Drekkana द्रेष्काणवर्ग Dreshkan varga
द्रेष्काण विचार द्वारा जातक के भाई बहनों की प्राप्ति का पता चलाया जा सकता है उसके भाई होंगे या बहनें अधिक होंगी. किस का साथ उसे अधिक प्राप्त होगा या किस के साथ वह अधिक दूरी रखने वाला हो सकता है. इसी के साथ आर्थिक संपन्नता में वह कैसे सहायक बन सकते हैं या उनसे जातक को क्या शुभ लाभ प्राप्त हो सकते हैं इत्यादि तत्थों के समझने हेतु द्रेष्काण बहुत उपयोगी माना जाता है.
वर्ग क्या है ? वर्ग वास्तव में गहो और लग्न का सूक्ष्म विभाजन है। यह इसलिए भी आवश्यक है की एक लग्न मे कई जातक जन्म लेते है। लेकिन हर एक का गुण, शरीर, धन, पराक्रम, सुख, बुद्धि, भार्या, भाग्य एक सा नही होता। अतः यही जानने के लिए वर्ग बनाये जाते है। एक राशि 30 अंशो की है इसके सूक्ष्म विभाजन करने पर कुल सोलह वर्ग बनते है। इनके नाम इस प्रकार है :- 01 लग्न, 02 होरा, 03 द्रेष्काण, 04 चतुर्थांश, 05 सप्तमांश, 06 नवमांश, 07 दशांश, 08 द्वादशंश, 09 षोडशांश, 10 विशांश, 11 चतुर्विंशांश, 12 त्रिशांश, 13 खवेदांश, 14 अक्षवेदांश, 15 भांश, 16 षष्टयांश (1 / 60)
षट्वर्ग : लग्न, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, द्वादशांश, त्रिशांश ये छः वर्ग होते है।
सप्तवर्ग : उपरोक्त षट्वर्ग मे सप्तांश जोड़ देने पर सप्तवर्ग हो जाते है।
दसवर्ग : उपरोक्त सप्तवर्ग मे दशांश, षोड़शांश, षष्टयांश जोड़ देने पर दस वर्ग होते है।
राशि (30 अंश) के तीन भाग करने पर प्रत्येक 10 अंश का होता है।
इसे ही यानि राशि के तृतीय भाग को द्रेष्काण कहते है।
लग्न व ग्रह की राशि के 10 अंश अर्थात प्रथम द्रेष्काण मे द्रेष्काण उसी राशि का होता है।
10 से 20 अंश अर्थात द्वितीय द्रेष्काण उसी राशि से पांचवी राशि का होता है।
तृतीय द्रेष्काण 20 से 30 अंश उस राशि से नौवी राशि का द्रेष्काण होता है।
द्रेष्काण तालिका
राशि | पहला द्रेष्काण (0 से 10 अंश तक) | दूसरा द्रेष्काण (10 से 20 अंशों तक) | तीसरा द्रेष्काण (20 से 30 अंशों तक) |
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मेष | मेष(मंगल) | सिंह(सूर्य) | धनु(गुरू) |
वृष | वृष(शुक्र) | कन्या(बुध) | मकर(शनि) |
मिथुन | मिथुन(बुध) | तुला(शुक्र) | कुम्भ(शनि) |
कर्क | कर्क(चंद्रमा) | वृश्चिक(मंगल) | मीन(गुरू) |
सिंह | सिंह(सूर्य) | धनु(गुरू) | मेष(मंगल) |
कन्या | कन्या(बुध) | मकर(शनि) | वृष(शुक्र) |
तुला | तुला(शुक्र) | कुम्भ(शनि) | मिथुन(बुध) |
वृश्चिक | वृश्चिक(मंगल) | मीन(गुरू) | कर्क(चंद्रमा) |
धनु | धनु(गुरू) | मेष(मंगल) | सिंह(सूर्य) |
मकर | मकर(शनि) | वृष(शुक्र) | कन्या(बुध) |
कुम्भ | कुम्भ(शनि) | मिथुन(बुध) | तुला(शुक्र) |
मीन | मीन(गुरू) | कर्क(चंद्रमा) | वृश्चिक(मंगल) |
द्रेष्काण के स्वामी देवता के गुणधर्म का विवेचन भी किया गया है। ये गुणधर्म भी किसी-किसी जातक मे पाए जाते है। प्रथम द्रेष्काण के नारद, द्वितीय के अगस्त्य, तृतीय के दुर्वासा है। प्रथम द्रेष्काण 00 से 10 अंश को नारद द्रेष्काण कहते है। मुनि नारद ब्रम्हा के पुत्र विष्णु भक्त है। तीनो लोक मे सामान गति से विचरण करते है। देव-मानव-दैत्य इन्हे परम हितेषी मानते है। ये परम बुद्धिमान, वीणा वादक, हरि कीर्तन प्रेमी, भक्ति मार्ग प्रदर्शक, पर्यटनी, लीला रसिक, रहस्य द्योतक, सन्देश वाहक है। लड़ाना-भुझाना (नारद विद्या) इनका स्वाभाव है। इनके गुणधर्म किसी-किसी जातक* मे पाए जाते है।
