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गणपति हवन विधि Ganpati pujan hawan vidhi पूजन एवं हवन विधि

गणपति हवन विधि Ganpati pujan havan vidhi in hindi पूजन एवं हवन विधि

Ganesh Hawan Vidhi In Hindi
गणेश हवन विधि इन हिंदी : गणेश जी को विनायक, विघ्नेश्वर, गणपति, लंबोदर के नाम से भी जाना जाता है वह भगवान शिव और पार्वती जी के पुत्र श्री गणेश जी की पूजा हमारे हिन्दू धर्म में बड़ी ही धार्मिक विधि पूर्वक की जाती है | इसीलिए हम आपको गणेश जी की पूजा के बारे जाने उसी के माध्यम से आप गणेश जी का हवन कर सकते है | गणेश जी की पत्नी का नाम लक्ष्मी है जिनकी पूजा हम दिवाली के दिन करते है दिवाली के दिन बहुत से लोग गणेश जी और लक्ष्मी जी के लिए हवन भी करते है | 

Ganesh Mantra In Hindi
गणेश मंत्र इन हिंदी : गणेश जी के हवन को करने के लिए आप इस मंत्र का उच्चारण करे और मंत्र को शुरू करने से पहले इस मंत्र का उच्चारण करे तभी हवन की शुरुआत करे :

Vakratunda Ganesha Mantra
श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥

Ganesha Shubh Labh Mantra
ॐ श्रीम गम सौभाग्य गणपतये
वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥

Ganesha Gayatri Mantra
ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि,
तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥

Ganesh Havan Ke Liye Samagri List
गणेश हवन के लिए सामग्री लिस्ट : गणेश जी के हवन के लिए आप निम्न प्रकार की सामग्री की लिस्ट का प्रयोग कर सकते है जो की हवन में काम आती है :
अग्नि, वेदी, हौंडा कुंड, यंत्र
माचिस, अगरबत्ती
करपुर या कैम्फर पैकेट, गंध पावडर
श्री मुद्रा (संध्या वंदन के लिए) तीर्थ के लिए पतीला, यज्ञोपवीता
पूजा शंक काउच, बेल, एक अरती (कर्पुर के लिए), दो आरती विक्स के साथ
घी के लिए 4 कटोरे- चम्मच के साथ, राख के लिए 4 कटोरे
आस्रात्र द्रव्य – नारियल के गुच्छे (1 पूरे नारियल), जो गुड़ के बने होते हैं

पहले गणेशजी का पूजन करें गणपतिजी की संक्षिप्त एवं बृहद पूजन विधि दोनों दी जा रही है कोई भी एक चुनें फिर हवन करें - 

आचमन: निम्न मंत्र पढ़ते हुए तीन बार आचमन करें | 
‘ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम: |
फिर यह मंत्र बोलते हुए हाथ धो लें | ॐ हृषीकेशाय नम: | 

तिलक : सभी लोग तिलक करें |
ॐ चंदनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम |
आपदां हरते नित्यं लक्ष्मी: तिष्ठति सर्वदा ||

रक्षासूत्र (मौली) बंधन : हाथ में मौली बाँध लें | ( सिर्फ पहले दिन ) 
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |
तेन त्वां प्रतिबंध्नामि रक्षे मा चल मा चल ||


दीप पूजन : दीपक जला लें |
दीपो ज्योति: परं ब्रम्ह दीपो ज्योति: जनार्दन: |
दीपो हरतु में पापं दीपज्योति: नमोऽस्तु ते ||


गुरुपूजन : हाथ जोडकर गुरुदेव का ध्यान करें |
गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु:.... सद्गुरुं तं नमामि ||


गणेशजी व माँ सरस्वतीजी का स्मरण :
वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ||


कलश पूजन : हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कलश में ‘ॐ’ वं वरुणाय नम:’ कहते हुए वरुण देवता का तथा निम्न श्लोक पढ़ते हुए तीर्थों का आवाहन करेंगे –

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति |
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधिं कुरु ||
(अक्षत –पुष्प कलश के सामने चढ़ा दें | )
कलश को तिलक करें | पुष्प, बिल्वपत्र व दूर्वा चढायें | धुप व दीप दिखायें | प्रसाद चढायें |


संकल्प : हाथ में जल, अक्षत व पुष्प लेकर संकल्प करें | 
श्री गणेश जी की पूजन विधि
गणेश पूजन (सरलतम विधि )

