अगर आपके जीवन में कोई परेशानी है, जैसे: बिगड़ा हुआ दांपत्य जीवन , घर के कलेश, पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध, निसंतान माता पिता, दुश्मन, आदि, तो अभी सम्पर्क करे. +91-8602947815
Showing posts with label रावण द्वारा नवग्रह को बंदी बनाना (Navgraha Bandhan by Ravana). Show all posts
Showing posts with label रावण द्वारा नवग्रह को बंदी बनाना (Navgraha Bandhan by Ravana). Show all posts

नवग्रह ऊर्जा नियंत्रण:-

नवग्रह ऊर्जा नियंत्रण:-

ग्रहों से संबधित वस्तुओं के दान के अतिरिक्त ग्रहों को मनचाहे ख़ााने में पहुंचाने व निर्बल तथा पाप ग्रहों के अनेकों प्रावधानों का उल्लेख है। ग्रहों का भाव (ख़ाना) परिवर्तन लाल किताब के ज्योतिषीय विधान में कुण्डली के अकारक व निर्बल भाव में स्थित किसी ग्रह के सकारात्मक व मन चाहे फल की प्राप्ति हेतु भाव परिर्वतन की विधि का भी प्रावधान है जिस के द्वारा किसी भी ग्रह को किसी भी भाव में स्थापित करके शुभफल की प्राप्ति की जा सकती है।

किसी ग्रह को पहले भाव अर्थात लग्न स्थान में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को गले में धारण करना।
दूसरे भाव में किसी ग्रह को पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को किसी धार्मिक स्थान पर रखना।
किसी ग्रह को तीसरे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित रत्न व धातु को हाथ या उंगुली में धारण करना।

किसी ग्रह को चौथे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दरिया की बहती जल धारा में प्रवाहित करना।

किसी ग्रह को पांचवे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को पाठशाला में दान करना। किसी
ग्रह को छठे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को कुऐं में डालना।

यदि किसी ग्रह को सातवें भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन की सतह के अन्दर दबाना।

आठवें भाव में यदि किसी ग्रह को पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को शमशान की सतह में जाकर दबाना।

किसी ग्रह को नौवे भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को धारण करना।

किसी ग्रह को दसवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित कोई खाने की वस्तु अपने पिता को खिलाना या किसी समीप के सरकारी कार्यालय की जमीन की सतह पर गाड़ देना।

ग्यारहवें भाव में कोई भी ग्रह उच्च या नीच का नही होता इस कारण इस स्थिति में किसी भी प्रकार के उपाय की आवश्यकता नही पड़ती।

किसी ग्रह को बारहवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को घर की छत पर रखना।

कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है।

प्रबल व बलवान ग्रहों के हेतु निर्देशः-कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है।

ज्योतिष मे लाल किताब.
लाल किताब में ग्रह दोष निवारण के लिए सच्चरित्रता एवं सद्व्यवहारिकता को बहुत प्रमुखता दी गयी है। इस पद्धति में सकारात्मक और मनचाहे फल की प्राप्ति के लिए भाव परिवर्तन की विधि का भी प्रावधान है जिससे शुभ फल की प्राप्ति की जा सकती है। इस किताब के विधिवत सूत्र अर्थात ज्योतिषीय दृष्टिकोण, चमत्कारी उपाय व टोटके जनमानस की व्यवहारिकता की कसौटी पर दिन प्रतिदिन खरे उतरते चले गए तथा इस की लोकप्रियता बढ़ती रही।



ज्योतिषीय स्वरूपः- इस किताब के ज्योतिषीय स्वरूप में कुण्डली के भावों को ख़ााना अर्थात घर की संज्ञा दी गई है तथा जातकों के जन्म कुण्डली में लग्न को स्थाई रूप से मेष राद्गिा के रूप में बरकरार रखते हुए लग्न एक से लेकर बारह भावों की राशियों क्रमशः मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर, कुंभ व मीन के स्थानों को यथावत रखा गया है।

जिसमें सूर्य को पहले व पांचवें, चन्द्र को चौथे, मंगल को तीसरे व आठवें, बुध को छठे व सातवें, गुरू को दूसरे, नौवें व बारहवें, शुक्र को सातवें तथा शनि को आठवें, दसवें व ग्यारहवें भाव का कारक ग्रह माना गया है। रातु-केतु को कोई भाव नही दिया गया परन्तु छठे भाव में इनकी उपस्थिति को शुभ फल दायक कहा गया है। इस ग्रंथ के व्यवहारिक सिद्धांतों में राहु-सूर्य, राहु-चन्द्र, केतु-सूर्य, केतु-चन्द्र,शनि-राहू, शनि-केतु, शनि-चन्द्र तथा शनि-सूर्य की युतियों को शुभ फलदायक नही माना गया है। ग्रह-दोष निवारण में सच्चरित्र व सद्व्यवहारिकता को अधिक प्रमुखता दी गई है।


उदाहरणार्थ-यदि कुण्डली में सूर्य बलवान हो तो इस ग्रह से संबंधित वस्तु गुड़, गेहूं, लाल वस्त्र, तांबा, सोना, माणिक्य रत्न का दान करना वर्जित कहा गया है। ग्रह-दोषों का उपायः-कुण्डली व गोचर में किसी भी ग्रह की अनिष्टता के कारण उत्पन्न समस्या व उसके निवारण हेतु लाल किताब में अनेकों उपायों का उल्लेख है।
प्रत्येक उपाय को कम से कम 7 दिन व अधिक से अधिक 43 दिनों तक लगातार करने का निर्देश है। यदि प्रक्रिया का क्रम बीच में खंडित हो जाए तो पुनः विधिवत् इन प्रयोगों को फिर से पूर्ण करना चाहिए।

"सभी नौ ग्रहों की शांति के हेतु सूखे नारियल के अंदर घी  व खांड भरकर सुनसान जगह में स्थित चीटियों के बिल के अन्दर गाड़ने के प्रयोग को सर्वोत्तम उपाय की संज्ञा दी गई है। इस के अतिरिक्त सभी नौ ग्रहों के दोषों के अलग-अलग विधिवत् उपायों के भी सूत्र बताए गए हैं।"

सूर्यः-यदि कुण्डली में सूर्य छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो अथवा गोचर में निर्बल व अशुभ अवस्था में हो तो यह राजद्गााही समस्या, दुर्धटना में हड्डी टूटने, रक्त-चाप, दाई नेत्र में कष्ट, उदर व अग्नि-तत्व से संबंधित रोग व पीड़ा का कारक माना गया है।