द्वितीय द्रेष्काण 10 से 20 अंश को अगस्त्य द्रेष्काण कहते है। मुनि अगस्त्य दृढ़ निश्चय, योग व तपोबल की मूर्ति है। जो सज्जन की सहयता, सेवा, और दुष्टो का दमन करते है। इन्होने सारे समुद्र का जल पी लिया था। विध्याचल को झुकाकर उसकी पीठ पर चढ़कर दक्षिण भारत मे जा बसे थे। राम विजय के लिए आदित्य स्तोत्र की रचना की थी। इसमे जन्मा जातक दृढ़ निश्चयी, अदम्य साहसी, संतजन सहायक, दुर्जनो का दमन करने वाला, पराक्रमी होता है।
तृतीय द्रेष्काण 20 से 30 अंश को दुर्वासा कहते है। मुनि दुर्वाशा अत्रि व अनुसूया के पुत्र है। ये बहुधा वस्त्राभूषण और भवन से उदासीन, उत्कृष्ट तपोबली, महा क्रोधी है। इन्हे नियम की भूल असह्य है। इनके शाप से अनेक राजाओ ने दुःख, कष्ट सहन किया है। जातक मुंहफट, मलिन वस्त्र धारी, क्रोधी, अभिमानी, अधीर, कष्ट देने वाला होता है। ऐसे जातक नियम पालन, कर्म, कर्तव्य मे निष्णात होते है।
द्रेष्काण फल विचार
जन्म लग्न का द्रेष्काण जन्मांग मे जिस राशि मे स्थित हो उस राशि तुल्य भाई होते है। वही देष्काणेश यदि सौम्य ग्रह से युक्त हो, तो भाई चिरंजीवी होते है। वही द्रेष्काणेश पाप-अशुभ युक्त हो, तो भाई मृत्यु या कष्ट पाते है। लग्नेश की द्रेष्काणेश के साथ जैसी नैसर्गिक मित्रता हो, वैसा ही भइओ के साथ सुख, प्रमादि होता है। (लग्नेश द्रेष्काणेश की मित्रता मे भ्रात सुख, प्रेमादि ; सम मे उदासीनता ; शत्रु मे शत्रुता आदि) अर्थात द्रेष्काणेश के साथ जो ग्रह युक्त हो उनकी मित्रादिवत भ्रात सुख, प्रेमादि होता है।
द्रेष्काणेश युक्त ग्रह पुरुष संज्ञक हो, तो भाई और स्त्री संज्ञक हो तो बहिन होती है। द्रेष्काण लग्न पुरुष सज्ञक हो, तो भाई और स्त्री संज्ञक हो, तो बहिन होती है। जन्म लग्न पुरुष सज्ञक हो और लग्नेश, द्रेष्काणेश की मित्रता हो, तो भाई व उनका सुख भी प्राप्त होता है। जन्म लग्न स्त्री संज्ञक हो और लग्नेश, द्रेष्काणेश की मित्रता हो, तो बहिन और उनका सुख भी प्राप्त होता है।
द्रेष्काणेश (द्रेष्काण का स्वामी ग्रह) छठे, आठवे हो, तो अपने ही दूर स्व शरीर का धात होता है।
स्पस्टीकरण :- द्रेष्काणेश जन्म मे अशुभ (पाप, शत्रु) ग्रह से दृष्ट या युत हो, तो ही उपरोक्त फल होता है।
विशेष फल :
द्रेष्काणेश द्रेष्काण मे जिस राशि मे हो, उस राशि के अंक समान भाई बहन की संख्या होगी। द्रेष्काणेश जितने अशुभ ग्रह से युत अथवा दृष्ट हो उतने ही भाई बहन का नाश होता है। द्रेष्काणेश जितने शुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो उतने ही भाई बहन स्वस्थ और जीवित रहते है।
द्रेष्काणेश जन्म कुण्डली मे चन्द्र के साथ शुभ ग्रह से युत हो, तो सुन्दर, सुडोल शरीर, अधिक रोम वाला होता है। चंद्र युक्त द्रेष्काणेश अशुभ ग्रह से युत हो, तो जातक कर्ण रोगी, बंधु विरोधी, शत्रु विरोधी होता है।
द्रेष्काणेश मंगल जन्म कुंडली मे आठवे हो, तो उसका भाई वृक्ष या अन्य स्थान से गिरकर मरता है या मरण तुल्य कष्ट पाता है। द्रेष्काणेश जन्म कुण्डली मे गुरु, शनि के साथ हो, तो जातक का मरण विष से होता है। द्रेष्काणेश सूर्य, मंगल आठवे हो, तो आग व बिजली से भय होता है। द्रेष्काणेश जन्म कुंडली मे आठवे हो, तो हाथ मे कोई चिन्ह होता है। द्रेष्काणेश जन्म कुंडली मे आठवे अशुभ ग्रह से युत हो, तो माता या स्वयं को हिक्का (हिचकी) रोग होता है। यदि शुभ ग्रह साथ हो, तो जातक अभिमानी, प्रतापी होता है। लग्न के द्रेष्काण का स्वामी छठे स्थान मे स्थित हो, तो उस भाव मे जो राशि अंक हो उतने मास मे शिशु को मृत्यु भय रहता है।
द्रेष्काण लग्न फल :
सूर्य के द्रेष्काण मे जातक मेला-कुचेला, गन्दा रहन-सहन वाला, शूरवीर, स्त्री प्रिय, क्रूर, पापी, साहसी, कुकर्म मे निपुण, मूर्ख, बुरो का पक्षधर, नष्ट होने वाला, गुरु पत्नी से व्यभिचारी, अल्प संतानि, जुंए में रत, कंजूस, दुर्जन, बकवादी, दुराचारी होता है।
