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षोडशवर्ग Shodash varga


षोडशवर्ग Shodash varga

षोडश वर्ग का फलित ज्योतिष में विशेष महत्व है। जन्मपत्री का सूक्ष्म अध्ययन करने में यह विशेष सहायक है। इन वर्गों के अध्ययन के बिना जन्म कुंडली का विश्लेषण अधूरा होता है क्योंकि जन्म कुंडली से केवल जातक के शरीर, उसकी संरचना एवं स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है, लेकिन षोडश वर्ग का प्रत्येक वर्ग जातक के जीवन के एक विशिष्ट कारकत्व या घटना के अध्ययन में सहायक होता है।

षोडशवर्ग Shodash varga:
षोडशवर्ग  किसे कहते है ?

हम जानते हैं कि अगर राशिचक्र को बराबर 12 भागों में बांटा जाय तो हर एक हिस्‍सा कहलाता है 'राशि'। 

सूक्ष्‍म फलकथन के लिए राशि के भी विभाग किए जाते हैं और उन्‍हें वर्ग कहते हैं। वर्गों को अंग्रेजी में डिवीजन (division) और वर्गों पर आधारित कुण्‍डली (वर्ग चर्क्र) को डिवीजनल चार्ट (divisional chart) कह दिया जाता है। वर्गों को ज्‍योतिष में नाम दिए गए हैं जैसे 

अगर राशि को दो हिस्‍सों में बांटा जाय तो ऐसे विभाग को कहते हैं होरा। 
इसी तरह अगर राशि के तीन हिस्‍से करे जायें तो तो कहते हैं द्रेष्‍काण, 
नौ हिस्‍से किए जाय तो कहते हैं नवमांश। 

इसी तरह हर एक वर्ग विभाजन को नाम दिए गए हैं। 


वर्गों का प्रयोग खासकर ग्रहों के बल की गणना के लिए किया जाता है। सामान्‍य तौर पर जो ग्रह जितने ज्‍यादा उच्‍च वर्ग, मित्र वर्ग और शुभ ग्रहों के वर्ग पाता है वह उतना ही शुभ फल देता है। जो ग्रह जितना ज्‍यादा ताकतवर होता है वह अपना फल उतना ही ज्‍यादा दे पाता है। शुरुआती दौर में वर्ग बहुत कनफयूज करते हैं इसलिए आप अपना ध्‍यान सिर्फ नवांश पर लगाएं। अगर कोई ग्रह नवांश में कमजोर है यानि कि नीच राशि का या शत्रु राशि का है तो अपने शुभ फल नहीं दे पाता। अगर कोई ग्रह कुण्‍डली में उच्‍च का भी हो पर नवांश में नीच का हो तो वह ग्रह कुछ खास शुभ फल नहीं दे पाएगा।

इन सभी वर्गों में नवांश या नवमांश सबसे महत्‍वपूर्ण होता है।


वर्ग नामवर्ग संख्‍याविचारणीय विषय
लग्‍न1देह
होरा2धन
द्रेष्‍काण3भाई बहनें
चतुर्थांश4भाग्‍य
सप्‍तमांश7पुत्र – पौत्रादि
नवमांश9स्‍त्री एवं विवाह
दशमांश10राज्‍य एवं कर्म
द्वादशांश12मा‍ता पिता
षोडशांश16वाहनों से सुख दुख
विशांश20उपासना
चतुर्विशांश24विधा
सप्‍तविंशांश या भांश27बलाबल
त्रिशांश30अरिष्‍ट
खवेदांश40शुभ अशुभ
अक्षवेदांश45सबका
षष्‍ट्यंश60सबका

वर्ग क्या है ?  वर्ग वास्तव में गहो और लग्न का सूक्ष्म विभाजन है। यह इसलिए भी आवश्यक है की एक लग्न मे कई जातक जन्म लेते है। लेकिन हर एक का  गुण, शरीर, धन, पराक्रम, सुख, बुद्धि, भार्या, भाग्य एक सा नही होता।  अतः यही जानने के लिए वर्ग बनाये जाते है। एक राशि 30 अंशो की होती है इसके सूक्ष्म विभाजन करने पर कुल सोलह वर्ग बनते है। इनके नाम इस प्रकार है :- 01 लग्न, 02 होरा, 03 द्रेष्काण, 04 चतुर्थांश, 05 सप्तमांश, 06 नवमांश, 07 दशांश,  08 द्वादशंश, 09 षोडशांश, 10 विशांश, 11 चतुर्विंशांश, 12 त्रिशांश, 13 खवेदांश, 14 अक्षवेदांश, 15 भांश, 16 षष्टयांश (1 / 60)

षट्वर्ग :   लग्न, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, द्वादशांश, त्रिशांश ये छः वर्ग होते है।
सप्तवर्ग :  उपरोक्त षट्वर्ग मे सप्तांश जोड़ देने पर सप्तवर्ग हो जाते है।
दसवर्ग :  उपरोक्त  सप्तवर्ग मे दशांश, षोड़शांश, षष्टयांश जोड़ देने पर दस वर्ग होते है।

जातक के जीवन के जिस पहलू के बारे में हम जानना चाहते हैं उस पहलू के वर्ग का जब तक हम अध्ययन न करें तो विश्लेषण अधूरा ही रहता है। जैसे यदि जातक की संपत्ति, संपन्नता आदि के विषय में जानना हो, तो जरूरी है कि होरा वर्ग का अध्ययन किया जाए। इसी प्रकार व्यवसाय के बारे में पूर्ण जानकारी के लिए दशमांश की सहायता ली जाए। जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानने के लिए किसी विशेष वर्ग का अध्ययन किए बिना फलित गणना में चूक हो सकती है। षोडश वर्ग में सोलह वर्ग होते हैं जो जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं की जानकरी देते हैं। जैसे होरा से संपत्ति व समृद्धि; द्रेष्काण से भाई-बहन, पराक्रम, चतुर्थांश से भाग्य, चल एवं अचल संपत्ति, सप्तांश से संतान, नवांश से वैवाहिक जीवन व जीवन साथी, दशांश से व्यवसाय व जीवन में उपलब्धियां, द्वादशांश से माता-पिता, षोडशांश से सवारी एवं सामान्य खुशियां, विंशांश से पूजा-उपासना और आशीर्वाद, चतुर्विंशांश से विद्या, शिक्षा, दीक्षा, ज्ञान आदि, सप्तविंशांश से बल एवं दुर्बलता, त्रिशांश से दुःख, तकलीफ, दुर्घटना, अनिष्ट; खवेदांश से शुभ या अशुभ फलों, अक्षवेदांश से जातक का चरित्र, षष्ट्यांश से जीवन के सामान्य शुभ-अशुभ फल आदि अनेक पहलुओं का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है। षोडश वर्ग में सोलह वर्ग ही होते हैं, लेकिन इनके अतिरिक्त और चार वर्ग पंचमांश, षष्ट्यांश, अष्टमांश, और एकादशांश होते हैं। पंचमांश से जातक की आध्यात्मिक प्रवृत्ति, पूर्व जन्मों के पुण्य एवं संचित कर्मों की जानकारी प्राप्त होता है। षष्ट्यांश से जातक के स्वास्थ्य, रोग के प्रति अवरोधक शक्ति, ऋण, झगड़े आदि का विवेचन किया जाता है। एकादशांश जातक के बिना प्रयास के धन लाभ को दर्शाता है। यह वर्ग पैतृक संपत्ति, शेयर, सट्टे आदि के द्वारा स्थायी धन की प्राप्ति की जानकारी देता है। अष्टमांश से जातक की आयु एवं आयुर्दाय के विषय में जानकारी मिलती है। षोडश वर्ग में सभी वर्ग महत्वपूर्ण हैं, लेकिन आज के युग में जातक धन, पराक्रम, भाई-बहनों से विवाद, रोग, संतान वैवाहिक जीवन, साझेदारी, व्यवसाय, माता-पिता और जीवन में आने वाले संकटों के बारे में अधिक प्रश्न करता है। इन प्रश्नों के विश्लेषण के लिए सात वर्ग होरा, द्रेष्काण, सप्तांश, नवांश, दशमांश, द्वादशांश और त्रिशांश ही पर्याप्त हैं। होरादि सात वर्गों का फलित में प्रयोग होरा: जन्म कुंडली की प्रत्येक राशि के दो समान भाग कर सिद्धांतानुसार जो वर्ग बनता है होरा कहलाता है। इससे जातक के धन से संबंधित पहलू का अध्ययन किया जाता है। होरा में दो ही लग्न होते हैं – सूर्य का अर्थात् सिंह और चंद्र का अर्थात् कर्क। ग्रह या तो चंद्र होरा में रहते हैं या सूर्य होरा में। बृहत पाराशर होराशास्त्र के अनुसार गुरु, सूर्य एवं मंगल सूर्य की होरा में और चंद्र, शुक्र एवं शनि चंद्र की होरा में अच्छा फल देते हैं। बुध दोनोें होराओं में फलदायक है। यदि सभी ग्रह अपनी शुभ होरा में हांे तो जातक को धन संबंधी समस्याएं कभी नहीं आएंगी और वह धनी होगा। यदि कुछ ग्रह शुभ और कुछ अशुभ होरा में होंगे तो फल मध्यम और यदि ग्रह अशुभ होरा में होंगे तो जातक निर्धन होता है। द्रेष्काण: जन्म कुंडली की प्रत्येक राशि के तीन समान भाग कर सिद्धांतानुसार जो वर्ग बनता है वह दे्रष्काण कहलाता है। दूसरे शब्दों में यह कुंडली का तीसरा भाग है। दे्रष्काण जातक के भाई-बहन से सुख, परस्पर संबंध, पराक्रम के बारे में जानकारी के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त इससे जातक की मृत्यु का स्वरूप भी मालूम किया जाता है। द्रेष्काण से फलित करते समय लग्न कुंडली के तीसरे भाव के स्वामी, तीसरे भाव के कारक मंगल एवं मंगल से तीसरे स्थित बुध की स्थिति और इसके बल का ध्यान रखना चाहिए। यदि द्रेष्काण कुंडली में संबंधित ग्रह अपने शुभ स्थान पर स्थित है तो जातक को भाई-बहनों से विशेष लाभ होगा और उसके पराक्रम में भी वृद्धि होगी। इसके विपरीत यदि संबंधित ग्रह अपने अशुभ द्रेष्काण में हों तो जातक को अपने भाई-बहनों से किसी प्रकार का सहयोग प्राप्त नहीं होगा। यह भी संभव है कि जातक अपने मां-बाप की एक मात्र संतान हो। सप्तांश वर्ग: जन्मकुंडली का सातवां भाग सप्तांश कहलाता है। इससे जातक के संतान सुख की जानकारी मिलती है। जन्मकुंडली में पंचम भाव संतान का भाव माना जाता है। इसलिए पंचमेश पंचम भाव के कारक ग्रह गुरु, गुरु से पंचम स्थित ग्रह और उसके बल का ध्यान रखना चाहिए। सप्तांश वर्ग में संबंधित ग्रह अपने उच्च या शुभ स्थान पर हो तो शुभ फल प्राप्त होता है अर्थात् संतान का सुख प्राप्त होता है। इसके विपरीत अशुभ और नीचस्थ ग्रह जातक को संतानहीन बनाता है या संतान होने पर भी सुख प्राप्त नहीं होता। सप्तांश लग्न और जन्म लग्न दोनों के स्वामियों में परस्पर नैसर्गिक और तात्कालिक मित्रता आवश्यक है। नवांश वर्ग: जन्म कुंडली का नौवां भाग नवांश कहलाता है। यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ग है। इस वर्ग को जन्मकुंडली का पूरक भी समझा जाता है। आमतौर पर नवांश के बिना फलित नहीं किया जाता। यह ग्रहों के बलाबल और जीवन के उतार-चढ़ाव को दर्शाता है। मुख्य रूप से यह वर्ग विवाह और वैवाहिक जीवन में सुख-दुख को दर्शाता है। लग्न कुंडली में जो ग्रह अशुभ स्थिति में हो वह यदि नवांश में शुभ हो तो शुभ फलदायी माना जाता है। यदि ग्रह लग्न और नवांश दोनों में एक ही राशि में हो तो उसे वर्गोमता हासिल होती है जो शुभ सूचक है। लग्नेश और नवांशेश दोनों का आपसी संबंध लग्न और नवांश कुंडली में शुभ हो तो जातक का जीवन में विशेष खुशियों से भरा होता है। उसका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और वह हर प्रकार के सुखों को भोगता हुआ जीवन व्यतीत करता है। वर-वधू के कुंडली मिलान में भी नवांश महत्वपूर्ण है। यदि लग्न कुंडलियां आपस में न मिलें, लेकिन नवांश मिल जाएं तो भी विवाह उत्तम माना जाता है और गृहस्थ जीवन आनंदमय रहता है। सप्तमेश, सप्तम् के कारक शुक्र (कन्या की कुंडली में गुरु), शुक्र से सप्तम स्थित ग्रह और उनके बलाबल की नवांश कुंडली में शुभ स्थितियां शुभ फलदायी होती हैं। ऐसा देखा गया है कि लग्न कुंडली में जातक को राजयोग होते हुए भी राजयोग का फल प्राप्त नहीं होता यदि नवांश वर्ग में ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल होती है। देखने में जातक संपन्न अवश्य नजर आएगा, लेकिन अंदर से खोखला होता है। वह स्त्री से पेरशान होता है और उसका जीवन संघर्षमय रहता है। दशमांश: दशमांश अर्थात् कुंडली के दसवें भाग से जातक के व्यवसाय की जानकारी प्राप्त होती है। वैसे देखा जाए तो जन्मकुंडली में दशम भाव जातक का कर्म क्षेत्र अर्थात् व्यवसाय का है। जातक के व्यवसाय में उतार चढ़ाव, स्थिरता आदि की जानकरी प्राप्त करने में दशमांश वर्ग सहायक होता है। यदि दशमेश, दशम भाव में स्थित ग्रह, दशम भाव का कारक बुध और बुध से दशम स्थित ग्रह दशमांश वर्ग में स्थिर राशि में स्थित हों और शुभ ग्रह से युत हों तो व्यवसाय में जातक को सफलता प्राप्त होती है। दशमांश लग्न का स्वामी और लग्नेश दोनों एक ही तत्व राशि के हों, आपस में नैसर्गिक और तात्कालिक मित्रता रखते हों तो व्यवसाय में स्थिरता देते हैं। इसके विपरीत यदि ग्रह दशमांश में चर राशि स्थित और अशुभ ग्रह से युत हो, लग्नेश और दशमांशेश में आपसी विरोध हो तो जातक का व्यवसाय अस्थिर होता है। दशमांश और लग्न कुंडली दोनों में यदि ग्रह शुभ और उच्च कोटि के हों तो जातक को व्यवसाय में उच्च कोटि की सफलता देते हैं। द्वादशांश: लग्न कुंडली का बारहवां भाग द्वादशांश कहलाता है। द्वादशांश से जातक के माता-पिता के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। लग्नेश और द्वादशांशेश इन दोनों में आपसी मित्रता इस बात का संकेत करती है कि जातक और उसके माता-पिता के आपसी संबंधी अच्छे रहेंगे। इसके विपरीत ग्रह स्थिति से आपसी संबंधों में वैमनस्य बनता है। इसके अतिरिक्त चतुर्थेश और दशमेश यदि द्वादशांश में शुभ स्थित हों तो भी जातक को माता-पिता का पूर्ण सुख प्राप्त होगा, यदि चतुर्थेश और दशमेश दोनों में से एक शुभ और एक अशुभ स्थिति में हो तो जातक के माता-पिता दोनों में से एक का सुख मिलेगा और दूसरे के सुख में अभाव बना रहेगा। इन्हीं भावों के और कारक ग्रहों से चतुर्थ और दशम स्थित ग्रहों और राशियों के स्वामियों की स्थिति भी द्वादशांश में शुभ होनी चाहिए। यदि सभी स्थितियां शुभ हों तो जातक को माता-पिता का पूर्ण सुख और सहयोग प्राप्त होगा अन्यथा नहीं। त्रिंशांश: लग्न कुंडली का तीसवां भाग त्रिंशांश कहलाता है। इससे जातक के जीवन में अनिष्टकारी घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। दुःख, तकलीफ, दुर्घटना, बीमारी, आॅपरेशन आदि सभी का पता इस त्रिंशांश से किया जाता है। त्रिंशांशेश और लग्नेश की त्रिंशांश में शुभ स्थिति जातक को अनिष्ट से दूर रखती है। जातक की कुंडली में तृतीयेश, षष्ठेश, अष्टमेश और द्वादशेश इन सभी ग्रहों की त्रिंशांश में शुभ स्थिति शुभ जातक को स्वस्थ एवं निरोग रखती है और दुर्घटना से बचाती है। इसके विपरीत अशुभ स्थिति में जातक को जीवन भर किसी न किसी अनिष्टता से जूझना पड़ता है। इन सात वर्गों की तरह ही अन्य षोड्श वर्ग के वर्गों का विश्लेषण किया जाता है। इन वर्गों का सही विश्लेषण तभी हो सकता है यदि जातक का जन्म समय सही हो, अन्यथा वर्ग गलत होने से फलित भी गलत हो जाएगा। जैसे दो जुड़वां बच्चों के जन्म में तीन-चार मिनट के अंतर में ही जमीन आसमान का आ जाता है, इसी तरह जन्म समय सही न होने से जातक के किसी भी पहलू की सही जानकारी प्राप्त नहीं हो सकती। कई जातकों की कुंडलियां एक सी नजर आती हैं, लेकिन सभी में अंतर वर्गों का ही होता है। यदि वर्गों के विश्लेषण पर विशेष ध्यान दिया जाए तो जुड़वां बच्चों के जीवन के अंतर को समझा जा सकता है। यही कारण है कि हमारे विद्वान महर्षियों ने फलित ज्योतिष की सूक्ष्मता तक पहुंचने के लिए इन षोड्श वर्गों की खोज की और इसका ज्ञान हमें दिया।