उपायः-राजा, पिता व सरकारी पदाधिकारी का सम्मान करें। उदित सूर्य के समय में संभोग न करें। सूर्य से संबंधित कोई वस्तु बाजार से मुफ्त में न लें। पीतल के बर्तनों का सर्वदा प्रयोग करें। रविवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में गुड़ व तांबा प्रवाहित करें।

चंद्रः-गोचर में चन्द्र निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में छठे, आठवें, दसवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो इस कारण मानसिक पीड़ा, जल तत्व से जुड़ा रोग व पशु हानि की समस्यांए उत्पन्न हो जाती है।

उपायः- रात को दूध का सेवन न करें। जल व दूध को ग्रहण करते समय चाँदी के पात्र का प्रयोग करें। सोमवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में मिश्री व चावल को सफेद कपड़े में बांधकर प्रवाहित करें। सोमवार के दिन अपने दाहिने हाथ से चावल व चाँदी का दान करें।

मंगलः-गोचर में मंगल निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे व आठवें भाव में अकेला विराजमान हो तो इस अकारक अवस्था के कारण रक्त विकार, क्रोध, तीव्र सिर दर्द, नेत्र रोग व संतान हानि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- बुआ अथवा बहन को लाल कपड़ा दान में दें। मंगलवार को दरिया की बहती जलधारा में रेवड़ी व बताद्गाा प्रवाहित करें। मूंगा, खांड, मसूर व सौंफ का दान करें। नीम का पेड़ लगाएं। मीठी तंदूरी रोटी कुत्ते को खिलाएं। रोटी पकाने से पहले गर्म तवे पर पानी की छींटे दें।

बुधः-गोचर में बुध नीच, अस्त व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे भाव में स्थित हो तो आत्म विश्वास की कमी, नशे, सट्टे व जुए की लत, बेटी व बहन को कष्ट, मानसिक तथा गले से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है।

उपायः- बुधवार के दिन भीगी मूंग का दान करें। मिट्टी के घड़े या पात्र में शहद रखकर किसी वीराने स्थान पर दबाएं। कच्चा घड़ा दरिया में प्रवाहित करें। तांबे का सिक्का गले में धारण करें। सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराएं व चूड़ी दान में दें। चौड़े हरे पत्ते वाले पौधे अपने घर की छत के ऊपर लगाएं।

गुरु :-गोचर में गुरु नीच, वक्री व निर्बल हो तथा कुण्डली में छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो तो मान-सम्मान में कमी, अधूरी शिक्षा, गंजापन, झूठे आरोप, पीलिया आदि जैसे रोग व समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- माथे पर नित्य हल्दी अथवा केसर का तिलक करें। पीपल का वृक्ष लगाएं तथा केसर का तिलक करें। दरिया में गंधक प्रवाहित करें। पुरोहित को पीले रंग की वस्तु दान में दें।

शुक्र :-गोचर में शुक्र अशुुभ हो तथा कुण्डली में पहले, छठे व नौवें भाव में स्थित हो तो चर्मरोग, स्वप्न दोष, धोखा, हाथ की अंगूठी आदि निष्क्रिय होने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- 43 दिनों तक किसी गंदे नाले में नीले फूल डालें। स्त्री का सम्मान करें। इत्र लगाएं। दही का दान करें। साफ सुथरे रहें तथा अपने बिस्तर की चादर को सिलवट रहित रखें।

शनिः-गोचर में शनि के अशुभ तथा कुण्डली में पहले, चौथे, पांचवें व छठे भाव में स्थित होने की अवस्था को आर्थिक हानि, कानूनी समस्या, गठिया रोग, पलकों के झड़ने, कन्या के विवाह में विलंब, आग लगने, मकान गिरने, नौकर के काम छोड़ने आदि घटनाओं का कारक माना गया है।

उपायः- लोहे का छल्ला अथवा कड़ा धारण करें। मछलियों को आटे की गोलियां खाने को दें। अपने भोजन का अंद्गा कौए को दें। सुनसान जगह के सतह पर सुरमा दबाएं।

राहु :-कुण्डली में राहु अशुभ व शत्रु ग्रह से युक्त हो तथा पहले, पांचवें, आठवें, नौवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो शत्रुता, दुर्धटना, मानसिक पीड़ा, क्षयरोग, कारोबार में हानि, झूठे आरोप आदि की समस्याऐं उत्पन्न होने लगती हैं।

उपायः- मूली दान में दें। जौ को दूध में धोकर दरिया में प्रवाहित करें। कच्चे कोयले को दरिया में प्रवाहित करें। हाथी के पांव के नीचे की मिट्टी कुऐं में डालें।

केतु :-कुण्डली व गोचर में अशुभ केतु फोड़े फुंसी, मूत्राद्गाय से संबंधित रोग, रीढ़ व जोड़ों का दर्द, संतान हानि आदि जैसी समस्या का कारक माना गया है।

उपायः- कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। मकान के नीव की सतह पर शहद दबाएं। कंबल दान में दें। सफेद रेशम के धागे को कंगन की तरह हाथ में बांधे।
अगर आप अपने कुण्डली का विश्लेषण करेंगे तो आपको सही उपाय अवश्य ही प्राप्त होगा।