अन्यत्र - तीनो द्रेष्काण का स्वामी सूर्य हो, तो जातक तेज, कलह प्रिय, दानी, शीघ्र भड़कने वाला, ब्राह्मण व देव का द्वेषी, कपटी, पाखण्ड पूर्ण होता है।
चन्द्रमा के द्रेष्काण मे जातक सुन्दर शरीर, गोल मुख, शिल्पज्ञ, बकवादी, विधुर, कभी भी नष्ट होने वाला, शास्त्र मे मंदबुद्धि, सुशील, दयालु, तेजस्वी, चंचल, धर्म और अधर्म दोनों मे रत, विदेशी कामकाज मे कुशल होता है।
अन्यत्र - चन्द्रमा के तीनो द्रेष्काण मे जातक निश्चय ही भाग्यशाली, धन संपन्न, गुरु भक्त, प्रसिद्ध, कीर्तिवान, पुत्र व मित्रो युक्त, भाई-बंधु द्वारा पूजक होता है।
मंगल के द्रेष्काण मे जातक नीच मलिन स्वभाव (गंदगी पसंद) क्रूर, धन विहीन, पापी, असहनशील, पुत्रधन से विहीन, निष्ठुर, निर्दयी, दुराचारी, क्षीण देह वाला, पेटू, क्रोधी, रोग से दुःखी, नौकर या सेवक, निर्गुणी (गुण समूह का त्यागी) होता है।
अन्यत्र - मंगल के तीनो द्रेष्काण मे जातक क्षीण शरीर, घायल या निर्बल क्रूर, मारे गये भाई व पत्नी वाला, विषयी, प्रतापहीन, पाप व व्यसन मे रत होत्ता है।
बुध के द्रेष्काण मे जातक बुद्धि कुशल, राजा से सम्मानित, दीर्घायु, बलवान, शांत, बहु पुत्र वाला, पवित्र, यशस्वी, धर्म ज्ञान मे रत, अप्रमादी, पतिव्रता का प्रिय, शास्त्रज्ञ, कुलभूषण, दानी, संतुष्टी होता है।
अन्यत्र - बुध ग्रह तीनो द्रेष्काण मे स्वामी हो, तो जातक सौम्य, रोगी, आलस्य रहित, धनवान, धन-धान्य से संपन्न होता है।
गुरु के द्रेष्काण मे जातक दीर्घायु, निरोगी, बुद्धिमान, प्रियदर्शन (सुन्दर) गुणवान, स्वतंत्र रहने वाला, शांत, मोक्ष अभिलाषी, स्व स्त्री से स्नेह पाने वाला, अन्य स्त्रियो मे निरत, धनवान होता है।
अन्यत्र - तीनो द्रेष्काण का स्वामी गुरु होने पर जातक तेजस्वी, सर्व सुख सम्पन्न , धार्मिक, वैभव पूर्ण जीवन, स्वजनो से प्रेम करने वाला होता है।
शुक्र के द्रेष्काण मे अच्छा शरीर, राजा से सम्मानित, सर्वज्ञ, मनुष्य से प्रेम करने मे निपुण, दानी, स्त्रियो का रक्षक, रत्नादि से युक्त, श्रेष्ट स्त्री-पुत्र वाला, दयालु, मोटा, सत्यनिष्ठ, खुले दिल वाला, धर्म मे अनुरक्त होता है।
अन्यत्र - तीनो द्रेष्काण मे शुक्र होने पर जातक धनवान, शास्त्र पारंगत, रोग एवं पाप से मुक्त, धन और वैभव मे निरंतर वृद्धिवान, शांत, उदार संपन्न होता है।
शनि के द्रेष्काण मे जातक नीच, मलिन, क्रूर, ठग, दुराचारी, कंजूस, पुत्र धन से रहित, अवगुणी, ग्रुरु पत्नी या सौतेली माँ से व्यभिचारी, असहनशील, क्रोधी, बकवादी, विषाद युक्त, कामातुर होता है।
अन्यत्र - शनि के तीनो द्रेष्काणो मे जातक कंजूस, धर्म व अर्थ से हीन, धातु तस्कर, सुखी नही रहने वाला, बर्बर, दयाहीन, दुराचारी, नास्तिक होता है।
ग्रह द्रेष्काण से तात्पर्य ग्रह जिन जिन राशियो का स्वामी है। जैसे - मंगल = मेष व वृश्चिक।तीनों द्रेष्काण अर्थात प्रथम द्वितीय तृतीय मे से एक, किन्तु फल तीनो मे सामान है।
मेषादि राशियो का पृथक-पृथक द्रेष्काण फल
मेष : मेष के प्रथम द्रेष्काण मे जातक दानी, तेजस्वी, पराक्रमी, ऊंच-नीच देखने वाला, भीष्म प्रतिज्ञा वाला, कलह प्रिय, स्त्रीवान, भाइयो को उग्र दण्ड देने वाला होता है।
मेष के द्वितीय द्रेष्काण मे जातक की स्त्री चंचल, सैरसपाटे करने वाली, प्रेम करने वाली, गीत प्रिय, एवं मनस्वी होती है। जातक मित्र और धन युक्त, *भ्रष्ट महिलाओ की संगति वाला पर धन भोगी होता है।
मेष के तृतीय द्रेष्काण मे जातक गुणवान, दोषी, बलवान, साहसी, राज सेवक, स्वजनो का प्रिय, अत्यंत धार्मिक, स्वाभिमानी, स्त्री का आदर करने वाला होता है।
* भ्रष्ट महिला अर्थात नारिया जो नाटक, अभिनय, मॉडलिंग, विज्ञापन, सिनेमा, क्लब, जनसंचार मे कार्यरत !
