंचम भाव में हो तो मातृ दोष होता है। मंगल राहु चतुर्थ स्थान में हो तो मामा का दोष होता है।
6. यदि राहु शुक्र की युति हो तो जातक ब्राहमण का अपमान करने से पीड़ित होता है।
तृतीयेश, यतुर्थेश या दशमेश की उपरोक्त स्थितियां। :-
1) तृतीयेश व अष्टमेश का संबंध होने पर छोटे भाई बहनों,
2) चतुर्थ व अष्टमेश का संबंध होने पर संबंध से माता,
3) एकादश व अष्टमेश का संबंध होने पर संबंध से बड़े भाई,
4) दशमेश के संबंध से पिता के कारण पितृ दोष की उत्पत्ति होती है।
1. लग्नेश की अष्टम स्थान में स्थिति अथवा अष्टमेष की लग्न में स्थिति।
2. पंचमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की पंचम में स्थिति।
3. नवमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की नवम में स्थिति।
4. सूर्य मंगल व शनि पांचवे भाव में स्थित हो या गुरु-राहु बारहवें भाव में स्थित हो।
5. राहु केतु की पंचम, नवम अथवा दशम भाव में स्थिति या इनसे संबंधित होना।
6. वृश्चिक लग्न या वृश्चिक राशि में जन्म भी एक कारण होता है, क्योंकि वह राशि चक्र के अष्टम स्थान से संबंधित है।
जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है. इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है.
सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है.
किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है.
जो ग्रह पितृ दोष बना रहे हैं यदि उन पर छठे, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि या युति हो जाती है तब इस प्रभाव से व्यक्ति को वाहन दुर्घटना, चोट, ज्वर, नेत्र रोग, ऊपरी बाधा, तरक्की में रुकावट, बनते कामों में विघ्न, अपयश की प्राप्ति, धन हानि आदि अनिष्ट फलों के मिलने की संभावना बनती है|
उपाय | Remedies
यदि आपकी कुण्डली में उपरोक्त पितृ दोष में से कोई एक बन रहा है तब आपको जिस रविवार को संक्रांति पड़ रही है या अमावस्या पड़ रही है उस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए. उन्हें यथा संभव दक्षिणा भी देनी चाहिए. पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष के प्रभाव में कमी आती है.
जन्म कुंडली में चंद्र-राहु, चंद्र-केतु, चंद्र-बुध, चंद्र-शनि, आदि की युति से मातृ दोष होता है. यह दोष भी पितृ दोष की ही भाँति है.
इन योगों में चंद्र-राहु, और सूर्य-राहु की युति को ग्रहण योग कहते हैं. यदि बुध की युति राहु के साथ है तब यह जड़त्व योग बनता है. इन योगों के प्रभावस्वरुप भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार ही अशुभ फल मिलते हैं. वैसे चंद्र की युति राहु के साथ कभी भी शुभ नही मानी जाती है. इस युति के प्रभाव से माता या पत्नी को कष्ट होता है, मानसिक तनाव रहता है, आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बांधवों से वैर-विरोध, परिजनों का व्यवहार परायों जैसा होने के फल मिल सकते हैं.
जन्म कुण्डली में दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में हो और इसका राहु के साथ दृष्टि संबंध या युति हो रही हो तब भी पितृ दोष का योग बनता है.
यदि जन्म कुंडली में आठवें या बारहवें भाव में गुरु व राहु का योग बन रहा हो तथा पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तब पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान से सुख में कमी रहती है.
बारहवें भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो, अष्टम भाव का स्वामी पंचम भाव में हो और दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब यह भी पितृ दोष की कुंडली बनती है और इस दोष के कारण धन हानि या संतान के कारण कष्ट होता है.
इन योगों के अतिरिक्त कुंडली में कई योग ऎसे भी बन जाते हैं जो कई प्रकार से कष्ट पहुंचाने का काम करते हैं. जैसे पंचमेश राहु के साथ यदि त्रिक भावों (6, 8, 12) में स्थित है और पंचम भाव शनि या कोई अन्य क्रूर ग्रह भी है तब संतान सुख में कमी हो सकती है. शनि तथा राहु के साथ अन्य शुभ ग्रहों के मिलने से कई तरह के अशुभ योग बनते हैं जो पितृ दोष की ही तरह बुरे फल प्रदान करते हैं.
