एक सिंह लग्न जातक का रत्न कुंडली विश्लेषण उदाहरण
लग्नेश , पंचमेश , सप्तमेश , भाग्येश और कर्मेश के क्रम के अनुसार एवम महादशा , प्रत्यंतर दशा के अनुसार ही रत्न धारण करना चाहिए।
आपका सिंह लग्न है, प्रथम भाव में सिंह राशि इसका स्वामी सूर्य -- माणिक्य, 3 रत्ती सोने में अनामिका में, रविवार को सुबह कृतिका, उत्तरा फागुनी, उत्तराषाढ़ा
पंचम में धनु राशि है इसका स्वामी गुरु -- पुखराज, 4 रत्ती सोने में तर्जिनी में, गुरूवार प्रातः पुनर्वसु, विशाखा, पू. भाद्रपद
नवम में मेष राशि इसका स्वामी मंगल -- मूँगा
06 रत्ती, मंगलवार प्रातः मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा
कुंडली में 6, 8 और 12 भाव को मारकेश कहा जाता है, मारकेश रत्न कभी धारण न करे।
आपके 6th भाव में मकर राशि - स्वामी शनि - नीलम
8th भाव में मीन राशि स्वामी गुरु - पुखराज
और 12 th में कर्क राशि स्वामी - चन्द्रमा - मोती
रत्न का वजन सवा में ही होना चाहिए, पोने रत्ती में नही होना चाहिए। पोनरत्ती धारण करने से व्यक्ति कभी फल फूल नही पाता है।
जहाँ तक रत्न हमेशा विधि विधान से तथा प्राण प्रतिष्ठा करवा कर , शुभ वार , शुभ समय अथवा सर्वार्ध सिद्धि योग , अमृत सिद्धि योग या किसी भी पुष्प नक्षत्र में ही शुभ फल देता है।
आपकी वर्ष कुंडली में सूर्य, चंद्र, गुरु, शनि, राहु
अशुभ है
चाँदी का चंद्रमा बनवाकर एवं चंद्र यन्त्र साथ रखकर पूजन करें, पुर्णिमा को शाम को चंद्र देव को कच्चा दूध से अर्ध्य एवं पूजन करें, सोमवार को शिव जी को जल चढ़ाये
लग्नेश , पंचमेश , सप्तमेश , भाग्येश और कर्मेश के क्रम के अनुसार एवम महादशा , प्रत्यंतर दशा के अनुसार ही रत्न धारण करना चाहिए।
आपका सिंह लग्न है, प्रथम भाव में सिंह राशि इसका स्वामी सूर्य -- माणिक्य, 3 रत्ती सोने में अनामिका में, रविवार को सुबह कृतिका, उत्तरा फागुनी, उत्तराषाढ़ा
पंचम में धनु राशि है इसका स्वामी गुरु -- पुखराज, 4 रत्ती सोने में तर्जिनी में, गुरूवार प्रातः पुनर्वसु, विशाखा, पू. भाद्रपद
नवम में मेष राशि इसका स्वामी मंगल -- मूँगा
06 रत्ती, मंगलवार प्रातः मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा
कुंडली में 6, 8 और 12 भाव को मारकेश कहा जाता है, मारकेश रत्न कभी धारण न करे।
आपके 6th भाव में मकर राशि - स्वामी शनि - नीलम
8th भाव में मीन राशि स्वामी गुरु - पुखराज
और 12 th में कर्क राशि स्वामी - चन्द्रमा - मोती
रत्न का वजन सवा में ही होना चाहिए, पोने रत्ती में नही होना चाहिए। पोनरत्ती धारण करने से व्यक्ति कभी फल फूल नही पाता है।
जहाँ तक रत्न हमेशा विधि विधान से तथा प्राण प्रतिष्ठा करवा कर , शुभ वार , शुभ समय अथवा सर्वार्ध सिद्धि योग , अमृत सिद्धि योग या किसी भी पुष्प नक्षत्र में ही शुभ फल देता है।
आपकी वर्ष कुंडली में सूर्य, चंद्र, गुरु, शनि, राहु
अशुभ है
चाँदी का चंद्रमा बनवाकर एवं चंद्र यन्त्र साथ रखकर पूजन करें, पुर्णिमा को शाम को चंद्र देव को कच्चा दूध से अर्ध्य एवं पूजन करें, सोमवार को शिव जी को जल चढ़ाये
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