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ज्योतिष और रोग (Astrology and diseases)

ज्योतिष और रोग (Astrology and diseases)


कौन सा ग्रह शरीर के किस अंग का प्रतिनिधि हैं
सौरमंडल के सभी नौ ग्रहों का हमारे जीवन पर प्रभाव देखा जा सकता है। जन्म के समय मौजट गठों की स्थिति
और नक्षत्रों के आधार पर हमारी कुंडली का निर्माण होता है और फिर यठी ग्रह अपने-अपने स्वभाव अनुरूप हमारे
जीवन को चलाते हैं।
कई बार आप सोचते ठोंगे कि लाख टवा कराने, डॉक्टरों के यहां बार-बार जाने, मंदिर, मस्जिद, गरुद्वारा और चर्च में मत्था टेकने के बाद भी स्वास्थ्य ठीक नहीं हो रहा है तो एक बार किसी जानकार ज्योतिषविट से परामर्श ले लें।
कारण यह कि कई बार ग्रहों द्वारा उपजाए विकारको चिकित्सक ठीक नहीं कर पाते हैं। यदि षष्ठेश, अष्टमेश एवं द्वादशेश तथा रोगकारक ग्रह अशुभ तारा नक्षत्रों में स्थित होते हैं तो रोग की चिकित्सा निष्फल होने लगती है।
शास्त्रों के अनुसार यदि षष्ठेश चर राशि में तथा चरनवांश में स्थित होते हैं तो रोग की अवधि छोटी होती है।

किसी भी परेशानी का हल तब ही ठीक से निकल पाता है जब दिक्कत का ठीक से पता हो। हर मठ अलग-अलग
अंगों का कारक हैं और अगर हमारी राशि में किसी ग्रह में भी कोई दोष है तो हमें बीमारी का सामना करना पड़ेगा।
सूर्य हड्डियों का कारक है अगर किसी व्यक्ति विशेष को हड्डियों का कोई रोग है तो उसे सूर्य के उपाय से लाभ प्राप्त होगा। इस हेतु गेहूं सोना, ताम्बा, गुड़ आदि के दान से लाभ मिलता है।

सूर्य ग्रह

शुरुआत करते हैं शरीर के सबसे ऊपरी भाग मस्तिष्क से। भारत के पौराणिक प्राषियों ने भी मस्तक के बीचो बीच
भगवान सूर्य का स्थान माना है। ज्योतिष विद्या के अनुसार भी मस्तिष्क पर सूर्य देव का अधिकार होता है। किंतन
और मनन, इन सभी का आधार सूर्य ग्रह को माना गया है।

सूर्य : मुंह में बार-बार थूक इकट्ठा होना, झाग निकलना, धड़कन का अनियंत्रित होना, शारीरिक कमजोरी और रक्त
चापा

सूर्य नेत्र भाव में सूर्य, चंद्र या शुक्र अकेले या युत हो तो नेत्र विकार उत्पन्न करता है। शुक्र की युति चंद्र या सूर्य के
साथ हो तो स्थायी नेत्र विकार उत्पन्न करता है। सूर्य और शनि की युति समलबाई. सूर्य और रातु की युति आंखों में
अल्सर उत्पन्न करती हा शुक्र और चंद्रमा की युति से मोतियाबिंद होता हा सूर्य या चंद्र के साथ नीच या वक्री मंगल
नेत्र भाव में स्थित होने परनेत्र की हानि करता है। दाहिने औरबायें नेत्र में रोगकारक शुक्र की स्थिति यदि चंद्रमा
सेहष्ट है तो मायोपिया नामक रोग होता है।

उपवार: हदय रोग से रक्षा हेतु सूर्य और चंद्रको अध्यदें एवं आदित्य स्तोत्र का पाठ 40 दिन तक करानेत्र रोग से
बचाव हेतु सूर्य और चंद्र को अर्घ्य दें एवं 40 दिनों तक चाक्षुषी विद्या का पाठ करो सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे का
लोटा, रोली, लाल फूल एवंद का उपयोग को सूर्य से संबंधित सभी रोगों के निवारण हेत तलादान-शरीर केभारके बराबर गेहुं तौलकर रविवार को दिन के 12 बजे ब्राह्मण को दान करें। चंद्रमा से शीत प्रकोप, स्नोफीलिया
आदि ठो सकते हैं। तंठमा को अर्घ्य देने के लिए चांदी का बर्तन, सफेट फल एवं चावल का प्रयोग हितकर ठोता है।

