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पितृ दोष कारण व निवारण Astrological Reason and Remedies of Pitra Dosh

जन्म कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म के कर्मों का आंकलन किया जाता है। नवम भाव को पंचम से पंचम माना गया है इसलिए इस भाव से भी पितर दोष का आंकलन किया जाता है। इसके अतिरिक्त जन्म कुंडली के जिस भाव या भावेश से राहु/केतु संबध बना रहे हैं उन भावों या भावेशों को भी ग्रहण लगता है और उनसे संबधित जो फ़ल मिलने होते हैं उनमें काफ़ी कमी आती है अथवा जो फ़ल मिलते भी हैं तो उन्हें लेकर व्यक्ति असंतुष्ट ही रहता है।
राहु का संबंध पंचम अथवा नवम भाव से बनने पर ही पितर दोष बनता है। यदि सूर्य अथवा चन्द्र भी राहु/केतु अक्ष पर है तो इसे भी पितर दोष कहा जाता है। 

सामान्यतः पितृ दोष के ज्योतिषीय कारण(Astrological Reason of Pitra Dosh) का निर्धारण जन्म कुंडली में
यदि सूर्य-केतु या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्बंध हो, जन्म-कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से हो, तो इस प्रकार की जन्म-कुण्डली वाले जातक को पितृ दोष होता है।
 एवं प्रथम,द्वितीय,पंचम,सप्तम,दशम और नवम भाव तथा सूर्य,राहु और शनि ग्रहों के आधार पर होता है। जन्मपत्री में नवम भाव को पिता तथा पूर्वजो का भाव कहा गया है। यह भाव जातक के लिए भाग्य स्थान भी है। इस कारण इस भाव का विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है। परम्परानुसार पितृ दोष पूर्व जन्म में किये गए कुकृत्यों का परिणाम है। इसके अलावा इस योग के बनने के अनेक अन्य कारण भी हो सकते है। महर्षि पराशर मुनि ने भी अपने ग्रन्थ बृहत्पराशर होराशास्त्र में पितृ दोष तथा उससे होने वाले कष्टों के सम्बन्ध में बताया है साथ ही किस ग्रहों के योग से यह दोष बनता है वह भी बताया है।
ज्योतिष में सूर्य पिता का कारक है तथा राहु छाया ग्रह है जब राहु ग्रह की युति सूर्य के साथ होती है तो सूर्यग्रहण लगता है उसी प्रकार जातक की कुंडली में जब सूर्य तथा राहु की युति एक ही भाव अथवा राशि में होती है तो पितृ दोष नामक योग बनता है। पितृ दोष होने पर जातक (व्यक्ति) को संतान कष्ट, नौकरी तथा व्ययवसाय में दिक्कत, विवाह अथवा वैवाहिक कष्ट भोगना पड़ता है।

यदि पंचम भाव अथवा पंचमेश राहु/केतु अक्ष पर स्थित है तो संतान हानि होती है। यदि संतान हो भी जाती है तो वह माता-पिता का अपमान करती है। इसी तरह से सूर्य यदि राहु के साथ स्थित है तब भी यह ग्रहण योग बनता है जिसके कारण व्यक्ति को अपने पिता से दुख ही मिलता है। पिता से किसी तरह का कोई सहयोग व्यक्ति को नहीं मिलता है।

नवम भाव में यदि राहु स्थित है तब भी पितर योग बनेगा क्योकि नवम भाव से पिता, पिता समान व्यक्ति और गुरुजनों का आंकलन किया जाता है और जब इस भाव में ही ग्रहण दोष बन रहा है तो इस भाव से संबंधित फ़लों में कमी देखी जा सकती है। इस भाव से भाग्य भी देखा जाता है तो पितर दोष बनने पर भाग्योदय होने में विलम्ब होता है।

