Lal kitab Rina लाल किताब के ऋण
स्वऋण, मातृ ऋण, पितृ ऋण, स्त्री ऋण, पारिवारिक ऋण, कन्या/ बहन का ऋण, निर्दयी ऋण, आजन्मकृत ऋण तथा ईश्वरीय ऋण।
ऋण का अर्थ है ‘‘कर्ज’’ और कर्ज हर मनुष्य को चुकाना पड़ता है।
इसका उल्लेख वेद-पुराणों में प्राप्त होता है।
हिंदु धर्म-शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों पर तीन ऋण माने गए हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण।
इन तीनों में पितृ ऋण सबसे बड़ा ऋण माना गया है। इन ऋणों का प्रभाव जन्म-जन्मांतरों तक मनुष्य का साए की तरह पीछा करता है।
वैसे तो परंपरागत ज्योतिष ने भी इन तथ्यों को अपनी जन्मकुंडली में समेटा है। लेकिन लाल किताब इस मामले में विशिष्ट स्थान रखती है।
इसके अनुसार पिता द्वारा लिया गया ऋण पुत्र को चुकाना पड़ता है। यहां तक कि आर्थिक-शारीरिक तथा मानसिक ऋण भी चुकाना पड़ता है। वैसे भी व्यक्ति को जीवन में तीन बातें कभी नहीं भूलनी चाहिए- कर्ज, फर्ज और मर्ज। जो मनुष्य इनको ध्यान में रखते हुए अपना कर्म करता है तो वह कभी असफल नहीं होता और जीवन धन्य हो जाता है।
प्रायः यह देखा जाता है कि हमारा कोई दोष नहीं होता फिर भी हमें कष्ट उठाने पड़ते हैं। ऐसा क्यों होता है?
पूर्वजों में से किसी ने अशुभ या पाप कर्म किए होते हैं जो पैतृक ऋण बन जाते हैं और उनको कुटुंब के किसी सदस्य को चुकाना होता है।
इसीलिए वह कष्ट उठाता है। कभी-कभी हम पर बड़े बूढ़ों के पाप के कारण रहस्यमयी प्रभाव पड़ता है जो हमारे लिए अविश्वसनीय व आश्चर्य चकित करने वाला होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जुर्म कोई करे और सजा कोई पाए। पैतृक ऋण होने पर दंड भी कोई निकट संबंधी ही पाता है।
पैतृक ऋणों का विचार जन्मकुंडली से किया जाता है। ऋण का ज्ञान हो जाये तो उसका उपाय भी रक्त संबंधी को करना होता है। पैतृक ऋण दूसरा व्यक्ति नहीं उतार सकता है।
रक्त संबंधियों में बहिन, बेटी तथा उनके बच्चे आते हैं जैसे-पोता-पोती, नाती-नातिन तथा भांजा-भांजी इत्यादि।
लाल किताब के अनुसार पैतृक ऋण लाल किताब के अनुसार मनुष्यों पर नवग्रहों के आधार पर नौ प्रकार के ऋण माने गये हैं।
यथा-स्वऋण, मातृ ऋण, पारिवारिक ऋण, कन्या/ बहन का ऋण, पितृ ऋण, स्त्री ऋण, निर्दयी ऋण, आजन्मकृत ऋण तथा ईश्वरीय ऋण।
नव ग्रहों से संबंधित ऋण निम्न प्रकार के हैं:
(1) सूर्य से स्वऋण:
पंचम भाव में पापी ग्रहों के होने से जातक को स्वऋण होता है। प्राचीन परंपराओं के अपमान और जातक के नास्तिक स्वभाव के कारण यह ऋण होता है। इस ऋण के प्रभाव से जातक को शारीरिक कष्ट, मुकद्दमे में हार, राजदंड, प्रत्येक कार्य में संघर्ष आदि अशुभ प्रभावों से गुजरना पड़ता है और जातक, निर्दोष होते हुए भी, दोषी बन जाता है।
उपाय: जातक को अपने सगे-संबंधियों से बराबर-बराबर धन ले कर यज्ञ करना चाहिए। तभी जातक को ऋण से मुक्ति मिलेगी।
(2) चंद्र से मातृ ऋण:
चतुर्थ भाव में केतु स्थित होने से मातृ ऋण होता है। माता का अपमान करना और उसे यातनाएं देना, घर से बेघर करना आदि अशुभ कर्मों के कारण यह ऋण होता है। इसके प्रभाव से जातक को व्यर्थ धन-हानि, रोग, ऋण और प्रत्येक कार्य में असफलता का सामना करना पड़ता है।
