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Laxmi Tantra लक्ष्मी तंत्र laxmi Pujan vidhi लक्ष्मी पूजन विधि

Laxmi Tantra लक्ष्मी तंत्र laxmi Pujan vidhi लक्ष्मी पूजन विधि

तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। विश्वास है कि तंत्र ग्रंथ भगवान
शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है।
हमनेयहाँतंत्र द्वारा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विभिन्न सिद्ध तंत्र
विधियाँउपलब्ध कराईगईहैं।

हरिद्रा तंत्र
हरिद्रा का प्रचलित नाम हल्दी है। हरिद्रा (हल्दी) कई प्रकार की होती है। एक
हल्दी खाने के काम में नहीं आती पर चोट लगने और दूसरे औषधीय गुणों में उसे
महत्व दिया जाता है। ये रंग में सभी पीली होती है और पवित्रता का तत्व सभी में
होता है। हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाली हल्दी पीली (बसंती) और लाल (नारंगी)
दो प्रकार की होती है। यद्यपि वह वर्ण भेद बहुत सूक्ष्म होता है, सामान्य
दृष्टि में वह पीली ही दिख पड़ती है। इसी में कोई-कोई गाँठ काले रंग की निकल
आती है। हालाँकि ऐसा कदाचित ही कभी होता है, किन्तु यदि किसी को यह काली हल्दी
की गाँठ प्राप्त हो जाए तो समझना चाहिए कि लक्ष्मी प्राप्ति का एक श्रेष्ठ
दैवी साधन मिल गया है।

यह काली हल्दी (गहरे कत्थई रंग की) देखने में जितनी कुरूप, अनाकर्षक और
अनुपयोगी प्रतीत होती है, वस्तुतः वह उतनी ही अधिक मूल्यवान, दुर्लभ और दिव्य
गुणयुक्त होती है। यदि किसी को ऐसी हल्दी प्राप्त हो जाए तो उसे घर लाकर दैनिक
पूजा के स्थान पर रख दें। यह जहाँ भी होती है, सहज ही वहाँ श्री-समृद्धि का
आगमन होने लगता है। उसे नए कपड़े में अक्षत और चाँदी के टुकड़े अथवा किसी सिक्के
के साथ रखकर गाँठ बाँध दें और धूप-दीप से पूजा करके गल्ले या बक्से में रख दें
तो आश्चर्यजनक अर्थ लाभ होने लगता है। व्यापारी वर्ग इसे गल्ले (पैसों की थैली
या तिजोरी) में रखते हैं।

लक्ष्मी साधना के अंतर्गत इस हरिद्रा तंत्र की विधि यह है कि किसी भी अष्टमी
से इसकी पूजा आरंभ करें। सर्वप्रथम प्रातः उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हो, ठीक
सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठें। तत्पश्चात् इस हल्दी की
गाँठ को धूप-दीप देकर नमस्कार करें। यह क्रिया ठीक सूर्योदय के समय की जाती
है, परन्तु स्थान ऐसा हो कि साधक सूर्यनारायण के दर्शन कर सके। उदय होते हुए
सूर्यनारायण को नमस्कार करके, सामने आसन पर प्रतिष्ठित हरिद्रा खण्ड (हल्दी की
गाँठ) को नमस्कार करते हुए माला से 108 बार इस मंत्र का जाप करना चाहिए- 'ॐ
ह्रीं सूर्याय नमः'।

इस विधि से प्रतिदिन इसकी पूजा की जाए तो बहुत लाभ होता है। अष्टमी के दिन
उपवास रखकर, विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए। उस दिन व्रत रखने, फलाहार करने,
यथाशक्ति कुछ दान-पुण्य करने से इसका विशेष प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

हरिद्रा तंत्र की साधना में यह तथ्य स्मरण रखना चाहिए कि इसके साधक के लिए
मूली, गाजर और जमींकन्द (सूरन) का प्रयोग वर्जित है। अतः खाद्य रूप में इनका
सेवन नहीं करना चाहिए।


