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कुंडली मिलान Kundali Milan | Janam patri milan जन्म पत्री मिलान

कुंडली मिलान  Kundali Milan | Janam patri milan जन्म पत्री मिलान


विवाह- प्रश्न और उत्तर | अष्टकूट मिलान – प्रश्न उत्तर 


क्या कुण्डली मिलान प्रचलित नाम से करना चाहिए? यदि नहीं तो क्यों ?
क्या केवल कुण्डली मिलान सुखी दाम्पत्य जीवन दे सकता है ?
कुण्डली मिलान में क्या – क्या दोष हो सकते हैं ?
क्या प्रत्येक व्यक्ति कुण्डली मिलान कर सकता है ?
अष्ट-कूट के अलावा किन-किन बातों का मिलान करना चाहिये?
कुंडली मिलान के कितने भेद हैं ?
उत्तर भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
दक्षिण भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
अष्ट कूट के कूटों के क्या नाम व क्या अंक हैं ?
वर्ण का मिलान कैसे किया जाता है ?
विवाह के लिए वर और कन्या में किसका वर्ण ऊँचा होना चाहिये ?
अष्टकूट मिलान में वर्ण क्या बतलाता है ?
अष्टकूट के किस कूट से जातक का व्यवहार पता किया जा सकता है?
योनि से क्या तात्पर्य है ?
योनि मिलान कैसे करते हैं ?
योनि से हम क्या क्या मिलान कर सकते हैं?
ग्रह मैत्री क्या दर्शाती है ?
ग्रह मैत्री कैसे देखी जाती है?
ग्रह मैत्री का क्या महत्त्व है ?
‘यदि ग्रह मैत्री हो तो अन्य दोषों में कमी आ जाती है ‘- यह सत्य:हैं ?
गण कूट के अधिकतम अंक कितने होते हैं?
गणकूट का मिलान कैसे किया जाता है?
गण दोष का क्या परिहार होता है ?
भकूट कूट कैसे मिलते हैं ?
भकूट कूट कब शुभ होता है ?
भकूट कूट कब अशुभ होता है ?
यदि वर-वधु की राशियां २/१२ है तो इसका क्या परिहार है ?
नाड़ी कूट कैसे मिलाया जाता हैं ?
नाड़ी कूट के अधिकतम अंक कितने हैं ?
नाड़ी दोष का क्या परिहार है ?
दक्षिण भारत व उत्तर भारत की तारा में क्या अन्तर हैं ?
कौन सी तारा अशुभ होती है?
यदि दोनों का नक्षत्र एक हो तो क्या सावधानियां होनी चाहिये ?
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यदि लड़के व लड़की का नक्षत्र एक हो तो उनकी कुण्डली मिलान के कुछ विशेष नियम होते है |  २७ नक्षत्रों में से ८ नक्षत्र ऐसे हैं जिन को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है | वे हैं

भरनी,

अश्लेषा,

स्वाति

ज्येष्ठा,

मूला,

धनिष्ठा

शतभिषा

पूर्वभाद्र |

यदि लड़के व लड़की का नक्षत्र एक हो व उपर लिखित नक्षत्रों में होतो वह विवाह के  उपयुक्त नहीं माने जाते | यदि शेष १९ नक्षत्र में से कोई भी नक्षत्र लड़के-लड़की का एक होतो वह विवाह के उपयुक्त है |

यदि दोनों का जन्म नक्षत्र

रोहिणी,

आर्द्रा,

मघा,

हस्त,

विशाखा,

श्रावण,

उत्तरभाद्र

रेवती

हो तो विवाह से कुण्डली मिलान में शुभ है | शेष ग्यारह नक्षत्र  मध्यम होते है |

जब लड़के –लड़की दोनों का एक ही नक्षत्र होतो (क) लड़के का नक्षत्र पद लड़की के नक्षत्र पद से पहले होना चाहिये | माना की दोनों का नक्षत्र रोहिणी है तो लड़के का नक्षत्र पद रोहाणी का दूसरा पद है तो लड़की कान क्षत्र पद ३ या ४ होना चाहिये | लड़की का नक्षत्र पद एक या दो होना चाहिये | लड़के का नक्षत्र पद लड़की का नक्षत्र पदया उससे बाद में नहीं होना चाहिये |जब लड़के –लड़की दोनों का नक्षत्र एक होतो दोनो का पद एक नहीं होना चाहिये |

पूर्व भद्र नक्षत्र – लड़का कुम्भ राशि, कन्या मीन राशि की होनी चाहिये |

एक तारा नक्षत्र के मिलान में जो कमी है वो यह है कि एकन क्षत्र होने के कारन उनकी नदी भी एक होगी जो स्वास्थ्य किओर इंगित करती है | अर्थात एक नक्षत्र वाले लड़के –लड़की का स्वास्थ्य ठीक न रहने कि सम्भावना रह जाती है |दोनों का नक्षत्र एक होने के कारण लड़के – लड़की के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ेगा | इसलिए लग्न व लग्नेश का बलवान होना आवश्कय होता है |
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क्या कुण्डली मिलान प्रचलित नाम से करना चाहिए? यदि नहीं तो क्यों ?

प्रचलित नाम से कुण्डली मिलान का औचित्य नहीं है | विवाह के लिए तो जन्मकुण्डलियों का ही मिलान होना चाहिये | उदाहरण के लिए एक लड़के या लड़की के अनेक नाम हो सकते हैं | माता-पिता प्यार से उसे किसी एक नाम से पुकार सकते हैं. स्कूल में उसका नाम कुछ अलग होता है तथा व्यवसाय में आमतौर पर द्वितीय नाम यानि Sir Name  का प्रयोग होता है  | जैसे एक लड़के को घर में मोनू ,  स्कूल में दीपक तथा व्यवसाय में शर्मा के नाम से जाना जाता है |  तीनों  में से किसी भी नाम से पुकारे जाने पर वह  सोते हुए भी उत्तर देता है |तो किस नाम से कुण्डली मिलान करेंगे ? इसलिए कुंडली मिलान नाम से नहीं हो सकता | शुभ या अशुभ  मिलान कुंडली से ही जाना जा सकता है आयु, दशा, मारक ग्रह आदि सब कुण्डली से ही जाने जा सकते हैं | नाम से कुण्डली मिलान केवल लीक को पीटना है अन्यथा अशास्त्रीय व तर्क विहीन है |
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क्या केवल कुण्डली मिलान सुखी दाम्पत्य जीवन दे सकता है ?

नहीं , केवल कुण्डली मिलान सुखी दाम्पत्य जीवन नहीं दे सकता | क्योंकि यदि एक सम्पन्न परिवार में पली लड़की का गरीब परिवार के लड़के के साथ विवाह कर दिया जाये तो वह लड़की कैसे सुखी अनुभव कर सकती है | यदि पढ़े-लिखे लड़के का विवाह अनपढ़ लड़की के साथ कर दिया जाये तो दोनों की प्रकृति व अभिरुचि में भिन्नता आना स्वभाविक हो जाता है | इसलिये कुण्डली मिलान से पहले  लड़का – लड़की का पारवारिक साम्य व उनका आपसी साम्य विचार एक होना भी आवश्यक हैं |
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कुण्डली मिलान में क्या – क्या दोष हो सकते हैं ?

कुंडली मिलान में आठ प्रकार के दोष हो सकते हैं जो सही मिलान न होने की तरफ इंगित करते हैं | आइये जानते हैं कुंडली मिलान के कौन – कौन से दोष हो सकते हैं | –

१- वर्ण – इसका सम्बन्ध जातीय कर्म से है इसे एक १ अंक दिया जाता है |

२- वश्य – इसका संबंध स्वाभाव से है इसे २ अंक दिए जाते हैं

३- तारा – इसका सम्बन्ध भाग्य से है  इसे ३ अंक दिए जाते हैं |

४- योनि – इसका संबंध यौन विचार से है  इसे ४ अंक दिए जाते हैं |

५- ग्रह मैत्री – इसका संबंध आपसी संबंध से है इसे ५ अंक दिए जाते हैं \

६- गण – इसका सम्बन्ध समजाक़िता से है इसे ६ अंक दिए जाते हैं |

७- भकूट – इसका सम्बन्ध जीवन शैली से है इसे ७ अंक दिए जाते हैं |

८- नाड़ी – इसका संबंध आय / संतान से इसे ८ अंक दिए जाते हैं |

कुण्डली मिलान में यदि इनमें से कोई भी एक दोष होता है तो उस दोष के बराबर अंक काट दिए जाते हैं |
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क्या प्रत्येक व्यक्ति कुण्डली मिलान कर सकता है ?

कुण्डली मिलान के लिए एक शिक्षित , निपुण व अनुभवी ज्योतिषी की आवश्कयता होती है | ज्योतिष-शास्त्र से अनभिज्ञ ज्योतिषियों की संख्या हमारे देश में बहुत अधिक है जो केवल सारिणी देखकर ही नक्षत्र मिलान कर देते हैं|  इस प्रकार इसे 5 मिनट में ज्योतिषी नामधारी दो अपरिचित युवकों के भावी भाग्य व वैवाहिक जीवन का फैसला कर देता है और आश्चर्य तो यह है कि हम भी उसे मान लेते हैं | यदि आप किसी अनुभवी डॉक्टर के पास जाएं और उससे कहें कि उसे कुछ समय से खांसी की शिकायत है तो वह रक्त , थूक आदि की जांच करवाएगा तथा छाती का एक्स –रे भी निकलवाएगा |  तब जाकर वह रोग का निदान करेगा | यहां तो जीवन भर के सुख व आनन्द का फैसला है वो हम कुछ ही मिनटों में करवाना चाहते हैं | विडिम्बना तो यह है कि आज प्रत्येक कर्मकाण्डी पंडित, कथावाचक, पुजारी, साधु व सन्यासी स्वयं को ज्योतिषी कहता है | लोगों की जिज्ञासा का लाभ उठाता है |

एक ज्योतिषी का गणितज्ञ होना, उसके पास गोचर का पता होना तथा ज्योतिष – शास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक होता है | उसका शिक्षित होना आवश्यक है | बिना शिक्षा के ज्योतिष करना लोगों के जीवन से खेलना है | परन्तु इसको कहीं पर सजा के योग्य नहीं माना गया है | कोई भी व्यक्ति मरीज को दवाई नहीं दे सकता जब तक उसके पास राज्य का रजिस्ट्रेशन नहीं है | परन्तु, ज्योतिषी को किसी प्रकार के रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं | लोगों के जीवन का फैसला एक अनपढ़ पुजारी भी कर सकता है | हमारे विचार में जीवन का फैसला कुण्डली मिलान से होता है | इसलिए शिक्षित ज्योतिषी से ही कुण्डली मिलान करवानी चाहिए जैसे कहा जाता है कि अनुभवी डॉक्टर के हाथ से मरना अच्छा है परन्तु अशिक्षित व्यक्ति की औषिधि से जीवन बचाना अशुभ है | अपने को अशिक्षा के आरोप से बचाने के लिए वे अंतर्ज्ञान जैसे शब्दों का सहारा लेते हैं | अनुभवी शिक्षित व्यक्ति का अंतर्ज्ञान व एक अनपढ़ अशिक्षित सन्यासी का अंतर्ज्ञान में बहुत अंतर है | शब्दों के माया – जाल से हमेशा बचना चाहिये | इसलिए कुण्डली मिलान जैसे महत्वपूर्ण कार्य को अनुभवी , शिक्षित , ज्योतिष ज्ञान में निपुण व्यक्ति से ही करवाना चाहिये |
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अष्ट-कूट के अलावा किन-किन बातों का मिलान करना चाहिये?

कुंडली मिलान के लिए अष्टकूट के अलावा दो सम्भावित वर व कन्या की जन्मकुण्डली के ग्रह स्थिति और नक्षत्र मिलान के आधार पर उनकी प्रकृति, मनोवृत्ति व समान अभिरुचि में साम्यता तथा परस्पर पूरकत्व का विचार किया जाता है | समान मनोवृत्ति व समान अभिरुचि के वर व कन्या का आपस में सहज आकर्षण उत्पन्न हो जाता है |
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कुंडली मिलान के कितने भेद हैं ?

कुण्डली मिलान के दो भेद हैं – १. ग्रह मिलान २. नक्षत्र मिलान |

१. ग्रह मिलान : इसमें हम अशुभ ग्रहों के दोषों की विवेचना करते हैं | लड़के के अशुभ प्रभाव या दोष लड़की के अशुभ प्रभाव से ज्यादा होने चाहिए | यदि लड़के के अशुभ गुण लड़की के अशुभ गुणों से कम है तो विवाह नहीं करना चाहिए | इसलिए उसका विवेचन गुण मिलान से पहले  करते हैं |

२ .नक्षत्र मिलान : ग्रह मिलान के बाद हम नक्षत्र मिलान करते हैं | नक्षत्र मिलान में वर-कन्या की प्रकृति, मनोवृत्ति व अभिरुचि, यौन सम्बन्ध, सन्तान व भाग्य आदि का विवेचन नक्षत्रों द्वारा करते हैं |
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उत्तर भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
उत्तर भारत के लोग अष्ट-कूट का मिलान करते हैं |
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दक्षिण भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?

