संतान पुत्र होगा या पुत्री | लड़का होगा या लड़की | Child Astrology Boy Or Girl
किसी महिला के मासिक धर्म के समय स्त्री के जन्मांग में जन्मकालीन चंद्रमा से जब गोचर का चंद्रमा 3,6,10 एवं 11वें भाव को छोड़कर अर्थात लग्न, द्वितीय, चर्तुाि, सप्तम, अष्टम, नवम एवं बारहवें भाव से गोचर करता है तथा उसे मंगल देखता है तथा पुरुष की जन्म कुंडली में जन्मकालीन चंद्रमा से गोचर का चंद्रमा 3,6,10,11 में से किसी एक भाव में हो तथा गुरु से चंद्रमा दृष्ट हो तब स्त्री पुरूष के संयोग से गर्भ धारण होता है। यदि पंचम भाव को सूर्य मंगल एवं गुरु ेखे तथा पंचम पर किसी ग्रह का दुष्ट प्रभाव न हो तो पुत्रोत्पति होता है। यदि पंचमेश पुरुष ग्रह होकर पाप दृष्ट या युत न हो तऔर जब चंद्र या शुक्र पचम या पंचमेश को देखे तथा पाप प्रभाव में पंचम या पंचमेश न हो तो ऐसी अवस्था में अधिकतर कन्या संतति उत्पन्न होती है। जो दम्पति मेडिकल जांच में ठीक है किंतु संतान उत्पति में असफल है ऐसे समय का उपयोग कर संतानोत्पति कर सकते हैं। किंतु जो दम्पति मेडिकल जांच में ठीक नहीं किंतु उनकी कुंडलियों में संतान योग के कारण दिखाई दे ऐसे दम्पतियों को उचित चिकित्सा करवाना ही श्रेष्ठ है।
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ladka hoga ya ladki jyotish
संतानोत्पति योग: यदि लग्नेश, लग्न, द्वितीय या तृतीय भावस्थ हो तो प्रथम संतान पंत्र और लग्नेश चतुर्थ भाव में हो तो द्वितीय संतान पुत्र होती है। यदि पंचमेश एवं पंचम भाव पर गुरु की दृष्टि तथा पंचम एवं पंचमेश पापत्व प्रभाव से रहित हो तो ऐसी स्थिति में अधिकांशतः पुत्रोत्पति होती हैं पंचम भाव शुभ प्रभाव में हो तो संतान योग होता है किंतु शुभ ग्रह का पंचमेश से दृष्ट न होने पर संतान की अभाव रहता है। सप्तम में शुक्र दशम में चंद्रमा तथा चतुर्थ में पापग्रह होने से संतानहीन योग बनता है। पंचमेश जिस भाव में स्थित है वहीं से 5,6,12वें भाव में दुष्ट ग्रह होने पर संतान अभाव रहता है। यदि संतान हो भी जाये तो उसके जीवित रहने में संदेह है। किसी जातक के जन्मांग में पंचम भाव पर पापी ग्रह शनि, राहु, केतु अथवा नीच ग्रह की दृष्टि या युति, पंचम भाव में पंचमेश नीचस्थ हो, द्वादशेष, अष्टमेश, षष्ठेश से दृष्ट या युत होने पर संतानोत्पति में बाधक है क्योंकि दुष्ट ग्रह के प्रभाव से अंडे के विकास में बाधा आती है तथा प्रोजस्टीरोन हारमोन की कमी हो जाती है। गर्भाशय की मांसपेशियां कमजोर होती है। मंगल की दृष्टि आदर्शन का कारण बनती है। पंचम भाव के उपाधिपति के नक्षत्र के उपनक्षत्र में स्थित ग्रह की दशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर में संतान उत्पति होती है।
दूसरी समस्या है छोटी चिंताओं की पहले मैं इसे गंभीरता से नहीं लेता था। क्योंकि मुझे यह स्त्री विशेष या कह दें पर्सनेलिटी विशेष की समस्या लगती थी। जो केवल स्त्री ही नहीं किसी इंडीजुअल पुरुष में भी हो सकती थी। ज्योतिष अध्ययन के अनुसार चिंता करने की समस्या के कारण स्त्रियों और पुरुषों में एक जैसे होते हैं। यानि इसमें फर्क नहीं किया गया है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि पूर्व में जातक हमेशा पुरुष ही रहे होंगे। ज्योतिष की पुस्तकें पढ़ने के दौरान ही एलन पीज की पुस्तक हाथ लगी। इसमें स्त्रियों और पुरुषों के सोचने के तरीके के बारे में विस्तार से बताया गया था। तो मेरा भी ध्यान इस ओर गया।