अगरबत्ती और दीप जलाएं और नीचे लिखे सरल मंत्रों का मन ही मन 11, 21 या अधिक बार जप करें :-
            ॐ चतुराय नम: |
           ॐ गजाननाय नम: |
           ॐ विघ्रराजाय नम: |
           ॐ प्रसन्नात्मने नम: |
पूजा और मंत्र जप के बाद श्री गणेश आरती कर सफलता व समृद्धि की कामना करें।

 सामान्य पूजन करें
पूजन सामग्री (सामान्य पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,गंगाजल,सिन्दूर,रोली,रक्षा,कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद (लड्डू गणेश जी को बहुत प्रिय है) |
विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें |
                                                    
ध्यान श्लोक -   शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ..

षोडशोपचार पूजन -  ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्घ्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अक्षतान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि .
और गणेश जी के इन नामों का जप करें  -  
Shree Ganesh vrihad puja vidhi

वृहद पूजन विधि
पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर |
विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -
                                                
और आवाहन करें -
    गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |
    उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||
    आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव |
    यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||


और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -
   अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |
   अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||
आसन-
   रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |
   आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||
पाद्य (पैर धुलना)-
     उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |
     पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||
आर्घ्य(हाथ धुलना )-
     अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :|
     करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||
आचमन -
     सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |
     आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||
स्नान -
     गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|
     स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||
दूध् से स्नान -
     कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |
     पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||
दही से स्नान-
    पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |

    दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||
घी से स्नान -
   नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |
   घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शहद से स्नान-
   तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |
   तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
 शर्करा (चीनी) से स्नान -
     इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |
     मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
पंचामृत से स्नान -
    पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |

    पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान -
    मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |
    तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
वस्त्र -
   सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे |
   मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||
उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )-
   सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |
    वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||
यज्ञोपवीत -
    नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
    उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||
मधुपर्क -
    कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |
    मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||
गन्ध -
    श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |
    विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||

रक्त(लाल )चन्दन-
    रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |
    मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||
रोली -
    कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |
    कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||
सिन्दूर-
    सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||
    शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||
अक्षत -
     अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |
     माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||
पुष्प-
     पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |
     पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||
पुष्प माला -
      माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |
       मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||
बेल का पत्र -
     त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |
      तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||
 दूर्वा -
      त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |

      सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||
 दूर्वाकर -
     दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |
     आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||
शमीपत्र -
   शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |
   धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||
अबीर गुलाल -
   अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |
   अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||
आभूषण -
    अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |

    गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||
सुगंध तेल -
    चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |
    वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||
धूप-
    वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |
    आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||
दीप -
     आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |
     दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||
नैवेद्य-
    शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
    उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||
मध्येपानीय -
   अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |

   त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||

ऋतुफल-

   नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |
   कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां ||
आचमन -
   गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |
   आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||
अखंड ऋतुफल -
    इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |
    तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||
ताम्बूल पूंगीफलं -
    पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |
    एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||
दक्षिणा(दान)-
    हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |
    अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||
आरती -
   चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |
    त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||
पुष्पांजलि -
    नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |
    पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||
प्रार्थना-
    रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:
    भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||
         अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम ||