कई मनीषियो का मत है कि षट्वर्ग मे लग्न नही जोड़ना चाहिए क्योकि उसमे सम्पूर्ण राशि है जबकि वर्ग मे राशि खंडित / भाग होती है।  यह तर्क उचित भी है। अतः षट्वर्ग मे 1 होरा, 2 द्रेष्काण, 3 सप्तमांश, 4 नवमांश,  5 द्वादशांश, 6 त्रिशांश की ही गणना करते है।

वर्ग साधन : वर्गों का साधन स्पष्ट लग्न (लग्न के राशि अंश कला विकला) तथा सूर्यादि सात ग्रहो को तात्कालिक स्पष्ट कर करते है। नवमांश मे कुछ विद्जन राहु केतु का विचार करते है।  अन्य वर्गों मे केवल सात ग्रहो का ही विचार किया जाता है।
⋆ आजकल सॉफ्टवेयर से कम्प्यूर  जन्म प्रत्रिका बनने लगी है इनमे सभी वर्गों की कुंडली मिल जाती है।

वर्गों अनुसार ग्रहो का नामकरण : जब कोई ग्रह एक से अधिक बार इन सोलह वर्गों मे एक ही राशि मे स्थित हो या प्रत्येक वर्ग मे जन्मांग वाली राशि मे ही रहे, तो उसका नया नामकरण हो जाता है। जो इस प्रकार है।
दोबार-परिजातांश, तीनबार-उत्तमांश, चारबार-गोपुरांश, पांचबार-सिंहासनांश, छहबार-पारावतांश, सातबार-देवलोकांश, आठबार-ब्रम्हलोकांश, नौबार-शक्रवाहनांश, दसबार-श्रीधामांश, ग्यारहबार-वैष्णवांश, बारहबार-नारायनांश, तेरहबार वैशिकांश। (इन नामकरण का फल तो उपलब्ध नही है किन्तु इतना अवश्य है कि ग्रह की शुभता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है)

वर्गों का शुभाशुभ : षट्वर्ग, सप्तवर्ग, दसवर्ग मे निम्न स्थिति ग्रहो की शुभ होती है। अर्थात इन स्थितियो में ग्रह का फल शुभ होता है।
01 वर्ग मे बलवान ग्रह, 02 वर्ग में उच्च ग्रह, 03 वर्ग में मूल त्रिकोणस्थ ग्रह, 04 वर्ग मे त्रिकोणस्थ ग्रह, 05 वर्ग मे स्वक्षेत्री ग्रह, 06 शुभ नवांश मे ग्रह,  07 वर्ग मे मित्रक्षेत्री ग्रह, 08 स्व नवांश मे ग्रह, 09 वर्ग मे केंद्र में स्थित ग्रह, 10 वर्ग मे अधिमित्र राशि मे ग्रह।

ग्रहो का शुभाशुभ : षट्वर्ग, सप्तवर्ग, दसवर्ग या वर्गों मे ग्रह कितनी बार शुभाशुभ राशियो मे है उस अनुसार फल देता है। मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर, कुम्भ ये पांच रशिया अशुभ तथा मीन, वृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु ये रशिया शुभ है।

यदि शुभ ग्रह चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र, शुभ राशियो मे अधिक बार हो तो शुभता बढ़ जाती है।

यदि शुभ ग्रह अशुभ राशियो मे हो, तो सामान्य फल देता है।

यदि अशुभ ग्रह शनि, मंगल, सूर्य अशुभ राशियो मे अधिक बार हो तो अशुभता बढ़ जाती है।

यदि अशुभ ग्रह शुभ राशियो मे अधिक बार हो, तो सामान्य फल देता है।

यदि लग्न व ग्रह जिस राशि का हो वह नवमांश मे भी उसी राशि का हो, तो वर्गोत्तमी होकर शुभ फल देता है।

वर्गों के अनुसार शुभाशुभ : इसका कई प्रकार से गणित किया जाता है जो कठिन है।  इसके लिए ग्रह का शुभ, अशुभ निकलना पड़ता है जिसका निम्न क्रम से गणित होता है।  01 वर्गों का शुभ अशुभ चक्र बनाना।  02 शुभ अशुभ पंक्ति बनाना।  03 शुभ गणित शुभ पंक्ति, अशुभ गणित अशुभ पक्ति, 04 वर्गेश का इष्टध्न, कष्टध्न, षटबलेक्य तथा ग्रह का इष्टध्न, कष्टध्न, षटबलेक्य का गुणन फल निकालना, 05 उपरोक्त गुणन फल का वर्गमूल निकालना, 06 वर्गमूल का बिंदु क्रम 03 से गुना करने पर ग्रह का शुभाशुभ स्पष्ट होगा।
                                                                                           - गणितागत सूक्ष्मता व्यवहार उपयोगी नही है।वर्गों से विचार : किस वर्ग से क्या विचार करे इस पर मतैक्यता नही है। विद्जन लग्न से शरीर, होरा से सम्पदा, द्रेष्काण से बंधु, भातृ - भगिनी का सुख-दुःख, सप्तमांश से सन्तान आदि, नवमांश से स्त्री सुख व अन्य सभी विषय, द्वादशांश से स्व आयु व माता-पिता, त्रिशांश से अरिष्ट का विचार करते है।
मानसागरी  मतेन - लग्न से शरीर, होरा से संपत्ति विपत्ति,  द्रेष्काण से कर्मफल, सप्तमांश से भाई बहन बंधु, नवांश से जातक फल व अन्य सभी विषय, द्वादशांश से भार्या, त्रिशांश से कष्ट और मृत्यु का विचार करते है।
कई विद्जन लग्न से शरीर, आकृति, होरा से शील स्वाभाव, द्रेष्काण से पद, सप्तमांश से धन संचय, नवमांश से वर्ण, गुण, रूप, बुद्धि, पुत्र या प्रायः सभी विषय, द्वादशांश से आयु, त्रिशांश से स्त्री का विचार करते है।

वर्ग फलादेश सामान्य नियम : वर्गों मे निम्न निर्देशो के अनुसार ग्रह फल देते है।

उच्च ग्रह, मूलत्रिकोणस्थ (पाद छोड़कर) ग्रह शुभ फल देते है। स्वगृही, मित्रगृही (पाद मात्र मे) कीर्ति, यश यानि शुभ फल देने वाले होते है।

अर्ध पाद, अशुभ या नीच वर्ग, शत्रु वर्ग मे ग्रह अशुभ फल देते है।  शुभ वर्ग या मित्र वर्ग में ग्रह अत्यंत शुभ फल देते है।

पाप वर्ग, अशुभ वर्ग या शत्रु वर्ग मे अशुभ ग्रह जातक की दुःखद मृत्यु देते है। शुभ अथवा अशुभ, नीच वर्ग मे शुभ ग्रह सभी स्थानो पर शुभ फल देते है।

अंशात्मक नीच ग्रह यदि मित्रगृही या शुभ स्थानो मे हो, तो निर्बल हो जाता है। (ग्रहो के उच्च नीच अंश इस प्रकार है :- सूर्य 10 अंश, चंद्र 03 अंश, मंगल 28 अंश, बुध 15 अंश, गुरु 05 अंश, शुक्र 27 अंश, शनि 20 अंश)

यदि स्वगृही हो, तो उस स्थान का जिस स्थान मे हो पूर्ण फल देता है। ग्रह त्रिकोण (5, 9) मे त्रिकोण के सामान अंश फल देता है। ग्रह स्वक्षेत्र मे स्वगृही के सामान अंश फल देता है।  नीच अथवा  शत्रुक्षेत्री ग्रह जिस स्थान पर हो उस स्थान का जधन्य फल देता है।

लग्नगत ग्रह नीच का हो और वह वर्ग मे उच्च का होता है, तो जातक को नृप यानि राजा सामान बना देता है।

लग्नगत ग्रह उच्च का हो और वह वर्ग मे नीच का हो जाय तो उसकी शुभता व्यर्थ हो जाती है।

वर्ग मे विशेष फलादेश :
01 यदि षट्वर्ग मे शुभ ग्रहो का बल अधिक हो, तो जातक लक्ष्मीवान, दीर्घायु होता है।
02 यदि षट्वर्ग मे लग्न यानि प्रथम भाव अधिक बार क्रूर ग्रह की राशि मे हो, तो  जातक दीन, अल्पायु, शठ प्रकृति वाला होता है। परन्तु षड्वर्ग लग्नो के स्वामी बलवान हो, तो जातक नृप या पदाधिकारी होता है।
03 यदि नवांशेश, द्रेष्काणेश, लग्नेश बलवान हो, तो जातक क्रमशः से सुखी, राजा के सामान, भूपति, एवं भाग्यवान होता है। अर्थात नवांश बलि हो, तो सुखी, द्रेष्काण बलि हो, तो राजा के सामान, जन्मलग्न बलि हो, तो भूपति, भाग्यवान होता है।
04 जो फल स्वगृही, उच्च, मूलत्रिकोण, मित्रक्षेत्री का जन्म लग्न मे कहा है वह समस्त फल एक षट्वर्ग शुद्ध ग्रह जन्मांग मे देता है।
05 यदि एक भी ग्रह बली, सुस्थान, षट्वर्ग शुद्ध हो और सर्व गृह से दृष्ट हो, तो जातक कुलानुमान से बड़ा आदमी होता है।
06 शुभ स्थान में उच्चग्रह, मित्रवर्ग, सौम्यवर्ग गत हो, तो शुभ फल देता है। नीचग्रह, शत्रुवर्ग, अशुभवर्ग मे अशुभ फल देता है। इनमे अशुभ वर्ग और शुभ वर्ग का जो परस्पर अंतर द्वारा अधिक हो उससे शुभाशुभ फल कहना चाहिए। शुभ हो, तो विशेष शुभ होता है। अशुभ मे शुभ भी क्रूर और क्रूर अतिक्रूर हो जाता है।
संकेत - जो ग्रह दो से चार बार या अधिक बार षट्वर्ग मे निजोज्ज़, मित्र, शुभ ग्रह की राशि मे आवे और अस्त नही हो वह ग्रह षट्वर्ग शुद्ध और बलवान कहलाता है।

होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवमांश, द्वादशांश, त्रिशांश लग्नो के स्वामी ग्रह अपने उच्चवर्ग, मित्रवर्ग मे हो और शुभ ग्रह सहित हो, तो जातक मे बहुत गुण होते है। वह चतुर, गुणवान, दयावान, पवित्र, यशस्वी, राजाओ के सामान भोग भोगने वाला, पुत्रवान धनी होता है।

जिस भाव का फल षट्वर्ग, जन्म लग्न, ग्रह स्थिति से भी शुभ हो उसे विशेष शुभ कहना चाहिये।

षट्वर्ग से जिस भाव का फल शुभ और जन्म लग्न से अशुभ प्रतीत होता हो उसे मध्यम मिश्रित शुभाशुभ कहना चाहिये।

षट्वर्ग मे जिस भाव का फल अशुभ और जन्म लग्न से भी अशुभ हो, तो उसका फल अवश्य अशुभ होगा।

वर्ग एवं दशा विचार : वर्ग से प्राप्त फल के घटना के समय का आकलन महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा से हो सकता है।

षट्वर्ग के अधिकांश चक्रो मे जो ग्रह शुभ स्थान अथवा मित्र स्थान अथवा केन्द्र या त्रिकोण  मे हो. तो अपनी दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा मे शुभ व सुखप्रद होते है।  षट्वर्ग के अधिकांश चक्रो मे जो ग्रह अशुभ या पाप स्थान 6, 8, 12 अथवा पापयुक्त अथवा शत्रु स्थान मे हो, तो अपनी दशा, अंतर, प्रत्यंतर मे अशुभ व कष्ट प्रद होते है, उसकी दशादि मारक (मृत्यु तुल्य कष्ट) होती है।

जो शुभ या अशुभ ग्रह षड्वर्ग के अधिकांश चक्रो मे अपने नवांशपति की राशि या नवांशपति के मित्र की  राशि या नवांश पति से युक्त हो, तो उसकी दशा या भुक्ति शुभ व सुख प्रद होती है।

यदि दशानाथ उच्चस्थ या शुभ प्रभावो से युक्त या वर्गोत्तम हो और त्रिक भावो 6,8,12 का स्वामी नही हो, तो पाप या अशुभ ग्रह की भुक्ति भी अशुभ परिणाम नही दे पाती है। इसी प्रकार अशुभ या पापी ग्रह की दशा मे शुभ ग्रह की भुक्ति भी विशेष कल्याणप्रद नही हो पाती है।

Navmansh Kundali नवमांश कुंडली

नवमांश कुंडली 
नवमांश एक राशि के नवम भाव को कहते हैं जो अंश 20 कला का होता है, कुंडली के नवें भाव को भाग्य का भाव कहा गया है. यानि आपका भाग्य नवां भाव है. इसी प्रकार भाग्य का भी भाग्य देखा जाता है, जिसके लिए नवमांश कुंडली की आवश्यकता होती है!
भारतीय ज्योतिष में जन्मकुंडली केवल लग्न और चन्द्र लग्न तक सीमित नहीं है | षोडशवर्ग जिसे कि अधिकतर नजरअंदाज कर दिया जाता है जन्मकुंडली और फलादेश का महत्वपूर्ण अंग है | यदि एक कुंडली को गहराई से देखा जाए तो एक दिन और एक महीना भी काफी नहीं है |
ज्योतिषाचार्य और ज्योतिष के जानकार तक इस ओर अधिक समय खर्च करने से परहेज करते हैं | कारण केवल इतना है कि समय किसके पास है |

षोडश वर्ग की श्रृंखला में सबसे पहले आता है नवमांश | जन्मकुंडली के नौवें अंश को नवमांश कहा जाता है | कहने को यह कुंडली का एक छोटा भाग है परन्तु आश्चर्य की बात है कि नवमांश से पत्नी या जीवन साथी के विषय में सही सही अनुमान लगाया जा सकता है |

जीवन साथी का रंग रूप कैसा होगा | स्वभाव कैसा होगा |  चरित्र और शिक्षा कैसी होगी | जीवन साथी की नौकरी या कारोबार की क्या स्थिति होगी | यहाँ तक कि जीवन साथी किस व्यवसाय या पद से सम्बन्ध रखेगा | आर्थिक स्थिति क्या होगी | परिवार बड़ा होगा या छोटा | भाई बहनों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है | यदि चरित्र में कोई दोष हो तो पता चल सकता है | विवाह से पहले कितने सम्बन्ध थे या हैं | विवाह के बाद का समय कैसा रहेगा | शादी सफल होगी या नहीं, आदि |

किसी भी कुंडली का विशलेषण करते समय सबसे पहले लग्न और लग्नेश की स्थिति देखी जाती है | नवमांश लग्न यदि राहू केतु शनि या मंगल से युक्त हो तो पति या जीवन साथी कूर स्वभाव का होता है | स्त्री दुराचारिणी होती है | यदि केवल राहू का असर नवमांश लग्न पर हो तो जीवन साथी जो कुछ दिखाई देता है वैसा नहीं होगा |

