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सूर्य - केतु युति Sun Ketu Conjunction in Astrology

Sun-ketu conjunction or sun ketu conjunction vedic astrology

हिन्दू ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है। केतु विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है। केतु, भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दु:ख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोडऩे के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है। यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है।
माना जाता है कि केतु, अपने भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं। केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह है तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है। यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र। यही केतु जन्म कुण्डली में राहु के साथ मिलकर कालसर्प योग की स्थिति बनाता है। केतु को सूर्य व चंद्र का शत्रु कहा गया हैं। केतु, मंगल ग्रह की तरह प्रभाव डालता है। केतु वृश्चिक व धनु राशि में उच्च का और वृष व मिथुन में नीच का होता है।* भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु राहु का ही कटबन्ध है। राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया। मत्स्य पुराण के अनुसार केतु बहुत-से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है।
* भारतीय-ज्योतिष के अनुसार यह छायाग्रह है। व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है। आकाश मण्डल में इसका प्रभाव वायव्यकोण में माना गया है। कुछ विद्वानों के मतानुसार राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हितकारी है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है। केतु का मण्डल ध्वजाकार माना गया है। कदाचित यही कारण है कि यह आकाश में लहराती ध्वजा के समान दिखायी देता है। इसका माप केवल छ: अंगुल है।
* यद्यपि राहु-केतु का मूल शरीर एक था और वह दानव-जाति का था। परन्तु ग्रहों में परिगणित होने के पश्चात उनका पुनर्जन्म मानकर उनके नये गोत्र घोषित किये गये। इस आधार पर राहु पैठीनस-गोत्र तथा केतु जैमिनि-गोत्र का सदस्य माना गया। केतु का वर्ण धूम्र है। कहीं-कहीं इसका ''कपोत-वाहनÓÓ भी मिलता है। जन्म कुंडली में लग्न, षष्ठम, अष्ठम और एकादश भाव में केतु की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है। इसके कारण जातक के जीवन में अशुभ प्रभाव ही देखने को मिलते हैं। जन्मकुंडली में केतु यदि केंद्र-त्रिकोण में उनके स्वामियों के साथ बैठे हों या उनके साथ शुभ दृष्टि में हों तो योगकारक बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में ये अपनी शुभ परिणाम जैसे लंबी आयु, धन, भौतिक सुख आदि देते हैं।
* केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं। केतु की पत्नी सिंहिका और विप्रचित्ति में से एक के एक सौ एक पुत्र हुए।
कुण्डली में केतु :
जातक की जन्म-कुण्डली में विभिन्न भावों में केतु की उपस्थिति भिन्न-भिन्न प्रभाव दिखाती हैं:
* प्रथम भाव में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है। इसके साथ ही यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है।
* द्वितीय भाव में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी होता है।
* तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।
* चतुर्थ भाव में हो तो जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।
* पंचम भाव में हो तो वह कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।
* षष्टम भाव में हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।
* सप्तम भाव में हो तो जातक मंदमति, शत्रु से डरने वाला एवं सुखहीन होता है।
* अष्टम भाव में हो तो वह दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्री द्वेषी एवं चालाक होता है।
नवम भाव में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है।
* दशम भाव में हो तो पितृद्वेषी, भाग्यहीन होता है।
* एकादश भाव में केतु हर प्रकार का लाभदायक होता है। इस प्रकार का जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु रोग से पीडि़त रहता है।
* द्वादश भाव में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है।
केतु के प्रभाव:
* सूर्य जब केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है।
* चंद्र यदि केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है।
* वृश्चिक लग्न में यह योग जातक को अत्यधिक धार्मिक बना देता है।
* मंगल केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है। इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं।
* बुध केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है। यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है। वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है।
* केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है।
* शुक्र केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है।
* शनि केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है। ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृति का होता है। अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है।
* किसी स्त्री के जन्म लग्न या नवांश लग्न में केतु हो तो उसके बच्चे का जन्म आपरेशन से होता है। इस योग में अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कष्ट कम होता है।
* भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनका हक छीनने पर केतु अशुभ फल देता है। कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोडऩे अथवा ध्वजा नष्ट करने पर इसी के साथ ज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी से धोखा करने व झूठी गवाही देने पर भी केतु अशुभ फल देते हैं।
अत: मनुष्य को अपना जीवन व्यवस्थित जीना चाहिए। किसी को कष्ट या छल-कपट द्वारा अपनी रोजी नहीं चलानी चाहिए। किसी भी प्राणी को अपने अधीन नहीं समझना चाहिए जिससे ग्रहों के अशुभ कष्ट सहना पड़े।
सकारात्मक केतु और नकारात्मक केतु का प्रभाव:
गुरु के साथ नकारात्मक केतु अपंगता का इशारा करता है, उसी तरह से सकारात्मक केतु साधन सहित और जिम्मेदारी वाली जगह पर स्थापित होना कहता है, मीन का केतु उच्च का माना जाता है और कन्या का केतु नकारात्मक कहा जाता है, मीन राशि गुरु की राशि है और कन्या राशि बुध की राशि है। गुरु ज्ञान से सम्बन्ध रखता है और बुध जुबान से, ज्ञान और जुबान में बहुत अन्तर है। इसी के साथ अगर शनि के साथ केतु है तो काला कुत्ता कहा जाता है, शनि ठंडा भी है और अन्धकार युक्त भी है, गुरु अगर गर्मी का एहसास करवा दे तो ठंडक भी गर्मी में बदल जाती है, चन्द्र केतु के साथ गुरु की मेहरबानी प्राप्त करने के लिये जातक को धर्म कर्म पर विश्वास करना जरूरी होता है, सबसे पहले वह अपने परिवार के गुरु यानी पिता की महरबानी प्राप्त करे, फिर वह अपने कुल के पुरोहित की मेहरबानी प्राप्त करे, या फिर वह अपने शरीर में विद्यमान दिमाग नामक गुरु की मेहरबानी प्राप्त करे।
मंगल को नवग्रहों में तीसरा स्थान प्राप्त है और केतु को नवम स्थान, फिर भी ज्योतिष की पुस्तकों में कई स्थान पर लिखा मिलता है कि मंगल एवं केतु समान फल देने वाले ग्रह हैं। ज्योतिषशास्त्र में मंगल एवं केतु को राहु एवं शनि के समान ही पाप ग्रह कहा जाता है। मंगल एवं केतु दोनों ही उग्र एवं क्रोधी स्वभाव के माने जाते हैं। इनकी प्रकृति अग्नि प्रधान होती है, मंगल एवं केतु एक प्रकृति होने के बावजूद इनमें काफी कुछ अंतर हैं एवं कई विषयों में मंगल केतु एक समान प्रतीत होते हैं।
मंगल एवं केतु में समानता:
मंगल व केतु दोनों ही जोशीले ग्रह हैं, लेकिन इनका जोश अधिक समय तक नहीं रहता है। दूध की उबाल की तरह इनका जोश जितनी चल्दी आसमान छूने लगता है उतनी ही जल्दी वह ठंडा भी हो जाता है। इसलिए, इनसे प्रभावित व्यक्ति अधिक समय तक किसी मुद्दे पर डटे नहीं रहते हैं, जल्दी ही उनके अंदर का उत्साह कम हो जाता है और मुद्दे से हट जाते हैं। मंगल एवं केतु का यह गुण है कि इन्हें सत्ता सुख काफी पसंद होता है। ये राजनीति में एवं सरकारी मामलों में काफी उन्नति करते हैं। शासित होने की बजाय शासन करना इन्हें रूचिकर लगता है। मंगल एवं केतु दोनों को कष्टकारी, हिंसक, एवं कठोर हृदय वाला ग्रह कहा जाता है। परंतु, ये दोनों ही ग्रह जब देने पर आते हैं तो उदारता की पराकष्ठा दिखाने लगते हैं यानी मान-सम्मान, धन-दौलत से घर भर देते हैं।