गणपति हवन विधि Ganesh Ji Ki Pooja Vidhi In Hindi
सबसे पहले हवन के लिए हवन कुंड तैयार करना होता है जिसमे की अपने अक्सर देखा होगा उसमे तीन सिद्धिया होती है इसका यह मतलब है क्योंकि इन तीनो सिद्धियो में तीन देवता निवास करते है :
हवन कुंड की पहली सीढि में विष्णु भगवान का वास होता हैं.
दूसरी सीढि में ब्रह्मा जी का वास होता हैं.
तीसरी तथा अंतिम सीढि में शिवजी का वास होता हैं
Shree Ganesh pujan hawan vidhi in hindi
गणेश जी की पूजा विधि इन हिंदी : सबसे पहले गणेश जी के हवन के लिए आप हवन कुंड में आग जला कर रख ले उसके बाद उसमे धुप और देशी घी डाले और मंत्र का जाप करे फिर एक लकड़ी की चौकी, एक नारियल, चावल, आम के पत्ते, हल्दी मिश्रित अक्षत, चंदन, कुमकुम या सिंदूर, मौली, गंगाजल, पुष्प, तुलसीदल, दूर्वा, बिल्वपत्र, अगरबत्ती, दीपक (सरसों के तेल से जलायें ), रूई, कपूर, सफ़ेद कपड़ा, कुछ फल, प्रसाद आदि इन सब चीज़ो को हवन कुंड में मन्त्र के उच्चारण के साथ धीरे-2 गिराए और मन में ही गणेश जी को याद करे |
Shree Ganesh havan vidhi
एक सरल हवन विधान प्रस्तुत है जो आप आसानी से स्वयम कर सकते हैं ।
ऊं अग्नये नमः .........७ बार इस मन्त्र का जाप करें तथा आग जला लें 
ऊं गुरुभ्यो नमः ..... २१ बार इस मन्त्र का जाप करें ।
ऊं अग्नये स्वाहा ...... ७ आहुति (अग्नि मे डालें)
ऊं गं  स्वाहा ..... १ बार
ऊं भैरवाय स्वाहा ..... ११ बार
ऊं गुरुभ्यो नमः स्वाहा .....१६ बार
ऊं गं गणपतये स्वाहा ..... १०८ बार
अन्त में कहें कि गणपति भगवान की कृपा मुझे प्राप्त हो....
गलतियों के लिये क्षमा मांगे.....
तीन बार पानी छिडककर शांति शांति शांति ऊं कहें.....
  हवन विधिHavan method
ब्रह्मणा अन्वारब्ध आहुति दद्यात्
ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये , इदं न मम ।
ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदमिन्द्राय , इदं न मम ।

ॐ अग्नये स्वाहा । इदमग्नये , इदं न मम ।

ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय , इदं न मम ।
बिना अन्वारब्धमेका आहुति : ।
ब्रह्माजी से मोली सम्बन्ध हटाकर एक आहुति दें । यथा -
ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये , इदं न मम ॥
पुन : अग्नि का ध्यान , आवाहन , पंचोपचार पूजन करें ।
तत : अग्ने सप्तजिह्वानां पूजयेत्
ॐ कनकायै नम :, ॐ रक्तायै नम :, ॐ कृष्णायै नम :, ॐ उदगारिण्ये नम :, ॐ उत्तरमुखे सुप्रभायै नम :, ॐ बहुरूपायै नम :, ॐ अतिरिक्तायै नम : । तदनन्तरं स्त्रुवसमिद्वनस्पतीनीं पूजनम् चेति ॥
अथ पचंवारुणी ( प्रायश्चित्तोहोम : )
ॐ त्वन्नो अग्रे वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो भवयासिसीष्ठा : । यजिष्ठो वह्नितम : शोशुचानो विश्वा द्वेषां सि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा । इदमग्निवरुणाभ्याम् स्वाहा : ॥
ॐ सत्वन्नोऽअग्ने वमो भवोती नेदिष्ठोऽअस्याऽउषसो व्युष्टौ । अवयक्ष्व नो वरुण रराणो वीहि मृडीक सुहवो न एधि स्वाहा । ईदमग्नि वरुणाभ्याम् स्वाहा : ।
ॐ अयाश्चाग्रेऽस्यनभिशस्तिपाश्च सत्वमित्वमयाऽअसि । अयोनो । यज्ञं वहास्ययानो धेहि भेषज् स्वाहा । इदमग्नये स्वाहा ॥
ॐ ये ते शतं वरुन ये सहस्त्रं यज्ञिया : पाशा विवता : महात : । तेभिर्नोऽअद्यसवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुत : स्वर्का : स्वाहा । इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्योदेवेभ्यो मरुद्‌भ्य : स्वर्केभ्य : स्वाहा : ।
ॐ उदुत्तमं वरुण पाशभस्म दवाधमं विमध्य श्रथाय । अथ वयमादित्यव्रते तवानागसोअदितये स्याम स्वाहा ।
इदं वरुणायादित्याया - दितये स्वाहा : ॥ अन्नोदक स्पर्श इति पंचवारुणी अथवा प्रायश्चित होम : ।

