द्वादशांश वर्ग Dwadashansha varga
द्वादशांश को D-12 कुण्डली भी कहा जाता है. द्वादशांश कुण्डली द्वारा माता-पिता के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है. इस कुण्डली का अध्ययन करने से माता पिता के जीवन के उतार चढावों के बारे में जानकारी मिलती है. इसके साथ ही साथ इससे हमें आयु के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है.
द्वादशांश कुण्डली बनाने के लिए 30 अंश के 12 बराबर भाग किए जाते हैं. इसका प्रत्येक भाग 2 अंश 30 मिनट का होता है. इस प्रत्येक भाग द्वारा फल कथन करना आसान होता है और व्यक्ति के चरित्र एवं उसके अनेक पहलुओं पर विचार किया जाता है.
द्वादशांश कुंडली :- इस कुंडली के द्वारा माता पिता के सहयोग के साथ साथ पैत्रक संपत्ति पर भी विचार करते है
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश यदि शुभ गृह हो तो जातक के माता पिता शुभ आचरण युक्त और यदि पाप गृह युक्त और पाप गृह हो तो पाप युक्त अचर्ना करने वाले होते है
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश यदि पुरुष गृह सवा ग्रही मित्र क्षेत्रीय उच्च का हो तथा केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक को अपने माता पिता से पूर्ण सहयोग अच्छी पत्रक संपत्ति मिलती है साथ ही जातक की सुख सुविधा में कमी नहीं रहती है
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश 6 8 12 वे भाव में तो जातक को अपने माता पिता का सुख व सहयोग नहीं मिलता है
लग्नगत द्वादशांश राशि फल
जन्म लग्न से जो द्वादशांश की राशि है उसके फल का विवेचन निम्नानुसार है।
मेष के द्वादशांश मे जातक* दुष्टात्मा, चोर, अधर्मी, पापी होता है। वृषभ के द्वादशांश मे जातक स्त्रीवान, धनवान एवं रोगी होता है। मिथुन के द्वादशांश मे जातक जुआरी लेकिन सुशील होता है। कर्क के द्वादशांश मे जातक दुराचारी, दुष्ट, खराब व्यवहार करने वाला होता है। सिंह के द्वादशांश मे जातक तपस्वी, राजकाज करने वाला, शूरवीर होता है। कन्या के द्वादशांश मे जातक जुआरी, स्त्री मे रत या वैश्यागामी होता है।
तुला के द्वादशांश मे जातक व्यापारी, धनवान होता है। वृश्चिक के द्वादशांश मे जातक वध करने मे रुचिवान, वैश्या को रखने वाला (वीट) चोरो मे प्रधान होता है। धनु के द्वादशांश मे जातक माता-पिता व देवताओ का भक्त होता है। मकर के द्वादशांश मे जातक धन-धान्य की प्रचुरता वाला होता है। कुम्भ के द्वादशांश मे जातक अनेक सेवक युक्त, दुष्ट होता है। मीन के द्वादशांश मे जातक धनवान, विद्वान होता है।
समस्त ग्रहो का लग्नगत फल
सूर्य के द्वादशांश मे जातक नीच (मलिन) चंचल, क्रूर, अल्पायु, निष्ठुर, निर्धन, आलसी, कामी, अधर्मी होता है।
अन्यच्च : सूर्य के द्वादशांश मे जातक अभिमानी, लोभी, धनवान, धर्महीन, अविवाहित, उग्र, चंचल होता है।
चंद्र के द्वादशांश मे जातक रत्नो से युक्त, अनेक प्रकार से अर्थ लाभ प्राप्त करने वाला, सुशील, कुल प्रधान, बहु मित्र वाला, कलात्मक रुचिवान, दस्तकारी निपुण होता है।
अन्यच्च : चंद्र के द्वादशांश मे जातक बंधुओ को आश्रय देने वाला, बुद्धिमान, धनवान, प्रिय दर्शन, शिल्पज्ञ, अनेक प्रकार के धर्मो को मानाने वाला होता है।
मगल के द्वादशांश मे जातक पर निंदक, तीव्र काम (भोग) लिप्सा वाला, चगुलखोर, मुर्ख, पापी, स्रियो से प्रेम करने वाला, अधर्मी, नीच होता है।
अन्यच्च : मंगल के द्वादशांश मे जातक रक्त रोगी, चर्म रोगी, व्यसनी, दुराचारी, झगड़ालू , रण भीरु होता है।
