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Bisa yantra बीसा यन्त्र beesa yantra laxmi yantra

Bisa yantra बीसा यन्त्र beesa yantra laxmi yantra

Bisa Yantra बीसा यंत्र

bisa-yantra

यंत्र से लाभ तभी होता है जब उसे नक्षत्र विशेष में सिद्धि योग में विधि विधान से निर्माण कर  उसे प्राण प्रतिष्ठा कर उसका पूजन कर शक्तिकृत किया जाता है !
यंत्र तीन प्रकार के होते है एक पूजनीय (जिनकी पूजा की जाती है)  दूसरा धारणीय (जिनको धारण किया जाता है) तीसरे प्रकार का यंत्र होता है- दर्शनीय जिसका नित्य दर्शन करने से मनोकामना पूर्ण होती है।
यंत्र शास्त्र में बीसा यंत्र को प्रमुख स्थान प्राप्त है, हमारे ऋषियों ने दुर्लभ बीसा यंत्रों के विषय में अति गोपनीय रहस्यों को संयोजित करके रखा है वैसे इस सन्दर्भ में एक कहावत भी प्रचलित है -  जहाँ है यन्त्र बीसा , तहां कहा करै जगदीसा  बीसा यन्त्र हरेक देवी – देवता के लिए अलग – अलग होता है. यह जातक के प्रयोजन के अनुसार भिन्न होता है. प्राचीन काल से ही दुर्गा जी के चित्र के नीचे बीसा यन्त्र आपने अवश्य देखा होगा, बीसा यंत्र मनोवांछित सफलता प्रदान करने वाला तथा भय, झगड़ा, लड़ाई इत्यादि से बचाव करने वाला माना जाता है इस यंत्र को किसी भी प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है चाहे तो इसे मंदिर में स्थापित कर सकते हैं या पर्स अथवा जेब में भी रख सकते हैं तंत्र से संबंधित कार्यों में भी इस यंत्र का उपयोग किया जाता है. भागवत में यंत्र को इष्ट देव का स्वरूप बतलाया गया है और इसी प्रकार नारद पुराण में भी बीसा यंत्र को भगवान विष्णु के समान पूजनीय कहा गया है. बीसा यंत्र में कोई भी जड़वाया जा सकता है इसमें रत्न प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते हैं, कुण्डली में अशुभ योगों की अशुभता में कमी लाने हेतु इस बिसा यंत्र का उपयोग किया जा सकता है.

बीसा यंत्र  के लाभ  Benefits of bisa yantra

धन के अत्यधिक अपव्यय से बचने के लिए लक्ष्मी बीसा यंत्र धारण किया जा सकता है केमद्रुम योग, दरिद्र योग आदि योग होने पर लक्ष्मी बीसा यंत्र बहुत लाभकारी होता है. बीसा यंत्र का प्रभाव चमत्कारी रुप से व्यक्ति पर असर दिखाता है. यह असीम वैभव, श्री, सुख और समृद्धि देता है.  ऐसे लोग, जिन्हें परिश्रम करने पर भी अभीष्ट फल की प्राप्ति नहीं होती, पदोन्नति में बाधा आ रही हो या प्रभुत्व के विकास में बाधाओं का सामना कर रहे हों उनके लिए बीसा यंत्र शीघ्र एवं अभीष्ट फल प्रदान करने वाला होता है

जीवन साथी के साथ संबंधों में तनाव होना एवं पारिवारिक कलह का व्याप्त रहना इत्यादि में पुखराज युक्त बीसा यंत्र धारण करने से तुरंत लाभ की प्राप्ति होती है. बीसा यंत्र कई प्रकार के होते हैं जिसमें अधिकतर समस्याओं से बचाव के लिए यह कारगर सिद्ध होते हैं

