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प्रश्न कुंडली : फलित ज्योतिष Prashnsa Kundali Dalit

प्रश्न कुंडली : फलित ज्योतिषPrashnsa Kundali Dalit


जातक द्वारा पूछे प्रश्न के दिन समय एवं स्थान पर आधारित कुंडली को प्रश्न कुंडली कहते हैं। फलित ज्योतिष में इसका विशेष महत्व है। कई प्रकार प्रश्न के उत्तर केवल प्रश्न कुंडली द्वारा ही दिए जा सकते हैं। यदि जन्म विवरण न हो तो भी प्रश्न कुंडली का विशेष स्थान हो जाता है।
सवाल होती है। ऐसे में समस्‍या समाधान का जवाब देने के लिए प्रश्‍न कुण्‍डली सर्वाधिक उपयुक्‍त तरीका है।

ध्‍यान रखने की बात यह है, कि प्रश्‍न के सामने आते ही उसकी कुण्‍डली बना ली जाए। इससे समय के फेर की समस्‍या नहीं रहती। इसके साथ ही जातक की मूल कुण्‍डली भी मिल जाए और वह प्रश्‍न कुण्‍डली को इको करती हो तो समस्‍या का हल ढूंढना और भी आसान हो जाता है।

कई बार जातक जो मूल कुण्‍डली लेकर आता है, वह भी संदेह के घेरे में होती है। ओमेने (जो कि संकेतों का विज्ञान है) बताता है कि जातक का ज्‍योतिषी के पास आने का समय और जातक की कुण्‍डली दोनों आमतौर पर एक-दूसरे के पूरक होते हैं। ऐसे में प्रश्‍न कुण्‍डली बना लेना फलादेश के सही होने की गारंटी को बढ़ा देता है।

प्रश्‍न कुण्‍डली के साथ सबसे बड़ी समस्‍या यही है कि जातक के सवाल का सही नहीं होना। ज्‍योतिष की जिन पुस्‍तकों में प्रश्‍नों के सवाल देने की विधियां दी गई हैं उन्‍हीं में छद्म सवालों से बचने के तरीके भी बताए गए हैं। इसका पहला नियम यह है कि ज्‍योतिषी को टैस्‍ट करने के लिए पूछे गए सवालों का जवाब कभी मत दो।

ऐसा इसलिए कि ओमेने के सिद्धांत के अनुसार छद्म सवाल का कोई उत्‍तर नहीं होता। जातक का सवाल सही नहीं होने पर प्रश्‍न और कुण्‍डली एक-दूसरे के पूरक नहीं बन पाते हैं। ऐसे में प्रश्‍न कुण्‍डली बनाने के साथ ही ज्‍योतिषी को प्रश्‍न के स्‍वभाव का प्रारंभिक अनुमान भी कर लेना चाहिए। इससे प्रश्‍न में बदलाव की संभावना कम होती है।

कमोबेश एक जैसे सवाल

ज्‍योतिष कार्यालय चलाने वाले लोग जानते हैं कि एक दिन में एक ही प्रकार की समस्‍याओं वाले लोग अधिक आते हैं। इसका कारण यह है कि गोचर में ग्रहों की जो स्थिति होती है उससे पीडि़त होने वाले लोगों का स्‍वभाव भी एक जैसा ही होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि समान राशि या कुण्‍डली वाले लोगों को एक जैसी समस्‍याएं होगी बल्कि ग्रह योगों की समान स्थिति से समान स्‍वभाव की समस्‍याएं सामने आएंगी।

मेरा अनुभव बताता है कि जिस दिन गोचर में चंद्रमा और शनि की युति होगी, तो उस दिन मानसिक समस्‍याओं से घिरे लोग अधिक आएंगे। हां, मानसिक समस्‍याओं का प्रकार लग्‍न और अन्‍य ग्रहों के कारण बदल जाता। कोई सिजोफ्रीनिया से पीडि़त हो सकता है तो कोई क्रोनिक डिप्रेशन का मरीज हो सकता है।