अब सवाल यह है कि छोटी चिंताओं का स्वरूप क्या है और इसका एक साथ समाधान कैसे किया जा सकता है? ज्योतिष की ही पुस्तकों में इसका सपाट और सटीक उपाय बताया गया है। जिस तरह एक आदमी को सुखमय वैवाहिक और संबंध की दृष्टि से संतुष्टिदायक जिंदगी के लिए शुक्र की आवश्यकता होती है वैसे ही स्त्रियों के लिए इसे गुरु के रूप में देखा गया है। गुरु का नाम गुरु है तो ऐसा लगता है जैसे स्त्रियों को ज्ञान देने वाले की जरूरत है लेकिन वास्तव में गुरु नहीं बल्कि सांसारिकता ज्ञान और सांसारिकता का लाभ देती है। गुरु इसी सांसारिकता को रिप्रजेंट करता है। अब चूंकि गुरु किसी भी स्थिति में नुकसान नहीं करता। हां फल कम या अधिक दे सकता है। ऐसे में अधिकांश स्त्रियों को आँख मूंदकर पुखराज पहनने की सलाह दे दी जाती है। इससे उनके सोचने का नजरिया वृहद् हो जाता है। इसी के साथ मोती पहनने की सलाह भी दी जाती है। चंद्रमा का उपचार विचार शृंखला को थामे रखता है।
गुरु और चंद्रमा का कांबिनेशन प्राथमिक स्तर पर ही अधिकांश समस्याओं का समाधान कर देता है। उन विचारों और कारणों को बढ़ने ही नहीं देता जो चिंताओं को हवा दे। इस तरह महिलाओं को फैशन में ही सही पुखराज और मोती पहन लेने चाहिए। भले ही वे ज्योतिष से संबंधित स्टोन हैं, लेकिन खूबसूरत होने के कारण ग्राह्य भी हैं।
बुध का प्रभाव —पुरुष कुण्डली में जहां शनि पीड़ादायी ग्रह है वहीं स्त्री जातक के लिए बुध पीड़ादायी ग्रह सिद्ध होता है। बुध के प्रभाव में एक ही रूटीन में लंबे समय तक बने रहना और एक जैसी क्रियाओं को लगातार दोहराते रहना पुरुष के लिए आसान है, पर स्त्री जातकों के लिए यह पीड़ादायी सिद्ध होता है। ऐसे में महिलाओं को अपनी दिनचर्या, कपड़े, रहने का तौर तरीका लगातार बदलते रहने की सलाह दी जाती है। इससे उनकी जिंदगी में दुख और तकलीफ का असर कम होता है।
मंगल का प्रभाव —सामान्य तौर पर ऋतुस्राव के दौरान स्त्रियों के रक्त की हानि होती है। ज्योतिष में इसे मंगल के ह्रास के रूप में देखा जाता है। मंगल के इस नुकसान की भरपाई के लिए सुहागिनों को लाल बिंदी लगाने, लाल चूडि़यां पहनने, लाल साड़ी एवं लाल रंग का सिंदूर लगाने की सलाह दी जाती है। मंगल की भूमिका अधिकार एवं तेज क रूप में होती है। लाल रंग को धारण करने से मंगल का तेज महिलाओं को फिर से प्राप्त हो सकता है।
चन्द्रमा का प्रभाव–चंद्रमा पीडि़त होने पर शरीर में खनिज तत्वों और कैल्शियम की कमी हो जाती है।राहू, केतू, बुध और शनि के कारण चंद्रमा पीडि़त हो तो स्त्री कर्कशा, रुदन करने वाली या कलहप्रिय होती है। ऐसी स्त्रियों को रोजाना सुबह खाली पेट मिश्री के साथ मक्खन खाने की सलाह दी जाती है। मक्खन (butter) में उपलब्ध खनिज तत्व एवं कैल्शियम जातक के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) को फिर से दुरुस्त करता है और जातक हंसने खिलखिलाने लगता है।
किसी भी रोगी जातक की कुंडली का विश्लेषण करते समय सबसे पहले 3, 6 8 भावों के ग्रहों की शक्ति का आंकलन करना चाहिए. जन्मकुंडली के अनुसार शरीर का विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाव और उनसे मुक्ति प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं. लेकिन इसके साथ ही साथ कुण्डली में रोगों का अध्ययन करते समय इन तथ्यों का अध्ययन करते हुए ग्रहों की युति, प्रकृति, दृष्टि, उनका परमोच्चा या परम नीच की स्थिति का भी अध्ययन आवश्यक है तभी हम किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं |
आदि काल से ऋषियों ने पहले ही संतान प्राप्ति के नियम(Progeny Rules)और संयम आदि निर्धारित किये थे जिस प्रकार प्रथ्वी पर उत्पत्ति और विनाश का क्रम हमेशा से चलता रहा है और ये आगे भी ये नियमित रहेगा उसी प्रकार इस क्रम में जड़-चेतन का जन्म होता है फिर उसका पालन होता है इसके पश्चात विनाश होता है |
मनचाही सन्तान लड़का या लड़की उत्पन्न करना हमारे वश की बात है, बसर्ते हमें इस विषय पर प्रयाप्त और ठीक ठाक जानकारी हो । शास्त्र सम्मत बिधी बिधान के अनुसार मन पसन्द सन्तान की उत्पत्ती कैसे हो इस पर चर्चा हम यहाँ करेंगे ।
गर्भाधान के समय केंद्र एवम त्रिकोण मे शुभ ग्रह हों, तीसरे छठे ग्यारहवें घरों में पाप ग्रह हों, लग्न पर मंगल गुरू इत्यादि शुभ कारक ग्रहों की दॄष्टि हो, विषम चंद्रमा नवमांश कुंडली में हो और मासिक धर्म से सम रात्रि हो, उस समय सात्विक विचार पूर्वक योग्य पुत्र की कामना से यदि रति की जाये तो निश्चित ही योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है. इस समय में पुरूष का दायां एवम स्त्री का बांया स्वर ही चलना चाहिये, यह अत्यंत अनुभूत और अचूक उपाय है जो खाली नही जाता. इसमे ध्यान देने वाली बात यह है कि पुरुष का जब दाहिना स्वर चलता है तब उसका दाहिना अंडकोशः अधिक मात्रा में शुक्राणुओं का विसर्जन करता है जिससे कि अधिक मात्रा में पुल्लिग शुक्राणु निकलते हैं. अत: पुत्र ही उत्पन्न होता है.
योग्य पुत्र प्राप्त करने के इच्छुक दंपति अगर निम्न नियमों का पालन करें तो अवश्य ही उत्तम पुत्र प्राप्त होगा. स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. स्वर की जांच के लिये नथुनों पर अंगुली रखकर ज्ञात किया जा सकता है.
योग्य कन्या संतान की प्राप्ति के लिये स्त्री को हमेशा पुरूष के दाहिनी और सोना चाहिये. इस स्थिति मे स्त्री का दाहिना स्वर चलने लगेगा और स्त्री के बायीं तरफ़ लेटे पुरूष का बांया स्वर चलने लगेगा. इस स्थिति में अगर गर्भादान होता है तो निश्चित ही सुयोग्य और गुणवती कन्या संतान प्राप्त होगी.
विवाहोपरांत सभी दम्पति की अभीलाषा होती है कि उसकी कम से कम एक संतान अवश्य हो -जिस प्रकार धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा |
इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान(Conception) का कारण समझ लेना चाहिये जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा |
इनमे से अधिकांश औषधियों का चयन प्राचीन ग्रंथो से किया गया हैं और वैद्यों एवं प्रयोगकर्ता इन्हें पूर्ण सफल और अनुभव सिद्ध भी मानते हैं और कुछ मंत्रो के विधान से भी और निष्ठां पूर्वक किया गया ब्रत भी फलदायी होता है |
कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए-जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और आमवस्या –
चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा-
यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं-मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता(Disease)को प्राप्त होता है पांचवी रात्रि से संतान उत्पन्न करने की विधि करनी चाहिए |
इस समय में पुरूष का दायां एवम स्त्री का बांया स्वर ही चलना चाहिये-यह अत्यंत अनुभूत और अचूक उपाय है जो खाली नही जाता है इसमे ध्यान देने वाली बात यह है कि पुरुष का जब दाहिना स्वर चलता है तब उसका दाहिना अंडकोशः अधिक मात्रा में शुक्राणुओं(Sperm) का विसर्जन करता है जिससे कि अधिक मात्रा में पुल्लिग शुक्राणु निकलते हैं. अत: पुत्र ही उत्पन्न होता है|
यदि पति-पत्नी संतान प्राप्ति के इच्छुक ना हों और सहवास करना ही चाहें तो मासिक धर्म के अठारहवें दिन से पुन: मासिक धर्म आने तक के समय में सहवास(sexual intercourse) कर सकते हैं इस काल में गर्भाधान की संभावना नही के बराबर होती है|
