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ज्योतिष और कैरियर Astrology & Career दशम भाव का विश्लेषण (Analysis of 10th House in Kundali)

दशम भाव का विश्लेषण (Analysis of 10th House in Kundali)

आप कौन सा कार्य करेंगे, जानिए कुंडली के अनुसार
बहुत से लोग जानना चाहते हैं कि कौन सा व्यापार फलीभूत होगा या क्या मुझे प्राइवेट या सरकारी नौकरी करना चाहिए? कुंडली के अनुसार मुझे कौन सा कार्य करना चाहिए जिसमें मुझे सफलता मिले। इन्हीं प्रश्नों के समाधान के लिए यहां प्रस्तुत हैं कुछ सामान्य जानकारियां। आप निम्नलिखित ग्रहों के आधार पर ही अपना करियर चुनेंगे तो जल्दी सफलता मिलेगी। यदि आपको लगता है कि मेरे ग्रह अनुकूल नहीं हैं, तो आप इसके उपाय करें। लिए हम द्वितीय तथा षष्ठ भाव को भी महत्वपूर्ण दर्जा देते हैं जिसमें दशम भाव हमारा कर्म क्षेत्र है हम जो भी कार्य करते हैं उसका निर्धारण दशम भाव तथा दशमेश करता है। इसके अतिरिक्त जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाव द्वितीय भाव या धन स्थान है इसी भाव से व्यक्ति की प्रतिष्ठा तथा धन का भी आकलन किया जाता है।

फिर षष्ठ स्थान की विवेचना भी जरूरी है जो कि सेवा तथा नौकरी का है। षष्ठ भाव हमारा शत्रु स्थान भी है और इसी से व्यापारियों को ग्राहक भी मिलता है। यदि जन्म कुंडली, सूर्य कुंडली या चंद्र कुंडली में षष्ठ भाव की स्थिति ठीक नहीं है तो हमें नौकरी या व्यवसाय में सफलता नहीं मिलती है। अतः कैरियर के लिए 2, 6, 10 भाव का आपस में अगर संबंध ठीक नहीं है तो हमें जीवन में सफलता नहीं मिलती इससे शत्रु भावना अगर अधिक है तो हम ना नौकरी में सफल हो सकते हैं और ना ही व्यापार में। इसके अतिरिक्त कुछ और भी ज्योतिषी सिद्धांत है जिससे बड़ी आसानी से हम अपने कैरियर और व्यवसाय का निर्धारण कर सकते हैं।

जैमिनी पद्धति की मानें तो आत्मकारक और अमात्य कारक ग्रह ही हमारे कैरियर का निर्धारण करता है। उसी प्रकार यदि अष्टक वर्ग में सबसे अधिक अंक दशम भाव में है तो व्यक्ति का कैरियर स्वतः चुना जाता है। बस जरूरी है तो ज्योतिष का आकलन।

दशम भाव का विश्लेषण- 10th house analysis in Astrology

Analysis of tenth house in kundali
कुंडली में व्यापार या नौकरी को दशम भाव से देखा जाता है। दशम भाव के स्वामी को दशमेश या कर्मेश या कार्येश कहते हैं। इस भाव से यह देखा जाता है कि व्यक्ति सरकारी नौकरी करेगा अथवा प्राइवेट? या व्यापार करेगा तो कौन सा और उसे किस क्षेत्र में अधिक सफलता मिलेगी? सप्तम भाव साझेदारी का होता है। इसमें मित्र ग्रह हों तो पार्टनरशिप से लाभ। शत्रु ग्रह हो तो पार्टनरशिप से नुकसान। मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु होते हैं। शनि, मंगल, राहु, केतु ये आपस में मित्र होते हैं। सूर्य, बुध, गुरु और शनि दशम भाव के कारक ग्रह हैं।


जन्म कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव दशम भाव

जन्म कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव दशम भाव होता है। दशम भाव पिता, व्यापार, उच्च नौकरी, राजनीति, राजसुख, प्रतिष्ठा, विश्वविख्याति का कारक भाव माना जाता है। इसे कर्म भाव भी कहते हैं। जातक अपने कर्म से महान विख्यात एवं यशस्वी भी होता है और अपने पिता का नाम रोशन करने वाला भी होता है। यदि इस भाव का स्वामी बलवान होकर कहीं भी हो उस प्रकार से फल प्रदाता होता है।

दशमेश का मतलब होता है दशम भाव में जो भी राशि नंबर होगा, उस भाव के स्वामी को दशमेश कहा जाएगा। यथा दशम भाव में कुंभ यानी 11 नंबर लिखे होंगे तो उसका स्वामी शनि होगा। यदि इस भाव में 5 नंबर लिखा है तो सिंह राशि होगी, यदि 12 नंबर लिखा है तो मीन राशि होगी।