नीचे दी गई कुंडली देखें | यह एक महिला की कुंडली है जो बैंगलोर की रहने वाली है | नवमांश कुंडली का विशलेषण करके हम इस महिला के पति के बारे में थोडा अनुमान लगाने की कोशिश करेंगे |

लग्न पर बुध और शनी की दृष्टि यानी कद लम्बा और शरीर संतुलित | शनि से रंग सावला और बुध से गोर वर्ण होता है परन्तु यहाँ शनी का बल अधिक है इसलिए सांवला रंग और लम्बा कद होगा | आँखें छोटी और शरीर पर बाल कम होंगे |

बुध की दृष्टि लग्न पर है यानी इस महिला का पति चालाक अवश्य होगा | चंद्रमा लग्न के पीछे है | यानी व्यक्ति की माँ या तो विदेश में रहती है या फिर दूर किसी शहर में | पिता के विषय में सूर्य से अनुमान लगाया जा सकता है | सूर्य जो वृश्चिक के मंगल के साथ है | आय का साधन पुलिस या सेना से जुड़ा हो सकता है | हड्डियों के डाक्टर या सर्जन सूर्य और मंगल के योग से बनते हैं | सूर्य के दोनों ओर ग्रह हैं यानी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी | आय और व्यय में संतुलन होगा | पंचम भाव को देखते हैं यानी किन्ही दो क्षेत्रों में व्यक्ति पारंगत होगा | जैसे कि मंगल से तकनीकी और सूर्य से admin.  शुक्र केतु दशम में हैं, शुक्र बलवान है तो केतु शुक्र का बल और अधिक बढ़ा रहा है यानी कारोबार या नौकरी में व्यक्ति अच्छा सेटल है | हो सकता है अपना कारोबार हो या फिर आराम की नौकरी क्योंकि शुक्र तो सुख सुविधा और आराम का कारक ग्रह है फिर यह बलवान भी है | अब चौथा घर देखें | गुरु शनी और राहू की युति में गुरु यानी बृहस्पति को नुक्सान होता है | शनि अपना पाप प्रभाव त्याग कर सन्यासी जैसा हो जाता है और राहू की बात करें तो यह किसी निश्चय तक पहुँचने में बाधा डालने का कार्य करता है | कोई जमीन या फिर झगड़े की जगह होगी जिसका झगड़ा चल रहा है | चौथा घर कोर्ट कचहरी है शनी और राहू का होना विवाद को जन्म देता है | इस विवाद में गुरु यानी दादा का सम्बन्ध है |

अब जानते हैं कि हकीकत क्या है | जब इस महिला को यह सब बताया गया तो उसने कहा कि उसकी शादी नहीं हुई है परन्तु उसके प्रेमी में उपरोक्त अधिकतर चीजें मेल खाती हैं |
इस विषय में थोडा और अध्ययन की आवश्यकता होगी परन्तु जितना ऊपर लिखा गया है उससे यह तो स्पष्ट है कि जीवन साथी हो या प्रेमी, नवमांश से काफी कुछ जानकारी हासिल होती है |

मेरा यह मानना है कि यदि नवमांश को जन्म कुंडली के साथ मिलाकर फलादेश किया जाए तो न केवल वर्तमान बल्कि भावी जीवन का आकलन करके जातक को भविष्य की घटनाओं की विस्तृत जानकारी दी जा सकती है |

सप्तम भाव, सप्तम भाव का स्वामी और शुक्र से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है| इन भावों के अलावा द्वादश भाव कामुक संबंधों के लिए, दूसरा भाव कुटुंब के लिए, चौथा भाव परिवार के लिए भी देखे जाते है | यदि इन भावों का संबंध या इनके स्वामियों का संबंध मंगल, शनि, राहु एवं केतु से हो तो वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता है|

यदि शुक्र मेष,सिंह, धनु,  वृश्चिक में हो या नीच का हो और मंगल राहु केतु या शनि के साथ हो तो यह व्यक्ति में अत्यधिक सेक्स इच्छा दर्शाते है | कई बार व्यक्ति विवाह की मर्यादा को तोड़कर विवाह के बाद बाहर ही संबंध बनाता है निश्चय ही यह अच्छी बात नहीं है परंतु ऐसे कौन से योग है जिसके कारण व्यक्ति भी इस तरह की इच्छा उत्पन्न होती है आइए जानते हैं की ज्योतिष ग्रंथों में इसके बारे में क्या बताया गया है| विवाह से बाहर शारीरिक संबंध बनाने के लिए पहले तो व्यक्ति बौद्धिक रूप से तैयार होना चाहिए उसकी बुद्धि ऐसी होनी चाहिए जो उसको इस ओर धकेल रही हो |पंचम भाव और चंद्रमा दर्शाता है कि व्यक्ति की सोच क्या है तो यदि आपकी कुंडली में पंचम भाव पर मंगल, शनि, राहु का प्रभाव है और चंद्रमा भी पीड़ित है तो ऐसी सोच उत्पन्न होती है|  यही योग यदि नवांश में बन जाए तो वह इस तरह की सोच पर मोहर लगा देते हैं|

अब बात करते हैं ऐसे कुछ लोगों की जो ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में दिए हुए है |

नवांश कुंडली में शनि शुक्र की राशि में और शुक्र शनि की राशि में हो तो महिला की शारीरिक भूख अधिक होती है|

नवांश कुंडली में शुक्र मंगल की राशि में हो और मंगल शुक्र की राशि में तो व्यक्ति अपने जीवनसाथी के अलावा बाहर शारीरिक संबंध बनाने में नहीं हिचकिचाते है|

शुक्र मंगल आत्मकारक की नवांश राशि से बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता है|

केतु आत्मकारक की नवांश राशि से नवम भाव में हो तो वृद्धावस्था तक भी व्यक्ति पर पुरुष या पर स्त्री के बारे में सोचता रहता है|

शुक्र सभी वर्गों में केवल मंगल या शनि की राशियों में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता है|

नवांश कुंडली में चंद्रमा के दोनों ओर शनि और मंगल हो तो पति-पत्नी दोनों ही व्याभिचार करते हैं|

जन्म कुंडली का सप्तम का स्वामी नवांश कुंडली में बुद्ध की राशि में बैठा हो और बुध उसे देख ले तो आपका जीवन साथी द्विअर्थी बातें करते हैं और लोगों को रिझाने का काम करते हैं|

 जैसा की आप सबको भी ज्ञात होगा कि पंचम और सप्तम भाव से संतान प्राप्ति देखते हैं|  यदि दोनों का संबंध छठे भाव से हो जाए तो व्यक्ति विशेष में  प्रजनन शक्ति कम होती है| जातक अलंकार के अनुसार यदि शुक्र मंगल की राशियों में हो तो वह अपने जीवनसाथी को सेक्स संबंधों में खुश नहीं रख पाता है| इसी तरह यदि शनि शुक्र का योग दशम भाव में हो तो व्यक्ति में नपुंसकता के योग होते हैं|  संकेत निधि के अनुसार यदि शुक्र चंद्रमा की युति नवम भाव में हो तो ऐसे जातक की पत्नी कुटिल होती है|

 कुंडली के चौथे भाव से व्यक्ति के चरित्र का पता लगाया जाता है और बार-बार सेक्स संबंधों में आपकी रुचि को दर्शाता है किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही इन दोनों भावों का गहन विश्लेषण आवश्यक है | हमारा आप सब से अनुरोध है कि यह नियम सीधे कुंडलियों पर ना लगाएं अपितु पूरी कुंडली का विश्लेषण करने के बाद ही इन लोगों को जांचे|

भारतीय ज्योतिष में नवमांश कुण्डली अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। नवमांश कुण्डली को लग्न कुण्डली के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लग्न कुण्डली शरीर को एवं नवमांश कुण्डली आत्मा को निरुपित करती है। केवल जन्म कुण्डली से फलादेश करने पर फलादेश समान्यत सही नहीं आता। पराशर संहिता के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म कुन्डली एवं नवांश कुण्डली में एक ही राशि होती है तो उसका वर्गोत्तम नवमांश होता है वह शारीरिक व आत्मिक रूप से स्वस्थ होता है। इसी प्रकार अन्य ग्रह भी वर्गोत्तम होने पर बली हो जाते है एवं अच्छा फल प्रदान करते है। अगर कोई ग्रह जन्म कुण्डली में नीच का हो एवं नवांश कुण्डली में उच्च को हो तो वह शुभ फल प्रदान करता है जो नवांश कुण्डली के महत्त्व को प्रदर्शित करता है। नवांश कुण्डली में नवग्रहो सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि के वर्गोत्तम होने पर व्यक्ति क्रमश: प्रतिष्ठावान, अच्छी स्मरण शक्ति, उत्त्साही, अत्यंत बुद्धिमान, धार्मिक एवं ज्ञानी, सौन्दर्यवान एवं स्वस्थ और लापरवाह होता है।

जागरूक ज्योतिषी कुंडली संबंधी किसी भी कथन से पहले एक तिरछी दृष्टि नवमांश पर भी अवश्य डाल चुका होता है. बिना नवमांश का अध्ययन किये बिना भविष्य कथन में चूक की संभावनाएं अधिक होती हैं. ग्रह का बला-बल व उसके फलित होने की संभावनाएं नवमांश से ही ज्ञात होती हैं
लग्न कुंडली में बलवान ग्रह यदि नवमांश कुंडली में कमजोर हो जाता है, तो उसके द्वारा दिए जाने वाले लाभ में संशय हो जाता है. इसी प्रकार लग्न कुंडली में कमजोर दिख रहा ग्रह यदि नवमांश में बली हो रहा है, तो भविष्य में उस ओर से बेफिक्र रहा जा सकता है. क्योंकि बहुत हद तक वो स्वयं कवर कर ही लेता है. अत: भविष्यकथन में नवमांश आवश्यक हो जाता है. 

नवमांश कुंडली षोडश वर्ग में सभी वर्ग महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन लग्न कुंडली के बाद नवमांश कुंडली का विशेष महत्व है. 

नवमांश एक राशि के नवम भाव को कहते हैं जो अंश 20 कला का होता है. नौ नवमांश इस प्रकार होते हैं जैसे, मेष में पहला नवमांश मेष का, दूसरा नवमांश वृष का, तीसरा नवमांश मिथुन का, चौथा नवमांश कर्क का, पांचवां नवमांश सिंह का, छठा कन्या का, सातवाँ तुला का, आठवाँ वृश्चिक का और नवा नवमांश धनु का होता है. नवम नवमांश में मेष राशि की समाप्ति होती है.

वृष राशि में पहला नवमांश मेष राशि के आखिरी नवमांश से आगे होता है. इसी तरह वृष में पहला नवमांश मकर का, दूसरा कुंभ का, तीसरा मीन का, चौथा मेष का, पांचवां वृष का, छठा मिथुन का, सातवाँ कर्क का, आठवाँ सिंह का और नवम नवमांश कन्या का होता है. इसी तरह आगे राशियों के नवमांश ज्ञात किए जाते हैं.
 नवमांश कुंडली से मुख्य रूप से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है.इसके अतिरिक्त भी नवमांश कुंडली का परीक्षण लग्न कुंडली के साथ-साथ किया जाता है. यदि बिना नवमांश कुंडली देखे केवल लग्न कुंडली के आधार पर ही फल कथन किया जाए तो फल कथन में त्रुटियां रह सकती हैं या फल कथन गलत भी हो सकता है. क्योंकि ग्रहों की नवमांश कुंडली में स्थिति क्या है? नवमांश कुंडली में ग्रह कैसे योग बना रहे हैं, यह देखना अत्यंत आवश्यक है. तभी ग्रहों के बल आदि की ठीक जानकारी प्राप्त होती है. इसके अतिरिक्त अन्य वर्ग कुंडलियां भी अपना विशेष महत्व रखते हैं, लेकिन नवमांश इन वर्गों में अति महत्वपूर्ण वर्ग है. लग्न और नवमांश कुंडली परीक्षण यदि लग्न और नवमांश लग्न वर्गोत्तम हो तो ऐसे जातक मानसिक और शारीरिक रूप से बलवान होते हैं.

वर्गोत्तम लग्न का अर्थ है. लग्न और नवमांश दोनों कुंडलियों का लग्न एक ही होना अर्थात जो राशि लग्न कुंडली के लग्न में हो, वही राशि नवमांश कुंडली के लग्न में हो तो यह स्थिति वर्गोत्तम लग्न कहलाती है. इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में हो तो वह ग्रह वर्गोत्तम होता है. वर्गोत्तम ग्रह अति शुभ और बलवान होता है. जैसे सूर्य लग्न कुंडली में धनु राशि में हो और नवमांश कुंडली में भी धनु राशि में हो तो सूर्य वर्गोत्तम होगा. वर्गोत्तम होने के कारण ऐसी स्थिति में सूर्य अति शुभ फल देगा. वर्गोत्तम ग्रह भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार भी अपने अनुकूल भाव में बैठा हो तो अधिक श्रेष्ठ फल देता है.
राशियों में वर्गोत्तम ग्रह आसानी से शुभ परिणाम देता है और क्रूर राशियों में वर्गोत्तम ग्रह कुछ संघर्ष भी करा सकता है.
* जब कोई ग्रह लग्न कुण्डली में अशुभ स्थिति में हो पीड़ित हो, निर्बल हो या अन्य प्रकार से उसकी स्थिति खराब हो, लेकिन नवमांश कुंडली में वह ग्रह शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो, शुभ और बलवान हो गया हो तब वह ग्रह शुभ फल ही देता है. अशुभ फल नहीं देता. इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली में अपनी नीच राशि में हो और नवमांश कुंडली में वह ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो उसे बल प्राप्त हो जाता है, जिस कारण वह शुभ फल देने में सक्षम होता है. ग्रह की उस स्थिति को नीचभंग भी कहते हैं. चंद्र और चंद्र राशि से जातक का स्वभाव का अध्ययन किया जाता है. लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में चंद्र जिस राशि में हो तथा यदि नवमांश कुंडली के चंद्रराशि का स्वामी लग्न कुंडली के चंद्रराशि से अधिक बली हो और चंद्रमा भी लग्न कुंडली से ज्यादा नवमांश कुंडली में बली हो तो जातक का स्वभाव नवमांश कुंडली के अनुसार होगा. ऐसे में जातक के मन पर नवमांश कुंडली के चंद्र की स्थिति का प्रभाव अधिक पड़ेगा.
* यदि नवमांश कुंडली का लग्न, लग्नेश बली हो और नवमांश कुंडली में राजयोग बन रहा हो और ग्रह बली हो तो जातक को राजयोग प्राप्त होता है.
* नवमांश कुंडली मुख्यरूप से विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए देखी जाती है. यदि लग्न कुंडली में विवाह होने की या वैवाहिक जीवन की स्थिति ठीक न हो, अर्थात योग न हो लेकिन नवमांश कुंडली में विवाह और वैवाहिक जीवन की स्थिति शुभ और अनुकूल हो, विवाह के योग हो तो वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त होता है.