बुध के द्वादशांश मे जातक सदाचारी, सुशील, सुभग, सौभाग्यशाली, विद्यानुरागी, देव-गुरु भक्त, शराबी होता है।
अन्यच्च : बुध के द्वादशांश मे जातक इन्द्रिय सुख को महत्व देने वाला, स्वादिष्ट भोजन का शौकीन होता है।
गुरु के द्वादशांश मे जातक पवित्र, शास्त्रार्थ मे कुशल, विविध विषय का ज्ञाता, सुखी, दीर्घायु, शत्रुओ का स्वामी, बंधु-बांधव व मित्रो को आश्रय देने वाला होता है।
अन्यच्च : गुरु के द्वादशांश मे जातक अनेक शास्त्रो का ज्ञाता, सुख-वैभव सम्पन्न, गीत युक्त (गायक या लेखक) अधिक मित्र वाला, रण चतुर।
शुक्र के द्वादशांश मे जातक शूरवीर, अधिक धन का हिस्सेदार, नृत्य-गीत प्रिय, पवित्र, दानी, क्षमावान होता है।
अन्यच्च : शुक्र के द्वादशांश मे जातक सुभग, रूपवान, राज से सम्मानित, प्रतिष्ठित, उदार, मानी-धनी होता है।
शनि के द्वादशांश मे जातक चंचल, चालक, ,चुगलखोर, निंदक, धूर्त, पर धन लोभी, नीच, मलिन, धर्म हीन निंदनीय कार्यकारी होता है।
अन्यच : शनि के द्वादशांश मे जातक युद्ध (वैर, विरोध, झगड़ा) प्रेमी, रोगी, दुरा चारी, बंधुहीन, शोकाकुल, पर धर्मी (दूसरो के धर्म को मान ने वाला) होता है।
समस्त ग्रहो के द्वादशांश मे सूर्य फल
सूर्य के द्वादशांश मे सूर्य फल - जातक तीक्ष्ण, डरपोक, महा गुस्से वाला, धन व साहस हीन, पर धन हरने मे निपुण, बुद्धिहीन होता है।
चंद्र के द्वादशांश मे सूर्य फल - जातक सौम्य, विनीत, विद्वान्, धन-सम्पदा युक्त, शुभकर्मी, विद्याविनित, सुखी, प्रसन्नचित्त, वैभवशाली होता है।
मंगल के द्वादशांश मे सूर्य फल - जातक प्रियजन व प्रिया (स्त्री) से विमुक्त, कैदी, पापी, सत्य से विमुक्त यानि झूठ बोलने वाला, कुतर्कशील होता है।
बुध के द्वादशांश मे सूर्य फल - जातक सत्यवादी, सर्व सुख सम्पन्न, अथिति प्रिय, विद्वानो का सम्मान करने वाला, सनाथ (दीर्घकाल तक माता-पिता की छत्र-छाया मे रहने वाला) होता है।
गुरु के द्वादशांश मे सूर्य फल - जातक स्त्री प्रिय, गीत कला मे दक्ष, भोगी, वस्त्राभूषण एवं सुगन्धित द्रव्यो से युक्त, विनय प्रधान होता है।
शुक्र के द्वादशांश मे सूर्य फल - जातक कुशल शिल्पी, वश में करने वाला, आत्मसयमी, सहनशील, शूरवीर, राज सम्मानी, धर्मरत होता है।
शनि के द्वादशांश मे सूर्य फल - जातक दुर्बल, कायर, पापी, डरपोक, कृतघ्न, दरिद्र, नपुंसक, मलिन वस्त्र धारण करने वाला, अनेक दुखो से युक्त होता है।
समस्त ग्रहो के द्वादशांश मे चंद्र फल
सूर्य द्वादशांश मे चंद्र फल - जातक भयभीत, प्रमादी, दुखी, लापरवाह, मित्र विहीन, आलसी कृतघ्न होता है।
चंद्र द्वादशांश मे चंद्र फल - जातक धनवान कुशल वक्ता, अल्प शत्रु वाला, सुन्दर पुत्रवान, वाहन युक्त होता है।
मंगल द्वादशांश मे चंद्र फल - जातक सुखी, बुद्धिमान, भोगी, सुन्दर वेश-भुषा वाला, स्व धर्म रत होता है।
बुध द्वादशांश मे चंद्र फल - जातक सौम्य, शिल्पज्ञ, अद्भुत कर्म करने वाला, अथिति प्रिय, प्रसिद्ध होता है।
गुरु द्वादशांश मे चंद्र फल - जातक सुवेशी, राजा का कृपा पात्र, सुन्दर वाहन युक्त. अनेक मित्र वाला होता है। शुक्र द्वादशांश मे चंद्र फल - विनीत, राजा का कृपापात्र, प्रचुर समृद्धि (हाथी-घोड़े, धन-धान्यादि) वाला होता है।
शनि द्वादशांश मे चंद्र फल - जातक चंचल, कंगाल, सत्यवक्ता, सत्यनिष्ठ, स्वजनो से उपेक्षित होता है।
समस्त ग्रहो के द्वादशांश मे मंगल फल
सूर्य के द्वादशांश मे मंगल फल - जातक रति प्रिय, कुशिल्पी, कूटनीतिज्ञ, चंचल, व्रण या बंधन युक्त (धाव, फोड़े या कैद) ध्वंसकारी, विनाशकारी, कार्यो मे सलग्न, धूर्त होता है।