दशमेश नवांश कुंडली में जिस ग्रह की राशि में होता है उसी ग्रह के कारकत्व अनुरूप व्यवसाय व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है। ग्रहों के कारकत्व निम्न प्रकार है -
*सूर्य राज्य, फल-फूल, वृक्ष, पशु, वन, दवा, चिकित्सा, नेत्र, कंबल, लकड़ी, भूषण, मंत्र, भूमि, यात्रा, अग्नि, आत्मा, पिता, लाल चंदन, पराक्रम, धैर्य, साहस, न्याय प्रियता, गेहूं, घी ।
*चंद्र जलीय पदार्थ, पशुपालन, डेरी उद्योग, कपड़ा, सुगंधित पदार्थ, कल्पना शक्ति, नेत्र, स्त्री सहयोग, भेड़, बकरी, स्त्री संबंधी पदार्थ, कृषि, गन्ना, चांदी, चावल, सफेद वस्त्र, सिल्क का कपड़ा, चमकीली वस्तु, यात्रा, तालाब, क्षय रोग, खारी वस्तुएं, माता, मन, प्रजा।
*मंगल भूमि, अग्नि, गरमी, घाव, राज्य सेवा, पुलिस, फौज, शस्त्र, युद्ध, बिजली, राज दरबार, मिट्टी से बनी वस्तुएं, डैंटिस्ट, अनुशासन, स्पोर्ट्स, तांबा, रक्त चंदन, मसूर, गुड़, ज्वलनशील पदार्थ।
*बुध विद्या, गणित ज्ञान, लेखन वृत्ति, काव्यगम, ज्योतिष, हरी वस्तुएं, शिल्प, दलाली, कमीशन, वाक शक्ति, त्वचा, चिकित्सा, वकालत, अध्यापन, संपादन, प्रकाशन, अभिनय, हास परिहास, व्याकरण, रत्न पारखी, कांसा, डाक्टर, गला, नाचना, पुरोहित।
*गुरु शिक्षक, तर्क, मंदिर, मठ, देवालय, धर्म, नीतिज्ञ, राजा, सेना, तप, दान, परोपकार, पीला रंग, वेद-पुराण आदि से उपदेश, धन, न्याय, वाहन, परमार्थ, स्वास्थ्य, घी, चने, गेहूं, हल्दी, जौ, प्याज, लहसून, मोम, ऊन, पुखराज।
*शुक्र रूप सौंदर्य, भोग विलास एवं सांसारिक सुख, सुगंधित एवं श्रंगारिक प्रसाधन, श्वेत एवं रेशमी वस्त्र, चांदी, आभूषण, गीत-संगीत, नृत्य, गायन, वाद्य, सिनेमा, अभिनेता, उत्तम वस्त्रों का व्यवसाय, मंत्री पद, सलाहकार, जलीय स्थान, दक्षिण पूर्व दिशा।
*शनि मजदूर एवं दास वर्ग, शारीरिक परिश्रम, कारखाने, वनस्पति, नौकरी, निंदित कार्यो से धनोपार्जन, हाथी, घोड़ा, चमड़ा, लोहा, मिथ्या भाषण, कृषि, शस्त्रागार, सीसा, तेल, लकड़ी, विष, पशु, ठेकेदारी।
*राहु गुप्त धन, लॉटरी, शेयर, विष, तिल, तेल, लोहा, वायुयान संबंधी ज्ञान, मशीनरी, चित्रकारी, फोटोग्राफी, वैद्यक, जासूसी अनुसंधान, कंबल, गोमेद।
*केतु गुप्त विद्या, वैराग्य, तीर्थाटन, भिक्षावृत्ति, चर्म रोग, काले वस्त्र, कंबल, विष, शस्त्र, फोड़ा, फुंसी, गर्भपात, चेचक, अत्यंत कठिन कार्य, मंत्रसिद्धि, तत्वज्ञान, दु:ख, शोक, संघर्ष।
कारकत्व शब्दों तक ही सीमित नहीं इनकी परिधि अत्यंत विस्तृत है - जैसे ‘राज्य’ शब्द सूर्य का कारकत्व है। इस छोटे से शब्द में राजा, मंत्री, गवर्नर, राष्ट्रपति, छोटे-मोटे तमाम सरकारी कर्मचारी व अधिकारी, राजनेता, विधायक, सांसद आदि सभी वर्ग जिनका परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप में सरकार से किसी न किसी प्रकार से कोई संबंध है, शामिल हैं। जन्म कुंडली का एकादश भाव ‘आय भाव’ तथा द्वितीय भाव ‘धन भाव’ कहलाता है। इनके स्वामियों के बलाबल और आपस में संबंध के आधार पर व्यवसाय संबंधी आय व धन का विचार किया जाता है।
दशम स्थान स्थित राशि की दिशा में अथवा दशमेश जिस नवांश में होगा, उस नवांश संबंधी राशि की दिशा में व्यवसाय संबंधी लाभ होगा। मेष, सिंह व धनु राशियां ‘पूर्व’ दिशा की स्वामी है। मिथुन, तुला व कुंभ राशियां ‘पश्चिम’ दिशा की स्वामी है। कर्क, वृश्चिक व मीन राशियां ‘उत्तर’ दिशा की स्वामी है तथा वृष, कन्या तथा मकर राशियां ‘दक्षिण’ दिशा की स्वामी है। उपरोक्त विचार ‘लग्न कुंडली’ के साथ ‘चंद्र कुंडली’ व ‘सूर्य कुंडली’ से भी करने पर सूक्ष्म निष्कर्ष पर पहुंचने में काफी सहायता मिलेगी।
कुछ रोचक बाते :
* लग्न का स्वामी और दशम भाव का स्वामी यदि एक साथ हों तो ऐसा जातक नौकरी में विशेष उन्नति पाता है।
* दशमेश के साथ शुक्र हो और द्वादश भाव में बुध हो तो वह जातक महात्मा, पुण्यात्मा होता है, लेकिन दशमेश व शुक्र केंद्र में होना चाहिए।
* दशम भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण (पंचम, नवम भाव को कहते है) में हो तो वह जातक राजपत्रित अधिकारी होता है।
* दशम भाव में स्वराशिस्थ सूर्य पिता से धन लाभ दिलाता है।
* दशम भाव में मीन या धनु राशि हो और उसका स्वामी गुरु यदि त्रिकोण में हो तो वह सभी सुखों को पाने वाला होता है।
* दशम भाव का स्वामी उच्च का होकर कहीं भी हो तो वह अपने बल-पराक्रम से सभी कार्यों में सफलता पाता है।
* पंचम भाव में गुरु व दशम भाव में चंद्रमा शुभ स्थिति में हो तो वह जातक विवेकशील, बुद्धिमान व तपस्वी होता है।
* एकादश भाव का स्वामी दशम में व दशम भाव का स्वामी एकादश भाव में हो या नवम भाव का स्वामी दशम में और दशम भाव का स्वामी नवम भाव में हो तो ऐसा जातक लोकप्रिय, शासक यानी मंत्री या कलेक्टर भी हो सकता है।
* लग्न का स्वामी व दशम भाव का स्वामी बलवान यानी अपनी राशि में हो या उच्च राशि में हो तो वह जातक प्रतिष्ठित, विश्वविख्यात तथा यशस्वी होता है।
* दशम भाव में शुक्र-चंद्र की युति जातक को चिकित्सक बना देती है।
* कन्या या मीन लग्न हो और उसका स्वामी उच्च या अपनी राशि में हो तो वह जातक अपने द्वारा अर्जित धन से उत्तम कार्य करता हुआ संपूर्ण सुखों को भोगने वाला होता है।
* दशम भाव में उच्च का मंगल या स्वराशि का मंगल सप्तम भाव में मंत्री या पुलिस विभाग में उच्च पद दिलाता है।
* दशम भाव में उच्च का सूर्य कर्क लग्न में होगा तो उस जातक को धन, कुटुंब से परिपूर्ण बनाएगा व उच्च पदाधिकारी भी बनाएगा।
व्यवसाय में सफलता का सटीक अध्ययनशिक्षा पूर्ण होने के पश्चात अक्सर युवाओं के मन में यह दुविधा रहती है कि नौकरी या व्यवसाय में से उनके लिए उचित क्या होगा। इस संबंध में जन्मकुंडली का सटीक अध्ययन सही दिशा चुनने में सहायक हो सकता है।
* नौकरी या व्यवसाय देखने के लिए सर्वप्रथम कुंडली में दशम, लग्न और सप्तम स्थान के अधिपति तथा उन भावों में स्थित ग्रहों को देखा जाता है।
* लग्न या सप्तम स्थान बलवान होने पर स्वतंत्र व्यवसाय में सफलता का योग बनता है।
* प्रायः लग्न राशि, चंद्र राशि और दशम भाव में स्थित ग्रहों के बल के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा व्यवसाय का निर्धारण करना उचित रहता है।
* प्रायः अग्नि तत्व वाली राशि (मेष, सिंह, धनु) के जातकों को बुद्धि और मानसिक कौशल संबंधी व्यवसाय जैसे कोचिंग कक्षाएँ, कन्सल्टेंसी, लेखन, ज्योतिष आदि में सफलता मिलती है।
* पृथ्वी तत्व वाली राशि (वृष, कन्या, मकर) के जातकों को शारीरिक क्षमता वाले व्यवसाय जैसे कृषि, भवन निर्माण, राजनीति आदि में सफलता मिलती है।
जल तत्व वाली राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) के जातक प्रायः व्यवसाय बदलते रहते हैं। इन्हें द्रव, स्प्रिट, तेल, जहाज से भ्रमण, दुग्ध व्यवसाय आदि में सफलता मिल सकती है।
* वायु तत्व (मिथुन, तुला, कुंभ) प्रधान व्यक्ति साहित्य, परामर्शदाता, कलाविद, प्रकाशन, लेखन, रिपोर्टर, मार्केटिंग आदि के कामों में अपना हुनर दिखा सकते हैं।
* दशम स्थान में सूर्य हो : पैतृक व्यवसाय (औषधि, ठेकेदारी, सोने का व्यवसाय, वस्त्रों का क्रय-विक्रय आदि) से उन्नति होती है। ये जातक प्रायः सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर जाते हैं।
* चन्द्र होने पर : जातक मातृ कुल का व्यवसाय या माता के धन से (आभूषण, मोती, खेती, वस्त्र आदि) व्यवसाय करता है।
* मंगल होने पर : भाइयों के साथ पार्टनरशिप (बिजली के उपकरण, अस्त्र-शस्त्र, आतिशबाजी, वकालत, फौजदारी) में व्यवसाय लाभ देता है। ये व्यक्ति सेना, पुलिस में भी सफल होते हैं।
* बुध होने पर : मित्रों के साथ व्यवसाय लाभ देता है। लेखक, कवि, ज्योतिषी, पुरोहित, चित्रकला, भाषणकला संबंधी कार्य में लाभ होता है।
* बृहस्पति होने पर : भाई-बहनों के साथ व्यवसाय में लाभ, इतिहासकार, प्रोफेसर, धर्मोपदेशक, जज, व्याख्यानकर्ता आदि कार्यों में लाभ होता है।
* शुक्र होने पर : पत्नी से धन लाभ, व्यवसाय में सहयोग। जौहरी का कार्य, भोजन, होटल संबंधी कार्य, आभूषण, पुष्प विक्रय आदि कामों में लाभ होता है।
शनि :- शनि अगर दसवें भाव में स्वग्रही यानी अपनी ही राशि का हो तो 36वें साल के बाद फायदा होता है। ऐसे जातक अधिकांश नौकरी ही करते हैं। अधिकतर सिविल या मैकेनिकल इंजीनियरिंग में जाते है। लेकिन अगर दूसरी राशि या शत्रु राशि का हो तो बेहद तकलीफों के बाद सफलता मिलती है। अधिकांश मामलों में कम स्तर के मशीनरी कामकाज से व्यक्ति जुदा हो जाता है।
राहू :- अचानक लॉटरी से, सट्‍टे से या शेयर से व्यक्ति को लाभ मिलता है। ऐसे जातक राजनीति में विशेष रूप सफल रहते हैं।
केतु :- केतु की दशम में स्थिति संदिग्ध मानी जाती है किंतु अगर साथ में अच्छे ग्रह हो तो उसी ग्रह के अनुसार फल मिलता है लेकिन अकेला होने या पाप प्रभाव में होने पर के‍तु व्यक्ति को करियर के क्षेत्र में डूबो देता है।
कुंडली में योग और आपका करियर

