Simha Lagna/सिंह लग्न
सिंह लग्न का स्वामी सूर्य है. सूर्य अभी ग्रहों का राजा होने के साथ साथ एक तेजस्वी , ओजयुक्त पौरुष का प्रतिनिधित्व करता है. सिंह लग्न में जन्मे जातक निर्भीक, उदार व अभिमानी होते हैं. स्वभाव से दृढ़, साहसी एवं धैर्यशील होते हैं. सूर्य आत्म्कारक ग्रह है अतः सूर्य को आत्मशक्ति एवं आत्म विशवास का कारक माना गया है इसीलिए सिंह लग्न के जातकों में आत्मविश्वास की कभी कमी नहीं होती है. जीवन की कठिन से कठिन परिस्तिथियों में भी आप नहीं घबराते अपितु बिना हिम्मत हारे अपना रास्ता बनाते हुए आगे निकल जाते है.
सिंह राशि में जन्में जातकों की भौंहे परस्पर मिली हुई तथा जबड़ा भी कुछ-कुछ वैसा ही होता है। इनका शरीरिक गठन मजबूत तथा शरीर लम्बा एवं छरहरा होता है। ये स्वभाव से उग्र होते हैं। प्रायः इन्हें गुस्सा कम ही आता है, किन्तु एक बार आक्रोश में भर जाये तो शांत भी कठिनाई से होते हैं और शत्रु का अन्त तक कर डालते हैं। यूं इनका स्वभाव गम्भीर होता है, किन्तु व्यंग्यात्मक बातें करना इनकी आदत होती है।
सिंह लग्न में जन्मे जातक तेजस्वी , साहसी एवं पराक्रमी होते हैं. बुद्धि एवं पराक्रम के बल पर जीवन में उन्नति प्राप्त करने में समर्थ होते हैं.धन ,ऐश्वर्य, वैभव एवं भौतिक सुखों की आपको कभी कमी नहीं रहेगी. जीवन का अधिकांश समय सुखपूर्वक बीतेगा.
सिंह लग्न के जातक सिद्धांतवादी होते हैं तथा अपने सिद्धांतों के प्रति सदैव सजग रहते हैं. धार्मिक प्रवृत्ति होने के साथ साथ परोपकारी एवं दयालु होते है.किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता में आप अक्सर सफल ही रहते हैं . सरकारी या गैर सरकारी उच्च पदों पर आसीन अधिकारी अधिकांशतः सिंह लग्न के या सूर्य के प्रभाव में होते है. सामाजिक मान प्रतिष्ठा या यश सदैव हे आपके साथ रहता है. नेतृत्व की क्षमता भी सिंह लग्न के जातकों में कूट कूट कर भरी रहती है.
ऐसे जातक जीवन को परिस्थितियों के अनुरूप ढालने को तथा परिस्थितियों को स्वानुरूप करने की अदभुत क्षमता रखते हैं। अपने उच्चाधिकारियों के प्रति ये सदैव कृतज्ञ बने रहते हैं। ऐसे जातक अनुशासनप्रिय होते हैं। तथा इनमें आत्मविश्वास कुछ अधिक ही देखने को मिलता है। ये सच्चे प्रेम में विश्वास रखते हैं। अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कैसे रखा जा सकता है, कोई इनसे सीखे।इनमें शासन करने की अद्भुत क्षमता होती है, किन्तु सफल या संतुष्ट हो जाने पर ये प्रायः आलसी हो जाते हैं, पर किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति में आजीवन लगे रहते हैं।
सिंह लग्न के जातकों का व्यक्तित्व आकर्षक होता है जो अन्य लोगों को प्रभावित करता है. आप स्वभाव से निर्भय होते है एवं जीवन में सभी महतवपूर्ण कार्यों को सफलता पूर्वक करते हुए निरंतर आगे बढ़ते हैं. शत्रु या प्रतिद्वंदी आपसे भयभीत रहते हैं. यदि आप दूसरों के साथ भी समानता का व्यवहार करें तो निश्चित रूप से आपकी लोकप्रियता एवं सम्मान में बढ़ोत्तरी होगी.
सिंह लग्न के जातकों में शारीरिक बल की प्रधानता अधिक रहती है. आप स्वभाव से तेजस्वी , गंभीर एवं निरंतर उन्नत्तिशील होते हैं.
धर्म के मामले में आपके विचार कट्टर न होकर कुछ नरम रहते हैं। धर्म के प्रति आप श्रद्धावान होते हैं . जीवन में यदा कदा धार्मिक अनुष्ठानों को भी संपन्न करते हैं. योग साधना एवं सत्संग में भी आप पूर्ण रूचि रखते हैं. पहाड़ी इलाकों में भ्रमण करना आपको प्रिय है .