वृषभ : वृषभ के प्रथम द्रेष्काण मे जातक शराब, भोजन, नारी के वियोग मे संतृप्त (दुःखी) वस्त्र-अलंकार से युक्त, युवतियो के समान कोमल और सुन्दर होता है।
वृषभ के द्वितीय द्रेष्काण मे जातक सौम्य शरीर, सुभग स्त्री वाला, रूपवान, धनवान, दृढ़ प्रतिज्ञ, बुद्धिमान,स्त्रियो का लोभी एवं प्रिय होता है।
वृषभ के तृतीय द्रेष्काण मे जातक चतुर, वीर, पापी, मंद भाग्य वाला, दूसरो धन लेने वाला, वय यानि उम्र के अंत मे दुःखी होता है।
मिथुन : मिथुन के प्रथम द्रेष्काण मे जातक स्थूल एवं उत्तम अंग वाला, धन से युक्त, लम्बा शरीर, जुंआरी, राजा का विश्वास पात्र, मिथ्याचारी, प्रतिभावान होता है।
मिथुन के द्वितीय द्रेष्काण मे जातक छोटा चेहरे वाला, ठिगना, सुन्दर शरीर, अल्प पतले बाल वाला, विनम्र, कोमल प्रकृति, बुद्धिमान, सौभाग्यशाली, यशस्वी होता है।
मिथुन के तृतीय द्रेष्काण मे जातक स्त्री द्वेषी, लम्बा बलशाली पुष्ट शरीर, अधिक खाने वाला, रूखे नख और रूखी हाथ पैर की त्वचा वाला होता है।
कर्क : कर्क राशि के प्रथम द्रेष्काण मे जातक देवताओ और ब्राह्मण का पूजक, गौर वर्ण, उपयुक्त कार्यकारी, सुन्दर, मृदुभाषी, सेवा कार्य मे तत्पर, सुभग होता है।
कर्क के द्वितीय द्रेष्काण में जातक लोभी, बकवादी, स्वप्नरत (कल्पना लोक विचारणी) स्त्रियो के रंग रूप से शीघ्र प्रभावित, अभिमानी, विलासी, चंचल, अनेक रोग युक्त होता है।
कर्क के तृतीय द्रेष्काण मे जातक की स्त्री चंचल, समृद्धशाली होती है। जातक विदेश गमन करने वाला, शराब प्रिय, सज्जन, वन-जंगल-जल यात्री, रत्न- आभूषणो युक्त, फूलो से प्रेम करने वाला होता है।
सिंह : सिंह के 00 से 10 अंश मे जातक दानी, बलवान, शत्रु स्वामी विजेता, अधिक धन का इच्छुक, मित्रवान, राज्य मे उच्च पदवान, साहसी होता है।
सिंह के 10 से 20 अंश मे जातक उच्च अभिलाषी, दानी, दृढ़ निश्चयी, बलवान, प्रभुता संपन्न, लड़ाई-झगडे का इच्छुक, सुखी, वेद-धर्म मे रुचिवान, बुद्धिमान होता है।
सिंह के 20 से 30 अंश मे जातक लोभी, दुविधाग्रस्त, दूसरो का धन हड़पने वाला, स्वस्थ, जिद्दी, अधिक बुद्धिमान, सम शरीर, अल्प संतानी, साहसी होता है।
कन्या : कन्या के प्रथम द्रेष्काण मे जातक सुन्दर, सौम्य पकृति, मृदुभाषी, लम्बा, कोमल शरीर, विनम्र, स्त्री से लाभी, समृद्धशाली, लंबे बाल, कोमल भूरे नयन वाला होता है।
कन्या के दूसरे द्रेष्काण मे जातक धैर्यवान, विदेशगामी, कला-कहानी में पंडित, लड़ाई-झगडे मे निपुण, अधिक बोलने वाला, आदेश मानने वाला होता है।
कन्या के तृतीय द्रेष्काण मे जातक गीत-संगीत मे रुचिवान, जंगली स्त्री का स्वामी, विशाल नेत्र व सिर, छोटा शरीर (बोना, नाटा) राजा का कृपा पात्र होता है।
तुला : पहला द्रेष्काण हो, तो जातक कामदेव के सामान अति सुन्दर, निपुण, यज्ञादि कर्म करने वाला, छल-छिद्री (श्यामकला) व्यापारी, धैर्यवान होता है।
दूसरा द्रेष्काण हो, तो जातक कमल नेत्र वाला, अच्छा बोलने वाला, साहसी, विलासी, ख्याति प्राप्त, स्ववंश वृद्धि करने वाला, बुजुर्गो का सेवक होता है।
तीसरा द्रेष्काण हो, तो जातक चंचल, कपटी, कृतघ्न, कुरूप, टेड़े स्वभाव वाला, नष्ट मित्र, यश का इच्छुक, पापात्मा, अल्प बुद्धि होता है।
वृश्चिक : वृश्चिक के पहले द्रेष्काण मे जातक गौर वर्ण, साहसी, दृढ़ प्रतिज्ञ, रण का इच्छुक, विशाल नेत्र, स्थूल शरीर, कलह प्रिय होता है।
वृश्चिक के द्वितीय द्रेष्काण मे स्वादिष्ट भोजन करने वाला, चतुर, स्वर्ण आभा युक्त त्वचा वाला, सुन्दर, दूसरो के धन से युक्त, शीलवान कला मे रुचिवान होता है।
वृश्चिक के तृतीय द्रेष्काण मे दोनो भोंहो से रहित, त्वचा पर अल्प रोम, दीर्घ बाहु, पीत नेत्र, लम्बोदर, दूसरो का धन हड़पने वाला, पतित, धैर्यवान होता है।
धनु : प्रथम द्रेष्काण मे जातक गोल चेहरा व नेत्र, जाति का सरगना (प्रमुख) न्याय प्रिय, सुआचरणी, सौम्य कोमल, स्वअर्जित धन से धनी होता है।
