Ishtadev | इष्टदेव निर्धारण के विविध आधार |Choose Ista devi devta by Astrology
Ishtadev | इष्टदेव निर्धारण के विविध आधार
ईष्टदेव ( Ishtadev) को जानने की विधियों में भी विद्वानों में एक मत नही है। कुछ लोग नवम् भाव और उस भाव से सम्बन्धित राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर ईष्टदेव का निर्धारण करते है।
वही कुछ लोग पंचम भाव और उस भाव से सम्बन्धित राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर ईष्टदेव का निर्धारण करते है।
कुछ विद्वान लग्न लग्नेश तथा लग्न राशि के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते है।
त्रिकोण भाव में सर्वाधिक बलि ग्रह के अनुसार भी इष्टदेव का चयन किया जाता है।
महर्षि जैमिनी जैसे विद्वान के अनुसार कुंडली में आत्मकारक ग्रह के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करना चाहिए।
अब प्रश्न उठता है कि कुंडली में आत्मकारक ग्रह का निर्धारण कैसे होता है ? महर्षि जेमिनी के अनुसार जन्मकुंडली में स्थित नौ ग्रहों में जो ग्रह सबसे अधिक अंश पर होता है चाहे वह किसी भी राशि में कयों न हो वह आत्मकारक ग्रह होता है।
Ishatdev | इष्टदेव का निर्धारण पंचम भाव के आधार पर
ईष्टदेव ( Ishtadev) या देवी का निर्धारण हमारे जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से होता है। ज्योतिष में जन्म कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित धर्म, कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा,भक्ति और इष्टदेव का बोध होता है। यही कारण है अधिकांश विद्वान इस भाव के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते है।नवम् भाव सेउपासना के स्तर का ज्ञान होता है ।
हालांकि यदि आप अपने इष्टदेव निर्धारण नहीं कर पा रहे तो बिना किसी कारण के ईश्वर के जिस स्वरुप की तरफ आपका आकर्षण हो, वही आपके ईष्ट देव हैं ऐसा समझकर पूजा उपासना करना चाहिए।
पंचम भाव में स्थित ग्रह के आधार पर इष्ट देव (Ishatdev) का चयन
सूर्य- विष्णु तथा राम
चन्द्र- शिव, पार्वती, कृष्ण
मंगल- हनुमान, कार्तिकेय, स्कन्द,
बुध- दुर्गा, गणेश,
वृहस्पति- ब्रह्मा, विष्णु, वामन
शुक्र- लक्ष्मी, मां गौरी
शनि- भैरव, यम, हनुमान, कुर्म,
राहु- सरस्वती, शेषनाग, भैरव
केतु- गणेश, मत्स्य
पंचम भाव में स्थित राशि के आधार इष्टदेव (Ishatdev) का निर्धारण
मेष: सूर्य, विष्णुजी
वृष: गणेशजी।
मिथुन: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कर्क: हनुमानजी।
सिह: शिवजी।
कन्या: भैरव, हनुमानजी, काली।
तुला: भैरव, हनुमानजी, काली।
वृश्चिक: शिवजी।
धनु: हनुमानजी।
मकर: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कुंभ: गणेशजी।
मीन: दुर्गा, सीता या कोई देवी।
आपके इष्ट देवी / देवता कौन हैं?
जैमिनी ज्योतिष के अनुसार आत्म कारक के आधार पर जातक के इष्ट देवता का निर्धारण किया जाता है। हमारी जन्म कुंडली में जो ग्रह सबसे अधिक अंशों पर होता है उसे आत्म कारक माना जाता है। आत्म कारक नवांश वर्ग कुंडली में जिस राशि में स्थित होता है उसे कारकांश लग्न कहा जाता है। इष्ट देव का निर्धारण करने के लिए हमें यह देखना होता है कि कारकांश लग्न से बारहवें भाव में स्थित राशि कौन सी है और उसका स्वामी ग्रह कौन है, उसी से संबंधित देवी देवता ही हमारे इष्ट देवी-देवता होते हैं।
इस पद्धति के अनुसार पर इष्ट देवता का निर्धारण करने के लिए जो भी ग्रह आता है उसके अनुसार देवी देवता की जानकारी पर आधारित कुल देवता की पहचान की जाती है। आइये अब जानते हैं कि कारकांश लग्न से बारहवें भाव से सम्बन्ध बनाने वाला ग्रह निम्नलिखित हो तो हमें किस देवी देवता की पूजा करनी चाहिए:
ग्रह एवं उनसे संबंधित देवी - देवता:
सूर्य ग्रह
आपको भगवान शिव अथवा श्री महाविष्णु जी के अवतार श्री राम जी की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
चंद्र ग्रह
आपको माता सरस्वती अथवा भगवान हरि विष्णु के अवतार श्री कृष्ण जी की पूजा करनी चाहिए।
मंगल ग्रह
आपको भगवान कार्तिकेय, श्री मुरुगन स्वामी अथवा भगवान हनुमान की पूजा करनी चाहिए।
बुध ग्रह
आपके लिए भगवान हरि विष्णु जी अथवा श्री थिरुमल जी की पूजा अर्चना करना हितकर रहेगा।
बृहस्पति ग्रह
आपको भगवान दत्तात्रेय को मानना चाहिए। साथ ही आप भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा भी कर सकते हैं।
शुक्र ग्रह
आप माता महालक्ष्मी अथवा माता पार्वती की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
शनि ग्रह
आपके लिए भगवान ब्रह्मा जी अथवा श्री अयप्पा स्वामी जी की पूजा करना बेहतर रहेगा।
राहु ग्रह
आपके लिए माता दुर्गा की पूजा सर्वश्रेष्ठ साबित होगी।
केतु ग्रह
आपको भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए।
पंचम भाव पद्धति से भी होते है इष्ट देवता
इस पद्धति के अतिरिक्त एक अन्य अधिक मान्य पद्धति है आपकी जन्म कुंडली के पंचम भाव के आधार पर इष्ट देवता का निर्धारण करना। पंचम भाव हमारे पूर्व जन्म के कर्म और विश्वास का द्योतक होता है। इसलिए अपने विभिन्न पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर उनसे संबंधित देवी देवता की पूजा करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
इस पद्धति के अनुसार जन्म कुंडली के पंचम भाव में जो ग्रह स्थित होता है उसे संबंधित देवी / देवता हमारे इष्ट होते हैं। यदि कोई भी ग्रह पंचम भाव में स्थित ना हो तो पंचम भाव के स्वामी अथवा पंचम भाव में स्थित राशि के आधार पर इष्ट देव की पहचान कर सकते हैं। लेकिन आजकल पंचम भाव पद्धति की जगह ज्योतिष विशेषज्ञ जैमिनी ज्योतिष पद्धति का इस्तेमाल करना ज्यादा उचित समझते हैं क्योंकि जैमिनी ज्योतिष पद्धति के परिणाम ज्यादा सटीक आते हैं।
वास्तव में इष्ट देव की शक्तियों हमारे अंतर में विराजमान होती हैं हमें केवल उनको पहचान ना होता है और उसके लिए उनकी पूजा करने से हमारा संबंध उनसे जुड़ जाता है। ऐसा करने से हमें अपने इष्ट की कृपा मिलती है और जीवन में सफलता की ऊंचाइयां प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है।