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एक ही नक्षत्र में जन्म का फल | एक नक्षत्र जन्म दोष | जनन शांति | Janan Shanti Puja

एक ही नक्षत्र में जन्म का फल | एक नक्षत्र जन्म दोष | जनन शांति | Janan Shanti Puja

Ek Nakshatra janam Dosha Shanti puja

Tithi dosh, Nakshatra dosh, Yog dosh, Karan dosh

यदि एक ही परिवार में, एक ही माता पिता और उनकी संतानों में से किन्ही दो का जन्म एक ही नक्षत्र में हुआ हो, तो वह अत्यंत अनिष्टकारी होता है| यह अनिष्ट दोनों में से किसी एक को होता है| यदि भाई–भाई, भाई – बहन, पिता – पुत्र, या माता –पुत्र, या माता-पुत्री, पिता-पुत्री, का जन्म एक ही नक्षत्र में हो तो वह मृत्यु तुल्य कष्टदायक होता है| इसकी शांति अवश्य करनी चाहिए|

पिगोश्च जन्मनक्षत्रे जातस्तु पितृमातृहा|
जन्म अक्षान्षे च तल्लग्ने जातः सद्द्योमृतिप्रदः|| (वशिष्ठ)

एक नक्षत्र जनन की शांति संक्षिप्त रूप से करनी चाहिए|

एक नक्षत्र जन्म दोष माता पिता के नक्षत्र में जन्म

यदि पिता या पुत्र या पिता या पुत्री या माता या सन्तान या दो भाईयो का जन्म एक ही नक्षत्र में हो तो इसे नक्षत्र जन्म दोष कहते है इस स्थिती में दोनों में से एक को अपार कष्टों का सामना करना पड़ता है!तथा दोनों की आपस में अधिक नही बनती ओर अगर इसकी शांति ना की जाये तो जेसे-जेसे उम्र बढती है मुसीबते भी बढती है! महर्षि पराशरके अनुसार ऐसे लोगो को व्यापार कदापि नही करना चाहिए !अगर दशा ,महादशा ख़राब हो तो दोनों में से एक की आयु भी कम होती है!अगर गंडमूल नक्षत्र {रेवती,अश्वनी,ज्येष्ठा,मूल,अश्लेशा एवम मघा }के प्रथम चरण में जन्म हो तो पिता के लिए दुसरे चरण में माता के लिए तीसरे चरण में धन के लिए अनिष्ट कारक होता है!और अगर रिक्ता तिथि का जन्म हो या लग्न में राहु हो तो अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ता है तथा उसके पिता,भाई या माता का आपरेशन या लम्बी बीमारियों के कारण धन का नाश हो जाता है ऐसे में राहू और नक्षत्र शांति जरुर करवानी चाहिए! किसी योग्य पंडित जी से इसकी विधि विधान से पूजा की जाये तो इसकी शांति हो जाती है और इसके दुष्परिणाम ना के बराबर रह जाते है अगर कोई व्यक्ति चाहे और उसे कुछ समझ ना आ रहा हो तो मुझसे सलाह कर सकता है !

माता-पिता के नक्षत्र में हुआ है जन्म तो करें ये उपायRemedies for janam in mata pita Nakshatra

कहते हैं कि यदि माता-पिता या सगे भाई-बहन के नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ है तो उसको मरणतुल्य कष्ट होता है।

उपाय- इस दोष निवारण हेतु किसी शुभ लग्न में अग्निकोण से ईशान कोण की तरफ जन्म नक्षत्र की सुंदर प्रतिमा बनाकर कलश पर स्थापित करें फिर लाल वस्त्र से ढंककर उपरोक्त नक्षत्रों के मंत्र से पूजा-अर्चना करें फिर उसी मंत्र से 108 बार घी और समिधा से आहुति दें तथा कलश के जल से पिता, पुत्र और सहोदर का अभिषेक करें। यह कार्य किसी पंडित के सान्नि‍ध्य में विधिपूर्वक करें।

जनन शांति ज्योतिष, फलित ज्योतिष एवं धर्म शास्त्र के संयोग से बना एक उलझनपूर्ण परिच्छेद है। इस विषय में अनेक ग्रंथों में विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है। प्रारंभ में समाज के बहुतायत लोगों की जनन शांति में रूचि नहीं रहती। लेकिन जब संतति में कोई बिगाड या विकृति होती है तब ज्योतिषी की सलाह ली जाती है। ज्योतिषी सर्वप्रथम तत्कालीन ग्रहों की इष्टता-निष्टता देखकर उसमें कोई त्रुटि न पाने पर जन्मतिथि जांचता है। उसमें भी कोई दोष न मिलने पर वह जनन शांति को दोष बताता है।

कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, अमावस्या, क्षयतिथि, अश्विनी नक्षत्र की पहली घटी (48 मिनट), पुष्य नक्षत्र का दूसरा एवं तीसरा चरण आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा का तीसरा चरण, रेवती नक्षत्र की आखिरी दो घटी (48 मिनट), व्यतीपात, वैधृति, भद्रा योग तथा ग्रहण काल इत्यादि कुयोगों में जन्मी संतति की जनन शांति आवश्यक होती है। अनेक ग्रंथों में इन कुयोंगों में जन्मी बालक को विभिन्न कष्ट होने तथा माता-पिता पर घोर विपत्ति आने का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। इसके अलावा अनेक कुयोगों में जन्मे बालक का जन्म किस तरह अशुभ सूचक है, इसका भी उल्लेख हुआ है।

विविध स्तरों पर गंभीर अध्ययन-मनन करने से यह बात ध्यान में आती है कि जनन शांति के चंगुल से सही-सलामत छूटने वाले बालकों की संख्या सिर्फ 8-10 प्रतिशत ही है। जो बालक इससे पार हो गए हैं, वे सभी अच्छा जीवन जी रहे हैं- यह बात भी नहीं है। उनके हिस्से में भी संकट और कष्ट आते हैं। इसका कारण पाप ग्रह होते है। लेकिन शास्त्रोक्त विधि द्वारा शांति करवाने के बाद भी बालक को शांति का फल नहीं मिलता। ग्रहस्थिति उत्कृष्ट होने तथा शांति दोष होने पर भी जीवन क्रम बिगडा रहता है।