चद्रमा

इसी तरह चंद्रमा से विशेष फल की प्राप्ति होगी। सर्दी, जकाम का भी कारक चन्द्र ही है। चन्द्र ग्रह के उपाय ठेत
चावल, जल, दूध, चांदी, चीनी का दान अत्यंत उत्तम बताया गया है।

सूर्य ग्रह से एक अंगुली नीचे चंद्रमा का स्थान माना गया है। चंद्रमा का नाता भावुकता और चंचलता से हैं, साथ ही
मनुष्य की कल्पना शक्ति भी चंद्रमा के द्वारा ही संचालित होती है।

विज्ञान के साथ-साथ ज्योतिष भी यही कहता है कि चंद्रमा को अपनी रोशनी के लिए सूर्य पर ही निर्भर रहना पड़ता है, इसलिए चंद्रमा हमेशा सूर्य के साये में ही रहता है। जब सूर्य का तेज रोशनी बनकर चंद्रमा पर पड़ता है तभी
व्यक्ति के विवार, उसकी कल्पना और चिंतन में सुधार आता है।

चंद्रमा: दिल और आंख की कमजोरी

चंद्र और बुध की युति षष्ठया द्वितीय भाव में होने पर नजलाया नासर तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता में विकार
उत्पन्न हो जाता है। यदि चंद्र छठे, सातवें और आठवें भाव में षष्ठेश से दृष्ट ठो तो प्रमेह, मधुमेह, अतिमूत्र आदि रोग उत्पन्न होते हैं। बहुमत्र में एक लीटर जल पांच मिनट तक अनवरत धारा में प्यूविक ग्लैंड और जननांग के मध्य स्थान में गिराए। इससे शुक्र पर नियंत्रण तथा अनेक प्रकार के जननांगीय रोग जैसेल्यूकोरिया, यूरीनरी ट्रैक इनफेक्शन (यूटीआई) दर होंगा (यह प्रयोग स्नान के पूर्व कग)

मंगलग्रह

बुखार, दुर्घटना का कारक मंगल ग्रह ठ। गुड़ का दान मंगल के लिए उत्तम हो।

माना जाता हैं कि अगर कोई जातक गायों को गुड़ खिलाता है तो उसका सर्य और मंगल दोनों ही प्रभावी रहेंगे।

गरुड़ पुराण के अनुसारनेत्रों में मंगल ग्रह का निवास माना गया है। मंगल गठशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
और यह रक्त का संचालक माना गया है।

ठमारा शरीर कितना मजबत और कितना कमजोर है इसका अंदाजा नेत्रों से ही लगता है। इसलिए नेत्रों को ठी
मंगल ग्रह का स्थान माना गया है।

मंगल रक्त और पेट संबंधी बीमारी, नासूर, जिगर, पित्त आमाशय, भगंदर और फोड़े ठोना।

उच्च का मंगल छठे, आठवें और बारहवें भावों में उच्च रक्तचाप उत्पन्न करता है। नीच अवस्था या अस्त एवं शत्रुक्षेत्री
मंगल निम्न रक्तचाप उत्पन्न करता है। साथ ही मंगलराठुकीयुतिछठे भाव में होने पर लाल कुष्ठ रोग तथा चंद्र
राहु की युति छठे भाव में होने पर श्वेत कुष्ठ रोग हो जाता है। यदि चतुर्थ भाव पर ष्टि हो तो दहेड़ी रोग होता है।

उपाय: भोजन का प्रथम ग्रास कुतेको खिलाए। चंद्र, राहु कीयुति मंगल से होने पर श्वान को दूध पिलाए। कुष्ठरोग
होने पर खैर की लकड़ी से 40 दिन तक समिधा हवन करेंगलटजीरा एवं तुलसी की पतियां बराबर मात्रा में गंगाजल
में पीस कर पलाश के पते पर रखें और पीड़ित स्थान पर लेप करो यदि हीमोग्लोबिन में उतार चढ़ाव हो एनीमिया की स्थिति बन रही हो तो मंगलवार को प्रात: लाल कपड़ा ओढ़कर बहते जल (नटी) में मसर की दाल प्रवाहित करेंगे

