मिथुन लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। Mithun Lagn jatak – Gemini Ascendent
मिथुन लग्न की विशेषताएं/ मिथुन लग्न
मिथुन लग्न के नक्षत्र एवं विशेषताएं
मृगशीर्ष (तृतीय एवं चतुर्थ चरण), आद्रा तथा पुनर्वसु (प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण) के संयोग से
मिथुन राशि बनती है.
मिथुन भचक्र की तीसरे स्थान पर आने वाली राशि है। भचक्र पर इसका विस्तार 60 अंश से 90 अंश तक होता है । तीन नंबर राशि होने से जातक मेहनती होता है । राशि स्वामी बुद्ध देवता हैं अतः जातक का बुद्धिमान होना स्वाभाविक ही है । वायु तत्व होने से ऐसा जातक बातों का धनि होता है । योजनाओं के क्रियान्वन में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । ऐसे जातक बड़ी आसानी से झूठ बोल सकते हैं और कुछ तो झूठ बोलने को योग्यता भी मानते हैं। अपना काम निकलते ही किसी को भी टाटा बाई बाई कह सकते हैं । द्विस्वभावी राशि होने से इनके व्यवहार में ये बदलाव आसानी से देखने को मिल जाता है । इन जातकों को हंसी मजाक करना अच्छा लगता है । वाद – विवाद व तर्क्-वितर्क में अति कुशल व हाजिरजवाब होते हैं ।
मिथुन लग्न के नक्षत्र: Gemini Lagna Nakshatra :
मिथुन राशि मृगशीर्ष – तृतीय एवं चतुर्थ चरण, आद्रा के चार चरण तथा पुनर्वसु – प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण से बनती है । मिथुन राशि का विस्तार राशि चक्र के 60 अंश से 90 अंश के बीच पाया जाता है ।
लग्न स्वामी : बुध
लग्न तत्व: वायु
लग्न चिन्ह : स्त्री पुरुष जोड़ा
लग्न स्वरुप: द्विस्वभाव
लग्न स्वभाव: क्रूर
लग्न उदय: पश्चिम
लग्न प्रकृति: त्रिधातु प्रकृति
जीवन रत्न: पन्ना
अराध्य: गणपति
लग्न धातु:
अनुकूल रंग:हरा, सफ़ेद
लग्न जाति: शूद्र
शुभ दिन: बुधवार
शुभ अंक: 5
जातक विशेषता: चतुर, निडर
मित्र लग्न : मेष, तुला, कुम्भ
शत्रु लग्न : कर्क
लग्न लिंग: पुरुष (कुमार)
मिथुन बुध की स्वराशी है तथा बुध वाणी एवं बुद्धि का कारक माना गया है अतः मिथुन लग्न में जन्मे जातकों का बुद्धिमान एवं वाक्पटु होना स्वाभाविक माना गया है. ऐसे जातक अधिक बात करने वाले एवं लच्छेदार भाषण देने में पटु होते हैं.
अपनी इन्ही विशेषताओं के कारण मिथुन लग्न के पुरुष स्त्रियों के विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं. सेक्स के प्रति विशेष रुझान के कारण आप स्त्रियों को संतुष्ट करने में सक्षम होते हैं . दुसरे के हाव भाव को ताड़ने में आपकी विशेष रूचि होती है. मिथुन लग्न के जातकों को अपनी इन्द्रियों पर वश करने की क्षमता होती है. अत्यधिक धन समपन्न मिथुन लग्न के जातक भोगी एवं अपने भाई बहनों से प्रेम करने वाले होते हैं. आप स्वभाव से दयालु तथा आत्मिक उन्नत्तिशील होते हैं.
मिथुन लग्न के जातकों का कद सामान्य से कुछ ऊँचा ही होता है. शारीर से भरी तो नहीं परन्तु दुबले भी नहीं कहे जा सकते हैं. चेहरे खिला एवं भरा हुआ होता है. केश काले परन्तु पतले होते हैं. मिथुन लग्न के जातक अक्सर आगे की ओर झुककर चलते हैं.
द्विस्वभाव होने के कारण मिथुन राशि के जातक किसी भी कार्य को जल्दबाजी में नहीं करते बल्कि बहुत ही सोच समझ कर कदम रखते हैं. जीवन में एकाएक किसी पर विशवास करना आपके लिए कठिन होता है परन्तु एक बार विश्वास बन जाने पर आप जीवन भर सम्बन्ध निभाने में विश्वास करते हैं. संगत का प्रभाव आप पर अधिक होता है तथा किसी से भी बहुत जल्दी आकर्षित एवं प्रभावित आप हो जाते हैं फिर भी मित्रों की संख्या कम ही रहती है. किसी के कार्यों में हसक्षेप करने की आदत आप में नहीं होती साथ ही दुसरो के सुख दुःख में भी आपकी उपस्तिथि कमतर ही रहती है.
ज्ञान एवं विद्या अर्जन करने में विशेष रूचि होने के कारण साहित्य के प्रति मिथुन लग्न के जातकों का विशेष झुकाव होता है. फलतः ये साहित्यकार एवं कवी भी होते हैं. आप कभी भी किसी एक कार्य से संतुष्ट नहीं होते इसलिए एकसाथ कई कार्य प्रारंभ करने में सदैव रूचि बनी रहती है. अनेक प्रकार के कार्यों को एक ही समय करने के कारण आपके सभी कार्यों में देरी हो जाती है तथा परिश्रम के अनुरूप फल भी प्राप्त नहीं होता है. इन्ही सब कारणों से मिथुन लग्न के जातकों को कभी कभी हीन भावना से ग्रसित भी देखा गया है.