पितृ दोष की शांति के विशेष उपाय | Specific Remedies for pacifying Pitr Dosha
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तब वह सरल उपायों के द्वारा भी पितृ दोष के प्रभाव को कम कर सकता है. यह उपाय निम्नलिखित हैं :-
यदि किसी की कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब उस व्यक्ति को अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर उन्हें सम्मानित करना चाहिए. पूर्वजों की मृत्यु की तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, अपनी सामर्थ्यानुसार वस्त्र और दान-दक्षिणा आदि देनी चाहिए. नियम से पितृ तर्पण और श्राद्ध करते रहना चाहिए.
जिन व्यक्तियों के माता-पिता जीवित हैं उनका आदर-सत्कार करना चाहिए. भाई-बहनों का भी सत्कार आपको करते रहना चाहिए. धन, वस्त्र, भोजनादि से सेवा करते हुए समय-समय पर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए.
प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें और “ऊँ पितृभ्य: नम:” मंत्र का जाप करें. उसके बाद पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है.
प्रत्येक संक्रांति, अमावस्या और रविवार के दिन सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगाजल और शुद्ध जल मिलाकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्ध्य दें.
प्रत्येक अमावस्या के दिन दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए. पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिए. त्रयोदशी को नीलकंठ स्तोत्र का पाठ करना, पंचमी तिथि को सर्पसूक्त पाठ, पूर्णमासी के दिन श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए. इससे भी पितृ दोष में कमी आती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
पितरों की शांति के लिए जो नियमित श्राद्ध किया जाता है उसके अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में गाय को चारा खिलाना चाहिए. कौओं, कुत्तों तथा भूखों को खाना खिलाना चाहिए. इससे शुभ फल मिलते हैं.
श्राद्ध के दिनों में माँस आदि का मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए. शराब तथा अंडे का भी त्याग करना चाहिए. सभी तामसिक वस्तुओं को सेवन छोड़ देना चाहिए और पराये अन्न से परहेज करना चाहिए.
पीपल के वृक्ष पर मध्यान्ह में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएँ. संध्या समय में दीप जलाएँ और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें. ब्राह्मण को भोजन कराएँ. इससे भी पितृ दोष की शांति होती है.
सोमवार के दिन 21 पुष्प आक के लें, कच्ची लस्सी, बिल्व पत्र के साथ शिवजी की पूजा करें. ऎसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है.
प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है.
कुंडली में पितृ दोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है.
ब्राह्मणों को गोदान, कुंए खुदवाना, पीपल तथा बरगद के पेड़ लगवाना, विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमदभागवत गीता का पाठ करना, पितरों के नाम पर अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला, आदि बनवाने से भी लाभ मिलता है.
पितृदोष के कारण संतान कष्ट होने के उपाय | Remedies to avoid unhappiness related to children due to Pitr Dosha
पितृ दोष के कारण कई व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा तथा रुकावटों का सामना करना पड़ता है. इन बाधाओं के निवारण के लिए कुछ उपाय हैं जो निम्नलिखित हैं :-
1. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा है तब उसके लिए नारायण बलि, नाग बलि, गया में श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से शांति प्राप्त होती है.
2. मातृ दोष | Matra Dosha
यदि कुंडली में चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रान्त हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में है तब मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी का अनुभव हो सकता है.
मातृ दोष के शांति उपाय | Remedies to pacify Matra Dosha
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मातृ दोष बन रहा है तब इसकी शांति के लिए गोदान करना चाहिए या चांदी के बर्तन में गाय का दूध भरकर दान देना शुभ होगा. इन शांति उपायों के अतिरिक्त एक लाख गायत्री मंत्र का जाप करवाकर हवन कराना चाहिए तथा दशमांश तर्पण करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, वस्त्रादि का दान अपनी सामर्थ्य अनुसार् करना चाहिए. इससे मातृ दोष की शांति होती है.
मातृ दोष की शांति के लिए पीपल के वृक्ष की 28 हजार परिक्रमा करने से भी लाभ मिलता है.
3. भ्रातृ दोष | Bhratra Dosha
तृतीय भावेश मंगल यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु के साथ पंचम भाव में हो तथा पंचमेश व लग्नेश दोनों ही अष्टम भाव में है तब भ्रातृ शाप के कारण संतान प्राप्ति बाधा तथा कष्ट का सामना करना पड़ता है.