किसी को दिमागी सुस्‍ती की समस्‍या हो सकती है तो कोई साइको-सोमेटिक डिजीज से ग्रस्‍त हो सकता है। इस तरह प्रश्‍न कुण्‍डली से एक ओर जातक का विश्‍लेषण आसान हो जाता है तो दूसरी ओर भूतकाल स्‍पष्‍ट करने के बजाय भविष्‍य कथन में अधिक ध्‍यान लगाया जा सकता है।


प्रश्न: फलित ज्योतिष में प्रश्न कुंडली का क्या महत्व है ? 
उत्तर: कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनके उत्तर जन्म कुंडली द्वारा नहीं दिए जा सकते जैसे- चोरी हुआ सामान प्राप्त होगा या नहीं एवं कहां और कब तक और साथ ही यदि जातक के पास अपनी जन्म कुंडली नहीं हो और न ही उसे अपनी जन्म तिथि इत्यादि का पता हो और वह भविष्य जानने का इच्छुक हो, तो प्रश्न कुंडली की सहायता से ज्योतिषी जातक के प्रश्नों के उŸार देने में सफल हो जाता है। इसीलिए फलित ज्योतिष में प्रश्न कुं¬डली के महत्व को समझते हुए इसे विशेष स्थान दिया गया है। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली में प्रश्न एवं उत्तर कैसे छुपे होते हैं? 
उत्तर: ग्रह मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर सदैव प्रभाव डालते रहते हैं। वे ही जातक के मस्तिष्क में प्रश्न उत्पन्न करते हैं, वे ही उसमें उत्तर भी प्रेषित कर देते हैं। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली में कौन सा समय लेना चाहिए- जिस समय प्रश्न की जिज्ञासा हुई, प्रश्न पूछा गया, या जब प्रश्न कुंडली की गणना की गई? 
उत्तर: प्रश्न की जिज्ञासा का संबंध गर्भ धारण से है, प्रश्न पूछे जाने का जन्म से और प्रश्न की गणना का जन्मकुंडली बनाने से। इसलिए प्रश्नकाल प्रश्न पूछने का लेना चाहिए, क्योंकि यही प्रश्न की उत्पत्ति है। 

प्रश्न: यदि विदेश से फोन द्वारा प्रश्न पूछा जाए, तो क्या प्रश्न कुंडली समय एवं स्थान की बनानी चाहिए? 
उत्तर: प्रश्नकर्ता जहां से प्रश्न किया हो प्रश्न जन्म का स्थान वही माना जाएगा। इसलिए जहां से और जब फोन आया हो। उसी समय व स्थान के अक्षांश और रेखांश के आधार पर प्रश्न कुंडली बनानी चाहिए, क्योंकि वहीं की ग्रह स्थिति प्रश्नकर्ता के मस्तिष्क पर प्रभाव डाल रही है। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली का निर्माण कैसे किया जाता है? 
उत्तर: प्रश्न कुंडली बनाने का भी वही तरीका है जो जन्म कुंडली बनाने का। जिस समय जातक प्रश्न पूछता है, उसी समय के अनुसार लग्न साधन कर कुंडली बनाई जाती है। ग्रह स्पष्ट कर दशा भी लगाएं। यदि आप के पास कंप्यूटर है, तो आप तुरंत प्रश्न कुंडली स्क्रीन पर देख सकते हैं। यदि कंप्यूटर नहीं है, तो पंचांग या एफेमेरिज की सहायता से प्रश्न कुंडली का निर्माण करें। 

प्रश्न: जन्म कुंडली और प्रश्न कुंडली से फलित करने के नियम एक से हैं या भिन्न-भिन्न? 
उत्तर: ज्योतिष का आधार तो नौ ग्रह, बारह राशियां और सŸााईस नक्षत्र ही हैं। इसलिए जन्म कुंडली और प्रश्न कुंडली से फलित करने के नियमों में कोई विशेष अंतर नहीं है। थोड़ा अंतर अवश्य है। प्रश्न में ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति एवं दृष्टियां भिन्न होती हैं। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली में सर्वाधिक महत्व किसे दिया जाता है? 
उत्तर: प्रश्न कुंडली में सर्वाधिक महत्व प्रश्न लग्न और और लग्नेश को दिया जाता है, क्योंकि प्रश्न लग्न प्रश्नकर्ता का प्रतिनिधित्व करता है। लग्न, लग्न में स्थित ग्रह, लग्नेश, लग्नेश की कुं¬डली में भाव स्थिति और युति, इन्ही पर निर्भर करता है कि पूछा गया प्रश्न सफल है या असफल। 

