सूर्यदेव को प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है क्योंकि उन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है अर्थात हर कोई इनके साक्षात दर्शन कर सकता है। सूर्य को ज्योतिष में आत्मा का कारक माना जाता हैं| सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं।
पूजा-अर्चना और संध्योपासना कर्म में सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है, हाथ की अंजुरि (अंजुलि) में जल लेकर सूर्य की ओर मुख करके सूर्य को जल समर्पित करना 'सूर्य अर्घ्य' कहा जाता है। वेदों में सूर्य को आँख कहा गया है।
सूर्य में सात रंग की किरणें हैं। इन सप्तरंगी किरणों का प्रतिबिंब जिस किसी भी रंग के पदार्थ पर पड़ता है, वहाँ से वे पुनः वापस लौट जाती हैं। लेकिन काला रंग ही ऐसा रंग है, जिसमें से सूर्य की किरणें वापस नहीं लौटती हैं।
हमारे शरीर में भी विविध रंगों की विद्युत किरणें होती हैं। अतः जिस रंग की कमी हमारे शरीर में होती है, सूर्य के सामने जल डालने यानी अर्घ्य देने से वे उपयुक्त किरणें हमारे शरीर को प्राप्त होती हैं। चूँकि आँखों की पुतलियाँ काली होती हैं, जहाँ से कि सूर्य किरणें वापस नहीं लौटतीं अतः वह कमी पूरी हो जाती है।
सूर्य देव को अर्घ्य देते वक्त रखें ध्यान
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते ।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।
(1) ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें। साफ और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
(2) जब सूर्य लालिमा युक्त हो उस समय उनके दर्शन करके अर्घ्य देना शुभ होता है।
(3) अर्घ्य देते समय हाथ सिर से ऊपर होने चाहिए। ऐसा करने से सूर्य की सातों किरणें शरीर पर पड़ती हैं। सूर्य देव को जल अर्पित करने से नवग्रह की भी कृपा रहती है।
(4) सूर्यदेव की तीन परिक्रमा करें।
(5) सूर्य देव को मीठा जल चढ़ाने से लाभ मिलता हैं, मीठा जल से तात्पर्य हैं की साफ जल में मिस्री मिलाये|
(6) सूर्य को अर्घ्य देते समय इस बात का ध्यान दें की जल की धारा धीरे-धीरे दें|
(7) सूर्य देव को चढ़ाया गया जल किसी के पैरो को स्पर्श ना करें|
(8) सूर्य देव का चढ़ाया गया जल आप अपने पौधों के गमलो में दें सकते हैं| इससे वो किसी के पैर के नीचे नहीं आता हैं|
(9) यदि सूर्य देव का चढ़ाया गया जल यदि किसी के पैर की नीचे आ जाता हैं तो आपको अर्घ्य देने का लाभ नहीं मिलता हैं|
(10) सूर्य देव के चढ़ाये गए जल में कुछ बचा ले और उसको अपने हाथ में लेकर चारों दिशाओ में उसको छिड़कना चाहिए| इसके करने से हमारे आस-पास का वातावरण पाजीटीविटी आती हैं|
जहां तक हो सके हमेशा आसन पर बैठकर ही पुजा करें| जिससे की उसका आपको लाभ मिले| कभी भी जल्दबाज़ी में पुजा ना करें|मनोवांछित फल पाने के लिए प्रतिदिन इस मंत्र का उच्चारण करें- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
डूबते सूर्य की उपासना का क्या है पौराणिक महत्व
छठ पर्व पर पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है. यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है. इस समय जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है. माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है और ये अर्घ्य उन्हीं को दिया जाता है. संध्या समय अर्घ्य देने से कुछ विशेष तरह के लाभ होते हैं. छठ का पहला अर्घ्य आज दिया जाएगा. आइए जानते हैं कि डूबते सूर्य की उपासना का क्या पौराणिक महत्व है और इससे आप को कौन से वरदान प्राप्त हो सकते हैं.
सूर्य षष्ठी पर मिलेगा खोया हुआ मान सम्मान
– सूर्य षष्ठी के दिन सुबह के समय जल्दी उठे और स्नान करके हल्के लाल वस्त्र पहनें
– एक तांबे की प्लेट में गुड़ और गेहूं रखकर अपने घर के मंदिर में रखें
– अब एक लाल आसन पर बैठकर तांबे के दीये में घी का दीपक जलायें
– भगवान सूर्य नारायण के सूर्याष्टक का 3 या 5 बार पाठ करें
– अपने खोए हुए मान-सम्मान की प्राप्ति की प्रार्थना भगवान सूर्यनारायण से करें
– तांबे की प्लेट और गुड़ का दान किसी जरूरतमंद व्यक्ति को सुबह के समय ही कर दें
छठ माता देंगी उत्तम संतान का महावरदान
– सूर्य षष्टि के दिन सुबह के समय एक कटोरी में गंगाजल लें और घर के मंदिर में रखें
– अब लाल चन्दन की माला से ॐ हिरण्यगर्भाय नमः मन्त्र का 108 बार जाप करें
– अपने घर के पास किसी शिवालय में जाकर यह गंगाजल एक धारा के साथ शिवलिंग पर अर्पण करें
– भगवान शिव और सूर्यनारायण की कृपा से उत्तम संतान का महावरदान मिलेगा
सूर्य षष्टि पर उत्तम नौकरी का वरदान
– सूर्य षष्ठी के दिन सुबह के समय एक चौकोर भोजपत्र लें
– तांबे की कटोरी में लाल चंदन और गंगाजल मिलाकर स्याही तैयार करें
– अब भोजपत्र पर ॐ घृणि आदित्याय नमः तीन बार लिखें
– गायत्री मंत्र का लाल चंदन या रुद्राक्ष की माला से तीन माला जाप करें
– जाप के बाद यह भोजपत्र अपने माथे से स्पष्ट करा कर अपने पर्स या पॉकेट में रखें