कर्क लग्न का स्वामी “चन्द्रमा ” एक शीतल सौम्य यावं शुभ ग्रह है . चन्द्रमा का सबसे अधिक असर किसी भी जातक की मनः स्तिथि पर देखा गया है. अतः कर्क लग्न के जातक अत्यधिक भावुक परन्तु न्यायप्रिय होते हैं. इस लग्न में जन्मे व्यक्ति गौर वर्ण तथा कोमल शारीरिक गठन के होते हैं.
दूसरों के प्रति दया व प्रेम की भावना तथा जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की तीव्र लालसा इनकी निजी विशेषता है. कर्क लग्न में जन्मे जातकों की मानसिक शक्ति गजब की होती है. अत्यंत भावुक होने के कारण कभी कभी अपना भला बुरा भी नहीं सोच पाते हैं. समान्यतः कर्क लग्न के जातक शांत प्रवृत्ति के होते हैं तथा अपने कार्यकलापों को दृढ़तापूर्वक संपन्न करते हैं. ऐसे जातक कठोर परिश्रम करते हैं परन्तु इच्छित फल की प्राप्ति इन्हें देर से ही मिलती है.
प्रेम व स्नेह के क्षेत्र में आप निश्चलता का प्रदर्शन करते हैं. जीवन में भौतिक सुख संसाधनों को ये स्वपरिश्रम तथा पराक्रम से अर्जित करने में समर्थ रहते हैं तथा सुखपूर्वक इनका भोग करते हैं.
सामाजिक कार्यों ओर देश सेवा की भावना कर्क लग्न के जातकों में अधिक देखि गयी है. अन्य जनों की आतंरिक भावनाओं को समझने में आप दक्ष होते हैं. कर्क लग्न के जातक राजनीतिक या सरकारी क्षेत्र में किसी सम्मानित पद को प्राप्त करके मान प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि अर्जित करते हैं प्रन्त्यु दांपत्य जीवन में प्रायः सुख नहीं मिलता फिर भी अपने जीवन साथी ओर बच्चों पर आप जान छिड़कते है.
मित्रों में आप सम्मानीय रहेंगे तथा समाज में भी आप यथोचित आदर व सम्मान प्राप्त करेंगे. आर्थिक रूप से भी आप संपन्न रहेंगे तथा अपने जीवन काल में धन अर्जन करने में भी सफल रहेंगे. संगीत एवं कला के क्षेत्र में भी आपकी रूचि तथा योगदान भी रहेगा.
धर्म के प्रति आपकी श्रद्धा रहेगी परन्तु धार्मिक कार्यकलापया अनुष्ठान अल्प मात्र में हे संपन्न होंगे. प्रकृति के प्रति आपका आकर्षण रहेगा तथा समय समय पर आप भ्रमण भी करेंगे.
कर्क लग्न में जन्म लेने वाले जातक प्रायः राजनेता, मंत्री, राज्याधिकारी, डाक्टर, व्यवसायी, नाविक, प्राध्यापक अथवा इतिहासकार आदि क्षेत्रों को अपनी जीविकोपार्जन का माध्यम बनाते हैं। इनकी वृश्चिक, मकर एवं मीन लग्न वाले जातकों से अच्छा मित्र भाव बना रहता है। इनका कोई भी कार्य धन के आभाव में नहीं रुकता। सामाजिक कार्यों में भी धन व्यय करने हेतु सदैव अग्रणी एवं तत्पर रहते हैं। ऐसे जातक आत्म विश्वास से परिपूर्ण एवं न्याय प्रिय होते हैं। इनकी मानसिक शक्ति बड़ी तीव्र एवं मजबूत होती है।
कर्क लग्न में जन्मे जातक प्रायः गौर वर्ण के ही होते हैं, किन्तु ग्रह स्थिति के कारण अपवाद स्वरुप श्याम वर्ण के भी हो सकते हैं। इनका कद मंझोला एवं सुगठित शरीर होता है एवं आगे के दांत कुछ बड़े आकार के होते हैं। इनका मुख देखने में सुन्दर होता है। ये जातक विलासी, गतिशील, परिवर्तनशील एवं चंचल प्रवृत्ति वाले होते हैं एवं इनका हृदय उदार, स्वच्छ एवं विशाल होता है। ऐसे जातक अत्यन्त कल्पनाशील एवं भावुक प्रवृत्ति के होते है एवं भावना के वेग में ये इतना बह जाते हैं कि अपना भला बुरा तक इन्हे नहीं सूझता। यात्रा करना एवं प्रकृति प्रेम इनके स्वभाव में होता है एवं ऐसे जातक नवीन तथा जलज वस्तुओं के प्रति विशेष रुचि रखने वाले होते हैं।