पितृ दोष और ग्रह योग (Planetary Combination and Pitra Dosh)
जन्म कुण्डली में स्थित ग्रहो की स्थिति, युति, दृष्टि तथा उच्च-नीच के आधार पर पितृ दोष के कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्न प्रकार से है :-
जन्मकुंडली में लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव पितृदोष में विचारणीय होते हैं। सूर्य, चंद्रमा, गुरु, शनि और राहु-केतु की स्थितियां भी विचारणीय होती हैं। इनकी राशियां कर्क, सिंह, धनु, मकर, कुंभ और मीन से संबंधित भी विचार करते हैं। उपर्युक्त राशि ग्रह तथा भावों की विशेष स्थितियों में पितृदोष संबंधी अशुभ योगों का निर्माण होता है। परिवार में मुखिया अथवा बड़े पुत्र की जन्मपत्रिका में यह दोष होने पर अन्य परिजनों की जन्मपत्रिका में भी इससे मिलते-जुलते दोष देखे जा सकते हैं। किस व्यक्ति के पितृयोनि में जाकर असंतुष्ट होने के कारण यह दोष उत्पन्न हो रहा है? इसका विचार भी इन अशुभ योगों से किया जा सकता है। यदि गुरु पितृदोष संबंधी अशुभ योग निर्मित कर रहा है, तो कोई पुरुष पितर रूप मंे पीड़ित कर रहा है जबकि चंद्रमा के द्वारा पितृ दोष निर्मित होने पर किसी स्त्री के द्वारा पितृदोष मानना चाहिए। इसी प्रकार सूर्य से पिता अथवा पितामह, मंगल से भाई अथवा बहन और शुक्र से पत्नी का विचार करना चाहिए। प्रस्तुत लेख में पितृदोष से संबंधित अशुभ योगों का वर्णन किया जा रहा है। जिनकी जन्मपत्रिका में ऐसे योग निर्मित होते हैं, उन्हें पितृदोष के कारण बाधा होती है। 1. जन्मपत्रिका में गुरु निर्बल होकर राहु से युति करता हुआ लग्न, पंचम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी पुरूष पितर के कारण पितृ दोष होता है। 2. पंचम भाव में सूर्य तुला राशि में कुंभ नवांश में हो और यह भाव पापकर्तरी योग से पीड़ित हो तो पिता अथवा पितामह से संबंधित पितृदोष होता है। 3. अष्टमेश पंचम में हो, सप्तम भाव में शुक्र और शनि की युति बनती हो तथा लग्न में गुरु राहु से युत होकर स्थित हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है। 4. सूर्य अथवा सिंह राशि पापकर्तरी योग से पीड़ित होकर लग्न, पंचम अथवा नवम भाव में स्थित हो और शनि-राहु से भी उनका संबंध हो तो पिता, पितामह अथवा पितामह के कारण पितृ दोष का निर्माण होता है। 5. राहु और चंद्रमा युत होकर पंचम भाव में हो, लग्न और लग्नेश पाप ग्रहों से पीड़ित हों और पंचम भाव में राहु चंद्रमा की स्थिति वृषभ अथवा तुला राशि में हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है। 6. चंद्रमा पाप कर्तरी योग से पीड़ित होकर अष्टम भाव में हो और अष्टम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव भी हो तो किसी स्त्री से संबंधित पितृदोष होता है। 7. गुरु सिंह राशि में स्थित होकर पंचमेश तथा सूर्य से युति करता हो, लग्न और पंचम भाव में पाप ग्रह हो तो किसी पुरूष पितर के कारण पितृदोष होता है। 8. अष्टम अथवा द्वादश भाव में राहु-गुरु की युति हो तथा सूर्य मंगल और शनि से उनका संबंध हो एवं लग्न तथा पंचम का भी पाप ग्रहों से संबंध हो, तो पुरूष संबंधी पितृ दोष होता है। 9. सूर्य अष्टम भाव में स्थित हो, पंचमेश राहु के साथ स्थित हो और शनि पंचम भाव में हो तो किसी पुरूष के कारण पितृ दोष होता है। 10. षष्ठेश पंचम भाव में हो, दशमेश षष्ठ भाव में हो और राहु-गुरु की युति हो तो पुरूष संबंधी पितृ दोष होता है। 11. लग्न में राहु हो, पंचम भाव में शनि हो और अष्टम भाव में गुरु हो तो पुरुष संबंधी पितृ दोष होता है। 12. चतुर्थ भाव में राहु, पंचम भाव में नीच राशिगत चंद्रमा और एकादश भाव में शनि स्थित हो तो किसी स्त्री पितर से संबंधित पितृदोष होता है। 13. षष्ठेश तथा अष्टमेश लग्न भाव में स्थित हो, पंचम भाव में गुरु-चंद्रमा की युति पाप ग्रहों से युक्त हो तो, किसी स्त्री पितर के कारण पितृ दोष होता है। 14. लग्न पापकर्तरी योग से पीड़ित हो, सप्तम भाव में क्षीण चंद्रमा हो राहु शनि पंचम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी स्त्री पितर से संबंधित पितृ दोष होता है। 15. कर्क लग्न में शनि एवं चंद्रमा पंचम भाव में स्थित हों, मंगल और राहु की युति करते हुए लग्न, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी स्त्री पितर के कारण पितृ दोष होता है। 16. तृतीयेश पंचम भाव में राहु और मंगल से युति करे तथा पंचमेश अष्टम भाव में स्थित हो तो पितरों में शामिल भाइयों से संबंधित पितृदोष होता है। 17. पंचम भाव में शनि, अष्टम भाव में चंद्रमा तथा मंगल की युति हो और तृतीय भाव नीच राशिगत होकर निर्बल हो, तो पितरों में शामिल भाइयों के कारण पितृदोष होता है। 18. पंचम भाव में मिथुन अथवा कन्या राशि हो और उसमें शनि राहु स्थित हो, द्वादश भाव में मंगल एवं बुध की युति हो तो पितरों में शामिल भाइयों से संबंधित पितृदोष होता है। 19. सप्तमेश अष्टम भाव में हो, शुक्र पंचम भाव में हो तथा गुरु पाप ग्रहों से युत हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है।
जब व्यक्ति के कुण्डली में सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ एक ही भाव में बैठे हो तो पितृ दोष होता है तथा जिस भाव में यह दोष बनता है उसी भाव से सम्बंधित कष्ट भोगना पड़ता है।