बुध ग्रह

हरे रंग को संबोधित करता है। गायों को हरा चारा डालना, हरी मूंग का दान बुध के विशेष उपाय है। खांसी, गले के
रोगों का कारक ही बध है अगर बुध के उपाय किए जाएं तो जातक को इन बीमारियों से जल्दी ही छटकारा मिलता चला जाएगा।

बुध ग्रह को हदय में स्थापित ग्रह माना गया है। बुध बौद्धिकता और वाणी का कारक ग्रह माना गया है। जब भी किसी व्यक्ति का व्यवहार, स्वभाव और वाचन शक्ति का पता लगाना हो तो अरबी ज्योतिष विद्या, रमल के अंतर्गत
बुध ग्रह की स्थिति को ही देखा जाता है।

बध: तेवक,नाड़ियों की कमजोरी, जीभ और दाँत का रोग बुध माइग्रेन एवं आंतों का रोग देता है। जब बध द्वादश भाव या लग्न में सर्य से यति करे तो तीत माइग्रेन ठोता है।
इस परेशानी से निजात पाने के लिए कांसे के पात्र में घी भर कर उसके ऊपर साबुत मूंग की दाल ढंककर बुधवार
को सिर के चारों ओर छठ बार घुमाएं और किसी ब्राह्मण को दान दे दें। माइग्रेन एवं आंतों के रोग में प्रत्येक बुधवार को जल में गंगाजल मिला लें और उसमें कुशा डालकर ओम बुधाय नमः' का 108 बार जप करें। जप करते समय
कुशा को हाथ से पकड़े रखें। जप के बाद उसी जल को पी लें इस उपाय के करो ठी माइग्रेन, तनाव, अनिद्रा, बेनी.
घबराहट तथा मृत्यु भय दूर होते हैं।

बृहस्पति ग्रह
बृहस्पति ग्रह गुरु का कारक है। गुरु की सेवा से बृहस्पति को बल मिलता है और मनुष्य की हर प्रकार की समस्याएं हल होती है। चने की दाल,बेसन, सोना यह सब बृहस्पति के कारक हैं इन चीजों के दान से बृहस्पति को
शक्तिशाली किया जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति का बहस्पति खराब है तो वह गर्दे की तकलीफ, मधुमेठ आदि
से ग्रस्त रहता है।

बठस्पति : पेट की गैस और फेफड़े की बीमारियां होने लगे तो बठस्पति का उपचार कराना चाहिए।

गुरु से शरीर का भार, गुर्दे, पित्त तथा पिंडलियां और दोनों कान नियंत्रित होते हैं। गुरु तीसरे और एकादश भाव में
स्थित होकर कान के रोग उत्पन्न करता है। राह के अतिरिक्त अन्य मठों से यति ठोने पर यह दोष नहीं होगा। यदि
बहरपति और शनि परस्पर छठे और आठवें भावों में स्थित हों तो शरीरका भार अधिक बढ़ जाता है और शारीरिक
स्फूर्तिक्षीण हो जाती है। चतुर्थश और दशमेश का स्थान परिवर्तन, चतर्थ या दशम भाव में गरुकी स्थिति अथवा सप्तम के प्रथम तथा अंतिम ट्रेष्काण में गुरु की स्थिति गुर्दे के रोग उत्पन्न करती है। लग्न में सूर्य तथा द्वादश में
गुरु पीलिया रोग देते हैं। बृहस्पति के कारण उपजे रोग को दर करने के लिए हल्दी की माला पर ओम बहस्पतये नमः' का एक माला जप रोज सुबह करें। वाणी दोष की अवस्था में दध में हल्दी या केसर मिलाकर ओम् चंद्राय
नमः, ओम् बहस्पतये नमः' मंत्र का जप करके पान करो किडनी दोष से बचाव के लिए हल्दी की गांठ और स्वर्ण पीले धागे में बांध कर गंगाजल मिले जल में डुबोते हुए छह बार ओम बृहस्पतये नमः' का जप करके वठ जल पी लें।
ऐसा 41 दिन तक करें। निश्चित रूपसे कल्याण होगा। उसी प्रकार यदि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होतो हल्दी की गांठ पीले कपड़े में बांधकर हल्दी का स्पर्श शरीर में होता रहे और ओम बहस्पतये नमः' मंत्र से धप टीप आदि से
पूजन करके गुरुवार को प्रातः काल दाहिनी भुजा में बांध लें। यह हर तरह से सखदायी साबित होगा।

