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जुड़वाँ बच्चे और ज्योतिष Twins Astrology (Judwa bachche jyotish) यमल बालक योग

जुड़वाँ बच्चे और ज्योतिष Twins Astrology (Judwa bachche jyotish) यमल बालक योग


अगर गर्भाधान के समय निम्नलिखित ग्रह स्थितियाँ हो तो जुड़वाँ बच्चों की संभावना बनती है।

1. चंद्रमा एवं शुक्र सम राशि में स्थित हो।
2. बुध, मंगल एवं गुरु ‍विषम राशि में हो।
3. लग्न एवं चंद्रमा समराशि में स्थित हो और पुरुष ग्रह द्वारा देखे जाते हो।
4. बुध, मंगल, गुरु और लग्न बलवान हो तथा समराशि में स्थित हो।
5. मिथुन या धनुराशि में गुरु-सूर्य हो एवं बुध से दृष्‍ट हो तो दो पुत्र होते हैं।
6. शुक्र, चंद्र, मंगल, कन्या या मीन राशि में बुध से दृष्ट हो तो दो पुत्रियाँ होती हैं।

            'भूतं चैव भविष्यं च वर्तमानं तथैव च।
             सर्वप्रदर्शकं शास्त्रं सिद्धिदं मोक्षकारणम्।’’
ज्योतिषशास्त्र त्रिकाल का दर्शन कराने वाला शास्त्र माना गया है। सम्यकविधि द्वारा इस शास्त्र का अध्ययन और अवगाहन भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीनों कालों का बोध कराने में समर्थ या सक्षम है। मनुष्य सदैव से ही अपनी वंशबेल को विकसित तथा संवर्द्धित करने की दिशा में प्रयासरत रहा है। उसके इसी प्रयास ने वर्णाश्रम व्यवस्था को अस्तित्व में लाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विभिन्न संस्कारों को भी इसी दिशा में किए गए प्रयासों का सार्थक फल समझा जा सकता है। विवाह संस्कार के द्वारा ही सामाजिक मान्यताओं में रहकर अपनी वंश परम्परा को बढ़ाया जा सकता है। भारतीय शास्त्रों में अनेक प्रकार के ऋणों की चर्चा की गई है और इससे मुक्त होने की दिशा में सदैव प्रयासरत रहने का भी निर्देश किया गया है। इस सन्दर्भ में पितृऋण महत्वपूर्ण है और सन्तानोत्पत्ति के द्वारा ही इस ऋण से मुक्त हुआ जा सकता है। सन्तान अथवा पुत्र की महिमा का वर्णन वैदिक साहित्य में भी उपलब्ध होता है। संतति को गृहस्थाश्रमरूपी उपवन के सर्वाधिक सुगंधित और आकर्षक पुष्पवल्ली के रूप में स्वीकृत किया जाता रहा है। माना जाता है कि पूर्वजन्मों के शुभकर्मों के उदय के कारण ही संतानोत्पत्ति का सुख प्राप्त होता है -    "तत्प्राप्तिधर्ममूला’’     
                 सामान्यतया गर्भधारण के उपरान्त माताएँ एक ही शिशु को जन्म देती हैं। परन्तु जीववैज्ञानिक कारणों-यथा भ्रूण के  विभाजन अथवा दो या उससे अधिक अण्डाणुओं के निषेचित होने के कारण गर्भधारण के उपरान्त दो या अधिक शिशुओं का जन्म होता है।  आधुनिक चिकित्साविज्ञान में इस सन्दर्भ में काफी चर्चा हुई है तथा इससे सम्बन्धित समस्त तथ्य हस्तामलकवत स्पष्ट हो चुके हैं। साथ ही इस सन्दर्भ में भारतीय ज्योतिषशास्त्र के प्राचीन ग्रन्थों में भी विपुल चर्चा प्राप्त होती है। गर्भाधान को ज्योतिषशास्त्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है और इसे समस्त जीवों की उत्पत्ति का साधन कहा गया है।  सामान्य गर्भधारण बिना सम्भोग के संभव नहीं अतः संभोग सूचक ग्रहस्थिति के सन्दर्भ में कहा गया है कि स्त्री की जन्म राशि से उपचय भवनों में चन्द्रमा के रहते हुए बृहस्पति से चन्द्रमा दृष्ट हो या चन्द्रमा मित्रग्रहों से दृष्ट हो,विशेषतया शुक्र से तो स्त्री पुरूष का संयोग होता है  तथा गर्भधारण का मार्ग प्रशस्त होता है। इन प्राचीन महर्षियों तथा अर्वाचीन ग्रन्थकारों ने इस सन्दर्भ में ऐसी अनेक ग्रहस्थितियों का उल्लेख किया  है, जिसके कारण एक से अधिक शिशुओं का जन्म एक ही गर्भकाल के उपरान्त होता है। इस सन्दर्भ में अधोलिखित सिद्धान्त अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं- 

