अगर आपके जीवन में कोई परेशानी है, जैसे: बिगड़ा हुआ दांपत्य जीवन , घर के कलेश, पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध, निसंतान माता पिता, दुश्मन, आदि, तो अभी सम्पर्क करे. +91-8602947815
Showing posts with label Samudrik Shastra - सामुद्रिक शास्त्र. Show all posts
Showing posts with label Samudrik Shastra - सामुद्रिक शास्त्र. Show all posts

सामुद्रिक शास्त्र Samudrik Shastra

सामुद्रिक शास्त्र मुख, मुखमण्डल तथा सम्पूर्ण शरीर के अध्ययन की विद्या है। भारत में यह यह वैदिक काल से ही प्रचलित है। गरुड पुराण में सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन है।

मानव-शरीर के विभिन्न अंगों की बनावट के आधार पर उसके गुण-कर्म-स्वाभावादि का निरूपण करने वाली विद्या आरंभ में लक्षण शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध थी। हाथ की परीक्षा —- प्रातःकाल शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर देवपूजनोपरांत अपने हाथ में श्रीफल (नारियल), ऋतुफल, मिष्ठान्न, पुष्प एवं दक्षिणा आदि लेकर हस्त परीक्षक की सेवा में उपस्थित होना चाहिए। सामान्यतः पुरुषों का दायाँ तथा स्त्रियों का बायाँ हाथ देखना चाहिए। अतः वर्तमान जीवन की जानकारियाँ दाएँ हाथ से तथा पूर्व-जन्मार्जित कर्म-फल विषयक ज्ञातव्य बाएँ हाथ से प्राप्त करना चाहिए। स्त्रियों के विषय में इससे विपरीत समझना चाहिए। —–हस्त-परीक्षा का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल का है। ग्रहण के समय, श्मशान में, मार्ग में चलते समय तथा भीड़-भाड़ में हाथ नहीं देखना चाहिए। हाथ दिखाने वाले के अतिरिक्त यदि कोई अन्य व्यक्ति भी उपस्थित हो तो उस समय हाथ नहीं देखना चाहिए, जल्दबाजी में हाथ देखना वर्जित है। —–अगर किसी रेखा के साथ-साथ कोई और रेखा चले तो उस रेखा को शक्ति मिलती है। अतः उस रेखा का विशेष प्रभाव समझना चाहिए। कमजोर, दुर्बल अथवा मुरझाई हुई रेखाएँ बाधाओं की सूचक होती हैं। —– अस्पष्ट और क्षीण रेखाएँ बाधाओं की पूर्व सूचना देती हैं। ऐसी रेखाएँ मन के अस्थिर होने तथा परेशानी का संकेत देती हैं। —– अगर कोई रेखा आखिरी सिरे पर जाकर कई भागों में बँट जाए तो उसका फल भी बदल जाता है। ऐसी रेखा को प्रतिकूल फलदायी समझा जाता है। —–टूटी हुई रेखाएँ अशुभ फल प्रदान करती हैं। —–अगर किसी रेखा में से कोई रेखा निकलकर ऊपर की ओर बढ़े तो उस रेखा के फल में वृद्धि होती है। —–वैज्ञानिक अध्ययन से यह पता चलता है कि मस्तिष्क की मूल शिराओं का हाथ के अंगूठे से सीधा संबंध है। स्पष्टतः अंगुष्ठ बुद्धि की पृष्ठ भूमि और प्रकृति को दर्शाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अंग है। बाएं हाथ के अंगूठे से विरासत में मिली मानसिक वृति का आकलन किया जाता है और दायें हाथ के अंगूठे से स्वअर्जित बुद्धि-चातुर्य और निर्णय क्षमता का अंदाजा लगाना संभव है। अंगूठे और हथेली का मिश्रित फल व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार ढाल पाने में सक्षम है। व्यक्ति के स्वभाव और बुद्धि की तीक्ष्णता को अंगुष्ठ के बाद अंगुलियों की बनावट और मस्तिष्क रेखा सबसे अधिक प्रभावित करती है। —-अमेरिकी विद्वान विलियम जार्ज वैन्हम के अनुसार व्यक्ति के हाव-भाव और पहनावे से उसके स्वभाव के बारे में आसानी से बताया जा सकता है। —अतीव बुद्धि संपन्न लोगों का अंगुष्ठ पतला और पर्याप्त लंबा होता है। यह पहली अंगुली (तर्जनी) से बहुत पृथक भी स्थित होता है। यह व्यक्ति के लचीले स्वभाव को व्यक्त करता है। इस प्रकार के लोग किसी भी माहौल में स्वयं को ढाल सकने में कामयाब हो सकते हैं। ये काफी सहनशील भी देखे जाते हैं। इन्हें न तो सफलता का ही नशा चढ़ता है और न ही विफलता की परिस्थितियों से ही विचलित होते हैं। इनकी सबसे अच्छी विशेषता या गुण इनका लक्ष्य के प्रति निरंतरता है। लेकिन —–यदि अंगुष्ठ का नख पर्व (नाखून वाला भाग) यदि बहुत अधिक पतला है तो व्यक्ति अंततः दिवालिया हो जाता है और यदि यह पर्व बहुत मोटा गद्दानुमा है तो ऐसा व्यक्ति दूसरों के अधीन रह कर कार्य करता है। यदि नख पर्व गोल हो और अंगुलियां छोटी और हथेली में शनि और मंगल का प्रभाव हो तो जातक स्वभाव से अपराधी हो सकता है। ——अंगुलियां कुल हथेली के चार में से तीन भाग के समक्ष होनी चाहिए। इससे कम होने से जातक कुएं का मेढक होता है। उसके विचारों में संकीर्णता और स्वभाव में अति तक की मितव्ययता होती है। सीमित बुद्धि संपन्न ये जातक भारी और स्थूल कार्यों को ही कर पाते हैं। बौद्धिक कार्य इनके लिए दूर की कौड़ी होती है। अक्सर इनको स्वार्थी भी देखा गया है। इस प्रकार की अंगुलियां यदि विरल भी हो तो आयु का नाश करती हैं। ——अंगुलियां के अग्र भाग नुकीले रहने से काल्पनिक पुलाव पकाने की आदत होती है। जिससे व्यक्ति जीवन की वास्तविकता से अनभिज्ञ रहते हुए एक असफल जीवन जीता है। ——-अंगुलियां लंबी होने से जातक बौद्धिक और सूक्ष्मतम कार्य बड़ी सुगमता से पूर्ण कर लेता है और स्थूल कार्य भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं होते हैं। बहुत बार इस प्रकार के जातक नेतृत्व करते देखे जाते हैं। इस प्रकार की अंगुलियों के साथ हाथ यदि बड़ा और चमसाकार हो तो जातक अपनी क्षमता का लोहा समाज को मनवा लेता है। लंबी अंगुलियों के साथ यदि हथेली में शुक्र मुद्रिका भी हो तो जातक सर्वगुण संपन्न होते हुए भी भावुकतावश प्रगति के मार्ग में पिछड़ जाता है। शनि मुद्रिका होने से दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ता है। इस प्रकार के जातक अपनी योग्यता और क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण इनको जीवन में सीमित उपलब्धियों से ही संतोष करना होता है। चंद्रमा का बहुत प्रभाव होने से जातक पर यथार्तता की अपेक्षा कल्पना हावि रहती है। ——-अंगुलियों के नाखून जब त्वचा में अंदर तक धंसे हों, साथ ही ये आकार में सामान्य से छोटे हों तो जातक बुद्धि कमजोर होती है। इसकी मनोवृत्ति सीमित और आचरण बचकाना होता है। ये जातक आजीविका हेतु इस प्रकार के कार्य करते पाए जाते हैं, जिनमें बौद्धिक / शारीरिक मेहनत न के बराबर होते होती है। ——-कनिष्ठा सामान्य से अधिक छोटी हो तो जातक मूर्ख होता है। कनिष्ठा के टेढी रहने से जातक अविश्वसनीय होता है। टेढ़ी कनिष्ठा को कुछ विद्वान चोरी करने की वृत्ति से भी जोड़ते हैं। लेकिन इसे तभी प्रभावी मानना चाहिए जब हथेली में मंगल विपरीत हो, क्योंकि ग्रहों में मंगल चोर है। ——अंगुलियों का बैंक बैलेंस से सीधा संबंध है। केवल अंगुलियों का निरक्षण कर लेने भर से ही इस तथ्य का अंदाजा लगाया जा सकता है कि व्यक्ति में धन संग्रह की प्रवृत्ति कहां तक है। तर्जनी (पहली अंगुली) और मध्यमा (बीच की अंगुली) यदि बिरल (मध्य में छिद्र) हों तो निश्चित रूप से जीवन के मध्य काल के बाद ही धन का संग्रह हो पाता है। यदि कनिष्ठा विरल हो तो वृद्धावस्था अर्थाभाव में व्यतीत होती है। यदि अंगुलियों के मूल पर्व गद्देदार और स्थूल हों तो जीवन में विलास का आधिक्य रहता है। सभी अंगुलियों के विरल होने से जीवन पर्यन्त धन की कमी रहती है। सीधी, चिकनी और गोल अंगुलियां धन को बढ़ा देती है। सूखी अंगुलियां धन का नाश करती हैं। ——-वे अंगुलियां जिनके जोड़ों की गांठें बहुत उभरी हुई हों, संवेदनशील और कंजूस प्रवृत्ति दर्शाती हैं। लेकिन ऐसी उंगलियों वाले जातक कड़ी मेहनत कर सकते हैं। यही इनकी सफलता का रहस्य होता है। —–अंगूठे और अंगुलियों के आकार-प्रकार के अलावा हाथ की बनावट से हमें काफी कुछ जानकारी प्राप्त होती है। ——समचौरस हथेली के स्वामी व्यवहारिक होते हैं। लेकिन ऐसे लोग स्वार्थी भी होंगे। साथ ही समय आने पर किसी को धोखा भी दे सकते हैं। इसके विपरीत लंबवत हथेली के ]स्वामी भावुक और कल्पनालोक में विचरण करने वाले लोग होंगे। आमतौर पर ये जीवन में स्वतंत्र रूप से सफल नहीं रहते हैं। तथापि ये नौकरी में ज्यादा सफल रहते हैं। ऐसे लोग यदि स्वयं का व्यवसाय स्थापित करें तो प्रायः लंबा नुकसान उठाते हैं। अतः ऐसे लोगों को हमेशा नौकरी को तरजीह देनी चाहिए। —–हथेली का पृष्ठभाग समतल या कुछ उभार लेते हुए होना चाहिए। ऐसी हथेली का जातक व्यवहारिक होता है। यदि हथेली का करपृष्ठ बहुत अधिक उभार लिए हुए हो तो प्रायः व्यक्ति कर्कश स्वभाव और झगड़ालू होता है। ——हथेली में जब गहरा गढ़ा हो तो प्रायः जातक अपनी बात पर कायम नहीं रह पाता है। ऐसे लोग जीवन मे अत्यंत संघर्ष के उपरांत ही कुछ हासिल कर पाते हैं। ——–हथेली का पृष्ठ भाग और कलाई हमेशा समतल होनी चाहिए। यदि दोनों में ज्यादा अंतर है तो यह जातक को समाज में स्थापित होने से रोकती है। ऐसे लोग अपने परिजनों से विरोध करते हैं। समाज में इनकी प्रतिष्ठा कम होती है। ——–जिन हाथों में शनि-मंगल का प्रभाव हो वे लोग कानूनी समस्याओं का सामना करते हैं। कुछ मामलों में ऐसे लोग अपराधी भी हो सकते हैं। ——–हथेली में राहु का प्रभाव होने पर जातक बुरी आदतों का शिकार होता है। वह धर्मभ्रष्ट भी हो सकता है। मदिरापान कर सकता है या अभक्षण का भी भक्षण कर सकता है।