प्रश्न: फलित ज्योतिष में प्रश्न कुंडली का क्या महत्व है ? 
उत्तर: कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनके उत्तर जन्म कुंडली द्वारा नहीं दिए जा सकते जैसे- चोरी हुआ सामान प्राप्त होगा या नहीं एवं कहां और कब तक और साथ ही यदि जातक के पास अपनी जन्म कुंडली नहीं हो और न ही उसे अपनी जन्म तिथि इत्यादि का पता हो और वह भविष्य जानने का इच्छुक हो, तो प्रश्न कुंडली की सहायता से ज्योतिषी जातक के प्रश्नों के उŸार देने में सफल हो जाता है। इसीलिए फलित ज्योतिष में प्रश्न कुं¬डली के महत्व को समझते हुए इसे विशेष स्थान दिया गया है। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली में प्रश्न एवं उत्तर कैसे छुपे होते हैं? 
उत्तर: ग्रह मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर सदैव प्रभाव डालते रहते हैं। वे ही जातक के मस्तिष्क में प्रश्न उत्पन्न करते हैं, वे ही उसमें उत्तर भी प्रेषित कर देते हैं। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली में कौन सा समय लेना चाहिए- जिस समय प्रश्न की जिज्ञासा हुई, प्रश्न पूछा गया, या जब प्रश्न कुंडली की गणना की गई? 
उत्तर: प्रश्न की जिज्ञासा का संबंध गर्भ धारण से है, प्रश्न पूछे जाने का जन्म से और प्रश्न की गणना का जन्मकुंडली बनाने से। इसलिए प्रश्नकाल प्रश्न पूछने का लेना चाहिए, क्योंकि यही प्रश्न की उत्पत्ति है। 

प्रश्न: यदि विदेश से फोन द्वारा प्रश्न पूछा जाए, तो क्या प्रश्न कुंडली समय एवं स्थान की बनानी चाहिए? 
उत्तर: प्रश्नकर्ता जहां से प्रश्न किया हो प्रश्न जन्म का स्थान वही माना जाएगा। इसलिए जहां से और जब फोन आया हो। उसी समय व स्थान के अक्षांश और रेखांश के आधार पर प्रश्न कुंडली बनानी चाहिए, क्योंकि वहीं की ग्रह स्थिति प्रश्नकर्ता के मस्तिष्क पर प्रभाव डाल रही है। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली का निर्माण कैसे किया जाता है? 
उत्तर: प्रश्न कुंडली बनाने का भी वही तरीका है जो जन्म कुंडली बनाने का। जिस समय जातक प्रश्न पूछता है, उसी समय के अनुसार लग्न साधन कर कुंडली बनाई जाती है। ग्रह स्पष्ट कर दशा भी लगाएं। यदि आप के पास कंप्यूटर है, तो आप तुरंत प्रश्न कुंडली स्क्रीन पर देख सकते हैं। यदि कंप्यूटर नहीं है, तो पंचांग या एफेमेरिज की सहायता से प्रश्न कुंडली का निर्माण करें।

प्रश्न: जन्म कुंडली और प्रश्न कुंडली से फलित करने के नियम एक से हैं या भिन्न-भिन्न? 
उत्तर: ज्योतिष का आधार तो नौ ग्रह, बारह राशियां और सŸााईस नक्षत्र ही हैं। इसलिए जन्म कुंडली और प्रश्न कुंडली से फलित करने के नियमों में कोई विशेष अंतर नहीं है। थोड़ा अंतर अवश्य है। प्रश्न में ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति एवं दृष्टियां भिन्न होती हैं। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली में सर्वाधिक महत्व किसे दिया जाता है? 
उत्तर: प्रश्न कुंडली में सर्वाधिक महत्व प्रश्न लग्न और और लग्नेश को दिया जाता है, क्योंकि प्रश्न लग्न प्रश्नकर्ता का प्रतिनिधित्व करता है। लग्न, लग्न में स्थित ग्रह, लग्नेश, लग्नेश की कुं¬डली में भाव स्थिति और युति, इन्ही पर निर्भर करता है कि पूछा गया प्रश्न सफल है या असफल। 

