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ज्योतिष और प्रेम विवाह योग Love Marriage in kundali

ज्योतिष और प्रेम विवाह योग Love Marriage in kundali

‘‘सकामायाः सकामेन निर्मन्त्रः श्रेष्ठ उच्यते’’
जातक द्वारा किए जाने वाले इस प्रकार के विवाह हेतु जन्मकुण्डली में विद्यमान विभिन्न ग्रहयोग ही उत्तरदायी होते हैं। यह प्रेम-विवाह स्वजाति, अन्तर्जातीय या अन्तर्धामिक हो सकता है। जन्मांग में ऐसे कई कारक होते हैं, जो ऐसी परिस्थितियों के उत्पन्न होने में निर्णायक भूमिका का निर्वहन करते हैंं।
कुण्डली के विभिन्न भाव तथा भावेश- प्रेम विवाह के दृष्टिकोण से जन्मांग के पंचम, सप्तम, नवम तथा लग्न भाव के साथ-साथ तृतीय भाव भी अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है। जहाँ पंचम भाव व्यक्ति के प्रेम सम्बन्धों, कोमल भावनाओं, मैत्री, संकल्प, साहस, योजना आदि के सामर्थ्य के साथ-साथ विचारों को साकार रूप देने को प्रभावित करता है। वहीं सप्तम भाव जीवन साथी, विवाह, संयोग, यौन-लिप्सा, दाम्पत्य सुख पर आदि नियंत्रण रखता है।
       इस प्रकार के विवाह हेतु व्यक्ति में अत्यधिक उत्साह, पराक्रम तथा साहस की आवश्यकता होती है अतः तृतीय भाव का भी सूक्ष्म विश्लेषण आवश्यक है। प्रेम विवाह की प्रकृति अर्थात् स्वजाति, अन्तर्जातीय, अथवा अन्तधार्मिक विवाह के निर्धारण हेतु नवम भाव पर विचार करना चाहिए। यह भाव जातक का अपने पैतृक वंश के साथ सम्बन्ध का निर्धारण करता है। फलादेश के सन्दर्भ में लग्न भाव सदैव ही निर्णायक भूमिका में रहता है, अतः उपरोक्त भावों के साथ-साथ लग्न भाव ऐसे विवाह की संभावना को क्षीण अथवा प्रबल करने का सामर्थ्य रखता है।
ग्रह- इस सन्दर्भ में शुक्र, मंगल, बृहस्पति तथा चन्द्रमा सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैंं जबकि शनि तथा राहु प्रेम-विवाह के भविष्य तथा विलम्ब आदि का निर्धारण करते हैं। शुक्र जहाँ व्यक्ति को रोमांटिक स्वभाव वाला बनता है, वहीं सौन्दर्य, कोमल भावनाओं, रतिसुख, विलासिता आदि का भी कारक है। मंगल की स्थिति जातक के साहस तथा धैर्य के बलाबल को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। बृहस्पति इस विवाह की स्वीकार्यता तथा प्रकृति का निर्धारण करता है। चन्द्रमा मन का कारक है अतः इन ग्रहों के साथ चन्द्र का सम्बन्ध प्रेम-विवाह की सम्भावना को पुष्ट करता है।
प्रेम विवाह के विभिन्न ग्रहयोग
* नवमेश, पंचमेश तथा सप्तमेश जन्मांग में एक साथ स्थित हों।
* सप्तमेश तथा पंचम भाव के अधिपति का लग्नेश के साथ युति संबंध हो।
* जन्मांग में मंगल और शुक्र साथ हों और उस पर पंचेमश तथा चन्द्रमा की दृष्टि हो।
* शुक्र का सम्बन्ध यदि लग्न, पंचम अथवा सप्तम भाव से हो तो भी प्रेम-विवाह होता है।
* शुक्र तथा चन्द्रमा लग्न भाव में हों तथा उनसे राहु अथवा केतु किसी भी प्रकार सम्बन्ध बना रहे हों।
* सप्तमेश तथा पंचमेश के मध्य दृष्टि सम्बन्ध हो अथवा दोनों के मध्य राशि परिवर्तन हो।
* अष्टमेश यदि सप्तम भाव में निर्बल चन्द्र के साथ हो तो अभिभावकों की अनिच्छा या गुप्त रूप से विवाह होता है।
* शुक्र चर राशियों (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो तथा पाप ग्रहों से घिरा हो, साथ ही इस पर शनि दृष्टिपात कर रहा हो तो अन्तर्जातीय विवाह के योग बनते हैं।