दक्षिण भारत के लोग दस कूटों का विचार करते हैं परन्तु यदि अष्ट कूटों का मिलान पारिवारिक साम्य लड़का-लड़की का साम्य, मानसिक आरोग्यता, दशा साम्य व दशा सन्धि, आयु के साथ किया जाय तो इससे भी गुजारा हो जाता है |
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अष्ट कूट के कूटों के क्या नाम व क्या अंक हैं ?
अष्ट-कूट के कूटों के नाम व अंक:-

क्र . कूट       क्षेत्र              अंक
1- वर्ग          जातीय कर्म       1
2-  वश्य       स्वभाव            2
3- तारा        भाग्य                3
4-  योनि       यौन विचार         4
5-  ग्रह मैत्री   आपसी संबंध    5
6-  गण         सामाजिकता     6
7- भकूट        जीवन शैली      7
8- नाड़ी        आय / संतान     8
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वर्ण का मिलान कैसे किया जाता है ?
वर्ण मिलान के लिए वर एवं कन्या के जन्म नक्षत्र से उनकी राशि का निश्चय करना चाहिये | ज्योतिष में राशियों को चार वर्णों में बांटा गया है १. ब्राह्मण २. क्षत्रिय ३. वैश्य ४. शूद्र | जिसका जन्म कर्क, वृश्चिक या मीन राशि में हुआ हो तो उसका वर्ण ब्राह्मण होता है | ब्राह्मण जातक को  दूसरों के साथ मिलकर चलने को दर्शाता है | क्षत्रिय अधिकार, वैश्य अपना स्वार्थ , शूद्र दव कर चलने को दर्शाता है | इसी प्रकार अन्य जन्म राशि के आधार पर वर्ण का निर्णय किया जाता है :

वर्ण राशियाँ
ब्राह्मण कर्क , वृश्चिक , मीन
क्षत्रिय मेष , सिंह , धनु
वैश्य वृष , कन्या , मकर
शूद्र मिथुन , तुला , कुम्भ
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विवाह के लिए वर और कन्या में किसका वर्ण ऊँचा होना चाहिये ?

विवाह के लिए वर और कन्या के वर्ण में वर का वर्ण उच्च का होना चाहिए क्योंकि यदि वर का वर्ण उच्च का होगा तो वर का व्यवहार कन्या के व्यवहार से अच्छा होगा जिससे वर कन्या को नियन्त्रण में रख कर परिवार में बड़ों का आदर तथा छोटों को प्यार बनायें रख सकता है | यदि कन्या के वर्ण से वर का वर्ण उच्च का  हो तो गुणांक १ मिलता है | वर एवं कन्या का वर्ण एक हुआ तो कई विद्वान ज्योतिष १/२ अंक देते हैं | परन्तु सुविधा के लिए १ अंक ही मानते हैं | यदि वर के वर्ण से कन्या का वर्ण उच्च का हो तो शून्य अंक मिलता है |
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अष्टकूट मिलान में वर्ण क्या बतलाता है ?

अष्टकूट मिलान में वर्ण जातक का व्यवहार बतलाता है | वर का व्यवहार कन्या के व्यवहार से अच्छा होना चाहिये क्योंकि  कन्या वर के अनुसार ही व्यवहार करती है | यदि वर का व्यवहार अच्छा है तो व कन्या को नियन्त्रण में रख कर परिवार में बड़ों का आदर तथा छोटों को प्यार बनायें रख सकता है | यह गुण वित्त साम्य के प्रकार का है | वित्त साम्य में वास्तविक स्थिति का पता चलता है व वर्ण गुण से शारीरिक क्षमता का पता चलता है |
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अष्टकूट के किस कूट से जातक का व्यवहार पता किया जा सकता है?

जातक का एक दूसरे के प्रति व्यवहार जानने के लिए अष्टकूट के वर्ण कूट का विचार करते हैं |
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योनि से क्या तात्पर्य है ?
योनि जातक की मानसिक अभिरुचि, स्वभाव को दर्शाता है | इसमें जातक का दूसरों के प्रति सोच, व्यवहार व व्यक्तित्व का पता चलता है | इसलिए कई विद्वान, साझेदारी, मालिक, नौकर का भी विचार योनि से करते हैं |  योनियां १४ प्रकार होती हैं | प्रत्येक नक्षत्र को अलग योनि दी गई है | इसमें अभिजित नक्षत्र को भी नक्षत्रों में दिया गया है | इस प्रकार २८ नक्षत्रों को अलग -अलग योनि दी गई है |

योनियां के नाम हैं :
अश्व
गज
मेष
सर्प
श्वान
मर्जार
मूषक
गौ
महिष
व्याघ्र
मृग
वानर
नकुल
सिंह


योनि मिलान कैसे करते हैं ?

जातक के जन्म नक्षत्र के आधार पर योनि का निर्धारण किया जाता है | यदि लड़के -लड़की की योनि एक है तो एक दूसरे के प्रति स्वाभाविक आकर्षण होता है | इसलिए उसको ४ अंक दिये | यदि दोनों में मैत्री है तो ३ अंक, यदि दोनों सम है तो २ अंक यदि सामान्य वैर है तो १ अंक, यदि शत्रुता है तो शून्य अंक दिया जाता है| आइये इसे उदाहरण के साथ समझते हैं-

जिस तरह जो पशु साथ-साथ रहते हैं , एक प्रकार का खाना खाते हैं वे मित्र हैं | जो पशु साथ-साथ रहते हैं परन्तु एक दूसरे से कोई संबंध नहीं, वे सम हैं | परन्तु जो एक दूसरे को देखकर आक्रमण कर देते हैं वे शत्रु योनि के माने जाते हैं |  इसलिए जो योनियां एक दूसरे की शत्रु हैं वे विवाह के लिए त्याज्य हैं | उदहारण-यदि  कुण्डली में वर का जन्म नक्षत्र उत्तर फाल्गुनी है तथा लड़की का जन्म नक्षत्र रोहिणी है| उत्तर फाल्गुनी की योनि गाय है तथा रोहिणी सर्प है | इस प्रकार दोनों के विचारों में, व्यक्तित्व में अधिक भिन्नता है | अतः इसमें योनि मिलान नहीं होता |


योनि से हम क्या क्या मिलान कर सकते हैं?

योनि कूट में जातक का स्वभाव नक्षत्रों के अनुसार देखा जाता है | जातक के स्वभाव से ही घर में शांति या कलह रहता है | जातक की मनोवृति के बारे में जान सकते हैं | दो अनजान व्यक्तियों में शत्रुता रहेगी या मित्रता ? इसके के बारे में भी  जान सकते हैं|
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ग्रह मैत्री क्या दर्शाती है ?

ग्रहों के नैसगिर्क रूप में ३ प्रकार के सम्बन्ध होते हैं | कुछ ग्रह एक दूसरे के मित्र होते हैं | कुछ शत्रु होते हैं तथा अन्य सम होते हैं  (न शत्रु न मित्र) | | इस प्रकार ग्रह  मैत्री वर-कन्या की राशियों के स्वामियों का परस्पर सम्बन्ध दर्शाती है|


ग्रह मैत्री कैसे देखी जाती है?

ग्रह  मैत्री के कुल अंक ५ होते हैं | जब वर- कन्या का राशीश एक ही ग्रह होता हैं या परस्पर मित्र होता है, तो दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय होता है | यदि दोनों के राशीश एक दूसरे के शत्रु होते हैं तो झगड़े, विवाद या विचारों में मतभेद होता है | अतः इस स्थिति में विवाह नहीं करना चाहिये |


ग्रह मैत्री का क्या महत्त्व है ?

आज के बदले हुए वातावरण को देश, काल व पात्र का ध्यान रखते हुए नैसर्गिक  ग्रह मैत्री मिलान व योनि मिलान का महत्व अधिक हो गया है | लड़का-लड़की दोनों का व्यवहार स्वतंत्र है, शिक्षित है व वित्त में भी आत्मनिर्भर है | इसलिए दोनों का स्वभाव तथा व्यक्तित्व का सामंजस्य होना अत्यंत  आवश्यक हो गया है | अन्यथा विवाह में  लड़ाई-झगड़ा, विवाद एवम तलाक तक की नौबत आ जाती है |



‘यदि ग्रह मैत्री हो तो अन्य दोषों में कमी आ जाती है ‘- यह सत्य:हैं ?

विद्वान ज्योतिषी बृहस्पति को चंद्रमा का मित्र ग्रह मानते हैं |
शुक्र को मंगल का मित्र ग्रह मानते है |
सब ग्रह बुध के मित्र है केवल चंद्रमा शत्रु है |
शनि को बृहस्पति का मित्र मानते हैं |
सूर्य व मंगल शनि के सम ग्रह हैं, चंद्रमा भी शत्रु ग्रह हैं |
यदि जन्म कुंडली में राशीशों की परस्पर मैत्री नहीं है, परन्तु चंद्रमा में नवांशेश  (नवांशकुन्डली में) राशि स्वामी जिनमें चंद्रमा स्थित है ग्रहों में मित्रता है तब भी ग्रह मैत्री ठीक मानी  जाती है |

गर्ग संहिता के अनुसार सूर्य व चंद्र को छोड़कर शेष ग्रहों की दो राशियां हैं | दो राशियों में से किसी एक राशि में ग्रह उच्च का होता है तो उस ग्रह के लिए दूसरी राशि भी मित्र की राशि होती है | जैसे सूर्य मेष राशि में उच्च का होता है जिसका स्वामी मंगल है | तो सूर्य के लिए मंगल की दूसरी राशि वृश्चिक भी मित्र की राशि है | इसी  प्रकार चंद्रमा वृष में उच्च का होता है तो चंद्रमा के लिए शुक्र की दूसरी राशि तुला भी मित्र राशि है |


गण कूट के अधिकतम अंक कितने होते हैं?

आचार्यों ने प्रकृति के तीन प्रकार के गुणों को माना हैं सत्व, रजस व तमस | इन गुणों के प्रतीक  रूप में मानव भी तीन प्रकार के होते हैं |

 देव
 मनुष्य
 राक्षस |
आचर्यों ने २७ नक्षत्रों को भी तीन गुणों में  विभाजित  किया है | जन्म नक्षत्र के आधार पर जातक का गण जाना जा सकता है |


गणकूट का मिलान कैसे किया जाता है?

यदि लड़के व लड़की का एक ही गण हो तो अति शुभ होता है | उसको ६ अंक मिलते हैं |
यदि लड़का देव गण तथा लड़की मनुष्य गण के हों या लड़का मनुष्य गण व लड़की देव गण के हो तो मिलान शुभ होता हैं तथा अंक ५ दिए जाते हैं |
 यदि लड़की देव गण की है तथा लड़का राक्षस गण है तो वह अशुभ है |
 यदि लड़की राक्षस गण की है तथा लड़का मनुष्य गण का हो तो यह मिलान मृत्युदायक है | या इसके विपरीत लड़का राक्षस गण तथा लड़की मनुष्य गण की हो तो भी यह कुण्डली मिलान मृत्युदायक होता है |



गण दोष का क्या परिहार होता है ?

यदि लड़के के जन्म नक्षत्र से गिनने पर लड़की का नक्षत्र १४ या १४ नक्षत्र से दूर पड़ता है तो गण दोष समाप्त हो जाता है |
यदि लड़की तथा लड़के का राशि स्वामी एक ही ग्रह  हो या सम सप्तक हो तो गण दोष समाप्त हो जाता है |
यदि राक्षस गण वाले जातक की जन्मकुण्डली में पक्ष बली चन्द्रमा लग्न या सप्तम भाव में हो तो राक्षस गण दोष समाप्त हो जाता है |
यदि लड़की या लड़के की जन्मकुण्डली में अधियोग हो तो गण दोष समाप्त हो जाता है |
उदहारण- कुण्डली में यदि  लड़के  का जन्म नक्षत्र उत्तरफाल्गुनी तथा लड़की का जन्म नक्षत्र रोहिणी है  तो  लड़का मनुष्य गण है व लड़की भी मनुष्य गण की है | इसलिए मिलान अति उत्तम है |


भकूट कूट कैसे मिलते हैं ?

इसमें वर-राशि से कन्या-राशि तक गणना करने पर विभिन्न स्थानों पर राशि स्थिति से फल ज्ञात किया जाता है | भकूट से तात्पर्य है  कि लड़की तथा लड़के की राशियां -जिसमें चन्द्रमा स्थित है- एक दूसरे से कितनी अन्तर पर है, को देखा जाता है |

 सम सप्तम -प्रथम
 द्वितीय -द्वादश
तृतीय -एकादश
 चतुर्थ -दशम
 पंचम – नवम
 षष्ठ –अष्टम
राशि एक हो, त्रि + एकादश हो, चतुर्थ – दशम हो तो भकूट मिलान उत्तम होता है | यदि चंद्र राशि एक दूसरे से द्वि -द्वादश, षड – अष्टम, नवम -पंचम हो तो भकूट मिलान अशुभ होता हैं |


भकूट कूट कब शुभ होता है ?