कुंडली में योग और आपका करियर करियर निर्धारण में सबसे प्रमुख चीज है सही विषय का चुनाव! बच्चे की जिस विषय में [साइंस, आट्र्स या कॉमर्स] सबसे ज्यादा रूचि होगी, उसी में वह अपनी प्रतिभा का सही प्रदर्शन कर सकेगा और उसका करियर भी उज्ज्वल होगा। दूसरा तरीका है किसी विशेषज्ञ की सलाह लें। यदि आप चाहें, तो ज्योतिष की सहायता से भी करियर निर्धारण में सहायता ले सकते हैं।करियर निर्धारण में जन्म कुंडली से दशम भाव एवं दशमेश, दशमेश की नवांश राशि का स्वामी ग्रह और कुंडली में बनने वाले अन्य योगों से करियर निर्धारण में मदद मिलती है।
इंजीनियर बनने के योगज्योतिषशास्त्र में सूर्य, मंगल, शनि व राहु-केतु को पाप ग्रह माना है, किंतु पंचम भाव या पंचमेश से संबंध करने पर ये ग्रह जातक की तकनीकी क्षमता बढ़ा देते हैं। दशम भाव या दशमेश से मंगल, शनि, राहु-केतु का संबंध होने पर जातक को तकनीकी क्षेत्र में आजीविका मिलती है। अर्थात वह इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफल होता है।
डॉक्टर बनने के योगसूर्य स्वास्थ्य का कारक माना गया है। मंगल भुजबल, उत्साह व कार्य शक्ति का कारक है। गुरू ज्ञान और सुख का। इसलिए सूर्य, मंगल व गुरू यदि जन्म कुंडली में बली हों, तो व्यक्ति कुशल चिकित्सक बनता है।
वकील या न्यायाधीश बनने के योगनवम भाव द्वारा धर्म, नीति-नियम व न्याय प्रियता का तथा षष्ठ भाव से कोर्ट कचहरी संबंधी विवादों का विचार किया जाता है। दशमेश का नवम या षष्ठ भाव से संबंध होने पर व्यक्ति वकील बनता है। दंड व सुख का कारक शनि, यदि दशम भाव में उच्चस्थ हो अथवा गुरू उच्चस्थ या स्वक्षेत्री होकर, दशम भाव या दशमेश से दृष्टि-युति संबंध करें, तो जातक वकील या जज बनता है।
उद्योगपति व व्यवसायी बनने के योगसूर्य, चंद्र व मंगल इस वर्ग के महžवपूर्ण कारक ग्रह हैं। व्यापार का कारक बुध को माना गया है। कुंडली में प्रबल धन योग, जातक को कुशल व्यवसायी या उद्योगपति के रू प में प्रतिष्ठित कर उसे धनी बनाता है।
सेना या पुलिस अधिकारी बनने के योगमंगल को बल, पराक्रम व साहस का प्रतीक माना है। कुंडली में मंगल बली होने पर जातक को सेना या पुलिस में करियर प्राप्त कराता है। दशमेश या दशमेश का नियंत्रक मंगल जातक को सेना या पुलिस में आजीविका दिलाता है और उसका कòरियर सफल रहता है।

