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Divorce yoga in astrology

Divorce yoga in astrology


Seventh/ th house represent marriage house. Any affliction to 7th house makes married life difficult  and in severe cases leads to divorce. There are  many combinations of planets which causes  divorce as only one planet damaged can not give divorced. Saturn is the biggest reason for divorce in astrology . Saturn is the planet of teaching about life. It wants us to teach a lesson where it sits, if it is sitting in 7th house it means he wants the person to mature about relationship things. It always want a person to marry late, but if the person marry early it end up in divorce no matter whether Venus or Jupiter is sitting with Saturn. 

The people who have Saturn energy in their 7th house should marry late around 28 or 30 years of age. 

The other reason for divorce is planet Mars. Mars is the individualistic planet, it always fight for its rights. But when we are in relationship, individualism does not sound good. Mars in 7th house brings lot argument with partner which cause divorce. But it should be in certain signs. It is called manglik dosha in astrology. 

Another reason for divorce is planet Sun in the 7th house. Sun is the planet of ego and pride, it bring the partner who is very egoistic. Due to egoistic nature of the partner there is lot of disharmony in relationship therefore ego can also leads to the divorce if the person is not mature. 

Venus is the planet of marriage and relationship. Venus debilitated in 7th house, Venus is hemmed between the malefic planets like Rahu and Ketu or Saturn and Mars it could also lead to the divorce. Debilitated Venus in 7th house put lot of criticism to partner which leads to divorce. 

There are other combinations also like if the partner is not loyal or flirt. Rahu in the seventh house makes person to like many partners it may also be a reason for the divorce until any benefic planet sitting with it. 

Ketu in the 7th house makes person not interested in marriage and if they marry they may end up in divorce, but if any benefic planet influence Ketu it may change the result. 

7th house lord sitting in 6th or 12th house makes person marry a person who may sick or away due to some work or any other reason also cause divorce. 

The above explanations should be in combination then a divorce can happen. 

e.g if someone have Virgo ascendant, Sun in 7th house, Venus surrounded by malefic planets like Mars Saturn and Ketu can give divorced. 

There are many reasons which can cause divorce. We should always check D-9 chart before concluding the analysis.

द्विभार्या योग- दूसरा विवाह | Second marriage yog in kundali

द्विभार्या योग- दूसरा विवाह | Second marriage yog in kundali - दूसरा विवाह और अन्य स्त्रीयां
प्रायः अधिकांशतः सभी को ज्ञात होता है कि हमारी जन्म कुंडली का सप्तम भाव भार्या व विवाह स्थान कहलाता है । लेकिन यह तथ्य बहुत कम व्यक्तियो को ज्ञात होता है कि जीवन साथी से अलगाव के पश्चात आगामी विवाह योग अथवा भार्या या स्त्री का विचार कहां से करें और किस भाव से करें । इस विषय मे भी आपको विद्वानो का मतांतर देखने को मिल सकता है ।
हमे ज्ञात है कि सप्तम स्थान भार्या अर्थात पत्नी स्थान होता है लेकिन अगर हमारी पहली पत्नी से हमारा अलगाव होता है या अपनी पहली पत्नी के अतिरिक्त दूसरी स्त्री का विचार करें या संबध बनाये तो वह हमारी पत्नी की सौतन कहलायेगी अर्थात सप्तम भाव से छटा भाव यानी कि हमारी कुंडली का 12वां भाव दूसरी स्त्री को सूचित करता है। इसी तरह
तीसरी स्त्री का स्थान 12वे से छटा यानी कि 5वां स्थान होता है। क्रमशः इसी तरह आप अन्य स्त्रीयो का विचार कर सकते है।
दूसरे विवाह व स्त्रीयो से संबधित कुछ योग निम्नलिखित है ।
यदि सप्तमेश और द्वितीयेश शु्क्र के साथ या पाप ग्रह के साथ होकर 6,8,12 भाव मे हो तो दूसरी शादी का योग बनता है।
यदि लग्न,सप्तम, चंद्र द्विस्वभाव राशियो मे पड रहे हो तो दूसरे विवाह के योग मे सहायक होते है।
यदि लग्नेश ,सप्तमेश , जन्मेश्वर व शुक्र द्विस्वभाव राशियो मे हो तो भी दूसरे विवाह के योग बनते है।
यदि सातवे घर का मालिक शुभ ग्रहो से युक्त होकर 6,8,12 मे पडा हो और सातवां भाव पाप युक्त हो तो दूसरी शादी का योग बनता है ।
लग्नेश उच्च ,वक्री ,मूलत्रिकोण,स्वग्रही या अच्छे वर्ग का हो तो बहुत सी स्त्रीयो की प्राप्ती कराता है।
यदि सातवां भाव पापयुक्त हो व सातवे का मालिक नीच राशि मे हो तो दो विवाह का योग बनता है।
चंद्रमा या शुक्र सातवे हो तो जीवन मे अनेक स्त्रीयो का योग बनता है।
यदि नोवें घर का मालिक सातवे घर मे हो और सातवे घर का मालिक चौथे घर मे हो तथा सातवे और ग्यारहवें घर का मालिक केन्द्र मे हो तो अनेक स्त्री़यो का योग बनता है।
दसवे घर के मालिक और उसका नवांशपति दोनो शनि के साथ हो और साथ मे छटे घर का मालिक भी हो या छटे घर के मालिक देख रहा हो तो अनेक स्त्रीयो का योग बनता है।
यदि 1,2,7 भावो मे कोई पापी ग्रह हो और सातवे का मालिक नीच या अस्त हो तो अनेक स्त्रीयो का योग बनाता है।