वर कन्या की एक राशि होने पर विवाह अत्यन्त शुभ होता है और यह  भकूट सभी दोषों का शामक है| |परन्तु राशि एक होने पर भी पूर्ण नक्षत्र एक होना त्याज्य है | यदि लड़की की जन्म राशि से लड़के की जन्म राशि

एक है तो उत्तम
सप्तम है तो सुख व दीर्घायु
दशम है तो धन प्राप्ति
एकादश है तो सुख
द्वादश है तो दीर्घायु
अर्तार्थ सम सप्तम: भकूट मिलान उत्तम होता है, यदि लड़के की राशि लड़की की राशि से सप्तम है  या सप्तम राशि से आगे है ,  सप्तम से कम नहीं होनी चाहिए | जैसे लड़की की राशि मेष है लड़के की राशि तुला यह उत्तम भकूट है | या लड़के की राशि धनु हैं अर्थात सप्तम राशि से आगे है तब भी उत्तम है


भकूट कूट कब अशुभ होता है ?
यदि लड़की की जन्म राशि से लड़के की जन्म राशि

द्वितीय है तो मृत्यु
तृतीय हैं तो दुःख और कष्ट
चतुर्थ है तो गरीबी / निर्धनता
पंचम हैं तो वैधव्य
षष्ट हैं तो बच्चों की मृत्यु
यदि लड़की की राशि मेष है तथा लड़के की राशि कन्या है तो यह अशुभ है क्योंकि सप्तम राशि से कम हैं | द्वादश भकूट दोष : यदि लड़के की जन्म राशि लड़की की जन्म राशि से द्वितीय है तो यह २ / १२ स्थिति हैं ,कुण्डली मिलान में अशुभ भकूट है | निर्धनता कारक होता है |

यदि वर-वधु की राशियां २/१२ है तो इसका क्या परिहार है ?

द्वादश भकूट दोष : यदि लड़के की जन्म राशि लड़की की जन्म राशि से द्वितीय है तो यह २ / १२ स्थिति हैं ,कुण्डली मिलान में अशुभ भकूट है | निर्धनता कारक होता है |

परिहार /अपवाद : यदि लड़के की राशि सम है तथा लड़की की राशि विषम है तो द्विर्द्वादश  भकूट समाप्त हो जाता है जैसे लड़के की राशि वृष है तथा लड़की की राशि मिथुन है तो दोनों की राशियां २ / १२ द्विर्द्वादश  हुई | लड़के की राशि सम है तथा लड़की की राशि विषम है | इसलिए भकूट दोष समाप्त हो गया |


नाड़ी कूट कैसे मिलाया जाता हैं ?

संकल्प, विकल्प तथा कूट प्रतिक्रिया करना मन के सहज कार्य है | इन तीनों को जानने के लिये ज्योतिषशास्त्र के आचार्यों ने तीन नाड़ियो को माना है| १. आदि २. मध्य तथा ३ अंत जैसे शरीर की बीमारी जानने के लिये वैधों ने वात्त पित्त एवं कफ दोष माने हैं | अलग-अलग नक्षत्रों को अलग-अलग नाड़ियों में विभक्त किया गया है |

जिस प्रकार पित्त प्रधान जातक को नाड़ी चलने पर पित्त को बढ़ावा देने वाले पदार्थों का सेवन मना  होता है उसी प्रकार लड़के -लड़की की एक नाड़ी वर्जित होती है और इसको ८ अंक दिये हैं | अर्थात यदि लड़के -लड़की को एक नाड़ी हो तो कुण्डली मिलान अशुभ है | यदि लड़के लड़की की नाड़ी भिन्न -भिन्न हैं तो कुण्डली मिलान शुभ है और ८ दिये जाते हैं |


नाड़ी कूट के अधिकतम अंक कितने हैं ?

नाड़ी दोष का सम्बन्ध वर-कन्या के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य से है- मानो एक जातक विद्वान है, पढ़ा लिखा है, धनवान आदि भी है परन्तु बिस्तर पर पड़ा हुआ है तो ऐसे जातक  के साथ- कौन माता-पिता अपनी लड़की का विवाह करना पसंद करेगा | जीवन का आधार स्वास्थ्य है | शायद इसलिए ही हमारे आचार्यों ने नाड़ी दोष को ८ अंक दिये हैं | गृहस्थ जीवन का आधार भी स्वास्थ्य है | यदि वर नपुंसक है तो विवाह का अर्थ ही समाप्त हो जाता हैं | लड़की को मासिक नहीं आता तो संतान का आधार ही समाप्त हो जाता है | वंश ही समाप्त हो जाता है | वैवाहिक जीवन सुखमय रहने के लिए दोनों का स्वस्थ्य होना आवशयक हैं | नाड़ी दोष का मिलान आवश्य हैं | वर-कन्या का नाड़ी दोष न मिलने पर मानसिक बीमारियां भी देखी गई हैं | बच्चे मानसिक तौर पर पूर्ण विकसित नहीं हों पाते | इस प्रकार वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है |
नाड़ी दोष का क्या परिहार है ?

यदि वर कन्या का एक ही नक्षत्र हो तो निश्चित रूप से उन दोनों की ही एक ही नाड़ी होगी | प्रथम दृष्टि से यह नाड़ी दोष प्रतीत होता है | परन्तु यदि नक्षत्र के पद अलग-अलग है तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है |
(क) यदि वर-कन्या का जन्म तो भिन्न-भिन्न नक्षत्र में हुआ है परन्तु नाड़ी एक ही होने के कारण नाड़ी दोष है यदि दोनों की राशि एक ही हो तो राशि का स्वामी एक ही ग्रह होगा | इसलिए स्वामी एक ही होने के कारण नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है |
(ख) यदि दोनों की राशि भिन्न-भिन्न हैं परन्तु दोनों राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हैं तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है |

जैसे एक का नक्षत्र उत्तरांषाढ़ है तो दूसरे का नक्षत्र रेवती है | परन्तु उत्तरांषाढ़ की राशि का स्वामी बृहस्पति है और रेवती नक्षत्र की                   राशि का स्वामी भी बृहस्पति है | राशियां धनु व मीन है | नाड़ी एक अन्त है परन्तु राशि स्वामी एक होने के कारण, नाड़ी दोष नहीं माना             जाएगा |

(ग) कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, ज्येष्ठा, श्रवण, उत्तरभद्रा एवं रेवती में वर / कन्या के नक्षत्र हो तो नाड़ी दोष ग्राह्य है |

(घ) यदि वर-कन्या का राशीश बुध, गुरु शुक्र में से कोई ग्रह हो तो नाड़ी दोष ग्राह्य है |

(ड़) महामृत्युंजय मन्त्र का पाठ व दान आदि देने के बाद मज़बूरी में नाड़ी दोष ग्राह्य है |


तारा मिलान क्यों आवश्यक हैं

एक तारा नक्षत्र के मिलान में जो कमी है वह यह है की एक नक्षत्र होने के कारण उनकी नाड़ी भी एक होगी जो स्वास्थ्य की ओर इंगित करती है| अर्थात एक नक्षत्र वाले लड़के- लड़की का स्वास्थ्य ठीक न रहने की संभावना बढ़ जाती है |
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क्या कुण्डली मिलान प्रचलित नाम से करना चाहिए? यदि नहीं तो क्यों ?
क्या केवल कुण्डली मिलान सुखी दाम्पत्य जीवन दे सकता है ?
कुण्डली मिलान में क्या – क्या दोष हो सकते हैं ?
क्या प्रत्येक व्यक्ति कुण्डली मिलान कर सकता है ?
अष्ट-कूट के अलावा किन-किन बातों का मिलान करना चाहिये?
कुंडली मिलान के कितने भेद हैं ?
उत्तर भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
दक्षिण भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
अष्ट कूट के कूटों के क्या नाम व क्या अंक हैं ?
वर्ण का मिलान कैसे किया जाता है ?
विवाह के लिए वर और कन्या में किसका वर्ण ऊँचा होना चाहिये ?
अष्टकूट मिलान में वर्ण क्या बतलाता है ?
अष्टकूट के किस कूट से जातक का व्यवहार पता किया जा सकता है?
योनि से क्या तात्पर्य है ?
योनि मिलान कैसे करते हैं ?
योनि से हम क्या क्या मिलान कर सकते हैं?
ग्रह मैत्री क्या दर्शाती है ?
ग्रह मैत्री कैसे देखी जाती है?
ग्रह मैत्री का क्या महत्त्व है ?
‘यदि ग्रह मैत्री हो तो अन्य दोषों में कमी आ जाती है ‘- यह सत्य:हैं ?
गण कूट के अधिकतम अंक कितने होते हैं?
गणकूट का मिलान कैसे किया जाता है?
गण दोष का क्या परिहार होता है ?
भकूट कूट कैसे मिलते हैं ?
भकूट कूट कब शुभ होता है ?
भकूट कूट कब अशुभ होता है ?
यदि वर-वधु की राशियां २/१२ है तो इसका क्या परिहार है ?
नाड़ी कूट कैसे मिलाया जाता हैं ?
नाड़ी कूट के अधिकतम अंक कितने हैं ?
नाड़ी दोष का क्या परिहार है ?
दक्षिण भारत व उत्तर भारत की तारा में क्या अन्तर हैं ?
कौन सी तारा अशुभ होती है?
यदि दोनों का नक्षत्र एक हो तो क्या सावधानियां होनी चाहिये ?


कौन सी तारा अशुभ होती है?

तारा नौ प्रकार की होती है |
जन्म
सम्पत्त
विपत्त
क्षेम
प्रत्यरि
साधक
वध
मित्र
अति मित्र |
इन ताराओं के नाम व फल समान माने गए हैं | इन ताराओं में से ३, ५, ७, तारा अर्थात विपत्त प्रत्यरि व वध तारा अशुभ प्रभाव के कारण अशुभ मानी गई है |


दक्षिण भारत व उत्तर भारत की तारा में क्या अन्तर हैं ?

दक्षिण भारत में लड़की के जन्म नक्षत्र से के वलसंख्या गिनी जातीहै | उत्तर भारत में दोनों से गिनी जाती है | दक्षिण भारत में तारा कूट को दीन कुट भी कहते है | परन्तु दक्षिण भार में ‘पर्याय’ का भी महत्व है | २७ नक्षत्रों को तीन भागों में बांटा जाता है और एक भाग में नौ नक्षत्र होते है | इन भागों हटे को पर्याय कहते है | पहले पर्याय को जन्म पर्याय कहते हैं दूसरे को अनु –जन्म पर्याय कहते हैं | तथा तीसरे पर्याय को त्रिजन्म पर्याय कहते हैं |


Bhakut dosh कुंडली मिलान और भकूट दोष : कारण और परिहार Kundali milan aur bhakut dosh parihar

कुंडली मिलान और भकूट दोष : कारण और परिहार Kundali milan aur bhakut dosh parihar

कम्पयूटर का कार्य है सिर्फ गणित(Calculations) करना, जन्मकुंडली देखने का कार्य ज्योतिष के ज्ञाता का है  कम्पयूटर मानव कार्यों का एक सर्वोतम सहायक जरूर है, परंतु मानव नहीं इसलिए कम्पयूटर का उपयोग करें तो सिर्फ जन्मकुंडली निर्माण हेतु न कि कम्पयूटर द्वारा दर्शाई गई गुण मिलान संख्या को आधार मानकर कोई अंतिम निर्णय लिया जाए कुंडली मिलान और भकूट दोष : कारण और परिहार Kundali milan aur bhakut dosh parihar

कुंडली-मिलान में दोषों का परिहार (काट) कैसे होती है, मांगलिक दोष, गण दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष, मंगल दोष आदि ज्योतिष में महादोष कहे गए हैं, कुंडली मिलान को अधिकतर व्यक्ति एक निगाह से देखते हैं. उनकी नजर में जितने अधिक गुण मिलते हैं उतने अच्छा होता है जबकि यह पैमाना बिलकुल गलत है, कई बार 36 में से 36 गुण मिलने पर भी वैवाहिक सुख का अभाव रहता है क्योंकि गुण मिलान तो हो गया लेकिन जन्म कुंडली का आंकलन नहीं हुआ, सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि व्यक्ति की अपनी कुंडली में वैवाहिक सुख कितना है? तब उसे आगे बढ़ना चाहिए |


जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आजकल  आँख मूंदकर यही देखा है कि गुण कितने मिल रहे हैं और जातक मांगलिक है या नहीं बस इसके बाद सब कुछ तय हो जाता है यदि हम सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो अधिकतर कुंडलियों में गुण मिलान दोषों या मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है अर्थात अधिकतर दोष कैंसिल हो जाते हैं लेकिन इतना समय कौन बर्बाद करें, मैने अपनी ज्योतिष की प्रैक्टिस के दौरान कुंडली मिलान के ऐसे बहुत से केस देखे हैं जिनमें सिर्फ गुण मिलान की विधि से ही 25 से अधिक गुण मिलने के कारण वर-वधू की शादी करवा दी गई तथा कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके परिणाम स्वरुप इनमें से बहुत से केसों में शादी के बाद पति पत्नि में बहुत तनाव रहा तथा कुछ केसों में तो तलाक और मुकद्दमें भी देखने को मिले। अगर 28-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमें तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में न तो पूर्ण है तथा न ही सक्षम।
bhakut dosh 
कुंडली  मिलान और भकूट दोष:
भकूट दोष:  वैवाहिक जीवन की ,जीवनशैली, सामाजिकता, सुख-समृद्धि, प्रेम-व्यवहार, वंशवृद्धि आदि को प्रभावित करता है।

भकूट दोष का प्रभाव
भकूट का तात्पर्य वर एवं वधू की राशियों के अन्तर से है।

द्विद्वार्दश भकूट में विवाह करने  सेे निर्धनता होता है।
नव-पंचम भकूट में विवाह करने सेे संतान के कारण कष्ट होता है।
षडाष्टक भकूट दोष के कारण विविध प्रकार के कष्टों के साथ शारीरिक कष्ट की संभावना होती है।