 once in a year and this is one of good conjunction does not matter here sun is strong or ketu only condition conjunction should be in good house and more than 8 degree with each other.

Ketu represents meditation, spirituality, nothingness. If this conjunction weak then person lacks confidence because sun is our pride, soul and light of life which give low confidence to our soul.

If Sun is strong, then you may expect good spiritual position, great teacher of yoga or meditation, priest or strong politician. This is very good conjunction gives name, fame, less ego and no attachment for materialism.

Sun is everything and its opposite Ketu is nothingness but this unique conjunction gives things in unique way, so before evaluating this unique Sun ketu combination or relation between sun and ketu we need to more careful otherwise nothing will be in hand and our prediction will not come true. 

“Sun is our soul, life, our confidence and when it conjunction with ketu means baggage of past karma remaining.”

Sun Ketu conjunction for career: Sun ketu same house is good combination for career but it should be strong Kendra/trikona and 8 degree apart. Sun ketu together shows extreme heights in spiritual career or career where you can serve to people it might be politics, NGO or any good work for society. Even doctor also having this yoga sometimes.

Sun Ketu conjunction for Wealth: Sun ketu for wealth is not bad but this combination never gives materialism side of society. It gives everything from struggle and strong wealth for Yoga not Bhoga.

Sun Ketu conjunction for Marriage: This is worst combination if in 7th house or even in 8th house but it gives good knowledge but marriage will be on rock always.

Sun Ketu conjunction in 1st house or Sun and ketu in 1st house: Sun ketu in 1st house is good placement it gives strong identity in society and person become famous in middle age. Sun ketu gives mass fame and people easily attracted towards these peoples. Sun and ketu conjunction in 1st house placement delivers great philosopher, writer and politician. This placement also shows you need to serve your family member lot because in last you did not done properly. You need to pay your attention towards your grandfather and elderly peoples for getting most of benefits of this conjunction. Sun and ketu in ascendant gives some time very aggressive nature and short tempered.

Sun Ketu conjunction in 2nd house or Sun and ketu in 2nd house:
Sun ketu in 2nd house is not good placement and it gives issues in wealth daily routine income. Sun and ketu conjunction in 2nd house placement gives many issues in marriage which sometime convert into marital discord. This conjunction of Sun ketu gives issues on paternal property and assets. Surya ketu some time gives harsh speech/voice.

Sun Ketu conjunction in 3rd house or Sun and ketu in 3rd house: Sun Ketu gives in 3rd house problems or bad relation with siblings but gives good courage and communication skill if Sun dominance is more. Sun Ketu yuti in 3rd house many travel related with religion or pilgrims. Sun and ketu conjunction in 3rd house gives power with communication which person can use in social work and welfare of society.

Sun Ketu conjunction in 4th house or Sun and ketu in 4th house: Sun ketu together in 4th house is good for spiritualism and meditation but not good for materialistic world even it gives Vehicle and big home and all but person will not enjoy too much these things generally their family enjoys all luxury of this. Sun and ketu conjunction in 4th house gives less motherly love and people stay faraway place from birth land.

Sun Ketu conjunction in 5th house or Sun and ketu in 5th house: Sun ketu in same house shows specially you should do some good work for you paternal families and especially some pitra Pooja. This house shows purva punya and your work towards your ancestors is still remaining and you need to do that work for those peoples in this birth. 5th house Sun ketu shows you have good intelligence but not able to use right time in right place. Sun and ketu conjunction in 5th house gives wealth from paternal property if Sun is stronger than ketu.

Sun Ketu conjunction in 6th house or Sun and ketu in 6th house: Sun ketu in 6th house is good for those who are dealing in public domain. This is very good placement for getting victory over enemies. This is good placement service peoples reached in good post but avoid taking any loan with this combination. Sun and ketu conjunction in 6th house is bad placement for heart disease and cholesterol if sun is weak. Sun and ketu together in 6th house shows you should not cheat on money with anyone even try take less loan from bank.

Sun Ketu conjunction in 7th house or Sun and ketu in 7th house: Sun ketu in 7 house worst placement then any house. This is placement which destroys marriage and relationship. This is really bad for business success also. If anyone have this placement then take care of your marriage and before marriage match the horoscope properly. Sun and ketu conjunction in 7th house is not good placement for wealth also. Ketu sun combination in 7th house gives some time very late marriage or no marriage in life.

Sun Ketu conjunction in 8th house or Sun and ketu in 8th house: Sun ketu in 8th house is again one of the bad placements for longevity even this conjunction gives accident and less peaceful life. This placement shows disappointment in inherited wealth. Sun ketu gives less wealth from father. Sun and ketu conjunction in 8th house is good for occult science. This is good placement if you will involve yourself in spirituality and meditation and will give sudden heights in life. Sun and ketu together in 8th house is only good if you are involve in spiritualistic world.

