अगर आपके जीवन में कोई परेशानी है, जैसे: बिगड़ा हुआ दांपत्य जीवन , घर के कलेश, पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध, निसंतान माता पिता, दुश्मन, आदि, तो अभी सम्पर्क करे. +91-8602947815
Showing posts with label Balarishta बालारिष्ट दोष शांति. Show all posts
Showing posts with label Balarishta बालारिष्ट दोष शांति. Show all posts

Balarishta yog बालारिष्टयोग (आयु निर्णय) Balarishta Dosham

Balarishta yog बालारिष्टयोग (आयु निर्णय)   Balarishta Dosham


बालारिष्ट योगारिष्टमल्यं मध्यंच दीर्घकम्।
दिव्यं चैवामितं चैवं सप्तधायुः प्रकीर्तितम्।।

सात प्रकार की मृत्यु संसार में जानी जाती है
अर्थात् मृत्यु के विषय में ज्ञान होना तो अत्यंत दुर्लभ है, किंतु फिर भी बालारिष्ट, योगारिष्ट, अल्प, मध्य, दीर्घ, दिव्य और अमित ये सात प्रकार की मृत्यु संसार में जानी जाती है।

बच्चे तथा उसके माता-पिता द्वारा किए गए पूर्व जन्म के दुष्कृत्यों से संचित शिशु की जन्मकालिक क्रूर ग्रह स्थिति आदि को रिष्ट या अरिष्ट कहा गया है। 

रिष्ट तथा अरिष्ट का अर्थ शब्दकोश के अनुसार शुभ और अशुभ है, किंतु आयु निर्णय में इसका अर्थ अशुभ योग ही है। 

इन रिष्ट योगों में से कुछ रिष्ट योग केवल शिशु को, कुछ शिशु की माता को, कुछ पिता को, कुछ पिता और शिशु दोनों को, कुछ माता-पिता और शिशु तीनों के लिए कष्टकारक या मरणप्रद माने गये हैं। 

कुछ ऐसे भी रिष्ट योग हैं जो शिशु के भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी, मामा-मामी, सास-ससुर, साला, देवर-देवरानी आदि के साथ अन्य बंधुओं के साथ भी जातककारों ने अशुभ माने हैं। 

अभुक्त मूल, भद्रा, यमघंट, दग्ध, मृत्यु योग, व्यतिपात, वैधृति, वज्रयोग, ग्रहणकाल, सूर्य संक्रांति, अमावस्या, कृष्ण चतुर्दशी, नक्षत्र-तिथि, विष घटि चंद्र एवं लग्न का राशि मृत्यु अंश आदि अनेकानेक अन्य अशुभ काल जातक मुहूर्त ग्रंथों में वर्णित हैं जिनमें जन्म शिशु तथा उसके संबंधियों के लिए कष्ट एवं मृत्यु कारक बताया गया है। इन कालों को भी रिष्ट की कोटि में माना जाता है। 

इसके अतिरिक्त जन्मकालीन वज्रपात, वात्या, उल्कापात, भूकंप, धूमकेतु उदय आदि असंख्य अपशकुन भी रिष्ट माने गये हैं जिनमें जन्म लेना शिशु के लिए अरिष्ट बतलाया गया है। किसी भी प्रकार के अरिष्ट योग का फलादेश करने से पहले जातक ग्रंथों में (बृहज्जातक आदि) अरिष्ट योगों के भंग (परिहार) का भी पूरी तरह से मनन कर लें।

अपनी जातक पद्धति में आचार्य केशव ने इसे इस प्रकार लिखा है: 
जिवेत्क्वापि विभंगरिष्टज-शिशूरिष्टम् विनामीयतेऽथाधोब्दः शिशुदुस्तरोऽपि च परौ कार्यैषु नो पत्रिका।। 

शिशु की आयु के पहले तीन वर्ष बहुत संकटपूर्ण होते हैं। ये वर्ष रिष्टज योगों के कुप्रभाव से शीघ्र प्रभावित होने वाले हैं।

वैद्यनाथ के अनुसार - प्रथम चार वर्षों में माता के पापों (पूर्वजन्मकृत दुष्कृत्यों) तदनंतर चार वर्षों में पिता के पापों तथा आगे शिशु अपने पापों से ही मृत्यु को प्राप्त करता है। 