सीए बनने के योगबुध का संबंध व्यापारिक खातों से तथा गुरू का संबंध उच्च शिक्षा, परामर्श एवं मंत्रणा से है। बुध व गुरू का बली होकर दशम भाव से संबंध करना जातक को लेखाकर (सीए) बनाता है। द्वितीय भाव का संबंध वित्त व वित्तीय प्रबंध से है। बुध का संबंध द्वितीय, पंचम अथवा दशम भाव से हो तो चार्टर्ड एकाउंटेंट बनाता है।
बैंक अधिकारीकुंडली में यदि बुध, गुरू व द्वितीयेश का दृष्टि-युति संबंध दशम भाव या दशमेश से हो, तो जातक बैंक अधिकारी, वित्त प्रबंधक या लेखाकार बनता है। गुरू मंत्रणा का नैसर्गिक कारक ग्रह यदि दशम भाव, पंचम भाव, बुध या द्वितीय भाव से संबंध करे, तब भी जातक लेखाकार बनकर धन व मान-प्रतिष्ठा पाता है।
लेक्चरार या प्रोफेसर बनने के योगपंचमेश व चतुर्थेश का राशि परिवर्तन, दशमेश शुक्र का लाभस्थ होकर पंचम भाव को देखना तथा पंचमेश गुरू की दशम भाव पर दृष्टि, शिक्षा के क्षेत्र से आजीविका का योग बनाती है। दशमेश का संबंध बुध व गुरू से होने पर जातक लेक्चरार बनता है।पूर्ण जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लें।