Sun Ketu conjunction in 9th house or Sun and ketu in 9th house: Sun ketu in 9th house shows pitra dosha and this is really bad placement for luck support in life. Sun ketu yuti in 9th house is bad for support from father even not good for father. Sun and ketu conjunction in 9th house is good placement if your to do work for society and religion. This gives breaks in success and you need to do definitely pitra shanti for this conjunction.

Sun Ketu conjunction in 10th house or Sun and ketu in 10th house: Sun and ketu conjunction in 10th house gives many breaks in career and these people not stable in career. This gives very late success only in religious world and sometime slow career in politics also. Sun and ketu conjunction in 10th house is bad placement for materialistic world.

Sun Ketu conjunction in 11th house or Sun and ketu in 11th house: Sun and ketu conjunction in 11th house is not good for materialistic gains. You should do work for society always be satisfied because you are not person who can enjoy materialistic gains. Sun and ketu conjunction in 11th house is good for social circle bit circle should not page 3, it should be circle of saint and good religious peoples.

Sun Ketu conjunction in 12th house or Sun and ketu in 12th house: Sun ketu in 12th house is good placement for moksha and hinder confidence and good for success in foreign lands. You will get moksha in this birth and you should not involve in women wine in this birth. Sun and ketu conjunction in 12th house gives foreign residence also.

Sun ketu conjunction remedies or remedies for sun and ketu: Sun conjunction with ketu gives bad impacts also so please do the some upay for surya ketu yuti.
For sun ketu grahan dosh, please do help how much you can to elderly peoples.
Sun and ketu in one house gives lot of struggles in life.
Conjunction of sun and ketu is not bad always so do the Lord Surya Pooja and lord hanuman as much as you can.
Sun+ketu remedies Serve black and white dog.
Surya ketu yoga सूर्य केतु योग people should avoid eating meat.
Ketu and sun relationship is spiritualistic relationship so involve in more spiritualism and religious deeds.
Sun and ketu together सूर्य केतु ग्रहण दोष Do the Lord Ganesha on daily basis.
Sun conjunct ketu vedic then always go to the temple and offer your services there.
Sun with ketu सूर्य केतु युति then donate and eat turmeric.

Graho ki yuti ग्रहों की युति

3 graho ki yuti
ग्रह की युति (विभिन्न ग्रहों की युति-प्रतियुति के क्या फल हो सकते हैं)
जब दो ग्रह एक ही राशि में हों तो इसे ग्रहों की युति कहा जाता है। 

जब दो ग्रह एक-दूसरे से सातवें स्थान पर हों अर्थात् 180 डिग्री पर हों, तो यह प्रतियुति कहलाती है। अशुभ ग्रह या अशुभ स्थानों के स्वामियों की युति-प्रतियुति अशुभ फलदायक होती है,
जबकि शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है।
आइए देखें, विभिन्न ग्रहों की युति-प्रतियुति के क्या फल हो सकते हैं -
1. सूर्य-गुरु : उत्कृष्ट योग, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, यश दिलाता है। उच्च शिक्षा हेतु दूरस्थ प्रवास योग तथा बौद्धिक क्षेत्र में असाधारण यश देता है।
2. सूर्य-शुक्र : कला क्षेत्र में विशेष यश दिलाने वाला योग होता है। विवाह व प्रेम संबंधों में भी नाटकीय स्थितियाँ निर्मित करता है।
3. सूर्य-बुध : यह योग व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है। व्यापार-व्यवसाय में यश दिलाता है। कर्ज आसानी से मिल जाते हैं।
4. सूर्य-मंगल : अत्यंत महत्वाकांक्षी बनाने वाला यह योग व्यक्ति को उत्कट इच्छाशक्ति व साहस देता है। ये व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की योग्यता रखते हैं।
5.सूर्य-शनि : अत्यंत अशुभ योग, जीवन के हर क्षेत्र में देर से सफलता मिलती है। पिता-पुत्र में वैमनस्य, भाग्य का साथ न देना इस युति के परिणाम हैं।
6. सूर्य-चंद्र : चंद्र यदि शुभ योग में हो तो यह यु‍ति मान-सम्मान व प्रतिष्ठा की दृष्टि से श्रेष्ठ होती है, मगर अशुभ योग होने पर मानसिक रोगी बना देती है।
7. चंद्र-मंगल : यह योग व्यक्ति को जिद्‍दी व अति महत्वाकांक्षी बनाता है। यश तो मिलता है, मगर स्वास्थ्‍य हेतु यह योग हानिकारक है। रक्त संबंधी रोग होते हैं।
दो ग्रहों युति का फल-
चन्द्र की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
चंद्र+मंगल- शत्रुओं पर एवं ईर्ष्या करने वालों पर, सफलता प्राप्त करने के लिए एवं उच्च वर्ग (सरकारी अधिकारी) विशेषकर सैनिक व शासकीय अधिकारी से मुलाकात करने के लिए उत्तम रहता है।
चंद्र+बुध- धनवान व्यक्ति, उद्योगपति एवं लेखक, सम्पादक व पत्रकार से मिलने या सम्बन्ध बनाने के लिए।
चंद्र+शुक्र- प्रेम-प्रसंगों में सफलता प्राप्त करने एवं प्रेमिका को प्राप्त करने तथा शादी- ब्याह के समस्त कार्यों के लिए, विपरीत लिंगी से कार्य कराने के लिए।
चंद्र+गुरु- अध्ययन कार्य, किसी नई विद्या को सीखने एवं धन और व्यापार उन्नति के लिए।
चंद्र+शनि- शत्रुओं का नाश करने एवं उन्हें हानि पहुंचाने या उन्हें कष्ट पहुंचाने के लिए।
चंद्र+सूर्य- राजपुरूष और उच्च अधिकारी वर्ग के लोगों को हानि या उसे उच्चाटन करने के लिए।
मंगल की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
मंगल+बुध- शत्रुता, भौतिक सामग्री को हानि पहुंचाने, तबाह-बर्बाद, हर प्रकार सम्पत्ति, संस्था व घर को तबाह-बर्बाद करने के लिए।
मंगल+शुक्र- हर प्रकार के कलाकारों (फिल्मी सितारों) में डांस, ड्रामा एवं स्त्री जाति पर प्रभुत्व और सफलता प्राप्त करने के लिए।
मंगल+ गुरु- युद्घ और झगड़े में या कोर्ट केस में, सफलता प्राप्त करने के लिए, शत्रु-पथ पर भी जनमत को अनुकूल बनाने के लिए।
मंगल+शनि- शत्रु नाश एवं शत्रु मृत्यु के लिए एवं किसी स्थान को वीरान करने (उजाड़ने ) के लिए।
बुध की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
बुध+शुक्र- प्रेम-सम्बन्धी सफलता, विद्या प्राप्ति एवं विशेष रूप से संगीत में सफलता के लिए।
बुध+गुरु- पुरुष का पुरुष के साथ प्रेम और मित्रता सम्बन्धों में पूर्ण रूप से सहयोग के लिए एवं हर प्रकार की ज्ञानवृद्घि के लिए नया है।
ग्रहों की युति-: चंद्र:-(विचार)-
शनि (दु:ख,विषाद,कमी,निराशा) :- मन में दु:ख,नकारात्मक सोच.
मंगल (साहस,धैर्य,तेज,क्षणिक क्रोध) :- विचारों में ओज,क्रांतिकारी विचार.
बुध (वाणी,चातुर्य.हास्य) :- हास्य-व्यंग्य पूर्ण विचार,नए विचार.
गुरु (ज्ञान,गंभीरता,न्याय,सत्य) :- न्याय,सत्य और ज्ञान की कसौटी पर कसे हुए गंभीर विचार.
शुक्र (स्त्री,माया,संसाधन,मिठास,सौंदर्य) :- माया में जकड़े विचार,सुंदरता से जुड़े विचार.
सूर्य (आत्म-तेज,आदर) :- आदर के विचार,स्वाभिमान का विचार.
राहू (मतिभ्रम,लालच) :- विचारों का द्वंद्व,सही-गलत के बीच झूलते विचार.
केतु (कटाक्ष,झूठ,अफवाह) :- झूठ,अफवाह और सही बातों को काटने का विचार.