बीसा  यन्त्र की निर्माण विधि -Procedure to make bisa yantra -

इसयन्त्र का निर्माण होली, दिवाली, विजयदशमी, नवरात्र, बसंत पंचमी, मकर संक्रांति, राम नवमी, जन्माष्टमी या फिर रवि पुष्य और गुरु पुष्य योग के समय भोजपत्र पर अष्टगंध या लेसर – कुंकुम आदि को गंगाजल में घोल कर अनार या चमेली की कलम से लिखें. फिर उसका विधि पूर्वक पूजन करके सम्बंधित मंत्र का जप और हवन करके बीसा यन्त्र को सिद्ध किया जाता है सिद्ध होने के बाद बीसा यन्त्र तुरंत फल देने लगता है. इस सिद्ध यन्त्र को ताबीज में भरकर लाल डोरे में बंधकर गले में पहन सकते हैं. इन यंत्रों का निर्माण स्वर्ण , चाँदी या ताम्बे पर कराकर पूजन स्थल पर रखने और नित्य धुप -दीप दिखाकर पूजन करने से आपको इसका प्रभाव स्पष्ट दिखने लगेगा.

सर्व सिद्धि दाता माँ दुर्गा जी का सिद्ध यन्त्र -Durga bisa yantra

इस यन्त्र को बनाकर नवार्ण मंत्र का बीस हजार जप करके दशांश हवन करके सिद्ध किया जाता है. नवार्ण मंत्र इस प्रकार है - ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये   विच्चे.
इस यन्त्र को ताबीज में भरकर धारण किया जा सकता है. या धातु पत्र पर अंकित कराकर पूजा घर में रखा जा सकता है.
भक्ति भाव जगाने हेतु बीसा यन्त्र -
इस बीसा महायंत्र को भोजपत्र पर बना कर नित्य पंचोपचार विधि से पूजन करें. यन्त्र का निर्माण दिए गए चित्र के अनुसार कराना है. ॐ ह्रीं श्रीं परमेश्व स्वाहा मंत्र का बीस हजार जप करके इसका दशांश हवन करने से यह यन्त्र चैतन्य हो जाता है. इसके दर्शन और पूजा से दैहिक , दैविक और भौतिक त्रयतापों से मुक्ति तथा ईश्वर के प्रति भक्ति – भावना में वृद्धि होती है.
सर्व व्याधिहरण बीसा यन्त्र – अमावस्या के दिन इस यन्त्र को अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर पीपल की लकड़ी की कलम से लिखना है. इस यन्त्र को हनुमान को दाहिने रखकर
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15 का यन्त्र : -


कई लोग प्रेतात्माओं से ग्रस्त होते हैं या फिर उन्हें भूत प्रेत का डर होता है । ऊपर दिया गया 15 का यन्त्र ऐसे हालात में बहुत उपयोगी होता है । यह बहुत ही शक्तिशाली यन्त्र है जिसके और भी कई उपयोग हैं । इसे 15 का यन्त्र कहा जाता है क्योंकि इसकी हर लाइन का जोड़ 15  ही आता है । यह नवग्रह यन्त्र के रूप में मान्यता रखता है, जैसे एक नम्बर सूर्य का दो नम्बर चन्द्र का तीन नम्बर गुरु का और चार नम्बर प्लूटो का, पांच नम्बर बुध का,छ: नम्बर शुक्र का, सात नम्बर राहु का, आठ नम्बर शनि का और नौ नम्बर मंगल का माना जाता है.इन सब ग्रहों को शुक्र के नम्बर छ: में ही बान्ध कर रखा गया है,जो योगफ़ल पन्दर का आता है, उसे अगर जोडा जाये तो एक और पांच को मिलाकर केवल छ: ही आता है, किसी भी ग्रह को शुक्र के रंग में रंगने का काम यह यन्त्र करता है,और शुक्र ही भौतिक सुख का प्रदाता है, किसी भी संसार की वस्तु को उपलब्ध करवाने के लिये शुक्र की ही जरूरत पडती है,प्रेम की देवी के रूप में भी इसे माना जाता है, और भारतीय ज्योतिष के अनुसार शुक्र ही लक्ष्मी का रूप माना जाता है !