शुक्रग्रह

शुक्र ग्रठ सुन्दरता का प्रतीक है। इसके कारक हैं चांदी, चीनी और सफेद वस्तुएं। अगर शक मठ बलशाली हैं तो
जातक सुखमय जिंदगी जीता चला जाएगा।

कामवासना और इच्छाशक्ति, इसका प्रतिनिधित्व शुक्र ग्रह द्वारा ही किया जाता है। पुरुषों की कुंडली में शक मठ
को वीर्य का कारक भी माना गया है। इस वजह से यह कहा जाता है कि मानव सष्टि का विकास शक द्वारा संभव है।

शुक्र: त्वचा, दाद, खुजली का रोगा

छठे, सातवें और आठवें भावों में शुक्र की स्थिति या उन परष्टि होने पर शर्करा रोग और गुप्त रोग उत्पन्न होते ठा
चंद्रमा और शुक्र की युति इन्हीं भावों में हो तो रोग की गंभीरता बढ़ जाती है। शुक्र और गुरु की युति से यह दोष भंग हो जाता है तथा यह शर्करा रोग और नेत्र रोग में परिवर्तित हो जाता है। द्वितीय और द्वादश स्थान में शुक्र चंद्र या
सूर्य के साथ युति करने पर नेत्रदोष उत्पन्न करता है। राह के अतिरिक्त अन्य ग्रहों से यति ठोने पर भी दोष बना रहता है। इन विकारों को दर करने के लिए कुछ उपाय किया जा सकता है। यौन रोग के लिए शुक्र का समिधा ठवन
रात्रि में गूलर की लकड़ी से करेंग शुगर के लिये शर्करा कुंभ दान करें।

शनि ग्रह

शनि ग्रठ कैंसर, दिल से सम्बंधित रोगों का कारक है। शनि से संबंधित वस्तुओं का दान किया जाए तो शनि के
दुष्प्रभाव से छुटकारा मिलता चला जाएगा। शनि की कारक वस्तुएं हैं आलू, तेल, लोठा आदि।

शनि का स्थान नाभि में माना गया है। रमल शास्त्र के अनुसार किसी व्यक्ति के वितन की गहराई का आंकलन
करने के लिए उसकी कुंडली में शनि की मजबती देखी जाती है।

शनि : नेत्र रोग और खाँसी की बीमारी।

द्वितीय स्थान में शनि दंत रोग, चतुर्थ स्थान में वायु रोग (गैस्टिक, एसीडिटी) छठे, सातवें, आठवें भावों में घुटनों एवं
पिंडलियों में दर्द और दसवें स्थान में तीत वायुरोग (उच्च गस्टिक) उत्पन्न करता है। उपाय: शनिवार की रात्रि में
छाया ढान 19 शनिवार तक करा जोड़ों में दर्द से बचाव के लिए शनि की लकड़ी काले कपड़े में बांध कर ओम
शनैशराय नमः मंत्र से पूजन करके दाहिनी भुजा में बांधे।

राह और केतु की शांति के लिए सूजी के हलवे और मली के दान से लाभ मिलता हा

राहु का स्थान मानव मुख में माना गया है। राहु जिस भाव में बैठा होता है उसी के अनुसार फल देता है। इसके साथ
अगर मंगल का तेज मिल जाए तो ऐसा व्यक्ति क्रोधी तो होता है साथ ही उसकी वाणी में वीरता ठोती है।रहता है। इन विकारों को दरकरने के लिए कुछ उपाय किया जा सकता है। यौन रोग के लिए शुक्र का समिधा हवन
रात्रि में गलर की लकड़ी से करो शगर के लिये शर्करा कंभ दान करें।

शनि ग्रह

शनि ग्रह कैंसर, दिल से सम्बंधित रोगों का कारक है। शनि से संबंधित वस्तुओं का दान किया जाए तो शनि के
दुष्प्रभाव से छुटकारा मिलता चला जाएगा। शनि की कारक वस्तुएं हैं आलू, तेल, लोठा आदि।