विवाह भाव में चन्द्र एवं अन्य ग्रहों की युति-
चन्द्र-मंगल -सप्तम भाव में चन्द्र-मंगल युति
अगर कुण्डली में विवाह भाव में चन्द्र-मंगल दोनों की युति हो रही हो तो व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मृदुलता की कमी की संभावना बनती है.
चन्द्र-बुध -सप्तम भाव में चन्द्र-बुध युति
कुण्डली में चन्द्र व बुध की युति होने पर व्यक्ति का जीवनसाथी यशस्वी, विद्वान व सत्ता पक्ष से सहयोग प्राप्त करने वाला होता है. इस योग के व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के सहयोग से धन व मान मिलने की संभावना बनती है.
चन्द्र व गुरु -सप्तम भाव में चन्द्र व गुरु की युति
कुण्डली में विवाह भाव में जब चन्द्र व गुरु एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति का जीवनसाथी कला विषयों मे कुशल होता है.
उसके विद्वान व धनी होने कि भी संभावना बनती है. इस योग के व्यक्ति के जीवनसाथी को सरकारी क्षेत्र से लाभ मिलता है.
चन्द्र व शुक्र - सप्तम भाव में चन्द्र व शुक्र की युति
अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व शुक्र की युति होने पर व्यक्ति का जीवनसाथी बुद्धिमान हो सकता है.
उसके पास धन, वैभव होने कि भी संभावना बनती है. व्यक्ति के जीवनसाथी के सुविधा संपन्न होने की भी संभावना बनती है.
चन्द्र-शनि - सप्तम भाव में चन्द्र-शनि की युति
कुण्डली के विवाह भाव में चन्द्र व शनि दोनों एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति का जीवनसाथी प्रतिष्ठित परिवार से होता है.
सप्तम भाव में चन्द्र की अन्य ग्रहों से युति-
बुध, गुरु, शुक्र - जब चंद्रमा की युति सप्तम भाव में बुध, गुरु, शुक्र से हो रही हों तो व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के शुभ फलों में वृद्धि होती है.
शनि, मंगल - अगर चन्द्र की युति विवाह भाव में शनि, मंगल के साथ हो रही हो तो दाम्पत्य जीवन में परेशानियां आती है.
. स्वयं चन्द्र भी जब कुण्डली में कृष्ण पक्ष का या निर्बल हो तब भी चन्द्र से मिलने वाले फल बदल जाते हैं.
चन्द्र सूर्य की युति का फल-
इन दोनों की युति होने पर व्यक्ति के अंदर अहम की भावना आ जाती है.
कुटनीति से व्यक्ति अपना काम निकालने की कोशिश करता है. व्यक्ति क्रोधी हो सकता है एवं व्यवहार में कोमलता की कमी रहती है. मन में अस्थिर एवं बेचैन रहता है. मन की शांति एवं व्यवहार कुशलता बढ़ाने के लिए चन्द्र के उपाय स्वरूप सोमवार के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है.
चन्द्र मंगल की युति का फल-
मंगल भी सूर्य के समान अग्नि प्रधान ग्रह है. चन्द्र एवं मंगल की युति होने पर व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता आ जाती है. मंगल को ग्रहों में सेनापति कहा जाता है जो युद्ध एवं शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक होता है. जैसे युद्ध के समय बुद्धि से अधिक योद्धा बल का प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार इस युति वाले व्यक्ति परिणाम की चिंता किये किसी भी कार्य में आगे कदम बढ़ा देते हैं जिससे इन्हें नुकसान भी होता है. वाणी में कोमलता एवं नम्रता की कमी के कारण यह अपनी बातों से कभी-कभी मित्रों को भी शत्रु बना लेते हैं. हनुमान जी की पूजा करने से इन्हें लाभ मिलता है.
चन्द्र बुध की युति का फल-
चन्द्रमा शांत एवं शीतल ग्रह है और बुध बुद्धि का कारक ग्रह. जिस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र बुध की युति होती है वे काफी समझदार होते हैं, परिस्थितयों के अनुसार खुद को तैयार कर लेने की इनमें अच्छी क्षमता पायी जाती है. अपनी बातों को ये बड़ी ही चतुराई से कह देते हैं. वाक्पटुता से काम निकालने में भी यह माहिर होते हैं.
चन्द्र गुरू की युति का फल-
नवग्रहों में गुरू को मंत्री एवं गुरू का पद दिया गया है. मंत्री का कार्य होता है सलाह देना. सलाह वही दे सकता है जो ज्ञानी होगा. यानी इस युति से प्रभावित व्यक्ति ज्ञानी होता है और अधिक बोलने वाला भी होता है. ये सलाहकार, शिक्षक एवं ऐसे क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते हैं जिनमें बोलने की योग्यता के साथ ही साथ अच्छे ज्ञान की भी जरूरत होती है.
चन्द्र शुक्र की युति का फल-
चन्द्रमा के साथ शुक्र की युति होने पर व्यक्ति सुन्दर एवं आकर्षक होता है. इनमें सुन्दर दिखने की चाहत भी अधिक होती है. वाणी में कोमलता एवं विचारों में कल्पनाशीलता भी इनमें पायी जाती है. इस युति से प्रभावित व्यक्ति कलाओं में रूचि लेता है.
चन्द्र शनि की युति का फल-
जन्म कुण्डली में चन्द्रमा शनि के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति न्यायप्रिय होता है.