आवश्यक सामग्री:

1) अनार के पेड़ की एक डंडी (टहनी) जिसके एक सिरे को तीखा करके कलम का आकार दे दिया जाए।
2) अष्टगंध जो की आठ चीज़ों, चन्दन, कस्तूरी, केसर इत्यादि का मिश्रण है । यह आसानी से पंसारी की दुकान में मिल जाता है ।
3) भोजपत्र: ये भी आसानी से पंसारी की दूकान से मिल जाता है ।
4) गंगा जल अगर उपलब्ध हो तो अन्यथा साधारण पानी भी लिया जा सकता है ।
5) ताम्बे का बना हुआ ताबीज़ का खोल। ताबीज़ कई आकार में आते हैं । आप कोई भी आकार का खोल ले सकते हैं ।

आपको यन्त्र बनाने के लिए इन सब सामग्रियों की आवश्यकता है ।

विधि: चुटकी भर अष्टगंध लें और इसमें गंगा जल या साधारण जल मिला लें । इससे आपकी स्याही तैयार हो जायेगी जिससे आप ऊपर दिया हुआ यन्त्र बनायेंगे ।
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स्याही बनाने के बाद अनार की डंडी लीजिये और इसे स्याही में भिगोकर ऊपर दिया हुआ यन्त्र एक भोजपत्र के टुकड़े पर बनाइये । पूरा यन्त्र बना लेने के बाद इसे सूखने के लिए रख दीजिये । सूखने के बाद भोजपत्र को मोड़ कर इतना छोटा बना लीजिये की यह ताबीज़ के खोल के अन्दर पूरा आ जाए । इसे खोल के अन्दर डाल कर खोल को बंद कर दीजिये । अब यह ताबीज़ डालने के लिए तैयार है । इसे काले रंग के धागे में डालकर अपने गले में डाल लीजिये । इस यन्त्र को किसी शुभ मुहुर्त में ही बनाना चाहिए।

नोट: ऊपर दी गयी विधि केवल पाठकों की शिक्षा हेतु दी गयी है । यन्त्र बनाने में बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है और वो सारी बातें एक लेख में नहीं बतायी जा सकती हैं । यन्त्र बनाना एक कला है और पूरा फायदा लेने के लिए यन्त्र किसी अनुभवी व्यक्ति से ही बनवाना चाहिए ।
अगर आप पूरी विधि से मेरे द्वारा बनाया हुआ उपरोक्त 15 का यन्त्र मंगवाने में रूचि रखते हैं तो कीमत जानने के लिए मुझे whatsapp करिए मेरे संज्ञान मे यह भी आया है कि बहुत से पंडित ऐसी धारणा रखते हैं कि बहुत से यंत्रों को एक साथ रखकर जैसे कि 10 अथवा 100 यंत्रों को एक साथ रखकर इन सभी यंत्रों के लिए संयुक्त रूप से केवल एक ही मंत्रों का जाप करने से इन सभी यंत्रों में उर्जा का संग्रह हो जाएगा तथा बहुत से पंडित तो इसी प्रकार से यंत्रों को बनाते भी हैं। किन्तु यह धारणा प्रभावशाली नहीं है तथा इस प्रक्रिया के माध्यम से अनेकों यंत्रों को एक साथ बनाना यंत्रों को खरीदने वाले जातकों के साथ धोखा तथा अन्याय भी है |
क्योंकि किसी भी यंत्र को उचित रूप से उर्जा प्रदान करने के लिए इस यंत्र को किसी जातक विशेष के लिए उसके नाम से संकल्पित करके अकेले ही बनाना अति आवश्यक है। यह एक लंबी प्रक्रिया है जिसके अनुसार केवल एक यंत्र को उर्जा प्रदान करने में 3 से 7 दिन तक का समय लग सकता है जिसके चलते बहुत से यंत्र विक्रेता तथा पंडित इस प्रक्रिया की अपेक्षा कर देते हैं तथा एक ही साथ सैंकड़ों यंत्रों को बिना किसी व्यक्ति विशेष के लिए संकल्पित किए, उर्जा प्रदान करने की चेष्टा करते हैं।

