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Ratna Jyotish Vigyan रत्न ज्योतिष

रत्नों का प्रयोग किस उद्देश्य से किया जा सकता है?
ज्योतिषशास्त्र में रत्नों के प्रयोग के विषय में दो प्रमुख सिद्धान्त उपलब्ध होते हैं-
(१) अशुभ, पाप व क्रूर ग्रहशान्ति हेतु
(२) शुभ फलप्रद व योगकारक ग्रह पुष्टिकरण हेतु।       अभिप्राय यह है कि यदि किसी जातक के जन्माङ्ग में कोई ग्रह अशुभ प्रभाव उत्पन्न कर रहा हो तो रत्नों का प्रयोग किया जाता है तथा यदि किसी शुभ ग्रह के शुभत्व को बढ़ाना है तो भी रत्नों का प्रयोग कर सकते हैं। ज्योतिषशास्त्रीय उपयोग के अतिरिक्त आयुर्वेद के औषधियों के रूप में भी रत्नों का प्रयोग होता है।

ग्रहशान्ति तथा ग्रह पुष्टिकरण के लिए रत्नों की प्रयोगविधि क्या एक ही है ?
नहीं! ग्रहशान्ति तथा ग्रह पुष्टिकरण हेतु रत्नों की प्रयोगविधि नितान्त ही भिन्न है। अनिष्टकारक ग्रहों की शान्ति के प्रसङ्ग में रत्नों को दान में देने का प्रावधान किया गया है। इन ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो ग्रह जन्माङ्ग, दशा, गोचर अथवा अष्टकवर्गादि में अशुभ हों उनसे सम्बन्धित रत्नों का दान करना चाहिए। इस दान से वे अशुभ ग्रह प्रसन्न होकर शुभ फल प्रदान करते हैं- 
“ ये खेचरा गोचरतोऽष्टवर्गाद्दशा- क्रमाद्वाप्यशुभा भवन्ति। दानादिना ते सुतरां प्रसन्तास्तेऽधुना। ” 
परन्तु जब ग्रहों को बलवान् करने की बात हो तो उन-उन ग्रहों से सम्बन्धित रत्नों को मुद्रिका, मणि अथवा किसी भी आभूषण के रूप में शरीर पर धारण करने का प्रावधान किया गया है- 
“किरीटे कटिसूत्रे च कुण्डले कण्ठभूषणे। कीर्तिवक्त्रे मुद्रिकायां कङ्कणे बाहुभूषणे।।” 
स्पष्ट है कि जातक के जन्माङ्ग में उपस्थित जो ग्रह शुभ फल देने वाले हों उनको और अधिक बल प्रदान करने तथा उनके प्रसन्नार्थ के लिए रत्नों को धारण करना चाहिए। 
“धार्यं तुष्ट्यै भौम भान्वोः प्रवालं रौप्यं शुक्रेन्द्रोश्च हेमेन्दुजस्य। सूरेर्मुक्ता लोहमर्कात्मजस्य लाजावर्तः कीर्तितो राहुकेत्वाः।।”

रत्नों के चयन के लिए किसे आधार मानें दशा को या जनमाङ्गानुसार शुभाशुभ ग्रहाें को?
सामान्यतया लोकव्यवहार में यह दृष्टिगत होता है कि जातक के जन्माङ्गानुसार जिस ग्रह की दशान्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा चल रही होती है उसी ग्रह से सम्बन्धित रत्न को धारण करने की सलाह जातक को दे दी जाती है। ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से उन सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया गया है, जिसके द्वारा जातक के लिए योगकारक ग्रहों की पहचान हो सके। इस सन्दर्भ में महर्षि पराशर प्रोक्त “वृहत्पराशरहोराशास्त्रम्” ग्रन्थ द्रष्टव्य है। इसके अनुसार लग्नेश, पंचमेश, नवमेश अर्थात् त्रिकोणाधिपति अत्यन्त शुभ फल प्रदान करने वाले तथा योगकारक होते हैं। केन्द्रेशों के शुभाशुभत्व के सन्दर्भ में अत्यन्त सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है और तदुपरान्त ही उनसे सम्बन्धित रत्नों को पहनने की सलाह दी जा सकती है। जबकि दूसरी तरफ मात्र महादशेश या अन्तर्दशेश को आधार मान लेना और उनके शुभाशुभत्व का विचार किए बिना ही यजमान को रत्नधारण की सलाह दें तो यह उचित या शास्त्रीय विधि नहीं कही जा सकती है। अतः आवश्यक है कि पाराशरी सिद्धान्तों के आधार पर सर्वप्रथम जातक के लिए शुभ तथा अशुभ ग्रहों का निर्धारण कर लें तदुपरान्त ही किसी रत्न को धारण करने अथवा उसका दान करने के विषय में सलाह देना शास्त्रसम्मत होगा। कई बार ऐसा देखा जाता है कि जिस ग्रह की दशा चल रही हो उससे सम्बन्धित रत्न ही जातक को पहना दिया जाता है और सामान्यतया इस उपाय से जातक को कोई लाभ नही मिलता, अपितु कई बार उनका अनिष्ट भी हो जाता है। महर्षि पराशर ने स्पष्टतया कहा है कि कोई भी ग्रह अपनी दशा में स्वयं से सम्बन्धित शुभ या अशुभ फल नहीं देता है अपितु ग्रह अपने सहधर्मी ग्रहों की दशान्तर्दशा में शुभाशुभ फल जातक को प्रदान करते हैं? दशान्तर्दशेशों से सम्बन्धित रत्न धारण करने का सिद्धान्त अत्यधिक गहन चिन्तन व मनन के बाद ही उपयोग में लाना संभव हो सकता है।

रत्नोत्पत्तिविषयक सिद्धान्त - रत्नों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में अनेक सिद्धान्त प्रचलित हैं। आधुनिक भूगर्भशास्त्र के अनुसार विभिन्न रत्नों की उत्पत्ति खनिजों से होती है। भूगर्भीय ताप तथा काल के प्रवाह में ये खनिज अपना स्वरूप परिवर्त्तित कर लेते हैं तथा क्रिस्टल या रवों के रूप में परिवर्तित होकर ‘रत्न’ कहलाते हैं। ज्योतिषशास्त्रीय तथा रत्नशास्त्रीय ग्रन्थों के अनुसार दैत्यराज बलि तथा वज्रासुर असुर के शरीर से विभिन्न रत्नों की उत्पत्ति बताई गई है। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वान् महर्षि दधीचि की अस्थियों से रत्नोत्पत्ति को स्वीकार करते हैं। सर्वप्रमुख व सर्वमान्य सिद्धान्त दैत्यराज बलि विषयक ही माना जाता है। इसके अनुसार इन्द्र द्वारा दैत्यराज बलि के शरीर पर वज्राघात से बलि का शरीर विशुद्ध जाति व सुकर्मों के प्रभाव से रत्नों में परिवर्त्तित हो गया। राजा बलि की हड्डियों से हीरे, दाँतों से मोती, रक्त से माणिक्य, पित्त से पन्ना, आँखों से नीलम, हृत्रस से वैदूर्य, मेद से स्फ़टिक, माँस से पारस मूँगा, चमड़े से पुखराज तथा वीर्य से भीष्म उत्पन्न हुए। इन रत्नों में से सूर्य ने माणिक्य, चन्द्रमा ने मोती, मंगल ने मूँगा, बुध ने पन्ना, बृहस्पति ने पुखराज, शुक्र ने हीरा, शनि ने नीलम, राहु ने गोमेद और केतु ने वैदूर्य ग्रहण कर लिया, इसीलिए इन रत्नों को धाारण करने वाले उपर्युक्त ग्रहों के प्रकोप से पीडि़त नहीं हो पाते हैं।
अशुभ ग्रहों की शान्ति व पुष्टिकरण के लिए ज्योतिषशास्त्र में कौन से उपाय बताए गए हैं?           ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में अलग-अलग समस्याओं के लिए अलग-अलग उपाय बताए गए हैं। दुष्ट ग्रहों, क्रूर ग्रहों, अशुभ ग्रहयोगों के दुष्प्रभावों से निवारण के लिए यज्ञ, हवन, दान, स्नान, जप, तीर्थगमन, कथा श्रवण, स्तुति, व्रत, अनुष्ठान, रत्न धारण आदि उपाय बताए गए हैं। प्राचीन ऋषियों ने ग्रह शान्ति व पुष्टिकरण हेतु विहित उपायों के सन्दर्भ में अपनी रचनाओं में अत्यन्त विस्तार से चर्चा की है। इन उपायों में से कुछ अल्प श्रमसाध्य हैं जबकि कुछ उपाय कष्टसाधय हैं।
ज्योतिषशास्त्रीय उपायों में रत्नधारण को ही क्यों प्रमुखता दें?
ग्रह शान्ति व ग्रह पुष्टिकरण हेतु जो उपाय इन प्राचीन ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं, उनकी एक लम्बी श्रृंखला है तथा इसमें धन का भी बहुत अधिक व्यय होता है। मन्त्रों के जप, अनुष्ठान, यज्ञ-हवनादि में मन, वचन और कर्म की शुद्धता अनिवार्य होती है। चाहे उच्चारण विषयक अशुद्धि हो अथवा आचार-विचार विषयक अशुद्धि हो, इनकी उपस्थिति निश्चय ही यजमान के इष्ट की पूर्त्ति में असमर्थ रहती है और साथ ही साथ यजमान के अनिष्ट का भी भय बना रहता है। यज्ञ, हवन, अनुष्ठान, जपादि में मन्त्रों के अशुद्ध उच्चारण के कारण अनिष्ट फल की प्राप्ति का उदाहरण वैदिक काल से ही उपलब्ध होता है जहाँ मन्त्र के एक अंश “इन्द्रशत्रु” शब्द में स्वरभेद के कारण यजमान का विनाश हो गया था साथ ही साथ इन अनुष्ठान-यज्ञादि के आयोजन हेतु विद्वान व योग्य आचार्यों की उपलब्धता भी अत्यन्त कष्टसाध्य हो जाती है। उपायों की इन श्रृंखला में रत्नधारण एक ऐसा विकल्प है जहाँ उपरोक्त अनिष्ट की संभावना का सबसे कम भय होता है। अल्प श्रमसाध्यता तथा रत्नों की सहजतापूर्वक उपलब्धि के कारण ज्योतिषशास्त्रोक्त उपायों में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है। अतः इष्ट प्राप्ति हेतु तथा अनिष्टों से दूर रहने की इच्छा वालों को रत्नधारण के प्रति ही प्रयासरत होना श्रेष्ठ सिद्ध होता है।

सूर्यादि ग्रहों के लिए शास्त्रोक्त रत्न कौन-कौन हैं?
“माणिक्यं दिननायकस्य विमलं मुक्ताफलं शीतगोः, माहेयस्य च विद्रुमं मरकतं सौम्यस्य गारुत्मकम्। देवेज्यस्य च पुष्परागमसुराचार्यस्य वज्रं शनेः नीलं निर्मलमन्ययोश्च गदिते गोमेदवैदूर्यके।।” अर्थात् माणिक्य सूर्य का, मोती चन्द्रमा का, मूँगा मंगल का, पन्ना बुध का, पुखराज बृहस्पति ग्रह का, व्रज या हीरा शुक्र का, नीलम शनि का, गोमेद राहु का तथा लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न कहा गया है।