चंद्र के द्वादशांश मे मंगल फल - जातक सुन्दर कांतिवान, उदार, बहुमुखी, बुद्धिमान, बहु भाइयो वाला होता है।
मंगल के द्वादशांश मे मंगल फल - जातक स्त्री से अभागा, नौकर (स्वतंत्र नौकरी करने वाला) स्त्री तुल्य रूप और आकृति वाला, धार्मिक कृत्य युक्त, कोमल शरीर वाला व्यसनी होता है।
बुध के द्वादशांश मे मंगल फल - जातक उद्योगी, स्थूल स्त्री व वस्त्राभूषण से युक्त, प्रसिद्ध, राजा से पीड़ित होता है।
गुरु के द्वादशांश मे मंगल फल - जातक प्रख्यात बुद्धिवाला, सुखी स्वतंत्र, कवि, वाद विवाद मे विजयी, धनवान, सुभग (मनोहर स्वभाव) होता है।
शुक्र के द्वादशांश मे मंगल फल - जातक स्त्रियो द्वारा चाहा जाने वाला, मधुर, विनीत, दण्ड देने वाला, आदर पाने वाला, शत्रु पक्ष से मिला हुआ होता है।
शनि के द्वादशांश मे मंगल फल - भाई से द्वेषीला, विवादशील, बहुप्रलापी, चंचल, दुराचारी, कलह युक्त होता है।
समस्त ग्रहो के द्वादशांश मे बुध फल
सूर्य के द्वादशांश मे बुध फल - जातक पापमति वाला, सुखहीन, बुरे मित्रो वाला, अधिक शत्रु वाला, यश का विनाश, पुत्रहीन या पुत्र से दुखी होता है।
चंद्र के द्वादशांश मे बुध फल - जातक प्रतापी, रतिसुख युक्त, धनवान, विशिष्ट व्यवहार करने वाला होता है।
मंगल के द्वादशांश मे बुध फल - जातक धूर्त, दुराचारी, धनहीन, बंधुओ से दुर्व्यवहार करने वाला, रोगी होता है।
बुध के द्वादशांश मे बुध फल - जातक शास्त्राभ्यासी, कला निपुण, शत्रु से झुकने वाला, जितेन्द्रिय होता है।
गुरु के द्वादशांश मे बुध फल - जातक सुशील, धनवान, समृद्धि युक्त, धार्मिक, आस्तिक, अथिति प्रिय होता है।
शुक्र के द्वादशांश मे बुध फल - जातक प्रचुर अन्नकोश वाला, राजा का प्रिय, सज्जन, साधुओ मे अनुरक्त, सद्धर्मी, पुण्य और सुख प्राप्त करने वाला होता है।
शनि के द्वादशांश मे बुध फल - जातक दीन, कपटी, हीन, दरिद्री, मायावी, कंजूस, खर्चीला, बली, निष्ठुर होता है।
समस्त ग्रहो के द्वादशांश मे गुरु फल
सूर्य के द्वादशांश मे गुरु फल - जातक निर्धन, कुरूप, अपयशी, अनेक शत्रु, मित्र रहित, दुराचारी, दुःखी होता है।
चंद्र के द्वादशांश मे गुरु फल - जातक धनवान, अथिति प्रिय, सुखी, राजा से सम्मानित, सबका प्रेमपत्र होता है।
मंगल के द्वादशांश मे गुरु फल - जातक दुष्ट, अधर्मी, दुराचारी, जेल भोगने वाला, व्यसनी, रोगी होता है।
बुध के द्वादशांश मे बुध फल - जातक संसार प्रसिद्ध, सर्वगुण संपन्न, सत्यवादी, प्रभुप्रिय, बंधुओ प्रिय होता है।
गुरु के द्वादशांश मे गुरु फल - जातक सर्व समृद्धिवान, बलवान, शत्रुहंता, भय और रोग मुक्त, सुशील होता है।
शुक्र के द्वादशांश मे गुरु फल - जातक प्रचुर धनादि से युक्त, अथिति प्रिय, कामुक, शत्रुओ से लापरवाह होता है।
शनि के द्वादशांश मे गुरु फल - जातक मलिन वेशभूषा वाला, दीन, कुरूप, दस्यु,-दुष्ट -सरकार से पीड़ित होता है।
समस्त ग्रहो के द्वादशांश मे शुक्र फल
सूर्य के द्वादशांश मे शुक्र फल - जातक कुबुद्धि, नीचो का संग करने वाला, क्रोधी, वाचाल, हत्यारा होता है।
चंद्र के द्वादशांश मे शुक्र फल - जातक श्रेष्ठ वाहन युक्त, राजा का प्रिय, भोगी, धनवान, जल बिहारी होता है।
मंगल के द्वादशांश मे शुक्र फल - जातक विदेश जाने वाला, कृतघ्न, नासमझ, जुआरी, पर स्त्री रत होता है।
बुध के द्वादशांश मे शुक्र फल - जातक सुभग, सुंदर, पदवान, प्रसिद्ध, विद्या अर्जन में तत्पर, अल्प दोषी होता है।