किन्तु एक ऐसे यंत्र की, जिसे किसी व्यक्ति विशेष के लिए संकल्पित करके अकेले ही यंत्र को उर्जा प्रदान की गई हो, किसी ऐसे यंत्र के साथ बिल्कुल भी तुलना नहीं की जा सकती जिसे सैंकड़ों अन्य यंत्रों के साथ बिना किसी विशेष संकल्प के उर्जा प्रदान करने की चेष्टा की गई हो क्योंकि इनमें से प्रथम श्रेणी का यंत्र विधिवत बनाया गया तथा उत्तम फल प्रदान करने में सक्षम है जबकि दूसरे यंत्र को उचित विधि से नहीं बनाया गया है तथा बहुत से अन्य यंत्रो के साथ होने के कारण इस यंत्र के हिस्से में संभवतया केवल 100 या इससे भी कम मंत्रों की उर्जा आई होगी जिसके चलते ऐसा यंत्र किसी भी जातक को कोई विशेष फल देने में सक्षम नहीं होता। उर्जा प्रदान करने के अतिरिक्त प्रत्येक यंत्र को विशिष्ट वैदिक विधियों के माध्यम से शुद्धिकरण, किसी व्यक्ति विशेष को ही अपने शुभ फल प्रदान करने की क्षमता प्रदान करने वाली प्रक्रिया से भी निकाला जाता है तथा अंत में इन विधियों के द्वारा बनाए गए यंत्र को विशिष्ट वैदिक विधियों के माध्यम से सक्रिय कर दिया जाता है जिससे यह यंत्र अपने फल देने में सक्षम हो जाता है। इसलिए अपने लिए यंत्र स्थापित करने से पहले सदा यह सुनिश्चित करें कि आपके द्वारा स्थापित किया जाने वाला यंत्र उपरोक्त सभी प्रक्रियों में से निकलने के बाद विधिवत केवल आपके लिए ही बनाया गया 


यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि किसी भी यंत्र को स्थापित करने से प्राप्त होने वाले लाभ किसी जातक को पूर्ण रूप से तभी प्राप्त हो सकते हैं जब जातक द्वारा स्थापित किया जाने वाला शुद्धिकरण, प्राण प्रतिष्ठा तथा उर्जा संग्रह की प्रक्रियाओं के माध्यम से विधिवत बनाया गया हो तथा विधिवत न बनाए गए यंत्र को स्थापित करना कोई विशेष लाभ प्रदान करने में सक्षम नहीं होता। शुद्धिकरण के पश्चात यंत्र को देवता के मंत्रो की सहायता से एक विशेष विधि के माध्यम से उर्जा प्रदान की जाती है जो देवता की शुभ उर्जा के रूप में इस यंत्र में संग्रहित हो जाती है। किसी भी यंत्र की वास्तविक शक्ति इस यंत्र को मंत्रो द्वारा प्रदान की गई शक्ति के अनुपात में ही होती है तथा इस प्रकार जितने अधिक मंत्रों की शक्ति के साथ किसी यंत्र को उर्जा प्रदान की गई हो, उतना ही वह यंत्र शक्तिशाली होगा। विभिन्न प्रकार के जातकों की कुंडली के आधार पर तथा उनके द्वारा इच्छित फलों के आधार पर यंत्र को उर्जा प्रदान करने वाले मंत्रों की संख्या विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकती है तथा सामान्यतया यह संख्या 11,000 से लेकर मंत्र के जाप तक होती है जिसके कारण देखने में एक से ही लगने वाले विभिन्न यंत्रों की शक्ति तथा मूल्य में बहुत अंतर हो सकता है। किसी भी यंत्र को अपने जातक को लाभ प्रदान करने के लिए कम से कम 11,000 मंत्रों की सहायता से उर्जा प्रदान की जानी चाहिए तथा इससे कम मंत्रों द्वारा बनाए गए यंत्र सामान्यतया कोई विशेष फल प्रदान करने में सक्षम नहीं होते तथा बिना उर्जा के संग्रह वाला यंत्र धातु के एक टुकड़े के समान ही होता है जिसे 50 रूपये के मूल्य में प्राप्त किया जा सकता है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि यंत्र को विधिवत बनाने की प्रक्रिया में इस यंत्र को उर्जा प्रदान करने वाला चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है तथा यदि उर्जा संग्रहित करने की इस प्रक्रिया को यदि विधिवत तथा उचित प्रकार से न किया जाए अर्थात यदि किसी यंत्र को उर्जा प्रदान करने के लिए मंत्रों का जाप किया ही न जाए अथवा यह जाप 100 या 1000 मंत्रों का हो तो ऐसा यंत्र किसी जातक को या तो कोई विशेष फल प्रदान करने में सक्षम नही होगा या फिर ऐसा यंत्र कोई भी फल प्रदान नहीं करेगा। इसलिए किसी भी यंत्र के भली प्रकार से कार्य करने तथा जातक को लाभ प्रदान करने के लिए इस यंत्र को विधिवत बनाया जाना अति आवश्यक है।
हम जो यन्त्र बनाते है ये आर्डर पर बनाया जाता है यह हम तांबे पर नहीं बनाते यह हम भोजपत्र पर बनाते है फिर विधि-विधान से उसका पूजन व् प्राण प्रतिष्ठा की जाती है इसलिए यह प्रभावकारी होते है !