 * सूर्य गुरू-चन्द्र लग्न अथवा सूर्य गुरु द्विस्वभाव राशियों में स्थित होकर बुध द्वारा दृष्ट हों तो यमल जातक का जन्म होता है। इस युग्म सन्ततियों में एक पुत्र तथा एक पुत्री होती है।   
* शुक्र एवं चन्द्रमा सम राशियों में स्थित हों तथा विषमराशि में बुध, मंगल, लग्न तथा गुरू स्थित हों और पुरूष ग्रहों द्वारा दृष्ट हों तो भी जुड़वाँ सन्तान होती है। 
* लग्न एवं चन्द्रमा समराशि में हों अथवा समनवांश में हों तो भी यमल सन्तान की उत्पत्ति होती है। 
* बुध अपने नवांश में स्थित हो और द्विस्वभाव राशि में बैठे ग्रह तथा लग्न को देखता हो तो तीन सन्तानों का जन्म होता है। 
* आधान लग्न में धनु राशि का अन्तिम नवांश हो तथा उसी नवांश में बलवान ग्रह बैठे हों तथा उन ग्रहों पर बली बुध एवं शनि की दृष्टि हो तब गर्भ में द्वयाधिक सन्तानें होती हैं। 
* आधानकाल में सूर्य व बृहस्पति मिथुन तथा धनु राशियों में बुध से युत या दृष्ट हों तो युग्म संतति का जन्म होता है और दोनों सन्तान पुत्रें का युगल होता है। 
* कन्या तथा मीन राशियों में शुक्र, चन्द्र तथा मंगल भी बुध से दृष्ट हो तो दो कन्याओं का जन्म होता है। 
* लग्न तथा चन्द्रमा समराशि में हों तथा बलवान ग्रहों से दृष्ट हो तो भी युग्म संतति का जन्म होता है। 
* चन्द्रमा तथा शुक्र समराशि में हो और गुरु, मंगल, बुध, लग्न विषय राशियों में हो या द्विस्वभाव राशियों में बलवान हों तो युग्म संतति उत्पन्न होती है। 
* इस सन्दर्भ में चन्द्र, शुक से पुत्री युगल तथा गुरू मंगल आदि से पुत्र युगल का निर्णय करना चाहिए। 
* लग्न व चन्द्रमा दोनों सम राशियों में हो तथा पुरूष ग्रहों से देखे जाते हों। 
* लग्न, बुध,मंगल तथा गुरू बलवान होकर सम राशि में हों तथा पुरूष ग्रह से देखे जाते हों। 
* सूर्य, चन्द्र, गुरू, शुक्र और मंगल द्विस्वभाव राशियों के नवांश में स्थित हों तथा बुध द्वारा दृष्ट हों। 
* सूर्य, गुरू मिथुन और धनु राशियों में तथा बुध द्वारा दृष्ट हों तो दो बालकों का जन्म। 
* मंगल, चन्द्रमा, शुक्र द्विस्वभाव अर्थात कन्या, मीन में स्थित होकर बुध द्वारा दृष्ट हो तो दो कन्याओं का जन्म। 
* यदि समस्त पुरूष तथा ग्रह द्विस्वभाव राशियों में विद्यमान होकर बुध से दृष्ट हों तो यमलों में एक पुत्र तथा एक कन्या होती है। 
* चन्द्र और शुक्र दोनों समराशियों में स्थित हों तथा बुध, मंगल, गुरू और लग्नेश सभी विषम राशियों में स्थित हों तो यमल में एक पुत्र तथा एक पुत्री। 
* लग्नेश और चन्द्रमा समराशि में स्थित हों तथा पुरूष ग्रहों से दृष्ट हों तो भी एक बालक और एक बालिका का जन्म। 
* मंगल, बुध, गुरू तथा लग्नेश पूर्णबली होकर समराशि में स्थित हाें। 
* तीन वर्गों का किसी नपुंसक ग्रह से सम्बन्ध हो तो यमल सन्तति का जन्म। 
* प्रश्नकालीन कुण्डली में किन्हीं चार भिन्न-भिन्न स्थानों में दो-दो ग्रह बैठे हों तो युग्म सन्तति का जन्म। 
* आधानकाल में लग्न में द्विस्वभाव राशि और चन्द्रमा, स्वराशिस्थ बुध तथा शनि एकादश भाव में हो। 
* द्विस्वभाव लग्नस्थ चन्द्रमा बुध से दृष्ट हो। 
* द्विस्वभावराशियों में बृहस्पति, सूर्य, मंगल, शुक्र, चन्द्रमा हों तथा बुध द्वारा दृष्ट हों। 
* कन्या, तथा मीन के नवांश में मंगल, शुक्र तथा चन्द्रमा स्थित हों तो दो कन्या सन्तति का जन्म। 
* मिथुन तथा धनु राशियों में कहीं भी सूर्य व बृहस्पति बुधदृष्ट होकर स्थित हों तो पुत्रों का युग्म। 
* द्वादशांश, द्रेष्काण, नवमांश यदि द्विस्वभाव राशि के हों तथा द्विस्वभाव राशि में सर्वोत्तम बली ग्रह हों तो जुड़वाँ सन्तानें होती हैं। 
* गर्भाधानकाल में यदि द्वादश भाव में बुध हो अथवा लग्न में हो अथवा बुध की इन भावों पर दृष्टि हो, द्वादशस्थ, लग्नस्थ अथवा दशमस्थ राशियों में से कोई एक स्त्री और कोई एक पुरूष राशि हो तो यमल बालक का योग बनता है। 
* समराशि में चन्द्रमा तथा शुक्र हों और द्वादश भाव में उदित बुध की स्थिति हो तथा विषम राशि में मंगल और बृहस्पति हों तो यमल सन्तति। 
                       इस प्रकार स्पष्ट है कि यमल जातकों के सन्दर्भ में पुरूष ग्रहों तथा स्त्री ग्रहों का द्विस्वभाव राशियों में स्थित होना महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण करता है। साथ ही साथ नपुंसक ग्रह बुध की इन ग्रहस्थितयों पर दृष्टि यमल जातकों के जन्म को सुनिश्चित करती है।

