कुंडली-मिलान में दोषों का परिहार (काट) कैसे होती है, मांगलिक दोष, गण दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष, मंगल दोष आदि ज्योतिष में महादोष कहे गए हैं, कुंडली मिलान को अधिकतर व्यक्ति एक निगाह से देखते हैं. उनकी नजर में जितने अधिक गुण मिलते हैं उतने अच्छा होता है जबकि यह पैमाना बिलकुल गलत है, कई बार 36 में से 36 गुण मिलने पर भी वैवाहिक सुख का अभाव रहता है क्योंकि गुण मिलान तो हो गया लेकिन जन्म कुंडली का आंकलन नहीं हुआ, सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि व्यक्ति की अपनी कुंडली में वैवाहिक सुख कितना है? तब उसे आगे बढ़ना चाहिए |
कम्पयूटर का कार्य है सिर्फ गणित(Calculations) करना, जन्मकुंडली देखने का कार्य ज्योतिष के ज्ञाता का है कम्पयूटर मानव कार्यों का एक सर्वोतम सहायक जरूर है, परंतु मानव नहीं इसलिए कम्पयूटर का उपयोग करें तो सिर्फ जन्मकुंडली निर्माण हेतु न कि कम्पयूटर द्वारा दर्शाई गई गुण मिलान संख्या को आधार मानकर कोई अंतिम निर्णय लिया जाए कुंडली मिलान और भकूट दोष : कारण और परिहार Kundali milan aur bhakut dosh parihar
कम्पयूटर का कार्य है सिर्फ गणित(Calculations) करना, जन्मकुंडली देखने का कार्य ज्योतिष के ज्ञाता का है कम्पयूटर मानव कार्यों का एक सर्वोतम सहायक जरूर है, परंतु मानव नहीं इसलिए कम्पयूटर का उपयोग करें तो सिर्फ जन्मकुंडली निर्माण हेतु न कि कम्पयूटर द्वारा दर्शाई गई गुण मिलान संख्या को आधार मानकर कोई अंतिम निर्णय लिया जाए कुंडली मिलान और भकूट दोष : कारण और परिहार Kundali milan aur bhakut dosh parihar
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आजकल आँख मूंदकर यही देखा है कि गुण कितने मिल रहे हैं और जातक मांगलिक है या नहीं बस इसके बाद सब कुछ तय हो जाता है यदि हम सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो अधिकतर कुंडलियों में गुण मिलान दोषों या मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है अर्थात अधिकतर दोष कैंसिल हो जाते हैं लेकिन इतना समय कौन बर्बाद करें, मैने अपनी ज्योतिष की प्रैक्टिस के दौरान कुंडली मिलान के ऐसे बहुत से केस देखे हैं जिनमें सिर्फ गुण मिलान की विधि से ही 25 से अधिक गुण मिलने के कारण वर-वधू की शादी करवा दी गई तथा कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके परिणाम स्वरुप इनमें से बहुत से केसों में शादी के बाद पति पत्नि में बहुत तनाव रहा तथा कुछ केसों में तो तलाक और मुकद्दमें भी देखने को मिले। अगर 28-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमें तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में न तो पूर्ण है तथा न ही सक्षम।
कुंडली मिलान में एक से चार नंबर तक के दोषों का कुछ विशेष परिहार नहीं है, मुख्य रुप से गण मिलान से परिहार आरंभ होता है-
गण दोष का परिहार | Cancellation of Gana Dosha
यदि किन्हीं जन्म कुंडलियों में गण दोष मौजूद है तब सबसे पहले कुछ बातों पर ध्यान दें :
चंद्र राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता या राशि स्वामियों के नवांशपति में भिन्नता होने पर भी गणदोष नहीं रहता है.
ग्रहमैत्री और वर-वधु के नक्षत्रों की नाड़ियों में भिन्नता होने पर भी गणदोष का परिहार होता है.
यदि वर-वधु की कुंडली में तारा, वश्य, योनि, ग्रहमैत्री तथा भकूट दोष नहीं हैं तब किसी तरह का दोष नहीं माना जाता है.