नो नवमांश इस प्रकार होते है जैसे, मेष में पहला नवमांश मेष का, दूसरा नवमांश वृष का, तीसरा नवमांश मिथुन का, चौथा नवमांश कर्क का, पाचवां नवमांश सिंह का, छठा कन्या का, सातवाँ तुला का, आठवाँ वृश्चिक का और नवा नवमांश धनु का होता है।नवम नवमांश में मेष राशि की समाप्ति होती है और वृष राशि का प्रारम्भ होता है।वृष राशि में पहला नवांश मेष राशि के आखरी नवांश से आगे होता है।इसी तरह वृष में पहला नवमांश मकर का, दूसरा कुंभ का, तीसरा मीन का, चौथा मेष का, पाचवा वृष का, छठा मिथुन का, सातवाँ कर्क का, आठवाँ सिंह का और नवम नवांश कन्या का होता है। इसी तरह आगे राशियों के नवमांश ज्ञात किए जाते है। नवमांश कुंडली से मुख्य रूप से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है।इसके अतिरिक्त भी नवमांश कुंडली का परिक्षण लग्न कुंडली के साथ-साथ किया जाता है।यदि बिना नवमांश कुंडली देखे केवल लग्न कुंडली के आधार पर ही फल कथन किया जाए तो फल कथन में त्रुतिया रह सकती है या फल कथन गलत भी हो सकता है।क्योंकि ग्रहो की नवमांश कुंडली में स्थिति क्या है?नवमांश कुंडली में ग्रह कैसे योग बना रहे है यह देखना अत्यंत आवश्यक है तभी ग्रहो के बल आदि की ठीक जानकारी प्राप्त होती है।इसके अतिरिक्त अन्य वर्ग कुण्डलिया भी अपना विशेष महत्व रखते है।लेकिन नवमांश इन वर्गों में अति महत्वपूर्ण वर्ग है। लग्न और नवमांश कुंडली परीक्षण * * यदि लग्न और नवमांश लग्न वर्गोत्तम हो तो ऐसे जातक मानसिक और शारीरिक रूप से बलबान होते है।वर्गोत्तम लग्न का अर्थ है।लग्न और नवमांश दोनों कुंडलियो का लग्न एक ही होना अर्थात् जो राशि लग्न कुंडली के लग्न में हो वही राशि नवमांश कुंडली के लग्न में हो तो यह स्थिति वर्गोत्तम लग्न कहलाती है। * इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में हो तो वह ग्रह वर्गोत्तम होता है वर्गोत्तम ग्रह अति शुभ और बलबान होता है।जैसे सूर्य लग्न कुंडली में धनु राशि में हो और नवमांश कुंडली में भी धनु राशि में हो तो सूर्य वर्गोत्तम होगा।वर्गोत्तम होने के कारण ऐसी स्थिति में सूर्य अति शुभ फल देगा।वर्गोत्तम ग्रह भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार भी अपने अनुकूल भाव में बेठा हो तो अधिक श्रेष्ठ फल करता है। * शुभ राशियों में वर्गोत्तम ग्रह आसानी से शुभ परिणाम देता है और क्रूर राशियों में वर्गोत्तम ग्रह कुछ संघर्ष भी करा सकता है। * जब कोई ग्रह लग्न कुण्डली में अशुभ स्थिति में हो पीड़ित हो, निर्बल हो या अन्य प्रकार से उसकी स्थिति ख़राब हो लेकिन नवमांश कुंडली में वह ग्रह शुभ ग्रहो के प्रभाव में हो, शुभ और बलबान हो गया हो तब वह ग्रह शुभ फल ही देता है अशुभ फल नही देता।इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली में अपनी नीच राशि में हो और नवमांश कुंडली में वह ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो उसे बल प्राप्त हो जाता है जिस कारण वह शुभ फल देने में सक्षम होता है।ग्रह की उस स्थिति को नीचभंग भी कहते है। * चंद्र और चंद्र राशि से जातक का स्वभाव का अध्ययन किया जाता है।लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में चंद्र जिस राशि में हो तथा यदि नवमांश कुंडली के चंद्रराशि का स्वामी लग्न कुंडली के चंद्रराशि से अधिक बली हो और चंद्रमा भी लग्न कुंडली से ज्यादा नवमांश कुंडली में बली हो तो जातक का स्वभाव नवमांश कुंडली के अनुसार होगा।ऐसे में जातक के मन पर नवमांश कुंडली के चंद्र की स्थिति का प्रभाव अधिक पड़ेगा। * यदि नवमांश कुंडली का लग्न, लग्नेश बली हो और नवमांश कुंडली में राजयोग बन रहा हो और ग्रह बली हो तो जातक को राजयोग प्राप्त होता है। * नवमांश कुंडली मुख्यरूप से विवाह और वैवाहिक जीवन केलिए देखी जाती है यदि लग्न कुंडली में विवाह होने की या वैवाहिक जीवन की स्थिति ठीक न हो अर्थात् योग न हो लेकिन नवमांश कुंडली में विवाह और वैवाहिक जीवन की स्थिति शुभ और अनुकूल हो, विवाह के योग हो तो वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त होता है।
 पाठक अब देखें की नवमांश कुंडली का निर्माण कैसे होता है व नवमांश में ग्रहों को कैसे रखा जाता है। हम जानते हैं कि एक राशि अथवा एक भाव 30 डिग्री का विस्तार लिए हुए होता है। अतः एक राशि का नवमांश अर्थात 30 का नवां हिस्सा यानी 3. 2 डिग्री। इस प्रकार एक राशि में नौ राशियों  नवमांश होते हैं। अब 30 डिग्री को नौ भागों में विभाजित कीजिये
              …        पहला नवमांश          ०० से 3.२०
                       दूसरा नवमांश           3. २० से ६.४०
                       तीसरा नवमांश          ६. ४० से १०. ००
                       चौथा नवमांश           १० से १३. २०
                       पांचवां नवमांश         १३.२० से १६. ४०
                       छठा नवमांश            १६. ४० से २०. ००
                       सातवां नवमांश        २०. ०० से २३. २०
                       आठवां नवमांश        २३. २० से २६. ४०
                       नवां नवमांश           २६. ४० से ३०. ००
             
मेष -सिंह -धनु (अग्निकारक राशि) के  नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।
वृष -कन्या -मकर  (पृथ्वी तत्वीय राशि ) के नवमांश  का आरम्भ मकर से होता है।
मिथुन -तुला -कुम्भ (वायु कारक राशि ) के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।
कर्क -वृश्चिक -मीन  (जल तत्वीय राशि ) के नवमांश  आरम्भ कर्क से होता है।               
मेष -सिंह -धनु (अग्निकारक राशि) के  नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।
वृष -कन्या -मकर  (पृथ्वी तत्वीय राशि ) के नवमांश  का आरम्भ मकर से होता है।
मिथुन -तुला -कुम्भ (वायु कारक राशि ) के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।
कर्क -वृश्चिक -मीन  (जल तत्वीय राशि ) के नवमांश  आरम्भ कर्क से होता है।
             इस प्रकार आपने देखा कि राशि के नवमांश का आरम्भ अपने ही  तत्व स्वभाव की राशि से हो रहा है। अब नवमांश राशि स्पष्ट करने के लिए सबसे पहले लग्न व अन्य ग्रहादि का स्पष्ट होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए मानिए कि किसी कुंडली में लग्न ७:०३:१५:१४ है ,अर्थात लग्न सातवीं राशि को पार कर तीन अंश ,पंद्रह कला और चौदह विकला था (यानी वृश्चिक लग्न था ),अब हम जानते हैं कि वृश्चिक जल तत्वीय राशि है जिसके नवमांश का आरम्भ अन्य जलतत्वीय राशि कर्क से होता है। ०३ :१५ :१४  मतलब ऊपर दिए नवमांश चार्ट को देखने से ज्ञात हुआ कि ०३ :२० तक पहला नवमांश माना जाता है। अब कर्क से आगे एक गिनने पर (क्योंकि पहला नवमांश ही प्राप्त हुआ है ) कर्क ही आता है ,अतः नवमांश कुंडली का लग्न कर्क होगा। यहीं अगर लग्न कुंडली का लग्न ०७ :१८ :१२ :१२ होता तो हमें ज्ञात होता कि १६. ४० से २०. ०० के मध्य यह डिग्री  हमें छठे नवमांश के रूप में प्राप्त होती। अतः ऐसी अवस्था में कर्क से आगे छठा नवमांश धनु राशि में आता ,इस प्रकार इस कुंडली का नवमांश धनु लग्न से बनाया जाता।
                                       अन्य उदाहरण से समझें .......  मान लीजिये किसी कुंडली का जन्म लग्न सिंह राशि में ११ :१५ :१२ है (अर्थात लग्न स्पष्ट ०४ :११:१५ :१२ है )ऐसी अवस्था में चार्ट से हमें ज्ञात होता है कि ११ :१५ :१२ का मान हमें १०.०० से १३. २० वाले चतुर्थ नवमांश में प्राप्त हुआ। यानी ये लग्न का चौथा नवमांश है। अब हम जानते हैं कि सिंह का नवमांश मेष से आरम्भ होता है। चौथा नवमांश अर्थात मेष से चौथा ,तो मेष से चौथी राशि कर्क होती है ,इस प्रकार इस लग्न कुंडली की नवमांश कुंडली कर्क लग्न से बनती। इसी प्रकार अन्य लग्नो की गणना की जा सकती है।
                        इसी प्रकार नवमांश कुंडली में ग्रहों को भी स्थान दिया जाता है। मान लीजिये किसी कुंडली में सूर्य तुला राशि में २६ :१३ :०७ पर है (अर्थात सूर्य स्पष्ट ०६ :२६ :१३ :०७ है ) चार्ट देखने से ज्ञात  कि २६ :१३ :०७  आठवें नवमांश जो कि २३. २० से २६. ४० के मध्य विस्तार लिए हुए है के अंतर्गत आ रहा है। इस प्रकार तुला से आगे (क्योंकि सूर्य तुला में है और हम जानते हैं कि तुला का नवमांश तुला से ही आरम्भ होता है ) आठ गिनती करनी है। तुला से आठवीं राशि वृष होती है ,इस प्रकार इस कुंडली की नवमांश कुंडली में सूर्य वृष राशि पर लिखा जाएगा। इसी प्रकार गणना करके अन्य ग्रहों को भी नवमांश में स्थापित किया जाना चाहिये।
वर्गों मे सबसे अधिक महत्व नवांश या नवमांश को दिया गया है।
इसका विचार विशेष रूप से किया जाता है।
आजकल पाश्चात्य विद्वान् भी इसे महत्व देने लगे है।
नवमांश का विचार फलित के अलावा स्त्री, विवाह और मुहूर्त  मे भी करते है।
कुछ मत से इसे बीज कुंडली भी माना जाता है।
भारत मे लग्न कुण्डली के साथ चन्द्र कुण्डली और नवमांश कुण्डली का भी विचार किया जाता है।

राशि 30 अंश के नौ भाग (30 ÷ 9 = 3 अंश 20 कला) करने पर एक भाग 3 अंश 20  कला का होगा। अर्थात राशि के नौवे भाग को नवांश या नवमांश कहते है। नवांश का सीधा सम्बन्ध नक्षत्र के एक चरण से भी आता है। क्योकि प्रत्येक चरण 3 अंश 20 कला का ही होता है।  इसलिए भी नवमांश का महत्व है।
नवमांश मे मेष-सिंह-धनु के लिये मेष से; वृषभ-कन्या-मकर के लिये मकर राशि से; मिथुन-तुला-कुम्भ के लिये तुला राशि से; कर्क-वृश्चिक-मीन के लिये कर्क राशि से गणना करते है।

नवमांश का महत्व

जातक फलादेश के अन्यत्र भी नवमांश का प्रचलन ज्योतिष की अन्य विधाओ जैसे विवाह, स्त्री, मुहूर्त, यज्ञादि मे है। नवांश कुंडली वास्तव मे जन्म कुंडली का मेरुदण्ड है, जिसे बीज कुंडली भी कहते है। विद्जन नवांशगत ग्रह स्थिति का गहन अध्ययन करने के पश्चात् जन्म कुंडली की शक्ति का ज्ञान कर ही फलित का निरूपण करते है। विद्जन नवांश की उपेक्षा नही करते है क्योकि जन्मांग का अत्यंत प्रबल राजयोग भी नवमांश में दोष युक्त हो जाने पर निष्फल हो जाता है।

प्रायः जन्म कुण्डली मे यदि कोई योगादि दोष युक्त हो और वही योग कारक ग्रह नवांश मे बलाढ्य है, तो जन्म कुंडली का वह योग बल पाकर फल देता है।  इस प्रकार कई भी शुभाशुभ योग जन्मांग की अपेक्षा नवांश मे शुभ होने पर अत्यंत शुभ और अशुभ होने पर अत्यंत अशुभ माना जाता है। यदि नवांश मे ग्रह निर्बल हो और वही ग्रह जन्मांग मे प्रबल हो, तो भी जातक को उसका शुभ फल नही मिलता है। इसी प्रकार यदि जन्म लग्न "पुरुषलग्न" है, तो नवांश लग्न भी प्रायः "पुरुषलग्न" होता है।

विभिन्न वर्ग एक प्रकार की दृष्टिया ही है। नवांश का अर्थ है 40 अंश  (360 ÷ 9 = 40) अथवा उसके गुणित। इसे पाश्चात्य ज्योतिष मे "नोनाइल आसपेक्ट" (प्रथम द्वितीय आदि) कहते है। इस सिद्धांत अनुसार जो ग्रह 40, 80, 120, 160, 200, 240, 280 अंश के अंतर पर हो वो एक ही नवांश मे रहेगे। जब कोई ग्रह नवांश मे युतियोग मे नही हो, तो वे जन्मांग मे भी परस्पर 40 अंश के अंतर पर नही है। यदि नवांश मे ग्रह युतियोग मे है, तो  जन्मांग मे भी वे 40 अंश या उसके गुणित के अंतर पर होगे।

नामांश गणना
ज्योतिषीय दृष्टि से नवांश की गणना का अवलोकन करे तो अनेक सामंजस्य दृष्टि पात होते है। प्रत्येक वर्ग मे गणना का प्रारम्भ उस वर्ग की चर राशि से ही है। चर राशियो की गणना उसी राशि है।  स्थिर राशियो की गणना नवम राशि से है। द्विस्वभाव राशियो की गणना पंचम राशि से है।  इस प्रकार प्रत्येक राशि में नवांश की गणना चर राशि से ही होती है।

नवमांश फलादेश  (स्त्री विचार)
● जिस राशि का जो नवांश हो वह उस राशि के बल से अधिक बली होता है। अर्थात जन्मलग्न की राशि से नवांशलग्न की राशि अधिक बली होती है। राशि की दुर्बलता से नवांश भी तदनुरूप दुर्बल होता है। यदि राशि मध्यम बली हो, तो नवांश भी मध्यम बली होता है। इसका फलित में सर्वत्र ध्यान रखना चाहिये।
● नवांश अधिपति स्वनवांश मे हो या अपनी राशि या उच्च राशि में अन्य वर्गों मे हो अथवा शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, तो जातक अतुल गुणवती उत्तम स्वभाव सुन्दर स्त्री को बिना प्रयाश प्राप्त करता है।
● नवांश का स्वामी यदि बली होकर केन्द्र मे स्थित हो, तो 16 वर्ष की आयु अर्थात तरुण अवस्था में विवाह हो जाता है। यदि बली नवांशेश त्रिकोण मे हो, तो 25 वर्ष की आयु अर्थात युवावस्था मे विवाह होता है। यदि नवांशेश बली होकर त्रिकोण के अतिरिक्त अनुक्त अन्य स्थानो मे हो, तो 26 से 30 वर्ष की अवस्था मे या प्रौढ़ अवस्था मे स्त्री सुख प्राप्त होता है।
● नवांश लग्न मे पापग्रह का योगादिक हो तथा सप्तम भाव के नवांश पर पापग्रह का योगादिक हो या सप्तम भावगत नवांश पर पापग्रह का योगादिक हो, तो जातक का विवाह नही होता है।
● नवमांश जो ग्रह बलवान (वर्गोत्तमी, उच्च, स्वराशि या अन्य प्रकार) होकर स्थित हो वह उतना ही उत्तम एवं शुभ फल देता है।
● नवांश लग्न का स्वामी सूर्य हो, तो स्त्री पतिव्रता, उग्र प्रकृति वाली। चन्द्रमा हो, तो स्त्री शान्त प्रकृति, रूपवती। मंगल हो, तो स्त्री क्रूर स्वभाव वाली, आचरणहीन। बुध हो, तो चतुर, सुंदरी, कसीदे आदि मे निपुण। गुरु हो, तो सदाचारणी, नियमव्रत मे रुचिवान।  शुक्र हो, तो स्त्री श्रृंगारप्रिय, चतुर, शौकीन, भोगविलास मे प्रवीण, आचरणहीन होने का भय। शनि हो, तो क्रूर स्वभाव वाली, नीच संगति वाली, पति के विरुद्ध विचार वाली। राहु किंवा केतु हो, तो स्त्री गुप्त दुराचार करने वाली, दुष्टा, कुटिला, पति विरुद्ध आचरण करने वाली होती है।
● नवांश लग्न का स्वामी यदि व्यय स्थान मे हो, तो जातक पत्नी से संतुष्ट नही होता है। नवांशेश पापग्रह हो या पापग्रह से दृष्ट हो, तो जातक की स्त्री झगड़ालू होती है। नवांशेश जन्म कुंडली मे शुभग्रह हो या शुभग्रह से दृष्ट या युत हो या स्वराशिस्थ हो या केन्द्र, त्रिकोण मे हो, तो जातक को स्त्री का पूर्ण सुख मिलता है।
● जन्म कुण्डली मे नवमांश का स्वामी द्वितीयेश या नवमेश या एकादशेश के साथ युत हो, तो जातक को सुसराल से लाभ या स्त्रियो से लाभ होता है। यदि नवमांशेश पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो उतनी ही स्त्रियों का नाश या उतने ही सम्बन्ध छूटते है।
● नवांश का स्वामी यदि जन्मांग मे द्वितीय स्थान मे हो, तो विवाह बाद धन मिलता है। नवांशेश यदि स्वराशिस्थ हो या 3, 5, 9, 10 वे स्थान मे हो, तो भाग्यशाली स्त्री का लाभ होता है।
● नवांश स्वामी जन्म लग्न मे छठवे या आठवे हो, तो स्त्री का वियोग या हानि होती है। जन्म लग्नेश शत्रु या नीच नवांशगत हो, तो स्त्री हानि या विवाह मे बाधा आती है। जन्म लग्न का स्वामी जिस स्थान मे हो उसके नवांशपति के गृह मे जब गोचर गुरु आवे तब स्त्री लाभ होता है।
@  इसी प्रकार स्त्री जातक की नवमांश कुंडली से पति के सौख्य आदि का बुद्धि पूर्वक विचार कर फलित कहे।