एस्ट्रोलॉजर ज्योतिषी बनने के ग्रहयोग:-

एक सफल ज्योतिष(astrologer)बनने के लिए जातक की कुंडली मे सबसे पहले ग्रहो में गुरु, बुध चन्द्रमा, शनि का बलवान होना जरूरी है इसके अलावा सूर्य शुक्र भी बलवान तो और अच्छा है लेकिन मुख्य ग्रह बुध गुरु चन्द्र और शनि है।एस्ट्रोलॉजर की कुंडली भावो में दूसरा, पाचवा और नवा भाव(यह दोनो मुख्य भाव है) और प्रोफेशनल अस्ट्रोलजर बनने के साथ मे दसवा और ग्यारहवा भाव भी बलि और योग बनाता हो क्योंकि ग्यारहवा भाव लाभ और आय है तो दसवा भाव रोजगार/कार्य छेत्र और कैरियर के भाव है।तो पहले तो यह भाव और ग्रहो की स्थिति अनुकूल होनी चाहिए फिर इन ग्रहो और भावो के बीच संबंध हो एस्ट्रोलॉजर की कुंडली मे गुरु और विशेष रूप से बुध उच्च, स्वराशि या किसी मित्र राशि मे वर्गोत्तम होना चाहिए क्योंकि बुध समझे कि शक्ति और याददाश्त का कारक है इसीकारण बुध बलवान जरूर हो, इसके बाद गुरु क्योंकि यह ज्ञान का कारक है और ज्योतिष, धार्मिक ज्ञान, ईश्वरीय कृपा का मुख्य कारक है तो ज्योतिषी के लिए धार्मिक गयं आदि के लिए गुरु अच्छा हो इसके बाद शनि इस कारण क्योंकि शनि गहन मतलब गहराई से किसी विषय को समझने का कारक है तो ज्योतिष को गहराई से समझना और गहराई तक जाना तब ही सही फल कथन करा जा सकता है तो शनि इस कारण जरूरी है शुभ और बलि होना, चन्द्रमा इस कारण क्योंकि चन्द्रमा मन है तो मन स्थिर और शुभ बलवान हो जिससे जातक के अंदर एकाग्रता बनी रहे इसीलिए चन्द्र शुभ और बलि होना जरूरी है।। इसके अलावा भावो में 5वा और 9वा भाव बलवान और इन दोनों भाव के स्वामियों के संबंध होना उच्च शिक्षा और शिक्षा प्राप्ति के लिए जरूरी है क्योंकि 5वा भाव शिक्षा, ज्ञान, किसी भी चीज को सीखने का है तो 9वा भाव उच्च शिक्षा, उच्च ज्ञान और भाग्य भी है इस कारण इन दोनों भावो का संबंध हो और गुरु चन्द्र का योग या बलवान बुध 5वे भाव मे बैठे या 5वे भाव के स्वामी के साथ संबंध करे और पंचमेश(पाचवे भाव का स्वामी) बलवान हो तब ज्योतिष का ज्ञान या ज्योतिष की शिक्षा जातक लेता है और जतीतिष बनता है, दूसरा भाव इसीकारण अच्छा क्योंकि यह बोलने की शक्ति देता है और ज्योतिष के काम या छेत्र में बोलना अच्छा आना चाहिए जिससे सामने वाला जातक अपनी कुंडकी दिखाकर आपसे संतुष्ट हो सके, 5वा भाव ज्यादा ही गुरु बुध चन्द्र के प्रभाव में हो तब जातक की ज्योतिष पर अच्छी पकड़ होती है।अब इसमें दसवा भाव इस कारण बताया क्योंकि यही वह भाव है जो कैरियर बताता है आप ज्योतिष तो सीख गए, ज्योतिष अच्छे से भी आ गया लेकिन क्या कैरियर बन पाएगा या नही? वह यही दसम भाव और इसका स्वामी बताएगा अगर दसवे भाव का या इसके स्वामी का संबंध 5वे भाव या भाव के स्वामी से बने साथ ही 9वे भाव का भी सहयोग मिले और दूसरे भाव से या दूसरे भाव के स्वामी से भी बन जाये तो ऐसा जातक प्रोफेशनल एस्ट्रोलॉजर बनता है अगर 10वे भाव के स्वामी का संबंध 5वे भाव या भावेश से हुआ तो इसका मतलब हुआ आपका कैरियर 5वे भाव से संबंधित जो आपकी शिक्षा है उसमें होगा और 5वा भाव ज्योतिष का भी होता ही है साथ ही 9वे भाव का स्वामी भी और दूसरे भाव का स्वामी भी संबंध बनाए तो मतलब है कैरियर तो बनेगा ही इसमे साथ 9वे भाव के जुड़ने से भाग्य भी साथ देगा औरभाग्य इस छेत्र में अच्छा लिखा है और दूसरा भाव या भावेश के इस यिग में जुड़े होने से आप ज्योतिष को व्यवसाय बनाकर पैसा कमाएंगे और आपको धन लाभ होगा ही होगा क्योंकि दूसरा भाव धन का है।तो यह सब भाव आपस मे एक साथ संबंध में हो तो सफल और प्रोफेशनल एस्ट्रोलॉजर जातक बनता है।अब कुछ उदाहरण कुंडकी से समझाता हूँ:- #उदाहरण1:-मेष लग्न की कुंडली मे 5वे का स्वामी सूर्य बनता है, 9वे भाव का स्वामी गुरु, धन भाव दूसरे भाव का स्वामी शुक्र और दसवे भाव का स्वामी शनि होता है।