आद्ये चतुष्के जननी कृताद्यैः मध्ये तु पित्रार्जितपापसंचयैः बालस्तदन्यासु चतुःशरत्सु स्वकीय दौषैः समुपैतिनाशये।। 

बारह वर्ष की अवस्था तक माता-पिता के दोषों से अर्थात् लालन पालन में असावधानी, बालावस्था में संभाव्य रोगों से बचाव एवं उसे भरपूर सुरक्षा प्रदान न कर सकने की अवस्था में निश्चय ही बालक का अनिष्ट हो सकता है।

जातक ग्रंथों में रिष्टजनक ग्रह स्थितियां भारी संख्या में दी गई हैं जिनमें से कुछ का यहां उल्लेख किया जा रहा है यथा- 
शिशु का तत्काल मृत्यु योग चक्रस्य पूर्वापर भागगेषु क्रूरेषु सौम्येषु च कीटलग्ने। क्षिप्रं विनाशं समुपैति जातः पापैर्विलग्नास्तमयाभितश्य।। 

वाराहमिहिर ने उपर्युक्त श्लोक में कहा है कि जन्मकुंडली के पूर्वार्ध में (दशम से चतुर्थ तक) अर्थात पूर्व कपाल में विद्यमान पाप ग्रहों से तथा लग्न कुंडली के परार्ध पश्चिम कपाल (चतुर्थ भाव से दशम भाव तक) में शुभ ग्रहों की स्थिति में भी जातक की शीघ्र मृत्यु होती है तथा लग्न और सप्तम से द्वितीय स्थान स्थित पाप ग्रहों से भी जातक का शीघ्र मरण होता है।

यथा पापावुदयास्त गतौ क्रूरेण युतश्च शशी। दृष्टश्च शुभैर्न यदा मृत्युश्च भवेदचिरात।। 

अर्थात् लग्न सप्तमस्थ पाप ग्रहों से तथा पापयुक्त चंद्रमा पर शुभ ग्रह दृष्टि नहीं होने से भी जातक की शीघ्र मृत्यु होती है। 

शिशु का सप्ताह आयु योग: श्री कल्याण वर्मा ने सारावली में अरिष्ट योग बताया है कि यदि चंद्रमा सप्तम भाव में मंगल और सूर्य के साथ युति करे तो जातक की आयु एक सप्ताह होती है। 

यथा- सहितौ चन्द्रजामित्रे यस्यांगारक-भास्करौ। जातस्य तस्य ही तदा भवेत्सप्ताहजीवितम्।। 

एक मास में ही शिशु मृत्यु योग: मुकुंद दैवज्ञ ‘पर्वतीय’ के अनुसार कुछ अरिष्ट योगों में जातक की आयु मास पर्यंत हो जाती है जैसे द्वितीय, तृतीय व नवम स्थान में मंगल हो तथा सूर्य व शनि एक ही राशि में हों तो दस दिन से पहले ही जातक की मृत्यु हो जाती है 

यथा- मंगले मंगले वित्तेवानुजे मित्र मन्दयो। एक राशिगयोर्मृत्युः पाकस्य प्राग्दशाहतः।।

जातक सारदीप में श्री नृसिंह दैवज्ञ ने इसे इस प्रकार कहा है- षष्ठाष्टगा वक्रितपापदृष्टा हन्युः शुभामासि शुभैरदृष्टाः। होरापतिः पापजितःस्मरस्थोमासेन तं मारयति प्रसूतम।।

यदि अष्टम स्थान में मकर या कुंभ राशि का बृहस्पति हो तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो ग्यारहवें दिन जातक की मृत्यु हो जाती है। यथा- समन्दभेऽच्र्ये मृतिगेडंहसेक्षित। .एकादशाहेऽत्ययमेती शावकः।। 
चतुर्थ स्थान में राहु तथा षष्ठ व अष्टम में चंद्रमा हो, चंद्रमा से त्रिकोण स्थानों में सूर्य हो, इन योगों में उत्पन्न जातक बीस दिन की आयु लेकर आता है। 

भोगीश्वरेऽम्भो भवने भनायकेऽतरिक्षते वाऽमृतरश्मितोरवौ। पुत्रेपथिव्याधिभयार्छितोऽर्भकस्तदा नखाहेऽन्तकर्मान्दरं व्रजेत।। 