कर्क लग्न में जन्मे जातक अपना कार्य बड़ी मेहनत, चातुर्य, बुद्धिमत्ता, नीतिज्ञता एवं समय अनुसार करना पसंद करते हैं। ऐसे जातक को स्त्री वर्ग से विशेष हर्ष एवं लाभ प्राप्त होता है। इनका दाम्पत्य जीवन प्रायः सुखद नहीं होता किन्तु फिर भी ये अपनी पत्नी एवं संतानो पर जान छिड़कते हैं। कुण्डली में विवाह प्रतिबन्धक योग होने पर भी इन्हें काम सुख प्राप्ति के अवसर मिलते ही रहते हैं। कर्क लग्न में जन्मे जातको को उदर, हृदय, कफ, मूत्राशय सम्बन्धी रोगों व विकारों की सम्भावना बनी रहती है।
कर्क लग्न में जन्मे जातक की जन्म कुंडली में यदि लग्न भाव में मंगल-राहु ग्रह युति बनती है तो ऐसे जातक ओछेपन की प्रवृत्ति कायम कर लेते हैं। लग्न भाव में मंगल-राहु ग्रह युति इन्हें दरिद्री एवं उदर रोगी भी बना देती है। इनके लग्न में शनि सप्तमेश की स्थिति में होता है, जिस कारण शनि ग्रह प्रारम्भ में शुभ फल एवं बाद में अशुभ फल प्रदान करता है। बृहस्पति ग्रह से इन्हे शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार के प्रभाव प्राप्त होते हैं। शुक्र एवं बुध ग्रह से इनको अशुभ फल प्राप्त होता हैं। कर्क लग्न में जन्मे जातक के लिए मंगल ग्रह सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करने वाला ग्रह समझा गया है।
कर्क लग्न की कुंडली में मन का कारक ग्रह चंद्रमा प्रथम भाव का स्वामी (लग्नेश) होता है और यह जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व. इत्यादि का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए कर्क लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले ये सभी कार्य ही होते है. जन्मकुंडली एवम दशाकाल में चंद्र के बलवान एवम शुभ रहने पर उपरोक्त वर्णित संदर्भों में जातक को शुभ फ़ल मिलकर कर्क लग्न के जातक का मन प्रसन्न रहता है. यदि जन्मकुंडली या दशाकाल में चंद्र के कमजोर अथवा पाप प्रभाव में रहने पर उपरोक्त संदर्भों में अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं और जातक को मानसिक क्लेश की प्राप्ति होती है.
समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य द्वितीय भाव का स्वामी होता है और यह जातक के कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब, का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए अपने नाम यश को फैलाने के लिए कर्क लग्न के जातक धन की स्थिति को मजबूत बनाने रखने पर अत्यधिक जोर देते हैं। अपने नाम यश को फैलाने के लिए इन्हें धनार्जन एक मुख्य उपाय दिखाई देता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
मंगल पंचम और दशम भाव का अधिपति होता है. पंचमेश के नाते बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि एवम दशमेश के नाते राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. कर्क लग्न में मंगल सबसे शुभ अत्यंत राज योगकारी ग्रह होता है. मंगल के बलवान होने एवम शुभ प्रभाव गत होने से कर्क लग्न वाले जातकों को अत्यंत ही शुभ और श्रेष्ठ फ़ल उपरोक्त विषयों में प्राप्त होते हैं. अगर मंगल कमजोर, अशुभ प्रभाव में हो तो वांछित शुभ फ़लों में अत्यंत कमजोर उपलब्धि हो पाती है. अनुभव जन्य बात यह है कि एक केंद्र और एक त्रिकोण का अधिपति होने मंगल इस लग्न में अति शुभ हो जाता है एवम मंगल कितना ही कमजोर हो कर्क लग्न में अशुभ फ़ल बहुत कम ही दे पाता है.
शुक्र चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी है और चतुर्थेश होने के नाते यह माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह इत्यादि विषयों का एवम एकादशेश होने के कारण यह लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बुध द्वादश भाव का स्वामी होता है इस वजह से यह जातक की निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण का प्रतिनिधि होता है.