अब माना सर्व प्रथम 5वे भाव का स्वामी क्योंकि यही सबसे महत्वपूर्ण भाव है ज्योतिष का तो इसका स्वामी सूर्य माना लग्न(प्रथम भाव) मे बैठा हो तो मेष लग्न में लग्न का सूर्य उच्च होगा बहुत अच्छी बात है ज्ञान, शिक्षा, समझ के घर का स्वामी लग्न में जाकर उच्च होना सबसे उत्तम है दूसरा 9वे भाव का स्वामी गुरु 5वे भाव मे आकर बैठ जाये साथ ही चन्द्रमा भी गुरु के साथ 5वे भाव मे बैठ जाये और दूसरे भाव का स्वामी शुक्र भी 5वे ही भाव मे बेठे साथ ही बुध इस लग्न में 3 और 6 भाव का होता है तो बुध 3 या 6 भाव मे खुदअपनी ही राशि का हो तो यह एक सफल ज्योतिषी(astrologer)बनेगा, और शनि भी ग्यारहवे भाव मे बैठ जाये जिस कारण शनि का भी दृष्टि संबंध 5वे भाव और 5वे भाव मे बैठे गुरु शुक्र चन्द्र से होगा तो यह सफल प्रोफेशल एस्ट्रोलॉजर जातक को बना देंगे ग्रह या ऐसा जातक सफल प्रोफेशल एस्ट्रोलॉजर बनेगा क्योंकि 5वे भाव मे गुरु चन्द्र युति से गजकेसरी जैसा शुभ योग बना जिसने गुरु 9वे भाव का स्वामी भी है दूसरा धन का स्वामी और शुभ ग्रह शुक्र भी बैठ गया साथ ही दसवे भाव का स्वामी शनि भी संबंध बना रहा है जिस कारण इसी छेत्र में जातक का प्रोफेशन बनकर अच्छा कैरियर बन जाता है।लेकिन यदि 10वे भाव या 10वे भाव के स्वामी का संबंध ज्योतिष के गृह और योग से न हो तब जातक प्रोफेशनल ज्योतिष नही बन पाता या इस छेत्र में कैरियर नही बनेगा चाहे जातक कितना भी अच्छा ज्योतिष का जानकार क्यों न हो क्योंकि प्रोफेशनल के स्वामी जो 10वा भाव है का संबंध ही नही है।। #उदाहरण2:-कर्क लग्न का कोई जातक हो तो इसमे सबसे पहले 5वे भाव का स्वामी तो मंगल बनेगा ही साथ ही 10वे भवव का स्वामी भी होगा, 9वे भाव का स्वामी यहाँ गुरु होगा, साथ ही गुरु ज्योतिष ज्ञान का कारक भी है और दूसरे भाव का स्वामी सूर्य होगा और लग्नेश चन्द्र होगा तो माना 5वे भाव मे लग्नेश चन्द्र, 10वे+5वे भाव का स्वामी मंगल जो कि योगकारक भी है साथ 9वे भाव का स्वामी यह तीनो 5वे भाव मे बैठ जाये और बुध तीसरे भाव उच्च होगा तो तीसरे भाव मे ही हो उच्च हो गया होगा।तो 5वे भाव का स्वामी 5वे में ही होने से साथ 9वे का स्वामी गुरी लग्नेश चन्द्र होने से साथ ही गुरु चन्द्र गजकेसरी योग जो कि ज्ञान और ज्योतिषियों की कुंडली मे यह योग बहुत शुभ होते है साथ ही ;चन्द्र यहाँ नीच का है लेकिन मंगल साथ होने से चन्द्र का नीचभंग राजयोग, और केंद्र त्रिकोण का संबंध है तो यह जातक को प्रोफेशलन एस्ट्रोलॉजर बनेगा यह योग और ज्योतिष में बहुत नाम, ख्याति और राजयोग देगा क्योंकि राजयोग भी इसी भाव मे है और दूसरे भाव का स्वामी सूर्य भी 11वे भाव मे पहुचकर 5वे भाव मे बैठे चन्द्र मंगल गुरु से दृष्टि संबंध करे तो जातक धन, आर्थिक लाभ ज्योतिष को व्यवसाय बनाकर कमायेगा और इसी छेत्र में कैरियर बनेगा,धन तब ही जातक ज्योतिष से कमा सकता है जब दूसरे भाव(धन भाव) का स्वामी भी 5वे भाव मे बैठे ग्रहो या पंचमेश से संबंध बनाए ग्रहो से किया हो।कैरियर में जैसे कि ज्योतिष सिखाना, कुंडली देखना, बनाना, ज्योतिष का टीचर बन जाना, ज्योतिष बनकर कुंडकी का विश्लेषण आदि करना ज्योतिष का इस तरह से कैरियर रहता है।। #उदाहरण3:- वृश्चिक लग्न में अब 2और 5वे का स्वामी ज्ञान और ज्योतिष का कारक अब खुद गुरु होता है, साथ ही 9वे भाव का स्वामी चन्द्र, 10वे भाव का स्वामी सूर्य बनता है तो अब 2और 5वे+9वे भाव का स्वामी चन्द्र 5वे भाव मे हो या दूसरे भाव मे हो या 9वे भाव मे हो तो यह स्थिति सफल एस्ट्रोलॉजर बना देगी लेकिन यदि दशमेश सूर्य का संबंध न हुआ तब जातक इसमे स्थिर रूप से कैरियर नही बना पायेगा या व्यवसायिक रूप(professional) तरह से ज्योतिष में नही आ पायेगा क्योंकि कैरियर और प्रोफेशन का स्वामी दशमेश सूर्य है यहाँ तो सूर्य का संबंध नहीं 5 9या इनभावों के स्वामी से तो ऐसे जातक astrologer तो बन सकते है, अच्छा कुंडली विश्लेषण आदि सब कुछ अच्छा कर सकते है लेकिन इसको profession नही कर पाएंगे मतलब धन नही कमा पाएंगे बस अपने शौक के लिए इसको कर सकते है हलाकि दूसरे भाव का स्वामी भी गुरु ही है यहाँ तो जो धन भाव का स्वामी है तो धन तो ज्योतिष से कुछ न कुछ कमा लेंगे कुंडली जाच की फीस आदि लेकर।लेकिन बिल्कुल ही permanent professionally इसको नही बना पायेंगे।तो यह कुछ उदाहरण थे जो एक एस्ट्रोलॉजर बनने, प्रोफेशनल एस्ट्रोलॉजर बनने और इस छेत्र में कैरियर बनाने के बताए, ज्योतिष के छेत्र आज बहुत लोग आगे बढ़ रहे जरूरत है तो इस छेत्र में कैरियर बनाकर अच्छे से सीखकर सही मार्गदर्शक ज्योतिष का मिलने के लिए।तो इस तरह ज्योतिष के छेत्र में भी स्थिर रूप से या एक अलग से अपना कैरियर बनाया जा सकता है।
एक अच्छा सफल और प्रोफेशनल एस्ट्रोलॉजर बनने के लिए कुंडलियो अध्ययन करना, कुंडली और ज्योतिष ज्ञान प्रशिक्षण लेकर उसका जितना अध्ययन करा जाएगा उतना ही अच्छे आप या कोई भी जातक एक सफल ज्योतिष या सफल प्रोफेशनल एस्ट्रोलॉजर बन सकते है।