नैवेद्य तंत्र
यह एक अति सरल तंत्र प्रयोग है। इसकी साधना इस प्रकार की जाती है कि शुक्ल
पक्ष में प्रतिदिन सायंकाल चंद्रमा को धूप-दीप देकर श्वेत पदार्थ का नैवेद्य
अर्पित करें। नैवेद्य के पास ही दीपक जलाकर रख दें। यह क्रिया ऐसे स्थान पर की
जानी चाहिए, जहां चंद्रमा की किरणें आ रही हों। झरोखा, जीना अथवा छत पर जहां
चांदनी हो, वहीं नैवेद्य तथा दीपक रखें, अंधेरे में अथवा चंद्रमा के परोक्ष
स्थान पर रखने से साधना निष्फल हो जाती है। नियमानुसार की गई यह साधना भी
व्यवसायी, उद्यमी, राज्य कर्मचारी वर्ग को बहुत लाभप्रद सिद्ध होती है।

अश्व-जिह्वा तंत्र
घोड़ी की शारीरिक संरचना में कुछ ऐसा वैचित्र्य है कि प्रसव के समय उसकी जीभ का
अग्र भाग अपने आप गिर जाता है। यह भी दुर्लभ वस्तु है, कारण कि एक तो
घोड़े-घोड़ी पालने का रिवाज समाप्त हो गया है, दूसरे जहां कहीं भी घोड़ी हो तो
उसके प्रसव के समय वहां उपस्थित रहने का संयोग ही नहीं बन पाता। फिर भी प्रयास
से सब कुछ संभव है।

मार्जारी की भांति घोड़ी की भी लगातार देखभाल की जाए तो प्रसव के समय उसके मुख
से गिरी हुई जीभ प्राप्त हो जाती है। विचित्र बात यह है कि घोड़ी के मुख से जीभ
गिरने के बाद उसे फिर नई जीभ आ जाती है। अस्तु बिल्ली की नाल की तरह उसे भी
सुखाकर और हल्दी लगाकर रख देना चाहिए। यह जीभ बहुत समृद्धिदायक मानी गई है।

किसी शुभ मुहूर्त में उस जीभ को धूप-दीप देकर लक्ष्मीजी को ध्यान करते हुए
बटुए में, भण्डार में, कोष में अथवा जेवरों की पिटारी में रख देना चाहिए। उसके
प्रभाव से घर में धन-धान्य की वृद्धि होने लगती है।

अडार तंत्र
दारिद्रय निवारण और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए अडार तंत्र की साधना करनी चाहिए।
स्मरण रहे कि यह साधना मुख्यतः स्त्रियों (गृहिणियों) के द्वारा की जाती है।
जिस घर में स्त्री न हो, वहां पुरुष भी यह साधना कर सकते हैं। अडार तंत्र का
परिणाम थोड़े ही दिनों में अपना प्रभाव दिखाने लगता है।

सायंकाल घर में जितनी भी लालटेन, चिमनी, कुप्पी, दीपक, बल्ब, ट्यूबलाइट, कंदील
आदि हों, उन्हें थोड़ी देर के लिए जला दें। कम से कम दो-तीन दीपक सभी घरों में
रहते हैं, उन्हें जलाकर घर में इस तरह से रखें कि सर्वत्र प्रकाश फैल जाए,
अंधेरा न रहने पाए। यथास्थान ऐसी प्रकाश व्यवस्था 10-15 मिनट अथवा 2-3 घंटे तक
के लिए की जा सकती है। बाद में अन्य प्रकाश यंत्रों को बुझाकर एक मुख्य प्रकाश
यंत्र को रातभर जला रहने दें। यहां यह भी स्मरण रखना चाहिए कि दीपक को कभी
फूंक से न बुझाएं।