उपाय: जातक द्वारा रक्त संबंधियों से बराबर-बराबर भाग में चांदी ले कर चलते पानी में बहाने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
(3) मंगल से सगे-संबंधियों का ऋण:
पहले और आठवें भाव में बुध और केतु ग्रह हों, तो संबंधियों का ऋण होता है। इस ऋण के प्रभाव से जातक को अचानक भारी हानि उठानी पड़ती है। उसका सर्वस्व स्वाहा हो जाता है। जातक संकटों से घिर जाता है। यह प्रभाव मुख्यतः 28 वें वर्ष में होता है।
उपाय: परिवार के प्रत्येक सदस्य से बराबर-बराबर धन एकत्र कर के किसी शुभ कार्य हेतु दान में देने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
(4) बुध से बहन का ऋण:
लाल किताब जन्मकुंडली में तीसरे, या छठे भाव में चंद्रमा होने से बहन का ऋण होता है। लड़की, या बहन पर अत्याचार करने, उसे घर से निकालने, अथवा किसी लड़की को धोखा देने, या उसकी हत्या कर देने से यह ऋण होता है। इस ऋण के बोझ से जातक को आर्थिक रूप से कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उसका जीवन संघर्षमय हो जाता है और उसे मित्रों, या सगे-संबंधियों से कोई सहायता नहीं मिल पाती है।
उपाय: इस ऋण से मुक्ति के लिए जातक समस्त परिवार के सदस्यों से बराबर-बराबर पीले रंग की कौड़ियां एकत्र कर के, उन्हें जला कर, राख करे। उसी राख को बहते पानी में बहाना चाहिए।
(5) गुरु से पितृ ऋण:
दूसरे, पांचवें, नवें और बारहवें भाव में शुक्र, बुध और राहु स्थित होने से पितृ ऋण होता है। श्राद्ध न करने, मंदिर, या पीपल के वृक्ष को क्षति पहुंचाने, अथवा कुटुंब के कुल पुरोहित का परिवर्तन करने से यह ऋण होता है। इसके फलस्वरूप जातक को विशेष कर वृद्धावस्था में अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। उसके जीवन भर की संचित पूंजी व्यर्थ कार्यों में नष्ट हो जाती है।
उपाय: कुटुंब के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र कर के किसी शुभ कार्य हेतु दान में देना चाहिए तथा घर के निकट स्थित मंदिर, या पीपल के पेड़ की देखभाल करें।
(6) शुक्र से पत्नी का ऋण:
दूसरे और सातवें भाव में सूर्य, राहु और चंद्रमा स्थित हों, तो पत्नी का ऋण होता है। पत्नी की हत्या, या उसे अपमानित कर मार-पीट करने से यह ऋण होता है। इस ऋण के प्रभाव से जातक को अनेक दुखों का सामना करना पड़ता है। विशेष कर मंगल कार्यों में कोई अप्रिय घटना घटित हो जाती है।
उपाय: कुटुंब के प्रत्येक सदस्य से बराबर-बराबर धन एकत्र कर 100 गायों को भोजन कराने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
(7) शनि से असहाय का ऋण:
दसवें और ग्यारहवें भाव में सूर्य, चंद्र और मंगल स्थित होने से असहाय व्यक्ति का ऋण होता है। जीव हत्या करने, धोखे से किसी वस्तु पर अधिकार कर लेने और किसी असहाय व्यक्ति को कष्ट देने से यह ऋण होता है। इस ऋण से जातक और उसके कुटुंब को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जातक की उन्नति में अनेक बाधाएं आती हैं और उसका जीवन नरक सदृश बन जाता है।