मान लिया जाय की आप कन्या राशि के जातक है अर्थात आपकी कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तथा आपकी पत्नी की कुंडली में चन्द्रमा कुम्भ राशि में स्थित हैं तो इसे षडाष्टक वा 6 /8 भकूट दोष ( Bhakoot Dosh ) माना जाता है। ऐसा इसलिये की कन्या राशि से गणना करने पर कुम्भ राशि छठे तथा कुम्भ राशि से गणना करने पर कन्या राशि ( Virgo Sign) आठवें स्थान पर आती है।
भकूट दोष | Bhakoot Dosh:-
नाड़ी दोष की भांति ही भकूट दोष को भी गुण मिलान से बनने वाले दोषों में से बहुत गंभीर दोष माना जाता है तथा अधिकतर ज्योतिषी कुंडली मिलान में भकूट दोष के बनने पर विवाह न करने का परामर्श देते हैं।
कैसे बनता है भकूट दोष Bhakoo Dosh
किसी भी जन्म कुंडली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है वह राशि कुंडली का भकूट कहलाता है। जन्मकुंडली में भकूट दोष ( Bhakoot Dosh ) का निर्णय वर और वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है उन दोनों राशियों अथवा चन्द्रमा का क्या सम्बन्ध है उसके ऊपर निर्भर करता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर एक दूसरे 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो “भकूट” मिलान में 0 अंक दिया जाता हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है।
मान लिया जाय की आप कन्या राशि के जातक है अर्थात आपकी कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तथा आपकी पत्नी की कुंडली में चन्द्रमा कुम्भ राशि में स्थित हैं तो इसे षडाष्टक वा 6 /8 भकूट दोष ( Bhakoot Dosh ) माना जाता है। ऐसा इसलिये की कन्या राशि से गणना करने पर कुम्भ राशि छठे तथा कुम्भ राशि से गणना करने पर कन्या राशि ( Virgo Sign) आठवें स्थान पर आती है।
इसी प्रकार यदि आपकी पत्नी की जन्म कुंडली में चन्द्रमा वृष राशि में स्थित हैं तो इसे नवम-पंचम ( ९/५) भकूट दोष माना जाएगा क्योंकि आपकी तो राशि कन्या है और उस राशि से गिनती करने पर वृष राशि नवम तथा वृष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि पांचवे स्थान पर आती है।
इसी प्रकार आपकी पत्नी की कुंडली में यदि चन्द्रमा सिंह राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश-दो ( 12-2) भकूट दोष माना जाता है क्योंकि कन्या राशि से गिनती करने पर सिंह राशि बारहवें तथा सिंह राशि से गिनती करने पर कन्या राशि दूसरे स्थान पर आती है।
भकूट दोष का दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव
Effect of Bhakoot Dosh on Married Life
जन्मकुंडली मिलान में तीन प्रकार से भकूट दोष बनता है जिसकी चर्चा ऊपर की गई है। मुहूर्तचिन्तामणि में इसके दाम्पत्य जीवन में आने वाले प्रभाव के सम्बन्ध में कहा गया है।
मृत्युषडष्टके ज्ञेयोऽपत्यहानिर्नवात्मजे।
द्विद्र्वादशे निर्धनत्वं द्वयोरन्यत्र सौख्यकृत्।।
अर्थात षड़-अष्टक ६/८ भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है या आपस में लड़ाई झगड़ा होते रहता है। नवम-पंचम ( ९/५) भकूट दोष होने से संतान की हानि होती है या संतान के जन्म में मुश्किल आती है या फिर संतान होती ही नहीं। द्वादश-दो ( 1२/२) भकूट दोष होने से वर-वधू को निर्धनता का सामना करना पड़ता या दोनों बहुत ही खर्चीले होते है।
भकूट दोष का निदान | Remedies of Bhakoor Dosh
अधोलिखित स्थितियों में भकूट दोष का प्रभाव या तो निरस्त हो जाता है अथवा उसका प्रभाव कम हो जाता है ऐसा माना जाता है।
वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों में होने पर षडाष्टक की स्थिति में भी भकूट दोष नहीं माना जाता है क्योकि क्योंकि मेष-वृश्चिक राशियों का स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला राशियों का स्वामी शुक्र हैं। अतः एक ही राशि होने के कारण दोष समाप्त माना जाता है।
इसी प्रकार वर वधु की कुंडली में चन्द्रमा मकर-कुंभ राशियों में होकर भकूट दोष का निर्माण कर रहा है तो एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं माना जाता है क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।
यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष होता है परन्तु उसका प्रभाव कम होता है क्योंकि इन दोनों ही राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपस में मित्र हैं।
यदि दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष नहीं है तो भी भकूट दोष होने के बाद भी इसका प्रभाव कम हो जाता है।
यदि कुंडली मिलान में ग्रहमैत्री, गणदोष तथा नाड़ी दोष नहीं है और भकूट दोष है तो भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है।
भकूट दोष का परिहार | Cancellation of Bhakut Dosha
भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं. जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वार्दश दोष होता है. इन तीनों ही दोषों का परिहार भिन्न - भिन्न प्रकार से हो जाता है.