अन्यत्र :  (स्त्री या सप्तम स्थान विचार)
अन्यमत अनुसार भी नवमांश से स्त्री भाव यानि सप्तम स्थान का विचार किया जाता है।  इससे स्त्री का आचरण, स्वभाव, चेष्टा प्रभृति देखना चाहिये।
नवांश लग्न का स्वामी सूर्य हो, तो स्त्री पतिव्रता, उग्र स्वभाव वाली होती है।  चन्द्रमा हो, तो शीतल स्वभाव, गौरवर्ण, मिलनसार, सुन्दर, चंचल होती है। मंगल हो, तो स्त्री कुलटा, लड़ाकू, क्रूर स्वाभाव की होती है। नवांश लग्न का स्वामी बुध हो, तो स्त्री हंसमुख, चतुर, चित्रकार, सुन्दर आकृति, शिल्पविद्या मे निपुण होती है। गुरु हो, तो पीतवर्ण, ज्ञानवती, शुभ आचरण करने वाली, पतिव्रता, सौम्य स्वभाव, धार्मिक वृत्ति वाली, व्रत-तीर्थ करने वाली होती है। नवांश लग्न का स्वामी शुक्र हो, तो स्त्री चतुर, श्रंगार प्रिय, विलासी, कामक्रीड़ा मे प्रवीण, गौरवर्ण, रति सुख प्रदा होती है। शनि हो, तो क्रूर स्वभाव वाली, कुल विरुद्ध आचरण करने वाली, श्याम वर्ण, नीच संगति रत, पति से विरोध करने वाली होती है।  यदि नवांश लग्नेश राहु या केतु से युत हो, तो स्त्री दुराचारिणी, कुलटा, दुष्टा होती है।
नवांश लग्न का स्वामी शुभ ग्रह हो, स्वराशिस्थ केन्द्र या त्रिकोण मे हो, जातक को पूर्ण स्त्री सुख मिलता है।  नवमांश लग्न का स्वामी नवमेश (भाग्येश) के साथ 9, 11 वे स्थान मे उच्च का होकर स्थित हो, तो स्त्रियो से अनेक प्रकार के लाभ और सुसराल से धन मिलता है।
नवांश लग्न का स्वामी पापग्रह से युत या दृष्ट होकर 6, 8, 12 वे स्थान मे हो, तो जातक को स्त्री सुख नही होता है। यह योग जितने पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो उतने ही स्त्रियो का नाश करने वाला होता है।
➧  नॉट :- यह पुरुष जातक हेतु फलादेश है।  इसे ही स्त्री जातक हेतु लेवे। जो योग  पुरुष जातक मे स्त्री सूचक है वे ही स्त्री जातक मे पुरुष सूचक होगे ।
➧  नॉट :- उपरोक्त  फलित  नवमांश लग्न (नवमांश कुंडली का प्रथम स्थान ) के स्वामी के सन्दर्भ से कहा गया है। इसे नवमांश कुंडली  का सप्तम भाव  के सन्दर्भ  से नही  समझे।


फलादेश मे नवांश का महत्व
◾प्रायः जातक की कुण्डली मे विशेष योग होते हुए भी जीवन सामान्य व्यतीत होता है क्योकि वह योग नवांश कुंडली मे या तो भंग है या योग कारक नही है या बना ही नही है। ऐसे ही किसी जातक की कुंडली मे अधिकांश ग्रह या विशिष्ट ग्रह नीच के है परन्तु वह भाग्यवान है और इसके ठीक विपरीत किसी के ग्रह उच्च के है परन्तु वह अभागा है  इसका कारण नवांश मे ग्रहो की स्थति है।
◾फलादेश कथन मे नवांश या वर्गोत्तमी ग्रह का विशेष महत्व रहता है क्योकि विशेष विचारो में जन्मांग से भी ज्यादा महत्व नवांश का रहता है। उदाहरणार्थ किसी जन्मांग मे ग्रह उच्च का है और वही ग्रह नवांश मे नीच का है, तो उसकी उच्चता निरर्थक है, वही ग्रह नवांश मे नीच का है और नवांश मे उच्च का है, तो उसका नीचत्व भंग हो जायगा और वह उच्च सदृश्य फल देगा।
◾यदि जन्मांग मे ग्रह नीच का है और वह नवांश में भी नीच का है, तो वह वर्गोत्तमी हो जायगा और शुभफल ही देगा उसकी राशिगत नीचता लुप्त हो जायगी।
◾इसी तरह कोई ग्रह जन्म कुंडली मे शत्रुक्षेत्री है और वह नवांश मे भी शत्रुक्षेत्री है, तो वह वर्गोत्तमी होने के कारण स्वक्षेत्री जैसा ही शुभफल देगा।
◾ चंद्र एवं गुरु का केवल वर्गोत्तमी होना राजयोग प्रद है। शुक्र भी वर्गोत्तमी होकर उत्तम शुभ भाग्य योग बनता है। लग्न और लग्नेश का वर्गोत्तमी होना विशेष लाभप्रद होता है। वर्गोत्तम लग्नगत चंद्र या स्वनवांशगत चन्द्र शुभ सौभाग्य प्रद माना गया है।
◾शुभग्रह किंवा पापग्रह भी वर्गोत्तम स्थति मे शुभफल ही देता है। वर्गोत्तम लग्न व लग्नेश वक्री हो तथा आत्मकारक ग्रह के साथ हो, तो उसे अधिक बलशाली श्रेयष्कर माना जाता है।

नवांश लग्न मे मेषादि राशियो का फल
मेष मे चोर, दुराव-छिपाव की प्रवृत्ति वाला। वृषभ मे सुख वैभव भोगने वाला, धनवान। मिथुन मे विद्या मे उन्नति, विषयो का ज्ञाता, विद्वान। कर्क मे मानी, धनवान, यशस्वी। सिंह मे धनी, बड़े कंधो वाला, नृपतुल्य, प्रतापी। कन्या मे दुर्बल, कायर, नपुंसक। तुला मे निडर, साहसी, शूर। वृश्चिक मे मलिन स्वभाव, पर आश्रित। धनु मे दास, शांत प्रकृति वाला, बलवान। मकर मे चुगलखोर, निंदक, पापी। कुम्भ मे उग्र स्वभावी, हिंसक, क्रोधी। मीन मे प्रधान या नेता होता है।

नवांश लग्न संख्या अनुसार फल
01  प्रथम नवांश मे जातक असत्य शिकायत करने वाला, चुगलखोर, चंचल, दुष्ट, पापी, कष्ट देने वाला, उत्पीड़क आलोचक होता है।
02 द्वितीय नवांश मे जातक धार्मिक, विषयो का ज्ञाता, सत्यवादी, दृढ़ निश्चयी, वचन का पक्का, उत्साही, साहसी, वैर विरोध झगड़ो से दूर, संगीत व नारी मे रुचिवान होता है।
03 तृतीय नवांश मे जातक धर्मात्मा, तत्व का ज्ञाता, सार को ग्रहण करने वाला, रोगी, सर्वप्रिय, विद्वान, बुद्धिमान, देव उपासक होता है।
04 चतुर्थ नवांश मे जातक पाने का इच्छुक, बटोरने मे सफल, फलीभूत इच्छा वाला, सुखी, गुरु कृपा से छिपे धन को पाने मे सफल होता है।
05 पंचम नवांश में जातक सभी  धन-सम्पदा युक्त, गुणवान, मानी, प्रतिष्ठित, पुत्रवान, दीर्घायु होता है।
06 षष्ठ नवांश मे जातक पत्नी अधीन, निसंतान, अल्पवीर्य, छलकपट करने वाला, मायावी, पाखंडी, वैर-विरोध करने वाला, दुस्साहसी, पापी, प्रतिशोधी, अभिमानी, फिजूलखर्ची होता है।
07 सप्तम नवांश मे जातक वीर, पराक्रमी, अजेय, दृढ़ बुद्धि, अतिउत्साही, संग्रामजयी, विद्वान् होता है।
08 अष्टम नवांश मे जातक स्वधर्म पालन मे रत, पवित्र आत्मा, संयमी, अनुचर व सहकर्मी का हितेषी, गुणवान, दक्ष होता है (अन्यत्र : अष्टम नवांश मे क्रूर, कृतघ्न, द्वेषी, बहु संतानी, इष्ट फल त्यागी, क्लेश भागी होता है)
09 नवम नवांश मे जातक समर्थ, सभी कार्यो मे निपुण, प्रतापी, जितेन्द्रिय, सेवक युक्त, धनी-मानी होता है।

पुनश्चः केवल लग्न के प्रथमादि नवांश फल
लग्न के प्रथम नवांश मे असहनशील, चंचल, धूर्त, पाप कर्म में रत, व्यसन युक्त चोर होता है। लग्न के द्वितीय नवांश मे धार्मिक, सत्यवादी, शास्त्र ज्ञाता, दृढ़ प्रतिज्ञा वाला, अति उत्साही होता है। लग्न के तृतीय नवांश मे वैभवशाली, संग्राम से दूर, गायक, नशे  की इच्छा करने वाला होता है।
लग्न के चतुर्थ नवांश मे तेज स्मरणशक्ति, तीक्ष्ण दृष्टि, वस्तु संग्रह करने वाला होता है।  लग्न के पंचम नवांश मे शुभ लक्षणो से युक्त, दीर्घायु, बहुत पुत्र वाला होता है। लग्न के षष्ठ नवांश मे स्त्री से पराजित, संतानहीन, छली, नपुंसक, प्रबल शत्रु वाला होता है।
लग्न के सप्तम नवांश मे पराक्रमी, बुद्धिमान, शूरवीर अथवा पराजित, दृढ़बुद्धि, उत्साही होता है। लग्न के अष्टम नवांश मे स्वधर्म कुशल, दक्ष, द्रवित आत्मा, जितेन्द्रिय, नौकरो का पोषक होता है। लग्न के नौवे नवांश में वही लक्षण होते है जो आठवे नवांश मे होते है।

नवांश लग्न मे ग्रह फल
M सूर्य के नवांश मे जातक लम्बे धुंघराले बाल वाला, सम शरीर, गौर वर्ण, गम्भीर, तेजस्वी, प्रेम मे कुशल, पाप रत, जिद्दी, साहसी, अत्यंत चंचल, धनवान, धर्म मे रत, क्रूर, शत्रुहंता, सुखी होता है।
अन्यच्च : सूर्य के नवांश मे जातक दुर्जनो को जीतने वाला, नीच, दुष्ट, टेड़े स्वभाव वाला, कुआचरणी होता है।

M चंद्र के नवांश मे जातक स्वर्ण कान्ति वाला, मध्यम कद, अल्प रोम वाला, अच्छे वस्त्र धारण करने वाला, सुदृष्टि, धन से परिपूर्ण, धर्माचरणी, गुणी, विषय सुख भोगने वाला, सुन्दर भवन वाला होता है।
अन्यच्च : चन्द्रमा के नवांश मे जातक बहुत अधिक धनवान, कृषि व जल से धनी, पुत्र से सुखी, अथिति प्रिय और सबका प्रिय होता है।

M मंगल के नवांश मे जातक सुनहरे बाल वाला, गोल नेत्र वाला, गौरवर्ण, बुरे नख, कोमल पीठ, सिर पर धाव या व्रण के चिन्ह, कामी, बलवान, द्वेषी, धूर्त, स्त्री धन संग्रही, धर्म को कम मानने वाला, क्रूर, कंजूस होता है।
अन्यच्च : मंगल के नवांश मे जातक दुखो से युक्त, पित्त ज्वर से पीड़ित, नेत्र रोगी, प्रताप हीन, हमेशा मेले वस्त्र पहिनने वाला होता है।

M बुध के नवांश मे जातक श्यामवर्णी, चंचल नेत्र वाला, सम शरीर, चौड़ा वक्षस्थल, दुबला, व्यापारी या क्रय-विक्रय निपुण, धैर्यवान, धनवान, दिव्य वस्त्र और आभूषण धारण करने वाला होता है।
अन्यच्च : बुध के नवमांश में जातक बहुत धन से युक्त, मेघावी, सर्वसुख संपन्न, विवेकशील, पण्डित अल्प शत्रु वाला या शत्रु रहित होता है।

M गुरु के नवांश मे सुगठित देह, कमल के समान पेट, सुमुखी, नीले नेत्र, लम्बे डीलडोल वाला, सुन्दर हस्त, स्वच्छ हस्त रेखाए, बुद्धिमान, गुणवान, अथिति प्रिय, धनवान, स्र्त्रियो का प्रिय, मधुर भाषी होता है।
अन्यच्च : गुरु के नवांश मे जातक  पुत्रवान, धनवान , गीत संगीत मे निपुण, मनुष्यो मे पूजनीय होता है।

M शुक्र के नवांश मे जातक काळा सुन्दर नेत्र वाला, सुन्दर केश, रक्त वर्ण, व्याकुल चित्त, धब्बेदार गर्दन, सुन्दर अच्छी नाभि, शूर, श्रीमान, सुशील, प्रेम मे कुशल, कवि, दानशील, वस्त्र अलंकार से संतुष्ट, कोमल होता है।
अन्यच्च : शुक्र के नवांश मे जातक बहु पुत्रवान, गुणवान, समृद्धिशाली, दिव्य व सुन्दर स्त्रियो से सहयोग व सहवास सुख भोगने वाला होता है।

M शनि के नवांश मे जातक विरल रोम की शोभा वाला, भूरे दुबले अंग वाला, मुखर नेत्र, श्याम वर्ण, स्वतंत्र, अनेक गुणो से परिपूर्ण, पापाचारी, धर्म से विमुख, सीमित धन को भोगने वाला होता है।
अन्यच्च : शनि के नवांश मे जातक बहुत भूमि व धन नाश करने वाला, न्याय मे अत्यंत उग्र, अच्छी तरह जीवन व्यापन करने वाला होता है।  चोरी या मुकदमे मे धन नाश होता है।

            पृथक-पृथक नवमांश फल - जातक के वर्ण, आकृति, स्वभाव आदि के लक्षणो का विवेचन।
 मेष नवांश
मेष के पहले नवांश मे मध्यम कद, छोटी नाक, बकरे जैसा मुंह, छोटी भुजा, कर्कश आवाज, संकुचित नेत्र, कृश, धायल अथवा नष्ट अंग वाला होता है।
मेष के दूसरे नवांश मे श्यामवर्ण, लम्बी भुजा, छोटा ललाट, खिले नेत्र, लंबी नाक, मधुर वाणी वाला होता है।
मेष के तीसरे नवांश मे काळा, बिखरे बाल, लम्बी भुजा, सुन्दर नेत्र और नाक, वाकपटु, गौरवर्ण, पतली जाँघे और पतले नितम्ब वाला होता है।
मेष के चौथे नवांश मे व्याकुल नेत्र, ठिगना, साहसी, नट अथवा नृत्यक, भ्रमण शील, खुरदरे नख, कड़े व विरल रोम,  बिना भाई के होता है।
मेष  पांचवे नवांश मे अहंकारी, सिंह के समान नेत्र, बड़ा मुख, मोटी नाक, आगे की ओर फैला चौड़ा शरीर, चौड़ा ललाट, धनी भोंहे, धने व पतले रोम वाला होता है।
मेष के छठे नवांश मे श्याम वर्ण, मृग समान नेत्र, पतली कमर, कठोर पंजे, मोटा पेट, मोटी भुजा व कंधे, डरपोक और अधिक बोलने वाला होता है।
मेष के सातवे नवांश मे कड़े रोम वाला, चंचल, धवल नेत्र, कुलटा  का पति, हत्यारा, विशाल शरीर वाला होता है।
मेष के आठवे नवांश मे वानर मुखी, भूरे केश, गुप्त रोग से रोगी, हिंसक, असत्यवादी, धातादिक योग, मित्र से सदव्यवहारी होता है।
मेष के नौवे नवांश मे लम्बा, कृश, धूमने-फिरने वाला, चौड़ा ललाट, लम्बे कान. अश्वमुखी, अनेक उपाधिया प्राप्त, बहुरुपिया, निर्मम, निर्दयी होता है।