छः मास पर्यन्त आयु: सर्वार्थ चिन्तामणि में वेंकटेश शर्मा के अनुसार यदि सभी ग्रह आपोक्लिम में गए हों और निर्बल हों तो दो मास या अधिकतम छः मास आयु होती है। यथा- आपोक्लिमेस्थिताः सर्वे ग्रहा बलविवार्जिताः। षण्मासं वा द्विमासं वा तस्यायुः समुदाहृतम्।। 

एक वर्ष पर्यन्त आयु: चंद्रमा से केंद्र में पाप ग्रह हों और शुभ ग्रह न हों तो एक वर्ष के भीतर मृत्यु होती है। 

यथा- केन्द्रैश्चन्द्रात्पापयुक्तैर सौम्यैः। स्वर्गंयाति प्रोच्यते वत्सरेण।। दो वर्ष पर्यंत मृत्यु: वक्री शनिर्भौम गृहे केन्द्रे षष्ठे अष्टमेऽपि वा। कुजेन बलिना दृष्टे हन्ति वर्षद्वये शिशुम्।। 

शिशु-मातृ मृत्यु योग: लग्न से 7वें, 8वें भावों में कई पाप ग्रह यदि चंद्रमा को देखें तो माता व पुत्र दोनों की मृत्यु होती है। यदि शुभ दृष्टि भी हो तो सत्याचार्य के मत से रोग कारक होता है। यथा- लग्नात्सप्ताष्टभगैः पापैरभिवीक्षितश्चन्द्र सहजनन्या। भ्रियते शुभसंदृष्टैः सत्यमताद्वदेद व्याधिम्।। 

शिशु-पितृ मृत्यु योग: नृसिंह दैवज्ञ के अनुसार चतुर्थ में राहु हो तो पुत्र की, नवम में हों तो पिता की मृत्यु होती है। यदि पाप ग्रह की दृष्टि भी हो तो तीन दिनों में ही ऐसा हो जाता है। 
यथा- राहुश्चतुर्थगः पुत्रं नवमे पितरं तथा। हन्यात्केतुश्चतद्वस्यात् पाप दृष्टोदिनत्रये।। 

शिशु एवं तत्संबंधियों को शीघ्र मृत्यु योग: वैद्यनाथ के अनुसार यदि लग्न से पांचवें व नवें घर में पाप ग्रह की राशि हो और पाप ग्रह की राशि में सूर्य हो तो भाई की, बुध हो तो मामा की, बृहस्पति हो तो नानी की, शुक्र हो तो नाना की, शनि हो तो स्वयं बालक की मृत्यु होती है। तातांबिकासोदर-मातुलाश्च मातामही मातृ-पिता च बालः। सूर्यादिकैः पंचम-धर्मयातैः क्रूरक्र्षगैः आशुहता क्रमेण।। 

Balarishta Dosham

Baalarishta dosham means jataka doshams which causes severe health issues and sometimes even death to the new born. This dosha effects child up to 12th year of life. First 12 years of baby's age has been divided into 3 parts. They are

Baalarishta first phase

Baalarishta second phase

Baalarishta third phase

1.Baalarishta first phase:

This phase lasts up to the 4th year of child. If child suffers from baalarishta in this period it is caused due to baby's mother previous birth papa karma.

2.Baalarishta second phase:

This phase lasts between 5th year and 8th year of child. If child suffers from baalarishta in this period it is caused due to baby's father previous birth papa karma.

3.Baalarishta third phase:

This phase lasts between 9th year and 12th year of child. If child suffers from baalarishta in this period it is caused due baby's owen previous birth papa karma.

What to do to get rid of from baalarishta dosham?

Consult an astrologer immediately after child birth and prepare the child's jataka chakram. After analyzing the jataka chakrams the astrologer can say whether the child has baalarishta dosham or not.

If there is no baalarishta yogam in child's jataka chakram go ahead with routine procedure like naming the baby , annaprasana etc.

If baalarishta yogam is present in child's jataka chakram ask the astrologer which graha kootami or group of planets are responsible for it and perform santi pooja's for that particular graha kootami or group of planets every year up to 12th year of child life.



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...