मुख से फूंक मारकर दीपक बुझाना निषिद्ध है। किसी वस्त्र या हाथ के माध्यम से
हवा का झोंका मारकर ही उसे बुझाना चाहिए। इस क्रम में यह भी अनिवार्य नियम है
कि दीपक से कुछ जलाएं भी नहीं। बहुधा स्त्रियां दीपक से ही चूल्हा, तपता आदि
जलाती हैं। यह बहुत ही अमंगलकारी होता है। इस क्रिया से दरिद्रता, ऋण, अभाव
बढ़कर श्री-सम्पत्ति की हानि होती है। अतः दीपक से भूलकर भी कोई अग्नि प्रयोग न
करें। उसके लिए अलग से माचिस या अंगारों का प्रयोग करना चाहिए।

इस प्रकार प्रत्येक शनिवार और अमावस्या के दिन घर का कूड़ा-कचरा, रद्दी सामान
बाहर फेंकना चाहिए, फर्श की धुलाई (लिपाई-पुताई) करना, सायं पूरे घर को
प्रकाशित करना तथा समस्त वस्तुओं को झाड़-पोंछकर यथाक्रम रखना यही अडार तंत्र है।

नोट :-तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक
अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है। चूंकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः
हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से
पूर्व किसी योग्य तांत्रिक की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के
लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।


लक्ष्मी पूजन (सरलतम विधि)

सीमित समय में भी निष्ठा और श्रद्धा के साथ पूजा की जा सकती है । पूजा में
सबसे महत्वपूर्ण है श्रद्धा । श्रद्धा के साथ अगर आप आराधना करते हैं तो
विधि-विधान से की जाने वाली पूजा जैसी ही फलप्राप्ति हो सकती है । लक्ष्मीपूजन
की सुगम विधि यहां विद्वान पंडित जी द्वारा दी गयी है |पूजा की आधार विधि,
विधान नहीं श्रद्धा है ।
विष्णुप्रिया लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी मानी जाती है । जो भी श्रद्धा के
साथ उनकी आराधना करता है उसे वे समृद्धि और वैभव प्रदान करती हैं । वे सफलता
की भी देवी हैं । उनकी कृपा भक्तों पर सदैव बनी रहती है ।


पूजन विधि
पूजा स्थल को साफ़ करने के बाद फर्श पर एक ओर मुट्ठीभर अनाज बिखेर दें । उस पर
मिट्टी या चांदी का घङा रखें । उसे पानी से तीन चौथाई भर दें । घङे के अंदर
पान, सुपारी, फूल, चावल के अच्छत तथा एक सिक्का डाल दें । घतैयार हो गया । ङें
के मुंह पर आम का पल्लव रखें । मिट्टी के एक छोटे से पात्र में चावल रख कर घङे
का मुंह ढंक दें । पूजा के लिए यह कलश तैयार हो गया ।  यह ब्रम्हांड का प्रतीक
है । कलश के पास एक चौकी पर पिसी हल्दी से कमल दल बनाएं और उस पर लक्ष्मी की
प्रतिमा स्थापित करें । पास में सिक्के भी बिखेरें । चौकी पर सुंदर लाल कपङा
बिछा कर उस पर भी लक्ष्मी को बिठा सकते हैं ।
लक्ष्मी पूजन में विध्नहर्ता गणेश की पूजा भी जरुरी है । इसलिए चौकी पर
लक्ष्मी के साथ गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें । गणेश को लक्ष्मी के दाहिने
रखें । चौकी की बाई ओर कलश तथा दाहिनी ओर दीपक रखें ।लक्ष्मी के सामने चंदन से
अष्टदल बना कर उसके ऊपर सोने चांदी के सिक्के और श्री यंत्र आदि रख सकते हैं ।
प्रतिमा स्थापित करने के बाद उसके सामने मिट्टी के पांच दीये जलाएं । प्रतिमा
के सामने खील-बताशे और फल और मिठाइयां का प्रसाद रखें । धूप या अगरबत्ती जलाएं
उसके बाद शुद्ध चित्त और मन से परिवार सहित प्रतिमा के सामने बैठें |
कमल पर विराजमान लक्ष्मी जी का ध्यान करें तथा "ॐ कमलवासिन्यै नमः" का पांच या
उससे अधिक बार उच्चारण करें तथा अपने और परिवार की सुख, समृद्धि और सम्पन्नता
के लिए लक्ष्मी जी की आराधना करें । आराधना के बाद सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें |

