Astak varga in Astrology | अष्टकवर्ग - फलित ज्योतिष
फलित ज्योतिष में फलादेश निकालने की अनेक विधियां प्रचलित हैं, जिनमें से पराशरोक्त सिद्धांत, महादशाएं, अंतर दशाएं, प्रत्यंतर दशाएं, सूक्ष्म दशायें इत्यादि के साथ, जन्म लग्न, चंद्र लग्न, नवांश लग्न के द्वारा, वर्ष, मास, दिन एवं घंटों तक विभाजित कर, सूक्ष्म फलादेश निकालना संभव हैं। लेकिन इसके बावजूद भी फलादेश सही अवस्था में प्राप्त नहीं होता है। फलादेश में सूक्षमता लाने के लिए ज्योतिष के सभी ग्रंथों में अष्टक वर्ग अपना एक विशेष स्थान रखता है। अष्टक वर्ग का वर्णन ज्योतिष के प्राचीन मौलिक ग्रंथों में सभी जगह मिलता है, वृहद पाराशरी होरा शास्त्र में तो उत्तर खंड में अष्टक वर्ग का ही वर्णन किया गया है। ज्योतिष शास्त्र में अष्टक वर्ग एक अहम् भूमिका है। ज्योतिष में इसके बिना भविष्यवाणी करना असंभव तो नहीं, लेकिन कठिन अवश्य है। कभी-कभी देखते हैं कि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति उच्च बल की है, परंतु वह व्यक्ति एक साधारण सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा है, दूसरी ओर देखने को मिलता है कि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति अति नीच की हैं, परंतु वह व्यक्ति उच्च एवं महान जीवन व्यतीत करता है, आखिर ऐसा क्यों? फलित सिद्धांत के अनुसार कोई भी ग्रह अपनी नीच, शत्रु राशि, या छठे, आठवें तथा बारहवें भाव में अनिष्ट फल देता है, लेकिन देखने के लिए मिलता है कि ऐसे ग्रहों वाला व्यक्ति भी संसार में उच्च पद पर नियुक्त है। ऐसे व्यक्ति की कुंडली को देख कर कोई कल्पना नहीं कर सकता कि वह किसी ऊंचे पद पर होगा। इसके लिए अष्टक वर्ग का सिद्धांत अत्यधिक आवश्यक है। कोई भी ग्रह उच्च का स्वक्षेत्री, या केंद्र आदि बलयुक्त षोडष बलयुक्त योगकारक ही क्यों न हो, यदि उसकी अष्टक वर्ग में स्थिति बलयुक्त न हो, तो वह शुभ फल नहीं देता है और यदि, उसके विपरीत, वह ग्रह छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में स्थित हो, या शत्रुक्षेत्री, बलहीन हो, यदि वह अष्टक वर्ग में बलयुक्त हो, तो वह शुभ फल देता है। केवल किसी एक ग्रह के आधार पर वास्तविक सत्य भविष्यवाणी नहीं की जा सकी है। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि सारे सौर मंडल में अन्य ग्रह उसे कितना प्रभावित करते हैं तथा उस ग्रह से अन्य ग्रहों की स्थिति क्या है एवं उसका प्रभाव क्या है? इसका ज्ञान सिर्फ अष्टक वर्ग से ही हो सकता है। जन्म के समय किसी ग्रह की जो स्थिति केवल उस स्थिति के अनुरुप फल कथन करते समय यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि वर्तमान में ग्रह की स्थिति क्या है, जन्म के समय उस ग्रह की स्थिति उच्च बल की हो, लेकिन वर्तमान में उस ग्रह की स्थिति न्यूनतम है, तो इसका निराकरण अष्टक वर्ग एवं गोचर के द्वारा ही किया जाता है। गोचर के फल में स्थूलता है। क्योंकि एक ही राशि के अनेक मनुष्य होते हैं, इसलिए गोचर में भी सूक्ष्मता लाने के लिए अष्टक वर्ग की उपयोगिता है। गोचर में, चंद्र राशि को प्रधान मान कर, शुभ स्थान की गणना कर, प्रत्येक ग्रह को शुभ एवं अशुभ माना जाता है। परंतु अष्टक वर्ग में, प्रत्येक ग्रह की राशि को प्रधान मान कर, उससे शुभ स्थान की गणना की जाती है। इसमें सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शनि 7 ग्रह एवं लग्न सहित 8 होते हैं। इन आठों के संपूर्ण योग को ‘अष्टक वर्ग’ कहा जाता है। अष्टक वर्ग में 8 प्रकार से शुभ तत्वों की गणना की जाती है। इस कारण अष्टक वर्ग के द्वारा गोचर फल विचार में सूक्ष्मता आ जाती है। इसके बिना फलित अधूरा है, जिस ग्रह की जिस राशि में लग्न सहित आठों ग्रहों की स्थिति अनुकूल होगी, उसको 8 रेखाएं प्राप्त हांेगी, उस राशि से भ्रमण करते समय वह शत-प्रतिशत फल देता है । 