ततो गणपतिप्रीत्यर्थं होम :
ॐ गणानां त्वा गणपति हवामहे । प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे ॥ निधीनां त्वां निधिपति हवामहे ।
वसो मम आहमजानि गर्भधमात्व मजासि गर्भद्यम् । ॐ गणपतये स्वाहा : ॥
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Ganesha Chant these names -Ganesh Namvli -108
गणेश नामवली-108
ॐ गणपतये नमः॥ ॐ गणेश्वराय नमः॥ ॐ   गणक्रीडाय नमः॥
ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः॥
ॐ   वक्रतुण्डाय नमः॥ ॐ गजवक्त्राय नमः॥ ॐ मदोदराय नमः॥
ॐ लम्बोदराय नमः॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ ॐ विकटाय नमः॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ ॐ सुमुखाय नमः॥ ॐ   दुर्मुखाय नमः॥
ॐ बुद्धाय नमः॥ ॐविघ्नराजाय नमः॥ ॐ गजाननाय नमः॥
ॐ   भीमाय नमः॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दाय नमः॥
ॐ सुरानन्दाय नमः॥ ॐमदोत्कटाय नमः॥ ॐ हेरम्बाय नमः॥
ॐ शम्बराय नमः॥ ॐशम्भवे नमः ॥ॐ   लम्बकर्णाय नमः ॥ॐ महाबलाय नमः॥ॐ नन्दनाय नमः ॥ॐ
अलम्पटाय नमः ॥ॐ   भीमाय नमः ॥ॐमेघनादाय नमः ॥ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ॐ विनायकाय नमः
॥ॐविरूपाक्षाय नमः ॥ॐ धीराय नमः ॥ॐ शूराय नमः ॥ॐवरप्रदाय नमः ॥ॐ   महागणपतये नमः ॥ॐ
 बुद्धिप्रियायनमः ॥ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ   रुद्रप्रियाय नमः॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्राय नमः ॥
ॐ अघनाशनायनमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ॐमूषकवाहनाय नः ॥
ॐ   सिद्धिप्रदाय नमः॥ॐ सिद्धिपतयेनमः ॥ॐ सिद्ध्यै नमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ॐ सिंहवाहनायनमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय   नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥ॐराजपुत्राय नमः ॥ॐ शकलाय नमः ॥ॐ सम्मिताय नमः॥
ॐ   अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ॐदुर्जयाय नमः ॥ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ   अजयाय नमः ॥ॐभूपतये नमः ॥ॐ भुवनेशाय नमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः॥

ॐ   अव्ययाय नमः ॥ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ॐविश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥

ॐ   निधये नमः॥ॐ घृणये नमः ॥ॐ कवये नमः ॥ॐ कवीनामृषभाय नमः॥
ॐ   ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ॐज्येष्ठराजाय नमः ॥ॐ निधिपतये   नमः ॥
ॐनिधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थायनमः ॥ॐ   सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः ॥
ॐकराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐ पूषदन्तभृतेनमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ॐकुलपालकाय नमः ॥ॐ   किरीटिने नमः ॥ॐ कुण्डलिने नमः॥
ॐ हारिणे नमः ॥ॐ वनमालिने नमः ॥ॐ   मनोमयाय नमः ॥ॐवैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितयेनमः   ॥ॐ सद्योजाताय नमः ॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥
ॐमेखलिन नमः ॥ॐ   दुर्निमित्तहृते नमः ॥ॐदुस्स्वप्नहृते नमः ॥ॐ प्रहसनाय नमः ॥
ॐ गुणिनेनमः ॥ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐ सुरूपाय नमः ॥ॐसर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥
ॐ   वीरासनाश्रयाय नमः ॥ॐपीताम्बराय नमः ॥ॐ खड्गधराय नमः ॥
ॐखण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐ चित्राङ्कश्यामदशनायनमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥
ॐ   चतुर्भुजाय नमः ॥ॐयोगाधिपाय नमः ॥ॐ तारकस्थाय नमः ॥ॐ पुरुषाय नमः॥
ॐ   गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐविजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥ॐ   ध्वजिने नमः ॥ॐदेवदेवाय नमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
ॐ वायुकीलकायनमः   ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ॐ नादाय नमः ॥
ॐनादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ   वराहवदनाय नमः ॥ॐमृत्युञ्जयाय नमः ॥

ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐइच्छाशक्तिधराय नमः ॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥

ॐदैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ   शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः

॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ॐशम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥
ॐगौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ   उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐगौरीतेजोभुवे नमः ॥
ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐयज्ञकायाय नमः ॥ॐ महानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥
ॐ शुभाननाय नमः ॥ॐ   सर्वात्मने नमः ॥ॐसर्वदेवात्मने नमः ॥ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥
ॐककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ॐ
चिद्व्योमफालाय नमः ॥ॐ   सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ॐजगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥
ॐ अग्न्यर्कसोमदृशेनमः   ॥ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ॐ धर्माय नमः ॥ॐधर्मिष्ठाय नमः ॥
ॐ   सामबृंहिताय नमः ॥ॐग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ॐवासवनासिकाय नमः ॥
ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐसोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ   रुद्रशिरोधराय नमः ॥
ॐनदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ॐतारकानखाय नमः ॥
ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥ॐब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः   ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ॐअर्णवोदराय नमः ॥
ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषाय नमः||
उत्तर पूजा - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्बूलं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिः समर्पयामि
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च |
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ..|
प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि |
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा |
प्रार्थनां समर्पयामि |
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं |
पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम |
क्षमापनं समर्पयामि |
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च ||
                                    
                                     
        श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा |
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ||
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी |
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी || जय ...................................................
अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया |
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय ...................................................
हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा || जय ....................................................
दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी |

कामना को पूरा करो जग बलिहारी || जय 
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 गणेश नामवली-108
 भाद्रपद माह की चतुर्थी को मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे भारत में जोर-शोर से मनाया जाता है। हर भक्तगण अपने-अपने तरीके से भगवान गणेश के जन्मदिन को मनाता है। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक गणेशोत्सव मनाया जाता है। पूरा देश मंगलमूर्ति भगवान गणेश को अपने घर लाने के तैयारियों बड़े जोर-शोर से करता है। कहते हैं कि इस दिन भगवान गणेश धरती पर आते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं। बुद्धिदाता, विघ्नहर्ता  जैसे 108 नाम वाले भगवान गणेश के हर एक नाम में अपने भक्तों का उद्धार छुपा हुआ है। 
आधुनिक समय में अधिकतर हर व्यक्ति किसी ना किसी परेशानी से परेशान रहता है। इस परेशानी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है यदि रोज सुबह के समय गणेश जी के 108 नाम लिए जाएँ। गणेश जी को वैसे भी विघ्नहर्त्ता कहा गया है। गणेश जी के 108 नाम इस प्रकार हैं:-
गणेश नामवली-108