द्वितीय द्रेष्काण मे जातक धर्मज्ञ व शास्त्रज्ञ, उत्कृष्ट वक्ता, यज्ञादि धार्मिक आयोजन मे अग्रणी, सुप्रसिद्ध मंत्रवेत्ता, तीर्थाटन करने वाला होता है।
तृतीय द्रेष्काण मे जाति और बंधुओ मे प्रधान, चतुर, धार्मिक, स्त्रीवान, कुछ कामुक, पर स्त्री गामी, रूप-यश का इच्छुक, सफलता पाने वाला होता है।
मकर : मकर के 00 से 10 अंश मे जातक लम्बी भुजा, श्याम वर्ण, प्रसिद्ध, यशवान, मुर्ख, कम बोलने वाला, स्त्रियो को जीतने वाला, आकर्षक चेष्टा वाला होता है।
मकर के 10 से 20 अंश मे जातक छोटे चहेरे वाला, दूसरो की स्त्री व धन का अपहरण कर्ता, चतुर, स्त्रियों की गति जानने वाला, दानशील होता है।
मकर के 20 से 30 अंश मे जातक वाचाल (निरर्थक बोलने वाला) नीच (कलंकी) कृश, माता-पिता से विमुक्त (अलग) विदेश जाने वाला, व्यसनी होता है।
कुम्भ : कुम्भ के पहले द्रेष्काण मे जातक स्त्रीवान, सुखी दाम्पत्य जीवन, सुखी, यशस्वी, लम्बा, परिश्रम से धनी, धर्म मे निष्ठावान, अधिक प्रभावी, परिश्रम से धनी, राजा का सेवक होता है।
कुम्भ के दूसरे द्रेष्काण मे जातक लोभी, समृद्धशाली, मृदुभाषी, गौरवर्ण, हास्य विनोद प्रिय, अधिकार से बोलने वाला, बुद्धिमान, अधिक मित्र वाला होता है।
कुम्भ के तीसरे द्रेष्काण मे जातक लम्बा व पतला, धूर्त, प्रतापी, झूठ बोलने वाला, पतले व छोटे हाथ वाला, नाचने वाला, कठोर ह्रदयी, विदीर्ण नेत्र वाला होता है।
मीन : पहले भाग 00 से 10 अंश मे जातक मादक भूरे नेत्र, गौरवर्ण, मेघावी, धार्मिक कार्यो मे रत, प्रेमी, सुखी, जल क्रीड़ा करने वाला, विनीत होता है।
दूसरे भाग 10 से 20 अंश मे जातक आर्यजनो का सम्मानी, पवित्र स्वादिष्ट भोजन करने वाला, पर धन इच्छुक, श्रेष्ट स्त्री वाला, प्रतिभाशाली, श्रेष्ट वक्त होता है।
तीसरे भाग 20 से 30 अंश मे जातक किंचित श्यामल वर्ण, उदार, ललित कला निपुण, बड़े पैर वाला, मित्र को दानी, स्वादिष्ट भोजन प्रेमी, विनोदी स्वाभाव वाला होता है।
समस्त ग्रहो के द्रेष्काण मे सूर्य फल (तीनो द्रेष्काण)
सूर्य के द्रेष्काण मे सूर्य फल - जातक उद्विग्न चित्त वाला, विदेशगामी, संघर्षशील, प्रतापी, बलवान, दूरस्थ प्रदेश मे बसने वाला होता है।
चंद्र के द्रेष्काण मे सूर्य फल - जातक धर्मिष्ठ, कुटुंब-भाई-बहन वाला, पुण्यवान, पवित्र आत्मा, लोक प्रिय, सब धनो से युक्त, स्त्रीवान होता है।
मंगल के द्रेष्काण मे सूर्य फल - जातक शत्रु व बाधा युक्त, दुःखी, नीच समागम करने वाला, धन व संतान सुख मे हानि पाने वाला होता है।
बुध के द्रेष्काण मे सूर्य फल - जातक धर्माचरणी, कामी, विलासी, विचित्र बोलने वाला (अदभूत असाधारण तथ्य) संत विद्वान देवताओ का भक्त होता है।
गुरु के द्रेष्काण मे सूर्य फल - जातक विनीत, अथिति व आथित्य प्रेमी, सर्वगुण संपन्न, मेघावी, व्याक्य विशारद (तर्क निपुण) होता है।
शुक्र के द्रेष्काण मे सूर्य फल - जातक सुखी, देव-गुरु-विद्वानो का सम्मानी, निरोगी, महिलाओ का प्रेम भाजन, सत्यवादी होता है।
शनि के द्रेष्काण मे सूर्य फल - जातक पापी, रोगी, कृतघ्न, पुत्र व्यसनी और पीड़ा देने वाला, दुराचारी, सगे-सम्बन्धी और बन्धुजनो से त्यक्त होता है।
समस्त ग्रहो द्रेष्काण मे चंद्र फल (तीनो द्रेष्काण)
सूर्य के द्रेष्काण मे चंद्र फल - जातक पापी, दुर्बल, बर्बाद किया हुआ, आत्म सम्मान से वंचित, निर्गुणी, अल्प धनवान, दुर्भाग्यशाली, दूसरो की स्त्री का लोभी होता है।
चंद्र के द्रेष्काण मे चंद्र फल - जातक बुद्धिमान, बहु मित्र वाला, भाई-बंधु युक्त, सुखी, सुन्दर, पापो को नष्ट करने वाला, पुत्रवान होता है।
मंगल के द्रेष्काण मे चंद्र फल - जातक प्रतापहीन, क्रियाहीन, पर धन लोभी, सहस्त्र दुःखो से युक्त, मित्रहीन अलसी, अल्प बुद्धि होता है।
बुध के द्रेष्काण मे चंद्र फल - जातक सौम्य, सुभग, समृद्धशाली, सर्वगुण संपन्न, विद्यावान, विद्वान, प्रतिभा संपन्न, सब कलाओ मे निपुण होता है।