बहु विवाह योग - लग्न में उच्च राशि का ग्रह हो, लग्नेश उच्च राशि में हो तो उसके तीन से ज्यादा विवाह योग होते हैं। - बलवान चंद्र और शुक्र एक राशि में बैठे हांे तो बहु विवाह के योग होते हैं यानि अनेक स्त्रियों का स्वामी होता है अथवा अनेक पति योग होते हैं। - बलवान शुक्र सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो तो अनेक विवाह के योग होते हैं। - सप्तम भाव पाप ग्रह से युत होकर लग्नेश धनेश और अष्टमेश तीनों सप्तम भाव में हों तो बहु विवाह योग होते हैं। - सप्तमेश शनि पाप ग्रह के साथ बैठा हो तो बहु विवाह के योग होते हैं। - सप्तमेश बलवान हों तीसरे चंद्र बलयुक्त हों तो अनेक विवाह के योग होते हैं। - द्वितीय भाव का स्वामी एवं द्वादश भाव का स्वामी दोनों पराक्रम में बैठे हों तथा उनपर गुरु या नवमेश की दृष्टि हो तो अनेक विवाह योग होते हैं। - सप्तमेश + लाभेश एक राशि में हो या एक दूसरों को देख रहे हों तो बहु विवाह योग जानें। - सप्तम भाव का स्वामी अथवा लाभ भाव का स्वामी बलाबल युक्त होकर नवम अथवा पंचम में बैठे हों तो बहु विवाह योग समझें। - यदि सप्तम भाव में शनि $ मंगल युक्त हो तो अनेक विवाह योग होते हैं। इस तरह से हम योगों द्वारा बहु विवाह योग आसानी से समझ सकते हैं। अब हम दो पत्नी के योग जानने का प्रयास करते हैं। द्विभार्या योग - लग्नेश लग्न में हो तो द्विभार्या अथवा दो विवाह होते हैं। - अष्टमेश लग्न में अथवा सप्तम भाव में बैठा हो तो दो विवाह होते हैं। - लग्नेश छठे भाव में बैठा हो तो दो विवाह के योग होते हैं। Û षष्ठ भाव में धनेश और सप्तम भाव में पाप ग्रह हों तो दो विवाह के योग होते हैं। - सप्तमेश शुभ ग्रह से युक्त होकर शत्रु की राशि में या नीच राशि में हो और सप्तम घर में पाप ग्रह हांे तो दो विवाह के योग होते हैं। - स्त्री कारक ग्रह पाप ग्रह से युक्त हो, अपनी नीच, शत्रु, अस्त राशि में हो तो दो विवाह योग होता है। - पाप ग्रह सप्तम भाव में हो तो दो विवाह योग होते हैं। - सप्तम भाव में बहुत सारे पाप ग्रह हों और सप्तमेश पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो तीन विवाह योग होते हैं। - लग्न, धन और सप्तम भाव पाप ग्रह से युक्त हो और सप्तमेश अपनी नीच, शत्रु, अस्त राशि में हो तो तीन विवाह योग समझें। - मेष, सिंह, धनु राशि में सूर्य सप्तम भाव में हो तो दो विवाह योग होता है।


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