कुछ ज्योतिर्विदों की राय में दुष्टकाल का परिणाम केवल एक ही वर्ष रहता है तो फिर आश्लेषा नक्षत्र के अंतिम चरणों में जन्मी कन्या अपनी सास का नाश किस तरह कर सकती है क्योंकि बहू के आने तक तो कई वर्ष बीत चुके होते हैं। समाज में ऎसे कई उदाहरण देखने में आते है कि आश्लेषा नक्षत्र के आखिरी तीन चरणों में जन्मी अनेक कन्याओं की सांस अंत तक ह्रष्ट-पुष्ट रहत हैं। ऎसी स्थिति में जन्म-समय गलत होने की दलील दी जाती है। परंतु अगर सही जन्म-समय लिखा हो तो फिर अलग-अलग प्रकार की कुंडलियां बनाने को कहा जाता है। यदि आश्लेषा नक्षत्र के दोष के बावजूद सास जीवित रहे तो उसके ग्रह अति बलवान होने की बात बताई जाती हैं। कुल मिलाकर यह बात सभी नक्षत्रों एवं योगों की है। संक्षेप में जनन शांति का परिणाम एक गूढ प्रकार है।

वैसे पापभीरू, भयग्रस्त एवं कम जानकारी रखने वाले व्यक्ति जनन शांति अवश्य करवा लेते हैं। लेकिन जनन शांति से बालक को संकटों से छुटकारा मिल जाएगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं दी जाती। कष्ट दूर न होने और शांति का अनुकूल परिणाम न मिलने पर शांति में दोष बताया जाता है और पुन: जनन शांति करने को कहा जाता है। 

ऎसी जनन शांति एक पहेली है। उसमें से विद्वान आदमी भी बाहर नहीं निकल पाते। ऎसे समय निश्चित रूप से क्या करें, यह यक्षप्रश्न है। यदि किसी भी सलाह लें तो वह निरपेक्ष होगा, ऎसी स्थिति कम संभव होती है। कारण-सलाह देने वाले के संबंध शांति करने वाले पुरोहित या मंत्र-तंत्र करने वाले देवऋषि के साथ होने वाले के संबंध शांति करने वाले पुरोहित या मंत्र-तंत्र करने वाले देवऋषि के साथ होने की संभावना रहती है। परंतु यही स्थिति धर्म शास्त्र के प्रति श्रद्वा नष्ट होने का कारण बन सकता है। इसलिए समाज को चाहिए कि वह थोडा अंतर्मुख बनकर विचार करें।

जनन शांति का असर वास्तव में होता है- यदि यह बात मान ली जाए तो किसी बालक की जनन शांति बचपन में न होने पर प्रौढ अवस्था में करवाना हास्यास्पद है। यदि किसी बालक को बचपन में बालघुट्टी या जन्मघुट्टी न दी गई हो तो उसकी भरपाई करने के उद्देश्य से उसे उम्र के 25वें वर्ष बालघुट्टी देना तर्क विसंगत होगा। इसी तरह प्रौढावस्था में जनन शांति करवाना भी बचपना ही होगा। क्या मूल में जनन शांति का दोष सचमूच रहता है। यदि हां तो उसका प्रभाव सभी लोगों पर अलग-अलग रहता है अथवा एक समान ही रहता है-इस विषय में निरीक्षणात्मक, तुलनात्मक तथा संशोधनात्मक अध्ययन आवश्यक है। इसके अलावा यदि बालक के जीवन पर जनन का दुष्प्रभाव सिद्ध हो जाए तो इसे शांति कर्म से टाला जा सकता है या नहीं, इस भी पूर्ण विचार करना आवश्यक होगा। अपने अनेक जन्मों के संचित एवं प्रारब्ध के सहारे जन्म लेने वाले बालक का क्रियमाण जब इहजन्म में आकार लेता है तब उसके ऊपर स्वयं के प्रारब्ध का, माता-पिता के पूर्व कर्मो एवं संस्कारों का, आस-पास के सामाजिक वातावरण तथा यार-दोस्तों के सहचर्य का संकलित परिणाम पडता है।

कई बार ग्रहों, उनकी दृष्टि एवं स्थानों के परस्पर योग-प्रतियोग का परिणाम भी गौण होता है। कारण-ग्रहों की दिशा तथा दशा बदलने की सामथ्र्य जिस शक्ति में होता है,उसका सहयोग गुरू या इष्टदेवता के रूप में ले लिया जाता है। फलत: दोष का नाश होकर मनुष्य उत्साही बनता है। ऎसे वक्त जनन शांति करने की जरूरत नहीं रहती है। इससे मन में अस्थिर भावना जागती है।

जनन शांति पूजा Janan Shanti Puja

Tithi dosh, Nakshatra dosh, Yog dosh, Karan dosh

तिथी दोष पूजा : Tithi Dosha Shanti Puja

पंचांगों के पांच अंग : तिथी , वार, नक्षत्र, योग, और करण ये मिलके पंचांग की निर्मिती होती है|

अगर किसी जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी या अमावस्या या शुक्ल पक्ष की प्रति पक्ष में होता है, तो उस जातक को इसका दोष लगता है| अत: इन कारणों के कारणों से शांती पूजा आवश्यक है|

नक्षत्र दोष पूजा Nakshatra dosh shanti puja

नक्षत्रों की संख्या कुल २७ होती है| परंतु इन नक्षत्रों में जातक का जन्म होने के कारण दोष लगता है|