इस युति से प्रभावित व्यकति मेहनती होता है तथा अपनी मेहनत एवं ईमानदारी से जीवन में आगे बढ़ता है.
इनके स्वभाव में अस्थिरता पायी जाती है, छोटी-छोटी असफलताएं भी इनके मन में निराशा उत्पन्न करने लगती है.
चन्द्र राहु की युति का फल-
कुण्डली में चन्द्र के साथ राहु की युति होने पर व्यक्ति रहस्यों एवं कल्पना की दुनियां खोया रहता है.
इनमें किसी भी विषय को गहराई से जानने की उत्सुकता रहती है जिससे अपने विषय के अच्छे जानकार होते हैं.
इनके स्वभाव में एक कमी यह होती है कि अफवाहों एवं कही सुनी बातों से जल्दी विचलित हो जाते हैं.
चन्द्र केतु की युति का फल-
चन्द्र केतु की युति कुण्डली में होने पर व्यक्ति जोश में कार्य करने वाला होता है.
जल्दबाजी में कार्य करने के कारण इन्हें अपने किये कार्य के कारण बाद में पछताना भी पड़ता है लेकिन,
अपनी ग़लतियों से सीख लेना इनकी अच्छी आदत होती है.
ज्योतिषी के रूप में कैरियर बनाने का विचार करें तो यह अच्छे ज्योतिषशास्त्री बन सकते हैं.
सच्चाई एवं अच्छाई के लिए आवज़ उठाने के लिए चन्द्र केतु की युति वाले व्यक्ति सदैव तैयार रहते हैं.
शनि और पाप ग्रह की युति का फल-
शनि और मंगल
जब शनि और मंगल की युति बनती है तब दोनों मिलकर और भी अशुभ प्रभाव देने वाले बन जाते हैं.व्यक्ति का जीवन अस्थिर रहता है.
मानसिक और शारीरिक पीड़ा से व्यक्ति परेशान होता है
शनि और राहु केतु
.इन्हें शनि के समान ही कष्टकारी और अशुभ फल देने वाला कहा गया है.जब शनि की युति या दृष्टि सम्बन्ध इनसे बनती है तब शनि और भी पाप प्रभाव देने वाला बन जाता है.राहु और शनि के मध्य सम्बन्ध स्थापित होने पर स्वास्थ्य पर अशुभ प्रभाव होता है.शनि और राहु की युति नवम भाव में हृदय और गले के ऊपरी भाग से सम्बन्धित रोग देता है.इनकी युति कार्यों में बाधक और नुकसानदेय होती है.केतु के साथ शनि की युति भी समान रूप से पीड़ादायक होती है.इन दोनों ग्रहों के सम्बन्ध मानसिक पीड़ादायक और निराशात्मक विचारों को देने वाला होता है.
शनि और सूर्य
इन दोनों ग्रहों की युति बनती है उस भाव से सम्बन्धित फल की हानि होती है.
इन दोनों की युति व्यक्ति के लिए संकट का कारण बनती है.
सूर्य का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध-
सूर्य जगत का राजा है अपने समय पर उदय होता है और अपने समय पर ही अस्त हो जाता है।
चन्द्रमा के साथ सम्बन्ध होने पर देखने के बाद सोचने के लिये शक्ति देता है
मंगल के साथ मिलने पर शौर्य और पराक्रम की वृद्धि करता है
,बुध के साथ मिलकर अपने शौर्य और गाथा को दूरस्थ प्रसारित करता है अपनी वाणी और चरित्र को तेजपूर्ण रूप मे प्रस्तुत करता है,
शाही आदेश को प्रसारित करता है,गुरु के साथ मिलकर सभी धर्म और न्याय तथा लोगो के आपसी सम्बन्धो को बनाता है,
लोगो के अन्दर धन और वैभव की कमी को पूरा करता है,
शुक्र के साथ मिलकर राजशी ठाठ बाट और शान शौकत को दिखाता है भव्य कलाकारी से युक्त राजमहल और लोगो के लिये वैभव को इकट्ठा करता है
शनि के साथ मिलकर गरीबो और कामगर लोगो के लिये राहत का काम देता है जिनके पास काम नही है जो भटकते हुये लोग है उन्हे आश्रय देता है
वह केतु के द्वारा अपनी आज्ञा से करवाता है.
चन्द्रमा का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध-
राहु के साथ चन्द्रमा के आते ही कई प्रकार के भ्रम आजाते है और उन भ्रमो से बाहर निकलना ही नही हो पाता है
उसी प्रकार से केतु के साथ आते ही मोक्ष का रास्ता खुल जाता है,और जो भी भावना है वह खाली ही दिखाई देती है मन एक साथ नकारात्मक हो जाता है
सूर्य के साथ जाते ही चन्द्रमा के अन्दर सूखापन आजाता है
,मंगल के साथ जाते ही गर्म भाप का रूप चन्द्रमा ले लेता है और मानसिक सोच या जो भी गति होती है वह गर्म स्वभाव की हो जाती है
बुध के साथ चन्द्रमा की युति अक्समात मजाकिया हो जाती है
चन्द्रमा के साथ गुरु का ही हाथ होता है मानसिक रूप से कभी तो वह जिन्दा करने की बात करने लगता है और कभी कभी बिलकुल ही समाप्त करने की बात करने लगता है।
मंगल का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध-
सूर्य के साथ मिलकर मंगल खुद को उत्तेजित कर लेता है और जितना अहम बढता जायेगा उतना वह अच्छा भी काम कर सकता है और खतरनाक भी काम कर सकता है
मंगल के साथ चन्द्रमा मिलता है तो वह अपनी सोच को क्रूर रूप से पैदा कर लेता है उसकी सोच मे केवल गर्म पानी जैसी बौछार ही निकलती है बुध के साथ मिलकर
लेकिन इस युति एक बार अच्छी मानी जाती है कि व्यक्ति के अन्दर बात करने की तकनीक आजाती है वह कम्पयूटर जैसे सोफ़्टवेयर की तकनीक को बना सकता है