रत्न धारण करने की प्रवृत्ति अर्वाचीन है या प्राचीन?
रत्न धारण करने सम्बन्धी साक्ष्यों की बात करें तो विश्व की सर्वाधिक प्राचीनतम रचना ऋग्वेद में भी रत्न धारण से सम्बन्धित प्रसङ्ग उपलब्ध होते हैं। ऋग्वेद के प्रथम मन्त्र में ही ‘रत्न’ शब्द का प्रयोग हुआ है- “होतारम् रत्नधातमम्”। इसके अतिरिक्त भी ऋग्वेद में विभिन्न देवताओं के स्वरूप वर्णन प्रसङ्ग में भी विभिन्न रत्नजटित गृह, वस्त्र, अस्त्र, आभूषणादि का वर्णन मिलता है। अथर्ववेद में रोगनाशक मणि आदि की भी विशद् चर्चा प्राप्त होती है। ज्योतिषशास्त्रीय प्राचीन ग्रन्थों यथा वृहत्पराशरहोराशास्त्रम् में भी रत्नादि के प्रयोग विषयक प्रसङ्ग मिलते हैं। वराहमिहिर ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘वृहत्संहिता’ के रत्न परीक्षाध्याय में कहा है कि शुभरत्न धारण करने से राजाओं का शुभ तथा अशुभ रत्नों को धारण करने से राजा का अशुभ होता है। अतः रत्नज्ञों द्वारा रत्नगत दैव की परीक्षा करके ही रत्न धारण करना चाहिए “रत्नेन शुभेन शुभं भवति नृपाणामनिष्टमशुभेन। यस्मादतः परीक्ष्यं दैवं रत्नाश्रितं तज्ज्ञैः।।” रामायण, महाभारत सदृश प्राचीन ऐतिहासिक ग्रन्थों व कालिदासादि प्रभृत् विद्वानों ने अपनी कालजयी रचनाओं में रत्न व इसके विविध स्वरूपों पर प्रकाश डाला है।


रत्नों के भार निर्धारण में किस सिद्धान्त का आश्रय लें?
जातक के लिए उचित रत्न के चयन के बाद दूसरी प्रमुख समस्या रत्नों के वजन को लेकर होती है। ज्योतिषियों का एक वर्ग जातक के शरीर के वजन के आधार पर रत्नाें के भार का निर्धारण करता है जबकि दूसरा वर्ग सम्बन्धित ग्रह के अंशात्मक मान तथा ग्रहों के बल को आधार मानकर रत्न के वजन का निर्धारण करते हैं। ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में ऐसी कई विधियों का वर्णन किया गया है, जिससे ग्रहों के बली या उसकी निर्बलता का मूल्याङ्कन कर सकते हैं। ग्रहों के अंशात्मक मान तथा उसके द्वारा अधिष्ठित राशि के आधार पर ग्रहों की अवस्था का निर्धारण करने के बाद रत्नों के भार के सन्दर्भ में उचित निर्णय ले सकते हैं। निम्नलिखित तालिका ग्रहों की अवस्था तथा रत्नों का भार निर्धाारण करने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
विषम राशियों में ग्रह स्थित हों तो वे 0°-6° तक (बाल),6°-12°(कुमार),12°-18°(युवा),18°-24°(वृद्ध),24°-30°(मृत) अवस्था के माने जाते हैं।
जबकि सम राशियों में ग्रह स्थित हों तो ग्रह 24°-30°(बाल),18°-24°(कुमार),12°-18°(युवा),6°-12°(वृद्ध),0°-6°(मृत) अवस्था में होते हैं।
यदि ग्रह बाल या मृतावस्था में हो तो अधिक वजन के रत्नों की आवश्यकता होगी जबकि वृद्धावस्था, कुमार व युवावस्था में क्रमशः कम वजन के रत्नों की आवश्यकता होती है। ग्रहों के षड्बल के आधार पर ग्रहों की सबलता अथवा निर्बलता का निर्धारण करने के बाद रत्नों के भार का निर्धारण करना ही शास्त्र-सम्मत विधि है।
रत्नक्रय कब करें? और रत्न कैसा हो?
ग्रहों से सम्बन्धित रत्नों का क्रय उन ग्रहों से सम्बन्धित वार को करना चाहिए। अर्थात् माणिक्य रविवार को, मोती सोमवार को, मूँगा मंगलवार को खरीदना शास्त्र-सम्मत है। राहु-केतु के सन्दर्भ में कहा गया है “कुजवत केतु शनिवत राहु” अतः लहसुनिया के क्रय के लिए मंगलवार तथा गोमेद खरीदने के लिए शनिवार का दिन प्रशस्त माना गया है। रत्न खरीदते समय यह ध्यान रखें की रत्न सर्वथा शुद्धऔर दोषरहित हों- “रत्नानि धारयेत्कोशे शुद्धानि गुणवन्ति च।” शुद्ध रत्न जहाँ जातक को शुभ फल प्रदान करते हैं, वहीं अशुद्ध तथा दोषयुक्त रत्न को धारण करने से अनिष्ट की आशङ्का सदैव बनी रहती है।
रत्नधाारण अथवा उसके दान हेतु कौन सा वार व समय उचित है?
रत्न धारण अथवा उसके दान हेतु ग्रह से सम्बन्धित वार ही शास्त्रों में प्रशस्त कहे गए हैं। अर्थात् माणिक्य रविवार को, मोती सोमवार को, मूँगा मंगलवार को, पन्ना बुधवार को, पुखराज गुरुवार को, हीरा शुक्रवार को, नीलम शनिवार को, लहसुनिया बुधवार को तथा गोमेद रविवार को धारण करना चाहिए। “कुर्यात् सूर्यादिखेटानां जपदानधारणादिकम्। तेषां वारे च काले च तेनतुष्टा भवन्ति ते।।” जहाँ तक समय की बात है तो माणिक्य, मूँगा, पन्ना, पुखराज, नीलम व लहसुनिया रत्न को सूर्योदय के उपरान्त अगले एक घण्टे के अन्दर धारण कर लेना चाहिए। जबकि मोती, हीरा व गोमेद को सूर्यास्त के अगले एक घण्टे तक पहन लेना चाहिए।
रत्न धारण से पूर्व क्या उसकी प्राण प्रतिष्ठा अनिवार्य है अथवा इस विधि का त्याग किया जा सकता है?
रत्न धारण के सन्दर्भ में यह अनिवार्य है कि रत्नों को उनसे सम्बन्धित देवताओं के वैदिक, तान्त्रिक या पौराणिक मन्त्रों के द्वारा विधिपूर्वक प्राण प्रतिष्ठा कर लें तभी उसको ज्योतिषशास्त्रीय उपाय के रूप में धारण करें। कहा भी गया है कि- “पूजा विना प्रतिष्ठां नास्ति न मन्त्रं विना प्रतिष्ठा च। तदुभय विप्रतिपन्नः पश्यतु गीर्वाण पाषाणम्।” अर्थात् प्राण-प्रतिष्ठा के बिना रत्न पाषाण मात्र हैं, तथा प्राण प्रतिष्ठित होने के बाद रत्न जीवन्त हो जाते हैं तथा जातक को शुभाशुभ फल देने में समर्थ हो जाते हैं। रत्नों के प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया में नवग्रह पूजन तथा हवन करना उचित होता है तथा रत्न विशेष के ग्रहों का षोडशोपचार पूजा, नियत संख्या में जप व हवन अत्यन्त अनिवार्य है।
रत्न धारण हेतु उचित धातु और हाथ की कौन सी अंगुली श्रेयस्कर है?
माणिक्य हेतु स्वर्ण धातु, मोती के लिए चाँदी, मूँगा के लिए ताँबा, पन्ना के लिए स्वर्ण, पुखराज के लिए स्वर्ण, हीरा के लिए स्वर्ण, नीलम के लिए लौह, गोमेद के लिए अष्टधातु व लहसुनिया के लिए भी स्वर्ण या अष्टधातु प्रशस्त माना गया है। माणिक्य को हाथ की अनामिका अंगुली में, मोती को कनिष्ठिका, मूँगा को अनामिका, पन्ना को कनिष्ठिका, पुखराज को तर्जनी, हीरा को अनामिका, गोमेद को मध्यमा या अनामिका जबकि लहसुनिया को अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए। सामुद्रिकशास्त्रम्, करलक्षण, हस्तसंजीवनम् ग्रन्थों के अनुशीलन से ग्रहों से सम्बन्धित अंगुलियों का ज्ञान अत्यन्त विस्तारपूर्वक प्राप्त हो सकता है, जिसका अनुप्रयोग रत्न धारण विषयक सिद्धान्तों में सहजतापूर्वक किया जा सकता है।        

Ratna dharan रत्न कुंडली विश्लेषण उदाहरण

एक सिंह लग्न जातक का रत्न कुंडली विश्लेषण उदाहरण

लग्नेश , पंचमेश , सप्तमेश , भाग्येश और कर्मेश के क्रम के अनुसार एवम महादशा , प्रत्यंतर दशा के अनुसार ही रत्न धारण करना चाहिए।

आपका सिंह लग्न है, प्रथम भाव में सिंह राशि इसका स्वामी सूर्य -- माणिक्य, 3 रत्ती सोने में अनामिका में, रविवार को सुबह कृतिका, उत्तरा फागुनी, उत्तराषाढ़ा

पंचम में धनु राशि है इसका स्वामी गुरु -- पुखराज, 4 रत्ती सोने में तर्जिनी में, गुरूवार प्रातः पुनर्वसु, विशाखा, पू. भाद्रपद

नवम में मेष राशि इसका स्वामी मंगल -- मूँगा
06 रत्ती, मंगलवार प्रातः मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा

कुंडली में 6, 8 और 12 भाव को मारकेश कहा जाता है, मारकेश रत्न कभी धारण न करे।

आपके 6th भाव में मकर राशि - स्वामी शनि - नीलम
8th भाव में मीन राशि स्वामी गुरु - पुखराज

और 12 th में कर्क राशि स्वामी - चन्द्रमा - मोती

रत्न का वजन सवा में ही होना चाहिए, पोने रत्ती में नही होना चाहिए। पोनरत्ती धारण करने से व्यक्ति कभी फल फूल नही पाता है।
जहाँ तक रत्न हमेशा विधि विधान से तथा प्राण प्रतिष्ठा करवा कर , शुभ वार , शुभ समय अथवा सर्वार्ध सिद्धि योग , अमृत सिद्धि योग या किसी भी पुष्प नक्षत्र में ही शुभ फल देता है।

आपकी वर्ष कुंडली में सूर्य, चंद्र, गुरु, शनि, राहु
अशुभ है

चाँदी का चंद्रमा बनवाकर एवं चंद्र यन्त्र साथ रखकर पूजन करें, पुर्णिमा को शाम को चंद्र देव को कच्चा दूध से अर्ध्य एवं पूजन करें, सोमवार को शिव जी को जल चढ़ाये

