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एक ही नक्षत्र में जन्म का फल | एक नक्षत्र जन्म दोष | जनन शांति | Janan Shanti Puja

एक ही नक्षत्र में जन्म का फल | एक नक्षत्र जन्म दोष | जनन शांति | Janan Shanti Puja

Ek Nakshatra janam Dosha Shanti puja

Tithi dosh, Nakshatra dosh, Yog dosh, Karan dosh

यदि एक ही परिवार में, एक ही माता पिता और उनकी संतानों में से किन्ही दो का जन्म एक ही नक्षत्र में हुआ हो, तो वह अत्यंत अनिष्टकारी होता है| यह अनिष्ट दोनों में से किसी एक को होता है| यदि भाई–भाई, भाई – बहन, पिता – पुत्र, या माता –पुत्र, या माता-पुत्री, पिता-पुत्री, का जन्म एक ही नक्षत्र में हो तो वह मृत्यु तुल्य कष्टदायक होता है| इसकी शांति अवश्य करनी चाहिए|

पिगोश्च जन्मनक्षत्रे जातस्तु पितृमातृहा|
जन्म अक्षान्षे च तल्लग्ने जातः सद्द्योमृतिप्रदः|| (वशिष्ठ)

एक नक्षत्र जनन की शांति संक्षिप्त रूप से करनी चाहिए|

एक नक्षत्र जन्म दोष माता पिता के नक्षत्र में जन्म

यदि पिता या पुत्र या पिता या पुत्री या माता या सन्तान या दो भाईयो का जन्म एक ही नक्षत्र में हो तो इसे नक्षत्र जन्म दोष कहते है इस स्थिती में दोनों में से एक को अपार कष्टों का सामना करना पड़ता है!तथा दोनों की आपस में अधिक नही बनती ओर अगर इसकी शांति ना की जाये तो जेसे-जेसे उम्र बढती है मुसीबते भी बढती है! महर्षि पराशरके अनुसार ऐसे लोगो को व्यापार कदापि नही करना चाहिए !अगर दशा ,महादशा ख़राब हो तो दोनों में से एक की आयु भी कम होती है!अगर गंडमूल नक्षत्र {रेवती,अश्वनी,ज्येष्ठा,मूल,अश्लेशा एवम मघा }के प्रथम चरण में जन्म हो तो पिता के लिए दुसरे चरण में माता के लिए तीसरे चरण में धन के लिए अनिष्ट कारक होता है!और अगर रिक्ता तिथि का जन्म हो या लग्न में राहु हो तो अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ता है तथा उसके पिता,भाई या माता का आपरेशन या लम्बी बीमारियों के कारण धन का नाश हो जाता है ऐसे में राहू और नक्षत्र शांति जरुर करवानी चाहिए! किसी योग्य पंडित जी से इसकी विधि विधान से पूजा की जाये तो इसकी शांति हो जाती है और इसके दुष्परिणाम ना के बराबर रह जाते है अगर कोई व्यक्ति चाहे और उसे कुछ समझ ना आ रहा हो तो मुझसे सलाह कर सकता है !

माता-पिता के नक्षत्र में हुआ है जन्म तो करें ये उपायRemedies for janam in mata pita Nakshatra

कहते हैं कि यदि माता-पिता या सगे भाई-बहन के नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ है तो उसको मरणतुल्य कष्ट होता है।

उपाय- इस दोष निवारण हेतु किसी शुभ लग्न में अग्निकोण से ईशान कोण की तरफ जन्म नक्षत्र की सुंदर प्रतिमा बनाकर कलश पर स्थापित करें फिर लाल वस्त्र से ढंककर उपरोक्त नक्षत्रों के मंत्र से पूजा-अर्चना करें फिर उसी मंत्र से 108 बार घी और समिधा से आहुति दें तथा कलश के जल से पिता, पुत्र और सहोदर का अभिषेक करें। यह कार्य किसी पंडित के सान्नि‍ध्य में विधिपूर्वक करें।