विभिन्न ऋण व उनके उपाय लाल किताब में वर्णित, पूर्व जन्मानुसार जातक के ऊपर विभिन्न ऋण व उनके उपाय इस प्रकार हैं। स्वऋण- जन्मकुंडली के पंचम भाव में पापी ग्रहों के होने से स्वऋण होता है। इसके प्रभाववश जातक निर्दोष होते हुए भी दोषी माना जाता है। उसे शारीरिक कष्ट मिलता है, मुकदमे में हार होती है और कार्यों में संघर्ष करना पड़ता है। इससे मुक्ति के लिए जातक को अपने सगे संबंधियों से बराबर धन लेकर उस राशि से यज्ञ करना चाहिए। मातृ ऋण- चतुर्थ भाव में केतु होने से मातृ ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक को धन हानि होती है, रोग लग जाते हैं, ऋण लेना पड़ता है। प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है। इससे मुक्ति के लिए जातक को खून के संबंधियों से बराबर चांदी लेकर बहते पानी में बहानी चाहिए। सगे संबंधियों का ऋण- प्रथम व अष्टम भाव में बुध व केतु हों, तो यह ऋण होता है। जातक को हानि होती है संकट आते रहते हैं और कहीं सफलता नहीं मिलती। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर किसी शुभ कार्य हेतु दान देना चाहिए। बहन ऋण- तृतीय या षष्ठ भाव में चंद्र हो तो बहन ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक के जीवन में आर्थिक परेशानी आती है, संघर्ष बना रहता है और सगे संबंधियों से सहायता नहीं मिलती। इससे मुक्ति के लिए जातक को परिवार के सदस्यों से बराबर पीले रंग की कौडियां लेकर उन्हें जलाकर उनकी राख को पानी में प्रवाहित करना चाहिए। पितृ ऋण- द्वितीय, पंचम, नवम या द्वादश भाव में शुक्र, बुध या राहु हो तो पितृ ऋण होता है इस ऋण से ग्रस्त व्यक्ति को वृद्धावस्था में कष्ट मिलते हैं, धन हानि होती है और आदर सम्मान नहीं मिलता। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर किसी शुभ कार्य के लिए दान देना चाहिए। स्त्री ऋण- द्वितीय या सप्तम भाव में सूर्य, चंद्र या राहु हो तो स्त्री ऋण होता है। इस ऋण के फलस्वरूप जातक को अनेक दुख मिलते हैं और उसके शुभ कार्यों में विघ्न आता है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर गायों को भोजन कराना चाहिए। असहाय का ऋण- दशम व एकादश भाव में सूर्य, चंद्र या मंगल हो तो यह ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उसकी उन्नति में बाधाएं आती हैं और हर काम में असफलता मिलती है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सभी सदस्यों से बराबर धन लेकर मजदूरों को भोजन कराना चाहिए। अजन्मे का ऋण- द्वादश भाव में सूर्य, शुक्र या मंगल हो तो अजन्मे का ऋण होता है जो जातक इस ऋण से ग्रस्त होता है उसे जेल जाना पड़ता है, चारों तरफ से हार मिलती है और शारीरिक चोट पहंुचती है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से एक-एक नारियल लेकर जल में बहाना चाहिए। ईश्वरीय ऋण- षष्ठ भाव में चंद्र या मंगल हो तो ईश्वरीय ऋण होता है। इस ऋण के फलस्वरूप जातक का परिवार नष्ट होता है, धन हानि होती है और बंधु बांधव विश्वासघात करते मिलते है इसके लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर कुत्तो   को भोजन कराना चाहिए। खराब या अशुभ ग्रह के लक्षण सूर्य- जातक बाल्यावस्था में ही अपने पिता से अलग हो जाता है, उसके शरीर में विकार उत्पन्न हो जाते है , नेत्र रोग हो जाता है, यश कम मिलता है और नींद कम आती है। चंद्र- घर में पानी की समस्या रहती है, कल्पनाशक्ति कमजोर हो जाती है, घर में दुधारू गाय या भैंस नहीं रहती और माता का स्वास्थ्य खराब रहता है। बुध- जातक को नशे, सट्टे व जूए की लत लग जाती है और बेटी व बहन को दुख रहता है। गुरु- विवाह में देरी होती है, सोना खोने लगता है, चोटी के बाल उड़ जाते हैं, शिक्षा में बाधा आती है और अपयश का शिकार होना पड़ता है। शुक्र- जातक को प्रेम में धोखा मिलता है, उसका अंगूठा बेकार हो जाता है, त्वचा में विकार उत्पन्न होते हंै और वह स्वप्नदोष से ग्रस्त होता है। शनि- घर में आगजनी होती है, मकान का नाश होता है, पलकों व भौंहों के बाल गिर जाते हैं और विपत्तियाँ  आती रहती हैं। राहु- हाथ के नाखून झड़ जाते हैं, पालतू कुत्ता मर जाता है, दिमाग गुम रहता है और शत्रु बढ़ जाते हैं। केतु-पैरों के नाखून झड़ जाते हैं, जोड़ों में दर्द रहता है, मूत्र कष्ट होता है और पुत्र का स्वास्थ ठीक नहीं रहता है। रिश्तेदारों से ग्रहों के उपाय- लाल किताब में किसी खराब ग्रह को शुभ करने के लिए उस ग्रह से संबंधित रिश्तेदार की सेवा करना व उसका आशीर्वाद लेना ऐसा करने से वह खराब ग्रह अपने आप ठीक होने लगता है। उदाहरणस्वरूप खराब सूर्य को ठीक करने के लिए जातक स्वयं राजा, पिता या सरकारी कर्मचारी की सेवा करे और उनका आर्शीवाद ले। ग्रहों से संबंधित रिश्तेदार इस प्रकार हैं- सूर्य- राजा, पिता या सरकारी कर्मचारी। चंद्र- माता, सास या बुजुर्ग स्त्री। मंगल- भाई, साले या मित्र। बुध- बहन, बेटी या नौ वर्ष से कम आयु की कन्याएं। गुरु- कुल पुरोहित, पिता या बुजुर्ग व्यक्ति। शुक्र- पत्नी या कोई अन्य स्त्री। शनि- नौकर, मजदूर या ताया। राहु- ससुर या नाना। केतु- लड़का, भतीजा या नौ वर्ष से कम आयु के लड़के। पूजा द्वारा ग्रहों के उपाय- विभिन्न ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए लाल किताब के अनुसार निम्नलिखित क्रिया करनी