ब्रह्मा द्वारा निर्मित जन्मपत्री है, हाथ । हाथ ऐसी जन्मपत्री है, जिसे स्वयं ब्रह्मा ने निर्मित किया है, जो कभी नष्ट नहीं होती है। इस जन्मपत्री में त्रुटि भी नहीं पाई जाती है। स्वयं ब्रह्मा ने इस जन्मपत्री में रेखाएं बनाई हैं एवं ग्रह स्पष्ट किए हैं। यह आजीवन सुरक्षित एवं साथ रहती है।

कहा जाता है कि पूर्व काल में शंकर जी के आशीर्वाद से उनके ज्येष्ठ पुत्र स्वामी कार्तिकेय ने, जनमानस की भलाई के लिए, हस्तरेखा शास्त्र की रचना की। जब यह शास्त्र पूरा होने आया, तो गणेश जी ने, आवेश में आकर, यह पुस्तक समुद्र में फेंक दी। शंकर जी ने समुद्र से आग्रह किया कि वह हस्तलिपि वापस करे। समुद्र ने उन प्रतिलिपियों को शंकर जी को वापस दिया और शंकर जी ने तबसे उसको सामुद्रिक शास्त्र के नाम से प्रचलित किया।

इस शास्त्र में हस्तरेखा शास्त्र के अतिरिक्त संपूर्ण शरीर द्वारा भविष्य कथन के बारे में बताया गया है। सामुद्रिक शास्त्र को लोग हस्तरेखा शास्त्र के नाम से अधिक जानते हैं। ज्योतिष एवं हस्तरेखा विज्ञान के 18 प्रवर्तक हुए हैं, जो निम्न हैं- सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पुलिश, च्यवन, यवन, भृगु एवं शौनक।

भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के बारे में यूरोप के अनेक हस्तरेखा विद्वानों ने भी चर्चा की है, जैसे-लु कॉटन, क्रॉम्‍पटन, हचिंगसन, सेंटजरमेन, वेन्हम, सेफेरियल, सेंटहिल आदि। मनुष्य के जीवन के बनने बिगड़ने में रेखाओं हथेली में विद्यमान पर्वतों, पोरों, चिह्नों आदि की भूमिका अहम होती है। इन सबका ज्ञान हमें हस्त सामुद्रिक शास्त्र से मिलता है।

विद्वानों का मानना है कि हस्त रेखाएं स्थिर हैं, कभी बदलती नहीं। परंतु वैज्ञानिक खोजों से स्पष्ट हो चुका है कि रेखाएं परिवर्तनशील होती हैं। विवाह एवं वैवाहिक जीवन की स्थिति पता लगाने के लिए कुछ विद्वान छोटी उंगली के नीचे स्थित बुध पर्वत की रेखाओं का विश्लेषण करते हैं, तो कुछ अन्य शुक्र पर्वत से। किंतु कुछ विद्वानों का मानना है कि ये वास्तव में विवाह रेखाएं नहीं हैं। बल्कि ये जीवन को विभक्त करने वाली रेखाएं हैं।

विवाह भी जीवन को दो भागों में बांट देता है- एक विवाह पूर्व का और दूसरा विवाह के बाद का।

आइए जानते हैं हस्‍तरेखा की कुछ प्रमुख बातें

1-पहले विवाह में यदि किसी रेखा में से कोई रेखा निकल कर नीचे की ओर जाए या नीचे की ओर झुके तो उसका फल प्रतिकूल होता है, या कमी आती है। इसके विपरीत ऐसी कोई रेखा ऊपर की ओर जाए तो फल में वृद्धि होती है।

2-जंजीरनुमा रेखा अशुभ फल देती है।

3-यदि विवाह रेखा, जो बुध पर्वत पर होती है, जंजीरनुमा हो तो प्रेम प्यार में असफलता का मुंह देखना पड़ता है।

4-यदि मस्तिष्क रेखा जंजीरनुमा हो तो व्यक्ति अस्थिर बुद्धि वाला अथवा पागल हो सकता है।