मंग्ल के साथ गुरु के मिलने से जानकारी के अलावा भी प्रस्तुत करने की कला आजाती है और यह जीवन के लिये कष्टदायी भी हो जाती है।
मंगल के साथ शुक्र के मिलने से कलात्मक कारणो मे तो तकनीक का विकास होने लगता है लेकिन शरीर के अन्दर यह युति अधिक कामुकता को पैदा कर देती है और शरीर के विनास के लिये दिक्कत का कारण बन जाता है शुगर जैसी बीमारिया लग जाती है,
शनि के साथ मिलने से यह गर्म मिट्टी जैसे काम करवाने की युति देता है तकनीकी कामो मे सुरक्षा के कामो मे मन लगाता है,कत्थई रंग के कारण बनाने मे यानी सूखे हुये रक्त जैसे कारण पैदा करना इसकी शिफ़्त बन जाती है।
राहु के साथ मंगल की युति होने से या तो बिजली तेल पेट्रोल आदि के कामो मे बरक्कत होने लगती है या
बुध के साथ अन्य ग्रहो का सम्बन्ध-
बुध के साथ सूर्य के मिलने से व्यक्ति की सोच राजदरबार मे राजदूत जैसी होती है वह कमजोर होने पर चपरासी जैसे काम करता है और वह अगर केतु के साथ सम्बन्ध रखता है तो रिसेपसन पर काम कर सकता है
टेलीफ़ोन की आपरेटरी कर सकता है या ब्रोकर के पास बैठ कर केवल कहे हुये काम को कर सकता है इसकी युति के कारक ही काल सेंटर आदि माने जाते है,बुध के साथ
चन्द्रमा के होने से लोगो का बागवानी की तरफ़ अधिक मन लगता है कलात्मक कारणो मे अपनी प्रकृति को मिक्स करने का काम होता है
मंगल के साथ मिलकर जब भी कोई काम होता है तो तकनीकी रूप से होता है प्लास्टिक के अन्दर बिजली का काम बुध के अन्दर मंगल की उपस्थिति से ही है डाक्टरी औजारो मे जहां भी प्लास्टिक रबड का प्रयोग होता है
वह बुध और मंगल की युति से माना जाता है बुध के साथ गुरु का योग होने से लोग पाठ पूजा व्याख्यान भाषण आदि देने की कला मे प्रवीण हो जाते है लोगो को बोलने और मीडिया आदि की बाते करना अच्छा लगता है,
बुध के साथ शुक्र के मिलने से यह अपने को कलात्मक रूप मे आने के साथ साथ सजावटी रूप मे भी सामने करता है बाग बगीचे की सजावट मे और फ़ूलो आदि के गहने आदि बनाने प्लास्टिक के सजीले आइटम बनाने के लिये भी इसी प्रकार की युति काम करती है
बुध के साथ शनि के मिलने से भी जातक के काम जमीनी होते है या तो वह जमीन को नापने जोखने का काम करने लगता है या भूमि आदि को नाप कर प्लाट आदि बनाकर बेचने का काम करता है इसके साथ ही बोलने चालने मे एक प्रकार की संजीदगी को देखा जा सक्ता है,
गुरु के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध-
गुरु के साथ सूर्य के मिलने से जीव और आत्मा का संगम हो जाता है गुरु जीव है सूर्य आत्मा है जिस जातक की कुंडली मे जिस भाव मे यह दोनो स्थापित होते है वह भाव जीवात्मा के रूप मे माना जाता है।
गुरु का साथ चन्द्रमा के साथ होने से जातक मे माता के भाव जाग्रत रहते है,जातक के माता पिता का साथ रहता है जातक अपने ग्यान को जनता मे बांटना चाहता है।
गुरु के साथ मंगल के मिलने कानून मे पुलिस का साथ हो जाता है धर्म मे पूजा पाठ और इसी प्रकार की क्रियाये शामिल हो जाती है,विदेश वास मे भोजन और इसी प्रकार के कारण जुड जाते है,गुरु के साथ बुध होने से जातक के अन्दर वाचालता आजाती है वह धर्म और न्याय के पद पर आसीन हो जाता है उसके अन्दर भावानुसार कानूनी ग्यान भी हो जाता है।
शुक्र के साथ मिलकर गुरु की औकात आध्यात्मिकता से भौतिकता की ओर होना माना जाता है वह कानून तो जानता है लेकिन कानून को भौतिकता मे देखना चाहता है वह धर्म को तो मानता है लेकिन भौतिक रूप मे सजावट आदि के द्वारा अपने इष्ट को देखना चाहता है गुरु के साथ शनि के मिलने से जातक के अन्दर एक प्रकार से ठंडी वायु का संचरण शुरु हो जाता है जातक धर्मी हो जाता है कार्य करता है लेकिन कार्य फ़ल के लिये अपनी तरफ़ से जिज्ञासा को जाहिर नही कर पाता है जिसे जो भी कुछ दे देता है वापस नही ले पाता है कारण उसे दुख और दर्द की अधिक मीमांसा करने की आदत होती है।
गुरु राहु का साथ होने से जातक धर्म और इसी प्रकार के कारणो मे न्याय आदि के लिये अपनी शेखी बघारने के अलावा और उसे कुछ नही आता है कानून तो जानता है लेकिन कानून के अन्दर झूठ और फ़रेब का सहारा लेने की उसकी आदत होती है वह धर्म को मानता है लेकिन अन्दर से पाखंड बिखेरने का काम भी उसका होता है।
केतु के साथ मिलकर वह धर्माधिकारी के रूप मे काम करता है कानून को जानने के बाद वह कानूनी अधिकारी बन जाता है अन्य ग्रह की युति मे जैसे मंगल अगर युति दे रहा है तो जातक कानून के साथ मे दंड देने का अधिकारी भी बन जाता है
शुक्र के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध-
सूर्य के साथ मिलकर भौतिक सुखो का राज्य सेवा मे या पिता की तरफ़ से या पुत्र की तरफ़ से देने वाला होता है
चन्द्रमा के साथ मिलकर भावना से भरा हुआ एक प्रकार का बहकता हुआ जीव बन जाता है जिसे भावना को व्यकत करने के लिये एक अनौखी अदा का मिलना माना जाता है
मंगल के साथ मिलकर एक झगडालू औरत के रूप मे सामने आता है बुध के साथ मिलकर अपनी ही कानूनी कार्यवाही करने का मालिक बन जाता है गुरु के साथ मिलकर एक आध्यात्मिक व्यक्ति को भौतिकता की ओर ले जाने वाला बनता है
शनि के साथ मिलने पर यह दुनिया की सभी वस्तुओ को देता है लेकिन मन के अन्दर शान्ति नही देता है,राहु के साथ मिलकर प्रेम का पुजारी बन जाता है केतु के साथ मिलकर भौतिक सुखो से दूरिया देता है।
शनि के साथ ग्रहों का आपसी सम्बन्ध-
सूर्य शनि की युति वाले जातक के पास काम केवल सुबह शाम के ही होते है,वह पूरे दिन या पूरी रात कान नही कर सकता है इसलिये इस प्रकार के व्यक्ति के पास साधनो की कमी धन की कमी आदि मुख्य रूप से मानी जाती है,
शनि चन्द्र की युति मे मन का भटकाव रुक जाता है मन रूपी चन्द्रमा जो पानी जैसा है शनि की ठंडक और अन्धेरी शक्ति से फ़्रीज होकर रह जाता है शनि चन्द्र की युति वाला जातक कभी भी अपने अनुसार काम नही कर पाता है उसे हमेशा दूसरो का ही सहारा लेना पडता है।