गुरु के द्रेष्काण मे चंद्र फल - जातक सदाचारी, शास्त्र प्रेमी, सुशील, अनेक मित्र, अल्प क्रोधी, आथित्य प्रेमी, देव गुरु का भक्त होता है।
शुक्र के द्रेष्काण मे चंद्र फल - जातक श्रेष्ट वाहन से युक्त, स्त्री प्रिय, उदार चेष्टावान, सत्य प्रिय, कलाओ मे कुशल, प्रशाशन से सम्मानित होता है।
शनि के द्रेष्काण मे चंद्र फल - जातक मन व शरीर रोगी, दीन, दुःखी, पापी, विकृत, अनैतिक आचरण करने वाला, जीवन मे अनेक कष्ट पाने वाला होता है।
वराहमिहिर अनुसार :
चंद्र जिस राशि मे होता है उसके अनुरूप ही फल दिया करता है। चन्द्रमा अपने स्वयं या मित्र (सूर्य, बुध) के द्रेष्काण मे हो, जातक गुणी, आकर्षक, प्रतिभावान होता है। चन्द्रमा समक्षेत्री (मं, गु, शु, श) हो, तो मिश्रित परिणाम होते है। चन्द्रमा शत्रुक्षेत्री या पापयुक्त हो तो जातक गुणहीन अनाकर्षक होता है।
समस्त ग्रहो द्रेष्काण मे मंगल फल (तीनो द्रेष्काण)
सूर्य के द्रेष्काण मे मंगल फल - जातक मुख व नेत्र रोगी, पंडित, सुशील, अल्प संतानी, धन वैभव से हीन, दुःखी, दुर्जन, प्रतापहीन होता है।
चंद्र के द्रेष्काण मे मंगल फल - जातक क्रूर, दुष्ट, दुर्जन, द्वेषी, धर्म प्रेमी, प्रसिद्ध, उदार, गुणी, नष्ट शत्रु, निजजन की चिंता करने वाला होता है।
मंगल के द्रेष्काण मे मंगल फल - जातक पराश्रित, पर अन्न खाने वाला, रोगी, महाक्रोधी, प्रतापहीन, अल्प बुद्धि, चरित्रहीन, दुराचरणी होता है।
बुध के द्रेष्काण मे मंगल फल - जातक गंभीर प्रकृति, उन्नतिशील, दृढ़ सकंल्पी, समृद्धशाली, विभिन्न धन युक्त, उच्च पदाधिकारियो से सम्मानित होता है।
गुरु के द्रेष्काण मे मंगल फल - जातक आभाव ग्रस्त, पीड़ा युक्त, दुःखी, प्रसिद्ध, ख्याति प्राप्त, कुवेशी, विद्वानो का आदर करने वाला, विनम्र, बुद्धिमान, देवताओ का सेवक होता है।
शुक्र के द्रेष्काण मे मंगल फल - जातक सुरुचिपूर्ण, स्त्री प्रिय, स्वर्ण-मणि-गज युक्त, बल स्फूर्ति तथा पौरुष युक्त, धन व वाहन से सुखी, साहसी होता है।
शनि के द्रेष्काण मे मंगल फल - जातक मुर्ख, सतगुण व सत्चरित्र से रहित, व्यर्थ द्वेषी, कलह प्रिय, कुवेशी, अश्लील, प्रियजन वियोग होता है।
समस्त ग्रहो द्रेष्काण मे बुध फल (तीनो द्रेष्काण)
सूर्य के द्रेष्काण मे बुध फल - जातक कलंक और अपयश का भागी, क्रूर, हताश, ऋणी, धोखेबाज, कुरूप, कपटी, असंतुष्ट, धोटालेबाज, कामी होता है।
चंद्र के द्रेष्काण मे बुध फल - जातक शत्रु भय से मुक्त, श्रेष्टजन सेवक, अनेक भाषाओ का ज्ञाता, क्लेश कलह प्रिय, दुःखी होता है।
मंगल के द्रेष्काण मे बुध फल - जातक शुभ व मंगल वैदिक कार्यो में रत, परम्परा निष्ठ, संयुक्त परिवार मे रहने वाला होता है।
बुध के द्रेष्काण मे बुध फल - जातक सुन्दर, आकर्षक, भाग्यशाली, सुभग, धर्म यज्ञ व्रतादि मे रत, आर्यजन (लोकहित) को दानी, मित्रवान होता है।
गुरु के द्रेष्काण मे बुध फल - जातक प्रतापी, धनी, सुन्दर, स्त्री प्रिय, पराक्रमी, अधिक बल-वीर्य-पौरुष युक्त, स्वस्थ, सुखी, काम सुख सक्षम होता है।
शुक्र के द्रेष्काण मे बुध फल - जातक धनवान, अपार सम्पदा युक्त, चतुर, सभ्य, सुसंकृत, खजाने वाला, शत्रुहीन, प्रसन्नचित्त, प्रशासनिक अधिकारी या पदाधिकारी से प्रशंसित होता है।
शनि के द्रेष्काण मे बुध फल - जातक ऋणी, विवाद ग्रस्त, दुर्बल देह, दूरस्थ देश या विदेश वासी, धन नष्ट करने वाला, अलगाववादी, फुट डालने वाला होता है।
समस्त ग्रहो द्रेष्काण मे गुरु फल (तीनो द्रेष्काण)
सूर्य के द्रेष्काण मे गुरु फल - जातक कंजूश, क्रूर, निष्क्रिय, निन्दित, निर्लज्ज, अनैतिक धन (तस्करी, कालाबाजारी, रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी) कमाने वाला होता है।
चंद्र के द्रेष्काण मे गुरु फल - जातक चित्ताकर्षक, रूपवान, दानी यशस्वी, सज्जन, प्रसिद्ध, बहुत सम्मान पाने वाला, धनयुक्त, देव- ब्राह्मण भक्त होता है।
मंगल के द्रेष्काण मे गुरु फल - जातक दस्युजन (गुण्डे मवाली) से भयभीत, पित्तरोगी, स्वजन तथा शत्रु से कष्ट, धनहानि, बकवादी, नेत्र रोगी होता है।