5-लहरदार रेखा अशुभ मानी गई है। ऐसी रेखाएं शुभ फल प्रदान नहीं करती हैं।

6-रेखा अगर कहीं पतली और कहीं मोटी हो तो रेखा अशुभ होती है। ऐसी रेखा वाला व्यक्ति बार-बार धोखा खाता है तथा सफलता-असफलता के बीच झूलता रहता है।

7-जीवन रेखा के अतिरिक्त यदि कोई अन्य रेखा अपने आखिरी सिरे पर पहुंच कर दो भागों में बंटी हो तो वह अत्यंत प्रभावीतथा श्रेष्ठ फल देने वाली होती है। परंतु यदि हृदय रेखा दो भागों में बंटी हो तो व्यक्ति को हृदय रोग की संभावना रहती है।

8-यदि प्रणय रेखा से कोई रेखा निकल कर ऊपर की ओर जाए तो प्रेम में सफलता और सुंदर पति अथवा पत्नी की प्राप्ति होती है। परंतु यदि नीचे की ओर रुख करे तो प्रेम में असफलता मिलती तथा पति अथवा पत्नी को अस्वस्थता का सामना करना पड़ता है।

9-व्यवसाय एवं नौकरी के निर्धारण के लिए शनि, सूर्य, बुध एवं गुरु पर्वतों की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है। बुध रेखा को व्यवसाय तथा उद्योग रेखा भी कहते हैं, जिन लोगों के हाथ में यह रेखा होती है वे यदि उद्योग या व्यवसाय से संबंधित नहीं होते, तो भी उनकी मित्रता व्यवसायियों उद्योगियों से अवश्य रहती है।

प्रशासनिक अधिकारियों का गुरु पर्वत पुष्ट एवं उभरा हुआ होता है। मंगल पर्वत पर रेखाओं का होना दौड़धूप का परिचायक होता है। जिन लोगों के मंगल पर्वत पर रेखाएं होती हैं, वे पुलिस विभाग में कार्य करते हैं या उससे संबद्ध रहते हैं।

10--शुक्र पर्वत से निकली रेखा से यदि इसका संबंध हो तो प्रेम प्रसंगों के कारण विदेश यात्रा होती है। गुरु या चंद्र पर्वत से निकली रेखाएं यदि छोटी-छोटी व ऊध्र्वगामी हों तो शोध कार्यों, या गोष्ठियों एवं अध्ययन हेतु विदेश यात्रा करनी पड़ती है।

11--उंगलियां सीधी तथा पतली हों, हृदय रेखा सीधे बृहस्पति के नीचे जाकर खत्म हो, भाग्य रेखाएं एक से अधिक हों, सभी ग्रह उन्नत हों तो जातक करोड़पति होता है।

12--मनुष्य की हथेली एक ऐसे मानचित्र की भांति समझिए कि उसमें आने वाले हर दृश्य के अनुसार अपनी भावी जीवन को देखते हैं। इसी से हम अपनी आयु को भी देखते हैं।

13--आयु को देखने के लिए हमें जीवन रेखा को देखना चाहिए। जीवन रेखा लंबी, तंग व गहरी होनी चाहिए। चौड़ी कदापि नहीं होनी चाहिए। गहरी और अच्छी जीवन रेखा हमारी प्राणशक्ति को और ताकत को बढ़ाती है।

14--हमारी जीवन रेखा पर जीवन की अवधि, रोग और मृत्यु अंकित होती है और अन्य रेखाओं से जो पूर्वाभास प्राप्त होता है उसकी पुष्टि भी जीवन रेखा ही करती है।

15--हाथ में मंगल ग्रह पर बहुत अधिक रेखाएं होने से पेट से संबंधित रोग अधिक होते हैं। मंगल से निकली रेखाएं यदि जीवन और मस्तिष्क रेखाओं को पार करे जाए व शनि भी बैठा तो किसी बड़े रोग की संभावना रहती है।

16--मंगल ग्रह पर बड़े-बड़े क्रॉस हों तो बवासीर की संभावना रहती है। इस रोग की जांच के लिए शनि ग्रह की स्थिति देखना भी आवश्यक है।

17---किसी स्त्री के मंगल ग्रह पर मोटी-मोटी आड़ी रेखाएं हों व शनि ग्रह दबा हो तो, उसके गर्भपात या गर्भ से संबंधित रोग होने की संभावना रहती है।

18---जीवन रेखा टूटी हो तो गर्भाशय तथा मासिक धर्म संबंधी रोग की संभावना रहती है। उन्हें शरीर टूटा-टूटा लगता है। हाथ नरम हो, और गुरु की उंगली छोटी हो, तो गर्भ नहीं ठहरता है।

19--शनि के नीचे जीवन रेखा पर द्वीप हो और उस द्वीप से निकलकर कोई रेखा ऊपर की ओर जाती हो तो व्यक्ति को खांसी हो सकती है। रेखाओं की यह स्थिति फेफड़ों की कमजोरी की भी सूचक है।

20--मस्तिष्क और हृदय रेखाओं में द्वीप हो तथा हथेली सख्त हो तो यह स्थिति सर्वाइकल संबंधी रोग की सूचक है।

21--मस्तिष्क रेखा को छोटी छोटी रेखाएं काटती हों तो व्यक्ति सिरदर्द से पीड़ित हो सकता है। यह रेखा पतली और उसे काटने वाली रेखाएं गहरी हों तो व्यक्ति को मस्तिष्क ज्वर होसकता है।

बायें हाथ की मस्तिष्क रेखा सबल और दायें हाथ की दुर्बल हो तो व्यक्ति का दिमाग कमजोर होता है, और ऐसी स्थितिमें दिमाग से अधिक काम लेना घातक हो सकता है।