गुरु के द्वादशांश मे शुक्र फल - जातक सुबुद्धि, सम्मानित, विचित्र भोग भोगने वाला, मित्र युक्त, धनी होता है।
शुक्र के द्वादशांश मे शुक्र फल - जातक विचित्र भाषी, रति कुशल, गीत रत, धर्मी, कामी, मंत्री या सचिव होता है।
शनि के द्वादशांश मे शुक्र फल - जातक सुख एवं भाग्यहीन, पापी, प्रवासी, रोगी, शत्रु द्वारा त्यक्त्य होता है।
समस्त ग्रहो के द्वादशांश मे शनि फल
सूर्य के द्वादशांश मे शनि फल - जातक बुद्धि और धर्म हीन, निष्ठुर, निर्दयी, वाचाल, दुष्ट, नीच, प्रभावहीन होता है।चंद्र के द्वादशांश मे शनि फल - जातक सुमति, लाभयुक्त, राजा से सम्मानित, लज्जान्वित, न्यायी होता है।
मंगल के द्वादशांश मे शनि फल - जातक टेड़े स्वभाव वाला, कुटिल, आलसी, भीरु, निन्दित, दोषी होता है।
बुध के द्वादशांश मे शनि फल - जातक प्रतिभावान, धनवान, सलज्ज, धर्मरत, कृतिवान, सम्मानी होता है।
गुरु के द्वादशांश मे शनि फल - जातक धनवान, पुत्रवान, सलज्ज, सत्य व न्याय का पक्षधर होता है।
शुक्र के द्वादशांश मे शनि फल - जातक प्रचुर अन्न व वस्त्राभूषण युक्त, विशिष्ठ भार्या वाला, भाग्यवान होता है।
शनि के द्वादशांश मे शनि फल - जातक स्थिर बुद्धि, व्रती उपवासी, कुल प्रधान, बुरे आचरण करने वाला होता है।
द्वादशांश फल विशेष :
द्वादशांश कुंडली से जातक के माता-पिता का सुख उनकी आयु का विचार किया जाता है। यहा जन्मांग से द्वादशांशेश का विचार किया गया है।
यदि द्वादशांश कुंडली का स्वामी (द्वादशांशेश) जन्म लग्न मे हो, तो जातक माता-पिता के बराबर धनी-गुणी, मान-प्रतिष्ठा और द्रव्य वाला होता है। यदि द्वादशांशेश धन स्थान अर्थात द्वितीय स्थान मे हो, तो जातक पिता से अधिक धनी और गुणी होता है। यदि द्वादशांशेश तृतीय अर्थात पराक्रम स्थान मे हो, तो जातक पिता से अधिक यशस्वी होता है।
यदि द्वादशांशेश चतुर्थ अर्थात सुख स्थान मे हो, तो जातक भाग्यशाली, सुखी होता है। यदि द्वादशांशेश पंचम अर्थात विद्या संतान स्थान मे हो, तो जातक बुद्धिमान, पिता को सुख देने वाला होता है। यदि द्वादशांशेश षष्ठ अर्थात रोग-ऋण-रिपु स्थान मे हो, जातक अधिक शत्रु वाला, अल्प लाभी होता है।
यदि द्वादशांशेश सप्तम अर्थात कलत्र स्थान मे हो, तो सुख, लाभ मिलता है। यदि द्वादशांशेश अष्टम अर्थात मारक स्थान मे हो, तो शस्त्र या शत्रु या विषैले जीव से या आत्महत्या से अपमृत्य होती है। यदि द्वादशांशेश नवम अर्थात भाग्य स्थान मे हो, तो जातक का पिता धार्मिक वृत्ति वाला, तीर्थसेवी होता है।
यदि द्वादशांशेश दशम अर्थात धर्म स्थान मे हो, तो जातक पिता से अधिक सुख-समृद्धी युक्त होता है। यदि द्वादशांशेश एकादश अर्थात लाभ स्थान मे हो, तो जातक को पिता से गुप्त धन (अघोषित) तथा आकस्मिक सट्टा लाटरी आदि से भी धन प्राप्त होता है। यदि द्वादशांशेश (द्वादशांश का स्वामी) द्वादश अर्थात व्यय स्थान मे हो, तो वृथा धननाश, माता-पिता से सुख और लाभ हीन, दुष्टो का संग, निंदनीय होता है।
द्वादशांश लग्नेश जन्म कुंडली मे लग्नस्थ हो, तो पिता के सरीखा धन, वैभव, मान व प्रतिष्ठा पाता है। यदि द्वादशांशेश जन्म कुंडली मे त्रिक 6, 8, 12 भाव मे हो, तो माता-पिता से सामान्य धन और सुख, जीवन सामान्य संघर्षपूर्ण होता है।
द्वादशांश लग्नेश जन्म कुंडली मे स्वगृही या उच्च का हो, तो जातक तथा जातक के माता-पिता भाग्यशाली होते है। द्वादशांशेश नीचस्थ या पापदृष्ट या पापयुक्त या अस्त हो, तो जातक रोगी, शत्रु, अनेक प्रकार की चिंताओ से परेशान होता है।