कुंडली में संतान योग | संतान बाधा कारण व उपाय | कुंडली से जाने संतान प्राप्ति का समय | निःसंतान योग | संतान बाधा दूर करने के सरल उपाय

कुंडली में संतान योग | संतान बाधा कारण व उपाय | कुंडली से जाने संतान प्राप्ति का समय | निःसंतान योग | संतान बाधा दूर करने के सरल उपाय

यदि पति-पत्नी दोनों ही स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम हैं, फिर भी उनके यहां संतान उत्पन्न नहीं हो रही है। ऐसे में संभव है कि ज्योतिष संबंधी कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह उन्हें इस सुख से वंचित रखे हुए है। यदि पति स्वास्थ्य और ज्योतिष के दोषों से दूर है, तो स्त्री की कुंडली में संतान संबंधी कोई रुकावट हो सकती है।

एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं  दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः | ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु  पुत्र सिद्धयै ||

अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है | बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप ,दान ,हवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है |

सूर्यादि ग्रह नीच ,शत्रु आदि राशि  नवांश में,पाप युक्त दृष्ट ,अस्त ,त्रिक भावों का स्वामी हो कर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है | योग कारक ग्रह की पूजा ,दान ,हवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और सन्तिति सुख प्राप्त होता है |

संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए पंचम भाव, पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी, पंचम कारक गुरु, पंचमेश, पंचम भाव में स्थित ग्रह और पंचम भाव ,पंचमेश पर दृष्टियों पर ध्यान देना चाहिए।   जातक का विवाह हो चुका हो और संतान अभी तक नहीं हुई हो , संतान का समय निकाला जा सकता है।
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो ,उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है | भाव ,भाव स्थित राशि व उसका स्वामी ,भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली, इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है |पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए |पंचम भाव से प्रथम संतान का ,उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए | उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है |
पंचम भाव जिन शुभ ग्रहों से प्रभावित हो उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के शुभ रहते संतान की प्राप्ति होती है।

गोचर में जब ग्रह पंचम भाव पर या पंचमेश पर या पंचम भाव में बैठे ग्रहों के भावों पर गोचर करता है तब संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है।यदि गुरु गोचरवश पंचम, एकादश, नवम या लग्न में भ्रमण करे तो भी संतान लाभ की संभावना होती है। जब गोचरवश लग्नेश, पंचमेश तथा सप्तमेश एक ही राशि में भ्रमण करे तो संतान लाभ होता है।


संतान योग
जब पंचम पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान योग बनने की संभावनाएं प्रबल होती हैं। जब जातक की कुंडली में शुक्र अच्छा होता है तो वह गर्भ में शिशु कन्सीव होने के लिये एक शुभ योग बनाता है। अब गर्भ में शिशु स्वस्थ रहे और स्वस्थ ही वह जन्म ले इसके लिये बृहस्पति का शुभ होना मंगलकारी माना जाता है। लग्नेश एवं पंचमेश का संबंध भी संतानोत्पत्ति के लिये अच्छा योग बनाता है। बृहस्पति का लग्न में या भाग्य में या एकादश में बैठना और महादशा में चलना भी संतान उत्पति का प्रबल योग बनाता है। जब शुक्र पंचम को देख रहा हो या वह पंचमेश में हो तो इन परिस्थितियों में संतान पैदा होने की तमाम संभावनाएं जन्म लेती हैं। इस प्रकार यदि कोई जातक संतान को लेकर चिंतित है तो उसे स्वास्थ्य जांच के साथ-साथ अपनी कुंडली का अध्ययन विद्वान ज्योतिषाचार्य से अवश्य करवाना चाहिये और जानना चाहिये कि कहीं ग्रहों की दशा प्रतिकूल तो नहीं। कहीं संतान उत्पति में देरी का कारण ग्रहों की यह प्रतिकूल दशा तो नहीं।
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु ,शुक्र ,बुध ,शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि – नवांश में  स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो , भाव स्थित राशि का स्वामी स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश का लग्न से केन्द्र ,त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , संतान कारक गुरु भी स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त –दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है | शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं | पंचम भाव ,पंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम ,दो बलवान हों तो मध्यम ,एक ही बली हो तो सामान्य सुख  होता है |सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो ,शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी  शुभ  ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है | प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख  योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की  प्राप्ति अवश्य होती है जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति,दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो |
लग्नेश पंचम भाव में मित्र ,उच्च राशि नवांश का हो |
पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो |
पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो |
जन्म कुंडली में गुरु स्व ,मित्र ,उच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो |
एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों |
गुरु से पंचम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो |
गुरु के अष्टक वर्ग में  पंचम स्थान में बलवान ग्रहों द्वारा प्रदत्त  पांच  या अधिक शुभ बिंदु हों |
सप्तमांश लग्न का स्वामी बलवान हो कर जन्म कुंडली में शुभ भाव में स्थित हो |

ग्रहों की कौनसी दशा से होता है संतान उत्पति में विघ्न
ग्रहों के शुभ योग से संतान उत्पति की संभावनाएं तो पैदा होती हैं लेकिन यदि ग्रहों के इस शुभ योग पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी परिस्थितियों में संतान उत्पति में में विलंब हो सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि पंचम स्थान पर राहू की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में संतान को हानि पहुंच सकती है। यहां तक बच्चे के लिये प्राणघातक योग भी बन जाता है अन्यथा बाधा तो पहुंचती ही है। संतान उत्पति का कारक घर पंचम है यदि इस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ती है तो इससे नकारात्मक योग बनता है। इससे संतान होने में बाधा होती है। कभी कभी संतान मृत पैदा होती है या फिर पैदा होने के कुछ समय बाद उसकी मौत हो जाती है तो उसका कारण भी ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यही पाप ग्रह होते हैं।

