Ketu Mahadasha
केतु-यदि केतु केन्द्र, त्रिकोण या आय स्थान में शुभावस्था में होकर लग्नेश,भाग्येश व कर्मेश से युक्ति करता हो तो अपनी दशा-अंतर्दशा के प्रारम्भ में शुभ फल प्रदान करता है। इस दशा में जातक को स्वल्प धन का लाभ, पशुधन से लाभ, ग्राम में भूमि लाभ आदि कराता है तथा दशा के अन्त में अशुभ फल प्रदान करता है । अशुभ केतु की दशा में जातक अथक पश्चिम करने पर भी जीविकोपार्जन के साधन नहीं जुटा पाता, नौकरी मिलती नहीं, व्यवसाय में हानि होती है| नौकरी हो तो नौकरी छूट जाती है या कर दिया जाता है । बचपन में यह दशा जातक को चेचक, हैजा, अतिसार, कांच निकलने जैसे रोगो से पीडित करती है। किसी निकट सम्बन्धी के निधन से मन को सन्ताप मिलता है । जातक एक दुख से पीडा छुड़ाता है तो दूसरा दुख आ उपस्थित होता है।
शुक्र-जब केतु की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा व्यतीत हो रही होती है तो जातक की बुद्धि कामासक्त हो जाती है, वह सदैव भोग-विलास जीवन के स्वप्न लेता रहता है, प्रेमकथा, उपन्यास आदि पढने में समय को व्यर्थ गवांता है । सहशिक्षा संस्थानों में इस दशाकाल में युवक-युवतियां एक-दूसरे के साथ भाग जाते है । नीव और भ्रष्ट स्त्रियों अथवा पुरुषों के साथ प्रेम्प्रसंगों के कारण लोकोपवाद सहना पडता है। अनीति और अधर्म के कार्यों में चित्त खूब लगता है, धनलिप्सा बढ़ जाती है, अधिकारी वर्ग रिश्वत लेते पकडे जाते है। पत्नी एव पुत्रों से कलह होती है। जातक वेश्यागमन और सुरापान में अर्जित सम्पत्ति का नाश करता है । प्रतिश्याय, शुक्रक्षय, प्रमेह, से देह से पीडा होती है। मन में इर्षा द्वेष अपना स्थायी स्थान बना लेते है। जातक उन्नति की अपेक्षा अवनति को ही प्राप्त होता है।
सूर्य-केतु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा में शुभाशुभ दोनों प्रकार के फल मिलते हैं । यदि शुभ और बलवान सूर्य हो तो देह सुख, द्रव्य सुख, राज्यानुग्रह एव स्वल्प वैभव व तीर्थाटन आदि पाल मिलते हैं । अशुभ सूर्य होने पर जातक के मन में भ्रम व बुद्धि में आवेश आ जाता है। जातक व्यर्थ में क्रोध करने वाला, अपने से दण्ड पाने सीता तथा पदोन्नति में वस्थाओ का सामना करने बाता होता है । वाद-विवाद में पराजय, प्रवास में धनहानि और देहकष्ट निलता है । दुर्घटना में हड्डी टूटने का भय अथवा अंग-भंग होने की आशंका रहती है। निकृष्ट भोजन खाने से देह मेँ विषैला प्रभाव, आंखों से जलन, पित्त में उग्रता तथा शिरोवेदना होती है । माता-पिता से कलह, चोर, सर्प, अग्नि से भय तथा सभी कार्यों में असफलता मिलने से मन में हीनता आ जाती है। अपपृत्यु का भय रहता है।
चन्द्रमा-यदि चन्द्रमा अपने उच्च स्थान मै, स्वस्थान में केन्द्र या त्रिकोण का अधिपति होकर शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तथा पूर्ण बली हो तो अपनी अन्तर्दशा आने पर शुभ फलों को देता है । इस दशाकाल में जातक सत्ता में मान-आदर पाता है। भूमि, धन का लाभ होता है, वाहन, निवास क्या वस्त्राभूषण की प्राप्ति और सरोवर, देवालय आदि बनाने में धन का व्यय क्या स्त्री-पुत्र आदि से सुख मिलता है। अशुभ चन्द्र की अन्तर्दशा में जातक कामान्ध हो, उंच-नीच, धर्म-जाति का विचार त्पाग कर प्रेम-प्रसंग बना लेता है । लोकोपवाद, अपयश तथा परिजनों से विरोध के कारण मानहानि, दुर्गम स्थानो, पुराने और सुनसान भवनों में घूमने का शौक बढ़ता है । जातक में भावुकता बढ़ जाती है, जिसके कारण अविवेकी बन वह प्रत्येक कार्य में हानि उठाता है । इस दशा से शुभाशुभ मिश्रित फल प्राप्त होते हैं ।