चार मास का गर्भ हो जाने के पश्चात दंपति को सहवास नही करना चाहिये अगर इसके बाद भी संभोग रत होते हैं तो भावी संतान अपंग और रोगी पैदा होने का खतरा बना रहता है- इस काल के बाद माता को पवित्र और सुख शांति के साथ देव आराधन और वीरोचित साहित्य के पठन पाठन में मन लगाना चाहिये इसका गर्भस्थ शिशु पर अत्यंत प्रभावकारी असर पडता है |
अगर दंपति की जन्मकुंडली के दोषों से संतान प्राप्त होने में दिक्कत आ रही हो तो बाधा दूर करने के लिये संतान गोपाल के सवा लाख जप करने चाहिये- यदि संतान मे सूर्य बाधा कारक बन रहा हो तो हरिवंश पुराण का श्रवण करें- राहु बाधक हो तो कन्यादान से- केतु बाधक हो तो गोदान से- शनि या अमंगल बाधक बन रहे हों तो रूद्राभिषेक से संतान प्राप्ति में आने वाली बाधायें दूर की जा सकती हैं|
janiye सहवास(lovemaking)की कुछ राते—
मासिक स्राव रुकने से अंतिम दिन (ऋतुकाल) के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है|
चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है|
पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी|
छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा|
सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी|
आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है|
नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है|
दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है|
ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है|
बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता ह|
तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है|
चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है|
पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है|
सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है |
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विवाहोपरांत सभी दम्पति यह चाह्ते है की उनकी सन्तान स्वस्थ , सुन्दर और बुद्धिमान हो , साथ ही साथ दम्पति खुद निर्णय करे की उन्हे पुत्र चाहिए या पुत्री , लेकिन यह वहुत कम दंपत्ति जानते है की ऐसा कैसे हो सकता है । यह जो बिधी हम बताने जा रहे है यह 100 प्रतिशत सफल सिद्ध हुयी है एक दम्पति ने इस बिधी का पालन किया फलस्वरूप ( पांच पुत्रियों के बाद) पुत्र उत्पन्न करने में सफलता पाई ।
मेरा मकसद लिंग संतुलन बिगारना नहीं है । एक दम्पती जिसे तीन पुत्र था उन्हें एक पुत्री की चाह थी इश बिधी का प्रयोग से पुत्री हुयी । ऐसे अनेक प्रमाण है , यह अनुभब सिद्ध प्रयोग है , । गर्भ धारण संस्कार का उचित समय दो बातो पर निर्भर करता है । आपको लड़का चाहिए या लड़की । पुत्र को जन्म देने की इछा से किये जाने बाले गर्भधारण संस्कार का उचित समय … एक तो यह की उस समय शुक्ल पछ ( चाँदनी रात वाला ) हो और दुसरी यह है की जिस दिन पत्नी का मासिक धर्म सुरु हुवा हो उस दिन रात को पहली रात मानकर गिनने पर आठमी , दशमी , बरहमी , या चौदहमी रात हो । यह तो हुयी मोटी बात , मुख्य और जरुरी बाते जिसका पालन होना अनिवार्य होता है वह यह की इस गणित के अनुसार आगामि महीनो में ऐसा संयोग कब बनेगा । जब इधर स्त्री का मासिक धर्म शुरू हो और उधर शुक्ल पक्छ की एकंम तिथि (परवा ) एक ही ही दिन पड़ जाये / एक दो दिन आगे पीछे भी शुरू हो तो कार्य सिद्ध होने में कोई बाधा नहीं पड़ती / गणित के इस बिबरण को फर्मुला मान ले और जब भी पत्नी का ऋतुस्राव शुक्ल पछ की तिथियों से संयोग कार्यक्रम निर्धारीत कर ले / अवं अच्छी तैयारी के साथ अनुकूल रात्रियों में गर्भधान संस्कार आयोजित करे / सारे प्रयत्न निष्ठां पुर्बक और सतर्कता के साथ करे और फल भगवान पर छोड दे \