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Ratna Jyotish रत्न ज्योतिष Gemology | Gem Astrology


Ratna Jyotish  रत्न ज्योतिष Gemology

रत्न के माध्यम से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता पाई जा सकती है। लेकिन इसके लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि कौन-सा रत्न आपके लिए सर्वाधिक अनुकूल है। यहाँ आप रत्न से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। जैसे- किस राशि के व्यक्ति को कौन सा रत्न धारण करना चाहिए? रत्न को कब पहनना चाहिए और कितने रत्ती का रत्न होना चाहिए? इसके अलावा हम आपको बताएंगे रत्न धारण करने की विधि। जानें निम्न रत्नों की ख़ास विशेषता -



ग्रहसंबंधित रत्नसूर्यमाणिक्यचंद्रमोतीमंगलमूंगाबुधपन्नाबृहस्पति (गुरु)पुखराज/फिरोज़ाशुक्रहीराशनिनीलमराहुगोमेदकेतुलहसुनिया



जन्म कुंडली के अनुसार रत्न

लग्न राशिभाव के स्वामीग्रहरत्न
मेषलग्नेशमंगलमूंगा
पंचमेशसूर्यमाणिक्य
नवमेशगुरुपुखराज
वृषभलग्नेशशुक्रहीरा
पंचमेशबुधपन्ना
नवमेशशनिनीलम
मिथुनलग्नेशबुधपन्ना
पंचमेशशुक्रहीरा
नवमेशशनिनीलम
कर्कलग्नेशचंद्रमामोती
पंचमेशमंगलमूंगा
नवमेशगुरुपुखराज
सिंहलग्नेशसूर्यमाणिक्य
पंचमेशगुरुपुखराज
नवमेशमंगलमूंगा
कन्यालग्नेशबुधपन्ना
पंचमेशशनिनीलम
नवमेशशुक्रहीरा
तुलालग्नेशशुक्रहीरा
पंचमेशशनिनीलम
नवमेशबुधपन्ना
वृश्चिकलग्नेशमंगलमूंगा
पंचमेशगुरुपुखराज
नवमेशचंद्रमोती
धनुलग्नेशगुरुपुखराज
पंचमेशमंगलमूंगा
नवमेशसूर्यमाणिक्य
मकरलग्नेशशनिनीलम
पंचमेशशुक्रहीरा
नवमेशबुधपन्ना
कुंभलग्नेशशनिनीलम
पंचमेशबुधपन्ना
नवमेशशुक्रहीरा
मीनलग्नेशगुरुपुखराज
पंचमेशचंद्रमोती
नवमेशमंगलमूंगा
रत्न क्या है?
रत्न वे बहुमूल्य पत्थर हैं जो बहुत प्रभावशाली और आकर्षक होते हैं। अपने ख़ास गुणों के कारण रत्न का प्रयोग आभूषण निर्माण, फैशन, डिज़ाइनिंग और ज्योतिष आदि में किया जाता है। अपनी शुरुआती अवस्था में रत्न महज़ कुछ विशेष पत्थर के टुकडे होते हैं, लेकिन बाद में इन्हें बारीक़ी से तराशकर पॉलिशिंग के बाद बेशक़ीमती पत्थर बनाया जाता है। ज्योतिष के अनुसार रत्न में दैवीय ऊर्जा समायी हुई होती है जिससे मनुष्य जीवन का कल्याण होता है। ज्योतिष में ग्रह शांति के विभिन्न प्रकार के रत्नों को धारण किया जाता है।

रत्न ज्योतिष का महत्व
रत्न ज्योतिष का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है। ज़िंदगी में अक्सर मनुष्य को ग्रहों के बुरे प्रभाव की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वैदिक ज्योतिष में ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गये हैं, इनमें से एक उपाय है राशि रत्न धारण करना। रत्न को पहनने से ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। साथ ही जीवन में आ रही समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। हर राशि का अलग-अलग स्वभाव होता है, ठीक उसी प्रकार हर रत्न का भी सभी बारह राशियों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार रत्न ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

रत्न का पौराणिक इतिहास

अग्नि पुराण में ऐसा वर्णन आता है कि जब महाबली राक्षस वृत्रासुर ने देव लोक पर आक्रमण कर दिया। तब सभी देवता उसके आतंक से भयभीत होकर भगवान विष्णु के दरबार पहुँचे। उसके बाद भगवान विष्णु जी से सलाह पाकर देव लोक के स्वामी इन्द्र देव ने महर्षि दधीचि से वज्र बनाने हेतु उनकी हड्डियों का दान मांगा और इसी वज्र से देवताओं ने वृत्रासुर का संहार किया। कहा जाता है कि वज्र निर्माण के समय दधीचि की अस्थियों के कुछ अंश पृथ्वी पर गिर गए और उन्हीं से तमाम रत्नों की खानें बन गईं।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत की उत्पत्ति हुई तो उसे पाने के लिए असुरों और देवताओं के बीच संघर्ष होने लगा। इस छीना-छपटी में अमृत की कुछ बूदें पृथ्वी पर गिर गईं और इन्हीं बूंदों से रत्न की विभिन्न खानें बन गईं।

रत्न के प्रकार

भौगोलिक दृष्टि से रत्न तीन प्रकार के होते हैं। इनमें पहला रत्न खनिज रत्न है। खनिज रत्न खदानों से प्राप्त किए जाते हैं। दूसरे जैविक रत्न होते हैं जिन्हें समुद्र से प्राप्त किया जाता है और तीसरे वनस्पतिक रत्न होते हैं। हिन्दू प्राचीन ग्रंथों में उच्च कोटि के लभभग 84 प्रकार के रत्न बताए गए हैं। समय-समय पर बहुत से नए रत्नों की खोज भी हुई है। रत्न ज्योतिष में नवरत्न के अलावा भी कई अन्य रत्न भी है। नव रत्न में गोमेद, नीलम, पन्ना, पुखराज, माणिक्य, मूँगा, मोती, लहसुनिया और हीरा रत्न आते हैं।

नीलम रत्न - Neelam Stone
पन्ना रत्न - Panna Stone
मोती रत्न - Moti Stone
मूंगा रत्न - Moonga Stone
हकीक रत्न - Hakik Stone
लहसुनिया रत्न - Lehsunia Stone
पुखराज रत्न - Pukhraj Stone
गोमेद रत्न - Gomed Stone
माणिक्य रत्न - Manik Stone
फिरोज़ा रत्न - Firoza Stone
हीरा रत्न - Heera Stone



रत्न धारण की विधि

रत्न के वास्तविक लाभ पाने के लिए जातकों को रत्न विधि के अनुसार ही धारण करना चाहिए। ग्रह से संबंधित रत्न को विशेष विधि से पहना जाता है। इसके तहत जिस ग्रह से संबंधित रत्न को धारण करते हैं तो उस ग्रह से संबंधित मंत्रों का जाप तथा पूजा पाठ आदि की जाती है। रत्न को धारण करने से पूर्व उसे गंगा जल अथवा कच्चे दूध से शुद्ध करना चाहिए और इसे विशेष दिन में धारण किया जाता है। रत्न को किस धातु के साथ पहनना चाहिए यह भी जानना आवश्यक होता है। यदि आपको रत्न धारण करने की विधि नहीं मालूम है तो आप किसी अच्छे ज्योतिषी से सलाह ले सकते हैं।

रत्नों के लाभ

ज्योतिष में प्रत्येक रत्न को किसी विशेष उद्देश्य और लाभ के लिए पहना जाता है। जो व्यक्ति रत्न को धारण करता है उसे इसके कई लाभ लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे -

रत्न को ग्रह शांति के लिए धारण किया जाता है

रत्न के प्रभाव व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुख की प्राप्ती होती

रत्न धारण करने से जीवन पर ग्रहों के अनुकूल प्रभाव पड़ते हैं

रत्न के प्रभाव से जातक के जीवन में सकारात्म बदलाव होते हैं

रत्न जीवन में सुख-शांति, वैभव-समृद्धि को लेकर आते हैं

हीरा रत्न वैवाहिक सुख में वृद्धि करता है

माणिक्य रत्न समाज में मान-सम्मान और सार्वजनिक क्षेत्र में उच्च पद दिलाता है

पुखराज रत्न ज्ञान में वृद्धि करता है

मोती मन को एकाग्र करता है

मूंगा के प्रभाव से व्यक्ति के साहस और आत्म विश्वास में वृद्धि होती है

नीलम से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है

जो व्यक्ति पन्ना रत्न को धारण करता है उसका बौद्धिक विकास होता है

रत्न को धारण करने से व्यक्ति को विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है



माणिक्य प्रतिनिधित्व करता है सूर्य का , इसी प्रकार मोती चन्द्र का, मूंगा मंगल का, पन्ना बुद्ध का, पुखराज गुरु का, नीलम शनि का, गोमेद राहू का और लहसुनिया केतु का प्रतिनिधित्व करता है ! इन रत्नों को धारण करने से पहले यह जान लेना अति आवश्यक है की जो रत्न आप धारण करने जा रहे है वह आपकी कुंडली के अनुसार आपके पक्ष में हो ! अन्यथा विपक्ष में होने की स्थिति में वह लाभ की जगह नुक्सान भी कर सकता है! इसलिए जब भी आप कोई रत्न धारण करना चाहते है तो किसी अनुभवी ज्योतिष आचार्य की राय से ही इन्हें धारण करे!