द्वाशशपति पुरुष ग्रह मित्रराशि या उच्चराशि मे होकर केंद्र या त्रिकोण मे हो, तो पिता का पूर्ण सुख मिलता है। यदि वही नीच या पापग्रह की राशि मे होकर त्रिक 6, 8, 12 भाव मे हो, तो पिता का सुख अल्प ही मिलता है या पिता कष्ट मे रहता है।
द्वादशांशेश स्त्री ग्रह उच्चराशि या स्वराशि या मित्रराशि या शुभ ग्रह होकर केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो, तो जातक को माता का पूर्ण सुख मिलता है। यदि वही स्त्री ग्रह पापयुक्त या पापदृष्ट होकर त्रिक स्थान मे स्थित हो, तो माता का सुख कम या नही मिलता है और माता अस्वस्थ रहती है।
द्वादशांश मे सप्तम भाव का स्वामी या द्वादशांश लग्नेश शुभ ग्रह हो या शुभयुक्त या शुभदृष्ट या उच्चस्थ या स्वगृही हो, तो जातक की पत्नी सुशील, सुन्दर पुत्र युक्त होती है। जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी श्रेष्ठ होता है तथा पारवारिक सुख रहता है।
द्वादशांश मे सप्तम भाव का स्वामी (सप्तमेश) या द्वादशांश लग्नेश पापग्रह हो या पापदृष्ट या पापयुक्त या नीचस्थ या अस्तगत हो, तो स्त्री से दुःख, समान्य दाम्पत्य, विचार विषमता, वैमनस्य, क्लेश होता है। (यह विचार द्वादशांश की अपेक्षा जन्म कुंडली से करना चाहिये)
यदि द्वादशांश लग्न का स्वामी शुभ ग्रह हो, तो माता पिता का आचरण शुभ होता है और यदि अशुभ ग्रह हो, तो माता पिता का आचरण व्यभिचार पूर्ण होता है।
मानसागरी अनुसार द्वादशांश फल
द्वादशांश मे जो ग्रह मित्र या उच्च राशि मे हो, तो जातक बहुत स्त्रियो का मालिक, अनेक प्रकार के धन और रत्नादि से पूर्ण होता है।
द्वादशांश मे बारह राशियो मे जातक की आयु का प्रमाण इस प्रकार होता है। मेष 80 वर्ष, वृषभ 84 वर्ष, मिथुन 86 वर्ष, कर्क 87 वर्ष, कन्या 60 वर्ष, तुला 56 वर्ष या अधिक, वृश्चिक 70 वर्ष, धनु 90 वर्ष, मकर 66 वर्ष, कुम्भ 56 वर्ष या अधिक, मीन 100 वर्ष है। अनुमानित आयु मे ग्रहो के अनुसार घट-बढ़ हो सकती है। आयु मान द्वादशांश लग्न मे जो राशि हो उस अनुसार है।
उपरोक्त उम्र के पूर्व भी मृत्यु हो सकती है। प्रथम द्वादशांश मे 18 वर्ष जल से; द्वितीय द्वादशांश मे 9 वर्ष मे सर्प दंश से; तृतीय द्वादशांश मे 10 वर्ष मे ज्वर आदि से; चतुर्थ द्वादशांश मे 32 वर्ष की आयु मे क्षय या अन्य रोग रोग से; पंचम द्वादशांश मे 20 वर्ष मे रक्त विकार से; षष्ठ द्वादशांश मे 32 वर्ष मे अग्नि से मरण हो सकता है।
सप्तम द्वादशांश मे 28 वर्ष मे जलोदर या अन्य पेट के रोगो से; अष्टम द्वादशांश मे 30 वर्ष मे व्याघ्र या अन्य हिंसक पशु या राज्यादेश से; नवम द्वादशांश मे 12 या 32 वर्ष मे बाण या अन्य अस्त्र-शस्त्र से; दशम द्वादशांश मे 30 वर्ष मे जल मे डूबने या वात विकार से; ग्यारहवे द्वादशांश मे स्त्री या कन्या की मृत्यु जल मे डूबने से; बारहवे द्वादशांश मे वाहन या वाहन के पहिये के नीचे दबने से मृत्यु हो सकती है। ये असामयिक मृत्यु योग है अन्य कारणो से भी असामायिक मृत्यु हो सकती है।
गणेश द्वादशांश | Ganesha Dwadshansha
0से 2डिग्री 30 मिनट का पहला द्वादशांश होता है , 10 डिग्री से 12 डिग्री 30 मिनट तक का पांचवां द्वादशांश और 20 डिग्री से 22 डिग्री 30 मिनट तक नौवां द्वादशांश होता है. पहला, पांचवां और नौंवा द्वादशांश गणेश द्वादशांश कहलाता है. जिस प्रकार भगवान गणेश को विघ्नविनाशक माना जाता है, उसी प्रकार यह द्वादशांश भी जीवन में आने वाले अनेक कष्टों एवं परेशानियों को दूर करने में सहायक बनता है.