शनि का स्थान नाभि में माना गया है। रमल शास्त्र के अनसार किसी व्यक्ति के चिंतन की गहराई का आंकलन
करने के लिए उसकी कुंडली में शनि की मजबूती देखी जाती है।

शनि:नेत्ररोग और खाँसी की बीमारी।

द्वितीय स्थान में शनि दंतरोग, चतुर्थ स्थान में वायुरोग (गैस्टिक, एसीडिटी) छठे, सातवें, आठवें भावों में घुटनों एवं
पिंडलियों में दर्द और दसवें स्थान में तीत वायुरोग (उच्च गस्टिक) उत्पन्न करता है। उपाय: शनिवार की रात्रि में
छाया ढान 19 शनिवार तक को जोड़ों में दर्द से बचाव के लिए शनि की लकड़ी काले कपड़े में बांध कर ओम
शनेश्चराये नमः मंत्र से पूजन करके दाढिनी भुजा में बांधे।

राहू और केतु की शांति के लिए सूजी के हलवे और मूली के टान से लाभ मिलता है।

राहु का स्थान मानव मुख में माना गया है। राहु जिस भाव में बैठा होता है उसी के अनुसार फल देता है। इसके साथ
अगर मंगल का तेज मिल जाए तो ऐसा व्यक्ति क्रोधी तो होता है साथ ही उसकी वाणी में वीरता ठोती है।

राहु : बुखार, दिमागी की खराबियाँ, अचानक चोट, दर्यटना आदि।

राह और बुध की अरिष्ट स्थिति (लाभेश से तौथे, छठे, आठवें और बारहवें) से ना तथा बालों के रोग होते हैं। इस दोष में ढठी का प्रयोग उत्तम रहता है। चौथे, पांचवें या छठे स्थान में राहु हो तो उतर रोग होते हैं और इन्ठी स्थानों पर केतु की स्थिति से अल्सर उत्पन्न होता है। राहु एवं बुध बड़ी तथा छोटी आंत तथा शरीर में बनने वाले सभी हार्मोन नियंत्रित करते हैं। शरीर के नख तथा बाल रोग राहु के के द्वारा नियंत्रित होते हैं और इनका पोषण बुध के द्वारा होता है। सप्तम में राह और शुक्र की युति से शीघ्रपतन की बीमारी होती है।


  1. चतुर्थ में क्रूर ग्रह के साथ राह की युति भी शीघ्रपतन रोग देती है। राह को शांत करने के लिए भगवान भोले शंकर की पूजा करनी चाहिए। भक्त की पवित्र श्रद्धा पूर्ण आराधना से तत्काल प्रसन्न होने वाले महादेव राहु को शांत कर देते हैं। भगवान शिव की भगवान राम के प्रति अगाध श्रद्धा है, केवल राम नाम के जपने से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और राहु ग्रह के संकटों से मुक्ति दिला देते हैं। राह की बड़ी बाधा दर करने के लिए जातक को शिवपुराण
का पाठ करना चाहिए।

केतु

केतु का स्थान कंठ से लेकर हदय तक होता है। केतु ग्रह का संबंध गप्त और रहस्यमयी कार्यों से भी ठोता है।

केतुःशल, जोड़ों का दर्द, शुगर, कान, स्वप्न दोष, ठानिया, गुप्तांग संबंधी रोग आदि।

Joint pain and Shani transit
शनि ग्रह का गोचर और जोड़ों का दर्द

कुंडली में शनि पीड़ित होने पर ही घुटनो के दर्द, कमर दर्द, गर्दन के दर्द, रीढ़ की हड्डी की समस्या, कोहनी और कंधो के जॉइंट्स में दर्द के जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