भ्रातृ दोष के शांति उपाय | Remedies to pacify Bhratra Dosha
भ्रातृ दोष की शांति के लिए श्रीसत्यनारायण का व्रत रखना चाहिए और सत्यनारायण भगवान की कथा कहनी या सुननी चाहिए तथा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके सभी को प्रसाद बांटना चाहिए.
4. सर्प दोष | Sarpa Dosha
यदि पंचम भाव में राहु है और उस पर मंगल की दृष्टि हो या मंगल की राशि में राहु हो तब सर्प दोष की बाधा के कारण संतान प्राप्ति में व्यवधान आता है या संतान हानि होती है.
सर्प दोष के शांति उपाय | Remedies to pacify Sarpa Dosha
सर्प दोष की शांति के लिए नारायण नागबली विधिपूर्वक करवानी चाहिए. इसके बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्यानुसार भोजन कराना चाहिए, उन्हें वस्त्र, गाय दान, भूमि दान, तिल, चांदी या सोने का दान भी करना चाहिए. लेकिन एक बात ध्यान रखें कि जो भी करें वह अपनी यथाशक्ति अनुसार करें.
5. ब्राह्मण श्राप या दोष | Brahman Shraap or Dosha
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि धनु या मीन में राहु स्थित है और पंचम भाव में गुरु, मंगल व शनि हैं और नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में है तब यह ब्राह्मण श्राप की कुंडली मानी जाती है और इस ब्राह्मण दोष के कारण ही संतान प्राप्ति में बाधा, सुख में कमी या संतान हानि होती है.
ब्राह्मण श्राप के शांति उपाय | Remedies to pacify Brahman Dosha
ब्राह्मण श्राप की शांति के लिए किसी मंदिर में या किसी सुपात्र ब्राह्मण को लक्ष्मी नारायण की मूर्तियों का दान करना चाहिए. व्यक्ति अपनी शक्ति अनुसार किसी कन्या का कन्यादान भी कर सकता है. बछड़े सहित गाय भी दान की जा सकती है. शैय्या दान की जा सकती है. सभी दान व्यक्ति को दक्षिणा सहित करने चाहिए. इससे शुभ फलों में वृद्धि होती है और ब्राह्मण श्राप या दोष से मुक्ति मिलती है.
6. मातुल श्राप | Maatul Shraap
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु तथा राहु हो तब मामा के श्राप से संतान प्राप्ति में बाधा आती है.
मातुल श्राप के शांति उपाय | Remedies to pacify Maatul Shraap
मातुल श्राप से बचने के लिए किसी मंदिर में श्री विष्णु जी की प्रतिमा की स्थापना करानी चाहिए. लोगों की भलाई के लिए पुल, तालाब, नल या प्याउ आदि लगवाने से लाभ मिलता है और मातुल श्राप का प्रभाव कुछ कम होता है.
7. प्रेत श्राप | Pret Shraap
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि पंचम भाव में शनि तथा सूर्य हों और सप्तम भाव में कमजोर चंद्रमा स्थित हो तथा लग्न में राहु, बारहवें भाव में गुरु हो तब प्रेत श्राप के कारण वंश बढ़ने में समस्या आती है.
यदि कोई व्यक्ति अपने दिवंगत पितरों और अपने माता-पिता का श्राद्ध कर्म ठीक से नहीं करता हो या अपने जीवित बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रह हो तब इसी प्रेत बाधा के कारण वंश वृद्धि में बाधाएँ आ सकती हैं.
प्रेत श्राप के शांति उपाय | Remedies to pacify Pret Shraap
प्रेत शांति के लिए भगवान शिवजी का पूजन करवाने के बाद विधि-विधान से रुद्राभिषेक कराना चाहिए. ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, फल, गोदान आदि उचित दक्षिणा सहित अपनी यथाशक्ति अनुसार देनी चाहिए. इससे प्रेत बाधा से राहत मिलती है.