मानव शरीर में उँगलियों का महत्व—- दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। जब दोनों हाथों की सभी उँगलियाँ- अंगुष्ठ से अंगुष्ठ, तर्जनी से तर्जनी, मध्यिका से मध्यिका, अनामिका से अनामिका एवं कनिष्का से कनिष्का मिलती है तो शरीर के, जो ब्रह्मांड का एक छोटा रूप माना जाता है, उत्तरी ध्रुव (बायाँ हाथ) एवं दक्षिण ध्रुव (दायाँ हाथ) के मिलन से एक चक्र पूर्ण होता है, क्योंकि बाएँ हाथ में स्थित सभी बारह राशियों का संपर्क दाहिने हाथ में स्थित सभी बारह राशियों से परस्पर होता है। अँगूठा —– सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है। इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर सकतीं। संभव है इसी के कारण गुरु द्रोण ने एकलव्य से उसका अँगूठा ही गुरुदक्षिणा में माँग लिया था। बंद मुट्ठी से अँगूठे को बाहर निकालकर दिखाने को अँगूठा दिखाना या ठेंगा दिखाना कहा जाता है, जिसका तात्पर्य हमारे यहाँ किसी कार्य को करने से मना करना समझा जाता है। परंतु पश्चिमी सभ्यता में ठीक उलटा यानी थम्स आपको कार्य करने की स्वीकृति समझा जाता है। यूँ तो दुनिया में कई करोड़ मनुष्य हैं, परंतु जिस प्रकार सबकी मुखाकृति भिन्न होती है, उसी प्रकार सभी के अँगूठों के निशान भी भिन्न होते हैं। इसी कारण अपराध जगत में थम्ब इम्प्रेशन का महत्व काफी होता है। तर्जनी —- यह सबसे ऊर्जावान उँगली होती है। हमारे यहाँ विश्वास किया जाता है कि जो बच्चा जितने अधिक दिनों तक उँगली पकड़कर चलता है, वह बड़ों से उतनी ही ऊर्जा प्राप्त करता है। उसका विकास भी उतनी ही तीव्र गति से होता है। तर्जनी की ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि कुछ फल मात्र इसके संकेत से ही मर जाते हैं। देखिए तुलसीदासजी लिखते हैं- ‘इहां कम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनी देखि मर जाहीं।’ ऐसी मान्यता भारत के अलावा अन्य कई देशों में भी है कि नन्हे फल तर्जनी के संकेत से मर जाते हैं। सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है। इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर सकतीं। इसलिए वहाँ किसी को तर्जनी दिखाना अच्छा नहीं माना जाता। तर्जनी का प्रयोग लिखने के लिए अथवा मुख्य कार्य के लिए होता है, जिसके सहायक मध्यिका एवं अँगूठा होते हैं। इसकी ऊर्जा का अंदाज मात्र इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी प्रकार का जप करते समय माला के किसी भी मनके से इसका स्पर्श पूर्णतया वर्जित है। मध्यिका — यह हाथ की सबसे लंबी उँगली तो है परंतु इसका मुख्य कार्य तर्जनी की सहायता करना है। संभवतः इसी कारण जाप में मनकों से इसका भी स्पर्श निषिद्ध माना जाता है। अनामिका—- यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण उँगली है। इसका सीधा संबंध हृदय से होता है। अतः सभी शुभ कार्यों में इसकी मान्यता सबसे अधिक है। इसी कारण जप की माला का संचरण इसके एवं अँगूठे की सहायता से किया जाता है। धार्मिक कृत्यों हेतु कुशा भी इसी उँगली में धारण की जाती है। ग्रहों और नक्षत्रों से संबंधित लगभग सभी रत्न अँगूठी के माध्यम से इसी में धारण किए जाते हैं, जिसके पीछे कारण यह है कि वे रत्न सूर्य से वांछित ऊर्जा प्राप्त कर जातक (धारण करने वाले) को प्रदान करते हैं, जिससे उसके भीतर वांछित ऊर्जा की कमी दूर होती है। वे लोग जो मंत्रों का जप उँगलियों के माध्यम से करते हैं, अपनी गणना इसी उँगली से प्रारंभ करते कनिष्का—– यह हाथ की सबसे छोटी उँगली है, जो हर प्रकार से अनामिका की सहायता करती है। इसे अनामिका की सहायक कहा जाता है। अन्य —- किसी-किसी व्यक्ति के हाथ में छः उँगलियाँ भी होती हैं। लोगों का विश्वास है कि जिन पुरुषों के दाहिने हाथ में एवं जिन स्त्रियों के बाएँ हाथ में छः उँगलियाँ होती हैं, वे बड़े भाग्यशाली होते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार बारहों राशियों का स्थान प्रत्येक उँगली के तीन पोरों (गाँठों) में इस प्रकार होता है- कनिष्का – मेष, वृष, मिथुन अनामिका – कर्क, सिंह, कन्या मध्यिका – तुला, वृश्चिक, धनु तर्जनी – मकर, कुंभ, मीन। शरीर का निर्माण पाँच तत्वों से हुआ है- अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल। इसका भी निवास क्रमशः अँगूठा, तर्जनी, मध्यिका, अनामिका एवं कनिष्ठा में माना जाता है। दो या दो से अधिक उँगलियों के मेल से जो यौगिक क्रियाएँ संपन्न की जाती हैं, उन्हें योग मुद्रा कहा जाता है, जो इस प्रकार हैं- 1. वायु मुद्रा- यह मुद्रा तर्जनी को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है। 2. शून्य मुद्रा- यह मुद्रा बीच की उँगली मध्यिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है। 3. पृथ्वी मुद्रा- यह मुद्रा अनामिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से बनती है। 4. प्राण मुद्रा- यह मुद्रा अँगूठे से अनामिका एवं कनिष्का दोनों के स्पर्श से बनती है। 5. ज्ञान मुद्रा- यह मुद्रा अँगूठे को तर्जनी से स्पर्श कराने पर बनती है। 6. वरुण मुद्रा- यह मुद्रा दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में फँसाकर बाएँ अँगूठे को कनिष्का का स्पर्श कराने से बनती है। सभी मुद्राओं के लाभ अलग-अलग हैं। दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। जब ये दोनों लिए हुए हाथ मस्तिष्क तक पहुँचते हैं तो प्रणाम मुद्रा बनती है। प्रणाम मुद्रा से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है। अतः आइए, हेलो, हाय, टाटा, बाय को छोड़कर प्रणाम मुद्रा अपनाएँ और चित्त को प्रसन्न रखें।


हस्तरेखा /सामुद्रिक शास्त्र / लक्षण शास्त्र से जाने राजयोग —— राजयोग:- जिस स्त्री या पुरुष की नाभि गहरी हो नाक या अग्र भाग यानी आगे का हिस्सा सीधा हो सीना लाल रंग का हो पैर के तलुये कोमल हों ऐसा व्यक्ति राजयोग के योग से आगे बढता है.और उच्च पदाशीन होता है. राजयोग धनवान योग:- जिसके हाथ में चक्र फ़ूलों की माला धनुष रथ आसन इनमे से कोई चिन्ह हो तो उसके यहाँ लक्ष्मी जी निवास किया करती है. उच्चपद योग:- जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में सूर्य रेखा मस्तक रेखा से मिलती हो और मस्तक रेखा से गहरी स्पष्ट होकर गुरु क्षेत्र में चतुष्कोण में बदल जाये तो ऐसा व्यक्ति उच्चपदासीन होता है. पीसीएस या आईएस योग:- जिसके हाथ में सूर्य और गुरु पर्वत उच्च हों और शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिन्ह हो चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से सम्बन्ध हो और भाग्य रेखा हथेली के मध्य से आरंभ होकर एक शाखा गुरु पर्वत और दूसरी रेखा सूर्य पर्वत पर जाये तो निश्चय ही यह योग उस जातक के लिये होते है. विदेश यात्रा योग :- जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में जीवन रेखा से निकल कर एक शाखा भाग्य रेखा को काटती हुयी चन्द्र क्षेत्र को रेखा जाये तो वह विदेश यात्रा को सूचित करती है. भू स्वामी योग:- जिसके हाथ में एक खडी रेखा सूर्य क्षेत्र से चलकर चन्द्र रेखा को स्पर्श करे,मस्तक रेखा से एक शाखा चन्द्र रेखा से मिलकर डमरू का निशान बनाये तो वह व्यक्ति आदर्श नागरिक और भूस्वामी होने का अधिकारी है. पायलट योग:- जिसके हाथ में चन्द्र रेखा जीवन रेखा तक हो बुध और गुरु का पर्वत ऊंचा हो ह्रदय रेखा को किसी प्रकार का अवरोध नही हो तो वह व्यक्ति पायलट की श्रेणी में आता है. ड्राइवर योग:- जिसके हाथ की उंगलिया के नाखून लम्बे हों हथेली वर्गाकार हो चन्द्र पर्वत ऊंचा हो सूर्य रेखा ह्रदय रेखा को स्पर्श करे मस्तक रेखा मंगल पर मिले या त्रिकोण बनाये तो ऐसा व्यक्ति छोटी और बडी गाडियों का ड्राइवर होता है. वकील योग:- जिसके हाथ में शनि और गुरु रेखा पूर्ण चमकृत हो और विकसित हो या मणिबन्ध क्षेत्र में गुरु वलय तक रेखा पहुंचती हो तो ऐसा व्यक्ति कानून का जानकार जज वकील की हैसियत का होता है. सौभाग्यशाली योग:- जिस पुरुष एक दाहिने हाथ में सात ग्रहों के पर्वतों में से दो पर्वत बलवान हों और इनसे सम्बन्धित रेखा स्पष्ट हो तो व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है. जुआरी सट्टेबाज योग:- जिस व्यक्ति की अनामिका उंगली मध्यमा के बराबर की हो तो ऐसा व्यक्ति सट्टेबाज और जुआरी होता है. चोरी का योग:- जिस पुरुष या स्त्री के हाथ में बुध पर्वत विकसित हो और उस पर जाल बिछा हो तो उसके घर पर बार बार चोरियां हुआ करती है. पुलिस सेवा का योग:- जिसके हाथ में मंगल पर्वत से सूर्य पर्वत और शनि की उंगली से बीचों बीच कोई रेखा स्पर्श करे तो व्यक्ति सेना या पुलिस महकमें मे नौकरी करता है. भाग्यहीन का योग:- जिस जातक के हाथ में हथेली के बीच उथली हुयी आयत का चिन्ह हो तो इस प्रकार का व्यक्ति हमेशा चिडचिडा और लापरवाह होता है. फ़लित शास्त्री योग:- जिस व्यक्ति के गुरु -पर्वत के नीचे मुद्रिका या शनि शुक्र बुध पर्वत उन्नत हों वह ज्योतिषी होता है. नर्स सेविका योग:- जिस स्त्री की कलाई गोल हाथ पतले और लम्बे हों बुध पर्वत पर खडी रेखायें हों व शुक्र पर्वत उच्च का हो तो जातिका नर्स के काम में चतुर होती है. नाडी परखने वाला:- जिस व्यक्ति का चन्द्र पर्वत उच्च का हो वह व्यक्ति नाडी का जानकार होता है. दगाबाज या स्वार्थी योग:- जिसके नाखून छोटे हों हथेली सफ़ेद रंग की हो मस्तक रेखा ह्रदय रेखा में मिलती हो तो ऐसा व्यक्ति दगाबाज होता है,मोटा हाथ और बुध की उंगली किसी भी तरफ़ झुकी होने से भी यह योग मिलता है,बुध की उंगली सबसे छोटी उंगली को बोला जाता है. विधुर या विधवा योग:- यदि विवाह रेखा आगे चलकर ह्रदय रेखा से मिले या भाग्य रेखा टूटी हो अथवा रेखा पर काला धब्बा हो तो ऐसा जातक विधवा या विधुर होता है. निर्धन व दुखी योग:- यदि किसी जातक की जीवन रेखा पर जाल बिछा हो तो ऐसा व्यक्ति निर्धन और दुखी होता है. माता पिता का अभाव योग:- जिस व्यक्ति के हाथ में मणि बन्ध के बाद ही त्रिकोण द्वीप चिन्ह हो तो जातक बाल्यावस्था से माता पिता से दूर या हीन होता है. जिस जातक की हथेली में तर्जनी और अंगूठा के बीच से मंगल स्थान से जीवन रेखा की तरफ़ छोटी छोटी रेखायें आ रही हों और जीवन रेखा से मिल रही हो तो जातक को बार बार शरीर के कष्ट मिलते रहते है,लेकिन जीवन रेखा के साथ साथ कोई सहायक रेखा चल रही हो तो जातक का भाग्य और इष्ट उन कष्टों से दूर करता रहता है. जीवन रेखा के गहरे होने से व्यक्ति निर्धन होता है,गहरी होने के साथ लाल रंग की हो तो क्रोधी होता है काले रंग की हो तो कई रहस्य छुपाकर रखता है,और टेडी मेढी हो तो जातक कभी कुछ कभी कुछ करने वाला होता है.