1- पंचम स्थान व षष्ट स्थान के मालिक यदि एकदूसरे की राशि में स्थित हो तो ऐसे जातक की सन्तान बार बार गर्भ पात के कारण नष्ट हो जाती हैं।
2- पंचमेश अष्टम स्थान में हो तथा पंचम स्थान पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को सन्तान सुख प्राप्त नही हो पाता।
3- पंचम स्थान पर शनि व राहु का प्रभाव मृत संतान देता हैं या संतान सुख से हीन करता हैं।
4- मंगल का पंचम प्रभाव अत्यधिक कष्ट पूर्वक संतान देता हैं, ऐसे जातकों कि संतान ऑपरेशन के द्वारा होती हैं।यदि शुभ प्रभाव हो तो अन्यथा अशुभ प्रभाव में संतान नहीं होती। मंगल व राहु का संयुक्त प्रभाव सर्प श्राप के कारण संतान होने में दिक्क्त देता हैं।
5- सूर्य का पंचम प्रभाव संतान से वंचित करता हैं, अथवा अत्यधिक प्रयत्न करने से एक संतान की प्राप्ती करवाता हैं।
6- लग्न, पंचम व सप्तम स्थान पर सूर्य, बुध और शनि का प्रभाव संतान प्राप्ती नही होने देता।
7- शुक्र यदि पुरुष जातक की जन्म कुंडली में शनि, बुध व राहु के साथ स्थित हो तथा पंचम व सप्तम स्थान पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो शुक्र(वीर्य) दोष होता हैं ।
8- पंचम स्थान पर शनि सूर्य का प्रभाव हो तथा राहु या केतु से दृष्टि सम्बंध बनाये तो पितृदोष के कारण संतान प्राप्ती में बाधा आती हैं।
9- पंचम स्थान पर देवगुरु बृहस्पति स्थित हो तथा पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो संतान होने में अनेक बाधाये आती हैं।
10- पंचमेश व गुरु दोनो एक साथ द्वादश स्थान में स्थित हो तथा मंगल व अष्ट मेश पंचम भाव में हो तो जातक को सन्तान सुख से वंचित होना पडता हैं।जब लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में स्थित हों ,पंचम भाव पाप  कर्तरी योग से पीड़ित हो , पंचमेश और गुरु  अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो , षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो , सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6,8 12 वें भाव में  अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है | जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी |
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है |
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है |
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है |
गुरु ,लग्नेश ,पंचमेश ,सप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है |
गुरु ,लग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है |
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो ,शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है |

उपाय –
सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए |जातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट ,शुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट का योग करें |राशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें |शेष राशि ( बीज )तथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की  पूर्ण क्षमता,एक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो अक्षमता होती है | इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट ,मंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें |शेष राशि( क्षेत्र ) तथा उसका नवांश दोनों सम  हों तो संतानोत्पत्ति की  पूर्ण क्षमता,एक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम  हों तो अक्षमता होती है | बीज तथा क्षेत्र का विचार करने से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ की संभावना क्षीण  होती है ,शुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है |  शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें | पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए |

1- बृहस्पति देव संतान कारक होते हैं। गुरु का पूजन करने से विभिन्न प्रकार के दोष स्वत:नष्ट हो जाते हैं।
2- संतान प्राप्ती के लिये संतान बाल गोपाल पूजन किया जाता हैं, इस पूजन में कृष्ण भगवान का बाल रूप मे पूजन होता हैं। संतान बाल गोपाल का मंत्र हैं- ” ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।”
3- किसी मन्दिर या स्कुल में केले का पेड लगायें व इसका नित्य पूजन करें।
4- हरिवंश महापुराण का पाठ करायें तथा श्रवण करें।
5- पित्रों के लिये दान करें। पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलायें तथा चीटियों व कौओं को दाना आदि दें।
6- 11 प्रदोष व्रत करें। भगवान शिव का अभिषेक संतान प्राप्ती की लिये लाभदायक उपाय हैं।
क्या आप संतान को लेकर चिंतित रहते हैं? आपकी कुंडली में ग्रहों का कमजोर होना इसका कारण हो सकता है।
सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है |  पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं |  हरिवंश पुराण का श्रवण करें |सूर्य रत्न माणिक्य धारण करें | रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहु,गुड ,केसर ,लाल चन्दन ,लाल वस्त्र ,ताम्बा, सोना  तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें | सूर्य के बीज मन्त्र ॐ  ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः  के 7000 की संख्या में जाप करने  से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है | गायत्री जाप से , रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में  लाल चन्दन ,लाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य  देने पर भी शुभ  फल प्राप्त होता है |  विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं  |

चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है  जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान ,गायत्री का जाप करें | श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी ,हस्त ,श्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप ,पुष्प ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |

सोमवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें |सोमवार को चावल ,चीनी ,आटा, श्वेत वस्त्र ,दूध दही ,नमक ,चांदी  इत्यादि का दान करें |

मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप ,शत्रु का अभिचार या  श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें |लाल रंग का मूंगा  सोने या ताम्बे  की अंगूठी में  मृगशिरा ,चित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार  को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड  ,अक्षत आदि से पूजन कर लें

मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ  क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः  मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें | मंगलवार को गुड शक्कर ,लाल रंग का वस्त्र और फल ,ताम्बे का पात्र ,सिन्दूर ,लाल चन्दन केसर ,मसूर की दाल  इत्यादि का दान करें |

बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप ,तुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण ,विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें |हरे  रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषा,ज्येष्ठा ,रेवती  नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड  ,अक्षत आदि से पूजन कर लें | बुधवार  के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ  ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय  नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें | बुधवार को कर्पूर,घी, खांड, ,हरे  रंग का वस्त्र और फल ,कांसे का पात्र ,साबुत मूंग  इत्यादि का दान करें | तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है |

बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु ,ब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए  पीत रंग का  पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद   नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , पीले पुष्प, हल्दी ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |पुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं | केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें |गुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे  नमः मन्त्र का १९०००  की संख्या में जाप करें | गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |

शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ -ब्राह्मण ,किसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है जिसकी शान्ति के लिए गौ दान ,ब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान ,श्वेत रंग का  हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में  पूर्व फाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , श्वेत  पुष्प, अक्षत आदि से पूजन कर लें

हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं |शुक्रवार  के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय  नमः मन्त्र का १६ ०००  की संख्या में जाप करें | शुक्रवार को  आटा ,चावल दूध ,दही, मिश्री ,श्वेत चन्दन ,इत्र, श्वेत रंग का वस्त्र ,चांदी इत्यादि का दान करें |

शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएं,रुद्राभिषेक करें ,शनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करें|  नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य ,अनुराधा ,उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार  को  सूर्यास्त  के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प,  काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|

नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली , लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं | काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील  का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है |शनिवार के नमक रहित व्रत रखें | ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मन्त्र का २३०००  की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,काले जूते ,काला कम्बल , काले  रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें |

श्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है |

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दशरथ  कृत शनि  स्तोत्र——

नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च |नमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः ||

नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च | नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||

नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः | नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुते||

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमः|  नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||

नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुते|सूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ||

अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुते| नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते ||

तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय च| नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः||

ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु    कश्यपात्मजसूनवे |तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात ||

देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा | त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः||

प्रसादं कुरु में देव  वराहोरऽहमुपागतः ||

पद्म पुराण में वर्णित शनि के  दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल ,काले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी |

राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें ,गोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्रा,स्वाती या शतभिषा नक्षत्र  में जड़वा कर शनिवार  को  सूर्यास्त  के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प,  काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|रांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है | ॐ  भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,सतनाजा ,नारियल ,  रांगे की मछली ,नीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें | मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है |

केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें , सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां  स्रीं  स्रों सः केतवे नमः का 17000 की संख्या में जाप करें |


पुत्र और पुत्री प्राप्ति का समय कैसे जानें?