उपाय: कुटुंब के समस्त सदस्यों से बराबर-बराबर धन एकत्र कर के सौ मजदूरों को भोजन कराना चाहिए।
(8) राहु से अजन्मे का ऋण:
बारहवें भाव में सूर्य, शुक्र और मंगल होने से अजन्मे का ऋण होता है। इस ऋण से जातक को सगे-संबंधियों से भी धोखे का सामना करना पड़ता है। जातक को शारीरिक चोट पहुंचती है और कार्य- व्यवसाय में हानि होती है। कुटुंब के सदस्य भी परेशान रहते हैं। जातक को चारों तरफ से हार का सामना करना पड़ता है और निर्दोष होते हुए भी उसे जेल जाना पड़ता है।
उपाय: कुटुंब के प्रत्येक सदस्य से एक-एक नारियल एकत्र कर बहते पानी में बहाने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
(9) केतु से ईश्वरीय ऋण:
छठे भाव में चंद्र, मंगल होने से ईश्वरीय ऋण होता है। लालच में आ कर किसी की हत्या कर देने, सगे-संबंधियों से विश्वासघात करने और नास्तिक प्रकृति का होने से यह ऋण होता है। जातक का कुटुंब बर्बाद हो जाता है। जातक की संतान नहीं होती है। उसे विश्वासघात का सामना करना पड़ता है। उसका जमा धन धीरे-धीरे व्यर्थ के कार्यों में नष्ट हो जाता है।
उपाय: कुटुंब के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र कर के 100 कुत्तों को भोजन कराने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
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पितृ ऋण यह ऋण गुरु ग्रह के दूषित होने पर होता है। जन्म कुंडली के द्वितीय, पंचम, नवम या बारहवें भाव (खाना नं. 2, 5, 9 या 12) में शुक्र बुध या राहु स्थित हो तो पितृऋण का भार जातक पर निश्चित रूप से पड़ता है।
नवम भाव में गुरु के साथ शुक्र स्थित हो या चतुर्थ भाव में शनि और केतु हों तथा चंद्र दशम भाव में हो तो जातक निश्चित ही पितृ ऋण से पीड़ित होगा।
उपाय जो ग्रह पितृ ऋण का हो चुका हो, उस ग्रह को उच्च का करने के उपाय ग्रह की अवधि से पूर्व करना चाहिए।
जैसे- गुरु के लिए 16 वर्ष पूर्व, सूर्य के लिए 22 वर्ष पूर्व, चंद्र के लिए 24 वर्ष से पहले, मंगल के लिए 28 वर्ष पूर्व, बुध के लिए 34 वर्ष पूर्व, शुक्र हेतु 25 वर्ष तथा शनि के लिए 36 वर्ष से पहले ही उपाय कर लेना चाहिए।
अन्यथा वह अपनी अवधि पूर्ण करने के पश्चात जातक को अवश्य ही हानि पहुंचाएगा। दो ग्रहों के पितृऋण में एक समय में केवल एक ही उपाय करना चाहिए तत्पश्चात एक या दो हफ्ते छोड़कर ही दूसरा उपाय करना चाहिए।
उदाहरणार्थ- जैसे जातक के पिता या दादा ने कुत्ते मारे या मरवाए तो जातक पर गुरु और केतु दोनों ग्रहों का पितृ ऋण होगाा। उपाय भी दोनों ग्रहों का करना होगा। जातक पितृ ऋण से पीड़ित है तो अपने सभी रक्त संबंधियों से धन इकट्ठा करें और उस धन को धार्मिक स्थान पर दान करें या उस धार्मिक स्थल पर मरम्मत इत्यादि का कार्य करावें या जातक अपने घर से बाहर दरवाजे पर बाहर की तरफ जिधर नजर जाए तथा बाएं हाथ की तरफ दोनों दिशाओं मंे 16 कदम की दूरी के अंदर पीपल वृक्ष की स्थापना करें तो उसे इस पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है।