षडाष्टक परिहार | Cancellation of Sashtak
यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है.
यदि वर-वधु की चंद्र राशि स्वामियों का षडाष्टक शत्रु वैर का है तब इसका परिहार करना चाहिए.
मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है इनका पूर्ण रुप से त्याग करना चाहिए.
यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है
नव पंचम का परिहार | Cancellation of Navpanchak
नव पंचम दोष का परिहार भी शास्त्रों में दिया गया है. जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 5/9 अक्ष पर स्थित होती है तब नव पंचम दोष माना जाता है. नव पंचम का परिहार निम्न से हो जाता है.
यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें स्थान पर पड़ रही हो और कन्या की राशि से लड़के की राशि नवम स्थान पार पड़ रही हो तब यह स्थिति नव-पंचम की शुभ मानी गई है.
मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए.
यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नव-पंचम का परिहार होता है.
द्वि-द्वार्दश योग का परिहार | Cancellation of Dwi-Dwardasha Dosha
लड़के की राशि से लड़की की राशि दूसरे स्थान पर हो तो लड़की धन की हानि करने वाली होती है लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है.
द्वि-द्वार्द्श योग में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है.
मतान्तर से सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वार्दश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है.
नाड़ी दोष का परिहार | Cancellation of Nadi Dosha
नाड़ी दोष का कई परिस्थितियों में परिहार हो जाता है. आइए विस्तार से जानें :-
वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है.
दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार होता है.
दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब परिहार होता है.
शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गणा दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है.
ज्योतिष चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृ्गशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है.
विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का सर्वाधिक महत्त्व को दिया गया है। 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सर्वाधिक 8 गुण निर्धारित हैं। ज्योतिष की दृष्टि में तीन नाडियां होती हैं - आदि, मध्य और अन्त्य। *इन नाडियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है।* वर-वधू की समान नाड़ी होने पर दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है।
शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि: "नाड़ी दोष केवल ब्रह्मण वर्ग में ही मान्य है।"
"समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है।" आयुर्वेद के सिद्धांतों में भी तीन नाड़ियाँ – वात (आदि ), पित्त (मध्य) तथा कफ (अन्त्य) होती हैं। शरीर में इन तीनों नाडियों के समन्वय के बिगड़ने से व्यक्ति रूग्ण हो सकता है।
भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं।
9-नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है।
जो इस प्रकार है।
आदि नाड़ी अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद ।
मध्य नाड़ी👉 भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद
अन्त्य नाड़ी कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती ।
नाड़ी के तीनों स्वरूपों आदि, मध्य और अन्त्य ..आदि नाड़ी ब्रह्मा विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करती हैं। यही नाड़ी मानव शरीर की संचरना की जीवन गति को आगे बढ़ाने का भी आधार है।