सिंह लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। Singh Lagn jatak – Leo Ascendent
सामान्य तौर पर इनका सीना चौड़ा होता है! चाल गर्वीली होती है! किसी से आज्ञा लेना , या अधीनस्त रहना पसंद नहीं करते! इन्हें आज्ञा देना पसंद होता है! कुशल प्रबंधक होते हैं व् सरकारी नौकरी के कारक माने जाते हैं! अक्सर शांत बने रहते हैं, और यदि किसी से उलझ जाएँ तो प्रतिद्वंदी को धूल चटाने में जरा देर नहीं करते! इन्हें काम खाने व् घूमने का बहुत शौक होता है!
सिंह राशि के जातक को आराम करना पसंद होता है । स्थिर स्वभाव का होने की वजह से ये किसी भी कार्य को करने में जल्दबाजी नहीं दिखते हैं । आपने जंगल के शेर को यदि देखा हो तो जानते होंगे की शेर जंगल का राजा होता है, इसे किसी तरह की छेड़खानी पसंद नहीं होती है व् इसके के लिए शिकार भी शेरनी करती है । ये केवल बैठ कर खाना पसंद करता है । अग्नि तत्त्व व् क्षत्रिय वर्ण केवल तभी देखने को मिलता है जब शेर के परिवार पर कोई खतरा हो! शेर की प्लानिंग इस तरह देखि जा सकती है की ये शिकार के लिए ऐसे जानवर को ढूंढ़ता है जो कमजोर हो, इसके समीप हो! फिर कुछ ही पलों में शिकार करके काम तमाम कर देता है व् आराम से बैठ जाता है! सिंह लग्न के जातक यदि उच्च पदासीन हों तो अपने सूबोर्डिनेट्स का ध्यान रखते हैं! मुसीबत में इनका साथ देते हैं व् मुश्किल समय में लिए गए इनके निर्णय सटीक साबित होते हैं! इन्ही गुणों से इनके मैनेजमेंट स्किल्स की सराहना की जाती है ।
सिंह लग्न के नक्षत्र Singh Lagn Nakshtra :
सिंह लग्न के अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वाफ़ाल्गुनी के चारों चरण, और उत्तराफ़ाल्गुनी का पहला चरण आता है। इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक है ।
लग्न स्वामी :सिंह
चिन्ह: शेर
तत्व: अग्नि
जाति: क्षत्रिय
लिंग: पुरुष
अराध्य/इष्ट: हनुमानजी, गायत्री
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक गृह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे, आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
सूर्य :
लग्नेश होने से कारक गृह बनता है ।
मंगल :
चतुर्थेश , नवमेश है । इस लग्न कुंडली में अति योगकारक होता है ।
गुरु :
पंचमेश , अष्टमेश होने से कारक गृह बनता है ।
शुक्र :
तृतीयेश , दशमेश है । अतः सम गृह बनता है ।
सिंह लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Sinh Lagn – Leo Ascendant
बुद्ध :
दुसरे व् ग्यारहवें का मालिक होने से इस लग्न कुंडली में मारक गृह बनता है ।
शनि :
छठे , सातवें का मालिक है व् लग्नेश का अति शत्रु होने से मारक गृह बनता है ।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो ।
सिंह लग्न की कुंडली में मन का स्वामी चंद्रमा द्वादश भाव का स्वामी होता है जो कि जातक के निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में चंद्रमा के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य प्रथम भाव का स्वामी होकर लग्नेश बनता है. यह जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
मंगल चतुर्थ और नवम भाव का स्वामी होकर सिंह लग्न के जातकों के लिये यह अतीव शुभ फ़लदायक ग्रह होता है. चतुर्थेश होने के कारण यह माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है जबकि नवमेश होने के कारण यह जातक के धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का दायित्व निभाता है. मंगल बलवान और शुभ प्रभाव वाला हो तो वर्णित विषयों
अत्यंत शुभ और प्रचुर फ़ल मिलते हैं जबकि कमजोर और अशुभ प्रभाव वाला मंगल शुभ फ़ल देने में असमर्थ होता है परंतु अशुभ फ़ल सिंह लग्न मे अति अल्प मात्रा में ही देता है. .
शुक्र तृतीय और दशम भाव का स्वामी होता है. तॄतीयेश होने के कारण यह जातक के नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है एवम दशमेश होने कारण राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बुध एकादश भाव का स्वामी होकर जातक के लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बृहस्पति पंचम भाव का स्वामी हो कर जातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में वॄहस्पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
शनि षष्ठ और सप्तम भाव का स्वामी होता है. षष्ठेश होने के कारण यह रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन जैसे विषयों एवम सप्तमेश होने के कारण यह लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
राहु द्वितीय भाव का अधिपति होकर जातक के कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
केतु अष्टम भाव का अधिपति होकर जातक के व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.