प्रश्न: प्रश्नकर्ता का कार्य सिद्ध होगा या नहीं यह कैसे जानें? 
उत्तर: प्रश्न कुंडली बनाने के बाद लग्न और लग्नेश की स्थिति का मूल्यांकन करें। यदि लग्न शुभ ग्रहों और उनकी दृष्टि से युक्त हो और लग्नेश भी शुभ भाव में स्थित होकर शुभ ग्रहों से युक्त और दृष्ट हो, तो प्रश्नकर्ता का कार्य अवश्य सिद्ध होगा। 

प्रश्न: प्रश्नकर्ता का कार्य सिद्ध होने में कितना समय लग सकता है? 
उत्तर: प्रश्न कुंडली में लग्न और लग्नेश की स्थिति का मूल्यांकन करने के पश्चात कार्य सिद्ध का समय जानने के लिए प्रश्न कुंडली में विंशोŸारी दशा पर ध्यान दें। प्रश्न कुंडली में अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा पर ही ध्यान दें न कि दशा पर। यदि अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशानाथ का प्रश्न लग्न और लग्नेश से शुभ है तो दशा की अवधि में ही कार्य सिद्ध हो जाएगा। यदि दशानाथ लग्न या लग्नेश से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं बना रहा हो, तो उस अवधि में कार्य सिद्ध नहीं होगा। फिर संबंधित ग्रह की दशा के दशा आरंभ होते ही कार्य सिद्ध हो जाएगा। 

प्रश्न: प्रश्न के विषय तो कई होते हैं। क्या सभी विषयों का लग्न से ही विचार करना चाहिए? 
उत्तर: लग्न तो विशेष है ही, लेकिन अलग-अलग विषयों की प्रश्न कुंडली को अलग-अलग भावों से देखना चाहिए। विषय जिस भाव से संबंध रखता है, उस भाव का स्वामी कार्येश कहलाता है। लग्न और कार्येश के बीच में संबंध और स्थिति प्रश्न की शुभाशुभ फल का निर्णय करती है। 

प्रश्न: प्रश्न कुंडली में किस भाव से किस विषय से संबंधित विचार करना चाहिए? 
उत्तर: प्रश्न कुंडली में प्रथम भाव से प्रश्नकर्ता के स्वास्थ्य, भाग्य, उन्नति इत्यादि का विचार किया जाता है। द्वितीय भाव संपŸिा, कुटुंब, परिवार, बैंक बैलेंस, चल संपŸिा इत्यादि का भाव है। तृतीय भाव छोटे भाई-बहन, पड़ोसी, मित्र, यात्रा, व्यवहार इत्यादि का। चतुर्थ भाव हर प्रकार के सुख, जमीन, जायदाद, वाहन, माता, शिक्षा, खुशी इत्यादि का। पंचम भाव संतान, विद्या, बुद्धि, मनोरंजन इत्यादि का। षष्ठ भाव विवाद, शत्रु, रोग, मुकदमा, कोर्ट-कचहरी, कर्ज, प्रतियोगिता इत्यादि का, सप्तम भाव व्यापार, विदेश यात्रा, विरोधी, पत्नी, साझेदारी, अवैध संबंध इत्यादि का। अष्टम भाव आयु, विनाश, लम्बी बीमारी, लाॅटरी या आकस्मिक आय या लाभ, विरासत, विवाद, रोग संबंधित इत्यादि का। नवम् भाव धर्म-कर्म, धार्मिक कार्य, पिता, तीर्थ यात्रा, भाग्य, इत्यादि का, दशम् भाव व्यवसाय, उच्चाधिकारियों की कृपा, उन्नति, कर्म इत्यादि का, एकादश भाव मेहनत के फल, लाभ, बड़े, भाई-बहन इत्यादि का। द्वादश भाव व्यय, कारावास, अस्पताल, दंड, विदेश यात्रा, देश निकाला इत्यादि का द्योतक है। 