जनन शांति ज्योतिष, फलित ज्योतिष एवं धर्म शास्त्र के संयोग से बना एक उलझनपूर्ण परिच्छेद है। इस विषय में अनेक ग्रंथों में विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है। प्रारंभ में समाज के बहुतायत लोगों की जनन शांति में रूचि नहीं रहती। लेकिन जब संतति में कोई बिगाड या विकृति होती है तब ज्योतिषी की सलाह ली जाती है। ज्योतिषी सर्वप्रथम तत्कालीन ग्रहों की इष्टता-निष्टता देखकर उसमें कोई त्रुटि न पाने पर जन्मतिथि जांचता है। उसमें भी कोई दोष न मिलने पर वह जनन शांति को दोष बताता है।

कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, अमावस्या, क्षयतिथि, अश्विनी नक्षत्र की पहली घटी (48 मिनट), पुष्य नक्षत्र का दूसरा एवं तीसरा चरण आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा का तीसरा चरण, रेवती नक्षत्र की आखिरी दो घटी (48 मिनट), व्यतीपात, वैधृति, भद्रा योग तथा ग्रहण काल इत्यादि कुयोगों में जन्मी संतति की जनन शांति आवश्यक होती है। अनेक ग्रंथों में इन कुयोंगों में जन्मी बालक को विभिन्न कष्ट होने तथा माता-पिता पर घोर विपत्ति आने का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। इसके अलावा अनेक कुयोगों में जन्मे बालक का जन्म किस तरह अशुभ सूचक है, इसका भी उल्लेख हुआ है।

विविध स्तरों पर गंभीर अध्ययन-मनन करने से यह बात ध्यान में आती है कि जनन शांति के चंगुल से सही-सलामत छूटने वाले बालकों की संख्या सिर्फ 8-10 प्रतिशत ही है। जो बालक इससे पार हो गए हैं, वे सभी अच्छा जीवन जी रहे हैं- यह बात भी नहीं है। उनके हिस्से में भी संकट और कष्ट आते हैं। इसका कारण पाप ग्रह होते है। लेकिन शास्त्रोक्त विधि द्वारा शांति करवाने के बाद भी बालक को शांति का फल नहीं मिलता। ग्रहस्थिति उत्कृष्ट होने तथा शांति दोष होने पर भी जीवन क्रम बिगडा रहता है।

कुछ ज्योतिर्विदों की राय में दुष्टकाल का परिणाम केवल एक ही वर्ष रहता है तो फिर आश्लेषा नक्षत्र के अंतिम चरणों में जन्मी कन्या अपनी सास का नाश किस तरह कर सकती है क्योंकि बहू के आने तक तो कई वर्ष बीत चुके होते हैं। समाज में ऎसे कई उदाहरण देखने में आते है कि आश्लेषा नक्षत्र के आखिरी तीन चरणों में जन्मी अनेक कन्याओं की सांस अंत तक ह्रष्ट-पुष्ट रहत हैं। ऎसी स्थिति में जन्म-समय गलत होने की दलील दी जाती है। परंतु अगर सही जन्म-समय लिखा हो तो फिर अलग-अलग प्रकार की कुंडलियां बनाने को कहा जाता है। यदि आश्लेषा नक्षत्र के दोष के बावजूद सास जीवित रहे तो उसके ग्रह अति बलवान होने की बात बताई जाती हैं। कुल मिलाकर यह बात सभी नक्षत्रों एवं योगों की है। संक्षेप में जनन शांति का परिणाम एक गूढ प्रकार है।

वैसे पापभीरू, भयग्रस्त एवं कम जानकारी रखने वाले व्यक्ति जनन शांति अवश्य करवा लेते हैं। लेकिन जनन शांति से बालक को संकटों से छुटकारा मिल जाएगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं दी जाती। कष्ट दूर न होने और शांति का अनुकूल परिणाम न मिलने पर शांति में दोष बताया जाता है और पुन: जनन शांति करने को कहा जाता है। 

