नवग्रह शांति नवग्रह शांति उपाय: Navgrah Shanti upay
1. सूर्य ग्रहों का राजा है। इसलिए देवाधिदेव भगवान् विष्णु की अराधना से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। सूर्य को जल देना, गायत्री मंत्र का जप करना, रविवार का व्रत करना तथा रविवार को केवल मीठा भोजन करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। सूर्य का रत्न 'माणिक्य' धारण करना चाहिए परंतु यदि क्षमता न हो तो तांबे की अंगूठी में सूर्य देव का चिह्न बनवाकर दाहिने हाथ की अनामिका में धारण करें (रविवार के दिन) तथा साथ ही सूर्य के मंत्र का 108 बार जप करें।
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
2. ग्रहों में चंद्रमा को स्त्री स्वरूप माना है। भगवान शिव ने चंद्रमा को मस्तक पर धारण किया है। चंद्रमा के देवता भगवान शिव हैं। सोमवार के दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं व शिव चालीसा का पाठ करें। 16 सोमवार का व्रत करें तो चंद्रमा ग्रह द्वारा प्रदत्त कष्ट दूर होते हैं। रत्नों में मोती चांदी की अंगूठी में धारण कर सकते हैं। चंद्रमा के दान में दूध, चीनी, चावल, सफेद पुष्प, दही (सफेद वस्तुओं) का दान दिया जाता है तथा मंत्र जप भी कर सकते हैं।
ऊँ सों सोमाय नमः
3. जन्मकुंडली में मंगल यदि अशुभ हो तो मंगलवार का व्रत करें, हनुमान चालीसा, सुंदरकांड का पाठ करें। मूंगा रत्न धारण करें या तांबे की अंगूठी बनवाकर उसमें हनुमान जी का चित्र अंकितकर मंगलवार को धारण कर सकते हैं। स्त्रियों को हनुमान जी की पूजा करना वर्जित बताया गया है। मंगल के दान में गुड़, तांबा, लाल चंदन, लाल फूल, फल एवं लाल वस्त्र का दान दें।
ऊँ अं अंगारकाय नमः
4. ग्रहों में बुध युवराज है। बुध यदि अशुभ स्थिति में हो तो हरा वस्त्र न पहनें तथा भूलकर भी तोता न पालें। अन्यथा स्वास्थ्य खराब रह सकता है। बुध संबंधी दान में हरी मूंग, हरे फल, हरी सब्जी, हरा कपड़ा दान-दक्षिणा सहित दें व बीज मंत्र का जप करें।
ऊँ बुं बुधाय नमः
5. गुरु : गुरु का अर्थ ही महान है- सर्वाधिक अनुशासन, ईमानदार एवं कर्त्तव्यनिष्ठ। गुरु तो देव गुरु हैं। जिस जातक का गुरु निर्बल, वक्री, अस्त या पापी ग्रहों के साथ हो तो वह ब्रह्माजी की पूजा करें। केले के वृक्ष की पूजा एवं पीपल की पूजा करें। पीली वस्तुओं (बूंदी के लडडू, पीले वस्त्र, हल्दी, चने की दाल, पीले फल) आदि का दान दें। रत्नों में पुखराज सोने की अंगूठी में धारण कर सकते हैं व बृहस्पति के मंत्र का जप करते रहें।
ऊँ बृं बृहस्पतये नमः
6. शुक्र असुरों का गुरु, भोग-विलास, गृहस्थ एवं सुख का स्वामी है। शुक्र स्त्री जातक है तथा जन समाज का प्रतिनिधित्व करता है। जिन जातकों का शुक्र पीड़ित करता हो, उन्हें गाय को चारा, ज्वार खिलाना चाहिए एवं समाज सेवा करनी चाहिए। रत्नों में हीरा धारण करना चाहिए या बीज मंत्र का जप करें।
ऊँ शुं शुक्राय नमः