दक्षिणा - Rs. 1500/- है, एडवांस पेमेंट आने पर आर्डर लिया जायेगा !

Bisa yantra बीसा यन्त्र beesa yantra
Kanakdhara yantra कनकधारा यन्त्र
15 का यन्त्र
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durga bisa yantra दुर्गा बीसा यन्त्र
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राहु यंत्र Rahu yantra
केतु यंत्र Ketu yantra
नवग्रह यंत्र Navgrah yantra

yantra vashikaran
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यंत्र क्या है ?
साधारणतः यन्त्र एक ज्यामितीय आकृति होती है जो अपने आप मे सबंधित देवशक्ति का निवास स्थान, उसके उपशक्ति और सहयोगी शक्तियों को समाहित किये होती है| यह बिन्दु, रेखाओं, वक्र रेखाओं, त्रिभुजों, वर्गों, वृत्तों और पद्मदलों को मिलाकर, अलग-अलग प्रकार से बनाये जाते हैं। इनपर अंकित रेखाओं, त्रिभुजों, वर्गों, वृत्तों और यहाँ तक कि कोण, अंश का विशिष्ट अर्थ होता है और यंत्रों में किसी कार्य की सफलता का गंभीर लक्ष्य भी निहित होते हैं। 

भारतीय तंत्र साधना विज्ञान, जिन तीन प्रमुख स्तंभों पर स्थापित हैं, उसमें ‘यंत्र साधना’ का विशिष्ट महत्त्व है। जिस प्रकार से देवी-देवताओं की प्रतीकोपासना की जाती है और उसमें सन्निहित दिव्यताओं, प्रेरणाओं की अवधारणा की जाती है, उसी प्रकार ‘यंत्र’ भी किसी देवी या देवता के प्रतीक होते हैं। 

यन्त्र शब्द " यम" धातु से बना है | एक उच्च कोटि का तंत्र ग्रन्थ “कुलार्णव तंत्र” कहता हैं कि ..
यम भूतादि सर्वेभ्यो भ्येभ्योपी कुलेश्वरी |
त्रायते सत् त श्चेव तस्माद यंत्र् मितिरितम ||
अर्थात यम और समस्त प्राणियों तथा समस्त प्रकार के भयों से त्राण करता हैं ,हे कुलेश्वर !सर्वथा त्राण करने के कारण से ही यह यंत्र ,यह नाम दिया जाता हैं ..
कुछ विद्वान का यह भी कहना रहा हैं कि जिसकी पूजा की जा सके वह यन्त्र हैं .