जन्मकुंडली या दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बृहस्पति कर्क लग्न में षष्ठ भाव का स्वामी होकर षष्ठेष बनता है जो कि जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में बृहस्पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
शनि यहां सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी होता है. सप्तमेष होने के कारण यह लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि एवम अष्टमेश होने के कारण व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
राहु को कर्क लग्न में तॄतीयेश का दायित्व मिलता है जिस नाते यह कर्क लग्न के जातकों के नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
केतु को कर्क लग्न में नवमेष होने का दायित्व मिला हुआ है जिस कारण यह कर्क लग्न के जातकों के धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
दूसरों के प्रति दया व प्रेम की भावना तथा जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की तीव्र लालसा इनकी निजी विशेषता है. कर्क लग्न में जन्मे जातकों की मानसिक शक्ति गजब की होती है. अत्यंत भावुक होने के कारण कभी कभी अपना भला बुरा भी नहीं सोच पाते हैं. समान्यतः कर्क लग्न के जातक शांत प्रवृत्ति के होते हैं तथा अपने कार्यकलापों को दृढ़तापूर्वक संपन्न करते हैं. ऐसे जातक कठोर परिश्रम करते हैं परन्तु इच्छित फल की प्राप्ति इन्हें देर से ही मिलती है.
प्रेम व स्नेह के क्षेत्र में आप निश्चलता का प्रदर्शन करते हैं. जीवन में भौतिक सुख संसाधनों को ये स्वपरिश्रम तथा पराक्रम से अर्जित करने में समर्थ रहते हैं तथा सुखपूर्वक इनका भोग करते हैं.
सामाजिक कार्यों ओर देश सेवा की भावना कर्क लग्न के जातकों में अधिक देखि गयी है. अन्य जनों की आतंरिक भावनाओं को समझने में आप दक्ष होते हैं. कर्क लग्न के जातक राजनीतिक या सरकारी क्षेत्र में किसी सम्मानित पद को प्राप्त करके मान प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि अर्जित करते हैं प्रन्त्यु दांपत्य जीवन में प्रायः सुख नहीं मिलता फिर भी अपने जीवन साथी ओर बच्चों पर आप जान छिड़कते है.
मित्रों में आप सम्मानीय रहेंगे तथा समाज में भी आप यथोचित आदर व सम्मान प्राप्त करेंगे. आर्थिक रूप से भी आप संपन्न रहेंगे तथा अपने जीवन काल में धन अर्जन करने में भी सफल रहेंगे. संगीत एवं कला के क्षेत्र में भी आपकी रूचि तथा योगदान भी रहेगा.
धर्म के प्रति आपकी श्रद्धा रहेगी परन्तु धार्मिक कार्यकलापया अनुष्ठान अल्प मात्र में हे संपन्न होंगे. प्रकृति के प्रति आपका आकर्षण रहेगा तथा समय समय पर आप भ्रमण भी करेंगे.
कर्क लग्न में जन्म लेने वाले जातक प्रायः राजनेता, मंत्री, राज्याधिकारी, डाक्टर, व्यवसायी, नाविक, प्राध्यापक अथवा इतिहासकार आदि क्षेत्रों को अपनी जीविकोपार्जन का माध्यम बनाते हैं। इनकी वृश्चिक, मकर एवं मीन लग्न वाले जातकों से अच्छा मित्र भाव बना रहता है। इनका कोई भी कार्य धन के आभाव में नहीं रुकता। सामाजिक कार्यों में भी धन व्यय करने हेतु सदैव अग्रणी एवं तत्पर रहते हैं। ऐसे जातक आत्म विश्वास से परिपूर्ण एवं न्याय प्रिय होते हैं। इनकी मानसिक शक्ति बड़ी तीव्र एवं मजबूत होती है।
कर्क लग्न में जन्मे जातक प्रायः गौर वर्ण के ही होते हैं, किन्तु ग्रह स्थिति के कारण अपवाद स्वरुप श्याम वर्ण के भी हो सकते हैं। इनका कद मंझोला एवं सुगठित शरीर होता है एवं आगे के दांत कुछ बड़े आकार के होते हैं। इनका मुख देखने में सुन्दर होता है। ये जातक विलासी, गतिशील, परिवर्तनशील एवं चंचल प्रवृत्ति वाले होते हैं एवं इनका हृदय उदार, स्वच्छ एवं विशाल होता है। ऐसे जातक अत्यन्त कल्पनाशील एवं भावुक प्रवृत्ति के होते है एवं भावना के वेग में ये इतना बह जाते हैं कि अपना भला बुरा तक इन्हे नहीं सूझता। यात्रा करना एवं प्रकृति प्रेम इनके स्वभाव में होता है एवं ऐसे जातक नवीन तथा जलज वस्तुओं के प्रति विशेष रुचि रखने वाले होते हैं।
कर्क लग्न में जन्मे जातक अपना कार्य बड़ी मेहनत, चातुर्य, बुद्धिमत्ता, नीतिज्ञता एवं समय अनुसार करना पसंद करते हैं। ऐसे जातक को स्त्री वर्ग से विशेष हर्ष एवं लाभ प्राप्त होता है। इनका दाम्पत्य जीवन प्रायः सुखद नहीं होता किन्तु फिर भी ये अपनी पत्नी एवं संतानो पर जान छिड़कते हैं। कुण्डली में विवाह प्रतिबन्धक योग होने पर भी इन्हें काम सुख प्राप्ति के अवसर मिलते ही रहते हैं। कर्क लग्न में जन्मे जातको को उदर, हृदय, कफ, मूत्राशय सम्बन्धी रोगों व विकारों की सम्भावना बनी रहती है।