रत्न भी बदल देते हैं मनुष्य की तकदीर

कहते हैं कि घूरे के दिन भी बदलते हैं तो इंसान के क्यों‍ नहीं। कहावत सच तो है लेकिन लंबा इंतजार करने से अच्छा है यदि आपकी कुंडली सही है तो रत्न धारण करने से अच्छी सफलता मिल सकती है। लेकिन रत्न धारण करने से पहले किसी पारंगत ज्योतिषी से सलाह लेना आवश्यक है।

आजकल कई ज्योतिषी राशि के अनुसार रत्न पहना देते हैं जो कभी-कभी नुकसानदायक भी हो सकता है। आप इस राशि के हैं तो यह रत्न पहन लीजिए। ऐसा कहकर वे रत्न पहना देते हैं। जबकि राशि के साथ ही राशि स्वामी ‍की स्थिति उसके बैठने का स्थान आदि भी बहुत महत्व रखते हैं। जातक को क्या आवश्यकता है, इस बात का ध्यान नहीं रखते।

रत्न पहनाने के ‍पहले उस ग्रह की नवांश व अन्य वर्गों में क्या स्थिति है, उसकी डिग्री क्या है? यह देखना जरूरी है। तभी जाकर सही रत्न पहनकर भरपूर लाभ उठाया जा सकता है। कहते हैं कि घूरे के दिन भी बदलते हैं तो इंसान के क्यों‍ नहीं। कहावत सच तो है लेकिन लंबा इंतजार करने से अच्छा है यदि आपकी कुंडली सही है तो रत्न धारण करने से अच्छी सफलता मिल सकती है।

आपकी जन्म पत्रिका में लग्नेश मित्र राशि में हो या भाग्य में मित्र का होकर बैठा हो या पंचम में स्वराशि का हो या मित्र राशि का हो। चतुर्थ भाव में मित्र का हो या उच्च का हो तब उससे संबंधित रत्न धारण करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।

भाग्य नवम भाव का स्वामी नवम में हो या स्वराशि का होकर बैठा हो या मित्र राशि का होकर लग्न, चतुर्थ, पंचम, तृतीय, दशम या एकादश में हो या उच्च का होकर द्वादश में हो तो उससे संबंधित रत्न पहनकर अच्छा लाभ उठाया जा सकता है। विद्या, संतान भाव को प्रबल करना हो तो उस भाव का स्वामी नवम में होकर मित्र राशि का हो तो उस भाव के स्वामी का रत्न व पंचम भाव का रत्न नवम भाव से संबंधित रत्न जिस उँगली में पहनते हों तो उसमें पहनने से संतान का भाग्य, विद्या दोनों बढ़ते हैं और मनोरंजन के साधनों में वृद्धि होती है।

मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है। चतुर्थ भाव का रत्न भी पहनकर माता, भूमि, भवन, जनता से संबंधित कार्यों में लाभ उठाया जा सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि नवांश में नीच का न हो, नहीं तो लाभ के बजाए नुकसान ही होता है। इसी प्रकार पंचमेश विद्या विचार शुभ हो तो उस रत्न से अच्छा लाभ मिल सकता है। यदि जो रत्न पहना जाए उसकी महादशा का या अंतर्दशा चर ही हो तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।

रत्न पहनने से पहले शुभ मुहूर्त में ही रत्न बनवाना चाहिए और प्राण-प्रतिष्ठा कर पहनना चाहिए। फिर देखिए कैसे नहीं रत्न तकदीर बदलने में कामयाब होता है।

रत्न एवं प्राकृतिक चिकित्सा

चिकित्सा केवल दवाई से होना चाहिए यह बात प्राचीन मान्यता के खिलाफ ही है। औषधि तो हमारी जीवन शक्ति (रेजिस्टेंस पॉवर) को कम ही करती है। योग, प्राणायाम, स्वमूत्र चिकित्सा, मक्खन, मिश्री (धागेवाली), तुकमरी मिश्री (अत्तारवालों के पास उपलब्ध होती है), धातु- सोना, चाँदी, ताँबा तथा लोहे के पानी से सूर्य-रश्मि चिकित्सा पद्धति (रंगीन शीशियों के तेल एवं पानी से), लौंग तथा मिश्री से चिकित्सा- ऐसे अनेक सरलतम साधन हैं, जिनसे बिना दवाई के हमारे शरीर का उपचार हो सकता है।

आज भी गौमूत्र चिकित्सा, अंकुरित चने-मूँग तथा मैथी दाने भोजन में लेने से, अधिक पानी पीने से आदि ये सभी ऐसे प्रयोग हैं, जिनसे यथाशीघ्र ही लाभ होता है। एक-एक गमले में एक-एक मुठ्ठी गेहूँ छोड़कर एक-एक दिन छोड़कर सात गमलों में जुआरे बोए जाएँ। इन जुआरों के रस से टी.बी., कैंसर जैसी बीमारियों को भी दबाया जा सकता है।

इसी प्रकार हमारे ऋषि-मुनियों ने रत्नों से भी कई बीमारियों के उपचार ज्योतिषी शास्त्र में बताए हैं। ये हमारे देश की ज्योतिष विद्या का एक अद्भुत चमत्कार ही है। रत्नों में प्रमुख 9 ग्रह के ये रत्न प्रमुख हैं : सूर्य- माणिक, चंद्र-मोती, मंगल- मूँगा, बुध- पन्ना, गुरु- पुखराज, शुक्र- हीरा, शनि-नीलम, राहू- लहसुनिया, केतु- लाजावत। मेष, सिंह व धनु राशि वाले कोई भी नग पहनें तो चाँदी में पहनना जरूरी है।

रत्नों में प्रमुख 9 ग्रह के ये रत्न प्रमुख हैं : सूर्य- माणिक, चंद्र-मोती, मंगल- मूँगा, बुध- पन्ना, गुरु- पुखराज, शुक्र- हीरा, शनि-नीलम, राहू- गोमेद, केतु- लहसुनिया। मेष, सिंह व धनु राशि वाले कोई भी नग पहनें तो चाँदी में पहनना जरूरी है क्योंकि चाँदी की तासीर ठंडी है।

इसी प्रकार कर्क, वृश्चिक, मीन, कुंभ इन राशि वालों को सोने में नग धारण करना चाहिए तथा मंगल का नग ताँबे में धारण करना चाहिए क्योंकि इन धातुओं की तासीर गरम है तथा राशियों की तासीर ठंडी है। इसके कारण इन तासीर वालों को जो शीत विकार होते हैं, उनको जल्दी ही लाभ होगा।

किन ग्रहों के रत्न पहने जाएँ

सामान्यत: रत्नों के बारे में भ्रांति होती है जैसे विवाह न हो रहा हो तो पुखराज पहन लें, मांगलिक हो तो मूँगा पहन लें, गुस्सा आता हो तो मोती पहन लें। मगर कौन सा रत्न कब पहना जाए इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता है। लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों का बलाबल, दशा-महादशाएँ आदि सभी का अध्ययन करने के बाद ही रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। यूँ ही रत्न पहन लेना नुकसानदायक हो सकता है।

मोती डिप्रेशन भी दे सकता है, मूँगा रक्तचाप गड़बड़ा सकता है और पुखराज अहंकार बढ़ा सकता है, पेट गड़बड़ कर सकता है।

सामान्यत: लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के (लग्न, नवम, पंचम) रत्न पहने जा सकते हैं जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर पाप प्रभाव में हो, अस्त हो या श‍त्रु क्षेत्री हो उन्हें प्रबल बनाने के लिए भी उनके रत्न पहनना प्रभाव देता है।

रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।

3, 6, 8, 12 के स्वामी ग्रहों के रत्न नहीं पहनने चाहिए। इनको शांत रखने के लिए दान-मंत्र जाप का सहारा लेना चाहिए। रत्न निर्धारित करने के बाद उन्हें पहनने का भी विशेष तरीका होता है। रत्न अँगूठी या लॉकेट के रूप में निर्धारित धातु (सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल) में बनाए जाते हैं।

उस ग्रह के लिए निहित वार वाले दिन शुभ घड़ी में रत्न पहना जाता है। इसके पहले रत्न को दो दिन कच्चे दूध में भिगोकर रखें। शुभ घड़ी में उस ग्रह का मंत्र जाप करके रत्न को सिद्ध करें। (ये जाप 21 हजार से 1 लाख तक हो सकते हैं) तत्पश्चात इष्ट देव का स्मरण कर रत्न को धूप-दीप दिया तो उसे प्रसन्न मन से धारण करें। इस विधि से रत्न धारण करने से ही वह पूर्ण फल देता है। मंत्र जाप के लिए भी रत्न सिद्धि के लिए किसी ज्ञानी की मदद भी ली जा सकती है।

शनि और राहु के रत्न कुंडली के सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही पहनना चाहिए अन्यथा इनसे भयंकर नुकसान भी हो सकता है।

रत्नों से सम्बंधित प्राचीन मान्यताएं एवं प्रमाण

हमारे प्राचीन धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रन्थों में जिनमें रामायण, महाभारत आदि सम्मिलित हैं, रत्नों का जिक्र है।

देवी-देवताओं तथा महापुरुषों के चित्रों में हम उनको बहुमूल्य रत्न मालाओं तथा विभिन्न रत्नों से सुसज्जित देखते हैं। ये चित्र पुराणों से प्राप्त विवरणों के अनुसार ही बनाये जाते हैं।

अग्नि पुराण, गरुण पुराण, देवी भागवत तथा अन्य प्राचीन ग्रंथों में हीरा, माणिक्य, नीलम, पन्ना आदि विविध महारत्नों तथा रत्नों के नाम, प्राप्ति स्थान और उनके विशेष लक्षणों का उल्लेख है।

समुद्र मंथन की कथा के अनुसार जब देवताओं और असुरों के समुद्र मंथन किया तो 14 रत्न पदार्थ निकले, उनमें कौस्तुभ मणि एक रत्न था। मंथन से निकले ‘अमृत’ को लेकर सुरों-असुरों का संघर्ष हुआ। छीना-झपटी में अमृत की बूंदें जहां-जहां गिरीं वहां पृथ्वी की मिट्टी में विविध प्रकार के रत्न बन गए।

इसप्रकार रत्नों की उत्पत्ति के संबंध में कितनी ही प्राचीन मान्यताएं हैं और उनसे संबंधित पौराणिक कथाएं प्रसिद्ध हैं। रत्नों में निहित दैवी-शक्ति को सभी एक मत से स्वीकार करते हैं। इसीलिए रत्नों का प्रयोग आभूषणों के अलावा अंगूठियों और ताबीजों में भी किया जाता है। इन रत्नों को धारण करने से विपत्तियों और रोग आदि से मुक्ति मिलती है।

रत्न, उपरत्न एवं प्रजातियां

जितने भी रत्न या उपरत्न है वे सब किसी न किसी प्रकार के पत्थर है। चाहे वे पारदर्शी हो, या अपारदर्शी, सघन घनत्व के हो या विरल घनत्व के, रंगीन हो या सादे…। और ये जितने भी पत्थर है वे सब किसी न किसी रासायनिक पदार्थों के किसी आनुपातिक संयोग से बने हैं। विविध भारतीय एवं विदेशी तथा हिन्दू एवं गैर हिन्दू धर्म ग्रंथों में इनका वर्णन मिलता है।

आधुनिक विज्ञान ने अभी तक मात्र शुद्ध एवं एकल 128 तत्वों को पहचानने में सफलता प्राप्त की है। जिसका वर्णन मेंडलीफ की आधुनिक आवर्त सारणी (Periodic Table) में किया गया है। किन्तु ये एकल तत्व है अर्थात् इनमें किसी दूसरे तत्व या पदार्थ का मिश्रण नहीं प्राप्त होता है। किन्तु एक बात अवश्य है कि इनमें कुछ एक को समस्थानिक (Isotopes) के नाम से जाना जाता है।

प्राचीन संहिता ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसमें एकल तत्व मात्र 108 ही बताए गए हैं। इनसे बनने वाले यौगिकों एवं पदार्थों की संख्या 39000 से भी ऊपर बताई गई हैं। इनमें कुछ एक आज तक या तो चिह्नित नहीं हो पाए है, या फिर अनुपलब्ध हैं। इनका विवरण, रत्नाकर प्रकाश, तत्वमेरू, रत्न वलय, रत्नगर्भा वसुंधरा, रत्नोदधि आदि उदित एवं अनुदित ग्रंथों में दिया गया है