चाहिए। सूर्य- हरिवंश पुराण का पाठ व सूर्य देव की उपासना। चंद्र- शिव चालीसा व संुदर कांड का पाठ। बुध- दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ। गुरु- श्री ब्रह्मा जी की उपासना व भागवत पुराण का पाठ। शुक्र- लक्ष्मी जी की उपासना व शराब से श्री सूक्त का पाठ। शनि – श्री भैरव जी की उपासना व शराब से परहेज राहु- सरस्वती जी की उपासना। केतु- श्री गणेश जी की उपासना। दान द्वारा ग्रहों के उपाय लाल किताब के अनुसार खराब ग्रहों के दुष्प्रभावों से मुक्ति के लिए निम्न वस्तुओं का दान करना चाहिए। सूर्य- तांबा, गेहूं व गुड़। चंद्र- चावल, दूध, चांदी या मोती। मंगल- मूंगा, मसूर दाल, खांड, सौंफ। बुध- हरी घास, साबुत मूंग, पालक। गुरु- केसर, हल्दी, सोना, चने की दाल का दाल। शुक्र- दही, खीर, ज्वार या सुंगधित वस्तु। शनि- साबुत उड़द, लोहा, तेल या तिल । राहु- सिक्का, जौ या सरसों। केतु- केला, तिल या काला कंबल। ग्रहों के अन्य उपाय ऊपर लिखित उपायों के अतिरिक्त ग्रहों के दुष्प्रभावों के और भी अनेक सामान्य उपाय जिनका विवरण यहां प्रस्तुत है। सूर्य- बहते पानी में गुड़ बहाएं, प्रत्येक कार्य मीठा खा कर व जल पी कर करें, सूर्यकाल में संभोग न करें, कुल रीति रिवाजों को मानें, सूर्य की वस्तुएं बाजरा आदि मुफ्त में न लें, अंधों को भिक्षा दें, पीतल के बर्तनों का उपयोग करें और सफेद टोपी पहनें। चंद्र- चांदी के बर्तन में दूध या पानी पीएं, सोने को आग में लाल कर दूध से बुझाएं व दूध पीएं, चारपाई के पायों पर तांबे की कील गाड़ें, समुद्र में तांबे का पैसा डालें, शिवजी को आक के फूल चढ़ाएं, सफेद कपड़े में मिश्री व चावल बांधकर बहाएं, वटवृक्ष में पानी डालें, दूध का व्यापार न करें, श्मशान का पानी घर लाकर रखें और रात को दूध न पीएं। मंगल- बुआ या बहन को लाल कपड़े दें, भाई की सहायता करें, रेवड़ियां बताशे पानी में बहाएं, आग से संबंधित काम करें, मीठी तंदूरी रोटी कुत्तो को डालें, तीन धातुओं की अंगूठी पहनं, चांदी गले में पहनें, मसूर की दाल पानी में बहाएं, नीम का पेड़ लगाएं, रोटी पकाने से पहले तवे पर पानी के छींटे दें, जंग लगा हथियार घर में न रखें, काने, गंजे या काले व्यक्ति से दूर रहें, और दूध वाला हलवा खाएं। बुध- नाक छेदन न करंे, तांबे का पैसा गले में डालें, कच्चा घड़ा जल में बहाएं, चांदी व सोने की जंजीर पहनें, किसी साधु से ताबीज न लें, मिट्टी के बर्तन को शहद से भर कर वीराने में दबाएं, पक्षियों की सेवा करें, गाय को हरी घास दें, बार-बार न थूकें, वर्षा का पानी छत पर रखें, साली को साथ न रखें, साझा काम न करें और ढाक के पत्तों को दूध से धोकर वीराने में दबाएं। गुरु- मंदिर में 43 दिनों तक बादाम अर्पित करें, गंधक जल में बहायें, केसर पानी में बहाएं, नीले कपड़े में चना बांध कर मंदिर में दें, वायदा निभाएं, ईष्र्या से बचें, पीपल न काटें, हल्दी व केसर का तिलक करें, पत्नी से गुरु का व्रत रखवाएं, परस्त्री गमन न करें। शुक्र- गंदे नाले में 43 दिनों तक नीला फूल डालें, स्त्री का सम्मान करें, प्रेम व ऐयाशी से दूर रहें, किसी की जमानत न दें और कांसे के बर्तन का दान दें। शनि- तेल या शराब 43 दिनों तक प्रातःकाल धरती पर गिराएं, कौओं को रोटी डालें, शराब व मांस का सेवन न करें, लोहे का दान दें, सुनसान जगह पर सुरमा दबाएं, वे चिमटे या अंगीठी का दान दें। राहु- बहते पानी में नारियल बहाएं, हाथी के पांव की मिट्टी कुएं में डालें, संयुक्त परिवार में रहें, पत्नी के साथ फिर फेरे लें, रसोई में बैठकर खाना खाएं, ससुराल से संबंध न बिगाड़ें, भाई बहन का बुरा न करें, सिर पर चोटी रखें और रात को तकिये के नीचे सौंफ व चीनी रखें। केतु- केसर का तिलक लगाएं, कुŸाा पालें, तिल का दान करें, परस्त्री गमन न करें, मकान की नींव में शहद दबाएं, काला व सफेद कंबल मंदिर में दान दें, पैरों के अंगूठों में चांदी पहनें, चाल-चलन ठीक रखें, गले में सोना पहनें, बायंे हाथ में सोने की अंगूठी पहनें। उपायों से पूर्व उपाय विभिन्न ग्रहों के विभिन्न उपाय करने से पहले निम्नलिखित उपाय अवश्य करें। शाकाहारी भोजन करें, विधवाओं और अतिथियों की सेवा करें, माता पिता का आदर करें, किसी को अपशब्द न कहें, दिन में संभोग न करें, देवी देवताओं की पूजा करें, ससुराल के सदस्यों का सम्मान करंे, शराब न पीएं, टूटे बर्तन घर में न रखें, घर में एक कच्ची जगह अवश्य रखें, प्रतिदिन बड़ों से आर्शीर्वाद लें और परस्त्री गमन न करें। कुछ विशेष उपाय बच्चे के सुरक्षित पैदाइश के लिए जौ का पानी बोतल में भरकर पास रख लें। स सुखी प्रसव हेतु व गर्भपात से बचने के लिए अपने भोजन का एक हिस्सा निकालकर कुŸो को दें। बार-बार गर्भपात होता हो, तो गर्भवती स्त्री के बाजू पर लाल धागा बांध दें। बेटे से संबंध सुधारने के लिए काले सफेद कंबल मंदिर में दें। कुछ विशेष सावधानियां सूर्य भाव 7 या भाव 8 का हो तो सुबह व शाम को दान न करें। चंद्र यदि भाव 6 का हो तो दूध या पानी दान न करें और यदि भाव 12 का हो तो साधु या महात्मा को खाना न दें और बच्चों को निःशुल्क शिक्षा न दिलाएं। गुरु यदि भाव 7 का हो तो मंदिर के पुजारी को वस्त्र दान न करें और यदि 10 का हो तो मंदिर न बनवाएं। शुक्र यदि भाव 9 का हो तो भिखारी को पैसा न दें और यदि 8 का हो तो सराय या धर्मशाला न बनवाएं।