7. सूर्य पुत्र शनि, ग्रहों में न्यायाधीश है तथा न्याय सदैव कठोर ही होता है जिससे लोग शनि से भयभीत रहते हैं। शनि चाहे तो राजा को रंक तथा रंक को राजा बना देता है। शनि पीड़ा निवृत्ति हेतु महामृत्युंजय का जप, शिव आराधना करनी चाहिए। शनि के क्रोध से बचने के लिए काले उड़द, काले तिल, तेल एवं काले वस्त्र का दान दें। शनि के रत्न (नीलम) को धारण कर सकते हैं।
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
8. राहु की राक्षसी प्रवृत्ति है। इसे ड्रेगन्स हैड भी कहते हैं। राहु के दान में कंबल, लोहा, काले फूल, नारियल, कोयला एवं खोटे सिक्के आते हैं। नारियल को बहते जल में बहा देने से राहु शांत हो जाता है। राहु की महादशा या अंतर्दशा में राहु के मंत्र का जप करते रहें। गोमेद रत्न धारण करें।
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
9. केतु राक्षसी मनोवृत्ति वाले राहु का निम्न भाग है। राहु शनि के साथ समानता रखता है एवं केतु मंगल के साथ। इसके आराध्य देव गणपति जी हैं। केतु के उपाय के लिए काले कुत्ते को शनिवार के दिन खाना खिलाना चाहिए। किसी मंदिर या धार्मिक स्थान में कंबल दान दें। रत्नों में लहसुनिया धारण करें।
ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
दान मुहूर्त
1. सूर्य का दान : ज्ञानी पंडित को रविवार दोपहर के समय।
2. चंद्र का दान : सोमवार के दिन, पूर्णमासी या एकादशी को नवयौवना स्त्री को देना चाहिए।
3. मंगल का दान : क्षत्रिय नवयुवक को दोपहर के समय।
4. बुध का दान : किसी कन्या को बुधवार शाम के समय।
5. गुरु का दान : ब्राह्मण, ज्योतिषी को प्रातः काल।
6. शुक्र का दान : सायंकाल के समय नवयुवती को।
7. शनि का दान : शनिवार को गरीब, अपाहिज को शाम के समय।
8. राहु का दान : कोढ़ी को शाम के समय।
9. केतु का दान : साधु को देना चाहिए।
नवग्रह शांति के अनुभवसिद्ध सरल उपाय : सूर्य ग्रह को प्रसन्न करने के लिए रविवार को प्रातः सूर्य को अर्घ्य दें तथा जल में लाल चंदन घिसा हुआ, गुड़ एवं सफेद पुष्प भी डाल लें तथा साथ ही सूर्य मंत्र का जप करते हुए 7 बार परिक्रमा भी कर लें।
चंद्र ग्रह के लिए हमेशा बुजुर्ग औरतों का सम्मान करें व उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। चंद्रमा पानी का कारक है। इसलिए कुएं, तालाब, नदी में या उसके आसपास गंदगी को न फैलाएं। सोमवार के दिन चावल व दूध का दान करते रहें।
मंगल के लिए हनुमान जी को लाल चोला चढ़ाएं, मंगलवार के दिन सिंदूर एवं चमेली का तेल हनुमान जी को अर्पण करें। इससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं। यह प्रयोग केवल पुरुष ही करें।
बुध ग्रह के लिए तांबे का एक सिक्का लेकर उसमें छेद करके बहते पानी में बहा दें। बुध को अपने अनुकूल करने के लिए बहन, बेटी व बुआ को इज्जत दें व उनका आशीर्वाद लेते रहें। शुभ कार्य (मकान मुर्हूत) (शादी-विवाह) के समय बहन व बेटी को कुछ न कुछ अवश्य दें व उनका आशीर्वाद लें। कभी-कभी (नपुंसक) का आशीर्वाद भी लेना चाहिए।
बृहस्पति ग्रह के लिए बड़ों का दोनों पांव छूकर आशीर्वाद लें। पीपल के वृक्ष के पास कभी गंदगी न फैलाएं व जब भी कभी किसी मंदिर, धर्म स्थान के सामने से गुजरें तो सिर झुकाकर, हाथ जोड़कर जाएं। बृहस्पति के बीज मंत्र का जप करते रहें।