सूर्य नाड़ी, चंद्र नाड़ी और ब्रह्म नाड़ी" जिसे इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा के नाम से भी जानते हैं। कालपुरुष की कुंडली की संरचना बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों तथा योगो करणों आदि के द्वारा निर्मित इस "शरीर में नाड़ी का स्थान सहस्रार चक्र के मार्ग पर होता है।" यह विज्ञान के लिए अब भी "पहेली"-बना हुआ है कि नाड़ी दोष वालों का ब्लड प्राय: ग्रुप एक ही होता है । और "ब्लड ग्रुप" एक होने से रोगों के "निदान, चिकित्सा, उपचार" आदि में समस्या आती हैं।
इड़ा, पिंगला, और सुसुम्णा* हमारे मन मस्तिष्क और सोच का प्रतिनिधित्व करती है ।
यही सोच और वंशवृद्धि का द्योतक "नाड़ी" हमारे दांपत्य जीवन का आधार स्तंभ है। अत: नाड़ी दोष को आप गंभीरता से देखें। यदि एक नक्षत्र के एक ही चरण में वर कन्या का जन्म हुआ हो तो नाड़ी दोष का परिहार संभव नहीं है। और यदि परिहार है भी तो जन मानस के लिए असंभव है। ऐसा देवर्षि नारदने भी कहा है।
एक नाड़ी विवाहश्च गुणे:
सर्वें: समन्वित: l
वर्जनीभ: प्रयत्नेन
दंपत्योर्निधनं ll
अर्थात वर -कन्या की नाड़ी एक ही हो तो उस विवाह वर्जनीय है। भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से पति -पत्नी के स्वास्थ्य और जीवन के लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है।
पुत्री का विवाह करना हो या पुत्र का, विवाह की सोचते ही "कुण्डली मिलान की सोचते हैं जिससे सब कुछ ठीक रहे और विवाहोपरान्त सुखमय गृहस्थ जीवन व्यतीत हो. कुंडली मिलान के समय आठ कूट मिलाए जाते हैं, इन आठ कूटों के कुल अंक 36 होते हैं. इन में से एक ..कूट नाड़ी होता है जिसके सर्वाधिक अंक 8 होते हैं. लगभग 23% प्रतिशत इसी कूट के हिस्से में आते हैं, इसीलिए नाड़ी दोष प्रमुख है।
ऐसी लोक चर्चा है कि वर कन्या की नाड़ी एक हो तो पारिवारिक जीवन में अनेक बाधाएं आती हैं और संबंधों के टूटने की आशंका या भय मन में व्याप्त रहता है. कहते हैं कि यह दोष हो तो संतान प्राप्ति में विलंब या कष्ट होता है, पति-पत्नी में परस्पर ईर्ष्या रहती है और दोनों में परस्पर वैचारिक मतभेद रहता है.*
नब्बे प्रतिशत लोगों का एकनाड़ी होने पर ब्लड ग्रुप समान और आर एच फैक्टर अलग होता है यानि एक का पॉजिटिव तो दूसरे का ऋण होता है. हो सकता है इसलिए भी संतान प्राप्ति में विलंब या कष्ट होता है।
चिकित्सा विज्ञान की आधुनिक शोधों में भी समान ब्लड ग्रुप वाले युवक युवतियों के संबंध को स्वास्थ्य की दृष्टि से अनपयुक्त पाया गया है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि लड़के का आरएच फैक्टर RH+ पॉजिटिव हो व लड़की का RH- आरएच फैक्टर निगेटिव हो तो विवाह उपरांत पैदा होने वाले बच्चों में अनेक विकृतियाँ सामने आती हैं, जिसके चलते वे मंदबुद्धि व अपंग तक पैदा हो सकते हैं। वहीं रिवर्स केस में इस प्रकार की समस्याएँ नहीं आतीं, इसलिए युवा अपना रक्तपरीक्षण अवश्य कराएँ, ताकि पता लग सके कि वर-कन्या का रक्त समूह क्या है।* चिकित्सा विज्ञान अपनी तरहसे इस दोष का परिहार करता है, लेकिन "ज्योतिष" ने इस समस्या से बचने और उत्पन्न होने पर नाड़ी दोष के उपाय निश्चित किए हैं । इन उपायों में जप-तप, दान पुण्य, व्रत, अनुष्ठान आदि साधनात्मक उपचारों को अपनाने पर जोर दिया गया है ।
शास्त्र वचन यह है कि-
*एक ही नाड़ी होने पर
"गुरु और शिष्य"*
"मंत्र और साधक"
"देवता और पूजक" में भी क्रमश: †ईर्ष्या, †अरिष्ट और †मृत्यु" जैसे कष्टों का भय रहता है l*
देवर्षि नारद ने भी कहा है :-