ऎसी जनन शांति एक पहेली है। उसमें से विद्वान आदमी भी बाहर नहीं निकल पाते। ऎसे समय निश्चित रूप से क्या करें, यह यक्षप्रश्न है। यदि किसी भी सलाह लें तो वह निरपेक्ष होगा, ऎसी स्थिति कम संभव होती है। कारण-सलाह देने वाले के संबंध शांति करने वाले पुरोहित या मंत्र-तंत्र करने वाले देवऋषि के साथ होने वाले के संबंध शांति करने वाले पुरोहित या मंत्र-तंत्र करने वाले देवऋषि के साथ होने की संभावना रहती है। परंतु यही स्थिति धर्म शास्त्र के प्रति श्रद्वा नष्ट होने का कारण बन सकता है। इसलिए समाज को चाहिए कि वह थोडा अंतर्मुख बनकर विचार करें।

जनन शांति का असर वास्तव में होता है- यदि यह बात मान ली जाए तो किसी बालक की जनन शांति बचपन में न होने पर प्रौढ अवस्था में करवाना हास्यास्पद है। यदि किसी बालक को बचपन में बालघुट्टी या जन्मघुट्टी न दी गई हो तो उसकी भरपाई करने के उद्देश्य से उसे उम्र के 25वें वर्ष बालघुट्टी देना तर्क विसंगत होगा। इसी तरह प्रौढावस्था में जनन शांति करवाना भी बचपना ही होगा। क्या मूल में जनन शांति का दोष सचमूच रहता है। यदि हां तो उसका प्रभाव सभी लोगों पर अलग-अलग रहता है अथवा एक समान ही रहता है-इस विषय में निरीक्षणात्मक, तुलनात्मक तथा संशोधनात्मक अध्ययन आवश्यक है। इसके अलावा यदि बालक के जीवन पर जनन का दुष्प्रभाव सिद्ध हो जाए तो इसे शांति कर्म से टाला जा सकता है या नहीं, इस भी पूर्ण विचार करना आवश्यक होगा। अपने अनेक जन्मों के संचित एवं प्रारब्ध के सहारे जन्म लेने वाले बालक का क्रियमाण जब इहजन्म में आकार लेता है तब उसके ऊपर स्वयं के प्रारब्ध का, माता-पिता के पूर्व कर्मो एवं संस्कारों का, आस-पास के सामाजिक वातावरण तथा यार-दोस्तों के सहचर्य का संकलित परिणाम पडता है।

कई बार ग्रहों, उनकी दृष्टि एवं स्थानों के परस्पर योग-प्रतियोग का परिणाम भी गौण होता है। कारण-ग्रहों की दिशा तथा दशा बदलने की सामथ्र्य जिस शक्ति में होता है,उसका सहयोग गुरू या इष्टदेवता के रूप में ले लिया जाता है। फलत: दोष का नाश होकर मनुष्य उत्साही बनता है। ऎसे वक्त जनन शांति करने की जरूरत नहीं रहती है। इससे मन में अस्थिर भावना जागती है।

जनन शांति पूजा Janan Shanti Puja

Tithi dosh, Nakshatra dosh, Yog dosh, Karan dosh

तिथी दोष पूजा : Tithi Dosha Shanti Puja

पंचांगों के पांच अंग : तिथी , वार, नक्षत्र, योग, और करण ये मिलके पंचांग की निर्मिती होती है|

अगर किसी जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी या अमावस्या या शुक्ल पक्ष की प्रति पक्ष में होता है, तो उस जातक को इसका दोष लगता है| अत: इन कारणों के कारणों से शांती पूजा आवश्यक है|

नक्षत्र दोष पूजा Nakshatra dosh shanti puja

नक्षत्रों की संख्या कुल २७ होती है| परंतु इन नक्षत्रों में जातक का जन्म होने के कारण दोष लगता है|

अश्विनी
भरणी
पुष्य (२रा, ३रा, चरण)
आश्लेषा
मघा (प्रथम चरण)
उत्तरा
चित्रा
विशाखा
जेष्ठा
मुल
पूर्वाषाढ़ा
शततारका
इन स्थितियों में शांती पूजा विधी आवश्यक होती है|