लग्न या लग्नेश 1,5 और 9 द्वादशांश से संबंध बनाता है तो व्यक्ति को माता पिता का पूर्ण सुख प्राप्त होता है. जातक के जीवन में माता पिता का पूरा सहयोग रहता है. जातक के माता पिता समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानिय स्थान प्राप्त करने वाले हो सकते हैं. ऎसा जातक भी जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और सम्मान को पाने में सक्षमता दिखाता है. वह साहस से पूर्ण जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण रखने वाला होता है. क्योंकि यह गुण वह अपने माता पिता द्वारा ही तो ग्रहण करता है.
अश्विनी द्वादशांश | Ashwini Dwadshansha
2 डिग्री से 30 मिनट से 5 डिग्री दूसरा द्वादशांश, 12 डिग्री 30 मिनट से 15 डिग्री तक छठा द्वादशांश और 22 डिग्री 30 मिनट से 25 डिग्री तक दसवां द्वादशांश होता है. दूसरा, छठा और दसवां द्वादशांश अश्विनी कुमार द्वादशांश कहलाता है. यह द्वादशांश अश्विनी कुमारों का प्रतिनिधित्व करता है. जिस प्रकार अश्विनी कुमारों को देवों के वैद्य का पद प्राप्त हो उसी प्रकार यह द्वादशांश भी इसी गुण को प्रकट करने वाला होता है.
यदि लग्न या लग्नेश का संबंध अश्विनी द्वादशांश से बने तो जातक के भीतर इससे संबंधी गुणों को देखा जा सकता है. 2,6 और 10 द्वादशांश से प्रभावित होने पर माता पिता में चिकित्सक के गुण देखे जा सकते हैं. या वह एक अच्छे विद्वान और सलाहकार हो सकते हैं. इससे प्रभावित व्यक्ति चिकित्सक के गुणों को अपनाने वाला हो सकता है. उसके अंदर एक अच्छे वैध के गुण परिलक्षित हो सकते हैं. वह अपनी इस योग्यता द्वारा लोगों का हित करने में सहायक हो सकता है. इसके साथ साथ ही वह पशुओं की देख रेख करने वाला या पशु चिकित्सक भी हो सकता है. व्यक्ति में कार्य को करने की अच्छी क्षमता का विकास भी देखा जा सकता है. वह इंजिनियर या तकनीकी संबंधी कार्य से भी जुड़ सकता है.
यम द्वादशांश | Yama Dwadshansha
5 डिग्री से 7 डिग्री 30 मिनट तीसरा द्वादशांश, 15 डिग्री से 17 डिग्री 30 मिनट सातवां द्वादशांश और 25 डिग्री से 27 डिग्री 30 मिनट ग्यारहवां द्वादशांश होता है. अर्थात 3, 7 और 11 वां द्वादशांश यम द्वादशांश कहलाता है. यम मृत्यु के देवता हैं यह मनुष्य को उसके कर्मों के अनुरुप फल प्रदान करते हैं. यह जीव के सभी अच्छे बुरे स्वरूप को उसके समक्ष रख कर उसके अनुरुप उसे सही मार्ग दिखाने वाले होते हैं. जीवन में भी यम और नियम की भूमिका को बहुत महत्व दिया गया है इन्हीं यम और नियम से जुड़कर जीवन अपने सही मार्ग को पाने में सफल होता है.
यदि लग्न या लगनेश का संबंध यम द्वादशांश से बनता है तो माता पिता अनुशासन प्रिय हो सकते हैं. इससे प्रभावित होने पर अभिभावक बच्चों को अच्छे और बुरे का ज्ञान देने में सक्ष्म होते हैं. इससे प्रभावित जातक समाज में रहते हुए नीति परक नियमों का पालन करने वाला हो सकता है. इसी के साथ ही वह दूसरों को भी ऎसा करने की शिक्षा देने वाला हो सकता है तथा कुछ् कठोर होकर दूसरों को सही और गलत बताने का जिम्मा भी उठा सकता है.
सर्प द्वादशांश | Sarpa Dwadshansha
7 डिग्री 30 मिनट से 10 डिग्री तक का चौथा द्वादशांश, 17 डिग्री 30 मिनट से 20 डिग्री तक का आठवां द्वादशांश और 27 डिग्री 30 मिनट से 30 डिग्री तक बारहवां द्वादशांश होता है. चौथा, आठवां और बारहवां द्वादशांश सर्प द्वादशांश कहा जाता है. यह द्वादशांश सर्प के प्रभावों से प्रभावित होता दिखता है जैसे सांप तेज चलने वाला और विषधारी होता है तथा सर्प की पकड़ भी मजबूत होती है. उसी के गुणों से प्रभावित यह द्वादशांश माता पिता या जातक के जीवन को प्रभावित करने वाला होता है.
यदि लग्न या लगनेश इस सर्प द्वादशांश से प्रभावित हो माता पिता के स्वभाव में उग्र एवं तेजस्विता का भाव देखा जा सकता है. इससे संबंध बनने पर व्यक्ति के भीतर प्रतिशोधी और आक्रमणकारी स्वभाव देखा जा सकता है. उसकी भाषा में कटुता का समावेश हो सकता है. जातक कठिनाइयों से लड़ते हुए अपनी राह बना ही लेता है. उसके व्यवहार में सर्प की भांति वक्र गति रहती है. धीरे - धीरे ही सही वह अपना निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हो सकता है.