अश्विनी
भरणी
पुष्य (२रा, ३रा, चरण)
आश्लेषा
मघा (प्रथम चरण)
उत्तरा
चित्रा
विशाखा
जेष्ठा
मुल
पूर्वाषाढ़ा
शततारका
इन स्थितियों में शांती पूजा विधी आवश्यक होती है|

योग दोष पूजा yog dosha nivaran puja

निचे दिये हुए योग में किसी जातक का जन्म होता है तो उसे दोष लगता है| इसका परिणाम उसके जीवन में अनेक प्रकार से होता है|
विश्वकुंभ
अतिगंड
शुल
गंड
व्याघात
वज्र
व्यतीपात
परिघ
ऐंद्र
वैधृति

इन स्थितियों में शांती पूजा विधी आवश्यक होती है|

करण दोष पूजा Karan dosh shanti puja

करण की कुल संख्या ११ होती है| परंतु नीचे दिए हुए करण में जातक का जन्म होने के कारण इसका दोष लगता है| इसका परिणाम जातक के जीवन में बुरा प्रभाव डालता है|
विष्ठी (भद्रा)
शकुनी
नाग

Janan dosh Shanti upay 


1. कृष्ण चतुर्दशी को हुआ है जन्म तो करें ये उपाय

चतुर्थी को 6 भागों में बांटा गया है। प्रथम भाग में जन्म होने पर शुभ होता है, द्वितीय भाग में जन्म हो तो पिता का नाश, तृतीय भाग में जन्म हो तो माता की मृत्यु, चतुर्थ भाग में जन्म हो तो मामा का नाश, पंचम भाग में जन्म हो तो कुल का नाश, छठे भाग में जन्म हो तो धन का नाश या जन्म लेने वाले स्वयं का नाश होता है।

उपाय : इस दोष के निवारण के लिए भगवान गणेश की पूजा करें या सोमवार का व्रत रखकर शिवजी की पूजा करें। हनुमान चालीसा पढ़ें या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहें। यह जरूरी है कि दक्षिणमुखी मकान को छोड़ दें।


2. अमावस्या को हुआ है जन्म तो करें ये उपाय

कहते हैं कि इस दिन जन्म लेने वाले बालक का जीवन संघर्षमय होता है। इससे घर में दरिद्रता आती है। अत: अमावस्या के दिन संतान का जन्म होने पर शांति अवश्य करानी चाहिए। अमावस्या के देवता पितरों के अधिपति अर्यमा हैं। अमावस्या तिथि में जब अनुराधा नक्षत्र का तृतीय व चतुर्थ चरण होता है तो सर्पशीर्ष कहलाता है। सर्पशीर्ष में शिशु का जन्म दोष पूर्ण माना जाता है।


उपाय : इस दोष के निवारण हेतु कलश स्थापना करके उसमें पंच पल्लव, जड़, छाल और पंचामृत डालकर अभिमंत्रित करके अग्निकोण में स्थापना कर दें फिर सूर्य, चंद्रमा की मूर्ति बनवाकर स्थापना करें और षोडशोपचार या पंचोपचार से पूजन करें। फिर इन ग्रहों की समिधा से हवन करें, माता-पिता का भी अभिषेक करें और दक्षिणा दें और इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराएं। किसी पंडित के सान्निध्य में ही यह पूजन विधिपूर्वक कराएं। श्राद्ध कर्म करते रहने से भी यह शांति हो जाती है। सर्पशीर्ष योग में जन्म होने पर रुद्राभिषेक कराने के बाद ब्राह्मणों को भोजन एवं दान देना चाहिए।


3. भद्रा इत्यादि में हुआ है जन्म तो करें ये उपाय

भद्रा, क्षय तिथि, व्यतिपात, परिध, वज्र आदि योगों में जन्म तथा यमघंट इत्यादि में जो जातक जन्म लेता है, उसे अशुभ माना गया है।

उपाय- उपरोक्त दुर्योग में यदि किसी का जन्म हुआ है तो उसे यह दुर्योग जिस दिन आए, उसी दिन इसकी शांति कराना चाहिए। इस दुर्योग के दिन विष्णु, शंकर इत्यादि की पूजा व अभिषेक शिवजी मंदिर में धूप, घी, दीपदान तथा पीपल वृक्ष की पूजा करके विष्णु भगवान के मंत्र का 108 बार हवन कराना चाहिए।


4. यदि हुआ है जन्म ग्रहण काल में तो करें ये उपाय

यदि किसी जातक का जन्म ग्रहण काल अर्थात सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण या अन्य किसी ग्रहण में हुआ है तो उसे व्याधि, कष्ट, दरिद्रता और मृत्यु का भय होता है।

उपाय- ग्रहण काल के जन्म की शांति के उपाय किसी पंडित के सान्निध्य में विधिपूर्वक पूर्ण करें। इसके अलावा राहु और केतु का दान करते रहें।


5. संक्रांति जन्म दोष

सूर्य की 12 संक्रातियां होती हैं। उनमें से कुछ शुभ और कुछ अशुभ मानी गई हैं। ग्रहों की संक्रांतियों के नाम घोरा, ध्वांक्षी, महोदरी, मंदा, मंदाकिनी, मिश्रा और राक्षसी इत्यादि हैं। कहते हैं कि सूर्य की संक्रांति में जन्म लेने वाला दरिद्र हो जाता है इसलिए शांति करानी आवश्यक है।

उपाय- इस दोष निवारण हेतु विधि-विधान के साथ नवग्रह का यज्ञ करते हैं। उत्तरमुखी मकान में रहें और लक्ष्मी माता की पूजा करें।


6. माता-पिता के नक्षत्र में हुआ है जन्म तो करें ये उपाय

कहते हैं कि यदि माता-पिता या सगे भाई-बहन के नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ है तो उसको मरणतुल्य कष्ट होता है।