योग दोष पूजा yog dosha nivaran puja

निचे दिये हुए योग में किसी जातक का जन्म होता है तो उसे दोष लगता है| इसका परिणाम उसके जीवन में अनेक प्रकार से होता है|
विश्वकुंभ
अतिगंड
शुल
गंड
व्याघात
वज्र
व्यतीपात
परिघ
ऐंद्र
वैधृति

इन स्थितियों में शांती पूजा विधी आवश्यक होती है|

करण दोष पूजा Karan dosh shanti puja

करण की कुल संख्या ११ होती है| परंतु नीचे दिए हुए करण में जातक का जन्म होने के कारण इसका दोष लगता है| इसका परिणाम जातक के जीवन में बुरा प्रभाव डालता है|
विष्ठी (भद्रा)
शकुनी
नाग

Janan dosh Shanti upay 


1. कृष्ण चतुर्दशी को हुआ है जन्म तो करें ये उपाय

चतुर्थी को 6 भागों में बांटा गया है। प्रथम भाग में जन्म होने पर शुभ होता है, द्वितीय भाग में जन्म हो तो पिता का नाश, तृतीय भाग में जन्म हो तो माता की मृत्यु, चतुर्थ भाग में जन्म हो तो मामा का नाश, पंचम भाग में जन्म हो तो कुल का नाश, छठे भाग में जन्म हो तो धन का नाश या जन्म लेने वाले स्वयं का नाश होता है।

उपाय : इस दोष के निवारण के लिए भगवान गणेश की पूजा करें या सोमवार का व्रत रखकर शिवजी की पूजा करें। हनुमान चालीसा पढ़ें या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहें। यह जरूरी है कि दक्षिणमुखी मकान को छोड़ दें।


2. अमावस्या को हुआ है जन्म तो करें ये उपाय

कहते हैं कि इस दिन जन्म लेने वाले बालक का जीवन संघर्षमय होता है। इससे घर में दरिद्रता आती है। अत: अमावस्या के दिन संतान का जन्म होने पर शांति अवश्य करानी चाहिए। अमावस्या के देवता पितरों के अधिपति अर्यमा हैं। अमावस्या तिथि में जब अनुराधा नक्षत्र का तृतीय व चतुर्थ चरण होता है तो सर्पशीर्ष कहलाता है। सर्पशीर्ष में शिशु का जन्म दोष पूर्ण माना जाता है।


उपाय : इस दोष के निवारण हेतु कलश स्थापना करके उसमें पंच पल्लव, जड़, छाल और पंचामृत डालकर अभिमंत्रित करके अग्निकोण में स्थापना कर दें फिर सूर्य, चंद्रमा की मूर्ति बनवाकर स्थापना करें और षोडशोपचार या पंचोपचार से पूजन करें। फिर इन ग्रहों की समिधा से हवन करें, माता-पिता का भी अभिषेक करें और दक्षिणा दें और इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराएं। किसी पंडित के सान्निध्य में ही यह पूजन विधिपूर्वक कराएं। श्राद्ध कर्म करते रहने से भी यह शांति हो जाती है। सर्पशीर्ष योग में जन्म होने पर रुद्राभिषेक कराने के बाद ब्राह्मणों को भोजन एवं दान देना चाहिए।


3. भद्रा इत्यादि में हुआ है जन्म तो करें ये उपाय

भद्रा, क्षय तिथि, व्यतिपात, परिध, वज्र आदि योगों में जन्म तथा यमघंट इत्यादि में जो जातक जन्म लेता है, उसे अशुभ माना गया है।

उपाय- उपरोक्त दुर्योग में यदि किसी का जन्म हुआ है तो उसे यह दुर्योग जिस दिन आए, उसी दिन इसकी शांति कराना चाहिए। इस दुर्योग के दिन विष्णु, शंकर इत्यादि की पूजा व अभिषेक शिवजी मंदिर में धूप, घी, दीपदान तथा पीपल वृक्ष की पूजा करके विष्णु भगवान के मंत्र का 108 बार हवन कराना चाहिए।