1. बालगणपति: सबसे प्रिय बालक 
2. भालचन्द्र: जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो 
3. बुद्धिनाथ: बुद्धि के भगवान 
4. धूम्रवर्ण: धुंए को उड़ाने वाला 
5. एकाक्षर: एकल अक्षर 
6. एकदन्त: एक दांत वाले 
7. गजकर्ण: हाथी की तरह आंखें वाला 
8. गजानन: हाथी के मुँख वाले भगवान 
9. गजनान: हाथी के मुख वाले भगवान 
10. गजवक्र: हाथी की सूंड वाला 
11. गजवक्त्र: जिसका हाथी की तरह मुँह है 
12. गणाध्यक्ष: सभी जणों का मालिक 
13. गणपति: सभी गणों के मालिक 
14. गौरीसुत: माता गौरी का बेटा 
15. लम्बकर्ण: बड़े कान वाले देव 
16. लम्बोदर: बड़े पेट वाले 
17. महाबल: अत्यधिक बलशाली वाले प्रभु 
18. महागणपति: देवातिदेव 
19. महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान 
20. मंगलमूर्त्ति: सभी शुभ कार्य के देव 
21. मूषकवाहन: जिसका सारथी मूषक है 
22. निदीश्वरम: धन और निधि के दाता 
23. प्रथमेश्वर: सब के बीच प्रथम आने वाला 
24. शूपकर्ण: बड़े कान वाले देव
25. शुभम: सभी शुभ कार्यों के प्रभु 
26. सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी 
27. सिद्दिविनायक: सफलता के स्वामी 
28. सुरेश्वरम: देवों के देव 
29. वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड 
30. अखूरथ: जिसका सारथी मूषक है
31. अलम्पता: अनन्त देव 
32. अमित: अतुलनीय प्रभु
33. अनन्तचिदरुपम: अनंत और व्यक्ति चेतना 
34. अवनीश: पूरे विश्व के प्रभु 
35. अविघ्न: बाधाओं को हरने वाले 
36. भीम: विशाल 
37. भूपति: धरती के मालिक 
38. भुवनपति: देवों के देव 
39. बुद्धिप्रिय: ज्ञान के दाता
40. बुद्धिविधाता: बुद्धि के मालिक 
41. चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले
42. देवादेव: सभी भगवान में सर्वोपरी 
43. देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक 
44. देवव्रत: सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले 
45. देवेन्द्राशिक: सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
46. धार्मिक: दान देने वाला 
47. दूर्जा: अपराजित देव 
48. द्वैमातुर: दो माताओं वाले 
49. एकदंष्ट्र: एक दांत वाले 
50. ईशानपुत्र: भगवान शिव के बेटे 
51. गदाधर: जिसका हथियार गदा है 
52. गणाध्यक्षिण: सभी पिंडों के नेता 
53. गुणिन: जो सभी गुणों क ज्ञानी 
54. हरिद्र: स्वर्ण के रंग वाला 
55. हेरम्ब: माँ का प्रिय पुत्र 
56. कपिल: पीले भूरे रंग वाला 
57. कवीश: कवियों के स्वामी
58. कीर्त्ति: यश के स्वामी
59. कृपाकर: कृपा करने वाले
60. कृष्णपिंगाश: पीली भूरी आंखवाले 
61. क्षेमंकरी: माफी प्रदान करने वाला 
62. क्षिप्रा: आराधना के योग्य 
63. मनोमय: दिल जीतने वाले 
64. मृत्युंजय: मौत को हरने वाले 
65. मूढ़ाकरम: जिन्में खुशी का वास होता है 
66. मुक्तिदायी: शाश्वत आनंद के दाता 
67. नादप्रतिष्ठित: जिसे संगीत से प्यार हो 
68. नमस्थेतु:  सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले
69. नन्दन: भगवान शिव का बेटा 
70. सिद्धांथ:  सफलता और उपलब्धियों की गुरु
71. पीताम्बर: पीले वस्त्र धारण करने वाला 
72. प्रमोद: आनंद 
73. पुरुष: अद्भुत व्यक्तित्व 
74. रक्त: लाल रंग के शरीर वाला 
75. रुद्रप्रिय: भगवान शिव के चहीते 
76. सर्वदेवात्मन: सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता 
77. सर्वसिद्धांत: कौशल और बुद्धि के दाता 
78. सर्वात्मन: ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला 
79. ओमकार: ओम के आकार वाला 
80. शशिवर्णम: जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो 
81. शुभगुणकानन: जो सभी गुण के गुरु हैं 
82. श्वेता: जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है 
83. सिद्धिप्रिय: इच्छापूर्ति वाले 
84. स्कन्दपूर्वज: भगवान कार्तिकेय के भाई 
85. सुमुख: शुभ मुख वाले 
86. स्वरुप: सौंदर्य के प्रेमी
87. तरुण: जिसकी कोई आयु न हो 
88. उद्दण्ड: शरारती 
89. उमापुत्र: पार्वती के बेटे 
90. वरगणपति: अवसरों के स्वामी
91. वरप्रद: इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता 
92. वरदविनायक: सफलता के स्वामी 
93. वीरगणपति: वीर प्रभु 
94. विद्यावारिधि: बुद्धि की देव 
95. विघ्नहर: बाधाओं को दूर करने वाले
96. विघ्नहर्त्ता: बुद्धि की देव