गयाजी, हरिद्वार, प्रयाग आदि तीर्थ स्थानों पर स्नान तथा दानादि करने से लाभ और शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
कुछ सामान्य उपाय:-
इन दोषों के निराकारण के लिए सर्वप्रथम जन्मकुंडली का उचित तरीके से विश्लेषण करें और यह ज्ञात करने की चेष्टा करें कि यह दोष किस किस ग्रह से बन रहा है। उसी दोष के अनुरूप उपाय करने से आपके कष्ट समाप्त हो जायेंगे।
1. अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों के नाम पर मन्दिर में दूध, चीनी, श्वेत वस्त्र व दक्षिणा आदि दें।
2. पीपल की 108 परिक्रमा निरंतर 108 दिन तक लगाएं।
3. परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु होने पर उसके निमित्त पिंडदान अवश्य कराएं।
4. ग्रहण के समय दान अवश्य करें।
5. जन कल्याण के कार्य करें, वृक्षारोपण करें। जल की व्यवस्था में सहयोग दें।
6. पितृदोष निवारण के लिए विशेष रूप से निर्मित यंत्र लगाकर एक विशेष यंत्र का 45 दिन विधिवत पाठ करके गृह शुद्धि करें।
7. श्रीमद्भागवत का पाठ करें या श्रवण करें। इससे पितृदोष समाप्त हो जाता है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनके आशीर्वाद से हमारा परिवार जो वास्तव में उनका ही एक अंश है सुखी हो जाता है।
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Lal kitab Rina and Remedies:-
स्वऋण, मातृ ऋण, पितृ ऋण, स्त्री ऋण, पारिवारिक ऋण, कन्या/ बहन का ऋण, निर्दयी ऋण, आजन्मकृत ऋण तथा ईश्वरीय ऋण।
ऋण का अर्थ है ‘‘कर्ज’’ और कर्ज हर मनुष्य को चुकाना पड़ता है।
इसका उल्लेख वेद-पुराणों में प्राप्त होता है।
हिंदु धर्म-शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों पर तीन ऋण माने गए हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण।
इन तीनों में पितृ ऋण सबसे बड़ा ऋण माना गया है। इन ऋणों का प्रभाव जन्म-जन्मांतरों तक मनुष्य का साए की तरह पीछा करता है।
वैसे तो परंपरागत ज्योतिष ने भी इन तथ्यों को अपनी जन्मकुंडली में समेटा है। लेकिन लाल किताब इस मामले में विशिष्ट स्थान रखती है।
इसके अनुसार पिता द्वारा लिया गया ऋण पुत्र को चुकाना पड़ता है। यहां तक कि आर्थिक-शारीरिक तथा मानसिक ऋण भी चुकाना पड़ता है। वैसे भी व्यक्ति को जीवन में तीन बातें कभी नहीं भूलनी चाहिए- कर्ज, फर्ज और मर्ज। जो मनुष्य इनको ध्यान में रखते हुए अपना कर्म करता है तो वह कभी असफल नहीं होता और जीवन धन्य हो जाता है।
प्रायः यह देखा जाता है कि हमारा कोई दोष नहीं होता फिर भी हमें कष्ट उठाने पड़ते हैं। ऐसा क्यों होता है?
पूर्वजों में से किसी ने अशुभ या पाप कर्म किए होते हैं जो पैतृक ऋण बन जाते हैं और उनको कुटुंब के किसी सदस्य को चुकाना होता है।
इसीलिए वह कष्ट उठाता है। कभी-कभी हम पर बड़े बूढ़ों के पाप के कारण रहस्यमयी प्रभाव पड़ता है जो हमारे लिए अविश्वसनीय व आश्चर्य चकित करने वाला होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जुर्म कोई करे और सजा कोई पाए। पैतृक ऋण होने पर दंड भी कोई निकट संबंधी ही पाता है।
पैतृक ऋणों का विचार जन्मकुंडली से किया जाता है। ऋण का ज्ञान हो जाये तो उसका उपाय भी रक्त संबंधी को करना होता है। पैतृक ऋण दूसरा व्यक्ति नहीं उतार सकता है।
रक्त संबंधियों में बहिन, बेटी तथा उनके बच्चे आते हैं जैसे-पोता-पोती, नाती-नातिन तथा भांजा-भांजी इत्यादि।