* चतुर्थेश तथा लग्नभाव के अधिपति एक साथ हों तथा उसे राहु प्रभावित कर रहा हो तो अन्तर्धामिक विवाह होता है।
* बृहस्पति तथा शुक्र सप्तम भाव में स्थित हों तो समान जाति में प्रेम विवाह होता है।
* नीचस्थ सूर्य (तुला का), पाप प्रभाव से युक्त चन्द्रमा, कर्क का शुक्र तथा इन पर राहु का प्रभाव अन्तर्जातीय विवाह दर्शाता है।
* पंचमेश तथा पंचम भाव पाप प्रभाव में हो तथा क्रूर ग्रहों से आक्रान्त हो तो भी अन्तर्जातीय विवाह।
* नवम भाव अथवा नवमेश का शनि, मंगल अथवा राहु-केतु के साथ सम्बन्ध हो तो अन्तर्धामिक विवाह होगा।
* शुक्र तथा चन्द्र की युति पंचम भाव में हो।
* बृहस्पति केतु के साथ पंचम या नवम भाव में हो।
* पंचम भाव का स्वामी मंगल तथा शनि के साथ हो तथा सप्तमेश द्वितीय एकादश भाव में हो।
* राहु तथा शनि शुक्र के साथ हों अथवा दृष्ट हों तो वासनाधिक्य के कारण विवाह होता है।
* सप्तम भाव में शुक्र और मंगल की युति हो और इस पर पंचमेश की दृष्टि हो तो अमर्यादित संबंधों के दबाव में विवाह होता है।
* जन्मांग में प्रेम विवाह के योग उपस्थित हों और नवम भाव अथवा नवमेश पाप-पीडि़त हों तो अलग जाति में विवाह होता है।
* क्रूर ग्रहों से युक्त नवम भाव और नवमेश तथा बृहस्पति का पापकर्तरी में होना अन्य धर्म में विवाह कराता है।
* सप्तम भाव, सप्तमेश तथा शुक्र यदि शनि व राहु से पीडि़त हों तो अनेक प्रेम सम्बन्धों के बाद प्रेम विवाह होता है।
* प्रेम-विवाह संबंधी ग्रहयोगों की जन्मांग में उपस्थिति हो और नवम भाव बृहस्पति द्वारा दृष्ट या युत हो तो माता-पिता की सहमति से प्रेम-विवाह होता है।
* नवमेश तथा नवम भाव शनि से आक्रान्त हो या नवम भाव पापकर्त्तरी योग से ग्रस्त हो तो अन्तर्जातीय विवाह।
* नवम भाव पापक्रान्त हो, परन्तु नवमेश या नवम भाव पर गुरू या शुक्र की दृष्टि हो और ये शुभ ग्रह स्वयं पाप प्रभाव में न हाें तो विवाह स्वयं से उच्च जाति में होता है।
* जन्मांग में प्रेम विवाह के योग उपस्थित होें तथा नवम भाव राहु अथवा शनि से युत या दृष्ट हों तो अन्तर्धार्मिक विवाह होगा।
* पुरूष के जन्मांग का शुक्र तथा स्त्री की जन्मकुण्डली में मंगल एक ही राशि में स्थित हों तो प्रेम-विवाह के बाद भी परस्पर अक्षुण्ण प्रेम रहता है।
* प्रेम विवाह के योगों पर चन्द्रमा तथा लग्नेश की दृष्टि प्रेम विवाह की संभावना को अत्यधिक प्रबल बना देती है।
* नवम भाव पर निर्दोष गुरू की दृष्टि हो तो प्रेम-विवाह माता-पिता की अनुमति से धूम-धाम से होता है, बशर्त्ते जन्मांग में प्रेम-विवाह योग उपस्थित हों।
* यदि नवम भाव, नवमेश और बृहस्पति क्रूर ग्रहों शनि, राहु, केतु अथवा सूर्य के पाप प्रभाव में हो तो अपने से निम्न जाति में विवाह होता है।
* प्रेम विवाह के योगों पर द्वितीय भाव तथा द्वितीयेश का सम्बन्ध निकट संबंधियों या पूर्व-परिचित से विवाह का योग बनाता है।
* पंचम अथवा सप्तम भाव में स्थित केतु यदि प्रेम-विवाह के ग्रहयोगों से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध रखे तो प्रेम-विवाह गुप्त तरीके से (मंदिर, कोर्ट आदि में) होता है।
* सप्तमेश शनि से युक्त अथवा दृष्ट हो तो प्रेम-विवाह में बाधा तथा विलम्ब का योग बनता है।
* पंचमेश द्वादश भाव में हो तो प्रेम विवाह के योग बनते हैं।