उपाय- इस दोष निवारण हेतु किसी शुभ लग्न में अग्निकोण से ईशान कोण की तरफ जन्म नक्षत्र की सुंदर प्रतिमा बनाकर कलश पर स्थापित करें फिर लाल वस्त्र से ढंककर उपरोक्त नक्षत्रों के मंत्र से पूजा-अर्चना करें फिर उसी मंत्र से 108 बार घी और समिधा से आहुति दें तथा कलश के जल से पिता, पुत्र और सहोदर का अभिषेक करें। यह कार्य किसी पंडित के सान्नि‍ध्य में विधिपूर्वक करें।


7. गंडांत योग में जन्मे जातक

पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है। इसी तरह से लग्न गंडांत होता है।

मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गंडांत कहा जाता है। मीन की आखिरी आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की आखिरी आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की आखिरी आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गंडांत कहलाती है। इन गंडांतों में ज्येष्ठा के अंत में 5 घटी और मूल के आरंभ में 8 घटी महाअशुभ मानी गई है। यदि किसी जातक का जन्म उक्त योग में हुआ है तो उसे इसके उपाय करना चाहिए।


ज्येष्ठा गंड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है। मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति कठिन मानते हुए 3 गायों का दान बताया गया है। रेवती और अश्विनी में 2 गायों का दान और अन्य गंड नक्षत्रों के दोष या किसी अन्य दुष्ट दोष में भी एक गाय का दान बताया गया है।

ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है। आश्लेषा के अंतिम 3 चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम 3 चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं। अगर पति से बड़ा भाई न हो तो यह दोष नहीं लगता है।


मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है। चौथा चरण जातक के लिए शुभ होता है।

उपाय- गंडांत योग में जन्म लेने वाले बालक के पिता उसका मुंह तभी देखें, जब इस योग की शांति हो गई हो। इस योग की शांति हेतु किसी पंडित से जानकर उपाय करें।


पाराशर होरा ग्रंथ शास्त्रकारों ने ग्रहों की शांति को विशेष महत्व दिया है। फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वरजी ने एक स्थान पर लिखा है कि-

दशापहाराष्टक वर्गगोचरे, ग्रहेषु नृणां विषमस्थितेष्वपि।
जपेच्चा तत्प्रीतिकरै: सुकर्मभि:, करोति शान्तिं व्रतदानवन्दनै:।।

अर्थात जब कोई ग्रह अशुभ गोचर करे या अनिष्ट ग्रह की महादशा या अंतरदशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान, वंदना, जप, शांति आदि द्वारा उसके अशुभ फल का निवारण करना चाहिए।

तिथि दोष शांति पूजा TithiDosha Shanti Puja upay

तिथि दोष शांति पूजा Tithi Dosha Shanti Puja upay


Janam Dosha - If Child birth on below tithis then it requires shanti
1. Amavasya birth
2. Krishnapaksh Chaturdashi birth
3. Kshaya Tithi birth
4. Gand Tithi Birth

1. Birth on Amavasya – Birth of a child or any other animal like elephant, horse, and buffalo on Krishnapaksh Amavasya results to the destruction of property at that place. Whereas birth of the cow, bird, deer, or maid child is related to the financial losses.

If it is Kuhu Amavasya then there is a destruction of life and money both. If born on Darsh Amavasya then parents become poor, or become blind. 

In this situation it is must to compose or balance the Amavasya Tithi by performing the shanti puja and offerings by a priest (Brahmana), it helps the child from self destruction.
Related God- Rudra, Indra, Pitr.
Ten offerings- cow, cloths, gold, land, til, ghee, grains, jaggery, salt and silver.

2. Krishnapaksh Chaturdashi Birth:-
Krishnapaksh Chaturdashi is divided into six parts.Its first part is auspicious; however its other parts are very inauspicious. The second part is associated with the loss of father, third part is death of mother, third part is destruction of maternal uncle and his genetics, fourth part destroys the self lineage and sixth part is the loss of money and children. Therefore any child born with the second to sixth part need to do Gomukh Prasav Shanti.                                                   God- RUDRA.


3. Kshaya Tithi Birth
There is no special crisis related with the child born under Kshaya Tithi. However the shanti puja is still favorable.

4. Birth on Gand Tithi 
(BIRTH in the later ghatika’s of Panchami, Dashmi, Poornima and Amavasya Tithi or in the First ghatika (1 ghatika= 24 minutes) of Shasthi, Ekadashi, Krishna Pratipada and Shukla Pratipada) Tithi then it falls under “Tithi Gand”.

In Tithi Gand, birth of a Purvardhan child then immediately this shanti Puja should be performed after the jananshauch (bathe after 10 days of the birth of child).  

Offerings should be bull and wealth. If the child is born Uttarardhan in the Tithi Gand then only shanti needs to be performed. Chaturthi’s 8 ghatika (8*24 minutes), Shashti’s 9, Ashtami’s 14, Navami’s 25, Dwadashi’s 10 and Chaturdashi 5 ghatika’s are supposed to be prohibited.


जनन शांती – माहिती ,कधी जनन शांती करावी
जनन शांती म्हणजे जन्माच्या वेळेचा अशुभ असा काळ विविध वाईट योगावर जन्म झाल्यानंतर त्या बाळावर येणारी संकटे, पीडा व त्याच्या जवळच्या नातेवाईकास होणारा मानसिक त्रास याचे वर्णन आपल्या ग्रंथात आढळते. आणि या कुयोगामुळे त्या बाळाला सुद्धा मानसिक त्रास, आरोग्य विषयक समस्या, शैक्षणिक उत्कर्षास बाधा होणे असा प्रकारचा त्रास होऊ शकतो. त्यामुळे आपल्या ऋषी मुनींनी यावर सविस्तर उपाय करून ठेवले आहेत. आपल्या हातुन त्या देवतेचे विधिवत पूजन झाल्यास तो दोष निघून जातो व प्रसन्नता लाभते.