 परिहार मिलने पर विवाह का निर्णय लेना:
भकूट दोष के परिहार उपलब्ध हो तो दोष समाप्त हो जाता है और वैवाहिक जीवन सुखद व्यतीत होता है।

भकूट का तात्पर्य वर एवं वधू की राशियों के अन्तर से है।
इन स्थितियों में भकूट दोष नहीं लगता है:-----
1. यदि वर-वधू दोनों के राशीश आपस में मित्र हों।
2. यदि दोनों के राशीश एक हों।
3. यदि दोनों के नवमांशेश आपस में मित्र हों।
4. यदि दोनों के नवमांशेश एक हो।
 परिहार (काट) यदि वर-वधू की कुंडली में उपलब्ध हो तो दोष का निवारण हो जाता है।

• मेलापक में राशि अगर प्रथम-सप्तम हो तो शादी के पश्चात पति पत्नी दोनों का जीवन सुखमय होता है और उन्हे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
• वर कन्या का परस्पर तृतीय-एकादश भकूट हों तो उनकी आर्थिक अच्छी रहती है एवं परिवार में समृद्धि रहती है,
• जब वर कन्या का परस्पर चतुर्थ-दशम भकूट हो तो शादी के बाद पति पत्नी के बीच आपसी लगाव एवं प्रेम बना रहता है।

 भकूट दोष, कारण और निराकरण
Bkut defect
किसी भी सफल विवाह के लिए उसका शुभ होना बेहद जरूरी होता है। विवाह के वक्त यदि कुंडली में भकूट दोष हो तो भावी दम्पति का गुण मेलापक मान्य नहीं होता है, इसका मुख्य कारण यह है कि 36 गुणों में से भकूट के लिए 7 गुण निर्धारित हैं। भकूट दोष दाम्पत्य जीवन की जीवनश्ौली, सामाजिकता, सुख-समृद्धि, प्रेम-व्यवहार, वंशवृद्धि आदि को प्रभावित करता है। परन्तु इसका शास्त्र सम्मत परिहार (काट) यदि वर वधू की कुंडली में उपलब्ध हो तो दोष का निवारण हो जाता है।

भकूट दोष का प्रभाव
भकूट दोष का निर्णय बारीकी से किया जाना चाहिए। शास्त्रों में भकूट दोष निवारण के अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। परिहार मिलने पर विवाह का निर्णय लेना शास्त्र सम्मत है। द्विर्द्वादश भकूट में विवाह करने का फल निर्धनता होता है। नव-पंचम भकूट में विवाह करने सेे संतान के कारण कष्ट होता है। षडाष्टक भकूट दोष के कारण विविध प्रकार के कष्टों के साथ शारीरिक कष्ट की संभावना होती है। भकूट दोष के शास्त्र सम्मत परिहार उपलब्ध हो तो दोष समाप्त हो जाता है और वैवाहिक जीवन सुखद व्यतीत होता है।
भकूट के आधार पर विवाह की शुभाशुभता
शुद्ध भकूट और नाड़ी दोष रहित 18 से अधिक गुण हों तो विवाह शुभ मान्य होता है।
अशुद्ध भकूट (द्विर्द्वादश, नवपंचम, षड़ाष्टक) होने पर भी यदि मित्र भकूट की श्रेणी में हो तो 20 से अधिक गुण होने पर विवाह श्रेष्ठ होता है।
शत्रु षड़ाष्टक (6-8) भकूट दोष होने पर विवाह नहीं करें। दाम्पत्य जीवन में अनिष्ट की संभावना रहेगी।
मित्र षड़ाष्टक भकूट दोष में भी पति-पत्नी में कलह होती रहती है। अत: षड़ाष्टक भकूट दोष में विवाह करने से बचना चाहिए।

नाड़ी दोष के साथ यदि षड़ाष्टक भकूट दोष (चाहे मित्र षड़ाष्टक हो अथवा दोनो की राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो) भी हो तो, विवाह कदापि नहीं करें। शुद्ध भकूट से गण दोष का परिहार स्वत: हो जाता है।
भकूट दोष परिहार
वर-कन्या की राशि से आपस में गणना करने पर द्विर्द्वादश (2-12) या एक दूसरे की राशि आगे पीछे हो, नव-पंचम (5-9) या षडाष्टक (6-8) राशि गणना में हो तो, भकूट दोष होता है। इन तीनों स्थितियों में यदि दोनों के राशि स्वामियों में शत्रुता हो तो भकूट दोष के कारण 7 में से शून्य अंक मिलेगा। लेकिन दोनों की राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो अथवा उनके राशि स्वामियों में मित्रता होने पर विवाह की अनुमति दी जा सकती है। इनके शास्त्र सम्मत परिहार ये हैं-
भकूट दोष होने पर भी यदि वर-कन्या के राशि स्वामी एक ही हों या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो गणदोष एवं दुष्ट भकूट दोष नगण्य हो जाता है।
वर-कन्या के राशि स्वामी एक ही ग्रह हों, राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता हो, परस्पर तारा शुद्धि हो, राशि सबलता हो, नवमांश पतियों में मित्रता हो तो यह पांच प्रकार के परिहार भी दुष्ट भकूट दोष निवारक हैं। परन्तु इनमें परस्पर नाड़ी शुद्धि होना चाहिए।

नवपंचम व द्विर्द्वादश दुष्ट भकूट होने पर वर की राशि से गणना करने पर कन्या की राशि 5वीं हो तो अशुभ किन्तु 9वीं शुभ तथा वर से कन्या की राशि गणना में 2 हो तो अशुभ परन्तु 12वीं शुभ होती है। ऎसे में भकूट दोष होने पर भी विवाह श्रेष्ठ होता है।
मेष राशि
इस राशि के जातकों को वृष, मीन राशि से द्विर्द्वादश भकूट, सिंह, धनु से नव-पंचम और कन्या, वृश्चिक राशि के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
वृष राशि
इस राशि के जातकों को मिथुन, मेष राशि से द्विर्द्वादश, कन्या, मकर से नव-पंचम और तुला, धनु राशि के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
मिथुन राशि
इस राशि को कर्क, वृष राशि से द्विर्द्वादश, तुला, कुंभ से नव-पंचम और वृश्चिक, मकर राशि के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
कर्क राशि
इस राशि के जातकों को सिंह, मिथुन राशि से द्विर्द्वादश, वृश्चिक, मीन से नव-पंचम और धनु, कुंभ राशि के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
सिंह राशि
इस राशि को कन्या, कर्क राशि से द्विर्द्वादश, धनु, मेष से नव-पंचम और मकर, मीन राशि के जातकों के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
कन्या राशि
इस राशि के जातकों को तुला, çंसंह राशि से द्विर्द्वादश, मकर, वृष से नव-पंचम और कुंभ, मेष राशि के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
तुला राशि
इस राशि के जातकों को वृश्चिक, कन्या राशि से द्विर्द्वादश, कुंभ, मिथुन से नव-पंचम और मीन, वृष राशि वाले जातकों के साथ षडाष्टक भकूट दोष मान्य होगा।
वृश्चिक राशि
इस राशि के जातकों को धनु, तुला राशि से द्विर्द्वादश, मीन, कर्क से नव-पंचम और मेष व मिथुन राशि के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
धनु राशि
इस राशि के जातकों को मकर, वृश्चिक राशि से द्विर्द्वादश, मेष, सिंह से नव-पंचम और वृष व कर्क राशि वालों के साथ षडाष्टक भकूट दोष मान्य रहेगा।
मकर राशि
इस राशि के जातकों को कुंभ, धनु राशि से द्विर्द्वादश, वृष, कन्या से नव-पंचम और मिथुन व सिंह राशि के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
कुम्भ राशि
ऎसे जातकों को मीन, मकर राशि से द्विर्द्वादश, मिथुन, तुला से नव-पंचम और कर्क व कन्या राशि के जातक के साथ षडाष्टक भकूट दोष मान्य रहेगा।
मीन राशि
इन्हें मेष, कुंभ राशि से द्विर्द्वादश, कर्क, वृश्चिक से नव-पंचम और सिंह व तुला राशिं के साथ षडाष्टक भकूट दोष लगेगा।
उक्त वर्णित राशिगत भकूट दोष के परिहार स्वरूप यदि वर-कन्या दोनों का राशि स्वामी एक हो या दोनों के राशि स्वामियों में मैत्री भाव हो तो भकूट दोष समाप्त हो जाएगा और उनका मिलान शास्त्र सम्मत शुभ होता है।

कुंडली मिलान में एक से चार नंबर तक के दोषों का कुछ विशेष परिहार नहीं है, मुख्य रुप से गण मिलान से परिहार आरंभ होता है-

गण दोष का परिहार | Cancellation of Gana Dosha

यदि किन्हीं जन्म कुंडलियों में गण दोष मौजूद है तब सबसे पहले कुछ बातों पर ध्यान दें :

चंद्र राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता या राशि स्वामियों के नवांशपति में भिन्नता होने पर भी गणदोष नहीं रहता है.

ग्रहमैत्री और वर-वधु के नक्षत्रों की नाड़ियों में भिन्नता होने पर भी गणदोष का परिहार होता है.

यदि वर-वधु की कुंडली में तारा, वश्य, योनि, ग्रहमैत्री तथा भकूट दोष नहीं हैं तब किसी तरह का दोष नहीं माना जाता है.

भकूट दोष का परिहार | Cancellation of Bhakut Dosha

भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं. जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वार्दश दोष होता है. इन तीनों ही दोषों का परिहार भिन्न - भिन्न प्रकार से हो जाता है.

षडाष्टक परिहार | Cancellation of Sashtak

यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है.

यदि वर-वधु की चंद्र राशि स्वामियों का षडाष्टक शत्रु वैर का है तब इसका परिहार करना चाहिए.

मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है इनका पूर्ण रुप से त्याग करना चाहिए.

यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है

नव पंचम का परिहार | Cancellation of Navpanchak

नव पंचम दोष का परिहार भी शास्त्रों में दिया गया है. जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 5/9 अक्ष पर स्थित होती है तब नव पंचम दोष माना जाता है. नव पंचम का परिहार निम्न से हो जाता है.

यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें स्थान पर पड़ रही हो और कन्या की राशि से लड़के की राशि नवम स्थान पार पड़ रही हो तब यह स्थिति नव-पंचम की शुभ मानी गई है.

मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए.

यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नव-पंचम का परिहार होता है.

द्वि-द्वार्दश योग का परिहार | Cancellation of Dwi-Dwardasha Dosha

लड़के की राशि से लड़की की राशि दूसरे स्थान पर हो तो लड़की धन की हानि करने वाली होती है लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है.

द्वि-द्वार्द्श योग में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है.

मतान्तर से सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वार्दश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है.

नाड़ी दोष का परिहार | Cancellation of Nadi Dosha

नाड़ी दोष का कई परिस्थितियों में परिहार हो जाता है. आइए विस्तार से जानें :-

वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है.

दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार होता है.

दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब परिहार होता है.

शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गणा दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है.

ज्योतिष चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृ्गशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है.

विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का सर्वाधिक महत्त्व को दिया गया है। 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सर्वाधिक 8 गुण निर्धारित हैं। ज्योतिष की दृष्टि में तीन नाडियां होती हैं - आदि, मध्य और अन्त्य। *इन नाडियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है।* वर-वधू की समान नाड़ी होने पर दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है।

शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि: "नाड़ी दोष केवल ब्रह्मण वर्ग में ही मान्य है।"
"समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है।" आयुर्वेद के सिद्धांतों में भी तीन नाड़ियाँ – वात (आदि ), पित्त (मध्य) तथा कफ (अन्त्य) होती हैं। शरीर में इन तीनों नाडियों के समन्वय के बिगड़ने से व्यक्ति रूग्ण हो सकता है।

भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं।

9-नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है।
जो इस प्रकार है।

आदि नाड़ी अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद ।
मध्य नाड़ी👉 भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद
अन्त्य नाड़ी कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती ।

नाड़ी के तीनों स्वरूपों आदि, मध्य और अन्त्य ..आदि नाड़ी ब्रह्मा विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करती हैं। यही नाड़ी मानव शरीर की संचरना की जीवन गति को आगे बढ़ाने का भी आधार है।

सूर्य नाड़ी, चंद्र नाड़ी और ब्रह्म नाड़ी" जिसे इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा के नाम से भी जानते हैं। कालपुरुष की कुंडली की संरचना बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों तथा योगो करणों आदि के द्वारा निर्मित इस "शरीर में नाड़ी का स्थान सहस्रार चक्र के मार्ग पर होता है।" यह विज्ञान के लिए अब भी "पहेली"-बना हुआ है कि नाड़ी दोष वालों का ब्लड  प्राय: ग्रुप एक ही होता है । और "ब्लड ग्रुप" एक होने से रोगों के "निदान, चिकित्सा,  उपचार" आदि में समस्या आती हैं।