अगर आपको जोड़ों में असहनीय दर्द हो रहा है तो आप तिल के तेल से मसाज कर सकते हैं इससे वात दोष भी कम होता है।
वैसे तो हमारे स्वास्थ से जुडी कोई भी समस्या जीवन की गति को धीमा कर ही देती है पर जोड़ो के दर्द या जॉइंट्स पेन की समस्या हमारे जीवन में एक बोझ की तरह होती है जिससे जीवन ठहर सा जाता है घुटनो के दर्द की समस्या बहुत से लोगो के जीवन में एक बड़ी बाधा बनी रहती है तो बहुत से लोग कमर दर्द के कारण कितनी ही समस्याओं का सामना करते हैं तो आइये देखते हैं कौन से ग्रहयोग व्यक्ति को जोड़ो के दर्द की समस्या देते हैं –
“ज्योतिष की चिकित्सीय शाखा हमारे स्वास्थ और शारीरिक गतिविधियों को समझने तथा उनके निदान में अपनी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ज्योतिष में “शनि” को हड्डियों के जोड़ या जॉइंट्स का कारक माना गया है हमारे शरीर में हड्डियों का नियंत्रक ग्रह तो सूर्य है पर हड्डियों के जोड़ों की स्थिति को “शनि” नियंत्रित करता है अतः हमारे शरीर में हड्डियों के जोड़ या जॉइंट्स की मजबूत या कमजोर स्थिति हमारी कुंडली में स्थित ‘शनि” के बल पर निर्भर करती है कुंडली में शनि पीड़ित स्थिति में होने पर व्यक्ति अक्सर जॉइंट्स पेन या जोड़ो के दर्द से परेशान रहता है और कुंडली में शनि पीड़ित होने पर ही घुटनो के दर्द, कमर दर्द, गर्दन के दर्द, रीढ़ की हड्डी की समस्या, कोहनी और कंधो के जॉइंट्स में दर्द के जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त कुंडली का “दसवा भाव” घुटनो का प्रतिनिधित्व करता है छटा भाव कमर का प्रतिनिधित्व करता है, तीसरा भाव कन्धों का प्रतिनिधित्व करता है और सूर्य को हड्डियों और केल्सियम का कारक माना गया है अतः इन सबकी भी यहाँ सहायक भूमिका है। परंतु जोड़ो के दर्द की समस्या में मुख्य भूमिका “शनि” की ही होती है क्योंकि शनि को हड्डियों के जोड़ो का नैसर्गिक कारक माना गया है और शनि हमारे शरीर में उपस्थित हड्डियों के सभी जॉइंट्स का प्रतिनिधित्व करता है। अतः कुंडली में शनि पीड़ित होने पर ही व्यक्ति को दीर्घकालीन या निरन्तर जॉइंट्स पेन की समस्या बनी रहती है”


1. यदि शनि कुंडली में छटे या आठवे भाव में हो तो ऐसे में व्यक्ति को घुटनो, कमर आदि के जोड़ो के दर्द की समस्याएं होती हैं।
2. शनि यदि नीच राशि (मेष) में हो तो भी व्यक्ति जोड़ो के दर्द से समस्याग्रस्त रहता है।
3. शनि का केतु और मंगल के योग से पीड़ित होना भी जॉइंट्स पेन की समस्या देता है।
4. शनि यदि सूर्य से पूर्णअस्त हो तो भी जोड़ो के दर्द की समस्या रहती है।
5. शनि का अष्टमेश या षष्टेश के साथ होना भी जॉइंट्स पेन की समस्या देता है।
6. यदि कुंडली के दशम भाव में कोई पाप योग बन रहा हो या दशम भाव में कोई पाप ग्रह नीच राशि में हो तो भी घुटनो के दर्द की समस्या रहती है।
7. छटे भाव में पाप योग बनना कमर दर्द की समस्या देता है।
8. यदि कुंडली में शनि पीड़ित स्थिति में हो तो शनि की दशा में भी जॉइंट्स पेन की समस्या बनी रहती है।


वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में ग्रहस्थिति भिन्न होने के कारण व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपाय भी भिन्न होते हैं परंतु यहाँ मैं जॉइंट्स पेन के लिए कुछ सामान्य ज्योतिषीय उपाय बता रहें हैं जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है –

उपाय –
1. ॐ शम शनैश्चराय नमः का नियमित जाप करें।
2. शनिवार को मन्दिर में पीपल पर सरसो के तेल का दिया जलाएं।
3. शनिवार को संध्याकाल में सरसो के तेल का परांठा कुत्ते को खिलाएं।
4. किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श के बाद शनि का कोई रत्न भी धारण कर सकते हैं पर किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह के बिना शनि का कोई भी रत्न ना पहने।
5. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।


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