शक्यतो बालकाच्या जन्मापासून  बाराव्या दिवशी जनन शांती करावी त्यावेळी मुहूर्त वगैरे पाहण्याची आवश्यकता नाही त्यावेळी नाही जमल्यास योग्य दिवशी मुहूर्त पाहून अग्नी पृथ्वी वर असताना  योग्य गुरुजींकडून करून घ्यावी .

सर्व साधारण पुढील कुयोगावर जन्म झाल्यास शांती करतात. – तिथी , कृष्ण चतुर्दशी , अमावस्या , क्षयतिथी – रुद्र अभिषेक + शांती

पंचमी + षष्ठी, दशमी – एकादशी, पौर्णिमा – प्रतिपदा – अमावस्या प्रतिपदा – ह्यांच्या संधीकालच्या दोन घटी यांना तिथी गंडात म्हणतात. लग्न मुंड

(शांती) कर्क – सिंह, वृश्चिक – धनु – मीन – मेष, ह्यांच्या लग्न संधीच्या घटिकेला लग्न गंडांत म्हणतात.

अन्य कारणे : यमल (जुळी संतती), एकनक्षत्र (भावंडांचे एकच नक्षत्र किंवा आई/वडील व मूल यांचे एकच नक्षत्र असल्यास), त्रिकप्रसव (तीन पुत्रांनंतर कन्याजन्म किंवा तीन कन्यांनंतर पुत्रजन्म), सदंत (दात असलेल्या बालकाचा जन्म), अधोमुखजन्म (पायाळू), षड्ग्रहादि (पत्रिकेतील एकाच स्थानात ६ ग्रहांची युती असेल तर), (पौष महिन्यात स्त्रीची पहिली प्रसूती झाली तर), विपरीतजनन (चमत्कारिक अवयव, अवयवन्यूनता व अवयवाधिक्य), इ. या अशा वेगवेगळ्या शांती मध्ये देवता त्यांच हवन वेगवेगळं असतं तसेच जनन शांती सोबत गोप्रसव शांत केली जाते त्यामधे गाईची पूजा, गाईला तीन प्रदक्षिणा गाईने बालकाला हुंगणे अवघ्राण म्हणजे मातापित्यांनी बालकाची टाळू हुंगणे इत्यादी अंतर्भूत असते .  शिवाय जातकाचा जन्म झाल्यावर योग्य ज्योतिषांकडून त्याची पत्रिका बनवून घ्यावी योग्य वेळी ह्या सगळ्या शांती केल्या म्हणजे बालकाचे भविष्य उज्वल होते

धर्मसिंधुप्रमाणे जननशांती शास्त्रार्थ
१) मूळ नक्षत्राच्या प्रथम चरणावर पुत्राचा जन्म झाल्यास पित्याला त्रास संभवतो. तिसर्‍या चरणी धननाश व चतुर्थ चरणी कुलनाश होतो. तसेच मूळ नक्षत्राच्या प्रथम चरणावर पुत्रीचा जन्म हा सासऱ्यासाठी व द्वितीय चरण सासू

साठी त्रासदायक ठरते. पुढील चरणांचे फल तसेच जाणावे. म्हणून मूळ नक्षत्राच्या कोणत्याही चरणावर जन्म झाला असल्यास शांती करावी. ज्येष्ठा नक्षत्राच्या शेवटच्या दोन घटिका म्हणजे ९६ मिनिटे व मूळ नक्षत्राच्या सुरवातीच्या दोन घटिका म्हणजे ९६ मिनिटे या १९२ मिनिटांच्या कालावधीस अभुक्त मूळ असे म्हणतात. अभुक्त मूळ असता जन्म झाल्यास आठ वर्षे बालकास अन्यत्र ठेवावे (म्हणजेच त्याचा त्याग करावा.) व त्यानंतर त्याची शांती करावी. मूळ नक्षत्राचा दोष आठ वर्षे पर्यंत असतो. म्हणून इतका काल पर्यंत मुलाचे दर्शन वर्ज्य करावे.

२) आश्‍लेषा नक्षत्राच्या द्वितीय चरणी धननाश, तिसर्‍या चरणी मातेला व चतुर्थ चरणी पित्याला तसेच सासू–सासरे यांना त्रासदायक असते . या करिता आश्‍लेषा नक्षत्राच्या कोणत्याही चरणावर जन्म झाला असल्यास शांती करावी.

३) ज्येष्ठा नक्षत्रावर कन्या जन्मल्यास ज्येष्ठ दिरास त्रास. ज्येष्ठा नक्षत्राचे समान दहा भाग केल्यास पहिल्या भागात बालकाचा जन्म झाल्यास – मातेची आई, दुसरा भाग – आईचे वडिल, तिसरा भाग – मामा , चौथा भाग – माता, पाचवा भाग – स्वतः , सहावा भाग – गोत्रज, सातवा भाग – पिता व माता अशा दोन्ही कुलांसाठी त्रासदायक , आठवा भाग – ज्येष्ठ बंधु, नववा भाग – सासरा व दहावा भाग – सर्वांना त्रासदायक ठरू शकतो. याकरिता ज्येष्ठा नक्षत्रावर जन्मलेल्या बालकांची शांती करावी.

टीप – म्हणून मूळ, आश्‍लेषा, ज्येष्ठा नक्षत्राच्या कोणत्याही चरणावर जन्मलेल्या बालकाची शांती करून घ्यावी.

४) चित्रा नक्षत्राचा पूर्वार्ध – पुष्य नक्षत्राचे मधले दोन चरण, पूर्वाषाढा – तिसरा चरण, उत्तरा फाल्गुनी – प्रथम चरण या नक्षत्रांवर बालकाचा जन्म झाल्यास पिता, पुत्र, भ्राता व स्वतः यांचा नाश होतो. याकरिता – अ) चित्रा नक्षत्राचा पूर्वार्ध – गोप्रसवशांति करून नक्षत्र देवतेची पूजा व अजा दान करावे.

