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नारायण नागबली मुहूर्त 2019 Narayan Nag bali Muhurat 2019 - 2020

नारायण नागबली मुहूर्त 2019 Narayan Nag bali Muhurat 2019 - 2020

MonthAuspicious Date for the Pooja
Jan4Jan, 8Jan, 15Jan, 18Jan, 21Jan, 25Jan, 28Jan, 31Jan
Feb4Feb, 11Feb, 14Feb, 18Feb, 22Feb, 26Feb
Mar1Mar, 4Mar, 10Mar, 13Mar, 17Mar, 20Mar, 23Mar, 26Mar, 31Mar
Apr7Apr, 10Apr, 13Apr, 16Apr, 19Apr, 22Apr, 27Apr
May4May, 7May, 11May, 15May, 31May
Jun3Jun, 7Jun, 9Jun, 13Jun, 16Jun, 21Jun, 27Jun
Jul1Jul, 4Jul , 7Jul, 10Jul, 13Jul, 18Jul, 25Jul, 28Jul
Aug1Aug, 7Aug, 10Aug, 14Aug, 21Aug, 24Aug, 28Aug
Sep5Sep, 8Sep, 11Sep, 17Sep, 20Sep, 23Sep, 25Sep
Oct1Oct, 4Oct, 8Oct, 15Oct, 18Oct, 22Oct, 30Oct
Nov2Nov, 4Nov, 11Nov, 14Nov, 18Nov, 21Nov, 24Nov, 27Nov
Dec1Dec, 8Dec, 11Dec, 15Dec, 18Dec, 21Dec, 24Dec, 28Dec
The above-mentioned Narayan Nagbali 2019 Dates are auspicious dates for this Puja.

Dress Code mandatory for this Pooja.

Narayan Nagbali Puja

This Puja is performed 3 days for which devotee needs to bring new clothes.

Puja to be performed by the male. For the female, Pandit Ji performs the Puja on her behalf.

One must fast till they complete the Puja.

Must follow the instructions as defined by the Pundit Ji.

Veg to be consumed during Pooja days.



Narayan-Nagbali नारायणबलि-नागबलि प्रेतदोष- पित्रदोष-नाग दोष:-

Narayan-Nagbali नारायणबलि-नागबलिप्रेतदोष- पित्रदोष-नाग दोष:-

दुर्घटना में मृत अथवा आत्महत्या किए हुए मनुष्य का क्रियाकर्म न होने से उसका लिंगदेह (सूक्ष्म शरीर) प्रेत बनकर भटकता रहता है और कुल में संतान की उत्पत्ति नहीं होने देता । उसी प्रकार, वंशजों को अनेक प्रकार के कष्ट देता है । ऐसे लिंगदेहों को प्रेतयोनि से मुक्त कराने के लिए नारायणबलि करनी पडती है ।

यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता है, जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। आने वाली पीढ़ीयों को भी कष्ट देता है। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। 

नारायण बलि का उद्देश्य मुख्यत: पितृदोष निवारण करना है। नागबलि का उद्देश्य सर्प/ सांप/ नाग हत्या का दोष निवारण करना है। चूंकि केवल नारायण बलि या नागबलि कर नहीं सकते, इसलिए ये दोनों विधियां एक साथ ही करनी पड़ती हैं। 

नारायण नागबली मुहूर्त 2019 Narayan Nag bali Muhurat 2019 - 2020


क्या है नारायणबलि और नागबलि:-
शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। 
नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।

नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। 

क्यों की जाती है नारायणबलि पूजा
प्राय: यह कर्म जातक के दुर्भाग्य संबधी दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते हैं।
1. प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।
2. परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।
3. जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।
4. यह विधि विशेष कर संतानहीनता दूर करने के लिए संतति सुख प्राप्ति के लिए की जाती है। इसके लिए पति-पत्नी के शारीरिक दोष भी प्रमुख कारण हैं।

यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है ?

1. यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं।

2. संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।

3. यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।

नारायण बलि कर्म विधि हेतु मुहुर्त-
त्रिपादपंचकं वर्ज्य प्रारंभ्ये तु बलिद्वये ।
अन्य दोषस्य संप्राप्तीरस्मिन कार्य न दु:ख ।।

सामान्यतया नारायण बलि कर्म पौष तथा माघ महिने में तथा गुरु, शुक्र के अस्तंगत होने पर नहीं किये जाने चाहिए। परन्तु ‘निर्णय सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायण बलि कर्म के लिए धनिष्ठा, पंचक एवं त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है । धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शत्भिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, उत्तरा विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद, ये छ: नक्षत्र ‘त्रिपाद नक्षत्र माने गये है।

स्थल निर्णय:
यह विधि किसी खास क्षेत्र में ही की जाती है ऐसी किंवदन्ति खास कारणों से प्रचरित की गई है किन्तु धर्म सिन्धु ग्रंथ के पेज न.- २22 में ”उद्धृत नारायण बली प्रकरण निर्णय में स्पष्ट है कि यह विधि किसी भी देवता के मंदिर में किसी भी नदी के तीर कराई जा सकती है अत: जहां कहीं भी योग्य पात्र तथा योग्य आचार्य विधि के ज्ञाता हों, इस कर्म को कराया जा सकता है |

Narayan-Nagbali Vidhi नारायणबलि-नागबलि विधि :-

नारायणबलि  Narayan bali

अनुष्ठान (विधि)
अनुष्ठान करने का उचित समय 
नारायणबलि का अनुष्ठान करने के लिए किसी भी मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तथा द्वादशी उचित होती है । एकादशी को अधिवास (देवता की स्थापना) कर द्वादशी को श्राद्ध करें । (वर्तमान में अधिकतर लोग एक ही दिन अनुष्ठान करते हैं ।) संतति की प्राप्ति हेतु यह अनुष्ठान करना हो, तो उस दंपति को स्वयं यह अनुष्ठान करना चाहिए । यह अनुष्ठान श्रवण नक्षत्र, पंचमी अथवा पुत्रदा एकादशी में से किसी एक तिथि पर करने से अधिक लाभ होता है । 

२. अनुष्ठान करने के लिए उचित स्थान

नदी तीर जैसे पवित्र स्थान पर यह अनुष्ठान करें ।

३. पद्धति

पहला दिन : प्रथम तीर्थ में स्नान कर नारायणबलि संकल्प करें । दो कलशों पर श्रीविष्णु एवं वैवस्वत यम की स्वर्णप्रतिमा स्थापित कर उनकी षोडशोपचार पद्धति से पूजा करें । तत्पश्चात, उन कलशों की पूर्व दिशा में दर्भ (कुश) से एक रेखा खींचकर उस पर कुश को उत्तर-दक्षिण बिछा दें और ‘शुन्धन्तां विष्णुरूपी प्रेतः’ यह मंत्र पढकर दस बार जल छोडें ।

तत्त्पश्चात दक्षिण दिशा में मुख कर अपसव्य (यज्ञोपवीत दाहिने कँधे पर) होकर विष्णुरूपी प्रेत का ध्यान करें । उन फैलाए हुए कुशों पर मधु, घी तथा तिल से युक्त दस पिंड ‘काश्यपगोत्र अमुकप्रेत विष्णुदैवत अयं ते पिण्डः’ कहते हुए दें । पिंडों की गंधादि से पूजा कर, उन्हें नदी अथवा जलाशय में प्रवाहित कर दें । यहां पहले दिन का अनुष्ठान पूरा हुआ ।


दूसरा दिन : मध्याह्न में श्रीविष्णु की पूजा करें । पश्चात १, ३ अथवा ५ ऐसी विषम संख्या में ब्राह्मणों को निमंत्रित कर एकोद्दिष्ट विधि से उस विष्णुरूपी प्रेत का श्राद्ध करें । यह श्राद्ध ब्राह्मणों के पादप्रक्षालन से आरंभ कर तृप्ति-प्रश्न (हे ब्राह्मणों, आप लोग तृप्त हुए क्या ?, ऐसे पूछना) तक मंत्ररहित करें । श्रीविष्णु, ब्रह्मा, शिव एवं सपरिवार यम को नाममंत्रों से चार पिंड दें । विष्णुरूपी प्रेत के लिए पांचवां पिंड दें । पिंडपूजा कर उन्हें प्रवाहित करने के पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा दें । एक ब्राह्मण को वस्त्रालंकार, गाय एवं स्वर्ण दें । तत्पश्चात प्रेत को तिलांजलि देने हेतु ब्राह्मणों से प्रार्थना करें । ब्राह्मण कुश, तिल तथा तुलसीपत्रों से युक्त जल अंजुलि में लेकर वह जल प्रेत को दें । पश्चात श्राद्धकर्ता स्नान कर भोजन करे । धर्मशास्त्रों में लिखा है कि इस अनुष्ठान से प्रेतात्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है ।