4 से अधिक रेखाएं होने पर वह ग्रह शुभ फल ही देगा। अष्टक वर्ग में इस बात पर विचार नहीं किया जाता है कि वह राशि कौन से भाव में है, भले ही वह राशि जन्म लग्न, या चंद्र राशि से आठवी, बारहवीं, या केंद्र त्रिकोण में हो, यदि उसे 4 से अधिक रेखाएं प्राप्त होंगी, तो गोचर का ग्रह उस राशि पर अवश्य ही शुभ फल देगा। मान लीजिए, वृश्चिक राशि से द्वादश स्थान पर तुला का गुरु है। यदि वह 4 से अधिक रेखाओं से युक्त है, तो द्वादश में होता हुआ भी शुभ फल देगा। इसमें भी एक ग्रह अपने निर्धारित समय तक रहता है, जैसे सूर्य। मास, चंद्रमा सवा 2 दिन, गुरु 13 मास इत्यादि। इनमें और भी सूक्ष्मता लाने के लिए यह देखते हैं कि उस ग्रह को कौन सा ग्रह उस राशि में शुभ फल प्रदान कर रहा है। इसके लिए उस राशि को 8 से विभाजित कर देंगे। इनका क्रम शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चंद्रमा और लग्न हो। 30 भाग 8 = 3-45 होगा, इसमें पहला भाग 3-45 तक शनि का, दूसरा 7-30 तक गुरु का, तीसरा 11-45 तक मंगल का, चैथा 15 तक सूर्य का, पांचवां 18-45 तक शुक्र का, छठा 22-30 तक बुध का, सातवां 26-15 तक चंद्रमा का और आठवां 30 तक लग्न का होगा। उस राशि में शुभ फल देने वाली रेखाओं को इसी क्रम से देखेंगे। इस प्रकार अष्टक वर्ग की जिस राशि के जिस भाग में शुभ रेखा होगी, उस ग्रह के उस अंश तक शुभता रहेगी। उस वक्त तक वह ग्रह शुभ फल देगा। इस प्रकार अष्टक वर्ग द्वारा गोचर में और भी सूक्ष्म फलित दे सकते हैं। जन्मकुंडली में प्रत्येक ग्रह के प्रत्येक भाव में फल भिन्न-भिन्न हैं। कुछ भावों में ग्रह अपना शुभ फल देते हैं और कुछ घरों में बुरा फल प्रदान करते हैं। लेकिन अष्टक वर्ग में ऐसा नहीं माना जाता है। अष्टक वर्ग में सब ग्रहों का किसी भी भाव में शुभ एवं अशुभ फल एक समान होगा। अनिष्ट स्थान में भी ग्रह शुभ फल देता है और शुभ स्थान पर भी ग्रह अनिष्ट फल दे सकता है। जन्मकुंडली में किसी भी भाव में समुदायक अष्टक वर्ग के अनुसार 32 से ऊपर रेखाएं होंगी, तो उस भाव में स्थित ग्रह शुभ फल देगा; चाहे वह ग्रह अनिष्टकारक ही हो। यदि 32 से कम रेखाएं होंगी, तो उतना ही वह ग्रह अशुभ फल देता जाएगा। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए वृश्चिक राशि लग्न की जन्म कुंडली में सूर्य दशमेश हो कर अष्टम मिथुन राशि पर पड़ा है, तो उसका फल अशुभ होगा। लेकिन यदि समुदायक अष्टक वर्ग में उसे 32 से ऊपर रेखाएं प्राप्त हो रही हों, तो अष्टम भाव स्थित सूर्य के फल में शुभता आ जाएगी, अर्थात् इस प्रकार 32 रेखाओं से अधिक भाव वाले भाव में स्थित अनिष्ट ग्रह भी शुभ फल प्रदान करेंगे। समुदायक अष्टक वर्ग में दसवें भाव से एकादश भाव में अधिक रेखाएं हांे और एकादश भाव से द्वादश भाव में कम रेखाएं हों तथा द्वादश भाव से लग्न में अधिक रेखाएं हों, तो वह सुखी, धनवान एवं भाग्यवान योग बन जाता है। सूर्य और चंद्रमा अष्टक वर्ग में किसी राशि में 1, 2 या कोई भी रेखा न हो, तो