कर्क लग्न में जन्मे जातक की जन्म कुंडली में यदि लग्न भाव में मंगल-राहु ग्रह युति बनती है तो ऐसे जातक ओछेपन की प्रवृत्ति कायम कर लेते हैं। लग्न भाव में मंगल-राहु ग्रह युति इन्हें दरिद्री एवं उदर रोगी भी बना देती है। इनके लग्न में शनि सप्तमेश की स्थिति में होता है, जिस कारण शनि ग्रह प्रारम्भ में शुभ फल एवं बाद में अशुभ फल प्रदान करता है। बृहस्पति ग्रह से इन्हे शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार के प्रभाव प्राप्त होते हैं। शुक्र एवं बुध ग्रह से इनको अशुभ फल प्राप्त होता हैं। कर्क लग्न में जन्मे जातक के लिए मंगल ग्रह सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करने वाला ग्रह समझा गया है।
कर्क लग्न की कुंडली में मन का कारक ग्रह चंद्रमा प्रथम भाव का स्वामी (लग्नेश) होता है और यह जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व. इत्यादि का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए कर्क लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले ये सभी कार्य ही होते है. जन्मकुंडली एवम दशाकाल में चंद्र के बलवान एवम शुभ रहने पर उपरोक्त वर्णित संदर्भों में जातक को शुभ फ़ल मिलकर कर्क लग्न के जातक का मन प्रसन्न रहता है. यदि जन्मकुंडली या दशाकाल में चंद्र के कमजोर अथवा पाप प्रभाव में रहने पर उपरोक्त संदर्भों में अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं और जातक को मानसिक क्लेश की प्राप्ति होती है.
समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य द्वितीय भाव का स्वामी होता है और यह जातक के कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब, का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए अपने नाम यश को फैलाने के लिए कर्क लग्न के जातक धन की स्थिति को मजबूत बनाने रखने पर अत्यधिक जोर देते हैं। अपने नाम यश को फैलाने के लिए इन्हें धनार्जन एक मुख्य उपाय दिखाई देता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
मंगल पंचम और दशम भाव का अधिपति होता है. पंचमेश के नाते बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि एवम दशमेश के नाते राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. कर्क लग्न में मंगल सबसे शुभ अत्यंत राज योगकारी ग्रह होता है. मंगल के बलवान होने एवम शुभ प्रभाव गत होने से कर्क लग्न वाले जातकों को अत्यंत ही शुभ और श्रेष्ठ फ़ल उपरोक्त विषयों में प्राप्त होते हैं. अगर मंगल कमजोर, अशुभ प्रभाव में हो तो वांछित शुभ फ़लों में अत्यंत कमजोर उपलब्धि हो पाती है. अनुभव जन्य बात यह है कि एक केंद्र और एक त्रिकोण का अधिपति होने मंगल इस लग्न में अति शुभ हो जाता है एवम मंगल कितना ही कमजोर हो कर्क लग्न में अशुभ फ़ल बहुत कम ही दे पाता है.
शुक्र चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी है और चतुर्थेश होने के नाते यह माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह इत्यादि विषयों का एवम एकादशेश होने के कारण यह लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बुध द्वादश भाव का स्वामी होता है इस वजह से यह जातक की निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण का प्रतिनिधि होता है.
जन्मकुंडली या दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बृहस्पति कर्क लग्न में षष्ठ भाव का स्वामी होकर षष्ठेष बनता है जो कि जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में बृहस्पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
शनि यहां सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी होता है. सप्तमेष होने के कारण यह लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि एवम अष्टमेश होने के कारण व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
राहु को कर्क लग्न में तॄतीयेश का दायित्व मिलता है जिस नाते यह कर्क लग्न के जातकों के नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
केतु को कर्क लग्न में नवमेष होने का दायित्व मिला हुआ है जिस कारण यह कर्क लग्न के जातकों के धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली या दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.