शुक्र ग्रह यदि अच्छा नहीं है तो पत्नी व पति को आपसी सहमति से ही कार्य करना चाहिए। व जब घर बनाएं तो वहां कच्ची जमीन अवश्य रखें तथा पौधे लगाकर रखें। कच्ची जगह शुक्र का प्रतीक है। जिस घर में कच्ची जगह नहीं होती वहां घर में स्त्रियां खुश नहीं रह सकतीं। यदि कच्ची जगह न हो तो घर में गमले अवश्य रखें जिसमें फूलों वाले पौधे हों या हरे पौधे हों। दूध वाले पौधे या कांटेदार पौधे घर में न रखें। इससे घर की महिलाओं को सेहत संबंधी परेशानी हो सकती है।
शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति को लंगड़े व्यक्ति की सेवा करनी चाहिए। चूंकि शनि देव लंगड़े हैं तो लंगड़े, अपाहिज भिखारी को खाना खिलाने से वे अति प्रसन्न होते हैं।
राहु ग्रह से पीड़ित को कौड़ियां दान करें। रात को सिरहाने कुछ मूलियां रखकर सुबह उनका दान कर दें। कभी-कभी सफाई कर्मचारी को भी चाय के लिए पैसे देते रहें। केतु ग्रह की शांति के लिए गणेश चतुर्थी की पूजा करनी चाहिए। कुत्ता पालना या कुत्ते की सेवा करनी चाहिए (रोटी खिलाना)।
केतु ग्रह के लिए काले-सफेद कंबल का दान करना भी फायदेमंद है। केतु-ग्रह के लिए पत्नी के भाई (साले), बेटी के पुत्र (दोहते) व बेटी के पति (दामाद) की सेवा अवश्य करें। यहां सेवा का मतलब है जब भी ये घर आएं तो इन्हें इज्जत दें।
किसी भी कुंडली की मजबूती के लिए लग्न स्वामी अथवा लग्नेश का मजबूत होना ज़रूरी होता हैं लग्नेश का 3,6,8,12 भावो मे होना अशुभ माना जाता हैं क्यूंकी यह भाव हमेशा अशुभता प्रदान करते हैं लग्नेश भले ही पाप ग्रह हो उसका इन अशुभ भावो मे होना अशुभ ही होता हैं जबकि पाप ग्रहो का इन भावो मे होना शुभ माना जाता हैं लग्नेश का किसी भी प्रकार से 3,6,8,12 भावो से अथवा उनके स्वामियों से संबंध अशुभ ही होता हैं |
यदि कुंडली मे सूर्य बली होतो जातक सामान्य कद काठी वाला,प्रभावी,सात्विक,सम्मानित परंतु चिड़चिड़े स्वभाव का होता हैं |
यदि चन्द्र बली होतो जातक मीठा बोलने वाला,वात स्वभाव का रजोगुणी होता हैं |
मंगल बली होतो साहसी,लड़ाकू,अस्थिर मानसिकता वाला,लाल आँखों वाला तमोगुणी होता हैं |
बुध बली होतो जातक मनोहर रंग रूप वाला,बातुनी,बुद्दिमान,अच्छी याददाश्त वाला,पढ़ा लिखा व ज्योतिष से प्रेम करने वाला किन्तु तमोगुणी होता हैं |
गुरु बली होतो जातक धार्मिक विचारो वाला,सदाचारी,वेदपाठी,पढ़ा लिखा व अच्छे चरित्रवाला सदगुणी होता हैं |
शुक्र बली होतो जातक सांसारिक वस्तुओ व सांसारिक कलाओ की चाह रखने वाला,शौकीन मिजाज व रजोगुणी होता हैं |
शनि बली होने पर जातक पतला,आलसी,क्रूर,खराब दाँतो वाला,रूखा,जिद्दी,निष्ठुर,तमोगुणी होता हैं |
सूर्य व मंगल के प्रभाव मे होने पर जातक बात करते समय ऊपर की और देखता हैं |
शुक्र व बुध के प्रभाव मे जातक बात करते समय इधर उधर देखता हैं |
गुरु व चन्द्र के प्रभाव मे होने पर जातक साधारण दृस्टी से देखने वाला होता हैं |
शनि राहू केतू की प्रभाव मे होने पर जातक आधी आँखें खोलकर अपनी बाते करते हैं |