होरा कुंडली :- 15अंश की एक होरा होती है और एक राशि 30 अंश की होती है / अतः एक राशि में दो होरा होती है / विषम राशि में 1 ,3 , 5 ,7 ,9 , 11 ,में 0 से 15 अंश तक प्रारंभ से सूर्य की होरा होती है / 16 अंश से 30 अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है /
0 अंश से 15 अंश तक 1 ,3 , 5 ,7 ,9 , 11
16 अंश से 30 अंश तक 2 ,4 ,6 ,8 ,10,12.
समराशियों में प्रारंभ से 15 अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है बाद में 15 से 30 अंश तक सूर्य की होरा होती है /
धन की स्थित देखने के लिए होरा कुंडली का इस्तेमाल करते है
द्रेष्कान कुंडली :-
इस कुंडली से जातक के छोटे व बडे भाई बहनों का सहयोग या सुख का विचार किया जाता है द्रेष्कान कुंडली में लग्न का स्वामी यदि ट्रिक भाव में पीड़ित हो और लग्न कुंडली में तृतीय भाव का स्वामी भी ६८१२ भाव में हो तो जातक को भाई बहनों का सुख प्राप्त नहीं होता है अथवा उनसे दुखी रहता है
सप्तमांश कुंडली :-
सप्तमांश कुंडली के द्वारा जातक की संतान का विचार किया जाता है /
1 सप्तमांश कुंडली का लग्नेश यदि पुरुष गृह सूर्य मंगल गुरु हो तो जातक को पुत्र का सुख अच्छा प्राप्त होता है
2 यदि सप्तमांश कुंडली का लग्नेश यदि स्त्री गृह चन्द्र सुकर हो तो जातक को कन्याओ का सुख प्राप्त होता है
3 यदि सप्तमांश कुंडली में लग्नेश यदि नीच राशि में हो या पाप ग्रहों से पीड़ित हो या पाप ग्रहों का साथ हो तो जातक की संतान निम्न कार्य करने वाली होती है तथा जातक का नाम डुबाने वाली होती है
४ यदि लग्न कुंडली में पंचमेश लग्न या त्रिकोण में बैठे और सप्तमांश कुंडली के लग्न का स्वामी शुभ ग्रहों से युत या द्रष्ट हो तो जातक की संतान अपना व कुल का नाम रोशन करती है और जातक की उन्नति उस संतान के हनी के बाद अधिक हो जाती है
5 यदि लग्न कुंडली में पंचमेश 6 8 12 वे भाव में चला जावे या पाप कतरी में आ जाय या शनि राहु से द्रष्ट हॉप जाए या सप्तमांश कुंडली में लग्नेश 6 8 12 वे भाव में चला जी तो जातक संतान हीन हो जाता है
नवमांश कुंडली :-
नवमांश कुंडली के द्वारा जातक के जीवन साथी पर विचार करते है
नवमांश कुंडली का लग्नेश यदि मंगल हो तो जातक की स्त्री क्रूर तथा लड़ाकू होती है परन्तु यदि मंगल के साथ शुक्र भी हो तो जातक की स्त्री सुंदर हनी के साथ साथ कुलता होती है
यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश सूर्य हो तो जातक की स्त्री पति व्रता हनी के साथ साथ उग्र स्वाभाव की होती है
यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश चन्द्रमा हो तो शीतल स्वाभाव की गौरवर्ण की व मिलन सर होती है
यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश बुध हो तो का ला में प्रवीण चतुर व ज्ञान वां होती है
यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश गुरु हो तो जातक की स्त्री धार्मिक कार्यो में लगी रहने वाली बहूत अधिक पूजा पथ करने वाली और अंत समय में गृहस्थ जीवन से विरक्त हनी वाली होती है
यदि लग्नेश शुक्र होतो जातक की स्त्री सुंदर हनी के साथ साथ श्रंगार प्रिय विलाशी और प्रतेक कार्य को निपुणता से करने वाली होती है
यदि नवमांश के लग्नेश शनि हो तो जातक की स्त्री अध्यात्मिक हनी के साथ साथ न्याय प्रिय आचरण प्रिय तथा मेहनती होती है
·लग्न या लग्नेश में राहु का प्रभाव हो तो जातक की स्त्री चुगल खोर या प्रपंच करने वाली होती है
·यदि लग्नेश पर केतु का प्रभाव हो तोजातक की स्त्री अधिक बिलनी वाली व कुछ बातो को छिपाने वाली होती है
·यदि नवमांश कुंडली का लग्नेश यदि स्वराशी में स्थित हो , केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो तो जातक को पत्नी का पूरा सुख प्राप्त होता है
·नवमांश पति यदि पाप यिक्त या पाप द्रष्ट हो या 6 8 12 वे भाव में हो और यह स्थित लग्न कुंडली में भी तो जैसे सप्तमेश पाप युत व पाप द्रष्ट हो तो जातक को स्त्री सुख नहीं मिलता है
·पाप ग्राही की संख्या नवमांश लग्न में जितनी अधिक होगी जातक की स्त्री उतना अधिक परेशां होगी
द्वादशांश कुंडली :- इस कुंडली के द्वारा माता पिता के सहयोग के साथ साथ पैत्रक संपत्ति पर भी विचार करते है