रत्नों का परिचय :-

माणिक्य : यह रत्न ग्रहों के राजा माने जाने वाले सूर्य महाराज को बलवान बनाने के लिए पहना जाता है। इसका रंग हल्के गुलाबी से लेकर गहरे लाल रंग तक होता है। धारक के लिए शुभ होने की स्थिति में यह रत्न उसे व्यवसाय में लाभ, प्रसिद्धि, रोगों से लड़ने की शारीरिक क्षमता, मानसिक स्थिरता, राज-दरबार से लाभ तथा अन्य प्रकार के लाभ प्रदान कर सकता है। किन्तु धारक के लिए अशुभ होने की स्थिति में यह उसे अनेक प्रकार के नुकसान भी पहुंचा सकता है। माणिक्य को आम तौर पर दायें हाथ की कनिष्का उंगली में धारण किया जाता है। इसे रविवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण करना चाहिए।

मोती : यह रत्न सब ग्रहों की माता माने जाने वाले ग्रह चन्द्रमा को बलवान बनाने के लिए पहना जाता है। मोती सीप के मुंह से प्राप्त होता है। इसका रंग सफेद से लेकर हल्का पीला, हलका नीला, हल्का गुलाबी अथवा हल्का काला भी हो सकता है। ज्योतिष लाभ की दृष्टि से इनमें से सफेद रंग उत्तम होता है तथा उसके पश्चात हल्का नीला तथा हल्का पीला रंग भी माननीय है। धारक के लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे मानसिक शांति प्रदान करता है तथा विभिन्न प्रकार की सुख सुविधाएं भी प्रदान कर सकता है। मोती को आम तौर पर दायें हाथ की अनामिका या कनिष्का उंगली में धारण किया जाता है। इसे सोमवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण करना चाहिए।

पीला पुखराज : यह रत्न समस्त ग्रहों के गुरु माने जाने वाले बृहस्पति को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है। इसका रंग हल्के पीले से लेकर गहरे पीले रंग तक होता है। धारक के लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे धन, विद्या, समृद्धि, अच्छा स्वास्थय तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की तर्जनी उंगली में गुरुवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है।

हीरा ( सफेद पुखराज ) : यह रत्न शुक्र को बलवान बनाने के लिए धारण किया जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे सांसरिक सुख-सुविधा, ऐशवर्य, मानसिक प्रसन्नता तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। हीरे के अतिरिक्त शुक्र को बल प्रदान करने के लिए सफेद पुखराज भी पहना जाता है। शुक्र के यह रत्न रंगहीन तथा साफ़ पानी या साफ़ कांच की तरह दिखते हैं। इन रत्नों को आम तौर पर दायें हाथ की मध्यामा उंगली में शुक्रवार की सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है।

लाल मूंगा : यह रत्न मंगल को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे शारीरिक तथा मानसिक बल, अच्छे दोस्त, धन तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। मूंगा गहरे लाल से लेकर हल्के लाल तथा सफेद रंग तक कई रगों में पाया जाता है, किन्तु मंगल ग्रह को बल प्रदान करने के लिए गहरा लाल अथवा हल्का लाल मूंगा ही पहनना चाहिए। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की कनिष्का अथवा तर्जनी उंगली में मगलवार को सुबह स्नान करने के बाद पहना जाता है।

पन्ना : यह रत्न बुध ग्रह को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे अच्छी वाणी, व्यापार, अच्छी सेहत, धन-धान्य तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। पन्ना हल्के हरे रंग से लेकर गहरे हरे रंग तक में पाया जाता है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की अनामिका उंगली में बुधवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है।

नीलम : शनि महाराज का यह रत्न नवग्रहों के समस्त रत्नों में सबसे अनोखा है तथा धारक के लिए शुभ होने की स्थिती में यह उसे धन, सुख, समृद्धि, नौकर-चाकर, व्यापरिक सफलता तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है किन्तु धारक के लिए शुभ न होने की स्थिती में यह धारक का बहुत नुकसान भी कर सकता है। इसलिए इस रत्न को किसी अच्छे ज्योतिषि के परामर्श के बिना बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए। इस रत्न का रंग हल्के नीले से लेकर गहरे नीले रंग तक होता है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाध की मध्यमा उंगली में शनिवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है।

गोमेद : यह रत्न राहु महाराज को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे अक्समात ही कही से धन अथवा अन्य लाभ प्रदान कर सकता है। किन्तु धारक के लिए अशुभ होने की स्थिति में यह रत्न उसका बहुत अधिक नुकसान कर सकता है और धारक को अल्सर, कैंसर तथा अन्य कई प्रकार की बिमारियां भी प्रदान कर सकता है। इसलिए इस रत्न को किसी अच्छे ज्योतिषि के परामर्श के बिना बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए। इसका रंग हल्के शहद रंग से लेकर गहरे शहद रंग तक होता है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की मध्यमा अथवा अनामिका उंगली में शनिवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है।
लहसुनिया : यह रत्न केतु महाराज को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे व्यसायिक सफलता, आध्यात्मिक प्रगति तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है किन्तु धारक के लिए अशुभ होने की स्थिति में यह उसे घोर विपत्तियों में डाल सकता है तथा उसे कई प्रकार के मानसिक रोगों से पीड़ित भी कर सकता है। इसलिए इस रत्न को किसी अच्छे ज्योतिषि के परामर्श के बिना बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए। इसका रंग लहसुन के रंग से लेकर गहरे भूरे रंग तक होता है किन्तु इस रत्न के अंदर दूधिया रंग की एक लकीर दिखाई देती है जो इस रत्न को हाथ में पकड़ कर धीरे-धीरे घुमाने के साथ-साथ ही घूमना शुरू कर देती है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की मध्यमा उंगली में शनिवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है।

रत्न धारण करने की विधि—-

अपने लिए उपयुक्त रत्न जान लेने के पश्चात आपके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि इन रत्नों को धारण करने की सही विधि क्या है। तो आइए आज इसी विषय पर चर्चा करते हैं कि किसी भी रत्न को धारण करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले यह जान लें कि प्रत्येक रत्न को धारण करने के लिए सबसे बढ़िया दिन कौन सा है। प्रत्येक रत्न को धारण करने के लिए उत्तम दिन इस प्रकार हैं :

माणिक्य : रविवार
मोती : सोमवार
पीला पुखराज : गुरुवार
सफ़ेद पुखराज : शुक्रवार
लाल मूंगा : मंगलवार
पन्ना : बुधवार
नीलम : शनिवार
गोमेद : शनिवार
लहसुनिया : शनिवार

आइए अब इन्हें धारण करने की विधि पर विचार करें। सबसे पहले यह जान लेते हैं कि किसी भी रत्न को अंगूठी में जड़वाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। जिस अंगूठी में आप रत्न को जड़वाना चाहते हैं, उसका नीचे का तला खुला होना चाहिए तथा आपका रत्न उस खुले तले में से हलका सा नीचे की तरफ निकला होना चाहिए जिससे कि वह आपकी उंगली को सही प्रकार से छू सके तथा अपने से संबंधित ग्रह की उर्जा आपकी उंगली के इस सम्पर्क के माध्यम से आपके शरीर में स्थानांतरित कर सके। इसलिए अपने रत्न से जड़ित अंगूठी लेने पहले यह जांच लें कि आपका रत्न इस अंगूठी में से हल्का सा नीचे की तरफ़ निकला हुआ हो। अंगूठी बन जाने के बाद सबसे पहले इसे अपने हाथ की इस रत्न के लिए निर्धारित उंगली में पहन कर देखें ताकि अंगूठी ढीली अथवा तंग होने की स्थिति में आप इसे उसी समय ठीक करवा सकें।

अंगूठी को प्राप्त कर लेने के पश्चात इसे धारण करने से 24 से 48 घंटे पहले किसी कटोरी में गंगाजल अथवा कच्ची लस्सी में डुबो कर रख दें। कच्चे दूध में आधा हिस्सा पानी मिलाने से आप कच्ची लस्सी बना सकते हैं किन्तु ध्यान रहे कि दूध कच्चा होना चाहिए अर्थात इस दूध को उबाला न गया हो। गंगाजल या कच्चे दूध वाली इस कटोरी को अपने घर के किसी स्वच्छ स्थान पर रखें। उदाहरण के लिए घर में पूजा के लिए बनाया गया स्थान इसे रखने के लिए उत्तम स्थान है। किन्तु घर में पूजा का स्थान न होने की स्थिति में आप इसे अपने अतिथि कक्ष अथवा रसोई घर में किसी उंचे तथा स्वच्छ स्थान पर रख सकते हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस कटोरी को अपने घर के किसी भी शयन कक्ष में बिल्कुल न रखें। रत्न धारण करने के इस चरण को रत्न के शुद्धिकरण का नाम दिया जाता है।

इसके पश्चात इस रत्न को धारण करने के दिन प्रात उठ कर स्नान करने के बाद इसे धारण करना चाहिए। वैसे तो प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व का समय रत्न धारण करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है किन्तु आप इसे अपने नियमित स्नान करने के समय पर भी धारण कर सकते हैं। स्नान करने के बाद रत्न वाली कटोरी को अपने सामने रख कर किसी स्वच्छ स्थान पर बैठ जाएं तथा रत्न से संबंधित ग्रह के मूल मंत्र, बीज मंत्र अथवा वेद मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद अंगूठी को कटोरी में से निकालें तथा इसे अपनी उंगली में धारण कर लें। उदाहरण के लिए यदि आपको माणिक्य धारण करना है तो रविवार की सुबह स्नान के बाद इस रत्न को धारण करने से पहले आपको सूर्य के मूल मंत्र, बीज मंत्र अथवा वेद मंत्र का जाप करना है। रत्न धारण करने के लिए किसी ग्रह के मूल मंत्र का जाप माननीय होता है तथा आप इस ग्रह के मूल मंत्र का जाप करने के पश्चात रत्न को धारण कर सकते हैं। किन्तु अपनी मान्यता तथा समय की उपलब्धता को देखकर आप इस ग्रह के बीज मत्र या वेद मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। रत्न धारण करने के इस चरण को रत्न की प्राण-प्रतिष्ठा का नाम दिया जाता है।
ज्योतिष के अनुसार रत्न का पूर्ण शुभ फल पाने के लिए इसे शुक्ल पक्ष में निर्दिष्ट वार एवं समय में ही धारण करना चाहिए निर्दिष्ट नक्षत्र में धारण करने से रत्न और प्रभावशाली हो जाता है इसे निम्नलिखित तालिका में दिये गये भार या उससे अधिक भार का लेकर जो पौना न हो जैसे ४-१/४ रत्ती आदि उसे निर्दिष्ट धातु में इस प्रकार जड़वाएं कि रत्न नीचे से अंगुली को स्पर्श करे|

धारण करते समय अपने इष्ट देव का श्रद्धापूर्वक ध्यान करना चाहिए| तत्पश्चात अंगूठी को कच्चे दूध एवं गंगाजल में धोकर शुद्ध करना चाहिए एवं धूप दीप जलाकर संबंधित ग्रह के मंत्र का कम से कम एक माला जप करना चाहिए फिर अंगूठी को धूप देकर निर्दिष्ट अंगुली में धारण करना चाहिए| अंगूठी धारण के पश्चात यथाशक्ति संबंधित ग्रह के पदार्थों का दान करना चाहिए| अगर पेंडन्ट धारण करे तो भी शरीर को स्पर्श करता हुआ होना चाहिए|