प्रायः संतान न होने के लिए स्त्री ( पत्नी ) को दोषी ठहराया जाता है और बदनाम भी किया जाता है / यदि पुरुष के सुक्र में पर्याप्त शुक्राणु नहीं हो .गर्भ स्थापित न होने का कारण स्त्री नहीं पुरुष होगा / नये बैज्ञानीक अनुसन्धान के आधार पर कहा जा सकता है . की व्यक्ती अपनी इछा से लड़का या लड़की पैदा कर सकता है . इस बात के वैज्ञानीक प्रमाण मिल चुके है . / स्त्री के अंडे ( ovum ) में केवल ( X ) क्रोमोसोम पाये जाते है . जबकि पुरुष में X और Y दोनों क्रोमोशोम्स होते है / यदि X और Y क्रोमोशोम्स का संजोग हो तो लड़का शरीर बनता है / और यदी गर्भधान के समय पुरुष के शुक्र में X क्रोमोशोम्स गैर मौजूद हुवा तो गर्भधान लड़की का हो जायेगा / भारतीय जयोतिष के अनुसार शुक्ल पछ के समय सम संख्या बाली आठवी .दशवी . बारहमी . अदि रात्रियो में गर्भधान करने से पुत्र प्राप्ति का बिधान बताया गया है / इन रात्रियो में चंद्रमा के प्रभाव से शुक्र में X क्रोमोशोम्स की उपस्थीती बनी रहती है / बैज्ञानिको के अनुसंधानानुसार चन्द्रमा के प्रभाब से पुरुषो के शुक्र में X क्रोमोसोम्स प्रयाप्त मात्रा में मौजुद पाई गई एवं बिशम रात्रियों में Y क्रोमोशोम्स की अधिकता थी / स्त्री अपने मासिक अबधी के 12 वे से 14 वे दिन के मध्य अत्यधिक प्रजनन सामर्थ्य रखती है /यदि पुत्र उत्पन्न करने की अभिलाषा हो तो पति व पत्नी को बड़े सयम के साथ गर्भधान के लिए सतर्कता पूर्वक नियम का पालन करते हुवे स्त्री के मासिक धर्म का पहला या दूसरा दिन शुक्ल पछ की पहली व दूसरी तिथि के साथ साथ पड़े तो सर्वाधीक प्रजनन छमता बाले 12 वे एवम 14 वे रात पुरुष के शुक्र में भी Y क्रोमोसोम्स सर्वाधिक सघन मात्रा में उपलब्ध रहते है . जो पुत्र उत्पती के लिए अति आवश्यक और मूल कारक है / जब यह संयोग बने तभी 12 वे 14 वे दिनों में गर्भधान संस्कार होना चाहिये / अन्य दिनों में गर्भधान होने से कन्या सन्तान की सम्भाबना अधिक रहती है / यह ध्यान रखने की बात है की मासिक धर्म का पहला या दुसरा दिन शुक्ल पछ की पहली या दूसरी तिथि हो और 12 वे .. 14 वे दिनों के पहले या बाद में पुरुष ब्रम्हचर्य का पालन करे या गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करे |
Putra prapti ke upay (पुत्र प्राप्ति के अचूक ज्योतिषीय उपाय)
पुरातन काल के लोग उपरोक्त नियम-संयम से संतान-उत्त्पति किया करते थे-
सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए एकदम से नहीं उठना चाहिए तथा वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे प्रमुख दोष बताये गए है जिनके कारण संतान की प्राप्ति नहीं होती या वंश वृद्धि रुक जाती है इस समस्या के पीछे की वास्तविकता-क्या है इसका शास्त्रीय और ज्योतिषीय आधार क्या है ये आप अपनी जन्म कुंडली के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सकते है-इसके लिए आप हरिवंश पुराण का पाठ या संतान गोपाल मंत्र का जाप करे-
पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें-
संतान प्राप्ति गोपाल मन्त्र –
” ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।”
इस मंत्र का बार रोज 108 जाप करे और मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें-
अपने कमरे में श्री कृष्ण भगवान की बाल रूप की फोटो लगाये या लड्डू गोपाल को रोज माखन मिसरी की भोग अर्पण करे-