Hair Loss and Astrology | हेयर फॉल के ज्योतिषीय कारण और उपाय

Hair Loss and Astrology | हेयर फॉल के ज्योतिषीय कारण और उपाय

Samudrik Shastra - सामुद्रिक शास्त्र

“ज्योतिषीय दृष्टि से हमारी कुंडली के नो ग्रहों में से सिर के बाल झड़ना या गंजेपन की समस्या का कारक विशेष रूप से जिस ग्रह को माना गया है वह है “सूर्य“, कुंडली में सूर्य का पीड़ित होना ही विशेष रूप से हेयरफॉल की समस्या देता है पर इसके अतिरिक्त बुध त्वचा का कारक है, शनि को बालों की जड़ का कारक माना गया है अतः सूर्य के अतिरिक्त बुध और शनि की भी यहाँ महत्वपूर्ण भूमिका होती है पर विशेष रूप से जब सूर्य किसी भी प्रकार पीड़ित या कमजोर हो ऐसे में व्यक्ति को हेयर फॉल या गंजेपन की समस्या का सामना करना पड़ता है“

हेयर–फॉल की समस्या के कुछ विशेष ग्रहयोग –

1. यदि कुंडली में सूर्य नीच राशि (तुला) में स्थित हो तो व्यक्ति को सिर के बाल झड़ने या गंजेपन की समस्या होती है।
2. सूर्य यदि कुंडली के छटे या आठवे भाव में हो तो हेयर फॉल की समस्या होती है।
3. सूर्य यदि राहु या केतु के साथ होने से पीड़ित हो तो भी सिर के बाल झड़ने की समस्या होती है।
4. सूर्य और शनि का योग भी हेयर फॉल और गंजेपन की समस्या देता है।
5. सूर्य पर राहु की दृष्टि होना भी हेयर फॉल को बढ़ाता है।
6. कुंडली में शनि का नीच राशि (मेष) में होना, छटे, आठवे भाव में होना भी सिर के बाल झड़ने का कारण बनता है।
7. बुध त्वचा का कारक है अतः नीच राशि (मीन) या छटे आठवे भाव में स्थित बुध भी हेयर फॉल की समस्या में अपनी भूमिका निभाता है।
विशेष – यहाँ ऊपर बताये गए योगो में व्यक्ति को सिर के बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न होती है पर यह समस्या गंभीर रूप में तभी बदलती है जब कुंडली में सूर्य अति पीड़ित हो और शुभ प्रभाव से वंचित हो हेयर फॉल के अलावा विशेष रूप से बाल्डनेस अर्थात गंजेपन की समस्या तभी आती है जब कुंडली में सूर्य अति पीड़ित और शुभ प्रभाव से वंचित हो। अब यहाँ कुछ विशेष बातों पर और दृष्टि डालते हैं यदि कुंडली में सूर्य पीड़ित हो तो हेयर फॉल की समस्या तो होती है पर यदि ऐसे में सूर्य पर “बृहस्पति” की शुभ दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति को मेडिकल ट्रीटमेंट से लाभ हो जाता है और उसकी समस्या का समाधान हो जाता है। इसी प्रकार हेयर फॉल  या गंजेपन की समस्या में “राहु” की एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है यदि राहु सूर्य को बहुत पीड़ित कर रहा हो तो राहु के नकारात्मक प्रभाव के कारण बाल झड़ने के बाद वापस ना आने की समस्या होती है क्योंकि राहु अपनी नकारात्मक ऊर्जा से बालों की ग्रोथ को रोक देता है।  

उपाय –

वैसे व्यक्तिगत रूप से हर व्यक्ति की कुंडली में ग्रह योग भिन्न होने से सटीक उपाय अलग अलग होते हैं पर हेयर फॉल की समस्या के लिए यहाँ हम कुछ ऐसे विशेष उपाय बता रहें हैं जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है –

1. ॐ घृणि सूर्याय नमः का जाप करें (एक माला रोज)
2. आदित्य हृदय स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें।
3. सूर्य को प्रतिदिन ताम्र पात्र से जल दें।
4. अनामिका उंगली में ताम्बे का छल्ला धारण करें।
5. किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श के बाद यदि माणिक आपके लिए शुभ है तो माणिक धारण करें।