इड़ा, पिंगला, और सुसुम्णा* हमारे मन मस्तिष्क और सोच का प्रतिनिधित्व करती है ।
यही सोच और वंशवृद्धि का द्योतक "नाड़ी" हमारे दांपत्य जीवन का आधार स्तंभ है। अत: नाड़ी दोष को आप गंभीरता से देखें। यदि एक नक्षत्र के एक ही चरण में वर कन्या का जन्म हुआ हो तो नाड़ी दोष का परिहार संभव नहीं है। और यदि परिहार है भी तो जन मानस के लिए असंभव है। ऐसा देवर्षि नारदने भी कहा है।

एक नाड़ी विवाहश्च गुणे:
                  सर्वें: समन्वित: l
वर्जनीभ: प्रयत्नेन
                  दंपत्योर्निधनं ll

अर्थात वर -कन्या की नाड़ी एक ही हो तो उस विवाह वर्जनीय है। भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से पति -पत्नी के स्वास्थ्य और जीवन के लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है।

पुत्री का विवाह करना हो या पुत्र का, विवाह की सोचते ही "कुण्‍डली मिलान की सोचते हैं जिससे सब कुछ ठीक रहे और विवाहोपरान्‍त सुखमय गृहस्‍थ जीवन व्‍यतीत हो. कुंडली मिलान के समय आठ कूट मिलाए जाते हैं, इन आठ कूटों के कुल अंक 36 होते हैं. इन में से एक ..कूट नाड़ी होता है जिसके सर्वाधिक अंक 8 होते हैं. लगभग 23% प्रतिशत इसी कूट के हिस्‍से में आते हैं, इसीलिए नाड़ी दोष प्रमुख है।

ऐसी लोक चर्चा है कि वर कन्या की नाड़ी एक हो तो पारि‍वारिक जीवन में अनेक बाधाएं आती हैं और संबंधों के टूटने की आशंका या भय मन में व्‍याप्‍त रहता है. कहते हैं कि यह दोष हो तो संतान प्राप्ति में विलंब या कष्‍ट होता है, पति-पत्नी में परस्‍पर ईर्ष्या रहती है और दोनों में परस्‍पर वैचारिक मतभेद रहता है.*
नब्‍बे प्रतिशत लोगों का एकनाड़ी होने पर ब्लड ग्रुप समान और आर एच फैक्‍टर अलग होता है यानि एक का पॉजिटिव तो दूसरे का ऋण होता है.  हो सकता है इसलिए भी संतान प्राप्ति में विलंब या कष्‍ट होता है।

चिकित्सा विज्ञान की आधुनिक शोधों में भी समान ब्लड ग्रुप वाले युवक युवतियों के संबंध को स्वास्थ्य की दृष्टि से अनपयुक्त पाया गया है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि लड़के का आरएच फैक्टर RH+ पॉजिटिव हो व लड़की का RH- आरएच फैक्टर निगेटिव हो तो विवाह उपरांत पैदा होने वाले बच्चों में अनेक विकृतियाँ सामने आती हैं, जिसके चलते वे मंदबुद्धि व अपंग तक पैदा हो सकते हैं। वहीं रिवर्स केस में इस प्रकार की समस्याएँ नहीं आतीं, इसलिए युवा अपना रक्तपरीक्षण अवश्य कराएँ, ताकि पता लग सके कि वर-कन्या का रक्त समूह क्या है।* चिकित्सा विज्ञान अपनी तरहसे इस दोष का परिहार करता है, लेकिन "ज्योतिष" ने इस समस्या से बचने और उत्पन्न होने पर नाड़ी दोष के उपाय निश्चित किए हैं । इन उपायों में जप-तप, दान पुण्य, व्रत, अनुष्ठान आदि साधनात्मक उपचारों को अपनाने पर जोर दिया गया है ।

शास्त्र वचन यह है कि-
*एक ही नाड़ी होने पर
"गुरु और शिष्य"*
"मंत्र और साधक"
"देवता और पूजक" में भी क्रमश: †ईर्ष्या, †अरिष्ट और †मृत्यु" जैसे कष्टों का भय रहता है l*

 देवर्षि नारद ने भी कहा है :-

वर-कन्या की नाड़ी एक ही हो तो वह विवाह वर्जनीय है. भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से तो पति-पत्नी के स्वास्थ्य और जीवनके लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है ।

ll वेदोक्त श्लोक ll
〰〰〰〰〰
अश्विनी रौद्र आदित्यो,
            अयर्मे हस्त ज्येष्ठयो l
निरिति वारूणी पूर्वा
              आदि  नाड़ी स्मृताः ll

भरणी सौम्य तिख्येभ्यो,
              भग चित्रा अनुराधयो l
आपो च वासवो धान्य
              मध्य नाड़ी स्मृताः ll

कृतिका रोहणी अश्लेषा,
              मघा स्वाती विशाखयो।
विश्वे श्रवण रेवत्यो,
             *अंत्य नाड़ी* स्मृताः॥

आदि  नाड़ी* के  अंतर्गत नक्षत्र
क्रम: 01, 06, 07, 12, 13, 18, 19, 24, 25 वें नक्षत्र आते हैं।
---+---+---+---
मध्य नाड़ी* के अंतर्गत नक्षत्र
क्रम : 02, 05, 08, 11, 14, 17, 20, 23, 26 नक्षत्र आते हैं।
---+---+---+---
अन्त्य नाड़ी* के अंतर्गत क्रम : 03, 04, 09, 10, 15, 16, 21, 22, 27 वें नक्षत्र आते हैं ।
---+---+---+---
 गण :-
〰〰〰
अश्विनी मृग रेवत्यो,
            हस्त: पुष्य पुनर्वसुः।
अनुराधा श्रुति स्वाती,
            कथ्यते *देवता-गण* ॥

त्रिसः पूर्वाश्चोत्तराश्च,
            तिसोऽप्या च रोहणी ।
भरणी च मनुष्याख्यो,
             गणश्च कथितो बुधे ॥

कृतिका च मघाऽश्लेषा,
            विशाखा शततारका ।
चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा,
            च मूलं रक्षोगणः स्मृतः॥

*देव गण- नक्षत्र :- 01, 05, 27, 13, 08, 07, 17, 22, 15*

*मनुष्य गण-नक्षत :- 11, 12,  20,  21, 25, 26, 06, 04.*

*राक्षस गण- नक्षत्र क्रम:- 03, 10, 09, 16, 24, 14, 18, 23, 19.*

*स्वगणे परमाप्रीतिर्मध्यमा देवमर्त्ययोः।
*मर्त्यराक्षसयोर्मृत्युः कलहो देव रक्षसोः॥

*"संगोत्रीय विवाह" को कराने के लिए कर्म कांडों में एक विधान है, जिसके चलते संगोत्रीय लड़के का दत्तक दान करके विवाह संभव हो सकता है ।

इस विधान में जो माँ-बाप लड़के को गोद लेते हैं। विवाह में उन्हीं का नाम आता है।

 वहीं ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष के अनुरूप यदि एक ही रक्त समूह वाले वर-कन्या का विवाह करा दिया जाता है तो उनकी होने वाली संतान विकलांग पैदा हो सकती है।*

अत: नाड़ी दोष का विचार ही आवश्यक है.*
एक नक्षत्र में जन्मे वर कन्या के मध्य नाड़ी दोष समाप्त हो जाता है लेकिन नक्षत्रों में चरण भेद आवश्यक है.
ऐसे अनेक सूत्र हैं जिनसे नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।

जैसे दोनों की राशि एक हो लेकिन नक्षत्र अलग-अलग हों.
वर-कन्या का नक्षत्र एक हो और चरण अलग-अलग हों.

उदाहरण:-
वर-ईश्वर (कृतिका द्वितीय),
वधू-उमा (कृतिका तृतीया)
दोनों की अंत्य नाड़ी है। परंतु कृतिका नक्षत्र के चरण भिन्नता के कारण शुभ है।

एक ही नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हों:– यह निम्न नक्षत्रों में होगा l*

आदि  नाड़ी
*वर*- आर्द्रा, (मिथुन),
*वधू*- पुनर्वसु, प्रथम, तृतीय चरण (मिथुन),
*वर* उत्तरा फाल्गुनी (कन्या)- *वधू*- हस्त (कन्या राशि).

*मध्य नाड़ी *वर*- शतभिषा (कुंभ)- *वधू*- पूर्वाभाद्रपद प्रथम, द्वितीय, तृतीय (कुंभ)

*अन्त्य नाड़ी: *वर*- कृतिका- प्रथम, तृतीय, चतुर्थ (वृष)-
*वधू*- रोहिणी (वृष)

*वर*- स्वाति (तुला)- *वधू*-विशाखा- प्रथम, द्वितीय, तृतीय (तुला)
*वर*- उत्तराषाढ़ा- द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ (मकर)- *वधू*- श्रवण (मकर) —-

*एक नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो*
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जैसे *वर अनिल*- कृतिका- प्रथम (मेष) तथा *वधू इमरती*-
कृतिका- द्वितीय (वृष राशि)। दोनों की अन्त्य नाड़ी है परंतु राशि भिन्नता के कारण शुभ पाद-वेध नहीं होना चाहिए.
वर-कन्‍या के नक्षत्र चरण "प्रथम और चतुर्थ" या
"द्वितीय और तृतीय" नहीं होने चाहिएं.

*उक्त परिहारों में यह ध्यान रखें कि वधू की जन्म राशि, नक्षत्र तथा नक्षत्र चरण, वर की राशि, नक्षत्र व चरण से पहले नहीं होने चाहिए।* "अन्यथा नाड़ी दोष परिहार होते हुए भी शुभ नहीं होगा ।"

*उदाहरण देखें :-*

1.वर- कृतिका- प्रथम (मेष), वधू- कृतिका द्वितीय (वृष राशि)-

2.शुभ वर- कृतिका- द्वितीय (वृष),
वधू-कृतिका- प्रथम (मेष राशि)- *अशुभ*

*वैसे तो वर कन्या के राशियों के* *स्वामी आपस में मित्र हो तो वर्ण दोष, वर्ग दोष, तारा दोष, योनि दोष, गण दोष भी  ...नष्ट हो जाता है.

*वर और कन्या की कुंडली में राशियों के स्वामी एक ही हो या मित्र हो* अथवा D-9 नवांश के स्वामी परस्पर मित्र हो या एक ही हो तो सभी "कूट-दोष" समाप्त हो जाते हैं.*

*नाड़ी दोष हो तो महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इससे दांपत्य जीवन में आ रहे सारे दोष समाप्त हो जाते हैं.*

नाड़ी दोष का उपचार:-

पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की (१=१) राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है.
दोनों की राशियां एक दूसरे से (४×१०)चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है.
तृतीय और एकादश राशि होने पर (३×११) गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है

ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो।

वर और कन्याकी राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु गौर करने की बात यह है कि
राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है |
अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है

Mangalik dosh/Mangal dosh/Muja dosh
मांगलिक दोष 


मांगलिक दोष को कुज दोष या मंगल दोष भी कहा गया है।



हिन्दू धर्म में विवाह के संदर्भ में यह दोष बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। सुखद विवाह के लिए अमंगलकारी कहे जाने वाले मंगल दोष के विषय में ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति कि कुंडली में मंगल दोष हो उसे मंगली जीवनसाथी की ही तलाश करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि युवक और युवती दोनों की  कुंडली में मंगल दोष की तीव्रता समान है तो ही दोनों को एक दूसरे से विवाह करना चाहिए। अन्यथा इस दोष की वजह से पति-पत्नी में से किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।
किसी भी स्‍त्री या पुरुष के मांगलिक होने का मतलब यह है कि उसकी कुण्‍डली में मंगल ग्रह अपनी प्रभावी स्थिति में है। विवाह के लिए कुंडली मिलान करते समय मंगल को 1, 4, 7वें, 8वें और 12वें भाव पर देखा जाता है। यदि कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो जातक को मंगल दोष लगता है। जबकि सामान्य‍ तौर पर इन सब में से केवल 8वां और 12वां भाव ही खराब माना जाता है।

पहला स्थान अर्थात लग्‍न का मंगल किसी व्‍यक्ति के व्यक्तित्व को और ज्यादा तेज बना देता है, चौथे स्थान का मंगल किसी जातक की पारिवारिक जीवन को मुश्किलों से भर देता है। मंगल यदि 7वें स्‍थान पर हो तो जातक को अपने साथी या सहयोगी के साथ व्यव्हार में कठोर बना देता है। 8वें और 12वें स्‍थान पर यदि मंगल है तो यह शारीरिक क्षमताओं और आयु पर प्रभाव डालता है। यदि इन स्‍थानों पर बैठा मंगल अच्‍छे प्रभाव में हो तो जातक के व्यवहार में मंगल ग्रह के अच्‍छे गुण आएंगे और यदि यह खराब प्रभाव में हैं तो जातक पर खराब गुण आएंगे।

मांगलिक दोष के प्रकार

उच्च मंगल दोष – यदि मंगल ग्रह किसी जातक के जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली में 1, 2, 4, 7, 8वें या 12वें स्थान पर होता है, तो इसे “उच्च मांगलिक दोष” माना जाएगा। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
निम्न मंगल दोष – यदि मंगल ग्रह किसी जातक की जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली में से किसी एक में भी 1, 2, 4, 7, 8वें या 12वें स्थान पर होता है, तो इसे “निम्न मांगलिक दोष” या "आंशिक मांगलिक दोष” माना जाएगा। कुछ ज्योतिषियों के अनुसार 28 वर्ष की आयु होने के बाद यह दोष अपने आप आपकी कुंडली से समाप्त हो जाता है।