लाल किताब के अनुसार पैतृक ऋण लाल किताब के अनुसार मनुष्यों पर नवग्रहों के आधार पर नौ प्रकार के ऋण माने गये हैं।
यथा-स्वऋण, मातृ ऋण, पारिवारिक ऋण, कन्या/ बहन का ऋण, पितृ ऋण, स्त्री ऋण, निर्दयी ऋण, आजन्मकृत ऋण तथा ईश्वरीय ऋण।
नव ग्रहों से संबंधित ऋण निम्न प्रकार के हैं:
(1) सूर्य से स्वऋण:
पंचम भाव में पापी ग्रहों के होने से जातक को स्वऋण होता है। प्राचीन परंपराओं के अपमान और जातक के नास्तिक स्वभाव के कारण यह ऋण होता है। इस ऋण के प्रभाव से जातक को शारीरिक कष्ट, मुकद्दमे में हार, राजदंड, प्रत्येक कार्य में संघर्ष आदि अशुभ प्रभावों से गुजरना पड़ता है और जातक, निर्दोष होते हुए भी, दोषी बन जाता है।
उपाय: जातक को अपने सगे-संबंधियों से बराबर-बराबर धन ले कर यज्ञ करना चाहिए। तभी जातक को ऋण से मुक्ति मिलेगी।
(2) चंद्र से मातृ ऋण:
चतुर्थ भाव में केतु स्थित होने से मातृ ऋण होता है। माता का अपमान करना और उसे यातनाएं देना, घर से बेघर करना आदि अशुभ कर्मों के कारण यह ऋण होता है। इसके प्रभाव से जातक को व्यर्थ धन-हानि, रोग, ऋण और प्रत्येक कार्य में असफलता का सामना करना पड़ता है।
उपाय: जातक द्वारा रक्त संबंधियों से बराबर-बराबर भाग में चांदी ले कर चलते पानी में बहाने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
(3) मंगल से सगे-संबंधियों का ऋण:
पहले और आठवें भाव में बुध और केतु ग्रह हों, तो संबंधियों का ऋण होता है। इस ऋण के प्रभाव से जातक को अचानक भारी हानि उठानी पड़ती है। उसका सर्वस्व स्वाहा हो जाता है। जातक संकटों से घिर जाता है। यह प्रभाव मुख्यतः 28 वें वर्ष में होता है।
उपाय: परिवार के प्रत्येक सदस्य से बराबर-बराबर धन एकत्र कर के किसी शुभ कार्य हेतु दान में देने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
(4) बुध से बहन का ऋण:
लाल किताब जन्मकुंडली में तीसरे, या छठे भाव में चंद्रमा होने से बहन का ऋण होता है। लड़की, या बहन पर अत्याचार करने, उसे घर से निकालने, अथवा किसी लड़की को धोखा देने, या उसकी हत्या कर देने से यह ऋण होता है। इस ऋण के बोझ से जातक को आर्थिक रूप से कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उसका जीवन संघर्षमय हो जाता है और उसे मित्रों, या सगे-संबंधियों से कोई सहायता नहीं मिल पाती है।
उपाय: इस ऋण से मुक्ति के लिए जातक समस्त परिवार के सदस्यों से बराबर-बराबर पीले रंग की कौड़ियां एकत्र कर के, उन्हें जला कर, राख करे। उसी राख को बहते पानी में बहाना चाहिए।
(5) गुरु से पितृ ऋण:
दूसरे, पांचवें, नवें और बारहवें भाव में शुक्र, बुध और राहु स्थित होने से पितृ ऋण होता है। श्राद्ध न करने, मंदिर, या पीपल के वृक्ष को क्षति पहुंचाने, अथवा कुटुंब के कुल पुरोहित का परिवर्तन करने से यह ऋण होता है। इसके फलस्वरूप जातक को विशेष कर वृद्धावस्था में अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। उसके जीवन भर की संचित पूंजी व्यर्थ कार्यों में नष्ट हो जाती है।
उपाय: कुटुंब के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र कर के किसी शुभ कार्य हेतु दान में देना चाहिए तथा घर के निकट स्थित मंदिर, या पीपल के पेड़ की देखभाल करें।
(6) शुक्र से पत्नी का ऋण:
दूसरे और सातवें भाव में सूर्य, राहु और चंद्रमा स्थित हों, तो पत्नी का ऋण होता है। पत्नी की हत्या, या उसे अपमानित कर मार-पीट करने से यह ऋण होता है। इस ऋण के प्रभाव से जातक को अनेक दुखों का सामना करना पड़ता है। विशेष कर मंगल कार्यों में कोई अप्रिय घटना घटित हो जाती है।