लंदन के वैज्ञानिकों ने अपने शोध से हाल ही में यह सिद्ध किया है कि बालों की सूक्ष्मता व्यक्ति की बुद्धि से सीधा संबंध रखती है। अपने शोध के प्रथम चरण में शोधकर्मियों ने कुछ सौ महिलाओं के बालों के नमूनों से उनके स्वभाव, चरित्र, और क्षमताओं का पता लगाया। उन्होंने निष्कर्ष निकाले कि जिन महिलाओं के बाल अपेक्षाकृत सूक्ष्म अर्थात पतले होते हैं, वे अधिक महत्वपूर्ण या अधिक वेतन के पदों पर कार्यरत होती हैं। जो स्त्रियां गृहिणियां होती हंै वे सामाजिक और दूसरे सृजनात्मक कार्यों में सक्रिय होती हैं। इसके विपरीत मोटे बालों वाली स्त्रियां अवसरवादी और अस्थिर चित्त की होती हैं। भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले ही उक्त तथ्य का पता लगा लिया था। सामुद्रिक शास्त्र में लिखा है कि सूक्ष्म (पतले) बालों की स्त्री रानी सदृश्य होती है। उसी प्रकार वराहमिहिर ने वृहत्संहिता में लिखा है कि मोटे और घने बालों वाले लोग निर्धन होते हैं। ग्रहों की दो श्रेणियां हैं। एक श्रेणी में वे ग्रह हैं, जो मस्तिष्क को निरंतर ऊर्जावान रखते हैं। सूर्य, चंद्र, गुरु, शुक्र और राहु इसी श्रेणी के ग्रह हैं, जो मस्तिष्क की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसके विपरीत मंगल, बुध, शनि और केतु हमेशा यथास्थिति बनाए रखने में विश्वास रखते हैं। स्थूल और रूखे बाल हों तो जातक मंगल, बुध, शनि और केतु जैसे विघटनकारी और विलंबकारी ग्रहों से प्रभावित होता है। सूक्ष्म, स्निग्ध और कोमल बाल सूर्य, चंद्र, गुरु, शुक्र और राहु का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य यश, चंद्र मानसिक शक्ति, बृहस्पति विवेकशीलता एवं बुद्धि, शुक्र सौंदर्य और राहु अच्छे अवसरों का प्रतीक है। बृहस्पति श्रेष्ठ ग्रह है क्योंकि यह विवेकशीलता और मस्तिष्क की क्षमताओं का प्रतिनिधित्व करता है। मस्तिष्क की क्षमताओं का सही दिशा में उपयोग करने की कला भी बृहस्पति ही सिखाता है। नेतृत्व क्षमता भी बृहस्पति के कारण ही आ पाती है। इन सब गुणों या विशेषताओं के बावजूद बृहस्पति का एक नकारात्मक पक्ष है कि वह सिर पर बालों की कमी करता है। एक दृष्टि से यह हमारे लिए सकारात्मक स्थिति भी है कि हम बृहस्पतिप्रधान व्यक्ति की पहचान तुरत कर सकते हैं। जिस परिवार में गंजापन वंशानुगत नहीं हो किंतु उसका कोई सदस्य बिना किसी स्वास्थ्य समस्या के गंजा हो तो यह गुरु के प्रभाव का ही द्योतक है। ऐसा जातक नेतृत्व क्षमता से संपन्न और विवेकशील होता है। जन्मांग में यदि लग्नगत गुरु हो, तो सिर में गंजेपन की शिकायत हो सकती है। अंक ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति का अंक 3 है। प्रायः देखा जाता है कि अंग्रेजी के तीसरे, छठे, नौवें और 12वें मास की 3, 12, 21 और 30 तारीख को जन्म लेने वाले शिशुओं के बाल आरंभ में बहुत कम होते हैं। इनके सिर के बालों की वृद्धि अपेक्षाकृत विलंब से होती है। इसका कारण गुरु के अंक तीन का जातक पर अत्यधिक प्रभाव होना है। विवेकशीलता के गुणों के कारण बृहस्पति प्रधान जातकों का कोई भी कार्य लापरवाहीपूर्ण नहीं होता है। इन विशेषताओं के कारण जातक की कार्य के प्रति सोचने-समझने की क्षमता में वृद्धि होती है। मस्तिष्क की शक्ति पुष्ट होती है, लेकिन सिर के बाल गिरने लगते हैं। हमेशा ऐसा नहीं होता है कि ऐसे सभी लोगों के सिर के बाल एक ही स्थान से झड़ें। भिन्न मामलों में सिर के बालों के झड़ने के स्थान अलग-अलग होते हंै। मस्तिष्क के अगले भाग में दोनों तरफ गंजापन होना उत्तम माना गया है। ऐसे लोग विचारशील और व्यावहारिक होते हैं। वे प्रायः प्रौढ़ावस्था के आते-आते अपने लक्ष्य के करीब तक पहुंच चुके होते हैं। इनमें बौद्धिक क्षमता पर्याप्त होती है, जो इन्हें लगातार सक्रिय रखती है। ये सृजनात्मक कार्यों में ज्यादा रुचि लेते देखे गए हैं। मस्तक के ठीक पीछे शिखा के पास बाल न होना संघर्ष करवाता है। प्रायः ऐसे लोगों को उनका भाग्य साथ नहीं देता है। वे लगातार संघर्ष करते हैं और अपने कल्पनालोक में विचरण करते रहते हैं। उनमें कार्य की शुरूआत करने की क्षमता का अभाव पाया जाता है। यद्यपि वे श्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता सिद्ध हो सकते हैं, लेकिन ऐसा तभी संभव है जब उन्हें व्यवसाय के आरंभ में आर्थिक के साथ-साथ मानसिक सहयोग भी प्राप्त हो। बहुत से लोगों के सिर पर बाल होते ही नहीं। ऐसा किसी रोग विशेष के कारण भी हो सकता है। यदि इस गंजेपन का संबंध व्यक्ति के क्रियाकलापों से हो तो वह हमेशा नकारात्मक फलों को देने वाला होना चाहिए। ऐसे जातक की सफलता संदिग्ध होती है। वह चाहे बड़ी से बड़ी सफलता प्राप्त कर भी ले, लेकिन कार्य दूसरों के अधीन रह कर ही करता है। उसमें आत्मविश्वास का अभाव होता है। मस्तक के सामने के भाग का गंजा होना सामान्य फल देता है। भौतिक दृष्टि से यह अच्छा संकेत नहीं है। लेकिन ऐसे लोगों को प्राप्तियां बेहतर होती हैं। वे स्वयं अपनी उपलब्धियों को भोग नहीं पाते हैं, लेकिन आने वाली पीढ़ियां उनकी ऋणी रहती हैं। सामान्य मेहनत से ही उन्हें अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। लेकिन वे भविष्य के प्रति इतने चिंतित रहते हैं कि उस सफलता का उपयोग अपने लिए नहीं कर पाते हैं। जिन लोगों के बाल घुंघराले होते हैं। वे अत्यधिक सक्रिय और अपने काम के महारथी होते हैं। प्रायः देखने में आता है कि घुंघराले बालों के जातक समाज में अपनी उपस्थिति को दिखाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। बालों का लंबे समय तक काला बना रहना व्यक्ति के कार्यों या उपलब्धि से संतुष्ट रहने का सूचक है। ऐसे लोग साधारण बुद्धि के स्वामी होते हैं। बालों का सुनहरा होना पारिवारिक पृष्ठभूमि पर निर्भर करता है। यदि किसी जातक के परिवार के सदस्यों के विपरीत सुनहरे बाल हों तो वह अपने परिवार से सामंजस्य बैठा पाने में विफल रहता है। उसका स्वभाव परिवार के अन्य सदस्यों के स्वभाव से नहीं मिलता। जिसके कानों के ऊपर बाल होते हैं। किंतु सिर का मध्य गंजा होता है, वह अवसरवादी और वाचाल होता है। वह अपनी स्थिति को हमेशा बढ़ा चढ़ा कर दिखाता है। उसे सफलता कुछ विलंब से मिलती है, लेकिन स्थायी होती है। यदि बाल समय से पूर्व ही सफेद हो रहे हों, तो यह अत्यधिक परिश्रम का सूचक है। आवश्यकता से अधिक चिंतित रहने वाले लोगों के बाल भी समय से पूर्व ही सफेद हो जाते हैं। सफेद बालों के साथ यदि आंखों के चारों तरफ कालापन भी दिखाई दे, तो यह पारिवारिक कलह का लक्षण है। ऐसे जातकों की स्मरण शक्ति प्रायः नष्ट हो जाती है। जो पुरुष लंबे बाल रखता है वह बहिर्मुखी स्वभाव का होता है। यह भी संभव है कि ये लोग एक से अधिक कार्य जानते हांे। बालों का घना होना बौद्धिक क्षमता पर अंकुश लगाता है। ऐसे जातक अल्प बुद्धि के होते हैं। हमेशा छोटे से स्वार्थ के लिए अपना बड़ा नुकसान कर लेते हैं। निर्णय क्षमता का उनमें प्रायः अभाव होता है। जिनके सिर पर बालों की कमी है उनकी सोच हमेशा सकारात्मक और महत्वाकांक्षी होती है। संभव है कि उन्हें जीवन में प्राप्तियां कम हों लेकिन उनके फैसले हमेशा बुद्धिमत्तापूर्ण होते हैं।