प्रश्न: क्या नव ग्रह भी विभिन्न विषयों के कारक होते हैं? 
उत्तर: हां! नव ग्रह भी प्रश्न कुंडली में विभिन्न विषयों के जन्म कुंडली के आधार पर ही कारक होते हैं। 

प्रश्न: क्या प्रश्नकर्ता अपने अतिरिक्त अपने सगे संबंधियों के विषय में भी प्रश्न कर सकता है? उत्तर: हां! प्रश्नकर्ता अपने ही नहीं अपने किसी भी संबंधी जैसे भाई, बहन, माता, पिता, पुत्र या मित्र या अन्य भी व्यक्ति के विषय में प्रश्न कर सकता है। 

प्रश्न: यदि प्रश्नकर्ता अपने सगे संबंधियों के विषय में प्रश्न करता है, तो प्रश्न कुंडली से फलित केसे करना चाहिए? 
उत्तर: प्रश्न कुंडली में कौन सा भाव उस संबंध का कारक है? फिर प्रश्न का कारक भाव कौन सा है? जैसे मान लंे प्रश्नकर्ता अपने पुत्र के व्यवसाय से संबंधित प्रश्न करता है। प्रश्नकर्ता का अपना भाव प्रथम, प्रथम से पंचम पुत्र का और पंचम से दशम अर्थात द्वितीय भाव पुत्र के व्यवसाय का हुआ। इसलिए प्रथम, द्वितीय और पंचम भाव के स्वामी और कारक ग्रह यदि प्रश्न कुंडली में शुभ स्थित और शुभ दृष्ट हों और शुभ संबंध बना रहे हों, तो जातक के पुत्र के व्यवसाय संबंधी प्रश्न का शुभ फल प्राप्त होगा। अन्यथा अशुभ। 

प्रश्न: क्या एक समय में प्रश्न कुंडली द्वारा एक से अधिक प्रश्नों के उŸार दिए जा सकते हैं? उत्तर: एक समय में एक ही प्रश्न का उŸार दिया जाना चाहिए, लेकिन फिर भी यदि आपात स्थिति हो, तो लग्न से प्रथम प्रश्न का, चंद्र से दूसरे, सूर्य से तीसरे और गुरु से चतुर्थ प्रश्न का विचार करें। यदि गुरु अस्त या नीच हो तो चतुर्थ प्रश्न का फल वक्री ग्रह से करें। चंद्र, सूर्य व गुरु से प्रश्न के उŸार का विचार करने का अर्थ यह है कि जिस राशि या ग्रह हो उसे लग्न मानकर प्रश्नों के विचार करें। 

प्रश्न: जातक के मन में किस विषय का प्रश्न है यह कैसे जानंे? 
उत्तर: ज्योतिषी के समक्ष जिस समय जातक मन में प्रश्न लेकर आता है, उस समय की लग्न कुंडली बना |

प्रश्‍न कुण्‍डली के लाभ

– जन्‍म समय का फेर नहीं होता
– अगर आपको पास सॉफ्टवेयर है तो यह हाथों-हाथ तैयार हो जाती है
– सही सवालों के जवाब स्‍पष्‍ट मिलते सकते हैं
– हर तरह के सवाल का जवाब दिया जा सकता है, बशर्ते सवाल सही हो।
– जिन लोगों को जन्‍म समय नहीं हैं, उनके अलावा जिन लोगों की गलत कुण्‍डली बनी हुई है वे भी अपनी चिंताओं का सही जवाब ले सकते हैं।
– भविष्‍य कथन के बजाय मौजूदा समस्‍याओं से संबंधित कई सवालों के सटीक जवाब मिलते हैं
– मैंने देखा है कि भविष्‍य कथन के बजाय ऐसे सवाल जिनके हां या ना में उत्‍तर होते हैं उनके सटीक जवाब मिल जाते हैं।

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