मांगलिक व्यक्ति का स्वभाव

मांगलिक व्‍यक्ति के स्वभाव में आपको कुछ विशेषताएं देखने को मिल सकती हैं, जैसे इस तरह के व्यक्ति दिखने में कठोर निर्णय लेने वाले और बोली में भी कठोर होते हैं। ऐसे लोग लगातार काम करते रहने वाले होते हैं, साथ ही यह किसी भी काम को योजनाबद्ध तरीके से करना पसंद करते हैं। मांगलिक लोग अपने विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होते हैं। ये लोग कठोर अनुशासन बनाते हैं और उसका पालन भी करते हैं। मांगलिक व्यक्ति एक बार जिस काम में जुट जाये उसे अंत तक पूरा कर के ही दम लेता है। ये न तो लड़ाई से घबराते हैं और न ही नए अनजाने कामों को हाथ में लेने से। अपनी इन्‍हीं कुछ विशेषताओं की वजह से गैर मांगलिक व्‍यक्ति ज्यादा समय तक मांगलिक व्यक्ति के साथ नहीं रह पाता है।

मंगल दोष से जुड़े मिथक

मंगल दोष के विषय में ज्यादा जानकारी न होने के कारण कई लोग अनेकों तरह की बातें करते हैं, जिसकी वजह से समाज में मंगल दोष से जुड़े कुछ मिथक भी हैं।

यदि मांगलिक और अमांगलिक की शादी कराई जाती है तो उनका तलाक निश्चित है। यह एक ऐसा मिथक है जो अक्सर सुनने में आता है, जबकि हम सभी जानते हैं कि किसी भी शादी को चलाने की ज़िम्मेदारी लड़का और लड़की की समझदारी और उनके के विचारों के मेल-जोल पर निर्भर करती है।

मंगल दोष से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि यदि आप एक मांगलिक हैं, तो आपको पहले किसी पेड़ से विवाह करनी होगी। मंगल दोष से छुटकारा पाने के अनेकों उपाय हैं और वह उपाय आपकी कुंडली की सही गणना करने के बाद ही बताये जा सकते हैं इसीलिए यह जरूरी नहीं कि सभी मांगलिक युवक/युवतियों को पेड़ से ही शादी करनी पड़े।

कुछ लोग यह समझते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मंगलवार को पैदा हुआ है तो वह पक्का मांगलिक हैं जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। मंगल दोष का पता कुंडली देखने के बाद ही लगाया जा सकता है। इसका किसी भी दिन पैदा होने से कोई संबंध नहीं होता है।

मंगल दोष का निवारण


यदि किसी जातक की कुंडली में मांगलिक दोष के लक्षण मिलते हैं तो उन्हें किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह करके ही मंगल दोष के निवारण की पूजा करनी चाहिए। अंगारेश्वर महादेव, उज्जैन (मध्यप्रदेश) में मंगल दोष की पूजा का विशेष महत्व है। यदि यह पूजा अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की जाये तो यह जातक पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है। मंगल दोष निवारण के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे नियम बताए गए हैं जिससे शादीशुदा जीवन में मांगलिक दोष नहीं लगता है।

वट सावित्री और मंगला गौरी का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है। अगर अनजाने में किसी मांगलिक कन्या का विवाह किसी ऐसे व्यक्ति हो जाता है जो दोष रहित हो तो दोष निवारण के लिए इन दोनों व्रत का अनुष्ठान करना बेहद लाभदायी होता है।

यदि किसी युवती की कुंडली में मंगल दोष पाया जाता है तो अगर वह विवाह से पहले गुप्त रूप से पीपल या घट के वृक्ष से विवाह कर लेती है और उसके बाद मंगल दोष रहित वर से शादी करती है तो किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है।

प्राण प्रतिष्ठित किये हुए विष्णु प्रतिमा से विवाह के बाद अगर कन्या किसी से विवाह करती है, तब भी इस दोष का परिहार मान्य होता है।

ऐसा कहा जाता है कि मंगलवार के दिन व्रत रखने और हनुमान जी की सिन्दूर से पूजा करने और उनके सामने सच्चे मन से हनुमान चालीसा का पाठ करने से मांगलिक दोष शांत होता है।

कार्तिकेय जी की पूजा करने से भी इस दोष से छुटकारा मिलता है।
लाल रंग के वस्त्र में मसूर दाल, रक्त पुष्प, रक्त चंदन, मिष्टान और द्रव्य को अच्छी तरह लपेट लें और उसे नदी में प्रवाहित करने दे। ऐसा करने से मांगलिक दोष के लक्षण खत्म हो जाते हैं।गर्म और ताजा भोजन मंगल मजबूत करता है साथ ही इससे आपकी मनोदशा और पाचन क्रिया भी सही रहती है, इसीलिए अपने खान-पान की आदतों में बदलाव करें।मंगल दोष से निबटने का सबसे आसान उपाय है, हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना करना। यह मंगल दोष को खत्म करने में सहायक होता है।कई लोग मंगल दोष के निवारण के लिए मूँगा भी धारण करते हैं। रत्न जातक की कुंडली में मंगल के प्रभाव के अनुसार पहना जाता है
किसी भी युवक या युवती की कुंडली में मंगल दोष का पता लगने पर घरवाले अनगिनत पंडितों के चक्कर में पड़ न जाने कितने उपाय करते हैं जिससे वे अपने पैसे और समय दोनों का नुक्सान करते हैं। यहाँ-वहां भटकने की जगह ज़रूरत होती है तो किसी अनुभवी ज्योतिष से परामर्श लेकर उपाय करने की। किसी मांगलिक व्यक्ति को एक खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने के लिए मंगल दोष की शांति करना बेहद जरूरी होता है।

कुण्डली में दोष विचार-

विवाहके लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए.

कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग , व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के यह शुभ नहीं होता है.

इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग, व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग ..रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है.पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है.

हालाँकि कई स्थितियों में कुण्डली में यह दोष प्रभावशाली नहीं होता है अत: जन्म कुण्डली के अलावा नवमांश और चन्द्र कुण्डली से भी इसका विचार करके विवाह किया जा सकता है।


Kundali milan कुंडली मिलान में दोषों का परिहार (काट) गण दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष, मंगल दोष Manglik dosha cancellation, Nadi dosha cancellation, Bhakoot dosha cancellation

कुंडली-मिलान में दोषों का परिहार (काट) कैसे होती है, मांगलिक दोष, गण दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष, मंगल दोष आदि ज्योतिष में महादोष कहे गए हैं, कुंडली मिलान को अधिकतर व्यक्ति एक निगाह से देखते हैं. उनकी नजर में जितने अधिक गुण मिलते हैं उतने अच्छा होता है जबकि यह पैमाना बिलकुल गलत है, कई बार 36 में से 36 गुण मिलने पर भी वैवाहिक सुख का अभाव रहता है क्योंकि गुण मिलान तो हो गया लेकिन जन्म कुंडली का आंकलन नहीं हुआ, सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि व्यक्ति की अपनी कुंडली में वैवाहिक सुख कितना है? तब उसे आगे बढ़ना चाहिए |
कम्पयूटर का कार्य है सिर्फ गणित(Calculations) करना, जन्मकुंडली देखने का कार्य ज्योतिष के ज्ञाता का है  कम्पयूटर मानव कार्यों का एक सर्वोतम सहायक जरूर है, परंतु मानव नहीं इसलिए कम्पयूटर का उपयोग करें तो सिर्फ जन्मकुंडली निर्माण हेतु न कि कम्पयूटर द्वारा दर्शाई गई गुण मिलान संख्या को आधार मानकर कोई अंतिम निर्णय लिया जाए कुंडली मिलान और भकूट दोष : कारण और परिहार Kundali milan aur bhakut dosh parihar

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आजकल  आँख मूंदकर यही देखा है कि गुण कितने मिल रहे हैं और जातक मांगलिक है या नहीं बस इसके बाद सब कुछ तय हो जाता है यदि हम सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो अधिकतर कुंडलियों में गुण मिलान दोषों या मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है अर्थात अधिकतर दोष कैंसिल हो जाते हैं लेकिन इतना समय कौन बर्बाद करें, मैने अपनी ज्योतिष की प्रैक्टिस के दौरान कुंडली मिलान के ऐसे बहुत से केस देखे हैं जिनमें सिर्फ गुण मिलान की विधि से ही 25 से अधिक गुण मिलने के कारण वर-वधू की शादी करवा दी गई तथा कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके परिणाम स्वरुप इनमें से बहुत से केसों में शादी के बाद पति पत्नि में बहुत तनाव रहा तथा कुछ केसों में तो तलाक और मुकद्दमें भी देखने को मिले। अगर 28-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमें तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में न तो पूर्ण है तथा न ही सक्षम। 

कुंडली मिलान में एक से चार नंबर तक के दोषों का कुछ विशेष परिहार नहीं है, मुख्य रुप से गण मिलान से परिहार आरंभ होता है-

गण दोष का परिहार | Cancellation of Gana Dosha

यदि किन्हीं जन्म कुंडलियों में गण दोष मौजूद है तब सबसे पहले कुछ बातों पर ध्यान दें :

चंद्र राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता या राशि स्वामियों के नवांशपति में भिन्नता होने पर भी गणदोष नहीं रहता है.

ग्रहमैत्री और वर-वधु के नक्षत्रों की नाड़ियों में भिन्नता होने पर भी गणदोष का परिहार होता है.

यदि वर-वधु की कुंडली में तारा, वश्य, योनि, ग्रहमैत्री तथा भकूट दोष नहीं हैं तब किसी तरह का दोष नहीं माना जाता है.

भकूट दोष | Bhakoot Dosh:-
नाड़ी दोष की भांति ही भकूट दोष को भी गुण मिलान से बनने वाले दोषों में से बहुत गंभीर दोष माना जाता है तथा अधिकतर ज्योतिषी कुंडली मिलान में भकूट दोष के बनने पर विवाह न करने का परामर्श देते हैं। 

कैसे बनता है भकूट दोष  Bhakoo Dosh 
किसी भी जन्म कुंडली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है वह राशि कुंडली का भकूट कहलाता है। जन्मकुंडली में भकूट दोष ( Bhakoot Dosh ) का निर्णय वर और वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है उन दोनों राशियों अथवा चन्द्रमा का क्या सम्बन्ध है उसके ऊपर निर्भर करता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर एक दूसरे 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो “भकूट” मिलान में  0 अंक दिया जाता हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है। 

मान लिया जाय की आप कन्या राशि  के जातक है अर्थात  आपकी कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तथा आपकी पत्नी की कुंडली में चन्द्रमा कुम्भ राशि में स्थित हैं तो इसे षडाष्टक वा 6 /8 भकूट दोष ( Bhakoot Dosh ) माना जाता है। ऐसा इसलिये की कन्या राशि से गणना करने पर कुम्भ राशि छठे तथा कुम्भ राशि से गणना करने पर कन्या राशि ( Virgo Sign) आठवें स्थान पर आती है।

इसी प्रकार यदि आपकी पत्नी की जन्म कुंडली में चन्द्रमा वृष  राशि में स्थित हैं तो इसे नवम-पंचम ( ९/५) भकूट दोष माना जाएगा  क्योंकि आपकी तो राशि कन्या है और उस राशि से गिनती करने पर वृष राशि नवम तथा वृष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि पांचवे स्थान पर आती है।
इसी प्रकार आपकी पत्नी की कुंडली में यदि चन्द्रमा सिंह  राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश-दो ( 12-2) भकूट दोष माना जाता है क्योंकि कन्या राशि से गिनती करने पर सिंह राशि बारहवें तथा सिंह राशि से गिनती करने पर कन्या राशि दूसरे स्थान पर आती है।

भकूट दोष का दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव 
 Effect of Bhakoot Dosh on Married Life
जन्मकुंडली मिलान में तीन प्रकार से भकूट दोष बनता है जिसकी चर्चा ऊपर की गई है। मुहूर्तचिन्तामणि में इसके दाम्पत्य जीवन में आने वाले प्रभाव के सम्बन्ध में कहा गया है।
मृत्युषडष्टके ज्ञेयोऽपत्यहानिर्नवात्मजे।
द्विद्र्वादशे निर्धनत्वं द्वयोरन्यत्र सौख्यकृत्।।

अर्थात षड़-अष्टक ६/८ भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है या आपस में लड़ाई झगड़ा होते रहता है।  नवम-पंचम ( ९/५) भकूट दोष होने से संतान की हानि होती है या संतान के जन्म में मुश्किल आती  है या फिर संतान होती ही नहीं। द्वादश-दो (  1२/२) भकूट दोष होने से वर-वधू को निर्धनता का सामना करना पड़ता या दोनों बहुत ही खर्चीले होते है।

भकूट दोष का निदान | Remedies of Bhakoor Dosh 
अधोलिखित स्थितियों में भकूट दोष का प्रभाव या तो निरस्त हो जाता है अथवा उसका प्रभाव कम हो जाता है ऐसा माना जाता है।
वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों में होने पर षडाष्टक की स्थिति में भी भकूट दोष नहीं माना जाता है क्योकि क्योंकि मेष-वृश्चिक राशियों का स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला राशियों का स्वामी शुक्र हैं। अतः एक ही राशि होने के कारण दोष समाप्त माना जाता है।

इसी प्रकार वर वधु की कुंडली में चन्द्रमा मकर-कुंभ राशियों में होकर भकूट दोष का निर्माण कर रहा है तो एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं माना जाता है क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।

यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष होता है परन्तु उसका प्रभाव कम होता है क्योंकि इन दोनों ही राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपस में मित्र हैं।

यदि दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष नहीं है तो भी भकूट दोष होने के बाद भी इसका प्रभाव कम हो जाता है।



यदि कुंडली मिलान में ग्रहमैत्री, गणदोष तथा नाड़ी दोष नहीं है और भकूट दोष है तो भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है।

भकूट दोष का परिहार | Cancellation of Bhakut Dosha

भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं. जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वार्दश दोष होता है. इन तीनों ही दोषों का परिहार भिन्न - भिन्न प्रकार से हो जाता है.