रावण द्वारा नवग्रह को बंदी बनाना (Navgraha Bandhan by Ravana)

रावण द्वारा नवग्रह को बंदी बनाना (Navgraha Bandhan by Ravana)

रावण ब्राह्मण वंश में पैदा हुआ था उसके पिता ऋषि विश्रवा और पितामह पुलत्स्य ऋषि महान तपस्वी एवं धर्मज्ञ थे किन्तु माता के असुर कुल की होने की वजह से उसमे आसुरी संस्कार आ गए थे |
ऋषि विश्रवा की दो पत्नियाँ थी एक का नाम इडविडा था जो ब्राह्मण कुल से थी तथा जिनकी संतान कुबेर थे दूसरी पत्नी का नाम कैकसी था जो असुर कुल से थी इनकीरावणकुम्भकर्णसूपर्णखा आदि संताने थी कुबेर इन सब मे सबसे बड़े थे |


रावणविभीषण आदि जब बाल्यावस्था में थे तभी कुबेर धनाध्यक्ष की पदवी प्राप्त कर चुके थे कुबेर की पद-प्रतिष्ठा से रावण की माँ इर्ष्या करती थी और रावण को कोसा करती थी |
एक दिन रावण के मन में ठेस लगी और अपने भाइयों (कुम्भकर्ण और विभीषण) को साथ में लेकर तपस्या करने चला गया रावण का भ्रात्र प्रेम अप्रतिम था इन तीनो भाइयों की तपस्या सफल हुई और तीनो भाइयों ने ब्रह्मा जी से स्वेच्छा से वरदान प्राप्त किया |

रावण इतना अधिक बलशाली था कि सभी देवतायक्षगन्धर्वकिन्नरविद्याधर तथा ग्रह-नक्षत्र उससे घबराते थे ग्रंथों में ऐसा लिखा है कि रावण ने लंका में दसों दिक्पालों को पहरे पर नियुक्त किया हुआ था |
रावण की पत्नी मंदोदरी जब माँ बनने वाली थी (मेघनाद के जन्म के समय) तब रावण ने समस्त ग्रह-मंडल को एक निश्चित स्थिति में रहने के लिए सावधान कर दिया था जिससे उत्पन्न होने वाला पुत्र अत्यंत तेजस्वीशौर्यपराक्रम से युक्त हो |

 उसें ऐसा समय साध लिया था जिस समय में यदि किसी का जन्म हो तो वो अजेय एवं अमितायु (अत्यंत दीर्घायु) से संपन्न होगा लेकिन जब मेघनाद का जन्म हुआ तो बाकि सरे ग्रहों ने आज्ञा का पालन किया किन्तु ठीक उसी समय दैवीय प्रेरणा से शनि ग्रह ने अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया जिस स्थिति में शनि के होने की वजह से रावण का पुत्र दीर्घायु होतास्थिति परिवर्तन से वही पुत्र अब अल्पायु हो गया रावण इससे अत्यंत क्रोधित हो गया इस भयंकर क्रोध में उसने शनि के ऊपर गदा का प्रहार किया जिससे शनि के पैर में चोट लग गयी और वो पैर से कुछ लाचार हो गए अर्थात लंगड़े हो गए |

इन सब वजहों से रावण-पुत्र मेघनादप्रचंड पराक्रमीतेजस्वी और शौर्यवान तो था लेकिन अल्पायु था और शेषनाग जी के अंश लक्ष्मण जी के द्वारा मारा गया आज हममे से बहुत से ऐसे लोग मिल जायेंगे (जो ज्योतिष विद्या में विश्वास रखते हैं) जो पत्नी के गर्भ में पल रहे अपनी होने वाली संतान कोआने वाले विशिष्ट योग में ही जन्म लेने के लिए योग्य चिकित्सको की सहायता या शल्य क्रिया आदि की सहायता लेते हैं लेकिन इस धरती पर कभी कोई ऐसा भी जन्मा था जिसने अपनी संतान जन्म के समय पर ग्रह-नक्षत्रो को ही बाध्य कर दिया था विशिष्ट मुहूर्त के लिए !

अपनी मृत्यु का कारण जानने के बाद उसने उसे बदलने का निश्चय किया। वो महान योद्धा था। नारायणास्त्र को छोड़कर विश्व के सभी दिव्यास्त्र उसके पास थे (हालाँकि पाशुपतास्त्र उसके लिए उपयोगी सिद्ध नहीं हुआ)। उसके बल का ऐसा प्रताप था कि युद्ध में उसने यमराज को भी पराजित किया और स्वयं नारायण के सुदर्शन चक्र को पीछे हटने पर विवश कर दिया। ब्रह्मा के वरदान से उसकी नाभि में अमृत था जिसके सूखने पर ही उसकी मृत्यु हो सकती थी। रूद्र के वरदान से उसका शीश चाहे कितनी बार भी काटोउससे उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। किन्तु इतना सब होने के बाद भी वो अजेय और अवध्य नहीं था। उसने निश्चय किया कि वो अपने पुत्रजो अभी मंदोदरी के गर्भ में थाउसे अविजित और अवध्य बनाएगा।

भगवान शंकर से जो उसे ज्ञान और वरदान प्राप्त हुआ थाउससे उसने सभी नवग्रहों और ज्योतिष विज्ञान का गहन अध्यन किया। उसे ज्ञात हुआ कि अगर नवग्रह उसके अनुसार अपनी स्थिति बदल सकें तो वो मृत्यु को भी पीछे छोड़ सकता है। इसी कारण उसने इंद्र पर आक्रमण किया और अपनी अतुल शक्तिवरदानविद्या और पांडित्य के बल पर उसने नवग्रहों को अपने अधीन कर लिया। इस बीच मंदोदरी के प्रसव की घडी भी नजदीक आ गयी। जब रावण के पुत्र का जन्म होने ही वाला थाउसने सभी नवग्रहों को ये आदेश दिया कि वो उसके पुत्र की कुंडली के ११वें घर पर स्थित हो जाएँ। व्यक्ति की कुंडली का ११वां घर शुभता का प्रतीक होता है। यदि ऐसा हो जाता तो उसके होने वाले पुत्र की मृत्यु असंभव हो जाती।