यदि आप अन्य कोई रत्न पहले से पहने हुए है तो यह ध्यान रखे कि परस्पर विरोधी रत्न एक साथ न पहने| यह आप निम्नलिखित तालिका से देख सकते हैं| विधिपूर्वक रत्न धारण करने से रत्न के शुभ फल प्रचुर मात्रा में शीघ्र मिलते हैं|

नवग्रह रत्न धारण विधि


रत्नग्रहभारधातुअंगुलीवारसमय
माणिक्यसूर्य३ रत्तीसोनाअनामिकारविप्रातः
मोतीचन्दा३ रत्तीचाँदीकनिष्कासोमप्रातः
मूँगामंगल६ रत्तीचाँदीअनामिकामंगलप्रातः
पन्नाबुध४ रत्तीसोनाकनिष्काबुधप्रातः
पुखराजगुरु४ रत्तीसोनातर्जनीगुरुप्रातः
हीराशुक्र१/४ रत्तीप्लेटिनमकनिष्काशुक्रप्रातः
नीलमशनि४ रत्तीपंचधातुमध्यशनिसंध्या
गोमेदराहू५ रत्तीअष्टधातुमध्यशनिसूर्यास्त
लहसुनियाकेतु६ रत्तीचाँदीअनामिकागुरुसूर्यास्त
रत्नमंत्रसाथ में निषेध रत्न
माणिक्यऊँ घृणी सूर्याय नमःहीरा, नीलम, गोमेद
मोतीऊँ सों सोमाय नमःगोमेद
मूंगाऊँ अं अंगारकाय नमःहीरा, गोमेद, नीलम
पन्नाऊँ बुं बुधाय नमःहीरा, गोमेद, नीलम
पुखराजऊँ बृं वृहस्पते नमःहीरा, गोमेद
हीराऊँ शुं शुक्राय नमछमाणिक्य, मुंगा, पोखराज
नीलमऊँ शं शनैश्चराय नमः" " "
गोमेदऊँ रां राहवे नमः" मोती, मुंगा

रत्ननक्षत्रदान पदार्थ
माणिक्यकृतिका, उफा, उषागेहूं, गुड, चन्दन, लाल वस्त्र
मोतीरोहिणी, हस्त, श्रवणचावल, चीनी, चाँदी, श्वेत वस्त्र
मूंगामृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठागेहूं, गुड़, तांबा, लाल वस्त्र
पन्नाअश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवतीमुंग, कस्तूरी, कांसा, हरित वस्त्र
पुखराजपुनर्वसु, विशाखा, पू.भाद्रचने की दाल, हल्दी, पीला वस्त्र
हीराभरणी, पू.फा. पू.षा.चावल, चाँदी, घी, श्वेत वस्त्र
नीलमपुष्य, अनुराधा, उ.भाद्रउड़द, काले तिल, तेल काले वस्त्र
गोमेदआर्द्रा, स्वाति, शतभिषातिल, तेल, कम्बल, नीले वस्त्र
लहसुनियाअश्विनी, मघा, मूलसप्तधान्य, नारियल, धूम्र वस्त्र


सावधानियां

● नवरत्नों को स्वयं धारण न करें। इन्हें किसी विद्वान ज्योतिषी से परामर्श के बाद धारण करें।

● ज्योतिषी आपकी जन्मकुण्डली से जांच कर आपके लिए उचित रत्न की सलाह देंगे।

● रत्न किसी पारखी व्यक्ति से ही खरीदें। क्योंकि इनके नकली होने का खतरा होता है।

● नवरत्नों को ज्योतिषी के बताये मुहुर्त पर ही धारण करें जिससे आपको अधिक लाभ प्राप्त हो सके।


रत्न संबंधी सावधानियाँ

रत्न हमेशा से मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करते आए हैं। सदियों से लेकर आज तक लोगों ने रत्नों का प्रयोग आभूषणों, वस्त्रों, घर तथा महलों, ताज और तख़्तों आदि की शोभा बढ़ाने के लिए किया है। ज्योतिषीय उपाय के रूप में लोगों को इसके कई लाभ भी प्राप्त होते हैं। परंतु यदि रत्न किसी व्यक्ति के अनुकूल नही होता है तो यह उसे नकारात्मक फल प्रदान करता है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति के जीवन में कई कठिनाइयाँ आती हैं। उसे आर्थिक, शारीरिक और मानसिक क्षति पहुँचती है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि रत्न को किसी ज्योतिषीय परामर्श के बाद ही धारण करना चाहिए।

राशि रत्न क्यों आवश्यक है?
जन्म कुंडली के अनुसार किसी जातक की राशि उसके जन्म के समय ग्रह और नक्षत्र की स्थिति के अनुसार पड़ती है। इस कारण प्रत्येक राशि का गुण व धर्म दूसरी राशि से भिन्न होता है। ठीक इसी प्रकार प्रत्येक रत्न की ख़ास विशेषता होती है और वह दूसरे रत्न से भिन्न होता है। राशि रत्न के अनुसार हर राशि के लिए एक विशेष रत्न होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि व्यक्ति राशि के अनुकूल रत्न धारण नहीं करता है तो उसे इसके नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं। अतः रत्न राशि के अनुसार जातकों को अपनी राशि के अनुसार रत्न को पहनना चाहिए। इसलिए रत्न धारण करने से पूर्व ज्योतिषीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए।

पुरातन काल से ही रत्नों का प्रचलन रहा है | मानिक मोती मूंगा पुखराज पन्ना हीरा और नीलम ये सब मुख्य रत्न हैं | इनके अतिरिक्त और भी रत्न हैं जो भाग्यशाली रत्नों की तरह पहने जाते हैं | इनमे गोमेद, लहसुनिया, फिरोजा, लाजवर्त आदि का भी प्रचलन है | रत्नों में ७ रत्नों को छोड़कर बाकी को उपरत्न समझा जाता है | मानिक मोती मूंगा पुखराज पन्ना हीरा और नीलम लहसुनिया और गोमेद ये सब ९ ग्रहों के प्रतिनिधित्व के आधार पर पहने जाते हैं |

ग्रह और उनके रत्न इस प्रकार हैं—
मानिक मोती मूंगा पन्ना पुखराज हीरा नीलम गोमेद लहसुनिया
सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहू केतु
असली रत्न मेहेंगे होने के कारण लोग उप्रत्नों को उनके स्थान पर पहन लेते हैं | किताबों में लिखा है कि उपरत्न कम प्रभाव देते हैं |

सभी रत्न नौ ग्रहों के अंतर्गत आते हैं | सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहू केतु यह सब ग्रह जन्मकुंडली के अनुसार व्यक्ति को शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं | जन्म कुंडली चक्र में १२ स्थान होते हैं जिन्हें घर या भाव भी कहा जाता है | बारह भावों में सूर्यादि ग्रहों की स्थिति से निर्धारण किया जा सकता है कि कौन सा रत्न व्यक्ति को सर्वाधिक लाभ देगा | पिछले ३० वर्षों के अनुभव अनुभव के आधार पर मैंने पाया है कि यदि कोई ग्रह आपके लिए शुभ है और उसका पूरा फल आपको नही मिल रहा तो उस ग्रह से सम्बंधित रत्न धारण कर लीजिये | आप पाएंगे कि एक ही रत्न ने आपके जीवन को नई दिशा दे दी है और आपकी मानसिकता में परिवर्तन आया है | केवल एक ही रत्न काफी है आपका भाग्य बदलने के लिए |

विभिन्न प्रकार की प्रचलित मान्यताओ के अनुसार विशिष्ठ सिधान्त है नव रतन धारण करने के सरल और सहज उपाए इस प्रकार है।

१- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म राशी , जन्म दिन , जन्म मास , जन्म नक्षत्र को ध्यान में रखते हुए ही रत्न धरण किया जाना चाहिए।

२- लग्नेश , पंचमेश , सप्तमेश , भाग्येश और कर्मेश के क्रम के अनुसार एवम महादशा , प्रत्यंतर दशा के अनुसार ही रत्न धारण करना चाहिए।

३ – छटा, आठवा और बरवा भाव को कुछ विद्वान मारकेश मानते है , मारकेश रत्न कभी धारण न करे।

४- रत्न का वजन पोने रत्ती में नही होना चाहिए। पोनरत्ती धारण करने से व्यक्ति कभी फल फूल नही पाता है। ऐसा व्यक्ति का जीवन हमेशा पोना ही रहता है

५- जहाँ तक रत्न हमेशा विधि विधान से तथा प्राण प्रतिष्ठा करवा कर , शुभ वार , शुभ समय अथवा सर्वार्ध सिद्धि योग , अमृत सिद्धि योग या किसी भी पुष्प नक्षत्र में ही शुभ फल देता है।

६- जहा तक संभव हो रत्न सार्वशुद्ध ख़रीदे और धारण करे और दोष पूर्ण रत्न न ख़रीदे जैसे दागदार , चिरादार , अन्य दो रंगे , खड्डा , दाडाक दार , अपारदर्शी (अंधे) रत्न अकाल मृत्यु का घोतक होते है
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आइये जाने “मोती” रत्न के प्रभाव और परिणाम–

मोती कर्क लग्न का आजीवन रत्न है एवम भाग्येश रत्न पुखराज है। मोती रत्न चन्द्रमा की शांति एवम चन्द्रमा को बलवान बनाने के लिए धारण किया जाता है किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र बलिष्ठ एवम कमजोर हो सकता है। मान सागरीय के मतानुसार चन्द्रमा को रानी भी कहा गया है। बलिष्ठ चन्द्रमा से व्यकि को राज कृपा मिलती है , उसके राजकीय कार्यो में सफलता मिलती है , मन को हर्षित करता है, विभिन्न प्रकार की चिन्ताओ से मुक्त करता है | ज्योतिष् शास्त्र में चंद्रमा को ब्रह्मांड का मन कहा गया है. हमारे शरीर में भी चंद्रमा हमारे मन व मस्तिष्क का कारक है, विचारों की स्थिरता का प्रतीक है | मन ही मनुष्य का सबसे बड़ा दोस्त या दुश्मन है |माता लक्ष्मी के आशीर्वाद से भरपूर मोती रत्न पहनने से आप लक्ष्मी को अपने द्वार पर आमंत्रित करेंगे। अगर आप की कुंडली में चंद्रमा कमज़ोर है, तो उस को सबल बनाने में आप की मदद करेगा। इस के अलावा अनिद्रा व मधुमेह को नियंत्रण में लाने में भी यह मदद करता है। मोती रत्न आप की याददाश्त को बल देता है। आप के मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है। इस के अलावा मोती यौन जीवन में शक्ति प्रदान करने के लिए भी जाना जाता है एवं आप के वैवाहिक जीवन को सुंदर बनाता है।