वर-कन्या की नाड़ी एक ही हो तो वह विवाह वर्जनीय है. भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से तो पति-पत्नी के स्वास्थ्य और जीवनके लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है ।
ll वेदोक्त श्लोक ll
〰〰〰〰〰
अश्विनी रौद्र आदित्यो,
अयर्मे हस्त ज्येष्ठयो l
निरिति वारूणी पूर्वा
आदि नाड़ी स्मृताः ll
भरणी सौम्य तिख्येभ्यो,
भग चित्रा अनुराधयो l
आपो च वासवो धान्य
मध्य नाड़ी स्मृताः ll
कृतिका रोहणी अश्लेषा,
मघा स्वाती विशाखयो।
विश्वे श्रवण रेवत्यो,
*अंत्य नाड़ी* स्मृताः॥
आदि नाड़ी* के अंतर्गत नक्षत्र
क्रम: 01, 06, 07, 12, 13, 18, 19, 24, 25 वें नक्षत्र आते हैं।
---+---+---+---
मध्य नाड़ी* के अंतर्गत नक्षत्र
क्रम : 02, 05, 08, 11, 14, 17, 20, 23, 26 नक्षत्र आते हैं।
---+---+---+---
अन्त्य नाड़ी* के अंतर्गत क्रम : 03, 04, 09, 10, 15, 16, 21, 22, 27 वें नक्षत्र आते हैं ।
---+---+---+---
गण :-
〰〰〰
अश्विनी मृग रेवत्यो,
हस्त: पुष्य पुनर्वसुः।
अनुराधा श्रुति स्वाती,
कथ्यते *देवता-गण* ॥
त्रिसः पूर्वाश्चोत्तराश्च,
तिसोऽप्या च रोहणी ।
भरणी च मनुष्याख्यो,
गणश्च कथितो बुधे ॥
कृतिका च मघाऽश्लेषा,
विशाखा शततारका ।
चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा,
च मूलं रक्षोगणः स्मृतः॥
*देव गण- नक्षत्र :- 01, 05, 27, 13, 08, 07, 17, 22, 15*
*मनुष्य गण-नक्षत :- 11, 12, 20, 21, 25, 26, 06, 04.*
*राक्षस गण- नक्षत्र क्रम:- 03, 10, 09, 16, 24, 14, 18, 23, 19.*
*स्वगणे परमाप्रीतिर्मध्यमा देवमर्त्ययोः।
*मर्त्यराक्षसयोर्मृत्युः कलहो देव रक्षसोः॥
*"संगोत्रीय विवाह" को कराने के लिए कर्म कांडों में एक विधान है, जिसके चलते संगोत्रीय लड़के का दत्तक दान करके विवाह संभव हो सकता है ।
इस विधान में जो माँ-बाप लड़के को गोद लेते हैं। विवाह में उन्हीं का नाम आता है।
वहीं ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष के अनुरूप यदि एक ही रक्त समूह वाले वर-कन्या का विवाह करा दिया जाता है तो उनकी होने वाली संतान विकलांग पैदा हो सकती है।*
अत: नाड़ी दोष का विचार ही आवश्यक है.*
एक नक्षत्र में जन्मे वर कन्या के मध्य नाड़ी दोष समाप्त हो जाता है लेकिन नक्षत्रों में चरण भेद आवश्यक है.
ऐसे अनेक सूत्र हैं जिनसे नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।
जैसे दोनों की राशि एक हो लेकिन नक्षत्र अलग-अलग हों.
वर-कन्या का नक्षत्र एक हो और चरण अलग-अलग हों.
उदाहरण:-
वर-ईश्वर (कृतिका द्वितीय),
वधू-उमा (कृतिका तृतीया)
दोनों की अंत्य नाड़ी है। परंतु कृतिका नक्षत्र के चरण भिन्नता के कारण शुभ है।
एक ही नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हों:– यह निम्न नक्षत्रों में होगा l*
आदि नाड़ी
*वर*- आर्द्रा, (मिथुन),
*वधू*- पुनर्वसु, प्रथम, तृतीय चरण (मिथुन),
*वर* उत्तरा फाल्गुनी (कन्या)- *वधू*- हस्त (कन्या राशि).
*मध्य नाड़ी *वर*- शतभिषा (कुंभ)- *वधू*- पूर्वाभाद्रपद प्रथम, द्वितीय, तृतीय (कुंभ)
*अन्त्य नाड़ी: *वर*- कृतिका- प्रथम, तृतीय, चतुर्थ (वृष)-
*वधू*- रोहिणी (वृष)
*वर*- स्वाति (तुला)- *वधू*-विशाखा- प्रथम, द्वितीय, तृतीय (तुला)
*वर*- उत्तराषाढ़ा- द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ (मकर)- *वधू*- श्रवण (मकर) —-
*एक नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो*
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
जैसे *वर अनिल*- कृतिका- प्रथम (मेष) तथा *वधू इमरती*-
कृतिका- द्वितीय (वृष राशि)। दोनों की अन्त्य नाड़ी है परंतु राशि भिन्नता के कारण शुभ पाद-वेध नहीं होना चाहिए.