4. यदि हुआ है जन्म ग्रहण काल में तो करें ये उपाय

यदि किसी जातक का जन्म ग्रहण काल अर्थात सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण या अन्य किसी ग्रहण में हुआ है तो उसे व्याधि, कष्ट, दरिद्रता और मृत्यु का भय होता है।

उपाय- ग्रहण काल के जन्म की शांति के उपाय किसी पंडित के सान्निध्य में विधिपूर्वक पूर्ण करें। इसके अलावा राहु और केतु का दान करते रहें।


5. संक्रांति जन्म दोष

सूर्य की 12 संक्रातियां होती हैं। उनमें से कुछ शुभ और कुछ अशुभ मानी गई हैं। ग्रहों की संक्रांतियों के नाम घोरा, ध्वांक्षी, महोदरी, मंदा, मंदाकिनी, मिश्रा और राक्षसी इत्यादि हैं। कहते हैं कि सूर्य की संक्रांति में जन्म लेने वाला दरिद्र हो जाता है इसलिए शांति करानी आवश्यक है।

उपाय- इस दोष निवारण हेतु विधि-विधान के साथ नवग्रह का यज्ञ करते हैं। उत्तरमुखी मकान में रहें और लक्ष्मी माता की पूजा करें।


6. माता-पिता के नक्षत्र में हुआ है जन्म तो करें ये उपाय

कहते हैं कि यदि माता-पिता या सगे भाई-बहन के नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ है तो उसको मरणतुल्य कष्ट होता है।

उपाय- इस दोष निवारण हेतु किसी शुभ लग्न में अग्निकोण से ईशान कोण की तरफ जन्म नक्षत्र की सुंदर प्रतिमा बनाकर कलश पर स्थापित करें फिर लाल वस्त्र से ढंककर उपरोक्त नक्षत्रों के मंत्र से पूजा-अर्चना करें फिर उसी मंत्र से 108 बार घी और समिधा से आहुति दें तथा कलश के जल से पिता, पुत्र और सहोदर का अभिषेक करें। यह कार्य किसी पंडित के सान्नि‍ध्य में विधिपूर्वक करें।


7. गंडांत योग में जन्मे जातक

पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है। इसी तरह से लग्न गंडांत होता है।

मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गंडांत कहा जाता है। मीन की आखिरी आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की आखिरी आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की आखिरी आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गंडांत कहलाती है। इन गंडांतों में ज्येष्ठा के अंत में 5 घटी और मूल के आरंभ में 8 घटी महाअशुभ मानी गई है। यदि किसी जातक का जन्म उक्त योग में हुआ है तो उसे इसके उपाय करना चाहिए।


ज्येष्ठा गंड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है। मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति कठिन मानते हुए 3 गायों का दान बताया गया है। रेवती और अश्विनी में 2 गायों का दान और अन्य गंड नक्षत्रों के दोष या किसी अन्य दुष्ट दोष में भी एक गाय का दान बताया गया है।

ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है। आश्लेषा के अंतिम 3 चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम 3 चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं। अगर पति से बड़ा भाई न हो तो यह दोष नहीं लगता है।


मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है। चौथा चरण जातक के लिए शुभ होता है।

उपाय- गंडांत योग में जन्म लेने वाले बालक के पिता उसका मुंह तभी देखें, जब इस योग की शांति हो गई हो। इस योग की शांति हेतु किसी पंडित से जानकर उपाय करें।


पाराशर होरा ग्रंथ शास्त्रकारों ने ग्रहों की शांति को विशेष महत्व दिया है। फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वरजी ने एक स्थान पर लिखा है कि-

दशापहाराष्टक वर्गगोचरे, ग्रहेषु नृणां विषमस्थितेष्वपि।
जपेच्चा तत्प्रीतिकरै: सुकर्मभि:, करोति शान्तिं व्रतदानवन्दनै:।।

अर्थात जब कोई ग्रह अशुभ गोचर करे या अनिष्ट ग्रह की महादशा या अंतरदशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान, वंदना, जप, शांति आदि द्वारा उसके अशुभ फल का निवारण करना चाहिए।

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