 राहु अगर कुंडली के केंद्र स्थानों या त्रिकोण में हो
- अगर राहु का सम्बन्ध सूर्य या चन्द्र से हो
- अगर राहु का सम्बन्ध शनि या बृहस्पति से हो
- राहु अगर द्वितीय या अष्टम भाव में हो
कुण्डली में द्वितीय भाव, नवम भाव, द्वादश भाव और भावेश पर पापी ग्रहों का प्रभाव होता है या फिर भावेश अस्त या कमज़ोर होता है और उन पर केतु का प्रभाव होता है तब यह दोष बनता है।
लग्न या लग्नेश दोनों अथवा दोनों में से कोई एक अत्यंत कमज़ोर स्थिति में हो।
यदि लग्नेश नीच का हो तथा लग्नेश के साथ राहु और शनि का युति और दृष्टि सम्बन्ध बन रहा हो तो पितृदोष होता है।
चन्द्र जिस राशि में बैठा है उस राशि का स्वामी तथा सूर्य जिस राशि में बैठा है उसका स्वामी जब नीच राशि में होकर लग्न में हो अथवा लग्नेश से दृष्टि, युति का सम्बन्ध बनाते हो साथ ही कोई न कोई पापी ग्रहों का भी युति या दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक को पितृ दोष लगता है।
लग्नस्थ गुरु यदि नीच का हो तथा त्रिक भाव के स्वामियों से बृहस्पति ग्रह युति या दृष्टि सम्बन्ध बनाता हो तो पितृ दोष होता है।
यदि राहु नवम भाव में बैठा हो तथा नवमेश से सम्बन्ध बनाता हो।
नवम भाव में बृहस्पति और शुक्र की युति तथा दशम भाव में चन्द्र पर शनि व केतु का प्रभाव हो।
शुक्र अगर राहु या शनि और मंगल द्वारा पीड़ित होता है तब भी पितृ दोष का संकेत समझना चाहिए।
अष्टम भाव में सूर्य व पंचम में शनि हो तथा पंचमेश राहु से युति कर रहा हो और लग्न पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तब पितृ दोष होता है।
पंचम अथवा नवम भाव में पापी ग्रह हो।
जिस जातक की कुण्डली में दसमेश त्रिक भाव में हो तथा वृहस्पति पापी ग्रहों के साथ स्थित हो तथा लग्न और पंचम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को पितृ दोष लगता है।
पंचम भाव, सिंह राशि तथा सूर्य भी पापी ग्रहों से युत या दृष्ट हो तब भी पितृ दोष होता है।

उपाय-
अनुभवी आचार्य द्वारा नारायण बली एवं पितृ गायत्री के सवा लाख जप और इनका दशांश हवन किसी पितृ तीर्थ (उज्जैन के सिद्धवट, गया,वाराणसी एवम हरिद्वार आदि) पर कराने से लाभ अवश्य मिलता है।


पितृ दोष निवारण के कुछ सरल उपाय

1. सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है। एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये।

2. पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा को पितरों के निमित्त दान इत्यादि करें।शनिवार के दिन सूर्योदय से पूर्व कच्चा दूध तथा काले तिल नियमित रूप से पीतल के वृक्ष पर चढ़ाएं।

3. सोमवार के दिन आक के 21 फूलों से भगवान शिव जी की पूजा करने से भी पितृ दोष की शान्ति होती है।

4. अपने वंशजों से चांदी लेकर नदी में प्रवाहित करने तथा माता को सम्मान देने से परिजन दोष का समापन होता है।

5. परिवार के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र करके दान में देने तथा घर के निकट स्थित पीपल के पेड़ की श्रद्धापूर्वक देखभाल करने से दोष से छुटकारा मिलता है।

6. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में विधिवत इमली का बांदा लाकर घर में रखने से पितृ दोष दूर होते हैं।

7. अपने इष्टदेव की नियमित रूप से पूजा-पाठ करने तथा कुत्ते को भोजन कराने से दोष का समापन होता है।

8. हनुमान जी की पूजा करने तथा बंदरों को चने और केले खाने को दें। भ्राता दोष से मुक्ति मिल जाएगी।

9. ब्रह्मा गायत्री का जप अनुष्ठान कराने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है।

10. घर की बड़ी-बूढ़ी स्त्री का नित्य चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें। मातृ दोष दूर हो जाएगा।

11. उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ताड़ के वृक्ष की जड़ को घर ले आएं। उसे किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करने से पितृ दोष दूर होता है।

12. प्रत्येक मास की अमावस्या को अंधेरा होने पर बबूल के वृक्ष के नीचे भोजन खाने से पितृ दोष नष्ट हो जाता है।

13. गाय को पालकर उसकी सेवा करें। मातृ दोष से मुक्ति मिलेगी।

14. प्रतिदिन देशी फिटकरी से दांत साफ करने से भगिनी दोष समाप्त हो जाता है।

15. किसी धर्मस्थान की सफाई आदि करके वहां पूजन करें प्रभु ऋण से छुटकारा मिल जाएगा।

16. वर्ष में एक बार किसी व्यक्ति को अमावस्या के दिन भोजन कराने, दक्षिणा एवं वस्त्र देने से ब्राह्मïण दोष का निवारण होता है।

17. अमावस्या के दिन घर में बने भोजन का भोग पितरों को लगाने तथा पितरों के नाम से ब्राह्मïण को भोजन कराने से पितृ दोष दूर हो जाते हैं।यदि छोटा बच्चा पितृ हो तो एकादशी या अमावस्या के दिन किसी बच्चे को दूध पिलाएं तथा मावे की बर्फी खिलाएं।श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन पितरों को जल और काले तिल अर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं तथा पितृ दोष दूर होता है।

18. सात मंगलवार तथा शनिवार को जावित्री और केसर की धूप घर में देने से रुष्ट पितृ के प्रसन्न होने से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।

19. अपने घर से यज्ञ का अनुष्ठान कराने से स्वऋण दूर होता है।

20. प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर सूर्यदेव को नमस्कार करके यज्ञ करने से पितृ दोष से छुटकारा मिल जाता है।

21. नाक-कान छिदवाने से भागिनी दोष का निवारण होता है।

22. देशी गाय के गोबर का कंडा जलाकर उसमें नित्य काले तिल, जौ, राल, देशी कपूर और घी की धूनी देने से पितृ दोष का समापन हो जाता है।

23. बेटी को स्नेह करने तथा चांदी की नथ पहनाने से भगिनी दोष से मुक्ति मिल जाती है।

24. भिखारी को भोजन और धन आदि से संतुष्ट करें। भ्राता दोष दूर हो जाएगा।

25. पशु-पक्षियों को रोटी आदि खिलाने से सभी प्रकार के दोषों का शमन हो जाता है।
गाय को हरा चारा, पक्षियों को सप्त धान्य, कुत्तों को रोटी, चींटियों को चारा नित्य डालें।

घर में भगवत गीता पाठ विशेषकर 11वें अध्याय का पाठ नित्य करें।

पीपल की पूजा, उसमें मीठा जल तथा तेल का दीपक नित्य लगाएं। परिक्रमा करें।

हनुमान बाहुक का पाठ, रुद्राभिषेक, देवी पाठ नित्य करें।

श्रीमद् भागवत के मूल पाठ घर में श्राद्धपक्ष में या सुविधानुसार करवाएं।

ब्राह्मण एवम कन्या भोज समय समय पर करवाते रहें।

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