97. विघ्नविनाशन: बाधाओं का अंत करने वाले 
98. विघ्नराज: सभी बाधाओं के मालिक 
99. विघ्नराजेन्द्र: सभी बाधाओं के भगवान 
100. विघ्नविनाशाय: सभी बाधाओं का नाश करने वाला 
101. विघ्नेश्वर: सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान 
102. विकट: अत्यंत विशाल 
103. विनायक: सब का भगवान
104. विश्वमुख:  ब्रह्मांड के गुरु
105. विश्वराजा: संसार के स्वामी
105. यज्ञकाय:  सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला
106. यशस्कर:  प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107. यशस्विन: सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
108. योगाधिप: ध्यान के प्रभु
 वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसे हो भगवान गणेश
वास्तु में वर्णित है हर कामना के खास गणपति
घर में सुख-शांति और रिद्धि-सिद्धि के लिए गणेश जी की स्थापना की जाती है। अगर यह स्थापना वास्तु के अनुसार की जाए तो इसका फल और भी अधिक हो जाता है। जानिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसे हो भगवान गणेश
वास्तु में गणपति की मूर्ति एक, दो, तीन, चार और पांच सिरों वाली पाई जाती है। इसी तरह गणपति के 3 दांत पाए जाते हैं। सामान्यत: 2 आंखें पाई जाती हैं, किंतु तंत्र मार्ग संबंधी मूर्तियों में तीसरा नेत्र भी देखा गया है।
भगवान गणेश की मूर्तियां 2, 4, 8 और 16 भुजाओं वाली भी पाई जाती हैं। 14 प्रकार की महाविद्याओं के आधार पर 12 प्रकार की गणपति प्रतिमाओं के निर्माण से वास्तु जगत में तहलका मच गया है।
* संतान गणपति- भगवान गणपति के 1008 नामों में से संतान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए जिनके घर में संतान नहीं हो रही हो। वे लोग संतान गणपति की विशिष्ट मंत्र पूरित प्रतिमा द्वार पर लगाएं जिसका प्रतिफल सकारात्मक होता है।
* विघ्नहर्ता गणपति- विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए, जिस घर में कलह, विघ्न, अशांति, क्लेश, तनाव, मानसिक संताप आदि दुर्गुण होते हैं। पति-पत्नी में मनमुटाव, बच्चों में अशांति का दोष पाया जाता है। ऐसे घर में प्रवेश द्वार पर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए।
* विद्या प्रदायक गणपति- बच्चों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए गृहस्वामी को विद्या प्रदायक गणपति अपने घर के प्रवेश द्वार पर स्थापित करना चाहिए।
* विवाह विनायक- गणपति के इस स्वरूप का आह्वान उन घरों में विधि-विधानपूर्वक होता है, जिन घरों में बच्चों के विवाह जल्द तय नहीं होते।
* चिंतानाशक गणपति- जिन घरों में तनाव व चिंता बनी रहती है, ऐसे घरों में चिंतानाशक गणपति की प्रतिमा को 'चिंतामणि चर्वणलालसाय नम:' जैसे मंत्रों का सम्पुट कराकर स्थापित करना चाहिए।
* धनदायक गणपति- आज हर व्यक्ति दौलतमंद होना चाहता है इसलिए प्राय: सभी घरों में गणपति के इस स्वरूप वाली प्रतिमा को मंत्रों से सम्पुट करके स्थापित किया जाता है ताकि उन घरों में दरिद्रता का लोप हो, सुख-समृद्धि व शांति का वातावरण कायम हो सके।
* सिद्धिनायक गणपति- कार्य में सफलता व साधनों की पूर्ति के लिए सिद्धिनायक गणपति को घर में लाना चाहिए।
* सोपारी गण‍पति- आध्यात्मिक ज्ञानार्जन हेतु सोपारी गण‍पति की आराधना करनी चाहिए।
* शत्रुहंता गण‍पति- शत्रुओं का नाश करने के लिए शत्रुहंता गणपति की आराधना करना चाहिए।
* आनंददायक गणपति- परिवार में आनंद, खुशी, उत्साह व सुख के लिए आनंददायक गणपति की प्रतिमा को शुभ मुहूर्त में घर में स्‍थापित करना चाहिए
विजय सिद्धि गणपति- मुकदमे में विजय, शत्रु का नाश करने, पड़ोसी को शांत करने के उद्देश्य से लोग अपने घरों में 'विजय स्थिराय नम:' जैसे मंत्र वाले बाबा गणपति की प्रतिमा के इस स्वरूप को स्था‍पित करते हैं।
* ऋणमोचन गणपति- कोई पुराना ऋण, जिसे चुकता करने की स्थिति में न हो, तो ऋण मोचन गणपति घर में लगाना चाहिए।
रोगनाशक गणपति- कोई पुराना रोग हो, जो दवा से ठीक न होता है, उन घरों में रोगनाशक गणपति की आराधना करनी चाहिए।
* नेतृत्व शक्ति विकासक गण‍पति- राजनीतिक परिवारों में उच्च पद प्रतिष्ठा के लिए लोग गणपति के इस स्वरूप की आराधना प्राय: इन मंत्रों से करते हैं- 'गणध्याक्षाय नम:, गणनायकाय नम: प्रथम पूजिताय नम:।'

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