मंगल- क्षत्रिय ग्रह है तथा केतु से भी मंगल के गुणों की प्रधानता है, इसलिए शुभ और बलवान मंगल की अन्तर्दशा में जातक के उत्साह से वृद्धि हो जाती है, जातक साहसिक और प्रारंभिक कार्यों में विक्षेप रुधि लेता है क्या इनमें सफल होकर मान-सम्मान तथा पारितोषिक प्राप्त करता है ।सैन्य कर्मचारी हो तो पद में वृद्धि और सेवापदक तथा धन मिलता है । जातक में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ जाती है जो कि सेना को छोड़कर अन्य जगह अशोभनीय मानी जाती है। अशुभ मंगल की अन्तर्दशा में हिंसक प्रवृत्ति अधिक उग्र हो जाती है तथा जातक क्रोध में हत्या तक कर डालता है और परिणामस्वरुप कारावास दण्ड अथवा मृत्युदण्ड पाता है | अभक्ष्य-भक्षण करता है, फलत: रक्तविकार, रक्तचाप, रक्तार्श, फोड़ा-फुन्सी एवं उद व्याधि से पीडित होता है।
राहु-यदि राहु शुभ राशिगत होकर केन्द्र, त्रिक्रोण अथवा शुभ स्थान में हो तो केतु महादशा में जब राहु की अन्तर्दशा आती है तो जातक को अहिंसक रूप से तत्काल धनलाभ एव ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। किसी प्लेच्छ (विदेशी पश्चिम.) से विशेष सहायता मिलती है । चौपायों का व्यवसाय लाभप्रद रहता है । जातक ग्रामसभा का सदस्य बनता है । अशुभ राहु की अन्तर्दशा में अत्यन्त निकृष्ट फल मिलते हैं । कुकर्मों के लिए राज्य से दण्ड मिलता है। छोर, अग्नि, दुर्घटना का भय रहता है, सर्पदंश के कारण मृत्यु के दर्शन होते हैं, लेकिन जान बच जाती है । सभी कार्यों में असफलता मिलती है । बनंघु-बान्धवों, परिजनों से वल्लाह होती है क्या वियोग होता है, सप्तमेश से युक्त हो तो जीवनसाथी की मृत्यु अथवा तलाक हो जाता है, रीढ के हड्डी में दर्द, वातरोग, अफारा, मन्दाग्नि आदि से देहपीड़ा होती है। विषम ज्वर स्वास्थ्य क्षीण कर मरणान्तक कष्ट देता है ।
बृहस्पति-शुभ, बलवान एबं कारक बृहस्पति की अन्तर्दशा में जातक का चित्त पूर्व दशा की अपेक्षा कुछ शान्त एवं धर्म कार्यों में रुचि लेने वाला रहता है, तीर्थयात्रा तथा देशाटन में धन का सद्व्यय होता है । ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति होती है, मन में उत्साह बना रहता है । देव-गौ-ब्राहाण के प्रति निष्ठा और इनकी कृपा से सम्पति का लाभ होता है । सात्विक एवं उच्च विचार बन जाते हैं, स्वाध्याय, मन्त्रजाप तथा ईश्वर आराधना में खूब मन लगता है। ग्रन्थ-लेखन से सम्मान प्राप्त होता है। अशुभ बृहस्पति की अन्तर्दशा चलने पर पुत्रलाभ, स्त्री को रोग अथवा उस से वियोग तथा स्थानच्युति होती है । प्रवास अधिक करने होते हैं, यात्रा में चोर-ठगों द्वार सम्पति की हानि होती है । नीच लोगों की संगति के कारण अपवाद एव अपयश मिलता है । क्रोधावेग बढ़ जाता है और जातक व्यर्थ में झगडे करता है। सर्पविष से मृत्यु समान कष्ट मिलता है, किन्तु प्राणान्त नहीं होता ।