ब) पुष्य नक्षत्राचे मधले दोन चरण – गोप्रसव शांति करून नक्षत्र देवतेची पूजा व गाईचे दान करावे.

क) पूर्वाषाढा – तिसरा चरण – नक्षत्र देवतेची पूजा व सुवर्ण दान करावे.

ड) उत्तरा फाल्गुनी प्रथम चरण – नक्षत्र देवतेची पूजा व तिलपात्र दान करावे.

५) मघा नक्षत्राच्या पहिल्या चरणात जन्म झाल्यास मूळ नक्षत्राप्रमाणे फळ जाणावे त्या ठिकाणी गोप्रसवशांती, नक्षत्र देवतेचे पूजन व ग्रहमख ही करावी. मघा नक्षत्राच्या पहिल्या १९२ मिनिटात जन्म झाला असल्यास नक्षत्र गंडातशांती करावी.

६) रेवती नक्षत्राच्या शेवटच्या १९२ मिनिटात व अश्विनी नक्षत्राच्या पहिल्या १९२ मिनिटात जन्म झाला असल्यास नक्षत्र गंडांत शांति करावी. अन्य वेळा जन्म असेल तर शांती नाही.

७) विशाखा नक्षत्राच्या चतुर्थ चरणी जन्म झाला असल्यास फक्त ग्रहमुख करावा. नक्षत्रशांती नाही.

८) इतर सर्व नक्षत्रांच्या शांती नाहीत.

९) शांतीचा मुख्य काल – जन्म झाल्यावर बाराव्या दिवशी अथवा जन्मनक्षत्री अथवा शुभ दिवशी शांति करावी. जन्म झाल्यावर बाराव्या दिवशी शांति करावयाची असेल तर सांगितलेली नक्षत्रे, आहुति, अग्निचक्रे इत्यादी पहाण्याची जरूरी नाही. इतर काली शांती करावयाची असेल तर अवश्य पहावे. अग्निचक्र पंचांगात दिलेले असते. ते पहावे किंवा शु. १ पासून चालू तिथिपर्यंत तिथि मोजून येणार्‍या संख्येत १ मिळवावा. रविवार पासून चालू दिवसांपर्यंत दिवस मोजावेत. तो अंक मागील अंकात मिळवावा. या बेरजेस ४ ने भागून बाकी ० किंवा ३ उरल्यास अग्नि भूमीवर, २ उरल्यास पाताळी, १ उरल्यास स्वर्गलोकी अग्नि जाणावा. शांतीचे दिवशी अग्नि भुमीवर असावा. आहुति पाहण्याचा प्रकार असा – सूर्यनक्षत्रापासून आरंभ करून चंद नक्षत्रापर्यंत नक्षत्रे मोजावीत. ३ ३ नक्षत्रे मिळून एक ग्रहाचे मुखी आहुति पडते. पहिल्या ३ नक्षत्री सूर्याचे मुखी, दुसर्‍या ३ नक्षत्री बुधाचे मुखी, तिसर्‍या ३ नक्षत्री शुक्राचे मुखी, चौथ्या ३ नक्षत्री शनीचे मुखी, पाचव्या ३ नक्षत्री चंद्राचे मुखी, सहाव्या ३ नक्षत्री मंगळाचे मुखी, सातव्या ३ नक्षत्री गुरूचे मुखी, आठव्या ३ नक्षत्री राहूचे मुखी, नवव्या ३ नक्षत्री केतूचे मुखी आहुति जाणावी. ज्या दिवशी शुभ ग्रहाचे मुखी आहुति पडते तो दिवस शुभ व पापग्रहाचे मुखी आहुति असेल तर तो अशुभ दिवस मानावा.

शांतीकर्मामध्ये अग्निचक्र अवश्य पहावे.

तीन उत्तरा, रोहिणी, श्रवण, धनिष्ठा, शततारका, पुनर्वसु, स्वाती, मघा, अश्विनी, हस्त, पुष्य, अनुराधा व रेवती ही नक्षत्रे असताना, आणि गुरुशुक्राचा अस्त नसताना व मलमास नसेल तर तो दिवस शुभ मानावा.

Death Day & Time Related Dosham

Death Day & Time Related Dosham

Death time dosha’s are 3 types.

1. Tidhi Dosham
2. Nakshatra Dosham
3. Vaara / Day Dosham

If death occurs in the following tidhi’s, death will have "Tidhi dosham". The following tidhi’s are not good for death
Padyami, Vidiya, Shashti, Ashtami, Ekadasi, Dwadasi, Trayodasi, Chaturdasi & Amavasya

If death occurs in the following nakshatram’s, the death will have "Nakshatra dosham". The following nakshatram’s are not good for death
Rohini, Dhanishta, Satabisham, Purvabhadra, Revati, Mrigasira, Punarvasu, Uttara, Chitta, Visakha, Uttarashada, Magha

If death occurs in the following days, the death will have "Vaara dosham". The following days are not good for death
Sunday, Tuesday, Friday, Saturday

If death has only one dosha (regarding Tidhi / Nakshatram / Day) it is called “Ekapadha Dosham”.  
If death has two doshams (any combination among Tidhi, Nakshatram, Day) It is called “Dwipada dosham”  
If death has all the three doshams (Tidhi dosham, Nakshatra Dosham & Vaara Dosham) it is called as “Tripadha Dosham”.

REMEDIES:

For Ekapadha Dosham’s family members should not live in the house for 1 month after completion of Dinakaryam.

For Dwipadha Dosham’s family members should not live in the house for 6 months after completion of Dinakaryam.

For Tripadha Dosham’s family members should leave the house for 1 year after completion of Dinakaryam and reentry into the house should be done with Chandi homam.