वर-कन्या के नक्षत्र चरण "प्रथम और चतुर्थ" या
"द्वितीय और तृतीय" नहीं होने चाहिएं.
*उक्त परिहारों में यह ध्यान रखें कि वधू की जन्म राशि, नक्षत्र तथा नक्षत्र चरण, वर की राशि, नक्षत्र व चरण से पहले नहीं होने चाहिए।* "अन्यथा नाड़ी दोष परिहार होते हुए भी शुभ नहीं होगा ।"
*उदाहरण देखें :-*
1.वर- कृतिका- प्रथम (मेष), वधू- कृतिका द्वितीय (वृष राशि)-
2.शुभ वर- कृतिका- द्वितीय (वृष),
वधू-कृतिका- प्रथम (मेष राशि)- *अशुभ*
*वैसे तो वर कन्या के राशियों के* *स्वामी आपस में मित्र हो तो वर्ण दोष, वर्ग दोष, तारा दोष, योनि दोष, गण दोष भी ...नष्ट हो जाता है.
*वर और कन्या की कुंडली में राशियों के स्वामी एक ही हो या मित्र हो* अथवा D-9 नवांश के स्वामी परस्पर मित्र हो या एक ही हो तो सभी "कूट-दोष" समाप्त हो जाते हैं.*
*नाड़ी दोष हो तो महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इससे दांपत्य जीवन में आ रहे सारे दोष समाप्त हो जाते हैं.*
नाड़ी दोष का उपचार:-
पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की (१=१) राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है.
दोनों की राशियां एक दूसरे से (४×१०)चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है.
तृतीय और एकादश राशि होने पर (३×११) गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो।
वर और कन्याकी राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु गौर करने की बात यह है कि
राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है |
अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है
Mangalik dosh/Mangal dosh/Muja dosh
मांगलिक दोष
मांगलिक दोष को कुज दोष या मंगल दोष भी कहा गया है।
हिन्दू धर्म में विवाह के संदर्भ में यह दोष बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। सुखद विवाह के लिए अमंगलकारी कहे जाने वाले मंगल दोष के विषय में ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति कि कुंडली में मंगल दोष हो उसे मंगली जीवनसाथी की ही तलाश करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि युवक और युवती दोनों की कुंडली में मंगल दोष की तीव्रता समान है तो ही दोनों को एक दूसरे से विवाह करना चाहिए। अन्यथा इस दोष की वजह से पति-पत्नी में से किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।
किसी भी स्त्री या पुरुष के मांगलिक होने का मतलब यह है कि उसकी कुण्डली में मंगल ग्रह अपनी प्रभावी स्थिति में है। विवाह के लिए कुंडली मिलान करते समय मंगल को 1, 4, 7वें, 8वें और 12वें भाव पर देखा जाता है। यदि कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो जातक को मंगल दोष लगता है। जबकि सामान्य तौर पर इन सब में से केवल 8वां और 12वां भाव ही खराब माना जाता है।
पहला स्थान अर्थात लग्न का मंगल किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को और ज्यादा तेज बना देता है, चौथे स्थान का मंगल किसी जातक की पारिवारिक जीवन को मुश्किलों से भर देता है। मंगल यदि 7वें स्थान पर हो तो जातक को अपने साथी या सहयोगी के साथ व्यव्हार में कठोर बना देता है। 8वें और 12वें स्थान पर यदि मंगल है तो यह शारीरिक क्षमताओं और आयु पर प्रभाव डालता है। यदि इन स्थानों पर बैठा मंगल अच्छे प्रभाव में हो तो जातक के व्यवहार में मंगल ग्रह के अच्छे गुण आएंगे और यदि यह खराब प्रभाव में हैं तो जातक पर खराब गुण आएंगे।
मांगलिक दोष के प्रकार
उच्च मंगल दोष – यदि मंगल ग्रह किसी जातक के जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली में 1, 2, 4, 7, 8वें या 12वें स्थान पर होता है, तो इसे “उच्च मांगलिक दोष” माना जाएगा। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