कई बार प्रायः देखने में आया है की विवाह के वर्षो बाद भी गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है, ज्योतिष में इस समस्या या दोष का एक प्रमुख कारण पति या पत्नी की कुंडली में संतान दोष अथवा पितृ दोष हो सकता है या घर का वास्तुदोष भी होता है, जिसके कारण गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है-
पुत्र-प्राप्ति गणपति मन्त्र-
श्री गणपति की मूर्ति पर संतान प्राप्ति की इच्छुक महिला प्रतिदिन स्नानादि से निवृत होकर एक माह तक बिल्ब फल चढ़ाकर इस मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जपने से संतान प्राप्ति होती है-
‘ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नम:’
पुत्र-प्राप्ति शीतला-षष्ठी ब्रत-
माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है कहीं-कहीं इसे ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता हैं इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये- इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है |
अगर दंपति की जन्मकुंडली के दोषों से संतान प्राप्त होने में दिक्कत आरही हो तो बाधा दूर करने के लिये संतान गोपाल के सवा लाख जप करने चाहिये. यदि संतान मे सूर्य बाधा कारक बन रहा हो तो हरिवंश पुराण का श्रवण करें, राहु बाधक हो तो क्न्यादान से, केतु बाधक हो तो गोदान से, शनि या अमंगल बाधक बन रहे हों तो रूद्राभिषेक से संतान प्राप्ति में आने वाली बाधायें दूर की जा सकती हैं|
खुद जानें, लड़का होगा या लड़की – केरल ज्योतिष
आप एक मामले में तो बड़े-बड़े ज्योतिषियों को फेल कर ही सकते हैं। अक्सर घर में, पड़ौस में, नाते-रिश्तेदारी में कोई महिला गर्भवती होती है तो सबको जिज्ञासा होती है कि उसके लड़का होगा या लड़की। हम फटाफट किसी न किसी ज्योतिषी के पास जाते हैं और उसकी भविष्यवाणी का बड़ी उत्सुकता से सही होने का इंतजार करते हैं। अक्सर ज्योतिषी का कहा इस मामले में सही नहीं होता।
संतान प्राप्ति में बाधा योग/श्राप योग:- | Sthapit yog in Kundali
लेकिन एक विधि ऐसी भी है कि आप घर बैठे ही आसानी से पता लगा सकते हैं कि कोई महिला गर्भवती है या नहीं, यदि है तो उसके लड़का होगा या लड़की। तो शुरू करें वह चमत्कारी तरीका, जो यह बताता है कि कोई महिला गर्भवती है या भी या नहीं, और है तो उसके लड़का होगा या लड़की। यह विधि है केरल की। इसलिए इसे कहते हैं केरल प्रश्न ज्योतिष।
सूत्र-1-आपकी भाभी, बहन या कोई महिला गर्भवती है भी कि नहीं, यह जानने के लिए दिन की संख्या लिखें (ए), इसे तीन से गुणा करें। अब इसमें तिथि की संख्या जोड़ें (बी) = कुल अंक (सी), इसमें दो का भाग दें। यदि एक बचे तो महिला गर्भवती है, शून्य बचे तो गर्भवती नहीं है।
उदाहरण-मान लीजिए कि किसी ने सोमवार को सवाल किया है और उस दिन अमावस के पहले की द्वादशी है। तो इसका इस तरह योग करेंगे। सोमवार के लिए संख्या 2×3=6+27 कृष्णा 12 (15+12) कुल अंक 33/2, बचा एक, यानि महिला गर्भवती है।
अच्छी तरह समझ लें कि हमेशा रविवार की संख्या एक होगी। दिन कोई हो, उसकी गिनती रविवार से करें, जैसे कि गुरुवार है किसी दिन तो उस दिन का अंक होगा पांच। इसी तरह उपरोक्त उदाहरण में कृष्ण पक्ष की द्वादशी ली गयी है, इसकी गिनती होगी कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से। इसका अंक होगा एक और कृष्ण द्वादशी है तो पूरनमासी तक के पंद्रह अंक और इसके बाद द्वादशी तक के बारह अंक। इस तरह कुल अंक होंगे 27.