समाधान-
लग्न, पंचम, सप्तम व नवम भाव के अधिपतियों के साथ-साथ गुरू, शुक्र तथा चन्द्रविषयक यथोचित उपाय इन परिस्थितियों को नियन्त्रित कर सकते हैं। वहीं बृहस्पति को पुष्ट करना इन सम्बन्धों के सुखद भविष्य के लिए सर्वाधिक आवश्यक है। इस सन्दर्भ में योग्य दैवज्ञ से परामर्श अनिवार्य होता है।

Love marriage yog in Astrology प्रेम विवाह योग ज्योतिष

प्रेम विवाह हेतु निर्धारित भाव एवं ग्रह love marriage yog in astAstrol
ज्योतिषशास्त्र में सभी विषयों के लिए निश्चित भाव निर्धारित किया गया है लग्न, पंचम, सप्तम, नवम,  एकादश, तथा द्वादश भाव को प्रेम-विवाह का कारक भाव माना गया है यथा —

लग्न भाव      —   जातक स्वयं।
पंचम भाव     —   प्रेम या प्यार का स्थान।
सप्तम भाव     —   विवाह का भाव।
नवम भाव     —   भाग्य स्थान।
एकादश भाव —    लाभ स्थान।
द्वादश भाव    —   शय्या सुख का स्थान।
वहीं सभी ग्रहो को भी विशेष कारकत्व प्रदान किया गया है। यथा “शुक्र ग्रह” को प्रेम तथा विवाह का कारक माना गया है। स्त्री की कुंडली में “ मंगल ग्रह “ प्रेम का कारक माना गया है।

प्रेम विवाह के ज्योतिषीय सिद्धांत या नियम
पंचम और सप्तम भाव तथा भावेश के साथ सम्बन्ध। पंचम भाव प्रेम का भाव है और सप्तम भाव विवाह का अतः जब पंचम भाव का सम्बन्ध सप्तम भाव भावेश से होता है तब प्रेमी-प्रेमिका वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं।
पंचमेश-सप्तमेश-नवमेश तथा लग्नेश का किसी भी प्रकार से परस्पर सम्बन्ध हो रहा हो तो जातक का प्रेम, विवाह में अवश्य ही परिणत होगा हाँ यदि अशुभ ग्रहो का भी सम्बन्ध बन रहा हो तो वैवाहिक समस्या आएगी।
लग्नेश-पंचमेश-सप्तमेश-नवमेश तथा द्वादशेश का सम्बन्ध भी अवश्य ही प्रेमी प्रेमिका को वैवाहिक बंधन बाँधने में सफल होता है।
प्रेम और विवाह के कारक ग्रह शुक्र या मंगल का पंचम तथा सप्तम भाव-भावेश के साथ सम्बन्ध होना भी विवाह कराने में सक्षम होता है।
सभी भावो में नवम भाव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है नवम भाव का परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सम्बन्ध होने पर माता-पिता का आशीर्वाद मिलता है और यही कारण है की नवम भाव -भावेश का पंचम- सप्तम भाव भावेश से सम्बन्ध बनता है तो विवाह भागकर या गुप्त रूप से न होकर सामाजिक और पारिवारिक रीति-रिवाजो से होती है।
शुक्र अगर लग्न स्थान में स्थित है और चन्द्र कुण्डली में शुक्र पंचम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह संभव होता है।
नवमांश कुण्डली जन्म कुण्डली का सूक्ष्म शरीर माना जाता है अगर कुण्डली में प्रेम विवाह योग नहीं है या आंशिक है और नवमांश कुण्डली में पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश की युति होती है तो प्रेम विवाह की संभावना प्रबल हो जाती है।
पाप ग्रहो का सप्तम भाव-भावेश से युति हो तो प्रेम विवाह की सम्भावना बन जाती है।
राहु और केतु का सम्बन्ध लग्न या सप्तम भाव-भावेश से हो तो प्रेम विवाह का सम्बन्ध बनता है।
लग्नेश तथा सप्तमेश का परिवर्तन योग या केवल सप्तमेश का लग्न में होना या लग्नेश का सप्तम में होना भी प्रेम विवाह करा देता है।
चन्द्रमा तथा शुक्र का लग्न या सप्तम में होना भी प्रेम विवाह की ओर संकेत करता है।

प्रेम विवाह योग Love Marriage Yoga

प्रेम  विवाह योग Love Marriage Yoga:

कुंडली में पंचम भाव से प्रेम संबंधों का पता चलता है जबकि सप्तम भाव से विवाह का पता चलता है ,शुक्र सप्तम भाव का कारक ग्रह अतः जातक के कुंडली में पंचम भाव के स्वामी तथा सप्तम भाव के स्वामी और शुक्र का शुभ संयोग होता है तो दोनों जातक का प्रेम संबंध संभव हो जाता है,   शुक्र सप्तमेश से संबंधित होकर पंचम भाव में बैठा हो तो प्रेम विवाह संभव है ,पंचमेश और सप्तमेश की युति या राशि परिवर्तन हो तो प्रेम विवाह संभव है ।
पंचमेश और सप्तमेश की युति या राशि परिवर्तन हो तो प्रेम विवाह संभव होता है ।
मंगल और शुक्र का एक दूसरे से दृष्टि संबंध भी प्रेम विवाह कराता है।
 पंचमेश तथा सप्तमेश का आपस में स्थान परिवर्तन योग ,द्वादशेश तथा द्वितीय का आपस में स्थान परिवर्तन होना, लग्नेश तथा सप्तमेश का आपस में स्थान परिवर्तन होना या दृष्टि संबंध या युति के योग होना। 
द्वितीय तथा पंचमेश का आपस में स्थान परिवर्तन होना ।पंचमेश तथा द्वितीयश का दृष्टि संबंध बनाना ।द्वितीय वह पंचमेश का युति का योग होना ।सप्तमेश वह लग्नेश का युति होना या दृष्टि संबंध होना । द्वितीयश, पंचमेश ,सप्तमेश ,द्वादशेश का एक साथ यूति संबंध होना ।पहला भाव दूसरा भाव पांचवा भाव सातवां भाव और बारहवें भाव की युति होना ।
उसी तरह से ऊपर बताए गए भाव में पंचमेश और सप्तमेश की युति हो जाए, इसी प्रकार ऊपर बताए गए  भावो के स्वामियों की लगन से युति संबंध हो तब भी प्रेम विवाह संभव है हम जातक की कुंडली में ऊपर बताए गए सब योगो को देखकर प्रेम विवाह की संभावना है या नहीं की जानकारी जातक की कुंडली से प्राप्त कर सकते हैं।
 आप से निवेदन है आप उचित ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाकर प्रेम विवाह होने की संभावनाओं का पता लगा सकते हैं। 
अंतर्जातीय   विवाह के लिए  शनि ग्रह की  मुख्य भूमिका  होती है  यदि कुंडली में  शनि का संबंध  प्रेम विवाह  वाले भावो और उनके स्वामी  हो जाए  तो जातक  अंतर्जातीय विवाह करता है ।

 अगर   कुंडली में सप्तमेश लग्न से कमजोर हो  तो वह  अपने से  नीच कुल में प्रेम विवाह करता है इसके विपरीत लग्नेश से सप्तमेश बली हो  तो जातक अपने से श्रेष्ठ कुल में प्रेम विवाह करता है। 

Love marriage yog in Astrology | ज्योतिष प्रेम संबंध योग एवं उपाय

ज्योतिष प्रेम संबंध योग एवं उपाय

चंद्रमा ग्रह अगर लड़कियों का कमजोर होगा तो वह बहुत भावुक रहेगी अतः भावुक लड़कियों को घर में प्यार नहीं मिलेगा तो वह प्रेम संबंधों में पढ़ जाती है। अब हम मंगल और सूर्य के बारे में बात करेंगे अगर बच्चियों का मंगल और सूर्य कमजोर होता है वह भी प्रेम संबंधों में पड़ जाती है।

अब हम लड़कों के बारे में बात करेंगे अगर लड़को का शुक्र खराब होगा तो वह लोग प्रेम संबंधों में पढ़ने का प्रयास करते हैं। अगर बच्चों के कुंडली में शुक्र चंद्रमा से प्रभावित हो तो भी लड़के लोग प्रेम संबंध में उलझ जाते हैं। अब हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि कुंडली में प्रेम विवाह का योग है या नहीं अगर कुंडली में प्रेम विवाह का योग ना हो तो हमें प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए अब हम कैसे जाने की कुंडली में प्रेम विवाह का योग है या नहीं इसके लिए कुंडली में हम पांचवा भाव जो कि प्रेम संबंध के बारे में होता है उसे देखेंगे साथ में सातवां भाव क्योंकि शादी का होता है उसे देखेंगे अगर इन भावों का अच्छे ग्रह का प्रभाव है और यहां पर ऊपर बताए गए ग्रहों का अच्छा संबंध बन रहा है  तो ही प्रेम संबंध अच्छे रहेंगे।

मांगलिक बच्चों के प्रेम संबंध भी अच्छे नहीं रहते हैं।

कुंडली में अगर शुक्र मंगल बृहस्पति कमजोर होने पर प्रेम संबंध चल नहीं पाते हैं।

मंगल शुक्र और शनि मंगल  और मंगल बृहस्पति का संबंध होने पर प्रेम संबंध टिक नहीं पाते हैं।

कुंडली में ऊपर बताए गए योग हो तो प्रेम संबंधों में जाने की कोशिश नहीं करना चाहिए।

अतः आपसे निवेदन है कि आप अपने बच्चों की कुंडली को अच्छे ज्योतिषाचार्य को बताकर इस प्रकार के योग कुंडली में बन रहे हैं तो अपने बच्चों प्रेम संबंधों से बचा सकते हैं ।

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