बुध के द्रेष्काण मे गुरु फल - जातक कुल मे प्रसिद्ध, विद्या विनीत, विद्वान, सज्जन, धार्मिक, सौम्य आकृति, विनम्र, गुणी होता है।
गुरु के द्रेष्काण मे गुरु फल - जातक सुशील, शत्रुहंता, क्षमाशील, धैर्यवान, राज सम्मान युक्त, धन वैभव और पशु धन से संपन्न, सुखी, गुरु भक्त होता है।
शुक्र के द्रेष्काण मे गुरु फल - जातक स्वर्ण-रत्न-आभूषण से संपन्न, हाथी-घोड़े (उच्च वाहन) आदि से युक्त, सुखी, राज्य सम्मानी होता है।
शनि के द्रेष्काण मे गुरु फल - जातक कुबुद्धि, महाक्रोधी, स्वपीड़न या आत्महत्या की प्रवृत्ति वाला, विषादग्रस्त, पर धन लोभी, मित्रहीन, अनेक दुःख पाने वाला, विध्वंसक होता है।
समस्त ग्रहो द्रेष्काण मे शुक्र फल (तीनो द्रेष्काण)
सूर्य के द्रेष्काण मे शुक्र फल - जातक विषम, कु स्त्री वाला, सुखहीन, उग्र, नीच, निष्ठुर, हत्यारा, निर्धन, आत्म सम्मान से हीन, संकुचित वृत्ति वाला, महाक्रोधी होता है।
चंद्र के द्रेष्काण मे शुक्र फल - जातक सुखी, विद्वान्, विनम्र, विनीत, माता-पिता का भक्त, तेजस्वी, धार्मिक, कृतज्ञ होता है।
मंगल के द्रेष्काण मे शुक्र फल - जातक चोर, धूर्त, कपटी, धोखेबाज, छली (ठग) छोटे-मोटे रोग से रोगी, व्यसनी मायावी होता है।
बुध के द्रेष्काण मे शुक्र फल - जातक सुभग, साहसी, भाग्यशाली, धूर्त (कुलटा) स्त्री स्नेह भाजन, स्वर्ण-रत्न व श्रेष्ट संतान युक्त, बलि होता है।
गुरु के द्रेष्काण मे शुक्र फल - जातक अधिक सुन्दर, सत्यवान, क्षमाशील, धनी, समस्त कला निपुण, सहनशील, जन प्रेमी, उत्कृष्ट व्यक्तित्व वाला होता है।
शुक्र के द्रेष्काण मे शुक्र फल - जातक साहसी, धनी, जाति व कुटुम्ब प्रमुख, कुल श्रेष्ठ, अव्यसनी, सुन्दर, अध्यात्म विद्या रत होता है।
शनि के द्रेष्काण मे शुक्र फल - जातक भाई-बंधु रहित, पर स्त्री रत, कुकर्मी, दुष्टो का संगी, कैदी, हत्यारा, कुसेवक होता है। जातक की हत्या हो सकती है।
समस्त ग्रहो द्रेष्काण मे शनि फल (तीनो द्रेष्काण)
सूर्य के द्रेष्काण मे शनि होने पर जातक बहु कन्या वाला, परिश्रमशील, मंदबुद्धि, प्रतापहीन, खिन्नचित्त, कमजोर, टेड़े स्वभाव वाला परन्तु सुखी होता है।
चंद्र के द्रेष्काण मे शनि होने पर जातक धनी, सर्व कला दक्ष, विवेकी, विपक्ष या शत्रु हीन, पुत्र प्राप्ति का इच्छुक, विरोध रहित होता है।
मंगल के द्रेष्काण मे शनि होने पर जातक चोर, धूर्त, धोखेबाज, कपटी, निष्ठुर, नृशंस, निर्मम, निर्लज्ज, हत्यारा, पापी, मित्र हीन होता है।
बुध के द्रेष्काण मे शनि होने पर जातक शास्त्रज्ञ, अनेक क्षेत्रो का ज्ञाता, वैज्ञानिक, प्रशंसित, स्व पत्नी से संतुष्ट, निडर, बहुश्रुत और बहुशास्त्र पारंगत होता है।
गुरु के द्रेष्काण मे शनि होने पर जातक सज्जन, गुरुभक्त, प्रियभाषी, सहिष्णु, बलशाली, विद्वानो से सम्मानित, कुशल वक्ता, सज्जन, श्रेष्ठ स्त्री वाला होता है।
शुक्र के द्रेष्काण मे शनि होने पर जातक धन-धान्य संपन्न, बहुलाभी, सुयोग्य मित्र वाला, शत्रुहीन, व्यसन रहित, व्यापार मे बहुत लाभी होता है।
शनि के द्रेष्काण मे शनि होने पर जातक सदाचारी, स्वस्थ, सुखी, युवाओ का मित्र, विशिष्ट, मित्रवान, राज्य सम्मान प्राप्त, चरित्रवान होता है।
विशेष : द्रेष्काण मे सूर्य केन्द्र या उच्च का हो, तो सेना नायक, मित्रवान, बुद्धिमान होता है। द्रेष्काण मे शुभ ग्रह यदि शुभ स्थान मे हो, तो शुभ फल देता है, समस्त कार्य निर्विघ्न संपन्न होते है। द्रेष्काण मे ग्रह नीच या शत्रुक्षेत्री हो, तो वैसा फल देता है तथा यथा क्रम मे धाव धातादिक देता है।
मानसागरी अनुसार द्रेष्काण फल
⋆ द्रेष्काण मे शुभग्रह स्वराशि या उच्च राशि मे हो, तो वरदात्री, सत्यवादिनी, लक्ष्मी भोगता है। अपने द्रेष्काण मे स्थित सौम्यग्रह केन्द्र या त्रिकोण मे हो, तो जातक धनी, मानी और सर्व कला निपुण होता है।