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश यदि शुभ गृह हो तो जातक के माता पिता शुभ आचरण युक्त और यदि पाप गृह युक्त और पाप गृह हो तो पाप युक्त अचर्ना करने वाले होते है
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश यदि पुरुष गृह सवा ग्रही मित्र क्षेत्रीय उच्च का हो तथा केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक को अपने माता पिता से पूर्ण सहयोग अच्छी पत्रक संपत्ति मिलती है साथ ही जातक की सुख सुविधा में कमी नहीं रहती है
द्वादशांश कुंडली का लग्नेश 6 8 12 वे भाव में तो जातक को अपने माता पिता का सुख व सहयोग नहीं मिलता है
त्रिशमांश कुंडली :-
त्रिशमांश कुंडली के द्वारा कष्ट व अनिष्ट का विचार किया जाता है
यह विषम रशोयो में प्रथम 0 से 5 डिग्री मंगल में तथा दूसरा 0 से 5 डिग्री शनि के तीसरा आठ अंश धनु राशी गुरु का चौथा सात अंश मिथुन राशी के बुध का पांचवा पांच अंश तुला राशी के शुक्र का होता है
सम राशियों में प्रथम पांच अंश वृष राशी के शुक्र का दूसरा सात अंश कन्या राशी के बुध का तीसरे आठ अंश मीन राशी केचौथे पांच अंश मकर राशी के पांचवा पांच अंश वृश्चिक राशी के होता है
1.त्रिश्मंश कुंडली में अनिष्ट घटनाओ का विचार करते समय यह अवश्य ध्यान रखे की यह घटनाए तभी घटित होंगी जब महादशा योगनी दशा व गोचर में इन ग्रहों में घटनाओ का संचरण होगा
2.त्रिश्मंश कुंडली का लग्नेश यदि केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक के जीवन में शुभ घटनाए ज्यादा व अशुभ घटनाए कम होती है
3.परन्तु यदि त्रिक भाव 6 8 12 वे भाव में लग्नेश आ जाए या पाप ग्रहों से युत या द्रष्ट हो तो जातक के जीवन अंत गृह अनुकूल वस्तु विशेष के संपर्क में आने से होता है
4.त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश सूर्य हो तो ऊँचे स्थान से गिरकर म्रत्यु को प्राप्त होता है
5.त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि चन्द्रमा हो तो जल में डूबकर या जलोधर सम्बंधित बीमारीसे म्रत्युहोती है जलोधेर बीमारी में कैथे की चटनी काफी फायदा करती है
6.त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि मंगल हो तो श्ष्ट्र से या शैल्य क्रिया के दारा मृत्यु होती है
7.त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेशयदि शनि हो तो वाहन से मृत्यु का विचार किया जाता है
8.त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि गुरु हो तो वायु सम्बन्धी रोग जैसे पथरी किडनी गैस फैट आदि से सम्बंधित रोग से मृत्यु का विचार किया जाता है
10.त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि शुक्र हो तो विलाशिता से या फिर शुगर की बीमारी से मृत्यु होती है
11.त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि बुध हो तो व्यापर मेर घाटे से या व्यापारिक धोखेसे
12.त्रिश्मांश कुंडली का लग्नेश यदि राहु केतु हो तो विष से या विष युक्त जानवरों के काटने सेऔर आत्म हत्या के द्वारा मृत्यु का विचार किया जाता है
13.त्रिश्मांश कुंडली के षष्टेश के अनुसार जातक को रोग उत्पन्न होते है
14.त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि सूर्य है है तेज़ ज्वर नेत्र रोग आधा शिशिर पीड़ा पीलिया ह्रदय रोग आदि
15.त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि चन्द्रमा है तो काफ शीत मानसिक रोग यूरिन सम्बन्धी रोग
16.त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि मंगल है तो रक्त विकार रक्त चाप और फोड़े फुंसी
17.त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि बुध है तो त्वचा सम्नाधि रोग छोटी आंत के रोग श्वास रोग और बैक बोन से सम्बंधित रोग होते है
18.त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि गुरु हो तो आलस्य संन्पात कर्ण दोष लीवर आदि के रोग
19.त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि शुक्र हो तो गुप्तांग के रोग प्रजनन सम्बन्धी रोग शुगर व कलंक भी लगता है
20.त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि शनि हो तो वात विकार आस्थि भंग लक्वा शत्रु से पीड़ा विवाद व जेल यात्रा
21.त्रिश्मांश कुंडली में षष्टेश यदि राहु केतु हो तो डिप्रेशन
22.राहु केतु यदि लग्न में हो तो कैंसर से म्रत्यु का विचार किया जाता है