षडाष्टक परिहार | Cancellation of Sashtak

यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है.

यदि वर-वधु की चंद्र राशि स्वामियों का षडाष्टक शत्रु वैर का है तब इसका परिहार करना चाहिए.

मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है इनका पूर्ण रुप से त्याग करना चाहिए.

यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है

नव पंचम का परिहार | Cancellation of Navpanchak

नव पंचम दोष का परिहार भी शास्त्रों में दिया गया है. जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 5/9 अक्ष पर स्थित होती है तब नव पंचम दोष माना जाता है. नव पंचम का परिहार निम्न से हो जाता है.

यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें स्थान पर पड़ रही हो और कन्या की राशि से लड़के की राशि नवम स्थान पार पड़ रही हो तब यह स्थिति नव-पंचम की शुभ मानी गई है.

मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए.

यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नव-पंचम का परिहार होता है.

द्वि-द्वार्दश योग का परिहार | Cancellation of Dwi-Dwardasha Dosha

लड़के की राशि से लड़की की राशि दूसरे स्थान पर हो तो लड़की धन की हानि करने वाली होती है लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है.

द्वि-द्वार्द्श योग में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है.

मतान्तर से सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वार्दश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है.

नाड़ी दोष का परिहार | Cancellation of Nadi Dosha

नाड़ी दोष का कई परिस्थितियों में परिहार हो जाता है. आइए विस्तार से जानें :-

वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है.

दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार होता है.

दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब परिहार होता है.

शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गणा दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है.

ज्योतिष चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृ्गशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है.

विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का सर्वाधिक महत्त्व को दिया गया है। 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सर्वाधिक 8 गुण निर्धारित हैं। ज्योतिष की दृष्टि में तीन नाडियां होती हैं - आदि, मध्य और अन्त्य। *इन नाडियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है।* वर-वधू की समान नाड़ी होने पर दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है।

शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि: "नाड़ी दोष केवल ब्रह्मण वर्ग में ही मान्य है।"
"समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है।" आयुर्वेद के सिद्धांतों में भी तीन नाड़ियाँ – वात (आदि ), पित्त (मध्य) तथा कफ (अन्त्य) होती हैं। शरीर में इन तीनों नाडियों के समन्वय के बिगड़ने से व्यक्ति रूग्ण हो सकता है।

भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं।

9-नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है।
जो इस प्रकार है।

आदि नाड़ी अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद ।
मध्य नाड़ी👉 भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद
अन्त्य नाड़ी कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती ।

नाड़ी के तीनों स्वरूपों आदि, मध्य और अन्त्य ..आदि नाड़ी ब्रह्मा विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करती हैं। यही नाड़ी मानव शरीर की संचरना की जीवन गति को आगे बढ़ाने का भी आधार है।

सूर्य नाड़ी, चंद्र नाड़ी और ब्रह्म नाड़ी" जिसे इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा के नाम से भी जानते हैं। कालपुरुष की कुंडली की संरचना बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों तथा योगो करणों आदि के द्वारा निर्मित इस "शरीर में नाड़ी का स्थान सहस्रार चक्र के मार्ग पर होता है।" यह विज्ञान के लिए अब भी "पहेली"-बना हुआ है कि नाड़ी दोष वालों का ब्लड  प्राय: ग्रुप एक ही होता है । और "ब्लड ग्रुप" एक होने से रोगों के "निदान, चिकित्सा,  उपचार" आदि में समस्या आती हैं।

इड़ा, पिंगला, और सुसुम्णा* हमारे मन मस्तिष्क और सोच का प्रतिनिधित्व करती है ।
यही सोच और वंशवृद्धि का द्योतक "नाड़ी" हमारे दांपत्य जीवन का आधार स्तंभ है। अत: नाड़ी दोष को आप गंभीरता से देखें। यदि एक नक्षत्र के एक ही चरण में वर कन्या का जन्म हुआ हो तो नाड़ी दोष का परिहार संभव नहीं है। और यदि परिहार है भी तो जन मानस के लिए असंभव है। ऐसा देवर्षि नारदने भी कहा है।

एक नाड़ी विवाहश्च गुणे:
                  सर्वें: समन्वित: l
वर्जनीभ: प्रयत्नेन
                  दंपत्योर्निधनं ll

अर्थात वर -कन्या की नाड़ी एक ही हो तो उस विवाह वर्जनीय है। भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से पति -पत्नी के स्वास्थ्य और जीवन के लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है।

पुत्री का विवाह करना हो या पुत्र का, विवाह की सोचते ही "कुण्‍डली मिलान की सोचते हैं जिससे सब कुछ ठीक रहे और विवाहोपरान्‍त सुखमय गृहस्‍थ जीवन व्‍यतीत हो. कुंडली मिलान के समय आठ कूट मिलाए जाते हैं, इन आठ कूटों के कुल अंक 36 होते हैं. इन में से एक ..कूट नाड़ी होता है जिसके सर्वाधिक अंक 8 होते हैं. लगभग 23% प्रतिशत इसी कूट के हिस्‍से में आते हैं, इसीलिए नाड़ी दोष प्रमुख है।

ऐसी लोक चर्चा है कि वर कन्या की नाड़ी एक हो तो पारि‍वारिक जीवन में अनेक बाधाएं आती हैं और संबंधों के टूटने की आशंका या भय मन में व्‍याप्‍त रहता है. कहते हैं कि यह दोष हो तो संतान प्राप्ति में विलंब या कष्‍ट होता है, पति-पत्नी में परस्‍पर ईर्ष्या रहती है और दोनों में परस्‍पर वैचारिक मतभेद रहता है.*
नब्‍बे प्रतिशत लोगों का एकनाड़ी होने पर ब्लड ग्रुप समान और आर एच फैक्‍टर अलग होता है यानि एक का पॉजिटिव तो दूसरे का ऋण होता है.  हो सकता है इसलिए भी संतान प्राप्ति में विलंब या कष्‍ट होता है।

चिकित्सा विज्ञान की आधुनिक शोधों में भी समान ब्लड ग्रुप वाले युवक युवतियों के संबंध को स्वास्थ्य की दृष्टि से अनपयुक्त पाया गया है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि लड़के का आरएच फैक्टर RH+ पॉजिटिव हो व लड़की का RH- आरएच फैक्टर निगेटिव हो तो विवाह उपरांत पैदा होने वाले बच्चों में अनेक विकृतियाँ सामने आती हैं, जिसके चलते वे मंदबुद्धि व अपंग तक पैदा हो सकते हैं। वहीं रिवर्स केस में इस प्रकार की समस्याएँ नहीं आतीं, इसलिए युवा अपना रक्तपरीक्षण अवश्य कराएँ, ताकि पता लग सके कि वर-कन्या का रक्त समूह क्या है।* चिकित्सा विज्ञान अपनी तरहसे इस दोष का परिहार करता है, लेकिन "ज्योतिष" ने इस समस्या से बचने और उत्पन्न होने पर नाड़ी दोष के उपाय निश्चित किए हैं । इन उपायों में जप-तप, दान पुण्य, व्रत, अनुष्ठान आदि साधनात्मक उपचारों को अपनाने पर जोर दिया गया है ।

शास्त्र वचन यह है कि-
*एक ही नाड़ी होने पर
"गुरु और शिष्य"*
"मंत्र और साधक"
"देवता और पूजक" में भी क्रमश: †ईर्ष्या, †अरिष्ट और †मृत्यु" जैसे कष्टों का भय रहता है l*

 देवर्षि नारद ने भी कहा है :-

वर-कन्या की नाड़ी एक ही हो तो वह विवाह वर्जनीय है. भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से तो पति-पत्नी के स्वास्थ्य और जीवनके लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है ।

ll वेदोक्त श्लोक ll
〰〰〰〰〰
अश्विनी रौद्र आदित्यो,
            अयर्मे हस्त ज्येष्ठयो l
निरिति वारूणी पूर्वा
              आदि  नाड़ी स्मृताः ll

भरणी सौम्य तिख्येभ्यो,
              भग चित्रा अनुराधयो l
आपो च वासवो धान्य
              मध्य नाड़ी स्मृताः ll

कृतिका रोहणी अश्लेषा,
              मघा स्वाती विशाखयो।
विश्वे श्रवण रेवत्यो,
             *अंत्य नाड़ी* स्मृताः॥

आदि  नाड़ी* के  अंतर्गत नक्षत्र
क्रम: 01, 06, 07, 12, 13, 18, 19, 24, 25 वें नक्षत्र आते हैं।
---+---+---+---
मध्य नाड़ी* के अंतर्गत नक्षत्र
क्रम : 02, 05, 08, 11, 14, 17, 20, 23, 26 नक्षत्र आते हैं।
---+---+---+---
अन्त्य नाड़ी* के अंतर्गत क्रम : 03, 04, 09, 10, 15, 16, 21, 22, 27 वें नक्षत्र आते हैं ।
---+---+---+---
 गण :-
〰〰〰
अश्विनी मृग रेवत्यो,
            हस्त: पुष्य पुनर्वसुः।
अनुराधा श्रुति स्वाती,
            कथ्यते *देवता-गण* ॥

त्रिसः पूर्वाश्चोत्तराश्च,
            तिसोऽप्या च रोहणी ।
भरणी च मनुष्याख्यो,
             गणश्च कथितो बुधे ॥

कृतिका च मघाऽश्लेषा,
            विशाखा शततारका ।
चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा,
            च मूलं रक्षोगणः स्मृतः॥

*देव गण- नक्षत्र :- 01, 05, 27, 13, 08, 07, 17, 22, 15*

*मनुष्य गण-नक्षत :- 11, 12,  20,  21, 25, 26, 06, 04.*

*राक्षस गण- नक्षत्र क्रम:- 03, 10, 09, 16, 24, 14, 18, 23, 19.*

*स्वगणे परमाप्रीतिर्मध्यमा देवमर्त्ययोः।
*मर्त्यराक्षसयोर्मृत्युः कलहो देव रक्षसोः॥

*"संगोत्रीय विवाह" को कराने के लिए कर्म कांडों में एक विधान है, जिसके चलते संगोत्रीय लड़के का दत्तक दान करके विवाह संभव हो सकता है ।

इस विधान में जो माँ-बाप लड़के को गोद लेते हैं। विवाह में उन्हीं का नाम आता है।

 वहीं ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष के अनुरूप यदि एक ही रक्त समूह वाले वर-कन्या का विवाह करा दिया जाता है तो उनकी होने वाली संतान विकलांग पैदा हो सकती है।*

अत: नाड़ी दोष का विचार ही आवश्यक है.*
एक नक्षत्र में जन्मे वर कन्या के मध्य नाड़ी दोष समाप्त हो जाता है लेकिन नक्षत्रों में चरण भेद आवश्यक है.
ऐसे अनेक सूत्र हैं जिनसे नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।

जैसे दोनों की राशि एक हो लेकिन नक्षत्र अलग-अलग हों.
वर-कन्या का नक्षत्र एक हो और चरण अलग-अलग हों.

उदाहरण:-
वर-ईश्वर (कृतिका द्वितीय),
वधू-उमा (कृतिका तृतीया)
दोनों की अंत्य नाड़ी है। परंतु कृतिका नक्षत्र के चरण भिन्नता के कारण शुभ है।

एक ही नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हों:– यह निम्न नक्षत्रों में होगा l*

आदि  नाड़ी
*वर*- आर्द्रा, (मिथुन),
*वधू*- पुनर्वसु, प्रथम, तृतीय चरण (मिथुन),
*वर* उत्तरा फाल्गुनी (कन्या)- *वधू*- हस्त (कन्या राशि).

*मध्य नाड़ी *वर*- शतभिषा (कुंभ)- *वधू*- पूर्वाभाद्रपद प्रथम, द्वितीय, तृतीय (कुंभ)

*अन्त्य नाड़ी: *वर*- कृतिका- प्रथम, तृतीय, चतुर्थ (वृष)-
*वधू*- रोहिणी (वृष)

*वर*- स्वाति (तुला)- *वधू*-विशाखा- प्रथम, द्वितीय, तृतीय (तुला)
*वर*- उत्तराषाढ़ा- द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ (मकर)- *वधू*- श्रवण (मकर) —-

*एक नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो*
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जैसे *वर अनिल*- कृतिका- प्रथम (मेष) तथा *वधू इमरती*-
कृतिका- द्वितीय (वृष राशि)। दोनों की अन्त्य नाड़ी है परंतु राशि भिन्नता के कारण शुभ पाद-वेध नहीं होना चाहिए.
वर-कन्‍या के नक्षत्र चरण "प्रथम और चतुर्थ" या
"द्वितीय और तृतीय" नहीं होने चाहिएं.