शनि मंगल की युति मे काम या तो खूनी हो जाते है या मिट्टी को पकाने जैसे माने जाते है शनि अगर लोहा है तो मंगल उसे गर्म करने वाले काम माने जाते है।
इसी प्रकार से शनि के साथ बुध के मिलने से जमीन की नाप तौल या जमीन के अन्दर पैदा होने वाली फ़सले या वनस्पतियों के कार्य का रूप मान लिया जाता है,
शनु गुरु की युति मे एक नीच जाति का व्यक्ति भी अपनी ध्यान समाधि की अवस्था योगी का रूप धारण कर लेता है
शनि शुक्र की युति मे काला आदमी भी एक खूबसूरत औरत का पति बन जाता है एक मजदूर भी एक शहंशाही औकात का आदमी बन जाता है,
शनि राहु की युति मे जो भी काम होते है वह दो नम्बर के कामो के रूप मे जाने जाते है अगर शनि राहु की युति त्रिक भाव मे है तो जातक को जेल जाने से कारण जरूर पैदा होते है।
शनि केतु की युति मे जातक व्यापार और दुकान आदि के फ़ैलाने के काम करता है वह एक वकील की हैसियत से अपने कामो करता है
केतु के साथ अन्य ग्रहो के सम्बन्ध-
सूर्य केतु राजनेता होता है चन्द्र केतु जनता का आदमी होता है मंगल केतु इंजीनियर होता है
बुध केतु कमन्यूकेशन का काम करने वाला होता है लेकिन खून से सम्बन्ध नही रखता है,इसी लिये कभी कभी दत्तक पुत्र की हैसियत से भी देखा जाता है
गुरु केतु को सिद्ध महात्मा भी कहते है और डंडी धारी साधु की उपाधि भी दी जाती है
शुक्र केतु को वाहन चालक जैसी उपाधि दी जाती है या वाहन के अन्दर पैसा लेने वाले कंडक्टर की होती है वह कमाना तो खूब जानता है लेकिन उसे गिना चुना ही मिलता है
शनि केतु को धागे का काम करने वाले दर्जी की उपाधि दी जाती है या एक कम्पनी की कई शाखायें खोलने वाले चेयरमेन की उपाधि भी दी जाती है अक्सर यह मामला ठेकेदारी मे भी देखा जाता है।
ज्योतिष और यौन सुख :-
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख पाता है। जिनमें घर, वाहन सुख आदि समिल्लित है। इसके अलावा शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक भी माना जाता है। शुक्र सुख, उपभोग, विलास और सुंदरता के प्रति आकर्षण पैदा करता है। विवाह के बाद कुछ समय तो गृहस्थी की गाड़ी बढिय़ा चलती रहती है किंतु कुछ समय के बाद ही पति पत्नि में कलह झगडे, अनबन शुरू होकर जीवन नारकीय बन जाता है. इन स्थितियों के लिये भी जन्मकुंडली में मौजूद कुछ योगायोग जिम्मेदार होते हैं. अत: विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिये.
सातवें भाव में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि भी नही होनी चाहिये. लेकिन स्वग्रही सप्तमेश पर शनि मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की संपूर्ण दॄष्टि संबंध या युति है तो इस स्थिति में दापंत्य सुख अति अल्प हो जायेगा. इस स्थिति के कारण सप्तम भाव एवम सप्तमेश दोनों ही पाप प्रभाव में आकर कमजोर हो जायेंगे.
यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है वहीं षष्ठेश,अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में न्यूनता आती है.
यदि सप्तम अधिपति पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, सप्तमाधिपति से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, चंद्र एवम शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है.
लग्नेश सप्तम भाव में विराजित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक को अत्यंत सुंदर सुशील और गुणवान पत्नि मिलती है जिसके साथ उसका आजीवन सुंदर और सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत होता है. (यह योग कन्या लग्न में घटित नही होगा)
सप्तमेश की केंद्र त्रिकोण में या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे जोडों में परस्पर अत्यंत स्नेह रहता है. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव ना हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है.
सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो पति पत्नि अत्यंत प्रेम पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.
पुरूष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक शुक्र होता है उसी तरह स्त्री की कुंडली में पति सुख का कारक ग्रह वॄहस्पति होता है. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.
जिस स्त्री के द्वितीय, सप्तम, द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में होकर वॄहस्पति से देखे जाते हों, सप्तमेश से द्वितीय, षष्ठ और एकादश स्थानों में सौम्य ग्रह बैठे हों, ऐसी स्त्री अत्यंत सुखी और पुत्रवान होकर सुखोपभोग करने वाली होती है.
पुरूष का सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो वही राशि स्त्री की हो तो पति पत्नि में बहुत गहरा प्रेम रहता है.
वर कन्या का एक ही गण हो तथा वर्ग मैत्री भी हो तो उनमें असीम प्रम होता है. दोनों की एक ही राशि हो या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है.
अगर वर या कन्या के सप्तम भाव में मंगल और शुक्र बैठे हों उनमे कामवासना का आवेग ज्यादा होगा अत: ऐसे वर कन्या के लिये ऐसे ही ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी का चुनाव करना चाहिये.
दांपत्य सुख का संबंध पति पत्नि दोनों से होता है. एक कुंडली में दंपत्य सुख हो और दूसरे की में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता, अत: सगाई पूर्व माता पिता को निम्न स्थितियों पर ध्यान देते हुये किसी सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से दोनों की जन्म कुंडलियों में स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, संतान पक्ष इत्यादि का समुचित अध्ययन करवा लेना चाहिये सिफर् गुण मिलान से कुछ नही होता.