हमारे ऋषिवरों के अनुसार यंत्र अलौकिक एवं चमत्कारिक दिव्य शक्तियों के निवास-स्थान हैं। जिस प्रकार वैदिक संस्कृति में उपलब्ध, पवित्र ज्यामितीय व् धार्मिक प्रतीकों के भीतर बहुत शक्ति और ऊर्जा पाई जाती है , वही शक्ति व ऊर्जा इन पवित्र ज्यामितीय यंत्रों में भी होती है | यन्त्र प्रायः स्वर्ण, चाँदी, ताँबा , स्फटिक एवं पारे जैसी उत्तम धातुओं पर बनाये जाते हैं। भोजपत्र पर भी उनका निर्माण किया जाता है। ये सभी पदार्थ एवं धातुएं विशिष्ट तरंगे उत्पन्न करने की सर्वाधिक क्षमता रखते हैं। उच्चस्तरीय साधनाओं में प्राय: इन्हीं से बने यंत्र प्रयुक्त होते हैं। ये यंत्र केवल रेखाओं और त्रिकोणों से बने ज्यामिति विज्ञान के प्रदर्शक चित्र ही नहीं होते, वरन् उनकी रचना विशेष आध्यात्मिक दृष्टिकोण से की जाती है। यंत्र साधना से साधक यंत्र का ध्यान करते हुए स्वयं को ब्रहमांड जगत से जोड़ पाता है और ऐसी अवस्था में आता है कि ज्ञाता, ज्ञान एवं ज्ञेय एक रूप ही लगने लगते हैं। साधक की चेतना तब अनंत विश्व और अखण्ड ब्रह्म का रूप धारण कर लेती है। यंत्र पूजा में यही भाव निहित है।
सामान्य तौर पर, यंत्रों को यद्यपि मंत्रों से अलग माना जाता है लेकिन वास्तविकता यह है कि यंत्र यदि "शिवरूप हैं" तो मंत्र उनकी अंतर्निहित "शक्ति" है , जो इन्हें संचालित करती है और जीवन के सभी साध्यों की प्राप्ति का साधन बनती है। 
यंत्र का अर्थ है "ताबीज़" या "कवच" भी है , जो अगर किसी योग्य व्यक्ति द्वारा विधिपूर्वक बनवाया जाए, जिसमें वह विशिष्ट निर्देशों का उपयोग करें ताकि उपयोगी परिणाम मिले तथा इच्छित वस्तु या आकांक्षा को पाने में सहायता प्रदान हो

* भू पृष्ठ -जिसका नीचेवाला भाग या पीठ समतल भूमि पर हो। यह चपटा एवं द्वि आयाम , द्वि परिणाम होता है |
* मेरु पृष्ठ -जिसकी पीठ या नीचेवाला भाग समतल भूमि पर नहीं, बल्कि अंडाकार उभरे हुए तल पर हो। यह पिरेमिड के आकार का होता है |
यद्यपि “गौरी यामल तंत्र” के अनुसार यन्त्र के वर्गीकरण में कुर्म पृष्ठ एवं पदम पृष्ठ, दो अन्य प्रकार के भी यन्त्र होतें हैं |

*** यंत्रों का आकृतियों से सम्बन्ध 
यन्त्र पर खिंची गयी ज्यामिति आकृतियों का भी निश्चित अर्थ होता है :-

* वर्ग आकृति - वर्ग पृथ्वी का द्योतक हैं , चार या चार से अधिक् भुजाओं वाली आकृति, पृथ्वी तत्व का प्रतीक होती हैं |
* बिन्दु - बिन्दु विश्व का बीज है, यह पराशक्ति का प्रतीक है। जिससे सृष्टि की उत्पत्ति होती है और फिर उसी में सृष्टि का विलय भी हो जाता है।
* त्रिकोण - त्रिकोण प्रजननशील योनी का प्रतीक है। यह पराशक्ति के प्रथम विकास का सूचक है। चूँकि आकाश को तीन से कम रेखाओं द्वारा घेरा नही जा सकता। यंत्र का नीचे मुख वाला त्रिकोण ‘शक्ति त्रिकोण’ कहलाता और उपरी मुखवाला ‘शिव त्रिकोण’ कहलाता है।
* वृत्त - वृत्त वायु तत्व का प्रतीक होता हैं , पराशक्ति की असीम शक्ति का बोध वृत्त से होता है। 
* चतुष्कोण- चतुष्कोण आकाश की समग्रता का प्रतीक है। इसे दसों दिशाओं एवं समस्त सृष्टि का आधार माना गया है।
* उर्ध्वमुखी त्रिकोण- शिव तत्व का प्रतीक हैं, और उसका उपरी कोण अग्नि तत्व का प्रतीक होता है |
* अधोमुखी त्रिकोण- जल तत्व का प्रतीक होता है क्योंकि यह हमेशा नीचे कि ओर ही गति करता हैं |

*** यंत्रों का अंको से सम्बन्ध

अंक विज्ञानं और यन्त्र विज्ञानं का आपसी समबन्ध बहुत ही प्राचीन हैं , जितने भी यंत्र सामान्य रूप से प्राप्त होते हैं उनमे अंक का प्रयोग किया ही जाता हैं | यंत्रों के संक्षिप्त शब्द एवं अंक वास्तव में देवी और देवता होते हैं |