            लक्ष्मी पूजन (वृहद् पूजन विधि)


सामान्य तौर पर लक्ष्मी जी की पूजा दीपावली के अवसर पर की जाती है परन्तु अछय
तृतीया एवं अन्य शुभ अवसरों पर भी लक्ष्मी पूजन का विधान है|
श्री गणेश और माँ लक्ष्मी सदैव आपके घर प्रतिष्ठान पर विराजते हैं इस लिए इनकी
पूजा प्रतिदिन भी सामर्थ्य के अनुसार की जानी चाहिए |विधान के अनुसार लक्ष्मी
पूजन के साथ गणेश ,गौरी ,नवग्रह ,षोडशमातृका,महालक्ष्मी ,महाकाली ,महासरस्वती
,कुबेर एवं अपने कारोबार से सम्वन्धित कलम ,बही ,तुला ,तिजोरी आदि की भी पूजा
की जाती है |



पूजन के लिए आवश्यक सामग्री :  लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ, लक्ष्मी सूचक सोने अथवा चाँदी का सिक्का अथवा कुछ भी धन, लक्ष्मी स्नान के लिए स्वच्छ कपड़ा, लक्ष्मी सूचक सिक्के को स्नान के बाद
पोंछने के लिए एक नया कपड़ा ,अपने कारोबार से सम्वन्धित बही,तुला तिजोरी आदि ,सिक्कों की थैली, कलम, , एक साफ कपड़ा, धूप,अगरबत्ती,हल्दी व चूने का पावडर, रोली, चन्दन का चूरा, कलावा, आधा किलो साबुत
चावल,कलश, सफेद वस्त्र, लाल वस्त्र, ,कपूर, नारियल, गोला, बताशे, मिठाई,
फल,सूखा मेवा, खील, लौंग, छोटी इलायची, केसर, सिन्दूर, कुंकुम, फूल, गुलाब
अथवा गेंदे की माला, दुर्वा, पान के पत्ते, सुपारी,कमलगट्टा,दो कमल। मिट्टी के
पांच दीपक,रुई, माचिस, सरसों का तेल, शुद्ध घी, दूध, दही, शहद,पंचामृत (दूध,
दही, शहद, घी व शुद्ध जल का मिश्रण),मधुपर्क (दूध, दही, शहद व शुद्ध जल का
मिश्रण),शुद्ध जल,एक लकड़ी का पाटा एवं कलश


पूजन की तैयारी :

              चौकी पर लाल कपड़ा बिछाए और लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस
प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की
दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी
के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल
का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो
बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें
व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। कलश के तरफ नौग्रह के प्रतीक के लिए एक
मुट्ठी चावल रक्खें |गणेश जी के तरफ सोलह मात्रिका प्रतीक के लिए एक मुट्ठी
चावल रक्खें |नवग्रह व षोडश मातृका के बीच में सुपारी रखें |अब पूजन की सभी
सामग्री पूजा स्थल पर रक्खें |जल भरकर कलश रखें। एक थाली में दीपक, खील,
बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर कुंकुम,सुपारी, पान, फूल,
दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप,सुगंधित पदार्थ,
धूप, अगरबत्ती,




पूजा की संक्षिप्त विधि :


सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर
छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की
सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।

     ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
     यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं व वाभ्यन्तर शुचिः॥
     पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः ||
     कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥


अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और माँ
पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-

     ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
     त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
     पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नम: ||


अब आचमन करे :-

पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-
     ॐ केशवाय नमः ||


और फिर एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-
     ॐ नारायणाय नमः ||