*उक्त परिहारों में यह ध्यान रखें कि वधू की जन्म राशि, नक्षत्र तथा नक्षत्र चरण, वर की राशि, नक्षत्र व चरण से पहले नहीं होने चाहिए।* "अन्यथा नाड़ी दोष परिहार होते हुए भी शुभ नहीं होगा ।"

*उदाहरण देखें :-*

1.वर- कृतिका- प्रथम (मेष), वधू- कृतिका द्वितीय (वृष राशि)-

2.शुभ वर- कृतिका- द्वितीय (वृष),
वधू-कृतिका- प्रथम (मेष राशि)- *अशुभ*

*वैसे तो वर कन्या के राशियों के* *स्वामी आपस में मित्र हो तो वर्ण दोष, वर्ग दोष, तारा दोष, योनि दोष, गण दोष भी  ...नष्ट हो जाता है.

*वर और कन्या की कुंडली में राशियों के स्वामी एक ही हो या मित्र हो* अथवा D-9 नवांश के स्वामी परस्पर मित्र हो या एक ही हो तो सभी "कूट-दोष" समाप्त हो जाते हैं.*

*नाड़ी दोष हो तो महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इससे दांपत्य जीवन में आ रहे सारे दोष समाप्त हो जाते हैं.*

नाड़ी दोष का उपचार:-

पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की (१=१) राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है.
दोनों की राशियां एक दूसरे से (४×१०)चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है.
तृतीय और एकादश राशि होने पर (३×११) गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है

ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो।

वर और कन्याकी राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु गौर करने की बात यह है कि
राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है |
अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है

Mangalik dosh/Mangal dosh/Muja dosh
मांगलिक दोष 


मांगलिक दोष को कुज दोष या मंगल दोष भी कहा गया है।

हिन्दू धर्म में विवाह के संदर्भ में यह दोष बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। सुखद विवाह के लिए अमंगलकारी कहे जाने वाले मंगल दोष के विषय में ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति कि कुंडली में मंगल दोष हो उसे मंगली जीवनसाथी की ही तलाश करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि युवक और युवती दोनों की  कुंडली में मंगल दोष की तीव्रता समान है तो ही दोनों को एक दूसरे से विवाह करना चाहिए। अन्यथा इस दोष की वजह से पति-पत्नी में से किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।
किसी भी स्‍त्री या पुरुष के मांगलिक होने का मतलब यह है कि उसकी कुण्‍डली में मंगल ग्रह अपनी प्रभावी स्थिति में है। विवाह के लिए कुंडली मिलान करते समय मंगल को 1, 4, 7वें, 8वें और 12वें भाव पर देखा जाता है। यदि कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो जातक को मंगल दोष लगता है। जबकि सामान्य‍ तौर पर इन सब में से केवल 8वां और 12वां भाव ही खराब माना जाता है।

पहला स्थान अर्थात लग्‍न का मंगल किसी व्‍यक्ति के व्यक्तित्व को और ज्यादा तेज बना देता है, चौथे स्थान का मंगल किसी जातक की पारिवारिक जीवन को मुश्किलों से भर देता है। मंगल यदि 7वें स्‍थान पर हो तो जातक को अपने साथी या सहयोगी के साथ व्यव्हार में कठोर बना देता है। 8वें और 12वें स्‍थान पर यदि मंगल है तो यह शारीरिक क्षमताओं और आयु पर प्रभाव डालता है। यदि इन स्‍थानों पर बैठा मंगल अच्‍छे प्रभाव में हो तो जातक के व्यवहार में मंगल ग्रह के अच्‍छे गुण आएंगे और यदि यह खराब प्रभाव में हैं तो जातक पर खराब गुण आएंगे।

मांगलिक दोष के प्रकार

उच्च मंगल दोष – यदि मंगल ग्रह किसी जातक के जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली में 1, 2, 4, 7, 8वें या 12वें स्थान पर होता है, तो इसे “उच्च मांगलिक दोष” माना जाएगा। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
निम्न मंगल दोष – यदि मंगल ग्रह किसी जातक की जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली में से किसी एक में भी 1, 2, 4, 7, 8वें या 12वें स्थान पर होता है, तो इसे “निम्न मांगलिक दोष” या "आंशिक मांगलिक दोष” माना जाएगा। कुछ ज्योतिषियों के अनुसार 28 वर्ष की आयु होने के बाद यह दोष अपने आप आपकी कुंडली से समाप्त हो जाता है।


मांगलिक व्यक्ति का स्वभाव

मांगलिक व्‍यक्ति के स्वभाव में आपको कुछ विशेषताएं देखने को मिल सकती हैं, जैसे इस तरह के व्यक्ति दिखने में कठोर निर्णय लेने वाले और बोली में भी कठोर होते हैं। ऐसे लोग लगातार काम करते रहने वाले होते हैं, साथ ही यह किसी भी काम को योजनाबद्ध तरीके से करना पसंद करते हैं। मांगलिक लोग अपने विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होते हैं। ये लोग कठोर अनुशासन बनाते हैं और उसका पालन भी करते हैं। मांगलिक व्यक्ति एक बार जिस काम में जुट जाये उसे अंत तक पूरा कर के ही दम लेता है। ये न तो लड़ाई से घबराते हैं और न ही नए अनजाने कामों को हाथ में लेने से। अपनी इन्‍हीं कुछ विशेषताओं की वजह से गैर मांगलिक व्‍यक्ति ज्यादा समय तक मांगलिक व्यक्ति के साथ नहीं रह पाता है।

मंगल दोष से जुड़े मिथक

मंगल दोष के विषय में ज्यादा जानकारी न होने के कारण कई लोग अनेकों तरह की बातें करते हैं, जिसकी वजह से समाज में मंगल दोष से जुड़े कुछ मिथक भी हैं।

यदि मांगलिक और अमांगलिक की शादी कराई जाती है तो उनका तलाक निश्चित है। यह एक ऐसा मिथक है जो अक्सर सुनने में आता है, जबकि हम सभी जानते हैं कि किसी भी शादी को चलाने की ज़िम्मेदारी लड़का और लड़की की समझदारी और उनके के विचारों के मेल-जोल पर निर्भर करती है।

मंगल दोष से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि यदि आप एक मांगलिक हैं, तो आपको पहले किसी पेड़ से विवाह करनी होगी। मंगल दोष से छुटकारा पाने के अनेकों उपाय हैं और वह उपाय आपकी कुंडली की सही गणना करने के बाद ही बताये जा सकते हैं इसीलिए यह जरूरी नहीं कि सभी मांगलिक युवक/युवतियों को पेड़ से ही शादी करनी पड़े।

कुछ लोग यह समझते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मंगलवार को पैदा हुआ है तो वह पक्का मांगलिक हैं जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। मंगल दोष का पता कुंडली देखने के बाद ही लगाया जा सकता है। इसका किसी भी दिन पैदा होने से कोई संबंध नहीं होता है।

मंगल दोष का निवारण


यदि किसी जातक की कुंडली में मांगलिक दोष के लक्षण मिलते हैं तो उन्हें किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह करके ही मंगल दोष के निवारण की पूजा करनी चाहिए। अंगारेश्वर महादेव, उज्जैन (मध्यप्रदेश) में मंगल दोष की पूजा का विशेष महत्व है। यदि यह पूजा अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की जाये तो यह जातक पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है। मंगल दोष निवारण के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे नियम बताए गए हैं जिससे शादीशुदा जीवन में मांगलिक दोष नहीं लगता है।

वट सावित्री और मंगला गौरी का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है। अगर अनजाने में किसी मांगलिक कन्या का विवाह किसी ऐसे व्यक्ति हो जाता है जो दोष रहित हो तो दोष निवारण के लिए इन दोनों व्रत का अनुष्ठान करना बेहद लाभदायी होता है।

यदि किसी युवती की कुंडली में मंगल दोष पाया जाता है तो अगर वह विवाह से पहले गुप्त रूप से पीपल या घट के वृक्ष से विवाह कर लेती है और उसके बाद मंगल दोष रहित वर से शादी करती है तो किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है।

प्राण प्रतिष्ठित किये हुए विष्णु प्रतिमा से विवाह के बाद अगर कन्या किसी से विवाह करती है, तब भी इस दोष का परिहार मान्य होता है।

ऐसा कहा जाता है कि मंगलवार के दिन व्रत रखने और हनुमान जी की सिन्दूर से पूजा करने और उनके सामने सच्चे मन से हनुमान चालीसा का पाठ करने से मांगलिक दोष शांत होता है।

कार्तिकेय जी की पूजा करने से भी इस दोष से छुटकारा मिलता है।
लाल रंग के वस्त्र में मसूर दाल, रक्त पुष्प, रक्त चंदन, मिष्टान और द्रव्य को अच्छी तरह लपेट लें और उसे नदी में प्रवाहित करने दे। ऐसा करने से मांगलिक दोष के लक्षण खत्म हो जाते हैं।गर्म और ताजा भोजन मंगल मजबूत करता है साथ ही इससे आपकी मनोदशा और पाचन क्रिया भी सही रहती है, इसीलिए अपने खान-पान की आदतों में बदलाव करें।मंगल दोष से निबटने का सबसे आसान उपाय है, हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना करना। यह मंगल दोष को खत्म करने में सहायक होता है।कई लोग मंगल दोष के निवारण के लिए मूँगा भी धारण करते हैं। रत्न जातक की कुंडली में मंगल के प्रभाव के अनुसार पहना जाता है
किसी भी युवक या युवती की कुंडली में मंगल दोष का पता लगने पर घरवाले अनगिनत पंडितों के चक्कर में पड़ न जाने कितने उपाय करते हैं जिससे वे अपने पैसे और समय दोनों का नुक्सान करते हैं। यहाँ-वहां भटकने की जगह ज़रूरत होती है तो किसी अनुभवी ज्योतिष से परामर्श लेकर उपाय करने की। किसी मांगलिक व्यक्ति को एक खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने के लिए मंगल दोष की शांति करना बेहद जरूरी होता है।

कुण्डली में दोष विचार-

विवाहके लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए.

कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग , व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के यह शुभ नहीं होता है.

इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग, व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग ..रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है.पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है.

हालाँकि कई स्थितियों में कुण्डली में यह दोष प्रभावशाली नहीं होता है अत: जन्म कुण्डली के अलावा नवमांश और चन्द्र कुण्डली से भी इसका विचार करके विवाह किया जा सकता है |


विवाह- प्रश्न और उत्तर | अष्टकूट मिलान – प्रश्न उत्तर

नोट :- निम्न प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए क्लिक नीचे क्लिक करके अगले पेज पर जाएं |


  1. क्या कुण्डली मिलान प्रचलित नाम से करना चाहिए? यदि नहीं तो क्यों ?
  2. क्या केवल कुण्डली मिलान सुखी दाम्पत्य जीवन दे सकता है ?
  3. कुण्डली मिलान में क्या – क्या दोष हो सकते हैं ?
  4. क्या प्रत्येक व्यक्ति कुण्डली मिलान कर सकता है ?
  5. अष्ट-कूट के अलावा किन-किन बातों का मिलान करना चाहिये?
  6. कुंडली मिलान के कितने भेद हैं ?
  7. उत्तर भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
  8. दक्षिण भारत में कितने कूटों का मिलान किया जाता है ?
  9. अष्ट कूट के कूटों के क्या नाम व क्या अंक हैं ?
  10. वर्ण का मिलान कैसे किया जाता है ?
  11. विवाह के लिए वर और कन्या में किसका वर्ण ऊँचा होना चाहिये ?
  12. अष्टकूट मिलान में वर्ण क्या बतलाता है ?
  13. अष्टकूट के किस कूट से जातक का व्यवहार पता किया जा सकता है?
  14. योनि से क्या तात्पर्य है ?
  15. योनि मिलान कैसे करते हैं ?
  16. योनि से हम क्या क्या मिलान कर सकते हैं?
  17. ग्रह मैत्री क्या दर्शाती है ?
  18. ग्रह मैत्री कैसे देखी जाती है?
  19. ग्रह मैत्री का क्या महत्त्व है ?
  20. ‘यदि ग्रह मैत्री हो तो अन्य दोषों में कमी आ जाती है ‘- यह सत्य:हैं ?
  21. गण कूट के अधिकतम अंक कितने होते हैं?
  22. गणकूट का मिलान कैसे किया जाता है?
  23. गण दोष का क्या परिहार होता है ?
  24. भकूट कूट कैसे मिलते हैं ?
  25. भकूट कूट कब शुभ होता है ?
  26. भकूट कूट कब अशुभ होता है ?
  27. यदि वर-वधु की राशियां २/१२ है तो इसका क्या परिहार है ?
  28. नाड़ी कूट कैसे मिलाया जाता हैं ?
  29. नाड़ी कूट के अधिकतम अंक कितने हैं ?
  30. नाड़ी दोष का क्या परिहार है ?
  31. दक्षिण भारत व उत्तर भारत की तारा में क्या अन्तर हैं ?
  32. कौन सी तारा अशुभ होती है?
  33. यदि दोनों का नक्षत्र एक हो तो क्या सावधानियां होनी चाहिये ?
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