रावण की आज्ञा अनुसार सभी ग्रह उसके होने वाले पुत्र की कुंडली के ११वें घर में स्थित हो गए। रावण निश्चिंत था कि अब इस मुहूर्त में उत्पन्न होने वाला उसका पुत्र अजेय होगा। किन्तु अंतिम क्षणों मेंजब उसका पुत्र पैदा होने ही वाला थाशनिदेव उसकी कुंडली के ११वें घर से उठ कर १२वें घर में स्थित हो गए। प्राणी की कुंडली का १२वां घर अशुभ लक्षणों का प्रतीक है। ठीक उसी समय रावण के पुत्र का जन्म हुआ जिसे देख कर बादल घिर आये और बिजली चमकने लगी। इसी कारण रावण ने उसका नाम 'मेघनादरखा। अंत समय में शनिदेव के १२वें घर में स्थित होने के कारण मेघनाद महाशक्तिशाली तो हुआ किन्तु अल्पायु और वध्य रह गया।

रावण हर तरह से निश्चिंत था किन्तु जब उसने अपने राजपुरोहित से अपने पुत्र की कुंडली बनाने को कहा तब उसे पता चला कि शनिदेव ने उसकी आज्ञा का उलंघन किया है। उसे अपार दुःख हुआ और उसने ब्रह्मदण्ड की सहायता से शनि को परास्त कर बंदी बना लिया। कहा जाता है कि रावण के दरबार में नवग्रह सदैव उपस्थित रहते थे किन्तु शनिदेव से विशेष द्वेष के कारण उन्हें रावण सदैव अपने चरण पादुकाओं के स्थान पर रखता था। बाद में लंका दहन के समय महाबली हनुमान ने शनिदेव को मुक्त करवाया। खैर वो कथा बाद में।

रावण ने सब ग्रहों को अपने पैर के नीचे दबाकर रखा था जिससे कि वह मुक्त न हो सकें। उधर देवताओं ने ग्रहों की मुक्ति की एक योजना बनाई। इस योजना के अनुसार नारद ने रावण के पास जाकर पहले उसका यशगान किया। फिर उससे कहा कि ग्रहों को जीतकर उसने बहुत अच्छा किया। पर जिसे जीता जाएपैर उसकी कमर पर नहींउसकी छाती पर रखना चाहिए। रावण को यह सुझाव अच्छा लगा। उसने अपना पैर थोड़ा सा उठाकर ग्रहों को पलटने का आदेश दिया। ज्यों ही ग्रह पलटेशनि ने तुरन्त रावण पर अपनी दृष्टि डाल दी। उसी समय से रावण की शनि दशा आरम्भ हो गई।

जब रावण की समझ में आया कि नारद क्या खेल खेल गएतो उसे बहुत क्रोध आया। उसने शनि को एक शिवलिंग के ऊपर इस प्रकार बाँध दिया कि वह बिना शिवलिंग पर पैर रखे भाग नहीं सकता था। वह जानता था कि शनि शिव का भक्त और उनका शिष्य होने का कारण कभी भी शिवलिंग पर पैर नहीं रखेगा। पर उसकी शनि दशा आरम्भ हो चुकी थी। हनुमान सीता को खोजते हुए लंका पहुँच गए।

शनि ने हनुमान से प्रार्थना की कि वह देवताओं के हित के लिए अपना सिर शिवलिंग और उसके पैर के बीच कर दें जिससे वह उनके सिर पर पैर रखकर उतर भागे। हनुमान ने पूछा ऐसा करने से उन पर शनि का क्या दुष्प्रभाव होगा। शनि ने बताया कि उनका घर परिवार उनसे बिछड़ जाएगा।

हनुमान मान गए क्योंकि उनका कोई घर परिवार था ही नहीं। इस उपकार के बदले शनि ने हनुमान से कोई वर माँगने के लिए कहा। हनुमान ने वर माँगा कि शनिदेव कभी उनके किसी भक्त का अहित न करें।

अब स्वयं के सामान रावण ने मेघनाद को भी रूद्र का कृपापात्र बनाया। उसका पराक्रम देख कर स्वयं भगवान शंकर ने उसे रावण से भी महान योद्धा बताया। वही एक योद्धा था जिसके पास तीनों महास्त्र (ब्रह्मास्त्रनारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र) सहित संसार के समस्त दिव्यास्त्र थे। इसी कारण वही आज तक का एक मात्र योद्धा बना जिसे 'अतिमहारथीहोने का गौरव प्राप्त हुआ। उसी बल पर उसने देवराज इंद्र को परास्त किया और इंद्रजीत कहलाया। उसे कुछ विशेष वरदान भी प्राप्त हुए जिससे वो एक प्रकार से अवध्य हो गया किन्तु उन वरदानों को लक्ष्मण ने संतुष्ट किया और आखिरकार उसका वध किया।  

जब रावण अपने पुत्र को मनचाहा भविष्य ना दे सका तो वो ये समझ गया कि परमपिता ब्रह्मा के विधि के विधान को कोई बदल नहीं सकता। तब उसने ये निश्चय किया कि वो राक्षस जाति के लिए कुछ ऐसे विधान और उपायों का निर्माण करेगा जिससे उनके समस्त दुःख दूर हो जाएँ। इसी लिए उसने जो भी विद्या प्राप्त की थी उनकी रचना अचूक उपायों के साथ एक ग्रन्थ के रूप में की। उसके बाद ये ज्ञान लोप ना हो जाये इसी कारण उसने इन उपायों को स्वयं मेधनाद द्वारा लिपिबद्ध करवाया ताकि ये ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी राक्षस जाति को मिलता रहे। यही लिपिबद्ध पुस्तक 'रावण संहिताके नाम से प्रसिद्ध हुई। 

ये भी कहा जाता है कि जब अंत समय में लक्ष्मण रावण के पास शिक्षा लेने गए तो रावण ने उन्हें इस ग्रन्थ के उपायों की भी शिक्षा दी। जब तक रावण जीवित रहा ये महान ग्रन्थ केवल राक्षस जाति तक सीमित रहा किन्तु विभीषण के राजा बनने के पश्चात श्रीराम की आज्ञा से उसने मानवमात्र के कल्याण के लिए उस रहस्यमयी और दुर्लभ ज्ञान को मनुष्यों को प्रदान किया। ऐसा भी वर्णन है कि रावण ने रावण संहिता का जो ज्ञान लक्ष्मण को दिया थाउन्होंने ही उसे अनुवाद कर अयोध्या में रख लिया जहाँ से इसका बाद में प्रचार प्रसार हुआ।
  