फिर एक तीसरी बूँद पानी की मुँह में छोड़िए और बोलिए-
     ॐ वासुदेवाय नमः ||



फिर "ॐ हृषिकेशाय नमः"कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को
पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक

लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व,आत्म
तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन

हो जाता है तथा तिलक व अंगन्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।

आचमन आदि के बाद आँखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी साँस
लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए

क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के
प्रारंभ में स्वस्ति वाचन किया

जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वस्तिन इंद्र वेद
मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता

परमात्मा को प्रणाम किया जाता है।


स्वस्ति-वाचन

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः
संकल्प-



संकल्प में पुष्प,फल, सुपारी, पान,चांदी का सिक्का या रूपए का सिक्का,मिठाई,
मेवा, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें –

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्यब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री
श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे
जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य(अपने नगर/गांव का नाम लें)क्षेत्रे
बौद्धावतारे वीरविक्रमादित्यनृपते(वर्तमान संवत),तमेऽब्दे क्रोधी नाम संवत्सरे
उत्तरायणे (वर्तमान) ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे (वर्तमान)मासे
(वर्तमान)पक्षे (वर्तमान)तिथौ (वर्तमान)वासरे (गोत्र का नाम
लें)गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें)सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट
शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया-श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित
कार्य सिद्धयर्थं श्री लक्ष्मी पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन
निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।

नवग्रह आवाहन

अस्मिन नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहा

देवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।

और अब नवग्रह का रोली,चन्दन,धूप,दीप,फल-फूल,मीठा आदि से पूजन करने के बाद
निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें -
प्रार्थना
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः
शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु ॥



षोडशमातृका आवाहन -

ॐ गौरी पद्या शचीमेधा सावित्री विजया जया |

देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः ||

हृटि पुष्टि तथा तुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता : |

गणेशेनाधिका ह्यैता वृद्धौ पूज्याश्च तिष्ठतः ||

ॐ भूर्भुवः स्व: षोडशमातृकाभ्यो नमः ||

इहागच्छइह तिष्ठ ||

और अब षोडशमातृ का रोली,चन्दन,धूप,दीप,फल-फूल,मीठा आदि से पूजन करने के बाद
निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें -

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी |

दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोSस्ते ||

अनया पूजया गौर्मादि षोडश मातः प्रीयन्तां न मम |




गणपति पूजन


हाथ में पुष्प लेकर गणपति का आवाहन करें.

ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ : |

और अब गणपति का रोली,चन्दन,धूप,दीप,फल-फूल,मीठा आदि से पूजन करने के बाद
निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें -


गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

कलश पूजन


हाथ में पुष्प लेकर वरुण का आवाहन करें.

अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,

ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥

और अब कलश का रोली,चन्दन,धूप,दीप,फल-फूल,मीठा आदि से पूजन करें -





लक्ष्मी पूजन

सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें

ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।

गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।

लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।

नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।


इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें. हाथ में अक्षत लेकर बोलें



“ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ,
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”


आसन :

आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि।
आसन के लिए फूल चढाएं

पाद्य :
ॐअश्वपूर्वोरथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियंदेवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवींजुषाताम्।।
पादयो:पाद्यंसमर्पयामि।
जल चढाएं


अर्घ्य :-
हस्तयोरर्घ्यसमर्पयामि। अर्घ्यसमर्पित करें।

आचमन :-

स्नानीयं जलंसमर्पयामि। स्नानान्ते आचमनीयंजलंचसमर्पयामि। स्नानीयऔर आचमनीय जल चढाएं।

पय:स्नान :-

ॐपय: पृथिव्यांपयओषधीषुपयोदिव्यन्तरिक्षेपयोधा:।
पयस्वती:प्रदिश:संतु मह्यम्।। पय: स्नानंसमर्पयामि।