उस राशि के गोचर के सूर्य और चंद्रमा में कोई भी शुभ मांगलिक महत्वपूर्ण कार्य करना अच्छा नहीं होता है। इसके लिए जन्मकुंडली के आधार पर सूर्य, चंद्र, गुरु के अष्टक वर्ग में देखें कि उस राशि में उसे कितनी रेखाएं प्राप्त हुई हैं। यदि 4 से अधिक रेखाएं प्राप्त हों, तो उसमें मांगलिक कार्य करना शुभ ही होगा। यदि 4 से कम रेखाएं हों, तो ठीक नहीं, परंतु यदि 4 रेखाओं से अधिक है, तो वह शुभ है; चाहे वह जन्म राशि से बारहवीं राशि ही क्यों न हो। गोचर का सूर्य, चंद्र, गुरु शुभ माना जाएगा। सूर्य अष्टक वर्ग से आत्मा, स्वभाव, शक्ति और पिता का विचार किया जाता है। यदि सूर्य को 4 से कम रेखाएं प्राप्त हांेगी, तो मनुष्य आत्मिक तौर पर निर्बल ही होता है। यदि 4 से अधिक रेखाएं हों, तो आत्मिक बल और राजतुल्य वैभव से युक्त होता है। सबसे कम रेखाएं हांेगी, तो उस राशि के गोचर का सूर्य उसके लिए अनुकूल नहीं होगा। गोचर का शनि जब उस राशि में आए, तो पिता इत्यादि को कष्ट होता है। उस मास में महत्वपूर्ण रेखाएं होंगी। उसमें गोचर का जब सूर्य और बृहस्पति आएगा, तो वह समय उसके लिए पैतृक सुख एवं आत्मिक उन्नति और शुभ कार्यों के लिए विशेष रहेगा। सूर्य अष्टक वर्ग में सूर्य से नौंवे घर की रेखाओं को सूर्य अष्टक वर्ग की पिंड आयु से गुणा कर के 27 का भाग देने के बाद जो शेष आएगा, उस नक्षत्र में, या (दसवें, या उन्नीसवें) नक्षत्र में गोचर का शनि आएगा, तो पिता को कष्ट होगा। इसी प्रकार 12 का भाग देने से जो शेष राशि होगी, उस राशि, या राशि के त्रिकोण (दसवें, या उन्नीसवें) में गोचर का शनि होगा, तो पिता को कष्ट होगा और उसकी शुभता के लिए गोचर का गुरु जब इन नक्षत्रों, राशियों में आएगा, तो उसे निश्चित ही पैतृक सुख मिलेगा। चंद्र अष्टक वर्ग में जिस राशि में शून्य, या कम रेखाएं हांे उस राशि के चंद्रमा का शुभ कार्यों में परित्याग करना चाहिए। जिस राशि में 5 से अधिक रेखाएं हों, उसमें शुभ कार्य करने चाहिएं। इसी तरह चंद्र की अष्टक वर्ग से कम रेखाएं होंगी, तो वह राशियां उसके लिए अशुभ साबित होगीं एवं जिसमें अधिक रेखाएं हांेगी, वह राशियां उसके लिए शुभ हांेगी। चंद्रमा से चतुर्थ भाव की राशि से माता एवं मन और बुद्धि का विचार किया जाता है। चंद्रमा की पिंड आयु से गुणा कर के 27 का भाग देने से शेष नक्षत्र, या उसके त्रिकोण, या 12 से भाग देने पर शेष राशि, या उसके त्रिकोण में गोचर का शनि आने से माता इत्यादि को कष्ट होगा। मंगल अष्टक वर्ग से भाई, पराक्रम का विचार होता है। मंगल से तृतीय स्थान भाई का है। मंगल अष्टक वर्ग में मंगल से तीसरे स्थान में जितनी शुभ रेखाएं हांेगी, उतने भाई-बहनों का सुख होगा। मंगल से तीसरे स्थान की रेखाओं का मंगलाष्टक वर्ग की पिंड आयु से गुणा कर के 27 का भाग देने पर शेष नक्षत्र, या उसके त्रिकोण में 12 का भाग देने से शेष राशि, या उसके त्रिकोण में गोचर का शनि आये, तो भाई को कष्ट होगा। उसके साथ ही जब इन राशियों में गोचर का गुरु आएगा, तो भाई से भाई का लाभ होगा। बुध से चतुर्थ भाव में कुटुंब, मित्र और विद्या आदि का विचार किया जाता है। बुध अष्टक वर्ग में किसी राशि में एक भी रेखा प्राप्त न हो, उस राशि में गोचर का शनि जब भ्रमण करेगा, तो संपत्ति की हानि, पारिवारिक समस्याएं बंधु-बांधवों से विवाद चलेंगे। बुध अष्टक वर्ग में जिस राशि में सबसे अधिक रेखाएं होंगी, उस राशि में गोचर के बुध में