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कुल देवी - देवता (Kul devi devta)

कुलदेवी या देवता कुल या वंश के रक्षक देवी-देवता होते हैं। ये घर-परिवार या वंश-परंपरा के प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते हैं। 

जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है !

व्यक्ति की पहचान सर्वप्रथम उसके कुल से होती है| प्रत्येक व्यक्ति का जिस प्रकार नाम होता है, गोत्र होता है, उसी प्रकार कुल भी होता है| 'कुल' अर्थात खानदान या उसकी वंश परम्परा| जिस वंश वह सम्बंधित होता है, वह वंश तो हजारो-लाखों वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन आज सामान्य व्यक्ति अपने कुल की तीन-चार पीढ़ियों से अधिक नाम नहीं जनता| यदि किसी व्यक्ति से उसके परदादा के भाइयों के नाम पूछे जाएं, तो वह बता नहीं पाता है| यह न भी याद रहे तो भी अपने कुल और गोत्र सदैव ध्यान रखना तो आवश्यक ही है क्योंकि प्रत्येक कुल परम्परा में उस कुल के पूजित देवी-देवता अवश्य होते हैं, इसलिए वार, त्यौहार, पर्व आदि पर स्वर्गीय दादा, परदादा के साथ ही कुल देवता अथवा कुलदेवी को भी भोग अर्पण अवश्य ही किया जाता है|


कुलदेव और कुलदेवी समय-समय पर परिवार की रक्षा करते है | उन्हें नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से दूर रखते है | उनके वंश को आगे बढ़ाने में उनकी सहायता करते है | यदि किसी परिवार के कुलदेव और कुलदेवी उन पर प्रसन्न नहीं होंगे तो उस परिवार में विवाह संबंधी समस्या, पुत्र संबंधी समस्या या ऊपरी बाधाएं अपना प्रभाव दिखा सकती है |


ऐसे अनेक परिवार हैं जिन्हें अपने कुलदेवी या देवता के बारे में कुछ भी नहीं मालूम है। ऐसा इसलिए कि उन्होंने कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाना ही नहीं छोड़ा बल्कि उनकी पूजा भी बंद कर दी है। लेकिन उनके पूर्वज और उनके देवता उन्हें बराबर देख रहे होते हैं। यदि किसी को अपने कुलदेवी और देवताओं के बारे में नहीं मालूम है, तो उन्हें अपने बड़े-बुजुर्गों, रिश्तेदारों या पंडितों से पूछकर इसकी जानकारी लेना चाहिए। यह जानने की कोशिश करना चाहिए कि झडूला, मुंडन संकार आपके गोत्र परंपरानुसार कहां होता है या 'जात' कहां दी जाती है। यह भी कि विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (5, 6, 7वां) कहां होता है?

 


कुल देवी-देवता की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई खास परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का दौर शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, गृहकलह, उपद्रव व अशांति आदि शुरू हो जाती हैं। आगे वंश नहीं चल पाता है। 

 

हम जिस परिवार या वंश या घराने में जन्म लेते हैं उस परिवार के बुजुर्गों के हम ऋणी रहते हैं । हमें याद रखना चाहिए कि हम अकेले नहीं हैं, हम एक सुदीर्घ परम्परा की कडी हैं, हमारे पूर्व-पुरुषों (कुल-पुरुष, पितृ-पुरुष एवं कुल महापुरुष) की एक लम्बी श्रृंखला है । ये पूर्वज आज पंच भौतिक देह में नहीं है, किन्तु उनका सूक्ष्म देहधारी शरीर ब्रह्माण्ड में अवश्य विद्यमान है । अतः हमें अपने कुल देवी देवता का ज्ञात कर उनका पूजन अवशय ही करना चाहिए !


कुलदेवता यदि ज्ञात न हो, तो क्या करें ?

यदि कुलदेवता ज्ञात न हो तो कुटुंब के ज्येष्ठ, अपने उपनामवाले बंधु, जातिबंधु, गांव के लोग, पुरोहित इत्यादि से कुलदेवता की जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न करें । कुलदेवता के संदर्भ में जानकारी न मिलने से इष्टदेवता के नामका जप करना चाहिए अथवा ‘श्री कुलदेवतायै नमः ।’ यह जप करना चाहिए । यह जप पूर्ण होते ही कुलदेवता का नाम बतानेवाले मिलते हैं । देवता के रूप की कल्पना न होने के कारण मात्र ‘श्री कुलदेवतायै नमः ।’ ऐसा जप करना, अधिकांश लोगों के लिए कठिन हो जाता है । इसके विपरीत, प्रिय देवता को रूप ज्ञात होने के कारण उनका जप करना सहज लगता है ।


विवाहित स्त्री ससुराल के अथवा मायके के कुलदेवता का नाम जपें ?

सामान्यतः विवाहोपरांत स्त्री का नाम परिवर्तित होता है । मायके का सबकुछ त्यागकर स्त्री ससुराल आती है । एक अर्थ से यह उसका पुनर्जन्म ही होता है; इसीलिए विवाहित स्त्री को अपने ससुराल के कुलदेवता का जप करना चाहिए । यदि कोई स्त्री बचपन से ही नामजप करती हो एवं प्रगत साधक हो, तो विवाह के पश्‍चात भी वही नामजप जारी रखने में कोई हानि नहीं । यदि गुरु ने किसी स्त्री को उसके विवाहपूर्व नामजप दिया हो, तो उसे वही नाम जपना चाहिए ।


घर में स्थापित देवी-देवताओं के साथ ही अपने कुल देवता और कुल देवी की भी पूजा जरूर करनी चाहिए


घर में रोज कुल देवता, कुल देवी, घर के वास्तु देवता, ग्राम देवता आदि की भी पूजा जरूर करनी चाहिए।


किसी भी भगवान की पूजा में उनका आवाहन करना, ध्यान करना, आसन देना, स्नान करवाना, धूप-दीप जलाना, चावल, कुमकुम, चंदन, पुष्प, प्रसाद आदि अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

नींबू नारियल की बलि देकर कुल देवी-देवताओं को प्रसन्न करें

पूजा के लिए ऐसे चावल का उपयोग करना चाहिए जो खंडित या टूटे हुए ना हो। चावल चढ़ाने से पहले इन्हें हल्दी से पीला कर लेना चाहिए। पानी में हल्दी घोलकर उसमें चावल को डूबो कर पीला किया जा सकता है।


पूजन में पान का पत्ता भी अर्पित किया जाता है। ध्यान रखें कि केवल पान का पत्ता अर्पित ना करें, इसके साथ इलाइची, लौंग, गुलकंद आदि भी चढ़ाना चाहिए। पूरा बना हुआ पान अर्पित करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा।


देवी-देवताओं के सामने घी और तेल, दोनों के ही दीपक जलाने चाहिए। यदि आप प्रतिदिन घी का दीपक घर में जलाएंगे तो घर के कई वास्तु दोष दूर हो जाएंगे।


पूजन में हम जिस आसन पर बैठते हैं, उसे पैरों से इधर-उधर खिसकाना नहीं चाहिए। आसन को हाथों से ही खिसकाना चाहिए।


देवी-देवताओं को हार-फूल, पत्तियां आदि अर्पित करने से पहले एक बार साफ पानी से जरूर धो लेना चाहिए।


घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।

 


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