ग्रहो को अपनी मजबूती हेतु सही भावो मे होना चाहिए | लग्नेश का 12वे भाव मे होना व द्वादशेश का 10वे भाव मे होना जातक का जीवन गरीबी,अशांति व उपद्रव से भरा बताता हैं |
ग्रहो को लग्न से व अपने नियत भावो से 6,8,12 भावो मे नहीं होना चाहिए | ऊंच और नीच के ग्रह जब संग होतो ज्यादा शक्तिशाली होते हैं जैसे शुक्र व बुध मीन राशि मे होतो बुध का नीचभंग हो जाएगा जो बुध व शुक्र दोनों के भावो के लिए शुभता प्रदान करेगा इसी प्रकार नीच ग्रह जिस राशि मे हो उसका स्वामी यदि ऊंच राशि मे होतो यह नीच ग्रह भी ताकतवर हो शुभ फल प्रदान करेगा |
शुभ ग्रहो को समान्यत: त्रिकोण भाव का स्वामी होकर केन्द्रीय भावो मे होना चाहिए जबकि अशुभ ग्रहो को केंद्र का स्वामी होकर त्रिकोण मे होना चाहिए | 3,6,8,12 भावो के स्वामी कमजोर होने चाहिए और 2,4,5,7,9,10,11 भावो के स्वामी बली होने चाहिए | चन्द्र गुरु व शुक्र केंद्र स्वामी होकर शुभ फल नहीं देते | लग्न जो पूर्व का प्रतिनिधित्व करता हैं उसमे बुध व गुरु दिग्बली होते हैं चतुर्थ भाव (उत्तर) मे शुक्र व चन्द्र,सप्तम भाव (पश्चिम) मे शनि तथा दसम भाव (दक्षिण) मे सूर्य व मंगल बली होते हैं |
जो जातक रात मे जन्म लेते हैं उनके लिए चंद्र,मंगल व शनि तथा जो दिन मे जन्म लेते हैं उनके लिए सूर्य,गुरु व शुक्र बली होते हैं जबकि बुध दोनों हेतु बली होता हैं |
स्वग्रही ग्रह शुभता देते हैं मुलत्रिकोण मे स्थित ग्रह भी ऊंच ग्रह की तरह ही शुभ फल देते हैं केंद्र मे स्थित ग्रह लग्नानुसार शुभाशुभ फल देते हैं 2,5,8,11 मे ग्रह अपना कम प्रभाव तथा 3,6,9,12 मे बहुत कम प्रभाव देते हैं |
अंतर्दशा नाथ जब दशानाथ से 2,4,5,9,10,11 भाव मे होतो शुभफल,यदि 3,6,8,12 भाव मे होतो अशुभफल तथा 1-7 होने पर साधारण फल और एक दूसरे से 6/8 होने पर बहुत बुरा फल देते हैं |
शनि सूर्य से 6,शुक्र चन्द्र से 5,बुध मंगल से 12,गुरु बुध से 4,मंगल गुरु से 6,सूर्य गुरु से 12 वे भावो मे होतो शत्रुता रखते हैं | शुक्र से शनि 4 तथा गुरु 12 होतो शत्रुता रखते हैं जबकि गुरु शनि से 6 होने पर शत्रुता रखता हैं |
त्रिकोण व केंद्र स्वामियों की युति राजयोग बनती हैं दसवा भाव मजबूत केंद्र व नवा भाव मजबूत त्रिकोण होता हैं यदि नवमेश व दसमेश मे किसी भी प्रकार का संबंध हो,परिवर्तन तो यह एक बड़ा राजयोग होता हैं और यदि यह युति नवम या दसम भाव मे होतो बहुत ही शुभ फल मिलता हैं |
चन्द्र से 6,7,8, भावो मे शुभ ग्रह का होना भी राजयोग प्रदान करता हैं और यदि यह तीनों ग्रह लग्नेश के मित्र भी होतो जातक को ऊंच सफलता मिलती हैं |
लग्नेश का पंचम मे होना पंचमेश का नवम मे होना तथा नवमेश का लग्न मे होना एक बहुत ही बड़ा राजयोग देता हैं | यदि पाप प्रभाव ना होतो 3,6,8,12 भावो के स्वामियो की युति भी राजयोग देती हैं |
गुरु शुक्र युति राजाओ से मान सम्मान,अच्छी शिक्षा व बुद्दि तथा समाज मे बड़ा रुतबा देती हैं |
लग्न मे चन्द्र,गुरु छठे भाव मे,शुक्र दसवे भाव मे हो,शनि ऊंच अथवा स्वग्रही होतो जातक निर्विवाद रूप से राजा होता हैं |