मोती चंद्रमा का रत्न है. कहा जाता है :-
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाती एक, गुण तीन|
जैसी संगत बैठियें, तेसोई फल दीन ||

अर्थात स्वाती नक्षत्र के समय बरसात की एक बूंद घोघे के मुख में समाती है तब वह मोती बन जाता है. वही बूंद केले में जा कर कपूर और साँप के मूह में जा कर हाला हाल विष बनती है |

रसायनिक दृष्टि से इसमे , केल्षीयम, कार्बन और आक्सीज़न,यह तीन तत्व पाए जाते है. आयुर्वेद के अनुसार मोती में 90% चूना होता है, इसलिए कैल्शियम् की कमी के कारण जो रोग उत्पन्न होते है उनमें लाभ करता है. नेत्र रोग, स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए, पाचन शक्ति को तेज़ करने के लिए व हृदय को बल देने के लिए मोती धारण करना चाहिए | सामान्यत: चंद्रमा क्षीण होने पर मोती पहनने की सलाह दी जाती है मगर हर लग्न के लिए यह सही नहीं है। ऐसे लग्न जिनमें चंद्रमा शुभ स्थानों (केंद्र या‍ त्रिकोण) का स्वामी होकर निर्बल हो,ऐसे में ही मोती पहनना लाभदायक होता है। अन्यथा मोती भयानक डिप्रेशन, निराशावाद और आत्महत्या तक का कारक बन सकता है।


सामान्य तौर पर लोग मोती रत्न पहन लेते है , जब उनसे पूछा जाता है की यह रत्न आपने क्यों पहना तो 95 प्रतिशत लोगो का जबाब होता है की ” मुझे गुस्सा बहुत आता है , गुस्सा शांत रहे इसलिए पहना है” यह बिलकुल गलत है ! मोती रत्न चन्द्रमा ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है , और यह ग्रह आपकी जन्मकुंडली में शुभ भी हो सक्ता है और अशुभ भी ! यदि चंद्रमा शुभ ग्रहों के साथ शुभ ग्रहों की राशि में और शुभ भाव में बैठा होगा तो निश्चित ही मोती रत्न आपको फायदा पहुचाएगा ! इसके विपरीत अशुभ ग्रहों के साथ होने से शत्रु ग्रहों के साथ होने से मोती नुसकान भी पंहुचा सकता है |

जैसे मोती रत्न को यदि मेष लग्न का जातक धारण करे, तो उसे लाभ प्राप्त होगा। कारण मेष लग्न में चतुर्थ भाव का स्वामी चंद्र होता है। चतुर्थेश चंद्र लग्नेश मंगल का मित्र है। चतुर्थ भाव शुभ का भाव है, जिसके परिणामस्वरूप वह मानसिक शांति, विद्या सुख, गृह सुख, मातृ सुख आदि में लाभकारी होगा। यदि मेष लग्न का जातक मोती के साथ मूंगा धारण करे, तो लाभ में वृद्धि होगी।

मोती, चन्द्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है! कुंडली में यदि चंद्र शुभ प्रभाव में हो तो मोती अवश्य धारण करना चाहिए | चन्द्र मनुष्य के मन को दर्शाता है, और इसका प्रभाव पूर्णतया हमारी सोच पर पड़ता है| हमारे मन की स्थिरता को कायम रखने में मोती अत्यंत लाभ दायक सिद्ध होता है| इसके धारण करने से मात्री पक्ष से मधुर सम्बन्ध तथा लाभ प्राप्त होते है! मोती धारण करने से आत्म विश्वास में बढहोतरी भी होती है | हमारे शरीर में द्रव्य से जुड़े रोग भी मोती धारण करने से कंट्रोल किये जा सकते है जैसे ब्लड प्रशर और मूत्राशय के रोग , लेकिन इसके लिए अनुभवी ज्योतिष की सलाह लेना अति आवशयक है, क्योकि कुंडली में चंद्र अशुभ होने की स्तिथि में मोती नुक्सान दायक भी हो सकता है | पागलपन जैसी बीमारियाँ भी कुंडली में स्थित अशुभ चंद्र की देंन होती है , इसलिए मोती धारण करने से पूर्व यह जान लेना अति आवशयक है की हमारी कुंडली में चंद्र की स्थिति क्या है ? छोटे बच्चो के जीवन से चंद्र का बहुत बड़ा सम्बन्ध होता है क्योकि नवजात शिशुओ का शुरवाती जीवन , उनकी कुंडली में स्थित शुभ या अशुभ चंद्र पर निर्भर करता है! यदि नवजात शिशुओ की कुंडली में चन्द्र अशुभ प्रभाव में हो तो बालारिष्ठ योग का निर्माण होता है | फलस्वरूप शिशुओ का स्वास्थ्य बार बार खराब होता है, और परेशानिया उत्त्पन्न हो जाती है , इसीलिए कई ज्योतिष और पंडित जी अक्सर छोटे बच्चो के गले में मोती धारण करवाते है | कुंडली में चंद्रमा के बलि होने से न केवल मानसिक तनाव से ही छुटकारा मिलता है वरन् कई रोग जैसे पथरी, पेशाब तंत्र की बीमारी, जोड़ों का दर्द आदि से भी राहत मिलती है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की स्त्रियो के नथुनी में मोती धारण करने से लज्जा लावारण अखंड सोभाग्य की प्राप्ति होती है और पति पत्नी में प्रेम प्रसंग या प्रेमिका को पाने के लिए मोती रत्न धारण करने से प्रेम परवान चढ़ाता है। मोती रत्न धारण करने से उदर रोग भी ठीक होता है जिस जातक का बलिष्ठ चन्द्रमा हो , सुख और समृद्धि प्रदान कर रहा हो , माता की लम्बी आयु वाले व्यक्तिओ को चन्द्र की वास्तुओ का दान नही लेना चाहिए | द्रव्य से जुड़े व्यावसायिक और नोकरी पेशा लोगों को मोती अवश्य धारण करना चाहिए , जैसे दूध और जल पेय आदि के व्यवसाय से जुड़े लोग , लेकिन इससे पूर्व कुंडली अवश्य दिखाए |


वृषभ लग्न के जातकों को मोती से हमेशा दूरी बनाए रखना चाहिए, क्योंकि इस लग्न के जातकों के लिए मोती शुभता प्रदान नहीं करता है। मोती यूं तो शांति का कारक माना गया है लेकिन मोती को भी बगैर ज्योतिषीय सलाह से बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए। इसी तरह मिथुन लग्न वालों के लिए भी मोती अशुभ है तो वहीं सिंह लग्न के लिए भी मोती का प्रभाव अशुभ रूप से ही सामने आता है।
ज्योतिष् शास्त्र के अनुसार रत्नों का हमारे जीवन पर विशेष महत्व रहता है. कोई भी रत्न हमारे जीवन पर किसी न किसी रूप में प्रभाव डालता है. यदि वह शुभ ग्रह का हो तो जीवन सुखमय व परिपूर्ण लगने लगता है और यदि वह ग्रह अशुभ हो तो जीवन में कठिनाइयां बढ़ती जाती है |

—अमावस्या के दिन जन्में जातक मोती धारण करेंगे तो उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
– राहू के साथ ग्रहण योग निर्मित होने पर मोती अवश्य ग्रहण धारण करना चाहिए।
– कुंडली में चंद्र छठे अथवा आठवें भाव में हो तो मोती पहनने से सकारात्मकता का संचार होता है।
– कारक अथवा लग्नेश चंद्र नीच का हो तो मोती पहनें।

इसके अलावा धनु लग्न में जन्में व्यक्ति को भी मोती पहनने से हमेशा हानि ही सामने आती हे तो वहीं ऐसी ही अनिष्टकारी स्थिति कुंभ लग्न वालों के लिए भी कही जाती है। मोती के साथ न तो हीरा धारण करना चाहिए और न ही पन्ना या नीलम या फिर गोमेद मोती के साथ अनुकुलता प्रदान करता है। क्योंकि उपरोक्त सभी रत्न मोती के विपरित स्वभाव वाले है।यदि चंद्रमा कमज़ोर स्थिति में हो मनुष्य में बैचेनी, दिमागी अस्थिरता, आत्मविश्वास की कमी होती है और इसी कमी के चलते वह बार-बार अपना लक्ष्य बदलता रहता है. जिस के कारण सदैव असफलता ही हाथ लगती है. चंद्रमा आलस्य, कफ, दिमागी असंतुलन, मिर्गी, पानी की कमी, आदि रोग उत्पन्न करता है . यह पानी का प्रतिनिधि ग्रह है. मोती की उत्पत्ति भी पानी में और पानी के द्वारा ही होती है |चंद्रमा यदि आपकी कुंडली के अनुसार शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति शारीरिक रूप से पुष्ट, सुंदर, विनोद प्रिय , सहनशील, भावनाओं की कद्र करने वाला, सच्चा होता है|

यदि आप चंद्र देव का रत्न मोती धारण करना चाहते है, तो 5 से 8 कैरेट के मोती को चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम सोमवार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी को दूध, गंगा जल, शक्कर और शहद के घोल में डाल दे | उसके बाद पाच अगरबत्ती चंद्रदेव के नाम जलाये और प्रार्थना करे की हे चन्द्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न, मोती धारण कर रहा हूँ , कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे, तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर “ॐ सों सोमाय नम:” मंत्र का 108 बार जप करते हुए अंगूठी को शिवजी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका ऊँगली में धारण करे | यथा संभव मोती धारण करने से पहले किसी ब्राह्मण ज्योतिषी से अपनी कुंडली में चंद्रमा की शुभता का अशुभता के बारे में पूरी जानकारी लेनी चाहिए. मोती रत्न शुक्ल पक्ष के सोमवार या किसी विशेष महूर्त के दिन ब्राह्मण के द्वारा शुद्धीकरण व प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही धारण करना चाहिए |

वैसे मोती अपना प्रभाव जिस दिन मोती धारण किया जाता है उस दिन से 4 दिन के अंदर-अंदर वह अपना प्रभाव देना शुरू कर देता है और औसतन 2 साल एक महीना व 27 दिन में पूरा प्रभाव देता है तत्पश्चात निष्क्रिय होता है। अत: समय पूर्ण होने पर मोती बदलते रहें।वैसे मोती अपना प्रभाव 4 दिन में देना आरम्भ कर देता है, और लगभग 2 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निष्क्रिय हो जाता है |2 वर्ष के पश्चात् पुनः नया मोती धारण करे |अच्छे प्रभाव प्राप्त करने के लिए साऊथ सी का 5 से 8 कैरेट का मोती धारण करे | मोती का रंग सफ़ेद और कोई काला दाग नहीं होना चाहिए | किन्हीं विशेष परिस्थितियों में मोती बदलने में असमर्थ हों तो उसी अंगूठी को गुनगुने पानी में चुटकी भर शुद्ध नमक डालकर अंगूठी की ऋणात्मक शक्ति को खत्म करें। फिर शुद्ध होने पर अंगूठी को शिवालय लेकर जाएं शिवलिंग पर उसको छुआएं तथा मंदिर में खड़े होकर ही उसे धारण कर लें।