स्मृतिग्रंथों के अनुसार नारायणबलि एवं नागबलि एक ही कामना की पूर्ति करते हैं, इसलिए दोनों अनुष्ठान साथ-साथ करने की प्रथा है । इसी कारण इस अनुष्ठान का संयुक्त नाम ‘नारायण-नागबलि’ पडा ।



नागबलि Nagbali

पहले के किसी वंशज से नाग की हत्या हुई हो, तो उस नाग को गति न मिलने से वह वंश में संतति के जन्म को प्रतिबंधित करता है । वह किसी अन्य प्रकार से भी वंशजों को कष्ट देता है । इस दोष के निवारणार्थ यह अनुष्ठान किया जाता है ।

अनुष्ठान (विधि)

संतति की प्राप्ति के लिए यह अनुष्ठान करना हो, तो उस दंपति को अपने हाथों से ही यह अनुष्ठान करना चाहिए । अनुष्ठान पुत्रप्राप्ति के लिए करना हो, तो श्रवण नक्षत्र, पंचमी अथवा पुत्रदा एकादशी, इनमें से किसी एक तिथि पर करने से अधिक लाभ होता है ।’

नारायण-नागबालि विधि करते समय हुई अनुभूतियां

नारायण-नागबलि अनुष्ठान करते समय वास्तविक प्रेत पर अभिषेक करने का दृश्य दिखाई देना तथा कर्पूर लगाने पर प्रेत से प्राणज्योति बाहर निकलती दिखाई देना

‘नारायण-नागबलि अनुष्ठान में नारायण की प्रतिमा की पूजा करते समय मुझे लगा कि ‘इस अनुष्ठान से वास्तव में पूर्वजों को गति मिलनेवाली है ।’ उसी प्रकार, आटे की प्रेतप्रतिमा पर अभिषेक करते समय लग रहा था जैसे मैं वास्तविक प्रेत पर ही अनुष्ठान कर रहा हूं । अंत में प्रतिमा की छाती पर कर्पूर लगाने पर प्रेत से प्राणज्योति बाहर जाती दिखाई दी और मेरे शरीर पर रोमांच उभरा । 



ये अनुष्ठान कौन कर सकता है ?
१. ये काम्य अनुष्ठान हैं । यह कोई भी कर सकता है । जिसके माता-पिता जीवित हैं, वह भी कर सकते हैं ।
२. अविवाहित भी अकेले यह अनुष्ठान कर सकते हैं । विवाहित होने पर पति-पत्नी बैठकर यह अनुष्ठान करें ।

निषेध
१. स्रियों के लिए माहवारी की अवधि में ये अनुष्ठान करना वर्जित है ।
२. स्त्री गर्भावस्था में ५वें मास के पश्चात यह अनुष्ठान न करे ।
३. घर में विवाह, यज्ञोपवीत इत्यादि शुभकार्य हो अथवा घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए, तो यह अनुष्ठान एक वर्ष तक न करें । 

पद्धति  
अनुष्ठान करने हेतु पुरुषों के लिए धोती, उपरना, बनियान तथा महिलाओं के लिए साडी, चोली तथा घाघरा इत्यादि नए वस्त्र (काला अथवा  हरा रंग न हो) लगते हैं । ये नए वस्त्र पहनकर अनुष्ठान करना पडता है । तत्पश्चात ये वस्त्र दान करने पडते हैं । तीसरे दिन सोने के नाग की (सवा ग्राम की) एक प्रतिमा की पूजा कर दान किया जाता है ।

अनुष्ठान में लगनेवाली अवधि
नारायण-नागबलि अनुष्ठान तीन दिनों का होता है |
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