विद्या-व्यापार आरंभ करना शुभ होगा। बुध के दूसरे पर यदि पांच से अधिक रेखाएं हांेगी, तो उसके बोलने कि शक्ति होगी। बुध के चतुर्थ स्थान की रेखा से बुध के योग पिंड से गुणा कर के 27 का भाग देने पर शेष नक्षत्र, या उसके त्रिकोण में 12 से भाग देने पर शेष राशि या उसके त्रिकोण में गोचर का शनि आएगा, तो बंधु-बांधव एवं कुटुंब को कष्ट होगा, उपर्युक्त राशियों में जब गोचर का गुरु आएगा तो लाभ देगा। गुरु अष्टक वर्ग में जिस राशि में सर्वाधिक रेखाएं होगीं, उसी लग्न में जातक के गर्भाधान करने से पुत्र संतान की प्राप्ति होगी और उस राशि की दिशा में धन संपत्ति व्यवसाय से लाभ होगा। गुरु अष्टक वर्ग के जिस राशि में कम रेखाएं होंगी, उस मास में कार्य करने से निष्फलता होती है। गुरु अष्टक वर्ग में गुरु के पंचम भाव की रेखाओं से गुरु की पिंड आयु से गुणा कर के 27 का भाग दे कर, उसके नक्षत्र, या त्रिकोण में, 12 का भाग दे कर, उसके शेष राशि, या उसके त्रिकोणों में जब गोचर का शनि आएगा, तो संतान इत्यादि को कष्ट होगा। जब इन राशियों में गोचर का गुरु होगा, तो संतान लाभ होगा। शुक्राष्टक वर्ग में शुक्र से सप्तम स्थान में स्त्री का विचार होता है। जिस राशि में कम रेखाएं होंगी, उस राशि की दिशा में शयन कक्ष बनाने से लाभ होगा। जिसमें अधिक रेखाएं हांेगी, उस राशि की दिशा में स्त्री लाभ होगा। जिस राशि में सर्वाधिक रेखाएं हांेगी, उस राशि में जब-जब गोचर का शनि आएगा, तब-तब स्त्री लाभ होगा एवं स्त्री सुख होगा। शुक्र से सातवें स्थान की रेखाओं से शुक्र की पिंड आयु से गुणा कर के, 27 का भाग देने से शेष नक्षत्र, या उसके त्रिकोण 12 का भाग देने पर शेष राशि, या उसके त्रिकोणों में गोचर का शनि जब आएगा, तो स्त्री को कष्ट होगा। उपर्युक्त राशियों में जब गोचर का गुरु आएगा तो स्त्री लाभ होगा एवं सुख की प्राप्ति होगी। शनि अष्टक वर्ग में जिस राशि में अधिक रेखाएं हों, उस राशि में गोचर का शनि शुभ फलदायक और जिस राशि में कम रेखाएं हांेगी, उस राशि में गोचर का शनि अशुभ फलदायी होता है। लग्न से ले कर शनि तक जितनी रेखाएं हांेगी, उनके योग तुल्य वर्षों में कष्ट होगा। इसी प्रकार शनि से लग्न तक जितनी रेखाएं हांेगी, उनके योग तुल्य वर्षों में ही कष्ट होगा। शनि से अष्टम शनि की रेखा संख्या के अष्टम स्थान को, शनि की पिंड आयु से गुणा कर के, 27 से भाग दे कर, शेष नक्षत्र, या उसके त्रिकोणों में 12 से भाग देने पर शेष राशियों या उनके त्रिकोणों में जब गोचर का शनि आता है, तो कष्टमय होता है। अष्टक वर्ग के द्वारा फल उत्तम और सही अवस्था में ठीक-ठीक होता है। अष्टक वर्ग के फल कथन करने से जैसे-जैसे अनुभव में वृद्धि होगी, वैसे-वैसे वर्ष, मास, दिन एवं घड़ी के शुभ फल अनुभव में आने लगेंगे और प्रतिष्ठा पर फलित ज्योतिष विज्ञान के महत्व की अनोखी छाप पड़ेगी।
अष्टकवर्ग में फलित के नियम | Rules for Results in Ashtakavarga
पराशर होरा शास्त्र में महर्षि पराशर जी कहते हैं कि विभिन्न लग्नों के लिए तात्कालिक शुभ और अशुभ ग्रह होते हैं जिनके द्वारा फलित को समझने में आसानी होती है. यह कई बार देखने में आता है कि ग्रह किसी विशेष लग्न के लिए शुभ या अशुभ फल देने वाला होता है. इस लिए किसी भी ग्रह के परिणामों को जानने के लिए जन्म कुण्डली में उसके स्वामित्व का ध्यान रखना जरूरी होता है. ग्रहों के शुभाशुभ का निर्णय निम तरह से कर सकते हैं.