संतान प्राप्ति के समय के निर्धारण में यह भी जाना जा सकता है कि पुत्र की प्राप्ति होगी या पुत्री की। यह ग्रह महादशा, अंतर्दशा और गोचर पर निर्भर करता है। यदि पंचम भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह पुरुष कारक हों तो संतान पुत्र और यदि स्त्री कारक हों तो पुत्री होगी।पुरुष ग्रह की महादशा तथा पुरुष ग्रह की ही अंतर्दशा चल रही हो एवं कुंडली में गुरु की स्थिति अच्छी हो तो निश्चय ही पुत्र की प्राप्ति होती है। विपरीत स्थितियों में कन्या जन्म की संभावनाएं होती हैं।

जन्म कुंडली में संतान योग जन्म कुंडली में संतान विचारने के लिए पंचम भाव का अहम रोल होता है। पंचम भाव से संतान का विचार करना चाहिए। दूसरे संतान का विचार करना हो तो सप्तम भाव से करना चाहिए। तीसरी संतान के बारे में जानना हो तो अपनी जन्म कुंडली के भाग्य स्थान से विचार करना चाहिए भाग्य स्थान यानि नवम भाव से करें।

१   पंचम भाव का स्वामी स्वग्रही हो

२.पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो अथवा स्वयं चतु सप्तम भाव को देखता हो.

३.पंचम भाव का स्वामी कोई नीच ग्रह ना हो यदि  भावपंचम में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है.

४.पंचम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति  भावपंचम में नही होनी चाहिये.

५. पंचम भाव का स्वामी को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये. पंचम भाव के स्वामी के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं पंचमभाव का स्वामी नीच का नही होना चाहिये.

६. पंचम भाव का स्वामी उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो.

७ पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करना चाहिए |

८ सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में :बलवान ,शुभ स्थान ,सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त  |

 ८  एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो |

संतान सुख मे परेशानी के योग :

ऊपर बताये गये  ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि  में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है |

पंचम भाव: राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो  तो कठिनता से संतान होती है |

निःसंतान योग:-
पंचम भाव में क्रूर, पापी ग्रहों की मौज़ूदगी
पंचम भाव में बृहस्पति की मौजूदगी
पंचम भाव पर क्रूर, पापी ग्रहों की दृष्टि
पंचमेश का षष्ठम, अष्टम या द्वादश में जाना
पंचमेश की पापी, क्रूर ग्रहों से युति या दृष्टि संबंध
पंचम भाव, पंचमेश व संतान कारक बृहस्पति तीनों ही पीड़ित हों
नवमांश कुण्डली में भी पंचमेश का शत्रु, नीच आदि राशियों में स्थित होना
पंचम भाव व पंचमेश को कोई भी शुभ ग्रह न देख रहे हों संतानहीनता की स्थिति बन जाती है।

पुत्र या पुत्री :

सूर्य ,मंगल, गुरु पुरुष ग्रह हैं |

शुक्र ,चन्द्र स्त्री ग्रह हैं |

 बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं |

 संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र होता  है।

 संतान योग कारक स्त्री ग्रह होने पर पुत्री होती  है |

शनि और बुध  योग कारक हो  पुत्र व पुत्री होती  है|

ऊपर बताये गये  ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि  में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों तो ,  पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी |

 बाधक ग्रहों की क्रूर व पापी ग्रहों की किरण रश्मियों को पंचम भाव, पंचमेश तथा संतान कारक गुरु से हटाने के लिए रत्नों का उपयोग करना होता  है।सूर्य ,मंगल, गुरु पुरुष ग्रह हैं | शुक्र ,चन्द्र स्त्री ग्रह हैं | बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं | संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है | शनि और बुध  योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं | सप्तमान्शेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तिति का सुख मिलता है | गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदु दायक हों तो पुत्र ,स्त्री ग्रह बिंदु दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है |पुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है | पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या सन्तिति की प्रधानता रहती है |

पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है | जितने  नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त ,नीच –शत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी |

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