उपाय: कुटुंब के प्रत्येक सदस्य से बराबर-बराबर धन एकत्र कर 100 गायों को भोजन कराने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
(7) शनि से असहाय का ऋण:
दसवें और ग्यारहवें भाव में सूर्य, चंद्र और मंगल स्थित होने से असहाय व्यक्ति का ऋण होता है। जीव हत्या करने, धोखे से किसी वस्तु पर अधिकार कर लेने और किसी असहाय व्यक्ति को कष्ट देने से यह ऋण होता है। इस ऋण से जातक और उसके कुटुंब को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जातक की उन्नति में अनेक बाधाएं आती हैं और उसका जीवन नरक सदृश बन जाता है।
उपाय: कुटुंब के समस्त सदस्यों से बराबर-बराबर धन एकत्र कर के सौ मजदूरों को भोजन कराना चाहिए।
(8) राहु से अजन्मे का ऋण:
बारहवें भाव में सूर्य, शुक्र और मंगल होने से अजन्मे का ऋण होता है। इस ऋण से जातक को सगे-संबंधियों से भी धोखे का सामना करना पड़ता है। जातक को शारीरिक चोट पहुंचती है और कार्य- व्यवसाय में हानि होती है। कुटुंब के सदस्य भी परेशान रहते हैं। जातक को चारों तरफ से हार का सामना करना पड़ता है और निर्दोष होते हुए भी उसे जेल जाना पड़ता है।
उपाय: कुटुंब के प्रत्येक सदस्य से एक-एक नारियल एकत्र कर बहते पानी में बहाने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
(9) केतु से ईश्वरीय ऋण:
छठे भाव में चंद्र, मंगल होने से ईश्वरीय ऋण होता है। लालच में आ कर किसी की हत्या कर देने, सगे-संबंधियों से विश्वासघात करने और नास्तिक प्रकृति का होने से यह ऋण होता है। जातक का कुटुंब बर्बाद हो जाता है। जातक की संतान नहीं होती है। उसे विश्वासघात का सामना करना पड़ता है। उसका जमा धन धीरे-धीरे व्यर्थ के कार्यों में नष्ट हो जाता है।
उपाय: कुटुंब के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र कर के 100 कुत्तों को भोजन कराने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
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पितृ ऋण यह ऋण गुरु ग्रह के दूषित होने पर होता है। जन्म कुंडली के द्वितीय, पंचम, नवम या बारहवें भाव (खाना नं. 2, 5, 9 या 12) में शुक्र बुध या राहु स्थित हो तो पितृऋण का भार जातक पर निश्चित रूप से पड़ता है।
नवम भाव में गुरु के साथ शुक्र स्थित हो या चतुर्थ भाव में शनि और केतु हों तथा चंद्र दशम भाव में हो तो जातक निश्चित ही पितृ ऋण से पीड़ित होगा।
उपाय जो ग्रह पितृ ऋण का हो चुका हो, उस ग्रह को उच्च का करने के उपाय ग्रह की अवधि से पूर्व करना चाहिए।
जैसे- गुरु के लिए 16 वर्ष पूर्व, सूर्य के लिए 22 वर्ष पूर्व, चंद्र के लिए 24 वर्ष से पहले, मंगल के लिए 28 वर्ष पूर्व, बुध के लिए 34 वर्ष पूर्व, शुक्र हेतु 25 वर्ष तथा शनि के लिए 36 वर्ष से पहले ही उपाय कर लेना चाहिए।
अन्यथा वह अपनी अवधि पूर्ण करने के पश्चात जातक को अवश्य ही हानि पहुंचाएगा। दो ग्रहों के पितृऋण में एक समय में केवल एक ही उपाय करना चाहिए तत्पश्चात एक या दो हफ्ते छोड़कर ही दूसरा उपाय करना चाहिए।
