यम-दीपदान सरल विधि
कार्तिक मासके कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन सायंकाल में घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है।
धनतेरस है। इस दिन यम-दीपदान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता
घर में पहले से दीपक जलाकर यम का दीपक ना निकालें. दीपक जलाने से पहले उसकी पूजा करें.
- किसी लकड़ी के बेंच पर या जमीन पर तख्त रखकर रोली के माध्यम से स्वस्तिक का निशान बनायें.
- फिर एक मिट्टी के चौमुखी दीपक या आटे से बने चौमुखी दीप को उस पर रखें.
- दीप के आसपास तीन बार गंगा जल का छिड़काव करें.
- दीप पर रोली का तिलक लगाएं. उसके बाद तिलक पर चावल रखें.
- दीप पर थोड़े फूल चढ़ाएं.
- दीप में थोड़ी चीनी डालें.
- इसके बाद 1 रुपये का सिक्का दीप में डालें.
- दीप को प्रणाम करें.
यम-दीपदान सरल विधि:
यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए आटे का एक बड़ा दीपक लें। गेहूं के आटे से बने दीप में तमोगुणी ऊर्जा तरंगे एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगे (अपमृत्यु के लिए ये तरंगे कारणभूत होती हैं) को शांत करने की क्षमता रहती है । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं बना लें। उन्हें दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें। प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें। उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी -सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है। दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा (दक्षिण दिशा यम तरंगों के लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशा से यमतरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं) की ओर देखते हुए चार मुँह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें। ‘ॐ यमदेवाय नमः ’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
यम दीपदान का मन्त्र :
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह |
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ||
इसका अर्थ है, धनत्रयोदशीपर यह दीप मैं सूर्यपुत्रको अर्थात् यमदेवताको अर्पित करता हूं। मृत्युके पाशसे वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें।
पूजन विधि
- संध्याकाल में उत्तर की ओर कुबेर तथा धन्वन्तरी की स्थापना करें.
- दोनों के सामने एक-एक मुख का घी का दीपक जलाएं.
- कुबेर को सफेद मिठाई और धन्वन्तरि को पीली मिठाई चढ़ाएं.
- पहले "ॐ ह्रीं कुबेराय नमः" का जाप करें.
- फिर "धन्वन्तरि स्तोत्र" का पाठ करें.
- धन्वान्तारी पूजा के बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा करना अनिवार्य है.
- भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के लिए मिट्टी के दीप जलाएं. धुप जलाकर उनकी पूजा करें. भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के चरणों में फूल चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं. प्रसाद ग्रहण करें
कार्तिक मासके कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन सायंकाल में घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है।
धनतेरस है। इस दिन यम-दीपदान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता
घर में पहले से दीपक जलाकर यम का दीपक ना निकालें. दीपक जलाने से पहले उसकी पूजा करें.
- किसी लकड़ी के बेंच पर या जमीन पर तख्त रखकर रोली के माध्यम से स्वस्तिक का निशान बनायें.
- फिर एक मिट्टी के चौमुखी दीपक या आटे से बने चौमुखी दीप को उस पर रखें.
- दीप के आसपास तीन बार गंगा जल का छिड़काव करें.
- दीप पर रोली का तिलक लगाएं. उसके बाद तिलक पर चावल रखें.
- दीप पर थोड़े फूल चढ़ाएं.
- दीप में थोड़ी चीनी डालें.
- इसके बाद 1 रुपये का सिक्का दीप में डालें.
- दीप को प्रणाम करें.
यम-दीपदान सरल विधि:
यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए आटे का एक बड़ा दीपक लें। गेहूं के आटे से बने दीप में तमोगुणी ऊर्जा तरंगे एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगे (अपमृत्यु के लिए ये तरंगे कारणभूत होती हैं) को शांत करने की क्षमता रहती है । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं बना लें। उन्हें दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें। प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें। उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी -सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है। दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा (दक्षिण दिशा यम तरंगों के लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशा से यमतरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं) की ओर देखते हुए चार मुँह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें। ‘ॐ यमदेवाय नमः ’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
यम दीपदान का मन्त्र :
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह |
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ||
इसका अर्थ है, धनत्रयोदशीपर यह दीप मैं सूर्यपुत्रको अर्थात् यमदेवताको अर्पित करता हूं। मृत्युके पाशसे वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें।
पूजन विधि
- संध्याकाल में उत्तर की ओर कुबेर तथा धन्वन्तरी की स्थापना करें.
- दोनों के सामने एक-एक मुख का घी का दीपक जलाएं.
- कुबेर को सफेद मिठाई और धन्वन्तरि को पीली मिठाई चढ़ाएं.
- पहले "ॐ ह्रीं कुबेराय नमः" का जाप करें.
- फिर "धन्वन्तरि स्तोत्र" का पाठ करें.
- धन्वान्तारी पूजा के बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा करना अनिवार्य है.
- भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के लिए मिट्टी के दीप जलाएं. धुप जलाकर उनकी पूजा करें. भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के चरणों में फूल चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं. प्रसाद ग्रहण करें
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