शनि-यदि शनि परमोच्व, स्यस्थान में, शुभ ग्रह से युक्त या दुष्ट हो तो जाता को अपनी अन्तर्दशा में शुभाशुभ दोनों प्रकार के पाल प्रदान करता है । जातक के सब कार्य पूर्ण हो जाते हैं, स्वग्राम में मुखिया अथवा ग्रामसभा का सदस्य बनता है, धर्म के अपेक्षा अधर्म में रुचि रहती है, लोहे, काष्ठादि के व्यवसाय में लाभ मिलता है, अष्ट व्यवसाय से हानि मिलती है । अशुभ, अस्त, वक्री शनि की अन्तर्दशा में जातक अनेक कष्ट भोगता है जीवकोपार्जन के लिए भटकना पड़ता है, कठिन श्रम करने पर भी इष-सिद्धि नहीं होती अनेक अशुभ समाचार सुनने को मिलते हैं, शत्रु प्रबल हो जाते हैं तथा घात लगाकर हमला करते है । दूषित अन्न ग्रहण करने से वात-कफ दूषित हो जाते हैं, वायुगोला, कास, स्वास,गठिया, मन्दाकिनी आदि रोग हो जाते हैं । स्व-बन्धुओ से मनोमाल्नीय बढ़ता है जायदाद के मुकाबले में हार एव परदेश गमन होता है ।
बुध- यदि बुध शुभ, बलवान अवस्था में हो तथा उसकी अंतर्दशा वर्तमान हैं तो शुभ फल मिलते हैं । जातक शति दज्ञाकाल में प्राप्त दुखों से छुटकारा पाकर किंचित सुख की सास लेता है। पठन-पाठन में रुचि बढ़ती है। रुके कार्य पूरे हो जाते हैं लोक-समाज में मान-सम्मान बढता है। विधुत समाज के साथ सपागम, आप्तजनों से मिलन एव सप्पत्ति लाभ होता है। पुराने मित्र से मिलने की प्रबलता, नवीन ज्ञान के प्राप्ति, कार्य-व्यवसाय में प्रगति एव सुयश मिलता है। अशुभ बुध की अन्तर्दधग़ में जावा-व्यवसाय में हानि प्राप्त होती है। गृह-कलह
बढ़ जाती है, मित्र भी शत्रुवत व्यवहार करते हैं, शत्रुओ, चोरों और ठगों से सप्पत्ति हानि का भय, सन्तान को पीडा मिलती है । मन को सन्ताप तथा देह को बात्त-पित्तजन्य रोग, उदरशूल, कामता, गठिया आदि से कष्ट मिलता है।
Ketu Mahadasha in Astrology
7 year (ketu mahadasha duration) mahadasha will be good for those who have Sun/Jupiter strong in chart rather than Venus/Mercury/Moon but in few specific cases this rules will not work, because calculation in astrology depends on many factors. People born in Aries, Cancer, Capricorn, Aquarius ascendant will enjoy the most benefits of Ketu Mahadasa. Ketu mahadasha oh my god, we always thinks negative about ketu but this is not true, baba ramdev, ravishankar, Deepak chopra, Mahatama Gandhi even Your astrologer Prateek Bhatt have blessings of ketu. Ketu mahadasha effects gives very powerful Raja yoga these people sudden rise in career or sudden rise in front of world, Ketu presence in kendra or trikona then there could be great gains in life. Ketu mahadasha predictions good or bad need to analyse carefully because ketu is virtual planet and especially ketu has much dependency on other planets and placement. Overall ketu mahadasha 7 years gives enlighten your life.