निम्न मंगल दोष – यदि मंगल ग्रह किसी जातक की जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली में से किसी एक में भी 1, 2, 4, 7, 8वें या 12वें स्थान पर होता है, तो इसे “निम्न मांगलिक दोष” या "आंशिक मांगलिक दोष” माना जाएगा। कुछ ज्योतिषियों के अनुसार 28 वर्ष की आयु होने के बाद यह दोष अपने आप आपकी कुंडली से समाप्त हो जाता है।
मांगलिक व्यक्ति का स्वभाव
मांगलिक व्यक्ति के स्वभाव में आपको कुछ विशेषताएं देखने को मिल सकती हैं, जैसे इस तरह के व्यक्ति दिखने में कठोर निर्णय लेने वाले और बोली में भी कठोर होते हैं। ऐसे लोग लगातार काम करते रहने वाले होते हैं, साथ ही यह किसी भी काम को योजनाबद्ध तरीके से करना पसंद करते हैं। मांगलिक लोग अपने विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होते हैं। ये लोग कठोर अनुशासन बनाते हैं और उसका पालन भी करते हैं। मांगलिक व्यक्ति एक बार जिस काम में जुट जाये उसे अंत तक पूरा कर के ही दम लेता है। ये न तो लड़ाई से घबराते हैं और न ही नए अनजाने कामों को हाथ में लेने से। अपनी इन्हीं कुछ विशेषताओं की वजह से गैर मांगलिक व्यक्ति ज्यादा समय तक मांगलिक व्यक्ति के साथ नहीं रह पाता है।
मंगल दोष से जुड़े मिथक
मंगल दोष के विषय में ज्यादा जानकारी न होने के कारण कई लोग अनेकों तरह की बातें करते हैं, जिसकी वजह से समाज में मंगल दोष से जुड़े कुछ मिथक भी हैं।
यदि मांगलिक और अमांगलिक की शादी कराई जाती है तो उनका तलाक निश्चित है। यह एक ऐसा मिथक है जो अक्सर सुनने में आता है, जबकि हम सभी जानते हैं कि किसी भी शादी को चलाने की ज़िम्मेदारी लड़का और लड़की की समझदारी और उनके के विचारों के मेल-जोल पर निर्भर करती है।
मंगल दोष से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि यदि आप एक मांगलिक हैं, तो आपको पहले किसी पेड़ से विवाह करनी होगी। मंगल दोष से छुटकारा पाने के अनेकों उपाय हैं और वह उपाय आपकी कुंडली की सही गणना करने के बाद ही बताये जा सकते हैं इसीलिए यह जरूरी नहीं कि सभी मांगलिक युवक/युवतियों को पेड़ से ही शादी करनी पड़े।
कुछ लोग यह समझते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मंगलवार को पैदा हुआ है तो वह पक्का मांगलिक हैं जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। मंगल दोष का पता कुंडली देखने के बाद ही लगाया जा सकता है। इसका किसी भी दिन पैदा होने से कोई संबंध नहीं होता है।
मंगल दोष का निवारण
यदि किसी जातक की कुंडली में मांगलिक दोष के लक्षण मिलते हैं तो उन्हें किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह करके ही मंगल दोष के निवारण की पूजा करनी चाहिए। अंगारेश्वर महादेव, उज्जैन (मध्यप्रदेश) में मंगल दोष की पूजा का विशेष महत्व है। यदि यह पूजा अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की जाये तो यह जातक पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है। मंगल दोष निवारण के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे नियम बताए गए हैं जिससे शादीशुदा जीवन में मांगलिक दोष नहीं लगता है।
वट सावित्री और मंगला गौरी का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है। अगर अनजाने में किसी मांगलिक कन्या का विवाह किसी ऐसे व्यक्ति हो जाता है जो दोष रहित हो तो दोष निवारण के लिए इन दोनों व्रत का अनुष्ठान करना बेहद लाभदायी होता है।
यदि किसी युवती की कुंडली में मंगल दोष पाया जाता है तो अगर वह विवाह से पहले गुप्त रूप से पीपल या घट के वृक्ष से विवाह कर लेती है और उसके बाद मंगल दोष रहित वर से शादी करती है तो किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है।
प्राण प्रतिष्ठित किये हुए विष्णु प्रतिमा से विवाह के बाद अगर कन्या किसी से विवाह करती है, तब भी इस दोष का परिहार मान्य होता है।
ऐसा कहा जाता है कि मंगलवार के दिन व्रत रखने और हनुमान जी की सिन्दूर से पूजा करने और उनके सामने सच्चे मन से हनुमान चालीसा का पाठ करने से मांगलिक दोष शांत होता है।