पय: स्नानान्तेआचमनीयं जलंसमर्पयामि।

दूध से स्नान कराएं, पुन:शुद्ध जल से स्नान कराएं और आचमन के लिए जल चढाएं।


दधिस्नान :-

दधिस्नानं समर्पयामि,
दधि स्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।
दही से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल
समर्पित करें।

घृत स्नान :-
घृतस्नानं समर्पयामि,
घृतस्नानान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।

घृत से स्नान कराकर पुन:आचमन के लिए जल चढाएं।

मधु स्नान :-
मधुस्नानंसमर्पयामि, मधुस्नानान्ते आचमनीयंजलं समर्पयामि।
मधु से स्नान कराकर आचमन के लिए जल समर्पित करें।

शर्करा स्नान :-
शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्तेशुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयं जलं समर्पयामि।
शर्करा से स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।

पञ्चमृतस्नान :-
पञ्चमृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि,
शुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।

पञ्चमृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल चढाएं।


गन्धोदकस्नान :-
गन्धोदकस्नानंसमर्पयामि,  गन्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंसमर्पयामि।

गन्धोदकसे स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।

शुद्धोदकस्नान :-
शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि।
शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
वस्त्र :-
वस्त्रंसमर्पयामि,वस्त्रान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।
उपवस्त्र :-
उपवस्त्रंसमर्पयामि,
उपवस्त्रान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।

उपवस्त्रचढाएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।

हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें :-

ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:,
ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं
भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम: ||


यज्ञोपवीत :-

यज्ञोपवीतंपरपमंपवित्रंप्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्यंप्रतिमुञ्चशुभ्रंयज्ञांपवीतंबलमस्तुतेज:।।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
यज्ञोपवीत समर्पित करें।


गंध-अर्पण :-   गन्धानुलेपनंसमर्पयामि।
चंदनउपलेपित करें।

सुगंधित द्रव्य :-
सुगंधित द्रव्यंसमर्पयामि।  सुगंधित द्रव्य चढाएं।

अक्षत :- अक्षतान्समर्पयामि।
अक्षत चढाएं।

पुष्पमाला:-
पुष्पमालां समर्पयामि।
पुष्पमाला चढाएं।

बिल्व पत्र :-
बिल्वपत्राणि समर्पयामि।  बिल्व पत्र समर्पित करें।


नाना परिमलद्रव्य :-   नानापरिमल द्रव्याणिसमर्पयामि।
विविध परिमल द्रव्य चढाएं

धूप :-
धूपंमाघ्रापयामि। धूप अर्पित करें।

दीप :- दीपं दर्शयामि। 
दीप दिखलाएं और हाथ धो लें।

नैवेद्य :-
नैवेद्यं निवेदायामि।नैवेद्यान्तेध्यानम्
ध्यानान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।
नैवेद्य निवेदित करे, तदनंतर भगवान का ध्यान करके आचमन के लिए जल चढाएं।

ताम्बूल पुंगीफल :-
मुखवासार्थेसपुंगीफलंताम्बूलपत्रंसमर्पयामि।
पान और सुपारी चढाएं।

क्षमा प्रार्थना
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहोन चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनंपरं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणंविधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतयाविधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत् ।तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवेकुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाःपरं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः ।मदीयो7यंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवेकुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवतिजगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचितान वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषेकुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति
परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतयामया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसिइदानींचेन्मातः तव यदि कृपानापि भविता निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणंश्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरानिरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैःतवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदंजनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ
चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरोजटाधारी कंठे भुजगपतहारी पशुपतिःकपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवींभवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदंन मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमेन विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनःअतस्त्वां सुयाचे जननि जननं यातु मम वैमृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैःकिं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिःश्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधेधत्से कृपामुचितमंब परं तवैवआपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयंकरोमि दुर्गे करुणार्णवेशिनैतच्छदत्वं मम भावयेथाःक्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंतिजगदंब विचित्रमत्र किंपरिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयिअपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतंमत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहिएवं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु

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