लग्नेश चाहे नैसर्गिक शुभ ग्रह हो अथवा अशुभ हो, हमेशा शुभ ही माना जाता है. जैसे मकर और कुम्भ के लिए शनि सदैव शुभ होते हैं.
इसी प्रकार त्रिकोणेश भी सदैव शुभ माने जाते हैं. केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी कर्क और सिंह लग्नों के लिए मंगल, वृष और तुला लग्न के लिए शनि तथा मकर व कुम्भ लग्न के लिए शुक्र योगकारक होकर शुभ होते हैं.
केन्द्राधिपति दोष के कारण केन्द्र के स्वामी होने पर अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देते हैं. जबकी शुभ ग्रह अपनी शुभता भूल जाते हैं या कहें ग्रह अपनी सम स्थिति को पाते हैं.
दृष्टियां | Aspects
अष्टकवर्ग की विवेचना में दृष्टियां भी बहुत महत्वपूर्ण होती है. अष्टकवर्ग के गोचर के में ग्रह पर शुभ ग्रहों की दृष्टि शुभता में वृद्धि करती है. जबकी अशुभ ग्रहों की दृष्टि अशुभता दर्शाने वाली होती है. और ग्रह द्वारा प्रदान करने वाले अच्छे प्रभावों को खराब करते हैं.
वक्री ग्रहों का प्रभाव | Effect of Retrograde Planets
नैसर्गिक शुभ ग्रह का अपने अनु भाव में वक्री होकर गोचर करना उक्त भाव संबंधि शुभ फलों में वृद्धिकारक होता है. जबकि प्रतिकूल भाव का गोचर परिणामों में कम शुभता लाता है. नैसर्गिक अशुभ ग्रह का वक्री गोचर कष्टदायक होता है.
दशानाथ का प्रभाव | Effect of Dashanath
शुभ ग्रह की दशा में ग्रह जब अनुकूल भावों में गोचर करता है तो अनुकूल परिणामों को देने के योग्य बनता है. लेकिन जब प्रतिकूल भावों में गोचर करता है तो शुभ फलों में कमी आती है. इसके अतिरिक्त अशुभ ग्रह की दशा में उस ग्रह विशेष का अशुभ भावों में गोचर अनिष्ट कारक हो जाता है जबकि शुभ भावों में गोचर इन फलों में कमी लाता है.
अस्तगत प्रभाव | Effect of Astagat
ग्रह का प्रतिकूल स्थानों में गोचर करते हुए अस्त होना अथवा राहु केतु से ग्रस्त होना अशुभ फलदायक बनता है.
पाप कर्तरी या शुभ कर्तरी में होना | Being in Malefic and Benefic Kartari
गोचर करते हुए कोई ग्रह दो पाप ग्रहों के मध्य आता है तो वह पाप कर्तरी में स्थित होता है और यदि ग्रह अनुकूल भावों में गोचर करते हुए इस योग में शामिल होता हो तो उसके द्वारा प्रदान किए शुभ फलों में कमी आ जाती है. यदि प्रतिकूल भावों में गोचर करते हुए इस योग में शामिल हो तो इसके अशुभ फलों की वृद्धि होती है. शुभ कर्तरी में होने से इसके विपरित प्रभाव मिलते हैं. इन सभी के अतिरिक्त इन बातों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि गोचरवश जब कोई ग्रह कुण्डली में स्थित अपने भोगांश को पार करता है तो कोई शुभाशुभ धटना अवश्य देता है. इस प्रकार से कई सूक्ष्म बिन्दुओं का अवलोकन करके हम अष्टकवर्ग के फलित को जानने में सक्ष्म हो सकते हैं.