अब पता लगाते हैं कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की। इसके लिए इनकी संख्या जोड़ें-
दिन+तिथि+नक्षत्र+योग+गर्भवती स्त्री के नाम के अंक, अब इसमें 7 का भाग दें। यदि 1,3,5 संख्या बचे तो लड़का गर्भ में पल रहा है और 2,4,6 बचे तो गर्भ में लड़की पल रही है। याद रखिए कि नक्षत्र 27 होते हैं। हमेशा अश्विनी नक्षत्र से गिनती शुरू करनी है और इसका एक नंबर लेना है। अंतिम नक्षत्र रेवती होता है. जिसका नंबर होता है 27. इसी प्रकार योग भी 27 होते हैं। पहला योग होता है विषकुंभ, इसका नंबर है 1, और
अंतिम योग है वैधृति, इसका नंबर है 27, इसी प्रकार नाम के नंबर हिंदी नाम के ही लेने हैं। जैसे नाम है भारती तो इसके अंक हुए 3, दिन सोमवार 2+ तिथि 27(कृष्ण 12 )+ नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी 12+ योग वैधृति 27+ गर्भवती का नाम (भारती) 3=71/ 7, शेष बचा 1, इसका मतलब है कि उसके लड़का होगा।
मेरे पास एक सज्जन आए और पत्नी के गर्भ के बारे में पूछने लगे। उनका कहना था कि वह इसलिए चिंता में हैं कि पिछली बार का गर्भ गिर गया था। उन्होंने पत्नी का नाम मीरा बताया। मैंने तत्काल गणना की। यह 27 जुलाई 2013 की बात है। दिन शनिवार 7+21 (तिथि कृष्णा 6) + 26 नक्षत्र (उत्तरा भाद्रपद)+7 योग (सुकर्मा)+2 मीरा नाम के अंक। कुल अंक हुए 63/7, लिहाजा सात का भाग देने पर शून्य बचा।
मैंने कहा कि बच्चे का बचना मुश्किल है। आप अपने डाक्टर से सलाह लें। उन्होंने बताया कि डाक्टर ने भी ऐसा ही बताया है। कुछ दिन बाद पता कि उस महिला का फिर से एबार्शन हुआ है।
संतान के लिंग निर्धारण के विषय में ज्योतिष कभी घोषणा नहीं करता है। ज्योतिष की यह गणना मात्र एक संकेत की तरह ही होती है, इसके अनुसार अधिकतम संभावना के बारे में बताया जा सकता है, लेकिन न तो इसे अंतिम माना जाना चाहिए और न ही किसी प्रकार के निर्णय के लिए इस सलाह को काम में लिया जा सकता है। लिंग निर्धारण के बजाय संतान की संभावना के संबंध में सवाल पूछा जा सकता है।
Beeja Sphutas & Kshetra Sphutas (बीज स्फुट और क्षेत्र स्फुट)
संतान पुत्र होगा या पुत्री (Santan)
इस विषय को लेकर आज तक मैंने कुल 23 फलादेश दिए हैं। इनमें से 21 सही रहे और दो गलत। दो फलादेश गलत रहने का कारण भी यह रहा कि मुझे जो जानकारियां मुहैया कराई गई थी वे गलत निकली। बाद में जातक ने अपनी गलती स्वीकार की और मेरे फलादेश को माना।
वैसे भारत सरकार के कानून के मुताबिक लिंग परीक्षण (Gender determination) करना गैरकानूनी है। इसके बावजूद सोनोग्राफी वाले अंधाधुंध कमाते हैं। हर किसी को पुरुष संतान (Sanatan) की चाह है। अब आप यह सोच रहे होंगे कि मैं सोनोग्राफी वालों के पीछे ही पडा रहूंगा या बताउंगा भी कि आपके संतान (Santan) पुत्र होगा या पुत्री।
संतान का लिंग पता करने के बारे में मेरे गुरूजी से पूछा तो उन्होंने जो उत्तर दिया वह अतार्किक लगा। उन्होंने कहा संतान ईश्वर की देन है इस बारे में हमें फलादेश करने की मनाही है। इस विषय को न ही छेड़ें तो बेहतर होगा। बाद में भले ही मुझे उनकी बात खरी लगने लगी हो लेकिन उस समय मैं जोश में था और पता करना ही चाहता था।
संतान के बारे में निर्णय करने के लिए मेरा खुद का तरीका विकसित किया। इसके लिए मैं पहले जातक की कुण्डली देखता हूं और पता करता हूं कि जातक अमीर बनने के योग हैं या नहीं, दूसरा आने वाले दिनों में जातक धक्के खाता फिरेगा या उसके जीवन में स्थिरता आएगी, तीसरा जातक की पारिवारिक पृष्ठ भूमि कैसी है, चौथा फिलहाल जातक की आर्थिक स्थिति कैसी है, पाँचवाँ जातक के चंद्रमा की क्या स्थिति है। तो मेरे जातक से सवाल होते हैं…