उदाहरणार्थ- जैसे जातक के पिता या दादा ने कुत्ते मारे या मरवाए तो जातक पर गुरु और केतु दोनों ग्रहों का पितृ ऋण होगाा। उपाय भी दोनों ग्रहों का करना होगा। जातक पितृ ऋण से पीड़ित है तो अपने सभी रक्त संबंधियों से धन इकट्ठा करें और उस धन को धार्मिक स्थान पर दान करें या उस धार्मिक स्थल पर मरम्मत इत्यादि का कार्य करावें या जातक अपने घर से बाहर दरवाजे पर बाहर की तरफ जिधर नजर जाए तथा बाएं हाथ की तरफ दोनों दिशाओं मंे 16 कदम की दूरी के अंदर पीपल वृक्ष की स्थापना करें तो उसे इस पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है।
स्त्री ऋण शुक्र ग्रह के दूषित हो जाने पर ‘स्त्री ऋण’ (पत्नी ऋण) का भार पड़ता है। जन्म कुंडली में जब द्वितीय व सप्तम भाव (खानां नं. 2-7) में सूर्य, चंद्र या राहु स्थित हो तो ‘स्त्री ऋण’ उत्पन्न होता है।
पहचान: जातक द्वारा घर में पशु धन को नफरत से देखना तथा उसे घृणा से पालना ही स्त्रीऋण की पहचान या लक्षण होते हैं।
कारण: किसी भी लालच के कारण प्रसव के समय स्त्री को मारा-पीटा गया हो या हत्या की गई हो। यही स्त्रीऋण का मुख्य कारण होता है। अनिष्ट प्रभाव: परिवार में पुरुषों की बीमारी पर जमा-पूंजी सब स्वाहा हो जाती है।
बेटे एवं पोतों की अकस्मात मृत्यु हो जाती है। घर में चोरी या डाका पड़ता है। हर तरह से धन संपदा बर्बाद हो जाती है। घर में कोई मंगल कार्य हो तो रिश्तेदारों (नजदीकी) की मौत होती है। सुख में दुख, मांगलिक वेला में मौत, बेवजह बिना कारण कोई दे दे।
उपाय जातक अपने रक्त संबंधियों से धन जमा करें व उस धन से 100 स्वस्थ गायों को जो किसी भी प्रकार से अंगहीन न हो सपरिवार मिलकर उत्तम भोजन या उत्तम चारा खिलाए तो ‘‘स्त्री ऋण’’ से मुक्ति पा सकता है।
निर्दयी का ऋण शनि ग्रह के दूषित हो जाने से यह ऋण होता है। जब जन्म पत्रिका में दशम या ग्यारहवें भाव में सूर्य, चंद्र या मंगल का प्रवेश हो जाता है तो वह शनि से पीड़ित होता है
और यही दशा जातक को निर्दयी ऋण का दोषी बना देती है।
पहचान: घर का द्वार दक्षिण दिशा में हो या वह घर किसी बांझ या अनाथ से जमीन लेकर बनाया गया है। घर के मार्ग पर कुओं को ढंककर मकान बनाया हो। घर मालिक को नींद न आए अगर एक बार सो जाए तो जाग नहीं पाए। अचानक ऐसे घरों में अशुभ घटनाएं घटित होने लगती हैं।
कारण: किसी जीव की हत्या की हो या किसी की संपत्ति धोखे से हड़प ली हो।
अनिष्ट प्रभाव: व्यावसायिक स्थल पर आग लगना और आग बुझाने का साधन न होना। घर का अचानक गिरना या आग का लगना। आग में जले हुए को अस्पताल पहुंचाने का प्रबंध न होना, घर बनवाने तक बारिश होना तथा बारिश का बंद न होना।
जातक की करनी से स्वयं की संतान को व ससुराल वालों को बेवजह पुलिस परेशान करे। योग्य संतान नालायक हो जाए। घर के सदस्य चैन से न सो सकें। तत्पश्चात् अपंग हो जाना तथा एक-एक करके परिवार के सदस्यों की मृत्यु होना। कोई तरकीब समझ न आए।
उपाय जातक अपने रक्त संबंधियों से धन एकत्रित करे और धन से 100 मजदूरों को स्वादिष्ट व उत्तम भोजन कराए। 100 तालाबों से एक-एक मछली लाकर एक ही तालाब में डालकर उन्हें आटे की गोलियां बनाकर खिलावें तथा चकला और बेलन किसी धार्मिक स्थान पर दान दें तथा 43 दिन तक 50 ग्राम सुरमा जमीन में दबाएं तो इस ऋण से जातक को छुटकारा मिल जाता है।
आजन्मकृत ऋण यह ऋण राहु के दूषित होने पर होता है। जब जन्मकुंडली के बारहवें भाव में (खाना नं. 12) सूर्य, मंगल या शुक्र स्थित हो जाए तो आजन्मकृत ऋण का भार जातक पर पड़ता है।