⋆ द्रेष्काणेश यदि शुभग्रह की राशि मे हो या शुभग्रह या भृगु से दृष्ट हो, तो अनेक सौख्य, निरोगता, मान-यश मे वृद्धि, स्वदेश के कार्य मे विख्यात, दूसरे का विरोधी होता है।
⋆ द्रेष्काणेश चन्द्रमा से युत या दृष्ट हो या मंगल अथवा शुक्र से दृष्ट हो, तो जातक स्व अवस्था अनुसार कर्म से धन प्राप्त करता है।
⋆ द्रेष्काणेश नीच राशिस्थ, शत्रुक्षेत्री या पापयुक्त हो, तो उस राशि संख्या अनुसार जातक जीवन के उस मास या वर्ष मे कष्ट, पीड़ा या मृत्यु प्राप्त करता है। जितने पाप ग्रह से प्रभावित हो उस मास या वर्ष संख्या मे कष्ट, दुःख प्राप्त होता है।
⋆ यदि द्रेष्काणेश जन्म कुंडली मे 6, 8 वे भाव मे पाप दृष्ट या पाप युक्त हो, तो जातक का अनुज ऊंचाई से गिरकर मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त करता है। जातक के हाथ पर चोट का निशान हो सकता है। यदि सूर्य हो, तो विद्युत या अग्नि से, मंगल हो, तो ऊंचाई से और गुरु या शनि हो, तो विष से मृत्यु पाता है।
⋆ यदि द्रेष्काणेश 22 वे द्रेष्काण मे पाप ग्रह से दृष्ट या युक्त हो, तो जातक स्वयं या माता या अनुज को श्वांस रोग होता है तथा 22 वा द्रेष्काण स्वामी अपने रोग से मृत्यु देता है।
22 वा द्रेष्काण यानि अष्टम भाव का प्रथम द्रेष्काण तथा लग्न से 210 अंश दुरी पर होता है। 22 वा द्रेष्काण मृत्यु कारक माना जाता है।
⋆ द्रेष्काणेश उच्च का होकर केन्द्र 1, 4, 7, 10 मे हो, तो जातक नृप, स्वगृही हो, तो धनवान, मित्रगृही हो, तो सम्मान पाता है। द्रेष्काणेश फणफर 2, 5, 8 11 मे उच्च, मित्र या स्वगृही हो, तो राजा के सामान होता है। द्रेष्काणेश आपोक्लिम 3, 6, 9, 12 मे स्वगृही या मित्रगृही हो, तो जातक सबोध संतति वाला, सदाचारी, खेती द्वारा धनी होता है।
⋆ द्रेष्काणेश नीच राशिस्थ या शत्रुक्षेत्री हो, तो उस राशि तुल्य शरीर मे धाव या चोंट का चिन्ह होता है यह राशि द्वारा द्योतित स्थान पर भी होता है।
पाश्चात्य ज्योतिष मे द्रेष्काण Decanetes
भारत से भी ज्यादा महत्व पाश्चात्य ज्योतिष मे द्रेष्काण को दिया जाता है।
द्रेष्काण की गणना कर उस अनुसार फल प्रतिपादन करना वहा की मुख्यता है। प्राचीन शब्द DEKAN को ही DECAN या DACANETES यानि द्रेष्काण कहते है। प्रत्येक द्रेष्काण 10 अंश का होता है यानि भचक्र राशि के तीसरे भाग 30 ÷ 3 = 10 अंश को द्रेष्काण कहते है। शोध अनुसार मूलतः द्रेष्काण व आकृति (DECANS & FACES) का सम्बन्ध वास्तव मे नक्षत्र से है।
अरेबियन भूगोल और खगोल वेत्ता "अबूमज़र" द्वारा प्रतिपादित द्रेष्काण और उनकी रशिया बेबीलोनियन, इजिप्टीयन, परसियन पर आधारित थी। अरब विद्वानो ने इसे आकृति FACES की संज्ञा दी और प्रत्येक राशि मे तीन आकृतिया मानी। "टॉलेमी" ने इसे राशि का विशेष विभाजन माना तथा आकृति (चित्र) व द्रेष्काण (चित्र के भाग) को नक्षत्र प्रतिपादित किया, इनकी गणना 36 है। परन्तु आधुनिक मतावलम्बियो ने इसे मान्य नही किया और कहा कि यह मूल सिद्धांत के विपरीत है।
आधुनिक पाश्चात्य द्रेष्काण सारणी
इस प्रकार आधुनिक मान्यता अनुसार राशि के तृतीय भाग को द्रेष्काण कहा जाता है। प्रत्येक राशि के तीन द्रेष्काण होते है जो गणना में 12 X 3 = 36 है। इनके स्वामियो का निरूपण दो अलग अलग सिद्धांत से किया जाता है। प्राचीन सिद्धांत अनुसार द्रेष्काण स्वामियो की गणना ग्रहो की क्रमबद्धता अनुसार मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, सूर्य, चंद्र से है परन्तु यह प्रचलन में नही है। प्रचलित सिद्धांत भारतीय ज्योतिष अनुरूप ही है। राशि का प्रथम द्रेष्काण उसी राशि का, दूसरा द्रेष्काण उससे पांचवी राशि का, तृतीय द्रेष्काण उससे नौवी राशि का होता है। भारतीय सिद्धांत अनुसार द्रेष्काण के स्वामियो की गणना राशियो के त्रियुग्म यानि तत्व अनुसार ही की जाती है। ग्रहो मे हर्षल व नेप्च्यून की गणना की जाती है।
* जातक = वह प्राणी जिसका विचार किया जा रहा हो।