आपमें परिश्रम करने की क्षमता होती है परन्तु अस्थिर बुद्धि के कारण आप किसी एक कार्य में आपको विशेष दक्षता प्राप्त नहीं होती है. बौधिक स्तर ऊँचा होने के कारण आप को सफलता धीमी किन्तु अवश्य मिलती है.
धार्मिक रूप से भी आप संतुलित ही रहते हैं. न तो बहुत अधित धार्मिक होते हैं और न ही अधार्मिक. .
सावधानी: पुखराज रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.
मिथुन लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह – Shubh Grah / Karak grah Mithun Lagn – Gemini Ascendent
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक ग्रह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे, आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
बुद्ध ग्रह : Budh grah
लग्न व् चतुर्थ का स्वामी है, शुभ ग्रह है ।
शुक्र ग्रह :
पंचमेश व् द्वादशेश होने से कारक / शुभ है ।
शनि ग्रह : अष्टमेश ,नवमेश है । अतः शुभ ग्रह है ।
गुरु ग्रह: सप्तमेश व् दशमेश होने से सम ग्रह है ।
मिथुन लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Mithun Lagn – Gemini Ascendant
मंगल ग्रह:
षष्ठेश , एकादशेश है । अतः मारक है ।
सूर्य ग्रह:
तृतीयेश होने से मारक है ।
चंद्र ग्रह : Chander grah
दुसरे भाव का स्वामी है, अशुभ ग्रह है ।
न लग्न की कुंडली में मन का स्वामी चंद्र द्वितीय यानि धन भाव का स्वामी होता है. द्वितियेश होकर यह जातक के माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे संदर्भों का प्रतिनिधि होता है. मिथुन लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले ये सारे संदर्भ ही होते है, यदि जन्मकुंडली या दशाकाल में चंद्र बलवान और शुभ हो तो जातक को इन संदर्भों के द्वारा संपूर्ण संतुष्टि मिलती है. पाप प्रभाव गत या कमजोर चंद्र के होने से वर्णित विषयों में न्यूनता एवम असंतुष्टि प्राप्त होती है.
समस्त जगत में प्रकाश बिखेरने वाला सूर्य तृतीय भाव का अधिपति होता है नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. अपनी यश पताका फ़हराने के लिये मिथुन लग्न के जातक उपरोक्त संदर्भों के प्रचार प्रसार एवम मजबूत बनाने में प्रयास रत रहते हैं. जन्मकुंडली या दशाकाल में सूर्य के बलवान और शुभ प्रभाव में रहने पर इन्हें इन विषयों का शुभ फ़ल प्राप्त होता है जबकि कमजोर एवम पाप प्रभाव गत सूर्य के कमजोर रहने पर उपरोक्त संदर्भों में इन्हें हानि उठानी पडती है.
मंगल षष्ठ और एकादश भाव का स्वामी होता है. षष्ठेश होने के नाते यह रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी और एकादशेश होने के नाते यह लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी जैसे संदर्भों का स्वामी होता है. मंगल का बलवान और शुभ प्रभावगत होना उपरोक्त विषयों में मिथुन लग्न के जातकों को शुभ फ़लदायक होता है एवम निर्बल एवम पाप प्रभावगत मंगल अशुभ फ़लदायी होता है.
शुक्र पंचम और द्वादश भाव का स्वामी होता है पंचमेष होने के नाते बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार जैसे विषयों और द्वादशेश होने के कारण निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, और व्यर्थ भ्रमण जैसे विषयों का प्रतिनिधि ग्रह होता है. जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में अगर शुक्र बलवान और शुभ प्रभाव में हो तो अति शुभ फ़ल प्रदान करता है. अगर कमजोर और पाप प्रभावगत हो तो इन फ़लों में अशुभ फ़ल ही मिलते हैं.
मिथुन लग्न में बुध प्रथम भाव का स्वामी होकर लग्नेश होता है जो कि रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व जैसे अति महत्व पूर्ण विषयों का प्रतिनिधि होता है. बलवान बुध की स्थिति इन विषयों में अति शुभ फ़ल प्रदान करती है जबकि कमजोर एवम पाप प्रभाव गत बुध होने से इन संदर्भों मे अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
मिथुन लग्न में बृहस्पति सप्तम भाव का स्वामी हो कर लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. शुभ और बलवान वृहस्पति इन विषयों में अति शुभ फ़ल देता है जबकि कमजोर और पाप प्रभाव गत गुरू इन फ़लों में अशुभता देता है.
मिथुन लग्न में शनि अष्टम और नवम भाव का स्वामी होता है अष्टमेश होने से यह व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख एवम नवमेष होने से यह धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. बलवान और शुभ प्रभाव वाला शनि बहुत शुभ फ़ल प्रदान करता है जबकि कमजोर या पाप प्रभाव गत शनि उपरोक्त वर्णित विषयों में अशुभ फ़ल प्रदान करता है.
राहु इस लग्न में चतुर्थ भाव का स्वामी होकर माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे विषयों का प्रतिनिधि ग्रह होता है. शुभ प्रभाव गत और बलवान राहु इन विषयों में अति शुभ फ़ल प्रदान करता है जबकि कमजोर एवम पाप प्रभाव वाला राहु अशुभ फ़लों का दाता होता है.
केतु को मिथुन लग्न में दशम भाव का स्वामित्व मिलता है और दशमेश होने की वजह से यह राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. अगर यह केतु बलवान हो कर शुभ प्रभाव गत हो तो इन विषयों के अति शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.