चिकित्सा ज्योतिष: Astrology and Diseases 

ग्रहों का शरीर पर प्रभाव और उसके कारण होने वाले रोग

सूर्य
 – दिमाग समेत शरीर का दायां भाग सूर्य से प्रभावित होता है।
– सूर्य के अशुभ होने पर शरीर में अकड़न आ जाती है।
– मुंह में थूक बना रहता है।
– व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है।
– दिल का रोग हो जाता है। 
– मुंह और दांतों में तकलीफ होती है।
– सिरदर्द बना रहता है।

चंद्रमा
– चन्द्रमा मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है।
– मिर्गी का रोग।
– पागलपन।
– बेहोशी।
– फेफड़े संबंधी रोग।
– मासिक धर्म की गड़बड़ी।
– याददाश्त कमजोर होना। 
– मानसिक तनाव और घबराहट।
– तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय।
– सर्दी-जुकाम बना रहना।
– मन में बार-बार आत्महत्या का विचार अाना।

आपकी कुंडली में कोई घातक ग्रह या योग हैं। अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाइए और समय रहते किसी बीमारी से बचिए।

मंगल
– अांख के रोग।
– हाई ब्लड प्रेशर।
– वात रोग।
– गठिया
– फोड़े-फुंसी होना।
– चोट लगना।
– बार-बार बुखार।
– शरीर में कंपन।
– गुर्दे में पथरी हो जाती है।
– शारीरिक ताकत कम होना।
– रक्त संबंधी बीमारी।
– बच्चे पैदा करने में तकलीफ। 

बुध
– तुतलाहट।
– सूंघने की शक्ति क्षीण होना।
– दांतों का खराब होना।
– मित्र से संबंधों का बिगड़ना।
– अशुभ हो तो बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति आना।
– नौकरी या व्यापार में नुकसान होना।
– सेक्स पावर कम होना।
– व्यर्थ की बदनामी।

गुरु
– इससे श्वास रोग, वायु विकार, फेफड़ों में दर्द होता है।
– कुंडली में गुरु-शनि, गुरु-राहु और गुरु-बुध जब मिलते हैं तो अस्थमा, दमा, श्वास आदि के रोग, गर्दन, नाक या सिर में दर्द भी होने लगता है।
– इसके अलावा गुरु की राहु, शनि और बुध के साथ युति अनुसार भी बीमारियां होती हैं, जैसे- पेचिश, रीढ़ की हड्डी में दर्द, कब्ज, रक्त विकार, कानदर्द, पेट फूलना, जिगर में खराबी आदि।

शुक्र
 – शरीर में गाल, ठुड्डी और नसों से शुक्र का संबंध माना जाता है। 
– वीर्य की कमी हो जाती है। कोई यौन रोग हो सकता है या कामेच्छा समाप्त हो जाती है।
– लगातार अंगूठे में दर्द 
– त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न होना।
– अंतड़ियों के रोग।
– गुर्दे में दर्द
– पांव में तकलीफ आदि।

आपकी कुंडली में कोई घातक ग्रह या योग हैं। अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाइए और समय रहते किसी बीमारी से बचिए।

शनि
– शनि का संबंध मुख्य् रूप से दृष्टि, बाल, भौंह और कनपटी से होता है।
– समय पूर्व आंखें कमजोर होने लगती हैं और भौंह के बाल झड़ जाते हैं।
– कनपटी की नसों में दर्द बना रहता है।
– सिर के बाल समय पूर्व ही झड़ जाते हैं।
– सांस लेने में तकलीफ।
– हड्डियों की कमजोरी के कारण जोड़ों का दर्द पैदा हो जाता है।
– रक्त की कमी।
– पेट संबंधी रोग या पेट का फूलना।
– सिर की नसों में तनाव।
– अनावश्यक चिंता और घबराहट का बढ़ना। 

राहु
– गैस की परेशानी।
– बाल झड़ना
– पेट के रोग।
– बवासीर।
– पागलपन।
– निरंतर मानसिक तनाव।
– नाखूनों का टूटना। 


केतु
– संतान उत्पति में रुकावट।

– सिर के बाल का झड़ना। 

– शरीर की नसों में कमजोरी।
–  चर्म रोग होना।
– कान खराब होना या सुनने की क्षमता कमजोर पड़ना।
– कान, रीढ़, घुटने, लिंग, जोड़ आदि में समस्या।


आपकी कुंडली में कोई घातक ग्रह या योग हैं। अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाइए और समय रहते किसी बीमारी से बचिए।

Hair Loss and Astrology | हेयर फॉल के ज्योतिषीय कारण और उपाय

An excess of pitta dosha in the body is the chief cause of all hair problems. Pitta is increased by excessive intake of fried, greasy, spicy, sour and acidic foods, caffeinated beverages, alcoholic drinks, meats and excessive smoking. These are some of the major causes:

Excess of pitta dosha in the body is the chief cause of hair problems. Pitta is increased by excessive intake of tea, coffee, alcohol, meats and excessive smoking.
Pitta is also aggravated by eating too much fried, oily, greasy, spicy, sour, and acidic foods.
Intake of too many chemical medicines, low blood circulation, anemia, general weakness after disease, stress, anxiety, and mental tension are also prime causes of hair loss.
Chronic diseases like typhoid fever, presence of dandruff or lice and hormonal imbalance also cause hair loss.
Astrologically – the core factors for hair loss and/or baldness are:

Planets – Mars as primary ruler of hair; Sun (primary determinant for the growth of hair on the head) ; Mercury (skin related factors for hair; hair loss for stress or thyroid dysfunctional); Venus / Moon for beauty of hair; Jupiter for added unprecedented growth of hair; Saturn (ruling ageing)
Houses – First House ruling scalp (and also personality / physique of the native)
Signs – Capricorn is primary ruler for hair (along with nails, teeth and cell walls) Libra ruling hair for cosmetic value; Fiery signs (Aries, leo and Sag – Fire signifies the absence of hair); Malefic sign in ascendant (signs owned by Mars / Saturn / Sun) affected by malefics (more so by fiery planets) in Rashi chart or navamsa (D9) chart
Constellation –
Scientifically, good hair growth is determined by three factors, the skin, the hair follicles
and the proteins (keratin – main constituent) that sustain the hair growth. Astrologically these three are controlled by the benefic planets such as Mercury, Venus and Jupiter.

While Aries does rule the head, all of the fire signs (but specifically Leo and Sagittarius) rule over baldness. These Signs found on the cusp usually lead to baldness sometime throughout the individuals lifetime (more sooner than later though). Sun or/and Mars in the 1st or hitting the cusp of the first also can lead to this problem as well, again, especially in fiery Signs.

Hair loss at the centre of scalp (shikha spot) indicates weak or afflicted Jupiter.

Few traditional astrologers also use  astrological rulership of hair as Capricorn and the planet Saturn which rules the sign of Capricorn. Secondary rulership of hair includes the sign Virgo and the planets Mercury and Venus.

Illustrative Combination for Hair Loss / fall, Baldness

Hair loss: 

Ascendant as Aries, Leo, Libra, Sagittarius, and Aquarius have tendency of hair loss.
Mercury is retrograde or in sign Taurus and Scorpio indicates hair loss due to thyroid problem.
Mercury and Mars are related indicates hair loss due to malfunctioning of adrenal glands.
Moon set/severely afflicted/in inimical house indicates hair loss due to sudden and unexpected emotional problems.
Sun in Aries indicated hair loss due to severe fever or excess of body heat.
Ketu in 2nd house indicates hair loss due to undignostic disease.
Rahu, Saturn, Sun and Jupiter present in ascendant indicate hair loss
Moon and Venus is present in ascendant indicates hair loss
Baldness: 

Severe malefic affliction to the Aries, Leo, Libra, Sagittarius and Aquarius
When Taurus / Sagittarius ascendant is aspected by Jupiter
When a functional malefic is placed in a natural malefic house and that house becoming ascendant, the native would become bald-headed.
Weak Mars in a horoscope represents weak hair structure resulting in baldness.
When Mars aspects any one of the following ascendant Leo, Virgo, Scorpio, Sagittarius, the native would become bald – head.
Premature greying: 

Saturn/Rahu aspect/posited in the ascendant indicates premature greying of hair.
Afflicted Moon and Venus in horoscope enhance premature greying.