 वृषभ नवांश
वृषभ के पहले नवांश मे श्याम वर्ण, साहसी, नीच, प्रकृति विरुद्ध, विषम नेत्र व दृष्टि वाला होता है।  जातक की मृत्यु मघा नक्षत्र के अंत मे या रेवती नक्षत्र मे होती है।
वृषभ के दूसरे नवांश मे गंभीर नेत्र, टेड़ा मुख, आत्मा से द्रवित, अल्पबुद्धि, प्रतिकूल कर्म करने वाला, असत्य और अधिक बोलने वाला होता है।
वृषभ के तीसरे नवांश मे कोमल अंग, सुन्दर शरीर, अच्छी नाक, स्पष्ट व बड़े नेत्र, धर्म और यज्ञ कार्यो मे रुचिवान, स्थिर, पालन पोषण करने वाला होता है।
वृषभ के चौथे नवांश मे ठिगना, मेढे समान नेत्र, पिंगल वर्ण,  उदार,क्रोधी, धनवान, पर धनहर्ता होता है।
वृषभ के पांचवे नवांश मे दुष्ट, ऊँची नाक, भैसे समान मुख, धने केश, विलासी, वृहद भुजा, कंधे वाला होता है।
वृषभ के छठे नवांश मे दीर्घ नेत्र, कोमल शरीर, सुन्दर केश, मोहक वाणी, माधुर्य व हास्य रस मे रत, कृश,  बातुनी, निपुण होता है।
वृषभ के सातवे नवांश मे मृत पुत्र वाला, युवतियो मे रत, लम्बी लटकती नाक, विशाल नेत्र, बड़े अंग, बडे  पैर, स्वजनों से द्वेष, छोटे बाल वाला होता है।
वृषभ के आठवे नवांश मे व्याघ्र के समान नेत्र, सुन्दर दांत, चौड़ी नाक, अल्पकर्मी, अहंकारी, भूरे बाल, कड़े बड़े नख, बातुनी होता है।
वृषभ के नौवे नवांश मे सम्मानीय, अल्प साहसी , क्रोधी, डरपोक, दुबला-पतला, जुआरी, धनसंचयी, कुंठाग्रस्त, एकहरा बदन वाला, वछ (दुःख) से प्रलाप करने वाला होता है।

 मिथुन नवांश
मिथुन के पहले नवांश मे लम्बे धने रोम, बड़े कंधे व भुजा, मयूर समान नेत्र, ऊँची नाक, दूर्वा के समान अस्थिया (हड्डिया) श्याम वर्ण, पतले हस्त होते है।
मिथुन के दूसरे नवांश मे घट के समान सिर, धार्मिक, नासिका के मध्य चोंट लगना, वाचाल, क्रिया शील, हिंसक, सेनापति होता है।
मिथुन के तीसरे नवांश मे गौर वर्ण, रक्त वर्ण नेत्र, सम शरीर, अच्छी बुद्धि, लम्बा मुख, धनी तीखी भोंहे, प्रभावी और चातुर्यपूर्ण वाणी होती है।
मिथुन के चौथे नवांश मे इकहरा बदन, सुन्दर भोंहे व ललाट, कमल समान नेत्र, बड़े वक्ष वाला, सुन्दर मुख, कोमल वाणी, अच्छे रोम वाला है।
मिथुन के पांचवे नवांश मे बड़ा मुख, मोटी कमर, बड़ा वक्ष वाला, लम्बी भुजाए, स्थूल सिर, दुष्ट, कपटी होता है। जातक की आँखों से मन की बात जानना कठिन होता है।
मिथुन के छठे नवांश मे मादक नयन, चौड़ा ललाट, सम बलिष्ठ शरीर, दुष्ट, जुआरी, गुलाबी होंठ, पीले दांत, निरर्थक प्रलापी (चीखना-चिल्लाना) होता है।
मिथुन के सातवे नवांश मे ताम्र वर्ण, अरुण समुन्नत नेत्र, विशाल वक्ष, शिक्षा व कला मे निपुण, मजाकी स्वभाव का  होता है।
मिथुन के आठवे नवांश मे श्याम वर्ण, मनस्वी (मनन-चिंतन-विचार) सुन्दर मधुर भाषी, कलाविद होता है।
मिथुन के नौवे नवांश मे गोल श्वेत नेत्र, सुन्दर देह, निपुण, मेधावी, प्रेमी, रति कार्य दक्ष, कला, साहित्य, विज्ञान व काव्य का ज्ञाता होता है।

कर्क नवांश
कर्क के प्रथम नवांश मे स्वच्छ सुन्दर गौर वर्ण, बड़ा पेट अथवा कमर, दिव्य आभा युक्त चेहरा, बड़े नेत्र, सुन्दर केश, छोटी भुजा वाला होता है।
कर्क के द्वितीय नवांश मे लाल गुलाबी कान्ति वाला, विवाह हेतु धूमने वाला, वजन ढोने वाला, कला प्रिय, विलाव जैसा चेहरा वाला, लम्बे पतले घुटने व जांघ वाला होता है।
कर्क के तृतीय नवांश मे गौर वर्ण, सुकुमार, कोमल देह वाला, युवती सरीखे पुष्ट व सुडोल अंगो वाला, बुद्धिमान, मधुर वाणी युक्त, आलसी किन्तु  प्रभावी वक्ता होता है।
कर्क के चतुर्थ नवांश मे श्याम वर्ण, धनुषाकार भोंहे, विलासी, सुन्दर आंख व नाक, स्थूल देह, क्षीण भाग्य, जाति और बंधु का हित करने वाला होता है।
कर्क के पंचम नवांश मे घड़ियाल समान सिर वाला, बाकी तिरछी भोंहे, लम्बी भुजाए, अल्पबुद्धि, सेवारत, दुष्कर्मी, असहनशील होता है।
कर्क के षष्ठ नवांश मे लम्बा, स्थूल देह, प्रशंसनीय नेत्र, अधिक प्रतापी, गौर  वर्ण, सुन्दर नाक, वक्ता होता है।
कर्क के सप्तम नवांश मे छितरे अल्प रोम, स्थूल देह, दीर्घ सिर व जांघ, रक्षक अथवा चौकीदार, कौवे के सामान सावधान, स्फूर्तिवान होता है।
कर्क के अष्टम नवांश मे घंटे समान सिर वाला, कुशिल्पी, सुन्दर मुख व भुजा, कछुवे के समान चाल वाला, मध्य मे चपटी नाक वाला, श्याम वर्णी होता है।
कर्क के नवम नवांश मे गौर वर्ण, मछली के समान नेत्र, कोमल, उदार, बड़ा वक्ष, लम्बी ढाढी, पतले होंठ, बड़ी जांघे, पतले घुटने और ऐड़ी वाला होता है।

सिंह नवांश
सिंह के प्रथम नवांश मे मंद उदर अग्नि, साहसी, नासिका का लाल अग्रभाग, बड़ा सिर, शूरवीर, उन्नत मांसल वक्ष, आक्रामक, प्रेमी होता है।
सिंह के द्वितीय नवांश मे उन्नत चौड़ा ललाट, चार कोने वाला शरीर, दीर्घ नेत्र, लंबी भुजा, उन्नत वक्ष होता है।
सिंह के तृतीय नवांश मे धने रोम, चकोर नेत्र, चंचल, त्यागी, ऊँची नाक, कोमल शरीर व भुजा, गोल गले वाला, मोह ममता से परे होता है।
सिंह के चतुर्थ नवांश मे चिकनी तेलीय त्वचा, गौर वर्ण, लंबे सुन्दर नेत्र, कोमल केश, बेसुरी आवाज, बड़े हाथ और पैर, मेढक के समान पेट, खुराक कम होती है।
सिंह के पंचम नवांश मे घण्टानुमा सिर,  अल्प केश, श्वेत आंख व नाक, लोमड़ी समान शरीर, लम्बा पेट, साहसी, मोठे तीखे दांत वाला होता है।
सिंह के षष्ठ नवांश मे अल्प रोम, मटमैले नेत्र, लम्बा, श्याम वर्णी, स्त्री सुलभ सौन्दर्य युक्त, चतुर, शेखी मारने वाला, कार्य साधने मे निपुण होता है।
सिंह के सप्तम नवांश मे लम्बा मुंह, लम्बे मोटे सिर वाला, हृष्ट पुष्ट मांसल देह, स्त्रियो से कपटी, श्याम वर्ण, कूटनीतिज्ञ, धने रोम वाला, कठोर भाषी, ठग होता है।
सिंह के अष्टम नवांश मे शिष्ट भाषी, स्थिर अंग, सुभग, गंभीर स्वभाव किन्तु कपट दृष्टि, निषिद्ध कर्म करने वाला, कंगाल, गुप्तचर, कूटकर्म करने में निपुण होता है।
सिंह के नवम नवांश मे गधर्भ मुखी, मटमैले नेत्र, लंबी भुजा, सुन्दर ऐड़ी, जांघ, पतली कमर, दमा रोगी होता है।

कन्या नवांश
कन्या के प्रथम नवांश मे मृग समान नेत्र, वक्ता , लम्बा कद, दान उपभोग करने वाला, धनवान, सुन्दर होता है।
कन्या के द्वितीय नवांश मे गोल मुख, सुन्दर नेत्र, कोमल वाणी, जिंदादिल, चंचल, बड़ी जाँघे वाला होता है।
कन्या के तृतीय नवांश मे चौड़ी नाक, उभार युक्त रंध्र, उच्च स्वर, खूबसूरत पैर, प्रत्यक्ष कांतिवान, गोरा होता है।
कन्या के चतुर्थ नवांश मे स्त्रियो मे प्रसिद्ध और रमन करने वाला, सुकुमार, गौरवर्णी, सत्यज्ञान का जानकर, तीक्ष्ण, कृश, दो सिर वाला होता है।
कन्या के पंचम नवांश मे मोटे होंठ, लम्बा शरीर, लम्बी भुजाएँ, लम्बे कठोर बाल, चौड़ा वक्ष, पर आश्रित (छत्र-छाया) मोटी जाँघे वाला होता है।
कन्या के षष्ठ नवांश मे मनोहर कांतिवान, सुवक्ता, उत्तम शरीर, आकर्षक रूपरंग, शास्त्रज्ञ, लिपि और लेखन का ज्ञाता, भ्रमणशील, अच्छे मन वाला होता है।
कन्या के सप्तम नवांश मे छोटा मुख, ऊँचे कंधे, कोमल हथेली, भूरे केश, तीव्र पाचन शक्ति वाला, लम्बे पैर, पानी से डरने वाला होता है।
कन्या के आठवे नवांश मे सुकुमार, उन्नत नेत्र, गौर वर्ण, लम्बी मोटी भुजाए, सुनहरे रोम, चिड़चिड़ा, आक्रामक, स्वाभिमानी होता है।
 कन्या के नवम नवांश मे प्रसिद्ध, कोमल नेत्र, झुके कंधे, मन्त्र विद्या का ज्ञाता, भूख प्यास नही महसूस करने वाला  साहसी, चतुर, लेख आदि मे विद्वान होता है।

तुला नवांश
तुला के प्रथम नवांश मे गौर वर्ण, बड़े नेत्र, लम्बा मुख, धन रक्षक, रहस्यमयी बाते छिपाने मे प्रवीण, नए व्यापार मे कुशल, विख्यात होता है। 
तुला के द्वितीय नवांश मे गोल सजल नेत्र, दबी-बैठी कमर, विस्मृत हृदयी, कृश शरीरी, धनी भोंहे वाला, विचारो मे मग्न रहता है।
तुला के तृतीय नवांश मे गौर वर्ण, अश्व मुखी, सुन्दर पंक्तिबद्ध दांत, बड़े उन्नत नेत्र, मेघावी, यशस्वी, सुन्दर हाथ, पैर, नाक वाला होता है।
तुला के चतुर्थ नवांश मे पतले दुर्बल कंधे व भुजा, डरपोक, टेड़े दांत, कृश शरीर, मृग समान चमकीले नेत्र, छोटी नाक, दुःखी, सदव्यवहारी होता है।
तुला के पंचम नवांश मे गंभीर नेत्र, स्थिर आत्मा, प्रिय मित्रवान, धने रूखे केश, चपटी नाक वाला होता है।
तुला के षष्ठ नवांश मे  गौर वर्ण, बड़े नेत्र, सुन्दर नाक, कोमल चिकने नख, अच्छे वंश का, नीतिज्ञ, विद्वान, विविध विषयो का ज्ञाता, शास्त्रज्ञ होता है।
तुला के सप्तम नवांश मे खूबसूरत, मध्यम कद, पतला या छोटा ललाट, लोभी, ज्ञानी, साहसी, मनस्वी होता है।
तुला के अष्टम नवांश मे  ऊँचे कंधे व गाल, विषम शरीर, लम्बी काली भोंहे, स्पष्ट वक्ता, शांत, सुडोल वक्ष, दीर्घ मस्तिष्क वाला होता है।
तुला के नवम नवांश मे स्वाभाविक नेत्र वाला, प्रसन्नचित्त, गौर वर्ण, सम सुन्दर शरीर, कला मे रत, नम्र, मजाकी स्वभाव वाला, वेश्या को रखने वाला होता है।

वृश्चिक नवांश
वृश्चिक के पहले नवांश मे छोटे होंठ,  स्थूल अधर, सुन्दर नाक, सुन्दर ललाट, गौर वर्ण, दृढ़ अंग, मेढक समान पेट, प्रधान होता है।
वृश्चिक के दूसरे नवांश मे लम्बी भुजाए, चौड़ा वक्ष, लाल उग्र नेत्र, बलवान का वध करने वाला (हत्यारा) साहसी कर्म करने वाला, अल्प केश वाला होता है।
वृश्चिक के तीसरे नवांश मे बुद्धिमान, दृढ़ कंधे व भुजा, धन हेतु प्रयत्न शील, स्पष्ट भाषी, अविवाहिता की संतान, सुन्दर, गौर वर्ण, कोमल होंठ वाला होता है।
वृश्चिक के चौथे नवांश मे दूसरे की स्त्री के साथ विश्वास धाती , भ्रमण शील, श्याम वर्णी, धैर्यवान, असित नेत्र, नट, साहसी, मोटे रोम वाला होता है।
वृश्चिक के पांचवे नवांश मे लाल नेत्र, चपटी नाक, धैर्यवान, सुपाचन वाला, बड़ा पेट, उग्र कर्म करने वाला, चौड़े दृढ़ अंग, यशस्वी होता है।
वृश्चिक के छठे नवांश मे धूर्त, सुबुद्धि, ऊंची सुन्दर नाक, गंभीर, साहसी, सुकर्मी, निपुण, अल्प केश, धनी भोंहे वाला होता है।
वृश्चिक के सातवे नवांश मे विदीर्ण मुख, चौड़े दांत, स्थिर अंग, चौड़ा सिर, जुड़े अंगो वाला, छोटा पेट, बड़े नेत्र, ढीला शरीर (योन दुर्बलता या नपुसंकता) वाला होता है।
वृश्चिक के आठवे नवांश मे नासिका का चौड़ा अग्रभाग, काल एवम विपत्ति युक्त, काळा अंग वाला, विभाजित धने बाल, परीतक्या बुद्धि वाला होता है।
वृश्चिक के नौवे नवांश मे गौर वर्ण, मृग सामान सुन्दर पुष्ट देह वाला, शांतचित्त, सुन्दर पीले नेत्र, भूरे केश, दृढ़ शरीर, गुरुजनो द्वारा सम्मानित होता है।