* अंक १- विश्व का प्रतीक है, अर्थात ब्रम्ह का आत्मा से, अंक २- मानव शरीर मे स्थित आंतरिक विश्व का और बाह्य्गत विश्व, अंक ३- तीन गुण सत रज और तम के प्रतीक हैं, अंक ४- चार पुरुषार्थो - धर्म , अर्थ, काम , मोक्ष के प्रतीक हैं, अंक ५- पञ्च महा भूत का प्रतीक हैं, अंक ६- काम क्रोध लोभ आदि षड रिपु का प्रतीक हैं , अंक ७- सात प्रकार कि व्याह्र्तिया का प्रतीक हैं, अंक ८ - अष्टमा प्रकृति का प्रतीक हैं , अंक ९- नव निधि का प्रतीक हैं , अंक १०- अनंत तत्व क्योंकि १ और ० मे सब कुछ समाया हुआ हैं , का प्रतीक हैं , अंक ११ - एकादश इन्द्रियों का प्रतीक हैं, अंक १२- चौदह भुवनो का प्रतीक हैं |

*** यंत्रों के कार्यों के अनुसार वर्गीकरण

यंत्र ऊर्जा विज्ञान का एक शक्तिशाली माध्यम है | यंत्र तभी अपना कार्य करते हैं , जब इनको निर्माण करने वाला साधक श्रद्धा , विश्वास , मनोयोग एवं पवित्रता के साथ तथा नियमों की जानकारी प्राप्त करके करता है, अन्यथा यन्त्र में निहित शक्ति मृत हो जाती है और कई बार यंत्र निर्माण करने वाले को हानि भी पहुंचा सकती हैं। । यंत्र विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए निर्मित किये जाते हैं , जिनका विवरण निम्न प्रकार है,,परंतु उनका शास्त्रानुसार प्रयोग, जबतक कोई अति विषम स्थिति न हो तो - अच्छे कार्यों में ही करना चाहिए |

* शांतिकर्म यंत्र: यह वह यंत्र होते हैं जिनका उद्देश्य कल्याणकारी और शक्तिप्रद कार्यों के लिए किया जाता है। इससे किसी का अहित नहीं किया जा सकता है। इनका मूल प्रयोग रोग निवारण, ग्रह-पीड़ा से मुक्ति, दुःख, गरीबी के नाश हेतु, रोजगार आदि प्राप्त करने में किया जाता है ।
* स्तंभन यंत्र: आग, हवा, पानी, वाहन, व्यक्ति, पशुओं आदि से होने वाली हानि को रोकने के लिए इस प्रकार के यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग करने से उपरोक्त कारणों से आई हुई विपदाओं का स्तंभन किया जाता है अर्थात उन पर रोक लगाई जाती है।
* सम्मोहन यंत्र: ये यंत्र वह होते हैं जिनसे किसी वस्तु या मनुष्य को सम्मोहित किया जाता है। 
* उच्चाटन यंत्र: ये यंत्र वह होते हैं जिनसे प्राणी में मानसिक अस्थिरता, भय, भ्रम, शंका और कार्य से विरत रहने का कार्य लिया जाता है। इन यंत्रों का प्रयोग वर्जित माना जाता है।
* वशीकरण हेतु यंत्र: इन यंत्रों के द्वारा प्राणियों, प्रकृति में उपस्थित तत्वों का वशीकरण किया जाता है। इनके प्रयोग से संबंधित व्यक्ति धारण करने वाले के निर्देशों, आदेशों का पालन करते हुए उसके अनुसार आचरण करने लगता है।
* आकर्षण हेतु यंत्र:- आकर्षण यंत्र के प्रयोग से दूरस्थ प्राणी को आकर्षित कर अपने पास बुलाया जाता है।
* विद्वेषण यंत्र: इन यंत्रों के माध्यम से प्राणियों में फूट पैदा करना, अलगाव कराना, शत्रुता आदि कराना होता है। इससे प्राणी की एकता, सुख, शक्ति, भक्ति को नष्ट करना होता है।
* मारणकर्म हेतु यंत्र: इन यंत्रों के द्वारा अभीष्ट प्राणी, पशु-पक्षी आदि की मृत्यु का कार्य लिया जाता है। यह सबसे घृणित यंत्र है।
* पौष्टिक कर्म हेतु यंत्र: किसी का भी अहित किये बिना साधक अपने सिद्ध यंत्रों से अन्य व्यक्तियों के लिए धन-धान्य, सुख सौभाग्य, यश, कीर्ति और मान-सम्मान की वृद्धि हेतु प्रयोग करता है, उन्हें पौष्टिक कर्म यंत्र कहते हैं।