विशेष : —
यदि चंद्रमा लग्न कुंडली में अशुभ होकर शुभ स्थानों को प्रभावित कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में मोती धारण न करें। बल्कि सफेद वस्तु का दान करें, शिव की पूजा-अभिषेक करें, हाथ में सफेद धागा बाँधे व चाँदी के गिलास में पानी पिएँ।
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जानिए मोती कब न धारण करें(कब ना पहने)–

01.–जब लग्न कुंडली में चंद्रमा शुभ स्थानों का स्वामी हो मगर, 6, 8, या 12 भाव में चंद्रमा हो तो मोती पहनें।
02. नीच राशि (वृश्चिक) में हो तो मोती पहनें।
03. चंद्रमा राहु या केतु की युति में हो तो मोती पहनें।
04. चंद्रमा पाप ग्रहों की दृष्टि में हो तो मोती पहनें।
05. चंद्रमा क्षीण हो या सूर्य के साथ हो तो भी मोती धारण करना चाहिए।
06. चंद्रमा की महादशा होने पर मोती अवश्य पहनना च‍ाहिए।
07. चंद्रमा क्षीण हो, कृष्ण पक्ष का जन्म हो तो भी मोती पहनने से लाभ मिलता है।
08 .-यदि चंद्रमा लग्न कुंडली में अशुभ होकर शुभ स्थानों को प्रभावित कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में मोती धारण न करें। बल्कि सफेद वस्तु का दान करें, शिव की पूजा-अभिषेक करें
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जानिए कैसे करें श्रेष्ट मोती की पहचान—

मोती की माला हो या अंगूठी का रत्न मोती , हमेशा गोल मोती को श्रेष्ट माना गया है मटर के समान गोल मोती मूल्यवान माना गया है तथा मन को मुग्ध करने वाला भी माना गया है ||

असली मोती की पहचान—-
मोती की पहचान का सबसे आसान तरीका है कि मोती को चावल के दानों पर रगड़ें। मोती को चावल के दानों पर रगड़ने से सच्चे मोती की चमक बढ़ जाती है जबकि कृत्रिम तरीके से तैयार मोती की चमक कम हो जाती है।
मोती अनेक रंग रूपों में मिलते हैं। इनकी कीमत भी इनके रूप-रंग तथा आकार पर आंकी जाती है। इनका मूल्य चंद रुपए से लेकर हजारों रुपए तक हो सकता है। प्राचीन अभिलेखों के अध्ययन से पता चलता है कि फारस की खाड़ी से प्राप्त एक मोती छ: हजार पाउंड में बेचा गया था। फिर इसी मोती को थोड़ा चमकाने के बाद 15000 पाउंड में बेचा गया। संसार में आज सबसे मूल्यवान मोती फारस की खाड़ी तथा मन्नार की खाड़ी में पाए जाते हैं।
वैसे तो बसरा मोती सर्वधिक प्रचलित है किन्तु यह समुद्रतट पर बनने वाला प्राकृतिक रत्न है..

पिछले 30 – 40 वर्षों से बसरा के मोती आने बंद हो चुके हैं. कुछ लोगों के पास पुराने मोती हैं पर उनमें से बेढब आकर के मोती भी डेढ़ – दो लाख रुपये से कम का नहीं मिलता. उसमें भी निश्चित नहीं है, कि वो किसी का पहले ही इस्तेमाल किया हुआ न हो. अच्छी शक्ल, आकर और बिना प्रयोग किया हुआ मोती शायद पांच लाख रुपये में भी न मिले |

कल्चर मोती—-
जापान के मिकीमोतो कोकिची ने मोती से कल्चर मोती उत्पादन की तकनीक का आविष्कार किया था। इस आविष्कार के बाद ही जापान में कल्चर मोती उत्पादन का उद्योग तेजी से विकसित हुआ।
मोती के विश्व बाजार के 80 फीसदी भाग पर जापानियों का दबदबा है, जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया और चीन का स्थान आता है।
कल्चर मोती 25 रुपये से 100 रुपये रत्ती तक मिल जाते हैं |

सर्व श्रेष्ठ मोती मुख्यतः पांच प्रकार के होते है —
१- सुच्चा मोती
२- गजमुक्ता मोती
३- बॉस मोती
४- सर्प दन्त मोती
५- सुअर मोती
मोती के उपरत्न में ओपल एवम मून स्टोन आते है
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जानिए मोती के दोष—
चपटा मोती बुद्धि का नाश करने वाला होता है बेडोल मोती (टेढ़ा मेढा) एश्वर्या को करने वाला होता है। जिस मोती पर कोई भी फुल हुआ भाग या बिंदु तथा रिंग बना हो ऐसे मोती दुर्घटना कराने वाले होती है। अब्रत्त मोती , चपटा या दुरंगा या अन्य किसी रंग के चिटे या लखीर मृत्यु का घोतक होते है।
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भाग्यशाली रत्न – धारणाएं और उनका सच—

आपने सुना होगा कि हर रत्न कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य दिखाता है परन्तु मेरे विचार में यह सौ फीसदी सच नहीं है | जन्मकुंडली में कुछ ग्रह आपके लिए शुभ होते हैं और कुछ अशुभ परन्तु कुछ ग्रह सम या माध्यम भी होते हैं जिनका फल उदासीन सा रहता है | ऐसे ग्रहों का न तो दुष्फल होता है न ही कोई विशेष फायदा ही मिल पाता है | यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह आपके लिए सम है तो आपको उस ग्रह विशेष का रत्न पहनने से न तो कोई फायदा होगा और न ही कोई नुक्सान ही होगा |
कुछ लोग कहते हैं कि एक व्यक्ति का रत्न दुसरे को नहीं पहनना चाहिए यह बात भी गलत साबित होते देखी गयी है | यदि आपको कोई रत्न विशेष लाभ नहीं दे रहा तो वह रत्न किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में अपनी जगह अवश्य बना लेगा जिसके लिए वह रत्न फायदेमंद हो |
कुछ लोगों का मानना है कि कुछ साल प्रयोग करने के बाद बाद गंगाजल से रत्न को धो लेने से वह फिर से प्रभाव देने लग जाता है | यह बात सरासर गलत है | आप खुद नया रत्न प्रयोग करके उसका प्रभाव महसूस कर सकते हैं | पुराने रत्न का केवल इतना होता है कि न तो वह फायदा करता है न ही कुछ नुक्सान |
प्राण प्रतिष्ठा यदि न की जाए तो भी आप रत्न का पूरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं | प्राण प्रतिष्ठा तो रत्नों के पहनने से पहले एक शिष्टाचार है जो पहनने वाले की अपनी इच्छा पर निर्भर करता है |
शुभ मुहूर्त में रत्न पहनने की सलाह अवश्य दी जाती है परन्तु आपातकाल में मुहूर्त का इन्तजार करना समझदारी नहीं होगी |
कुछ रत्नों के विषय में यह कहा जाता है कि फलां रत्न किसी को नुक्सान नहीं देता | मैंने ऐसे लोग देखे हैं जिन्होंने हकीक से भी नुक्सान उठाया है | हालाँकि हकीक के विषय में ऐसा कहा जाता है कि इसका किसी को कोई नुक्सान नहीं होता फिर भी बिना विशेषग्य की राय के रत्नों से खिलवाड़ मत करें |
कहते हैं कि रत्न यदि शरीर को स्पर्श न करे तो उसका प्रभाव नहीं होता | मूंगा नीचे से सपाट होता है और जरूरी नहीं कि ऊँगली को स्पर्श करे फिर बिना स्पर्श किये भी उसका पूरा प्रभाव देखने को मिलता है | रत्न का परिक्षण करते समय रत्न को कपडे में बांध कर शरीर पर धारण किया जाता है | यहाँ भी यह बात साबित होती है कि रत्न का शरीर से स्पर्श करना अनिवार्य नहीं है |
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जानिए रत्न धारण करने कि विधि————-

किसी भी रतन को धारण करने से पूर्व सामान्यता जिस गृह क रत्न धारण कररहे है उसके दिन उसी गृह के नक्षत्रो का योग जब बने ,उस दिन धारण करें रत्न धारण करने से पूर्व रतन को कच्चे दूध से धोकर गंगाजल से धो ले , पुनः अगरबती या धूप दिखाकर उसके अधिपति एवं इस्टदेव का ध्यान करते हुए धारण करें किसी भी रतन को धारण करने से पूर्व ज्योतिषी को सलाह अवसय लेनी चाहिए कोई भी रत्न कितने वजन का होना चाहिए, यह निर्णय उस व्यक्ति कोजनम् पत्रिका में गृह कि स्तिथि ,वर्त्तमान , महादशा , अंतदर्शा , कालचक्र दशा , अस्तोत्री दशा योगिनी दशा इत्यादि पर विचार करके ही करना चाहिए यह निर्णय उस व्यक्ति कि जन्म पत्रिका में गृह कि स्तिथि वर्त्तमान महादशा , अंतरदशा , कालचक्र दशा , अष्टोत्तरी दशा , योगिनी दशा इत्यादि दशा पर विचार करके ही करना चाहिए |

जब एक से अधिक रतन पहनने हो तो रतनो का आपस में सकारात्मक तालमेल होना आवशयक हैं |
यदि परस्पर विरोधी रतनो का धारण किया जाये तो ये रतन हानिकारक भी सिद्ध हो सकते हैं कई भी व्यक्ति किसी भी समय किसी न किसी गृह कि महादशा में ही रहता है यह गृह जिस स्थति में होंगे उसी प्रकार का फल प्रदान करते हैं रतन को अंगूठी में अथवा कसी भी रूप में धारण कर सकते है परन्तु यद् रखे सरीर से रतन स्पर्श अवस्य करें तभी लाभदायक होते हैं |
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जानिए रत्नों के विषय में कुछ जरूरी बातें—

रत्न का वजन, चमक या आभा, काट और रंग से ही रत्न की गुणवत्ता का पता चलता है | रत्न कहीं से फीका कही से गहरा रंग, कहीं से चमक और कहीं से भद्दा हो तो मत पहनें |
किसी भी रत्न को पहनने से पहले रात को सिरहाने रखकर सोयें | यदि सपने भयानक आयें तो रत्न मत पहने |
मोती, पन्ना, पुखराज और हीरा, यह रत्न ताम्बे की अंगूठी में मत पहनें | बाकी रत्नों के लिए धातु का चुनाव इस आधार पर करें कि आपके लिए कौन सी धातु शुभ और कौन सी धातु अशुभ है | क्योंकि लोहा ताम्बा और सोना हर किसी को माफिक नहीं होता |
लहसुनिया और गोमेद को गले में मत पहनें |
एक ही अंगूठी में दो रत्न धारण मत करें | यदि जरूरी हो तो विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें |
कौन सा रत्न कौन सी ऊँगली में पहना जाता है यह बात महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रत्न का प्रभाव दुगुना या न्यून हो सकता है |
यदि रत्न पहनने के बाद से कुछ गड़बड़ महसूस करें तो रत्न को तुरंत निकाल दें और रात को सिरहाने रखकर परिक्षण करें |


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