 धनु नवांश
धनु के पहले नवांश मे दूरदर्शी, स्पष्ट भाषी, सुन्दर दांत व नेत्र, गौर वर्ण, बुद्धिमानो मे प्रधान, खरी-खरी बात कहने वाला, कपटी, साहसी होता है।
धनु के दूसरे नवांश मे ऊँचा सिर, स्थिर, दीर्घ नेत्र, मोटी जांघे, विकृत नाक, स्थूल नितम्ब, लम्बी देह, बड़ी दाढ़ी वाला, धीर, गंभीर होता है।
धनु के तीसरे नवांश मे सुन्दर नयन, शिक्षा शास्त्री, गंभीर, नीतिज्ञ, स्त्री प्रिय, मनस्वी, हास्य कलाकार होता है।
धनु के चौथे नवांश मे निपुण, मादक गोल नेत्र, गौर वर्ण, पीड़ित, बड़ा पेट, भ्रमणशील, सुन्दर मूर्ति होता है।
धनु के पांचवे नवांश मे सिंह समान देह, बड़ा कंठ व मुख तथा नेत्र वाला, बड़ी भोंहे, ऊँचे कंधे, धने रोम, विध्वंसकारी, अहंकारी, दृढ़ बुद्धि वाला होता है।
धनु के छठे नवांश मे कोमल व गोरा, चौड़े करुणा युक्र नेत्र, दीर्घ ललाट, चौड़ा मुख, सुआचरणी, काव्यगत, त्यक्त, मंद भाग्य वाला, विद्वान कथाकार होता है।
धनु के सातवे नवांश मे श्याम वर्ण कोमल वाणी, ऊँचा सिर, संग्रही, गुप्त योजना वाला, लम्बा, बड़े नेत्र, काम निकलने मे चतुर, ज्येष्ठ स्त्रियो (उम्र में अधिक) से कोमल व्यवहार रखने वाला होता है।
धनु के आठवे नवांश मे नाक का अग्र भाग चपटा, चौड़ा सिर, शत्रुवान, व्याकुल नेत्र, प्रलापी, झगड़ालू होता है।
धनु के नौवे नवांश मे सौम्य, गौर वर्ण, अश्व मुखी, असित नेत्र, सत्यवादी, स्त्री से दुःखी, उद्विग्न,व्यग्र होता है।

 मकर नवांश
मकर के प्रथम नवांश मे आगे के छिदे दांत, श्याम वर्ण, मोटी फटी आवाज, धने केश, ख़राब नख, दुबला, विनोदी, गीतकार, शक्तिशाली होता है।
मकर के द्वितीय नवांश मे आलसी, धूर्त, टेडी नाक वाला, गीत मे रत, विशाल देह, बहुत स्त्रियो से प्रेम करने वाला, बकवादी, दृढ़ प्रतिज्ञा वाला होता है।
मकर के तृतीय नवांश मे गायक, कलाकार, सुन्दर अंग, भूरे नेत्र, सुन्दर नाक, बहुत मित्र और बंधु वाला, इष्ट कर्म करने वाला होता है।
मकर के चतुर्थ नवांश मे श्वेत गोल नेत्र, चौड़ा ललाट, लम्बी भुजा, दुर्बल देह अंग, बिखरे केश, छिदे दांत, अटक-अटक कर बोलने वाला (तोतला) होता है।
मकर के पंचम नवांश मे ऊँची नाक, सुन्दर, सुवंशी, बड़ा पेट,श्याम वर्ण, गोल भुजाए व जांघ वाला, कार्य पूर्ण कर चेन लेने वाला, प्रतिज्ञावान होता है।
मकर के षष्ठ नवांश मे कोमल कांति, पतले होंठ, बड़ी दाढ़ी, चौड़ा  ललाट, कामी, सुवक्ता, सुन्दर वेशी होता है।
मकर के सप्तम नवांश मे कला रंग, सुभाषी, अलसी, कठोर बड़ा शरीर, कोमल हाथ और पैर, बुद्धिमान, सदाचारी, सुशील, संपन्न होता है।
मकर के अष्टम नवांश मे गंभीर नेत्र, सुन्दर नाक, प्रेमी, रूखे नख, छिदे बाल, बड़ा गोल ललाट, बड़ा शरीर, निश्छल दृष्टि, शक्तिशाली  होता है।
मकर के नवम नवांश मे बड़े नेत्र, सुबुद्धि को ग्रहण करने वाला, गोल चेहरा, गीत व संगीत मे रत, कोमल, सात्विक वृत्ति वाला, साहसी, सज्जन होता है।

 कुम्भ नवांश
कुम्भ के पहले नवांश मे श्याम वर्ण, कोमल पतले अंग, मोटी दाढ़ी, शास्त्र और काव्य की बुद्धि वाला, स्त्रियो मे प्रिय, भावुक, कोमल होता है।
कुम्भ के दूसरे नवांश मे कांपती हुई दृष्टि (त्वडं दृष्टि) कठोर नख, आपत्ति से निडर, सज्जन, बड़ा सिर, साधु स्वभाव, दीन दुःखी का आश्रयदाता, मुर्ख जैसा होता है।
कुम्भ के तीसरे नवांश मे मिला हुआ शरीर, सुंदरियो का प्रिय वैदूर्य के समान कांति वाला, शास्त्रज्ञ एवं शास्त्र का प्रयोग करने वाला होता है।
कुम्भ के चौथे नवांश मे स्रियो मे अनुरक्त, बड़ा मुख, गौर वर्ण, धीर, वीर, शत्रुहंता, भोग-विलाश मे रत होता है।
कुम्भ के पांचवे नवांश मे स्पष्ट ज्ञान वाला, कठोर अधर व पैर, गड्ढेदार कपोल, अवरुद्ध कर्ण (कम सुनने वाला) सांवला रंग का होता है।
कुम्भ के छठे नवांश मे व्याघ्र मुखी, साहसी, घुंघराले बाल वाला, निश्चित अर्थ का ज्ञाता, हिंसक जंतु (शेर, चिता, सांप, रीछ आदि) को मारने वाला, राज्य प्रिय होता है।
कुम्भ के सातवे नवांश मे मेमने के समान मुख और नेत्र वाला, स्त्रियो से अश्लील प्रेम करने वाला, भीड़-भाड़ से दूर रहने वाला, अपमानित, पित्त से पीड़ित, साहसी व धैर्यवान होता है।
कुम्भ के आठवे नवांश मे स्थिर सत्वबुद्धि वाला, राजा प्रेमी, सैन्याधिकारी, सुभग, मोटे दांत, बड़े नेत्र, मैत्रीपूर्ण स्वाभाव वाला, स्नेहशील होता है।
कुम्भ के नौवे नवांश मे श्यामवर्ण, गोलमुख, उत्कृष्ट, सुन्दर सुपुष्ट देह, स्त्री और पुत्रवान, सुवक्ता, प्रसिद्ध होता है।

 मीन नवांश
मीन के प्रथम नवांश मे गौर रक्त वर्ण, बुद्धिमान, पत्नी कोमलांगी, चंचल चित्त, छोटा गला, पतली कमर वाला, आशावादी, उत्साही होता है।
मीन के दूसरे नवांश मे मोटी चौड़ी भोंहे व नाक, धार्मिक कार्य में निपुण, क्रिया पटु, मांसाहारी, सुन्दर देह, बड़ा देह, जंगल-पर्वत विचरण करने वाला होता है।
मीन के तीसरे नवांश मे गौर वर्ण, सुन्दर नेत्र, सुन्दर आकर्षक देह, धैर्यवान, विद्वान, नम्र, विनीत, रूपवान, चतुर, कृपालु होता है।
मीन के चौथे नवांश मे गुणवान, विपत्तिशील, सहायता सेवा करने वाला, धार्मिक कार्य मे निपुण, विद्वान्, साहसी, नीतिज्ञ, ऊँची नाक वाला होता है।
मीन के पांचवे नवांश मे लम्बा काला वर्ण, प्रतापी, ऊँचे अंग, छोटी नाक, स्वाभाविक नेत्र, हिंसापूर्ण या आध्यात्मिक कार्यो मे सलग्न, असह्य होता है।
मीन के छठे नवांश मे कोमल साहसी, गुणवान, प्रसिद्ध, अंगो में दोष या वक्रता, छोटी नासिका, अभिमानी, टेड़ा मुख, निपुण होता है।
मीन के सातवे नवांश मे अभिमानी, नास्तिक, श्रेष्ट, सचिव या सलाहकार, हठी, मंत्री, बलवान, दुःखी, धूर्त, अस्थिर, उद्विग्न, दुविधाग्रस्त होता है।
मीन के आठवे नवांश मे लम्बा, बड़ा सिर, सुस्त, दुबला, आलसी, रूखे नेत्र और केश, पुत्र सुख से हीन, धनवान, लड़ाई-झगड़ा करने मे कुशल होता है।
मीन के नौवे नवांश मे ठिगना, कोमल, धैर्यवान, दीर्घ वक्ष, आँख, नाक वाला, व्यवस्थित अंग, प्रसिद्ध, बुद्धिमान, गुणवान, यशस्वी होता है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे सूर्य फल
सूर्य के नवांश मे सूर्य फल - जातक अभिमानी, कम सुखी, कलह प्रिय, ढीढ, चालक, प्रभावहीन, पराधीन, अनेक रोगो से ग्रस्त होता है।
चंद्र के नवांश मे सूर्य फल - जातक निपुण, ज्ञानी, पुत्रवान, यशस्वी, धनवान, उच्च अधिकारियो का प्रिय, स्व पक्ष मे प्रधान होता है।
मंगल के नवांश मे सूर्य फल - जातक दरिद्र, रोगी, अपमानित, दीन-दुःखी, वायु रोग से पीड़ित, पाप कर्म मे रत, स्रियो का उपपति होता है।
बुध के नवांश मे सूर्य फल - जातक वात रोगी, शत्रुहंता, पुत्री से विशेष स्नेह करने वाला, सहज सुखी, भोग सुख में लिप्त रहने वाला  होता है।
गुरु के नवांश मे सूर्य फल - जातक सत्यवादी, धनवान, तप मे अनुरक्त, आस्तिक, पुरूषार्थी, जितेन्द्रिय, सर्व सुख सम्पन्न होता है।
शुक्र के नवांश मे सूर्य फल - जातक वाहन युक्त, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला, बन्धुजनो मे प्रधान, विवेकी, धार्मिक, साहसी, शत्रु पक्ष को जीतने वाला होता है।
शनि के नवांश मे सूर्य फल - जातक पराजित, निर्धन, अल्प शांति वाला (अधीर) कामी, बंधुओ से रहित, दुष्ट, दुर्गति को प्राप्त, रोगी होता है।
➧ सूत्र - यदि जन्मांग मे उच्च का सूर्य नवांश मे नीच का हो, तो राज पुत्र भी निर्धनता और दरिद्रता को प्राप्त होता है।  (राजयोग भंग होता है।) यदि नवांश का सूर्य शक्तिशाली हो, तो जातक मनोहर, विचित्र माला और आभूषणो से युक्त, सुखी, शांतचित्त, निरोगी सुशील होता है। यदि सूर्य का नवांश या सूर्य नवांश मे बलहीन हो, तो जातक का प्रियजनो से वियोग होता है। जातक विष, अग्नि, शस्त्र, ज्वर, पित्त से पीड़ित,  माता-पिता का अपमान करने वाला है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे चंद्र फल
सूर्य के नवांश मे चंद्र फल - जातक दुष्ट, चंचल, आचार भ्रष्ट, पापी, अल्प या नष्ट बुद्धि, शत्रु से पराजित होता है।
चंद्र के नवांश मे चंद्र फल - जातक  रूपवान, सुभग, सुशील, स्त्री का सम्मान करने वाला, सर्वगुण सम्पन्न, विद्या विनित,  मनुष्यो को प्रिय होता है।
मंगल  के नवांश मे चंद्र फल - जातक नेत्र  रोगी, दुबला, रोगी, अल्प साहसी, असफल, प्रेमी, अभागा होता है।
बुध के नवांश मे चंद्र फल - जातक सौम्य, सुखी देव, गुरु मे आसक्त, धनवान, यथार्थ ज्ञान मे पंडित, प्रसन्नचित्त गरिमायुक्त होता है।
गुरु के नवांश मे चंद्र फल - जातक नीतिज्ञ, सत्यवादी, विद्या विनित, मित्रो मे श्रेष्ठ, गुरुजनो और विद्वानो का  कृपा भाजक होता है।   रोग एवम भय व्याप्त रहता है।
शुक्र के नवांश मे चंद्र फल - जातक बहुत अधिक धनवान, पुण्य कमाने वाला, आथित्य प्रेमी, सुन्दर होता है।
शनि के नवांश मे चंद्र फल - जातक नवीन उपाधि प्राप्तक, अत्यंत कठोर बोलने वाला, विकृत स्वभाव वाला, पर धन लोभी, व्यसनी होता है।
➧ सूत्र - चंद्र का नवांश या चंद्र नवांश मे चंद्र बलवान हो, तो जातक पुत्र, और वाहन से युक्त, सुकुमार देह वाला, निरोगी, सर्वकला सम्पन्न होता है। चंद्र का नवांश या चंद्र नवांश मे चन्द्रमा बलहीन होने पर जातक नीतिहीन, दुष्ट, भीरु, दुःखी, कृतघ्न राजा से दण्डित होता है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे मंगल फल
सूर्य के नवांश मे मंगल फल - जातक लोभी, बुरी स्त्री के वशीभूत या युवती से धायल, अधिक खाने वाला, भूक्कड़, अल्प सुखी, हृदय रोगी, धूर्त होता है।
चंद्र के नवांश मे मंगल फल - जातक सुन्दर, सुख और सम्मान से युक्त, मित्र, ब्राह्मण, अथिति का सत्कार करने वाला, शांत, स्त्री  सम्मानी, भाइयो का हितैषी होता है।
मंगल के नवांश मे मंगल फल - जातक  महा हिंसक, तलवार आदि के युद्ध मे निपुण, विकृत,  दुराचारी, सज्जनो और साधुओ से द्वेषीला होता है।
बुध के नवांश मे मंगल फल - जातक विद्वानो का पूजक, धैर्यवान, धनवान, उदार, साहसी, सुभग, साधु स्वभाव वाला, सुखी, सौभाग्यशाली होता है।
गुरु के नवांश मे मंगल फल - जातक विभिन्न प्रकार के अन्न-पान करने वाला, रण कुशल, शूरवीर, साहसी, द्वीपो मे विचरण करने वाला, वाहन सुख वाला होता है।
शुक्र के नवांश मे मंगल फल - जातक प्रेम का लोभी, रतिक्रीड़ा प्रेमी, सुभाषी, मित्र व गुरु से प्रीतिवान, सुधर्म मे रत, बहुत से नोकरो युक्त होता है।
शनि के नवांश मे मंगल फल - जातक बहुत से पापो मे रत, गुप्त व नेत्र रोगी, आलोचक, दुष्ट, स्त्री विहीन, व्यर्थ बोलने और तर्क करने वाला होता है।
➧ सूत्र - यदि मंगल का नवांश बलि हो, तो जातक ब्राह्मण-देव पूजक, शूर, कीर्तिवान, स्त्रियो को आश्रय देने वाला, विद्या प्राप्त नृप तुल्य होता है। मंगल का नवांश बलहीन होने पर जातक रोगी, पीड़ित, शत्रुओं से  हानि और दुःख मित्रो से  अपमानित होता है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे बुध फल
सूर्य के नवांश मे बुध फल - जातक पापी, विकृत, स्त्री सुख से हीन, कलह प्रिय, जुआरी, चोर, दुराचारी, दुश्चरित्र हतोत्साहित होता है।
चंद्र के नवांश मे बुध फल - जातक सुन्दर मुख, उदार चेष्टा वाला, शत्रुओ पर विजयी, ख्याति प्राप्त, मित्र और स्त्रियो का सम्मान करने वाला होता है।
मंगल के नवांश मे बुध फल - जातक रक्त रोगी, दुःखी शरीर, कुतर्क करने वाला, मित्रो का अनिष्ट करने वाला, राजा से पीड़ित, द्वेषी, दुष्ट होता है।
बुध के नवांश मे बुध फल - जातक सौम्य, सुरूप, सुभग, ऐश्वर्यशाली, देवता ब्राह्मण का सम्मान करने वाला, प्रसन्न चित्त, अतिथि प्रिय, सबका प्रिय होता है।
गुरु के नवांश मे बुध फल - जातक अनेक प्रकार से से धनी, प्रतापी, सुमित्रो से युक्त, सुशील, सदाचारी होता है।
शुक्र के नवांश मे बुध फल - जातक विविध धनो से युक्त, इच्छित पुत्र संतति वाला, विद्वानो का पूजक, मित्रवान, हमेशा उदार चेष्टा वाला होता है।
शनि के नवांश मे बुध फल - जातक निरोगी,  कुशिल्पी, धर्म विरोधी, आधार हीन, दूसरो की स्त्री मे आसक्त, गुण हीन, पर धन लोभी होता है।
➧ सूत्र - नवांश मे बुध प्रबल होने पर जातक पवित्र, क्षमा व सत्य मे रत, कृतज्ञ, धन वैभव सर्व सुख संपन्न होता है। नवांश मे बुध निर्बल होने पर जातक कठोर बोलने वाला, विमुक्त देह, भाइयो का अहित करने वाला, घृणित, दुश्चरित्र, निंदनीय, क्रूर, निर्दयी होता है।