पहचान: जातक के मकान की दक्षिण दिशा की दीवार की ओर वीरान, कब्रिस्तान या किसी भड़भूजे की भट्ठी होगी या अंतिम निवास होगा। दरवाजे के नीचे से गंदा पानी बहता होगा। कारण: जातक द्वारा अपने घनिष्ठ मित्रों से लाभ उठाकर उन्हंे धोखा देना या उनके वंश को नष्ट करना ही इस ऋण का मुख्य कारण हो।
अनिष्ट प्रभाव: राहु के अशुभ प्रभाव के कारण जातक पर चोरी, डकैती, हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों का आरोप लग जाता है। कोर्ट कचहरी के मामलों में हारना पड़ता है, निर्दोष होते हुए भी सजा भुगतनी पड़ती है।
ससुराल पक्ष से विश्वासघात होता है। लोगों का आपके ऊपर से विश्वास उठ जाता है। घर या कार्यालय में अचानक आग लग जाना, समझ-बूझ कर किए गए कार्यों में घाटा होना। रिश्तेदार भी परेशान रहे। संतान सुंदर हो पर रोगी हो। दगाबाजी के कारण धन नाश होना, परिवार की बर्बादी होना इत्यादि इस ऋण के अनिष्टकारी प्रभाव जातक पर पड़ते हैं। उपाय जातक अपने प्रत्येक रक्त संबंधी से एक-एक पानी वाला नारियल प्राप्त करे और उन्हें एक ही दिन में बहते पानी में बहा दें। परिवार वालों से मिलजुलकर रहें। ससुराल में अपना सम्मान बनाए रखें तो इस ऋण से निश्चित तौर पर मुक्ति मिल जाती है।
ईश्वरीय ऋण ईश्वरीय ऋण केतु के दूषित होने पर होता है। जब जन्मकुंडली में छठे भाव (खाना नं. 6) में चंद्र या मंगल स्थित हो जाये तो जातक पर ईश्वरीय ऋण का बोझ आता है। इसे देव ऋण भी कहते हैं।
पहचान: दूसरों की संतान पर बुरी नजर रखना या मार देना। कुत्तों को गोली मारना, रिश्तेदारों पर बुरी नजर रखना या उनके वंशजों को समाप्त करने का षड्यंत्र रचना आदि। किसी दूसरे के पुत्र को पालना पड़े।
कारण: लोभ के वशीभूत होकर दूसरों के कुल वंश का स्वयं या किसी दूसरे से उनका नाश करवाया हो। कबूतरों को या कुत्तों को मारा हो। लालच में किसी का धन हड़पा हो, बुरी नीयत का होना ही इस ऋण का मुख्य कारण है।
अनिष्ट प्रभाव: यात्रा में धन का नाश हो। स्वयं की संतान का नाश हो। संतान न हो, तो गूंगी-बहरी व विकलांग हो। पुत्र का न होना, हो तो आजन्म रोगी हो। जिन पर विश्वास करें वही धोखा दें।
उपाय किसी विधवा की मदद करें। रक्त संबंधियों से पैसा जमा करें व उस पैसे से 100 कबूतरों को बाजरा या 100 कुत्तों को भोजन एक ही दिन में सपरिवार खिलावें। काले रंग का कुत्ता पालें व उसके कान छिदवाएं तो इस ईश्वरीय-दैवीय या कुदरती ऋण से मुक्ति पा सकते हैं।
पैतृक ऋणों से संबंधित जातक राहु-12, केतु-6 या 2-8 भाव में कोई ताकतवर या मददगार ग्रह न हो तो पैतृक ऋणों की दशा में केवल सांसारिक माया पर हो, उस ऋण को चुकाने का भार होगा लेकिन प्रभाव कम नहीं होगा।
अतः पितृ ऋणों के उपायों को करने में उस रक्त से संबंधित लड़की, बहन, बहू, पोती, ध्वेता, पोता, दादा, परदादा आदि तथा बुआ, पुत्र, स्त्री, भांजा-भांजी सभी शामिल माने जाते हैं।
स्त्री के माता-पिता अर्थात जातक के ससुराल वाले इस कार्य के लिए वर्जित हैं उनका इन उपायों में शामिल होना अनिवार्य नहीं है।
पैतृक ऋण से पीड़ित जातक को चाहिए कि वह ऋण का ज्ञान होने पर अपने रक्त संबंधियों से उनका भाग अवश्य लें अगर कोई नहीं देता है तो उसका दस गुणा जातक स्वयं मिलाकर ऋण संबंधी उपाय अवश्य करें। जो अपना भाग नहीं देता है वह पैतृक ऋणों से कभी मुक्त नहीं होता और जीवन में उनके दुष्प्रभावों को भोगता है। अतः पैतृक ऋणों का उपाय अवश्य करें तथा अपने-अपने परिवार और वंश की उन्नति करें।
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