तो अगर संक्षेप में समझा जाये तो रावण संहिता एक ऐसी पुस्तक है जिसमे मनुष्यों के कर्म फल के अनुसार होने वाले दुखों और उससे मुक्ति का उपाय है। कुछ उपाय बहुत सरल हैं (जैसे सौभाग्य के लिए गौमाता को भोजन कराने का उपाय) किन्तु कुछ उपाय अत्यंत कठिन हैं जिसे साधक अत्यंत कठिन साधना के बाद ही सिद्ध कर सकता है। कहा जाता है कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया भी रावण संहिता से ही प्रेरित है। यही नहींमहर्षि भृगु द्वारा रचित भृगु संहिताजिसे आज कल 'लाल किताबकहते हैंवो भी रावण संहिता से प्रेरित और मिलती जुलती है। इसी कारण दोनों पुस्तकों में कई उपाय हैं जो समान हैं।

कहते हैं कि समय के साथ-साथ विद्वानों ने रावण संहिता के सर्वाधिक चमत्कारी उपायों को जान बूझ कर मिटा दिया गया अन्यथा कलियुग में मानव उसका दुरुपयोग करता। कहा जाता है कि अगर वो लुप्त विद्या और तंत्र साधना के उपाय आज किसी को मिल जाएँ तो वो उनकी शक्ति से भविष्य को भी पलट सकता है। यही कारण है कि आज कल प्रकाशित होने वाली रावण संहिता में आपको उन गुप्त रहस्यों के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलेगी क्यूंकि वो किसी को भी ज्ञात नहीं है। हालाँकि इस पुस्तक में लिखे उपायों से मनुष्य अपने कष्टों को मिटा सकता है किन्तु उन उपायों को किसी योग्य गुरु की छत्र-छाया में ही सिद्ध करना चाहिए अन्यथा विपरीत परिणाम मिल सकते हैं। साथ ही रावण संहिता को घर में रखने की भी मनाही की गयी है। खैरबात चाहे जो भी होइसमें कोई शंका नहीं है कि रावण ने हमें रावण संहिता के रूप में अमूल्य ज्ञान का खजाना दिया है जिसे हमें मानव कल्याण के लिए उपयोग करना चाहिए।


क्यों मेघनाद अतिरथी था फिर भी मेधनाद का वध केवल लक्षमण ही कर सकते थे?

लंका के युद्ध के कुछ वर्षों बाद एक बार अगस्त्य मुनि अयोध्या आए। श्रीराम ने उनकी अभ्यर्थना की और आसन दिया। राजसभा में श्रीराम अपने भ्राता भरतशत्रुघ्न और देवी सीता के साथ उपस्थित थे। बात करते-करते लंका युद्ध का प्रसंग आया। भरत ने बताया कि उनके भ्राता श्रीराम ने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा। अगस्त्य मुनि बोले - "हे भरत! रावण और कुंभकर्ण निःसंदेह प्रचंड वीर थेकिन्तु इन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाद ही था। उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और उन्हें पराजित कर लंका ले आया था। तब स्वयं ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब जाकर इंद्र मुक्त हुए थे। लक्ष्मण ने उसका वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए। और ये भी सत्य है कि इस पूरे संसार में मेघनाद को लक्ष्मण के अतिरिक्त कोई और मार भी नहीं सकता थायहाँ तक कि स्वयं श्रीराम भी नहीं।"

भरत को बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे। उन्होंने श्रीराम से पूछ कि क्या ये बात सत्य है और जब राम ने इसकी पुष्टि की तो भी भरत के मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल थाउन्होंने पूछा "हे महर्षि! अगर आप और भैया ऐसा कह रहे हैं तो ये बात अवश्य ही सत्य होगी और मुझे इस बात की प्रसन्नता भी है कि मेरा भाई विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है किन्तु फिर भी मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर ऐसा क्या रहस्य है कि मेघनाद को लक्षमण के अतिरिक्त कोई और नहीं मार सकता था?"

अगस्त्य मुनि ने कहा - "हे भरत! मेघनाद ही विश्व का एकलौता ऐसा योद्धा था जिसके पास विश्व के समस्त दिव्यास्त्र थे। उसके पास तीनों महास्त्र - ब्रम्हा का ब्रम्हास्त्रनारायण का नारायणास्त्र एवं महादेव का पाशुपतास्त्र भी था और उसे ये वरदान था कि उसके रथ पर रहते हुए कोई उसे परास्त नहीं कर सकता था इसी कारण वो अजेय था। उस समय संसार में केवल वही एक योद्धा था जिसने अतिमहारथी योद्धा का स्तर प्राप्त किया था। ये सत्य है कि उसके सामान योद्धा वास्तव में कोई और नहीं था। उसने स्वयं भगवान रूद्र से युद्ध की शिक्षा ली और समस्त दिव्यास्त्र प्राप्त किये। भगवान रूद्र ने स्वयं ही उसे रावण से भी महान योद्धा बताया था और उसकी शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात कहा था कि वो एक सम्पूर्ण योद्धा बन चुका है और इस संसार में तो उसे कोई और परास्त नहीं कर सकता। उन्होंने यहाँ तक कहा कि उन्हें संदेह है कि स्वयं वीरभद्र भी मेघनाद को परास्त कर सके। इसके अतिरिक्त उसकी परम पवित्र पत्नी सुलोचना का सतीत्व भी उसकी रक्षा करता था।"

इसपर भरत ने कहा "हे महर्षि! आपके मुख से मेघनाद की शक्ति का ऐसा वर्णन सुनकर विश्वास हो गया कि वो वास्तव में महान योद्धा था किन्तु बात अगर केवल दिव्यास्त्र की है तो श्रीराम के पास भी सारे दिव्यास्त्र थे। उन्होंने भी त्रिदेवों के महास्त्र प्राप्त किये। साथ ही साथ महाबली हनुमान को भी ये वरदान था कि उनपर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं होगा और उनके बल और पराक्रम का कहना ही क्यालक्ष्मण निःसंदेह महा-प्रचंड योद्धा थे और उनके पास भी विश्व के सारे दिव्यास्त्र थे किन्तु उसे पाशुपतास्त्र का ज्ञान नहीं था जिसका ज्ञान मेघनाद को था। फिर भी लक्षमण किस प्रकार मेघनाद का वध करने में सफल हुए। और आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि केवल लक्ष्मण ही उसका वध कर सकते थे?"