समस्त  ग्रहो के नवांश मे गुरु फल
सूर्य के नवांश मे गुरु फल - जातक  नौकर, दास, कुकर्मी, अति दुष्ट, धन विहीन, भीरु, क्रोधी (प्रचण्ड) होता है।
चंद्र के नवांश मे गुरु फल - जातक सुभग, मनोहर, अथिति प्रेमी, मनुष्यो से प्रेम करने वाला, प्रसन्नचित्त, स्त्रियो का हित चाहने वाला हॉता है।
मंगल  के नवांश मे गुरु फल - जातक मुख रोग से पीड़ित, भयभीत रहने वाला (भीरु) अति दुष्ट, व्यसनी, खुले मे आम पाप करने वाला होता है।
बुध के नवांश मे गुरु फल - जातक दयावान, मनोहर, धर्म मे रत, धनवान, सुन्दर वेश धारण करने वाला, शास्त्रार्थ (साहित्यिक , वादविवाद) निपुण होता है।
गुरु के नवांश मे गुरु फल - जातक राजा के समान सुखी, धनवान, स्त्री-पुत्र से सुखी, शस्त्रार्थ करने मे माहिर, सुरुचि संपन्न, सुयोग्य लोगो से युक्त होता है।
शुक्र के नवांश मे गुरु फल - जातक सुखी, यशस्वी, तेजस्वी, कृतज्ञ, पुण्यात्मा, धार्मिक आस्था युक्त, गुणवान, सदाचारी होता है।
शनि के नवांश मे गुरु फल - जातक आंख, नाक, कान रोग से रोगी, व्यसनी, अल्पबुद्धि, आपदाग्रस्त, धन विहीन, प्रतापहीन, राजा से पीड़ित होता है।
➧ सूत्र - नवांश मे गुरु के बलहीन होने पर जातक भयभीत, दुःखी, पापी, दीन, बुद्धि विहीन, सुखहीन, अज्ञात भय (भूत-प्रेत) से पीड़ित, शोकयुक्त होता है। यदि नवांश मे गुरु वर्गोत्तम या मित्रक्षेत्री हो, तो जातक सद्चरित्र, जीवन साथी के प्रति निष्ठावान होता है। यदि नवांश मे स्वराशिस्थ या उच्चराशिस्थ हो, तो  दो या तीन या अधिक प्रणय (विवाह) होते है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे शुक्र फल
सूर्य के नवांश मे शुक्र फल - जातक व्याकुल, भीरु, निष्क्रिय, अल्प शक्ति वाला, ठग, सुख हीन, आडम्बर करने वाला, षड्यंत्रकारी, शत्रुओ से भयभीत रहता है।
चंद्र के नवांश मे शुक्र फल - जातक  पुत्रवान, सुन्दर सुशील पत्नी वाला, धन-धान्य प्राप्त करने वाला, निर्बल शत्रु वाला, बंधुओ से प्रेम करने वाला होता है।
मंगल के नवांश मे शुक्र फल - जातक ईर्ष्यालु, रक्त रोगी, द्वेषी, असामाजिक तत्वो और सरकार से पीड़ित, बईमान होता है। यदि जन्मांग या नवांश मे मंगल और शुक्र युति हो या आपस मे दृष्टि योग या शुक्र मंगल के नवांश मे हो, तो जातक भग चुम्बन करता है या मुख से रति करता है।
बुध के नवांश मे शुक्र फल - जातक उत्कृष्ट बुद्धिमान, धार्मिक, तीर्थ स्थान मे आश्रय लेने वाला, देव-गुरु भक्त, अथिति प्रिय, नियमित जीवन व्यापन करने वाला होता है।
गुरु के नवांश मे शुक्र फल - जातक देव ब्राह्मणो का सम्मान करने वाला, विवेकी, ज्योतिष शास्त्र जानने का इच्छुक, नृप प्रिय, भाईओ से प्रेम रखने वाला होता है।
शुक्र के नवांश मे शुक्र फल - जातक आध्यात्म विद्या मे रत, स्वधर्मी, बुद्धिमान, शत्रुओ को जीतने वाला, शत्रु भय मुक्त, व्रत शील होता है।
शनि के नवांश मे शुक्र फल - जातक रोगी, दुःखी, दरिद्र, पत्नी और पुत्र से त्यागा हुआ, पीड़ित, नीचजनो से सम्बन्ध रखने वाला होता है
➧ सूत्र - शुक्र के नवांश या शुक्र नवांश मे बलवान (स्वक्षेत्री, उच्च, मित्रक्षेत्री, वर्गोत्तम) होने पर जातक शत्रुहंता, यज्ञ प्रिय, दान दाताओ मे प्रसिद्ध, दोष मुक्त, कुल या समुदाय मे प्रधान होता है।  शुक्र नवांश बलहीन होने पर जातक अज्ञात भय से पीड़ित, क्रूर, मिथ्यावादी, झगड़ालू, सत्य धन से विहीन, द्वेषी, मित्रहीन होता है। जन्मांग या नवांश में शुक्र शनि से युत या दृष्ट या शनि के नवांश मे हो, तो जातक अप्राकृतिक मैथुनी (मुख, गुदा, पशु, सम लैंगिक आदि) होता है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे शनि फल
सूर्य के नवांश मे शनि फल - जातक तीव्र क्रोधी, हिंसक, नष्ट, अच्छे लोगो से रहित, द्वेषी, तुनुक मिजाजी, विध्वंशकारी, अपमानित होता है।
चंद्र के नवांश मे शनि फल - जातक सुन्दर स्त्री वाला, शास्त्रो मे अनुरक्त, यज्ञ करने कराने वाला, दान शील, जितेन्द्रिय, विज्ञान अनुसन्धानी, मन्त्र विद्या मे श्रेष्ट होता है।
मंगल के नवांश मे शनि फल - जातक अश्लील भाषी, पर निंदक, पराई स्त्री मे आसक्त, ठगी करने वाला, विधर्मी, मित्र विहीन, कुवेशी (मैले वस्त्र पहिनने वाला) होता है।
बुध के नवांश मे शनि फल - जातक सुख व भोग से तृप्त, सुन्दर, शुभ लाभ से युक्त, विधिज्ञ (क़ानूनवेत्ता, वकील) अथिति प्रिय, यज्ञ करने वालो मे प्रधान (यज्ञाचार्य) होता है।
गुरु के नवांश मे शनि फल - जातक धर्म मर्मज्ञ, शास्त्रो के मनन चिन्तन मे रत, विद्या या ज्योतिष ज्ञाता, विवेकी, प्रसन्नचित्त, प्रचुर अन्न दान करने वाला होता है।
शुक्र के नवांश मे शनि फल - जातक तीर्थो का आश्रय लेने वाला, इष्टधर्मी, गुरुजनो का कृपापात्र, बुद्धिमान, विद्वान्, इष्ट मतिवाला, मनोहर होता है।
शनि के नवांश मे शनि फल - जातक दानी, भोगी, सुन्दर पत्नी का उपभोग वाला, हमेशा सुखी, शत्रु से विजयी, स्थिर, उदार, साहसी होता है।
➧ सूत्र - मतान्तर - नवांश मे शनि बलहीन हो, तो जातक बहुत से शस्त्र युक्त, पूर्व उम्र मे हिंसक, धन-धान्य संपन्न, कल्याणप्रद, विविध विषय का ज्ञाता होता है।

मानसागरी अनुसार नवांश फल 
(01) लग्न के प्रथम नवांश मे जन्मा जातक चुगलखोर, चंचल,  दुष्ट स्वभाव वाला, पापी, कुरूप, दुसरो को कष्ट देने वाला होता है।
(02) लग्न के द्वितीय नवांश मे जन्मा जातक प्राप्त धन का भोगी, लड़ाई झगडे से दूर या विमुख, संगीत व स्त्रियो का प्रेमी होता है।
(03) लग्न के तृतीय नवांश मे जन्मा जातक सब विषय का तत्वज्ञ, सदा रोगी, धर्मात्मा, सब का प्रिय और देव भक्त होता है।
(04) लग्न के चतुर्थ नवांश मे उत्पन्न जातक दीक्षा प्राप्त गुरु भक्त होता है। भूगर्भ के सभी पदार्थ प्राप्त करता है। विभिन्न खनिजो से लाभ प्राप्त करता है।
(05) लग्न के पञ्चम  नवांश मे उत्पन्न जातक सब लक्षणो से युक्त, राजा के समान विख्यात, दीर्घायु, बहुत विख्यात होता है।
(06) लग्न के षष्ठ  नवांश मे उत्पन्न जातक स्त्री से पराजित, पापी, नपुंसक, धन को व्यर्थ खर्च करने वाला, अभिमानी, प्रमादी होता है।
(07) लग्न के सप्तम नवांश मे जन्मा जातक पराक्रमी, बुद्धिमान, शूर, रण मे विजयी, उत्साही, संतोषी होता है। (08) लग्न के अष्टम  नवांश मे जन्मा जातक कृतघ्न, दूसरो से द्वेष रखने वाला, क्लेश भागी, बहुत संतान वाला, फल के समय त्याग करने वाला होता है।
(09) लग्न के नवम  नवांश मे जन्मा जातक कार्यो मे कुशल, सामर्थ्यवान, प्रतापी, जितेन्द्रिय, नौकरो-चाकरो तथा सेवको से युक्त होता है।   

सन्तति विचार
M यदि नवांश मे गुरु चतुर्थ और मंगल पंचम भाव मे स्थित हो, तो जातक  विषम संख्या 1, 3, 5 पुत्रो का सुख पाता है। यदि बुध, शुक्र, शनि का सम्बन्ध (दृष्टि या युति) चतुर्थ व पंचम भाव से हो, तो जातक सम संख्यक 2, 4, 6 पुत्रो का सुख पाता है।
M यदि जन्मांग मे तीसरे मे सिंह राशि पंचम मे गुरु, षष्ट मे शनि, सप्तम मे सूर्य, दशम मे मंगल और एकादश मे राहु हो तो जातक निसंतान या अल्प संतान सुख होता है। यह योग केवल मिथुन लग्न मे ही होता है। (पंचम में गुरु, पंचम पर मंगल राहु की दृष्टि, शनि वृश्चिक मे होता है)
M यदि जन्मांग मे व्ययेश पाप ग्रह होकर 3, 6, 9, 12 भाव मे हो तथा राहु-केतु या अस्त ग्रह पंचम भाव मे हो, तो जातक संतान हानि पाता है। (यह योग वृष, कन्या, धनु, मीन लग्न में ही होगा।)
M जितने भी शुभ ग्रह या पुरुष ग्रह नवांश पंचम भाव मे हो और बलवान हो या पंचम उनसे दृष्ट हो, तो उतनी ही संख्या मे संतति होती है। यदि पुरुष ग्रह हो, तो पुत्र, स्त्री ग्रह (चं, बु, शु ) हो, तो कन्या संतति होती है।  यदि शनि ग्रह से युत या दृष्ट हो, तो गर्भपात होता है।

स्त्री जातक विशेष 
जब नवमांश मे मंगल और शुक्र की युति हो, तो स्त्री कन्या को जन्म देने वाली, स्वयं मृग नेत्री, अभिसारिक (प्रेमी से  निश्चित स्थान पर मिलने वाली) काम से व्याकुल होकर दूसरे के घर जाने वाली होती है।
जब नवांश मे मंगल और शनि का राशि परिवर्तन योग हो या मंगल शनि पापग्रह से युक्त हो या दृष्ट हो, तो ऐसी स्त्री कन्या संतति प्रधान (अधिक पुत्रिया) होती है, ऐसी स्त्री विवाहेतर प्रेम सम्बन्ध रखती है और कोई-कोई  स्त्री निज पति को त्याग देती है।

नवांश मे सप्तम भाव मे 1, 8 मंगल की राशि होने पर पति उग्र, दुराचारी; 2, 7 शुक्र की राशि होने पर पति निष्ठावान, भाग्यशाली;  3, 6 बुध की राशि होने पर पति बुद्धिमान, सुदक्ष, चतुर; 9, 12 गुरु की राशि होने पर पति गुणवान, पवित्र, साहसी; 10, 11 शनि की राशि होने पर पति मुर्ख, प्रौढ़ या वृद्ध, 4 चंद्र की राशि होने पर पति सौम्य, कामुक; 5 सूर्य की राशि होने पर पति परिश्रमी दयालु होता है।

यदि नवांश के सप्तम भाव से मगल व शुक्र का राशि परिवर्तन हो, तो महिला के विवाहेतर प्रणय सम्बन्ध होते है। यदि इस योग मे सप्तम मे चंद्र हो, तो अवैध सम्बन्ध पति की सहमति से होते है। यदि नवांश के सप्तम भाव मे शुभ ग्रह (चं, बु, गु, शु) की राशि हो, तो स्त्री भाग्यशाली, पति का प्यार पाने वाली, संततिवान होती है।

नवांश मे चंद्र शुक्र की युति हो, तो महिला सुखी, ईर्ष्यालु;  चन्द्र बुध की युति हो, तो महिला, गुणी, सम्पन्न, सुखी, निपुण; शुक्र बुध की युति हो तो, महिला कलात्मक, पति प्रिय, आकर्षक; चंद्र, शुक्र, बुध की युति हो, तो महिला धनी, प्रतिभासम्पन्न, सुखी होती है।

यदि नवांश का अष्टम भाव पापयुक्त हो, तो वैधव्य हो सकता है, यदि ऐसा ही योग जन्मांग मे भी हो, तो सम्भावना प्रबल होती है, ऐसा अष्टमेश की दशा या भुक्ति मे हो सकता है। यदि अष्टमेश द्वितीय भाव मे हो और द्वितीयेश मे अष्टमेश की भुक्ति पहले आय तो महिला की मृत्यु पति से पहले यानि सधवा (सुहागन) ही होती है।

यदि नवांश लग्न मे वृष, सिंह, वृश्चिक राशि हो, तो संतान कम होती है। यदि नवांश का सप्तम भाव पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो वैधव्य होता है। किन्तु नवांश का सप्तम भाव शुभ अशुभ दोनो प्रकार के ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, तो पुनर्विवाह होता है। यदि नवांश के सप्तम भाव मे पापग्रह  शुभग्रह से दृष्ट या शुभक्षेत्री हो, तो पति से दूर या अलगाव या तलाक होता है।

यदि नवांश लग्नेश केंद्र 1, 4, 7, 10  मे हो, तो विवाह शीघ्र (16 से 18 वर्ष), त्रिकोण 5, 9  में हो, तो सामान्य (18 से 24 वर्ष) दुःस्थान 6, 8, 12 मे पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो विवाह विलम्ब (24 से 30 वर्ष) से होता है। यदि नवांश लग्न पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो तथा जन्म कुंडली का सप्तमेश नवांश मे पापग्रहो से पीड़ित अथवा बलहीन हो, तो विवाह नहीं होता है।            * जातक = वह प्राणी जिसके जन्मांग का विचार किया जा रहा हो।
 स्त्री जातक  संवेदनशील, गोपनीय विषय है। मात्र कुछ योगो के आधार पर चरित्र पर लांछन लगाना अनुचित व ज्योतिष के प्रति अपराध है। कोन सा कर्म कब, कहाँ, कैसे फलित होगा, जानना सहज नही है। नारी सहजशील है, पाप केवल परवशता वश करती है। अतएव प्रबल अशुभ योग का भी केवल संकेत मात्र कर देना ज्योतिषी की नैतिकता है।

   
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