Shani Sade Sati / Elinati Sani Dasa

Shani Sade Sati / Elinati Sani Dasa 

Elinati Shani Dasa is a gochara (birth star) based period. It won’t give good results to anyone. Even though Saturn position in janma kundali is very good, Elinati Shani period won’t do well. On an average a person will get this Elinati Shani period for 3 turns during his life time. Each turn consists of seven and half years.

In gochara, if Saturn is situated in 1st, 2nd and 12th houses the time period is called Elinati Shani Dasa. During seven and half years turn, first 5 years will give very bad results, remaining two and half years will give some relief.

If Saturn is situated in 1st house or in janma Rasi during Elinati Shani, it will cause financial losses, mental instability and emotional issues, disputes among family, property loses, physical health issues etc

If Saturn is situated in 2nd house from janma Rasi during Elinati Shani, it will cause insults, disappointments, heavy burdens, intense physical or mental sufferings etc

If Saturn is situated in 12th house from janma Rasi during Elinati Shani, it will cause total financial loses, court issues, failures, prolonged hurdles, problems with life partner etc

Remedial procedure:

“28 days Shani Graha Poorna Kumbha Japam” for every two and half years during this Elinati Shani Dasa provide Shani shanti and prevents major loses.

Chant the shani garaha kavacham daily , which will be given during above mentioned japam.

Place Shani graha Yantram in pooja room.

Kala Sarpa Dosham / Naga Dosham

Kala Sarpa Dosham / Naga Dosham

In a natives birth chart or raasi chakram 7 planets out of nine planets or some planets out of 7 planets get trapped between Rahu and Ketu. Rahu & Ketu will not allow these planets to give their positive rays to the native. This is called  sapra dosham. There are several types of Sarpadoshams like Kaala sarpa dosham (its the major grade of sarpa dosham), Sarpa dosham to Marriage and matrimonial life, Sarpa dosham to health, Sarpa dosham to life longevity , Sarpa dosham to children related issues etc.  These dosha's can cause

Education Failures

Delay in life settlements

Severe or long standing health problems

Persistant Bad Luck

Financial losses in every investment

Delay in marriage settlements

Problems in matrimonial life

Problems in getting children

Problems in getting jobs

Loss of support from near and dear etc.

TYPES OF KAALA SARPA DOSHAM:

There are 12 types of kaala sarpa dosham's present in our jyothisya sastra based on positon of planets Raahu and Ketu. They are as follows.

01. Anantha Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 1st house & Ketu is in 7th house

02. Gulika Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 2nd house & Ketu is in 8th house

03. Vasuki Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 3rd house & Ketu is in 9th house

04. Shankupala Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 4th house & Ketu is in 10th house

05. Padmana Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 5th house & Ketu is in 11th house

06. Mahapadman kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 6th house & Ketu is in 12th house

07. Takshaka Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 7th house & Ketu is in 1st house

08. Karkotaka Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 8th house & Ketu is in 2nd house

09. Sanchichuda Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 9th house & Ketu is in 3rd house

10. Ghataka Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 10th house & Ketu is in 4th house

11. Vishidana Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 11th house & Ketu is in 5th house

12. Sesha naga Kaala Sarpa Dosham: Raahu is in 12th house & Ketu is in 6th house

Dosha nivarana method:
We recommend "Raahu - Ketu sila vigraha pratishtapana sahita Kaala sarpa dosha nivarana puja"


Kuja Dosham / Mangalik Dosham / Angaraka Dosham

Kuja Dosham / Mangalik Dosham / Angaraka Dosham


Kuja dosham or Mangalik dosham is considered as a very important factor in match making. This kuja dosham causes problems in match settlement, problems in matrimonial life, severe health issues of spouse, infertility and even life partner’s death.

If a person has Kuja graham or Mars planet in 2nd or 4th or 7th or 8th or 12th houses of janma kundali it is known as Kuja Dosham or Mangalik.

The most important point to be remembered is a person having kuja dosham should marry a person who also has kuja dosham. Marriage between a person having kuja dosham and a person not having kuja dosham should not be done. And there are several rules of planetary combinations which could cancel kuja dosham. Don’t get panic by knowing kuja dosha presence status while getting online software based programs. Computer algorithms couldn’t consider all possible Graha combinations which can cancel kuja dosham, so get proper advice from an astrologer before having marriage.

REMEDIES:
If presence of Kuja dosham is confirmed by an experienced astrologer, effects of kuja dosham can’t be removed completely, only we can reduce. Performing Kuja Mandaparadhana Puja is one of the best ways to reduce kuja dosha effects. The most important thing is before getting marriage, get proper match comparability report regarding kuja dosham.

Jatak Dosham जातक दोष | जन्म नक्षत्र दोष पूजा उपाय | Birth Star (Janma Nakshatra) Dosham's - Remedies and puja

Jatak Dosham जातक दोष | जन्म नक्षत्र दोष पूजा उपाय | Birth Star (Janma Nakshatra) Dosham's - Remedies and puja


According to  Maharshi Prasasara
we have so many types of jataka doshams. Here we are discussing few important jataka dosham’s which will influence very important issues. 

1. Janma Nakshatram Dosham or Birth Star Dosham
2. Balarishta Dosham
3. Kuja Dosham or Mangalik Dosham
4. Kala Sarpa Dosham or Naga Dosham
5. Shani Dasa Dosham
6. Mruiti Dosham or Death Relatd Dosham


Birth Star (Janma Nakshatra) Dosham's - Remedies 

If a baby boy or baby girl born in Aswini nakshatram 1st charanam, nakshatra dosham affects father and child.   7 days Ketu Graha Poorna Kumbha Japam should be performed on the name of father and child before 3 months of baby’s age. If birth occurs in 2nd, 3rd and 4th charanams, no shanti is required.

If a baby boy born in Bharani nakshatram 3rd charanam, 20 days Sukra Graha Poorna Kumbha Japam has to be done on the name of father before 27 days of baby’s age and If it is a baby girl, same Japam has to be done on the name of mother as well as the baby girl before 27 days after birth. Remaining charanams don't need any shanti.