Ketu (ketu mahadasha antardasha) will give inner strength and more involvement in spirituality where you can find out way of life or philosophy of life or why you came in this world or why materialism never gives inner peace and peaceful life, such many questions-answers you will get easily in this dasha if ketu strong in your chart. This will more involve you in spiritual world rather than materialistic world. Mahadasha of ketu brings about detachment form material world. Most people have always experienced some sort of hardship regarding the house where Ketu was placed in. Starting phase of ketu (ketu mahadasha ketu antardasha) slowly develop your intrest towards good and religious deeds.
ketu mahadasha jyotish turns your interest towards yoga, meditation, finding truth of life, more religious and spiritual, astrological knowledge, occult knowledge and tantra knowledge during Ketu's mahasasha or antra dasha. Ketu originally represents moksha, sorrow, detachment, spirituality, meditation, enlightenment, yoga`s, separate life for spirituality, interest in occult knowledge, hidden facts of life, past karmas, isolation, temples, self-realization. This dasha may give sudden detachment from family, wealth, materialistic world and people go for inner peace. Ketu is dissatisfied planet because of lower portion of body means no eyes to see the world, so many times it gives unknown dissatisfaction even people have all things in life but unknown dissatisfaction will be there.
Ketu Mahadasha in Vedic Astrology: Ketu mahadasha gives good results in Kendra/trikona but not in all Kendra such as if the native's Ketu is in the 7th house then there could be divorce, sudden separation, detachment or lack of interest in marriage, partnership, business or career in general since 7th house is 10th from the 10th. Ketu in 10th house gives sudden break on career and peoples start different path in career. Ketu in 5th house can suddenly show separation from children. Ketu consider good in Upachaya houses where he performs well for the native. When Ketu occupies on 3rd, 6th and 11th house of the horoscope, then it yield favourable results.
Ketu mahadasha period can give success in two ways that is either by giving huge amount of wealth and popularity so that the person will get satisfied and thinks for human welfare and moves in spiritual path. Or by making the person sufferer like anything and make him think that he or she wants to finish up all the duties on this birth and travel towards Moksha. Mahadasha of ketu and its effects is given below:
Good effects of Ketu Mahadasha or ketu mahadasha good effects:
Mahadasha of exalted ketu gives extreme growth in life.
ketu mahadasha benefits happiness will prevail and a lot of wealth will be attained.
Ketu mahadasha results Food, land and house may be attained.
Ketu Mahadasha gives spiritual growth.
Ketu mahadasha cure or ketu mahadasha pooja is worship lord Ganesha.
Bad effects of Ketu Mahadasha:
Debilitated ketu mahadasha gives struggles in all time.
Ketu mahadasha last phase physical hardships may increase and ailments are possible.
There may be obstacles in the acquisition of education and wealth, accident or fall from a vehicle, migration abroad and losses in agriculture are foreseen.
Ketu mahadasha last 2 years may give an interest in sinful deeds arising out of conflicts, lack of prudence and mental restlessness.
There may be hardships caused by those in positions of authority, and fear of theft, poison, water, fire, weapons and friends.
Ketu mahadasha bad effects shows failure, loss of wealth, children and spouse, harm and trouble caused by the state.
Ketu mahadasha last bhukti may be loss of happiness, fear of vehicles, fire and public criticism.
Ketu mahadasha career shows break or sudden change in career.
Ketu mahadasha marriage not consider good.
Ketu mahadasha divorce may possible or marriage in ketu mahadasha not consider good.
Ketu mahadasha health may affect badly.
Ketu mahadasha death may possible or threat for death possible if very badly placed ketu in horoscope.
Ketu mahadasha ending results or ketu mahadasha ending period depends on planet placement.
ketu mahadasha remedies is chant ketu mahadasha remedies mantra which is available my site.
Peoples can wear ketu mahadasha stone will be good for impact of mahadasha of ketu.
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ketu mahadasha with sade sati gives bad results if both planet not well placed.
Ketu mahadasha time is not always bad.
Ketu mahadasha upay or ketu mahadasha ke upay is to do the service for handicapped peoples.
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