1 अभी आपके पास कितना पैसा है
2 आने वाले दिनों की क्या योजना है
3 जातक के पिताजी क्या करते हैं
अगर तीनों चीजें फेवरेबल हो तो कुण्डाली में देखता हूं कि जातक का खुद का चंद्रमा किस स्थिति में है। अगर चंद्रमा खराब हुआ और ऊपर की स्थितियां फेवरेबल हुई तो जातक के अवश्य कन्या होगी।
और यदि जातक का बैंक बैलेंस खत्म सा हो गया हो, नौकरी में प्रमोशन रुका हुआ हो, पिता ने घर से निकाल दिया हो, रात को समय पर नींद नहीं आती हो और पत्नीर का वज़न बढता जा रहा हो तो जातक को पुत्र संतान की प्राप्ति होगी।
ऐसा क्यों ? इसके दो कारण हैं। पहला, जातक की असुरक्षा की भावना जितनी अधिक प्रबल होती जाती है, जीवन की समस्याएं जितनी अधिक होती हैं पुरुष संतान होने की संभावना बढ़ जाती है। मैं मानसिक स्तरों और इसकी कार्यप्रणाली के बारे में अधिक तो नहीं जानता लेकिन अनुमान लगा सकता हूं कि साइकोलॉजिकली होता यह होगा कि जातक का अवचेतन यह निर्णय करता होगा कि अब अपना तो खेल खत्म हुआ अगली पीढ़ी में अपने रक्त का संचार करने के लिए पुत्र छोड़ दें।
दूसरा कारण चंद्रमा का है। चंद्रमा की स्थिति बेहतर होने पर जातक निश्चिंत स्व्भाव का हो जाता है। ऐसे में समृद्धि बढ़ाने पर ध्यान नहीं दे रहा होता तो गुणसूत्रों में वाई का अनुपात बढ़ जाता होगा। अधिकांश विज्ञान के विद्यार्थी समझ जाएंगे कि ऐसे कैसे वाइ बढ़ सकता है। दोनों विपरीत परिस्थितियां मिलकर पुत्र होना सुनिश्चित करती हैं।
वहीं जिस जातक का स्थाईत्व लगातार बढ़ता जा रहा हो, उसके गुणसूत्रों में वाइ का अनुपात घट जाता होगा। ऐसे में कन्या की प्राप्ति होने की संभावना बहुत हद तक बढ़ जाती है। इसमें चंद्रमा का रोल यह रहता है कि कुण्डली में चंद्रमा की खराब स्थिति मानसिकता को ऐसा कर देती है कि मनुष्य लगातार ऊपर चढ़ने का प्रयास करता है। ऐस में कन्या बुध के रूप में उसे अतिरिक्त सहायता देने के लिए आ जाती है।
यह मेरा अनुभूत नियम है कि जिस जातक के कन्या संतान हुई वह या तो पैसे वाला पहले से बन रहा था वरना कन्या संतान के साथ ऐसी परिस्थितियां बनी कि वह पैसे वाला बन गया। अगर अमीर नहीं तो खाते-पीते परिवार का मालिक तो बना ही है। इसके उलट मेरे कुछ जातक पुत्र के जन्म के बाद ट्रांसफर, पैसे का नुकसान, व्यापार में धक्के्, सामाजिक प्रतिष्ठा में गिरावट का दंश भोग रहे हैं।
मेरे एक दोस्त को इस बारे में जानकारी थी। जब मैंने उससे पूछा कि अभी तुम्हारी माली हालत कैसी है तो उसने चट से जवाब दिया कि बिल्कुल कड़का हूं। मैंने पूरे आत्मसविश्वास के साथ कहा कि तुम्हें पुत्र रत्न की ही प्राप्ति होगी। बाद में उसके पुत्री हुई। मैंने माफी मांग ली, तो मित्र ने बताया कि उसकी दादी मेरे मुंह से पोता होने की बात ही सुनना चाहती थी इसलिए उसने झूठ बोला कि वह कड़का है।
मेरे आस-पास रहने के कारण उसे इस पद्धति के बारे में जानकारी थी। उसने अपने भाई के बिजनेस में कुछ लाख रुपए लगा रखे हैं। जो लगातार बढ़ रहे हैं। जब उसने खुलासा किया तो मैं बहुत झल्लाया। खैर जो भी हो, मेरा फलादेश गलत होकर भी अधिक सही रहा।
गर्भ में लड़का है या लड़की, केरलीय ज्योतिष से जानें
संतान के लिंग निर्धारण के विषय में ज्योतिष कभी घोषणा नहीं करता है। ज्योतिष की यह गणना मात्र एक संकेत की तरह ही होती है, इसके अनुसार अधिकतम संभावना के बारे में बताया जा सकता है, लेकिन न तो इसे अंतिम माना जाना चाहिए और न ही किसी प्रकार के निर्णय के लिए इस सलाह को काम में लिया जा सकता है। लिंग निर्धारण के बजाय संतान की संभावना के संबंध में सवाल पूछा जा सकता है।