If a baby boy born in Kritika nakshatra 3rd charanam, 6 days Ravi Graha Poorna Kumbha Japam has to be done on the name of father as well as on the name of boy before 16 days after birth and If it is a baby girl, same Japam has to be done on the name of mother before 16 days after birth. Remaining charanams don't need any shanti.

If a baby (either boy or girl) born in Rohini nakshatram 1st and 3rd charanams, 10 days Chandra Graha Poorna Kumbha Japam is required on the name of mother before 4 months after birth. If birth occurs in 2nd charanam 10 days Chandra Graha Poorna Kumbha Japam is required on the names of mother and the father before 4 months after birth. If it is in 4th charanam, 10 days Chandra Graha Poorna Kumbha Japam and suvarna danam is required on the name of menamama (mother's brother) before 4 months after birth.

If a baby boy or baby girl born in Mrigasira nakshatram, no dosham is present and there is no need for dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or baby girl born in Arudra nakshatram’s 4th charanam, Anna danam is required on the name of mother before 1 year after baby’s birth. Remaining charanams don't need any puja's.

If a baby boy or baby girl born in Punarvasu nakshatram, there is no need for any dosha nivarana irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl born in Pushyami nakshatram’s 1st charanam 19 days Shani Graha Poorna Kumbha Japam has to be performed on the name of menamama (mother’s brother) If a baby boy born in 2nd and 3rd charanams of Pushyami nakshatram during day time (between sunrise and sunset) 19 days Shani Graha Poorna Kumbha Japam is required for father. If a baby girl born in 2nd and 3rd charanams of Pushyami nakshatram during night time (after sunset) 19 days Shani Graha Poorna Kumbha Japam is required for mother. 4th charanam has no dosham. All dosha nivarana japams should be performed before 6 months of baby’s age.

If a baby boy or girl born in Aslesha nakshatram’s 1st charanam no dosham is present. For 2nd charanam Anna danam is required on the name of baby. If it is 3rd charanam Anna danam is required on the name of mother and if it is 4th charanam Anna danam is required on the name of father. This Anna danam should be performed before 1 year after birth.

If a baby boy or girl born in Magha nakshatram1st charanam, 7 days Ketu Graha Poorna Kumbha Japam required on the name of father and baby before 5 months after birth. If a baby boy or girl born in 2nd charanam no dosham is present. If a baby boy born in 3rd charanam 7 days Ketu Graha Poorna Kumbha Japam required on the name of father before 5 months after birth and if a baby girl born in 3rd charanam same Japam is required on the name of mother before 5 months after birth. Birth in 4th charanam has no dosham.

If a baby boy or girl born in Pubha nakshatram no shanti pooja is required, irrespective of charanams.

If a baby boy or girl born in Uttara nakshatram’s 1st charanam and 4th charanams 6 days Ravi Graha Poorna Kumbha Japam is required on the names of parents and other siblings before 3 months after birth. A baby born in this nakshatra should be kept away from his/her father until 2 months. Births in 2nd and 3rd charanams have no doshams.

If a baby boy or girl born in Hasta nakshatram no dosham is present irrespective of any charanam.

If the baby boy or girl is born in Chitta nakshatram’s 1st charanam, 7 days Kuja Graha Poorna Kumbha Japam is required on the name of father before 6 months after birth. If birth occurs in 2nd charanam 7 days Kuja Graha Poorna Kumbha Japam and Anna danam is required on mother’s name. If birth occurs in 3rd charanam Kuja Graha mandaparadhana pooja is required on the names of siblings. Birth in 4th charanam has no dosham.

If a baby boy or girl born in Swathi nakshatram, there is no need for any dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl born in Visakha nakshatra's 4th charanam, the mother may be in a risk. 16 days Guru Graha Poorna Kumbha Japam is needed on the name of mother before 12 month after birth. Birth in remaining charanams needs no shanti.

If a baby boy or girl born in Anuradha nakshatram, there is no need for dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl is born in Jyesta nakshatram irrespective of charanams Graha shanti should be done based on intervals of nakshatram. So please contact any astrologer if birth happens in Jyesta nakshatram before 9 months after birth.

If a baby boy or girl born in Moola nakshatram’s 1st charanam 7 days Ketu Graha Poorna Kumbha Japam has to be performed on the name of father. If birth happens in 2nd charanam 7 days Ketu Graha Poorna Kumbha Japam has to be performed on the name of mother and maternal uncles. If the baby boy or girl is born in the 3rd charanam. It is batter to perform even Homasanthi and Ketu grahasanthi. Moola nakshatram 4th charanam has no doshams.

If a baby boy or girl born in Purvashada nakshatram’s 1st charanam 20 day’s Sukra Graha Poorna Kumbha Japam has to be performed to skip pitrugandam. If birth happens in 2nd charanam 20 days Sukra Graha Poorna Kumbha Japam is needed on the name of mother. If a male child is born in the 3rd charanam dosha nivarana pooja is needed for father, if a female child is born in the 3rd charanam dosha nivarana is needed for mother. If a baby boy or girl born in 4th charanam of Purvashada nakshatram dosha nivarana Japam has to be performed on the name of mother’s brother. All the shanti’s should be performed before 12 months after birth.

If a baby boy or girl born in Uttarashada nakshatram, no need for dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl born in Sravanam nakshatram, there is no need for dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl born in Dhanishta nakshatra, there is no need for dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl born in Satabisham nakshatram, there is no need for dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl born in Purvabhadra nakshatram, there is no need for dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl born in Uttarabhadra nakshatram, there is no need for dosha nivarana pooja irrespective of any charanam.

If a baby boy or girl born in Revati nakshatram 1st, 2nd, 3rd charanam no dosha nivarana pooja is needed. If a baby boy is born in 4th charanam 17 days Buddha Graha Poorna Kumbha Japam is needed for father before 3 months after birth. And if it is a baby girl same shanti is needed for mother.

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