आजीविका और कैरियर के विषय में दशम भाव को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अतिरिक्त कैरियर के 

कैरियर निर्धारण में ज्योतिषी सिद्धांत

1. कैरियर निर्धारण के लिए जन्म कुंडली, चंद्र कुंडली, सूर्य कुंडली में जो अधिक बली हो उसी का चुनाव करें।

2. दशम भाव दशमेश तथा दशमांश की क्या स्थिति है।

3. दशमेश और नवमांश की क्या स्थिति है।

4. दशम भाव के स्वामी के द्वारा, दशम भाव में बैठे ग्रहों के द्वारा तथा दशमेश जिस ग्रह के नवमांश में हो उस ग्रह के अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है।

ज्योतिष की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति की कुंडली में दशमांश शुभ स्थान पर मजबूत स्थिति में होता है तो आजीविका के क्षेत्र में उत्तम संभावनाएं देता है और यदि दशमांश अगर षष्ठ, अष्टम, द्वादश भाव में हो या कमजोर हो तो रोजगार, व्यवसाय में हानि होती है। दशम भाव दशमेश का संबंध यदि द्वितीय भाव दशम तथा षष्ठ और एकादश भाव से संबंध हो तो नौकरी में अधिक सफलता मिलती है और यदि द्वितीय भाव सप्तम, पंचम, एकादश भाव से संबंध हो तो व्यापार में सफलता मिलती है। सप्तम भाव की स्थिति मजबूत हो तो व्यापार बहुत सफल होता है। अष्टकवर्ग द्वारा कैरियर की विवेचना अष्टकवर्ग किसी भी पद्धति में सबसे महत्वपूर्ण है। इसका वर्णन बृहतपराशर होराशास्त्र में महर्षि पराशर के द्वारा हुआ है। अष्टक वर्ग सात ग्रहों तथा लग्न से बना है इसमें सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और लग्न की गणना की जती है। ये सातों ग्रह हर समय गतिमान रहकर स्थितियां बदलते रहते हैं। ये स्थिति अगर शुभ है तो शुभ फल मिलता है अशुभ हो तो अशुभ फल मिलता है। इस विद्या में सर्वाष्टकवर्ग एक ऐसा वर्ग या कुंडली है जिसकी सहायता से फलकथन सटीक होता है और बहुत ही आसान हो जाता है। सर्वाष्टकवर्ग में जिस भाव में अधिक बिंदू हो उस भाव का फल जरूर मिलता है और जिसमें कम बिंदू हो उसमें फल अच्छा नहीं मिलता है। कई बार कुंडली में कोई ग्रह उच्च का होकर भी फल नहीं दे पाता। इस स्थिति में अगर अष्टकवर्ग से गणना की जाये तो पता चलता है कि शायद शुभ बिंदू कम है इसलिए फल नहीं मिल रहा है। इसमें उच्च ग्रह या नीच ग्रहों का महत्व नहीं होता है।

सर्वाष्टकवर्ग में यदि नवम, दशम, एकादश, व लग्न भाव में 28 या इससे अधिक बिंदू हो तथा दशम भाव में कम बिंदू हो और एकादश भाव में अधिक बिंदू हो तथा व्यय भाव के बिंदूओं की संख्या कम हो तो जातक धनी, समृद्धशील होता है और व्यय भाव में अधिक अंक तथा लाभ भाव में कम बिंदू हो तो जातक दरिद्र होता है। कैरियर और व्यवसाय में अष्टकवर्ग की भूमिका सर्वाष्टकवर्ग में दशम स्थान में यदि 28 से अधिक बिंदू हो तो जातक स्वतः अपना व्यवसाय करता है और षष्ठ भाव में दशम भाव से कम बिंदू हो तो जातक नौकरी करता है। षष्ठ स्थान में अधिक बिंदू होने पर जातक नौकरी या किसी के अधीन कार्य करता है।

शनि से दशम में अधिक बिंदू हो तो नौकरी ऊंचे दर्जे की होती है और अगर कम बिंदू हो तो व्यापार में या नौकरी में स्थिति सामान्य होती है। दशम से अधिक बिंदू एकादश भाव में हो तो जातक को कम मेहनत के साथ अधिक फल मिलता है। इसी के साथ-साथ ग्रहों के गोचर तथा दशा अंतर्दशा में ग्रहों की अपने भाव तथा बिंदूओं की स्थिति के हिसाब से जान कर हम नौकरी या व्यवसाय में लाभ हानि जान सकते हैं। इस कुंडली में कर्क लग्न है और दशम भाव में 29 बिंदू है और एकादश भाव में 40 बिंदू तथा व्यय भाव में 29 बिंदू जातक का स्वयं का व्यापार है और अति धनवान है। इस कुंडली में षष्ठ स्थान में 33 बिंदू है लेकिन सप्तम भाव में 21 बिंदू से जातक नौकरी में सफल नहीं हो सका और व्यापार में बहुत लाभ हो रहा है।

इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि दशम से अधिक अंक एकादश भाव में है दशम भाव कर्म का है जातक स्वयं का व्यापार कर अधिक लाभ ले रहा है और नौकरी में अधिक लाभ नहीं हो सकता क्योंकि आप सीमित होती है व्यापार अधिक सफल रहा। इसी प्रकार दशम भाव और एकादश भाव में बिंदूओं की स्थिति विपरीत हो जैसे दशम भाव में 40 बिंदू और एकादश भाव में 29 बिंदू हो तो जातक को नौकरी में सफलता मिलती है। इस स्थिति में अधिक लाभ नहीं हो सकता है। अलग-2 ग्रहों के अपने अलग-2 प्रभाव होते हैं कारकांश कुंडली को देखा जाए तो आत्मकारक सबसे अधिक डिग्री का ग्रह हमारे कार्य व्यवसाय का निर्धारण करता है। विभिन्न ग्रहों के कारकत्व निम्न प्रकार है।

सूर्य: शासन सत्ता, अच्छा व्यापारी, उच्च अधिकारी, सरकारी ठेकेदार, नेतृत्व करना, प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, सर्जन, अनाज का कारोबार, सूर्य के मजबूत बलवान होने से होता है।