कार्तिकेय जी की पूजा करने से भी इस दोष से छुटकारा मिलता है।
लाल रंग के वस्त्र में मसूर दाल, रक्त पुष्प, रक्त चंदन, मिष्टान और द्रव्य को अच्छी तरह लपेट लें और उसे नदी में प्रवाहित करने दे। ऐसा करने से मांगलिक दोष के लक्षण खत्म हो जाते हैं।गर्म और ताजा भोजन मंगल मजबूत करता है साथ ही इससे आपकी मनोदशा और पाचन क्रिया भी सही रहती है, इसीलिए अपने खान-पान की आदतों में बदलाव करें।मंगल दोष से निबटने का सबसे आसान उपाय है, हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना करना। यह मंगल दोष को खत्म करने में सहायक होता है।कई लोग मंगल दोष के निवारण के लिए मूँगा भी धारण करते हैं। रत्न जातक की कुंडली में मंगल के प्रभाव के अनुसार पहना जाता है
किसी भी युवक या युवती की कुंडली में मंगल दोष का पता लगने पर घरवाले अनगिनत पंडितों के चक्कर में पड़ न जाने कितने उपाय करते हैं जिससे वे अपने पैसे और समय दोनों का नुक्सान करते हैं। यहाँ-वहां भटकने की जगह ज़रूरत होती है तो किसी अनुभवी ज्योतिष से परामर्श लेकर उपाय करने की। किसी मांगलिक व्यक्ति को एक खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने के लिए मंगल दोष की शांति करना बेहद जरूरी होता है।
कुण्डली में दोष विचार-
विवाहके लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए.
कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग , व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के यह शुभ नहीं होता है.
इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग, व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग ..रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है.पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है.
हालाँकि कई स्थितियों में कुण्डली में यह दोष प्रभावशाली नहीं होता है अत: जन्म कुण्डली के अलावा नवमांश और चन्द्र कुण्डली से भी इसका विचार करके विवाह किया जा सकता है |
विवाह- प्रश्न और उत्तर | अष्टकूट मिलान – प्रश्न उत्तर
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- क्या कुण्डली मिलान प्रचलित नाम से करना चाहिए? यदि नहीं तो क्यों ?
- क्या केवल कुण्डली मिलान सुखी दाम्पत्य जीवन दे सकता है ?
- कुण्डली मिलान में क्या – क्या दोष हो सकते हैं ?
- क्या प्रत्येक व्यक्ति कुण्डली मिलान कर सकता है ?
- अष्ट-कूट के अलावा किन-किन बातों का मिलान करना चाहिये?
- कुंडली मिलान के कितने भेद हैं ?
- उत्तर भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
- दक्षिण भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
- अष्ट कूट के कूटों के क्या नाम व क्या अंक हैं ?
- वर्ण का मिलान कैसे किया जाता है ?
- विवाह के लिए वर और कन्या में किसका वर्ण ऊँचा होना चाहिये ?
- अष्टकूट मिलान में वर्ण क्या बतलाता है ?
- अष्टकूट के किस कूट से जातक का व्यवहार पता किया जा सकता है?
- योनि से क्या तात्पर्य है ?
- योनि मिलान कैसे करते हैं ?
- योनि से हम क्या क्या मिलान कर सकते हैं?
- ग्रह मैत्री क्या दर्शाती है ?
- ग्रह मैत्री कैसे देखी जाती है?
- ग्रह मैत्री का क्या महत्त्व है ?
- ‘यदि ग्रह मैत्री हो तो अन्य दोषों में कमी आ जाती है ‘- यह सत्य:हैं ?
- गण कूट के अधिकतम अंक कितने होते हैं?
- गणकूट का मिलान कैसे किया जाता है?
- गण दोष का क्या परिहार होता है ?
- भकूट कूट कैसे मिलते हैं ?
- भकूट कूट कब शुभ होता है ?
- भकूट कूट कब अशुभ होता है ?
- यदि वर-वधु की राशियां २/१२ है तो इसका क्या परिहार है ?
- नाड़ी कूट कैसे मिलाया जाता हैं ?
- नाड़ी कूट के अधिकतम अंक कितने हैं ?
- नाड़ी दोष का क्या परिहार है ?
- दक्षिण भारत व उत्तर भारत की तारा में क्या अन्तर हैं ?
- कौन सी तारा अशुभ होती है?
- यदि दोनों का नक्षत्र एक हो तो क्या सावधानियां होनी चाहिये ?