*** यंत्र के कार्य करने के पीछे सिद्धांत एवं यंत्रों का महत्व 
यंत्र देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनमें चमत्कारिक दिव्य शक्तियों का निवास होता है। यंत्र मुख्यतः तीन सिद्धांतों का संयुक्त रूप हैं-

1) आकृति रूप- यंत्र ब्रह्मांड के आंतरिक धरातल पर उपस्थित आकार व आकृति का प्रतिरूप हैं। जैसा कि सभी पदार्थों का बाहरी स्वरूप कैसा भी हो, उसका मूल, अणुओं का परस्पर संयुक्त रूप ही हैं, इसी प्रकार यंत्र में, विश्व की समस्त रचनाएं समाहित हैं। ये सामान्य आकृतियां, ब्रह्ममांड से नक्षत्र का अपनी एक विशेष आकृति रूप-यंत्र होता हैं।
2) क्रिया रूप - यंत्रों की प्रारंभिक आकृतियां मनोवैज्ञानिक चिन्ह हैं जो मानव की आंतरिक स्थिति के अनुरूप उसे अच्छे बुरे का ज्ञान, उसमें वृद्धि या नियंत्रण को संभव बनाती हैं। इसी कारण यंत्र क्रिया रूप हैं। 
3)शक्ति रूप - ‘यंत्र’’ की निरंतर निष्ठापूर्वक पूजा करने से ‘आंतरिक सुषुप्तावस्था समाप्त होकर आत्मशक्ति जाग्रत होती हैं और आकृति और क्रिया से आगे जाकर ‘‘शक्ति रूप उत्पन्न होता हैं। जिससे स्वतः उत्पन्न आंतरिक परिवर्तन का मानसिक अनुभव होने लगता हैं।

जिस प्रकार मानव शरीर विशालकाय ब्रह्मांड का सूक्ष्म रूप है। उसी प्रकार विशालकाय ब्रह्मांड को सूक्ष्म रूप में अभिव्यक्त करने के लिये ये यंत्र बनाये जाते हैं। इन तीन सिद्धांतों के आधार पर संयुक्त रूप से कार्य करने पर यंत्रों की शक्ति तभी जागृत होती है जब यंत्रों की निष्ठापूर्वक और विधि-विधान से पूजा एवं प्राण प्रतिष्ठा की जाये | बिना प्राण-प्रतिष्ठा के यंत्र को पूजा स्थल पर भी नहीं रखा जाता है क्योंकि ऐसा करने से सकारात्मक प्रभाव के स्थान पर नकारात्मक प्रभाव होने लगते हैं। मनुष्य के शरीर में सात चक्र हैं, और ब्रम्हाण्ड के विभिन्न भागों में यंत्र अवस्थित हैं। शरीर के चक्रों और ब्रम्हाण्ड के यंत्रों के मध्य गहरा संबन्ध स्थापित होना ही तंत्र साधना है- जो चक्रों और यंत्रों पर ध्यान केन्द्रित करके ही प्राप्त किया जा सकता है। इन यंत्रों को उनके स्थान अनुरूप पूजा स्थान, कार्यालय, दुकान, शिक्षास्थल इत्यादि में रखा जा सकता है | यंत्र रोज़ाना सुबह देखना शुभ होता है, और प्रतिदिन सुबह यंत्र के समक्ष पहले धूप या घी का दीपक जलाना चाहिए। यंत्र को रखने एवं उसकी पूजा करने से अध्यात्मिक शान्ति में वृद्धि होती है और साधना करने वालों को सुख-ऐश्वर्य , सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


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