चंद्र: चांदी, बर्फ, खाने की वस्तुएं, सजावट, नाविक, नेवी, मछली पालन, डेयरी, औषधि, एयर होस्टेस, शराब आदि का व्यापार या नौकरी में सफलता।

मंगल: अस्त शस्त्र विभाग, पुलिस, प्रबंधन, मशीनरी विभाग, कसाई, सेना, पुलिस, अग्नि समन, इंजीनियर आदि क्षेत्र में सफलता, भूमि और मकान।

बुध: क्लर्क, एकाउटेंट, हिसाब किताब, खेलकूद, संवाददाता, डाक विभाग, स्टेनोग्राफर, संदेशवाहक, दूर संचार विभाग, बीमा, दलाली, लेखन, पत्रकारिता, ज्योतिष आदि क्षेत्रों में सफलता।

गुरु: राजदूत, विज्ञान, शिक्षा, अध्यापक, वकील, प्रवक्ता, पुजारी, धार्मिक स्थलों का महंत, कैशियर, दार्शनिक, साहित्य, ट्रेवल एजेंट आदि क्षेत्रों में सफलता।

शुक्र: हीरे, जवाहरात, आभूषण, विदेशी मुद्रा, नृत्य, गायन, गाना बजाना, फिल्मी कलाकार, मीडिया, संगीत आदि क्षेत्रों में सफलता। फैशन, कला, फूलों का श्रृंगार डेकोरेटर।

शनि: कोयला, ईंधन, ठेकेदार, जज, दार्शनिक, कानून विशेषज्ञ, अंत्येष्टि करने वाले, आइसक्रीम बनाने वाले, हड्डी, चमड़े जूता चप्पल का कार्य नगरपालिका, जमादार आदि।

अब देखना चाहिए कि कारकांश का संबंध किस ग्रह से हो रहा है उसी से हमें उस क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए। कारकांश कुंडली में जैसे सूर्य 280 का है और सबसे अधिक मजबूत है तो जातक का संबंध सरकारी क्षेत्र से होगा या सरकारी नौकरी करेगा। यदि व्यापार करेगा तो व्यापार ऐसा होगा जिसमें कि सरकारी क्षेत्र हो जैसे रेलवे या सरकारी क्षेत्रों की ठेकेदारी आदि। इसी प्रकार का संबंध अन्य ग्रहों से भी होता है। जैमिनी सिद्धांत के अनुसार कैरियर का निर्धारण कारकांश कुंडली में लग्न स्थान में सूर्य या शुक्र हो तो व्यक्ति का संबंध राजकीय या सरकारी क्षेत्र से होता है। कारकांश कुंडली में लग्न स्थान में चंद्र हो और शुक्र का इससे संबंध हो तो अध्यापन या फैंसी क्षेत्रों से संबंध होता है।

यदि बुध से चंद्र का संबंध हो तो मेडिकल चिकित्सा तथा दवा प्रतिनिधि में कैरियर उत्तम होता है। कारकांश में मंगल की स्थिति पुलिस, सेना, भूमि, मकान, रसायन, रक्षा आदि के क्षेत्र में सफलता देता है। कारकांश लग्न में यदि बुध हो तो व्यक्ति व्यापार, सलाहकार तथा शिक्षा के क्षेत्र तथा संचार के क्षेत्र में सफल होता है। कारकांश का संबंध यदि शनि से हो या कारकांश लग्न में शनि हो तो लोहे, चमड़े, शराब तथा दास बनाता है।

शनि न्याय का कारक भी है। व्यक्ति मजिस्ट्रेट, न्यायधीश बनकर आजीविका चलाता है। कारकांश लग्न से पंचम स्थान में यदि केतु की स्थिति हो तो व्यक्ति गणितज्ञ होता है और यदि लग्न से पंचम में मंगल स्थित हो तो कोर्ट कचहरी आदि में सफलता देता है।

Export - Import Business and Astrology


Imports come under the jurisdiction of the 11th house and all exports are under the 12th house.

Navamsha and Dashamsha Charts:
In birth chart Navamsha (D/9) and Dashamsha (D/10) charts should be considered.

All the key signifiers should have good position in these two charts.
Any type of business with clients in countries other than that of the native is termed as Foreign Trade. It can either be Import of goods or services from other countries or Export of these to those countries.

A business person may be involved in only one of these viz. either import or export and not both so signifiers of each have to be specified.

As regards the other houses the 9th is the main house for dealings with any distant foreign country but if countries are very close to that of the native then the 3rd house may also have involvement in it.

Among the planets the first one is Venus and then comes the Moon and Mercury should be taken as general signifier for trade or business.

Just remember that for success in any wholesale business Jupiter must be in good shape and strength in the birth chart.

 In addition to the above other planets may come in depending upon the type of goods involved. Just as an example suppose electrical or surgical goods are involved then Mars needs to be added to the above list of signifiers.

For Textile take Moon and Mercury, for steel items take Mars and Saturn, for items of rubber we need to consider Venus, Moon and Mars.

For import or export of Mobile sets or accessories consider Mercury, Venus and the 3rd house of communications.

If in birth chart the above defined significators have relevance to the 7th and 10th houses then Import Export business is indicated. But for greater success and profits from such trade there has to be maximum relevance to 2nd, 6th, 7th and 11th houses.

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1. Lagna Kundali, Chandra Kundali, Surya Kundali --- which is sarvadhik bali ? Check degree of lagna, surya n chandra
 2. Bali grah --- 10th house from bali grah lagna/surya/chandra ---- grah , related Business
If there no grah then check which rashi ex 3 mithun rashi - rashi swami budha now
3. Check navmansh chakra for budha ? In which rashi he is sitting
Ex. Budha is sitting in 2nd in navmansh then 2 means vrishabh rashi n rashi swami of vrishabh is shukra then do the Business of shukra - cinema, girls, art, clothes
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Karyesh budha
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1. Chandra weak - clothes, col., Food eat, jal tattva
2. Budha green col. use


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