इसपर अगस्त्य मुनि ने कहा "आपका कथन सत्य है। जितने दिव्यास्त्र मेघनाद के पास थे उतने लक्ष्मण के पास नहीं थे किन्तु इंद्रजीत को ये वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जिसने:

चौदह वर्षों तक ब्रम्हचर्य का पालन किया हो।

चौदह वर्षों तक जो सोया ना हो।

चौदह वर्षों तक जिसने भोजन ना किया हो।

चौदह वर्षों तक किसी स्त्री का मुख ना देखा हो।

पूरे विश्व में केवल लक्ष्मण ही ऐसे थे जिन्होंने मेघनाद के वरदान की इन शर्तों को पूरा किया था इसी कारण केवल वही मेघनाद का वध कर सकते थे।"


तब श्रीराम बोले "हे गुरुदेव! मेघनाद और लक्ष्मण दोनों के बल और पराक्रम से मैं अवगत हूँ। अगर शक्ति की बात की जाये तो निःसंदेह इन दोनों की कोई तुलना नहीं थी। लक्ष्मण के ब्रम्हचारी होने की बात मैं समझ सकता हूँ किन्तु मैं वनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल उसे देता रहा। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था और बगल की कुटी में लक्ष्मण थे। मैंसीता और लक्ष्मण अधिकतर समय साथ ही रहते थे फिर भी उसने सीता का मुख भी न देखा होभोजन ना किया हो और चौदह वर्षों तक सोए न होंऐसा कैसे संभव है?" अगस्त्य मुनि सारी बात समझ कर मुस्कुराए। वे समझ गए कि श्रीराम क्या चाहते हैं। दरअसल सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे लेकिन वे चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो तभी ऐसा पूछ रहे हैं। उन्होंने कहा कि "क्यों ना स्वयं लक्ष्मण से इस विषय में पूछा जाये।" लक्ष्मण को बुलाया गया। सभा में आने पर उन्होंने सबको प्रणाम किया फिर श्रीराम ने कहा "प्रिय भाई! तुमसे जो भी पूछा जाये उसका सत्य उत्तर दो। हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखाफल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहेऔर १४ वर्ष तक कैसे सोए नहीं?

लक्ष्मण ने कहा "भैया! जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखा कर पहचानने को कहा तो आपको स्मरण होगा कि मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया थाक्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं था। मैं तो भाभी को केवल उनके चरणों से पहचानता हूँ। उनके अतिरिक्त मैंने वनवास के समय शूर्पणखा एवं बालि की भार्या देवी तारा को ही देखा था किन्तु एक तो वे अनायास ही मेरे समक्ष आ गयी थी और दूसरे वे दोनों पूर्ण मनुष्य नहीं थी। शूर्पणखा राक्षसी थी और तारा वानर जाति की।"

"रही बात निद्रा की तो जब आप और माता एक कुटिया में सोते थेमैं रात भर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था। निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने का प्रयास किया तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था। तब निद्रा देवी ने हार कर स्वीकार करते हुए मुझे वचन दिया कि वह चौदह वर्ष तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी किन्तु जब आपका अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा तब वो मुझे घेरेगी। आपको याद होगाराज्याभिषेक के समय जब मैं आपके पीछे छत्र लेकर खड़ा था तब निद्रा के कारण मेरे हाथ से छत्र गिर गया था। निद्रा देवी को दिया वचन के कारण ही मैं आपका राजतिलक भी नहीं देख सका था क्यूंकि मैं सो गया था।" लक्ष्मण के ना सोने का एक रहस्य उर्मिला की "उर्मिला-निद्रा" भी है। इस कथा के अनुसार लक्ष्मण की जगह उर्मिला १४ वर्षों तक सोती रही थी। इसके बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

अब निराहारी रहने की बात भी सुनिए। मैं जो फल-फूल लाता थामाता उसके तीन भाग करती थीं। आप सदैव एक भाग मुझे देकर कहते थे लक्ष्मण फल रख लो। आपने कभी फल खाने को नहीं कहा फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसेमैंने उन्हें संभाल कर रख दिया। सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे। गुरु विश्वामित्र से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था - बिना आहार किए जीने की विद्या। उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका।"

श्रीराम ने आश्चर्य में पड़ते हुए कहा तो क्या सारे वनवास काल के फल वही हैं?" तब लक्ष्मण ने कहा "नहीं भैयाउनमे सात दिन के फल कम होंगे।" तब श्रीराम ने कहा "इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?" इसपर लक्ष्मण ने कहा "भैया सात दिन के फल कम इस कारण है क्योंकि उन सात दिनों में फल आए ही नहीं।"

जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिलीहम निराहारी रहें।

जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता?

जिस दिन समुद्र की साधना कर आप निराहारी रह उससे राह मांग रहे थे।

जिस दिन हम इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे।

जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता का शीश काटा था और हम शोक में रहें।

जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी और मैं पूरा दिन मरणासन्न रहा।

जिस दिन आपने रावण-वध किया उस दिन हमें भोजन की सुध कहां थी।


लक्ष्मण के जीवन का ऐसा त्याग और सत्चरित्र देख कर वहाँ उपस्थित सभी लोग साधु-साधु कह उठे। भरत ने भरे कंठ से कहा "तुम धन्य हो लक्ष्मण। वास्तव में ऐसा कठिन तप केवल तुम्ही कर सकते थे और केवल तुम्ही इंद्रजीत का वध करने के योग्य थे। कदाचित इसी कारण मुझे या शत्रुघ्न को भैया के साथ वन जाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ क्यूंकि ऐसा संयम केवल तुम्हारे लिए ही संभव है।" श्रीराम ने गदगद होकर लक्ष्मण को अपने गले से लगा लिया और कहा "प्रिय लक्ष्मण। वास्तव में तुम जैसा भाई मिलना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है। तुम्हारा ये आत्म-नियंत्रण किसी तपस्या से कम नहीं। तुम्हारे इसी तपस्या के कारण हम रावण को पराजित करने में सफल हो पाए। वास्तव में तुम्ही इस विश्व के सर्वश्रेष्ठ योद्धा हो। जब तक ये विश्व रहेगातुम्हारी सत्चरित्रता सबका मार्गदर्शन करती रहेगी।"









Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...