वर वधु की आयु का अधिक अंतर भी नही होना चाहिये, दोनों का शारीरिक ढांचा यानि लंबाई उंचाई, मोटाई, सुंदरता में भी साम्य देख लेना चाहिये. अक्सर कई धनी माता पिता अपनी काली कलूटी कन्या का विवाह धन का लालच देकर किसी सुंदर और गौरवर्ण लड़के से कर देते हैं जो बाद में जाकर कलह का कारण बनता है.

कुल मिलाकर शिक्षा, खानदान, खान पान परंपरा इत्यादि की साम्यता देखकर ही
तीन ग्रहों की युति के फल


१. सूर्य+चन्द्र+बुध  =  माता-पिता के लिये अशुभ। मनोवैज्ञानिक। सरकारी अधिकारी। ब्लैक मेलर । अशांत। मानसिक तनाव। परिवर्तनशील।
२. सूर्य+चन्द्र +केतू  =  रोज़गार के लिये परेशान। न दिन को चैन न रात को चैन। बुद्धि काम ना दे, चाहे लखपति भी हो जाये। शक्तिहीन।
३. सूर्य+शुक्र+शनि =  पति/पत्नी में विछोह। तलाक हो। घर में अशांति। सरकारी नौकरी में गड-बड़।
४. सूर्य+बुध+राहू =  सरकारी नौकरी। अधिकारी। नौकरी में गड-बड़। दो विवाह का योग। संतान के लिये हल्का। जीवन में अन्धकार। तीन ग्रहों की युति के फल :-
५. चन्द्र+शुक्र+बुध =  सरकारी अधिकारी। कर्मचारी। घरेलू अशांति। बहू -सास का झगड़ा। व्यापार के लिये बुरा। लड़कियाँ अधिक। संतान में विघ्न।
६. चन्द्र +मंगल+बुध  =  मन, साहस , बुद्धि का सामंजस्य। स्वास्थ अच्छा। नीतिवान साहसी ,सोच-विचार से काम करे। पाप दृष्टी में होतो,डरपोक /. दुर्घटना /ख्याली पुलाव पकाए।
७. चन्द्र+मंगल+शनि = नज़र कमजोर। बीमारी का भय। डॉक्टर , वै ज्ञानिक , इंजीनियर , मानसिक तनाव। ब्लड प्रेशर कम या अधिक।
८. चन्द्र+मंगल+राहू =  पिता के लिए अशुभ। चंचलता। माता तथा भाई के लिए हल्का।
९. चन्द्र+बुध +शनि=  तंतु प्रणाली में रोग। बेहोश हो जाना। बुद्धि की खराबी से अनेक दुःख हो। अशांत, मानसिक तनाव। बहमी।
१० चन्द्र +बुध+राहू =  माँ के लिए अशुभ। सुख हल्का। पिता पर भारी। दुर्घटना की आशंका। तीन ग्रहों की युति के फल :-
११. चन्द्र+शनि+राहू =  माता का सुख काम। दिमागी परेशानियाँ। ब्लड प्रेशर। दुर्घटना का भय। स्वास्थ हल्का।
१२. शुक्र+बुध+शनि =  चोरियां हो। धन हानी। प्रॉपर्टी डीलर। जायदाद वाला। पत्नी घर की मुखिया।
१३. मंगल+बुध+शनि = आँखों में विकार। तंतु प्रणाली में विकार। रक्त में विकार। मामों के लिये अशुभ। दुर्घटना का भय।
१४. मंगल+बुध+गुरू  =  अपने कुल का राजा हो। विद्वान। शायर। गाने का शौक। ओरत अच्छी मिले।
१५. मंगल+बुध +शुक्र  =  धनवान हो। चंचल स्वभाव। हमेशा खुश रहे। क्रूर हो।
१६. मंगल+बुध+राहू  =  बुरा हो। कंजूस। लालची। रोगी। फ़कीर। बुरा काम करे।
१७. मंगल+बुध+केतू  = बहुत अशुभ। रोगी हो। कंजूस हो। दरिद्र। गंदा रहे। व्यर्थ के काम करे।
तीन ग्रहों की युति के फल :-
१८. गुरू+सूर्य+बुध  =  पिता के लिए अशुभ। विद्या विभाग में नौकरी। 
१९. गुरू+चन्द्र+शुक्र  =  दो विवाह। रोग। बदनाम प्रेमी। कभी धनी , कभी गरीब। 
२०. गुरू+चन्द्र+मंगल  =  हर प्रकार से उत्तम। धनी। उच्च पद। अधिकारी। गृहस्थ सुख। 
२१. गुरू+चन्द्र+बुध  = धनी। अध्यापक। दलाल। पिता के लिये अशुभ। माता बीमार रहे। 
२२. गुरू+शुक्र+मंगल  =  संतान की और से परेशानी। प्रेम संबंधों से दुःख। गृहस्थ में असुख। 
२३. गुरू+शुक्र+बुध  =  कुटुंब अथवा गृहस्थ सुख बुरा। पिता के लिये अशुभ। व्यापारी। 
२४. गुरू+शुक्र+शनि  = फसादी। पिता-पुत्र में तकरार। 
२५. गुरू+मंगल+बुध  =  संतान कमजोर। बैंक एजेंट। धनी। वकील। 
२६. चन्द्र+शुक्र+बुध+शनि  =  माँ- पत्नी में अंतर ना समझे। 
२७. चन्द्र+शुक्र+बुध+सूर्य  =  आज्ञाकारी। अच्छे काम करे। माँ -बाप के लिये शुभ। भला आदमी। सरकारी नौकरी विलम्ब से मिले।

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