Dandruff:

Moon and Rahu posited in ascendant causes hair problems due to dandruff.
Infection and disorders causing itching and scaling:

Saturn, Mars and Rahu in ascendant cause hair problems due to bacterial and viral infections.
It must be recalled here that Varahamihira considers the signs of benefic planets as helping in hair growth and the signs of malefic planets having a role in hair loss. However he considers two benefic signs as susceptible for hair-loss. They are Taurus and Sagittarius.

According to Brihad Jataka (23-15), if birth falls in malevolent signs or in Sagittarius or
Taurus and is aspected by evil planets, the person will be bald headed. The lagna
falling in the signs of malefics such as Mars, Sun and Saturn must be devoid of evil
afflictions for lasting hair growth on the head. Among the other signs, Taurus and
Sagittarius ruled by Venus and Jupiter respectively must also be devoid of malefic
afflictions to avoid baldness.

Saturn’s importance can not be undermined because it becomes the governing planet of
the fetus in its 6th month of growth. Hairs start appearing in the 6th month of the fetal
baby. Perhaps a research on the transiting Saturn in the 6th month of the fetus with the
natal lagna (once the baby is born) might give an early idea about the appearance
connected with hair growth.
In the 5th (preceding) month, the fetus gets good growth of the skin which is governed by
the planet moon. This shows how the skin and hair develop in stages one after the
other and how astrology has related well the respective planets to detect the kind of
appearance one gets. Moon, particularly the Navamsa moon tells about the skin color
and appearance supplemented by the hair growth on body and the head.

The Moon and Venus are significators of healthy and beautiful hairs.  And, the placement and/or relationship of the Moon and/or Venus with Saturn can also cause problems of hair loss or baldness to a person. Thick hair is given by Saturn.


When fiery planets namely the Sun, Mars and Ketu influence the first house of a vedic astrology horoscope, they can cause loss of hair and baldness. Similarly, the relationship of fiery or airy signs with first house or its lord can reduce the amount of hair on the scalp.  .In addition to this, placement of Mercury in Airy or Fiery signs has also observed to be causing loss of hair.

Difficult aspect between Sun and Saturn over Ascendant / Ascendant lord will also signify hairloss / baldness. However, if it is for medical reasons ( in which loss is due to skin problem) Mercury / Pluto  effect also needs to be considered.

A weak Mercury and Sun hugely impacts hair growth on your body. Only a really strong Jupiter could cut out the above impact. Dandruff is more of a skin disease then a real hair root problem; and is caused due to weak Mercury.

A combination of weak Venus and Moon, causes extremely thin/forked hair.

The hair which covers the entire body is a natural extension of the skin… which is ruled by Saturn and Venus.

Lagna position
Lagna is the primary determinant for the appearance including the nature of hair growth. Both the luminaries add luster to the appearance. Both of them are connected with hair growth. In the following positions they adversely affect hair growth.
Sun in the lagna or in Navamsa lagna
Sun in the 7th from the lagna / Navamsa lagna .
Moon in Aries or Leo in rasi or Navamsa makes the thinning of hair.
Moon in Taurus gives short hair.
Weaker sun and / or moon in the lagna of Drekkana and Trimsamsa also add to the hairy woes.
Navamsa position.
The following lagna position in Rasi and the corresponding Navamsa shows tendency to lose hair or thinning down of hair.
Lagna in Rasi chart – Lagna in Navamsa
Aries – Gemini
Cancer – Capricorn
Leo – Leo
Scorpio – Sagittarius
Capricorn – Cancer
The following lagna – Navamsa positions are helpful for good appearance of hair.
Lagna in Rasi chart – Lagna in Navamsa
Taurus – Gemini
Taurus – Cancer
Taurus – Leo
Gemini -Capricorn
Cancer – Cancer
Leo – Cancer (Soft hair)
Scorpio -Virgo
Sagittarius – Aries
Sagittarius – Cancer
Generally Navamsa lagna and Navamsa moon determine the appearance of a person. If the Navamsa lagna falls on the houses of benefics without afflicted by malefics, the person will have good growth of beautiful looking hair. The following are with reference to only Navamsa lagna as given in “Brahma Rishi Vaakyam”
If the Navamsa lagna falls in the sign of Sun (Leo), no need to worry about balding.
The person will have thick and curly hair growth. The American President Barack
Obama has Navamsa lagna in Leo, but has sun in the 7th in D-1. The sun is strong
and auspicious in the other divisional charts (D-3 and D-30). So we have to do a
combined reading. Sun in the 7th will certainly give a receding hairline but its
strength in other charts with Leo as Navamsa lagna will not give him undue
baldness. The hair thickness had come down early in his life. The spoilsport is Saturn which is in its own sign in both D-1 and D-9. It is posited in lagna in the rasi. So he must have started graying early. People and the media are thinking that it started only after he assumed office.
If the Navamsa lagna falls in the sign of Moon (Cancer), there must be worry about
hair on the head. There will be more hair on the body but thin hair on the head! Early balding comes with lagna in Cancer in D-9 and D-3 and D-30 (unless the rasi lagna falls in the above mentioned signs that are favorable for growth of hair.)
If the Navamsa lagna falls in the sign of Mars (Aries and Scorpio), there is a strong
chance of balding. This is a major pointer to baldness as per texts. There is no
differentiation between these signs as being fiery or watery. That it is lorded by Mars is the sufficient cause for the hair loss. A famous bald person in this category is
Mahathma Gandhi. His Navamsa falls in Scorpio.
If the Navamsa lagna falls in the sign of Mercury (Gemini and Virgo), the person will
have beautiful hair.
If the Navamsa lagna falls in the sign of Jupiter (Sagittarius and Pisces), once again
the same feature as above. Usually the Navamsa lagna in the houses of benefics
ensure beautiful and good growth of hair.
If the D-9 lagna falls in the sign of Venus (Taurus and Libra), same as above.
If the D-9 lagna falls in the sign of Saturn ( Capricorn and Aquarius), dull and thin
hair would grow. Early graying is also seen.

Planetary Secret of Baldness by Jayasree Saranathan

Natural Remedy for Hair Loss

General dietary recommendations to prevent hairfall: stop eating bitter and very spicy food; stop eating very salty or very sweet products; refrain from anger; wear a red thread in your right hand’s wrist; start drinking from a copper vessel.

Treat hair problems by maintaining balance diet, regular hair wash with yogurt and coconut oil massage

Always before hair wash, apply a mixture of lime juice and yogurt onto your hair and wash it only after sunset. Also avoid eating sour food or fruits.

Guava Leaves are Antiseptic, Prevents Hair Loss, Premature Greying, Diabetes, Cholesterol, Allergies, Diarrhea, Weight Loss, Food Poisoning, Dengue, Acne, Black Heads, Tooth Aches, Wounds, Infections. Guava trees are cultivated in many tropical and subtropical regions. Guavas are rich in dietary fiber and vitamin C, with moderate…

Grind coriander seeds into a paste form and mix a tablespoon of turmeric combined with water. Apply this paste onto your hair, leave it overnight and rinse next morning. Start doing this remedy twice a week.

Leave hung curd in a copper bowl for 3 days; now apply this curd on your scalp at least 1 hour before washing hair.

As much as you can, try to mix vinegar into the water before using it to wash your hair; and regularly massage your scalp with only olive oil.

For people who sweat a lot, start washing your hair a few times in the day – just with plain water is fine, this is make sure there is no residue of sweat in the hair. Make sure you apply coconut oil. The more dry your skin, the more hairfall you’ll have.

Too much Kapha (mucus in the body) if this is the cause of your hairfall, then: massage your head with coconut oil; wear anantmool tree’s root in a red thread around your neck

The first step is to locate the root cause in your diet or lifestyle 
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...