स्त्री ऋण शुक्र ग्रह के दूषित हो जाने पर ‘स्त्री ऋण’ (पत्नी ऋण) का भार पड़ता है। जन्म कुंडली में जब द्वितीय व सप्तम भाव (खानां नं. 2-7) में सूर्य, चंद्र या राहु स्थित हो तो ‘स्त्री ऋण’ उत्पन्न होता है।
पहचान: जातक द्वारा घर में पशु धन को नफरत से देखना तथा उसे घृणा से पालना ही स्त्रीऋण की पहचान या लक्षण होते हैं।
कारण: किसी भी लालच के कारण प्रसव के समय स्त्री को मारा-पीटा गया हो या हत्या की गई हो। यही स्त्रीऋण का मुख्य कारण होता है। अनिष्ट प्रभाव: परिवार में पुरुषों की बीमारी पर जमा-पूंजी सब स्वाहा हो जाती है।
बेटे एवं पोतों की अकस्मात मृत्यु हो जाती है। घर में चोरी या डाका पड़ता है। हर तरह से धन संपदा बर्बाद हो जाती है। घर में कोई मंगल कार्य हो तो रिश्तेदारों (नजदीकी) की मौत होती है। सुख में दुख, मांगलिक वेला में मौत, बेवजह बिना कारण कोई दे दे।
उपाय जातक अपने रक्त संबंधियों से धन जमा करें व उस धन से 100 स्वस्थ गायों को जो किसी भी प्रकार से अंगहीन न हो सपरिवार मिलकर उत्तम भोजन या उत्तम चारा खिलाए तो ‘‘स्त्री ऋण’’ से मुक्ति पा सकता है।
निर्दयी का ऋण शनि ग्रह के दूषित हो जाने से यह ऋण होता है। जब जन्म पत्रिका में दशम या ग्यारहवें भाव में सूर्य, चंद्र या मंगल का प्रवेश हो जाता है तो वह शनि से पीड़ित होता है
और यही दशा जातक को निर्दयी ऋण का दोषी बना देती है।
पहचान: घर का द्वार दक्षिण दिशा में हो या वह घर किसी बांझ या अनाथ से जमीन लेकर बनाया गया है। घर के मार्ग पर कुओं को ढंककर मकान बनाया हो। घर मालिक को नींद न आए अगर एक बार सो जाए तो जाग नहीं पाए। अचानक ऐसे घरों में अशुभ घटनाएं घटित होने लगती हैं।
कारण: किसी जीव की हत्या की हो या किसी की संपत्ति धोखे से हड़प ली हो।
अनिष्ट प्रभाव: व्यावसायिक स्थल पर आग लगना और आग बुझाने का साधन न होना। घर का अचानक गिरना या आग का लगना। आग में जले हुए को अस्पताल पहुंचाने का प्रबंध न होना, घर बनवाने तक बारिश होना तथा बारिश का बंद न होना।
जातक की करनी से स्वयं की संतान को व ससुराल वालों को बेवजह पुलिस परेशान करे। योग्य संतान नालायक हो जाए। घर के सदस्य चैन से न सो सकें। तत्पश्चात् अपंग हो जाना तथा एक-एक करके परिवार के सदस्यों की मृत्यु होना। कोई तरकीब समझ न आए।
उपाय जातक अपने रक्त संबंधियों से धन एकत्रित करे और धन से 100 मजदूरों को स्वादिष्ट व उत्तम भोजन कराए। 100 तालाबों से एक-एक मछली लाकर एक ही तालाब में डालकर उन्हें आटे की गोलियां बनाकर खिलावें तथा चकला और बेलन किसी धार्मिक स्थान पर दान दें तथा 43 दिन तक 50 ग्राम सुरमा जमीन में दबाएं तो इस ऋण से जातक को छुटकारा मिल जाता है।
आजन्मकृत ऋण यह ऋण राहु के दूषित होने पर होता है। जब जन्मकुंडली के बारहवें भाव में (खाना नं. 12) सूर्य, मंगल या शुक्र स्थित हो जाए तो आजन्मकृत ऋण का भार जातक पर पड़ता है।
पहचान: जातक के मकान की दक्षिण दिशा की दीवार की ओर वीरान, कब्रिस्तान या किसी भड़भूजे की भट्ठी होगी या अंतिम निवास होगा। दरवाजे के नीचे से गंदा पानी बहता होगा। कारण: जातक द्वारा अपने घनिष्ठ मित्रों से लाभ उठाकर उन्हंे धोखा देना या उनके वंश को नष्ट करना ही इस ऋण का मुख्य कारण हो।
अनिष्ट प्रभाव: राहु के अशुभ प्रभाव के कारण जातक पर चोरी, डकैती, हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों का आरोप लग जाता है। कोर्ट कचहरी के मामलों में हारना पड़ता है, निर्दोष होते हुए भी सजा भुगतनी पड़ती है।
ससुराल पक्ष से विश्वासघात होता है। लोगों का आपके ऊपर से विश्वास उठ जाता है। घर या कार्यालय में अचानक आग लग जाना, समझ-बूझ कर किए गए कार्यों में घाटा होना। रिश्तेदार भी परेशान रहे। संतान सुंदर हो पर रोगी हो। दगाबाजी के कारण धन नाश होना, परिवार की बर्बादी होना इत्यादि इस ऋण के अनिष्टकारी प्रभाव जातक पर पड़ते हैं। उपाय जातक अपने प्रत्येक रक्त संबंधी से एक-एक पानी वाला नारियल प्राप्त करे और उन्हें एक ही दिन में बहते पानी में बहा दें। परिवार वालों से मिलजुलकर रहें। ससुराल में अपना सम्मान बनाए रखें तो इस ऋण से निश्चित तौर पर मुक्ति मिल जाती है।
ईश्वरीय ऋण ईश्वरीय ऋण केतु के दूषित होने पर होता है। जब जन्मकुंडली में छठे भाव (खाना नं. 6) में चंद्र या मंगल स्थित हो जाये तो जातक पर ईश्वरीय ऋण का बोझ आता है। इसे देव ऋण भी कहते हैं।
पहचान: दूसरों की संतान पर बुरी नजर रखना या मार देना। कुत्तों को गोली मारना, रिश्तेदारों पर बुरी नजर रखना या उनके वंशजों को समाप्त करने का षड्यंत्र रचना आदि। किसी दूसरे के पुत्र को पालना पड़े।
कारण: लोभ के वशीभूत होकर दूसरों के कुल वंश का स्वयं या किसी दूसरे से उनका नाश करवाया हो। कबूतरों को या कुत्तों को मारा हो। लालच में किसी का धन हड़पा हो, बुरी नीयत का होना ही इस ऋण का मुख्य कारण है।
अनिष्ट प्रभाव: यात्रा में धन का नाश हो। स्वयं की संतान का नाश हो। संतान न हो, तो गूंगी-बहरी व विकलांग हो। पुत्र का न होना, हो तो आजन्म रोगी हो। जिन पर विश्वास करें वही धोखा दें।
उपाय किसी विधवा की मदद करें। रक्त संबंधियों से पैसा जमा करें व उस पैसे से 100 कबूतरों को बाजरा या 100 कुत्तों को भोजन एक ही दिन में सपरिवार खिलावें। काले रंग का कुत्ता पालें व उसके कान छिदवाएं तो इस ईश्वरीय-दैवीय या कुदरती ऋण से मुक्ति पा सकते हैं।
पैतृक ऋणों से संबंधित जातक राहु-12, केतु-6 या 2-8 भाव में कोई ताकतवर या मददगार ग्रह न हो तो पैतृक ऋणों की दशा में केवल सांसारिक माया पर हो, उस ऋण को चुकाने का भार होगा लेकिन प्रभाव कम नहीं होगा।
अतः पितृ ऋणों के उपायों को करने में उस रक्त से संबंधित लड़की, बहन, बहू, पोती, ध्वेता, पोता, दादा, परदादा आदि तथा बुआ, पुत्र, स्त्री, भांजा-भांजी सभी शामिल माने जाते हैं।
स्त्री के माता-पिता अर्थात जातक के ससुराल वाले इस कार्य के लिए वर्जित हैं उनका इन उपायों में शामिल होना अनिवार्य नहीं है।
पैतृक ऋण से पीड़ित जातक को चाहिए कि वह ऋण का ज्ञान होने पर अपने रक्त संबंधियों से उनका भाग अवश्य लें अगर कोई नहीं देता है तो उसका दस गुणा जातक स्वयं मिलाकर ऋण संबंधी उपाय अवश्य करें। जो अपना भाग नहीं देता है वह पैतृक ऋणों से कभी मुक्त नहीं होता और जीवन में उनके दुष्प्रभावों को भोगता है। अतः पैतृक ऋणों का उपाय अवश्य करें तथा अपने-अपने परिवार और वंश की उन्नति करें।