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रेकी – Reiki

रेकी – Reiki 

रेकी (Reiki) अर्थात सर्पव्यापी जीवन शक्ति (शिव शक्ति) एक ऐसी आध्यात्मिक अभ्यास पद्धति है जिसका प्रयोग हर प्रकार की बीमारी का उपचार एवं आध्यात्मिकता के स्तर को ऊँचा उठाने में किया जाता है। यह एक स्पर्श चिकित्सा है जो की लगभग एक योग जैसी ही विधि है। सहस्रों वर्ष पूर्व भारत में रेकी शक्ति का पूर्ण ज्ञान था। श्री राम चंद्र जी ने  मिथिलापुरी के वन में तपस्या में लीन श्रापित माता अहिल्या के श्राप को अपने स्पर्श द्वारा रेकी शक्ति से ही मुक्त किया था, श्री  कृष्ण जी ने कंस की दासी कुब्जा को अपने स्पर्श से ही अंगविकृति से मुक्त कर उसका कल्याण किया था। संत तुलसीदस जी ने मुर्दे के मस्किष्क पर हाथ रख इसी शक्ति से उसे जीवित कर दिया था। साईं बाबा जी और इसा मसीह ने असंख्य रोगियों का उपचार कर उनका कलयाण रेकी शक्ति से ही किया था। अथर्ववेद में भी रेकी शक्ति के प्रमाण मिलते हैं परन्तु यह विद्या गुरुजनो द्वारा अपने शिष्यों को मौखिक रूप में दी जाती थी और इसका लिखित में कोई ग्रन्थ या अन्य सामग्री ना होने के कारन यह विद्या लुप्त हो गई। परन्तु महात्मा बुद्ध ने लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व अपने आध्यात्म और योग के बल पर पुनः इस विद्या को प्राप्त कर अपने शिष्यों को दिया और इस लुप्त विद्या को जागृत कर विश्व का कल्याण किया। महात्मा बुद्ध की अपनी एक पुस्तक कमल सूत्र में रेकी विद्या का कुछ वर्णन है। महात्मा बुद्ध के शिष्यों के साथ यह विद्या तिब्बत और चीन से होती हुई जापान तक पहुँची और जापान में इस पर पुनः खोज का काम जापान के डॉक्टर मिकाओ उसुई जी ने किया था। डॉक्टर मिकाओ उसुई जी की विचारधारा अनुसार ऊर्जा जीवित प्राणियों से ही प्रवाहित होती है और इस ऊर्जा को जीवन ऊर्जा कहा जाता है और यह जीवन की प्राण शक्ति है। यह शक्ति हमेशा हमारे आस पास ही रहती है और इसे मस्तिष्क द्वारा ग्रहण कर शरीर के सारे चक्रों एवं ऊर्जा केंद्रों को शक्तिशाली बना सकते हैं।

डॉक्टर मिकाओ उसुई जी ने रेकी (Reiki) विद्या पर कई शोध की और रैकी के उपयोग को और शक्तिशाली बनाने के लिए कई आध्यात्मिक विधियों के बारे में भी ज्ञान दिया। रेकी दो शब्दों (रे+की) के जोड़ से बनती है जिसमें ‘रे’ का अर्थ सार्वभौमिक अर्थात सर्पव्यापी और ‘की’ का अर्थ ऊर्जा (जीवन शक्ति) है। शोध के अनुसार यह निष्कर्ष निकला है कि इस विधि को आध्यात्मिक चेतन अवस्था या अलौकिक ज्ञान भी कहा जा सकता है। इसे सर्व ज्ञान भी कहा जाता है क्यूंकि इसके द्वारा सभी समस्याओं की जड़ में जाकर उनका उपचार किया जाता है। रेकी की मान्यता है कि ‘की’ (ऊर्जा) जीवित प्राणी के चारों और घूमती रहती है और मृत्यु होते ही प्राणी के शरीर का त्याग कर देती है। शक्ति, विचार, भाव और आध्यात्मिक जीवन भी ‘की’ (ऊर्जा) के माध्यम से उपजते हैं। आध्यात्म में इस ‘की’ (ऊर्जा) को आत्मा भी कहा जाता है।

काम, क्रोध, मोह, चिन्ता, लोभ, तनाव, उत्तेजना अदि दिमाग एवं शरीर की ऊर्जा का नाश करके शरीर के अंगों एवं नाड़ियो में कसाव एवं हलचल पैदा कर देते हैं, जिससे रक्त धमनियों में विकार उत्पन्न होने के साथ साथ शरीर के सभी चक्र दूषित एवं बाधित हो जाते हैं और शारीरिक रोग इन्ही विकृतियों के परिणाम हैं। रेकी (Reiki) बीमारी को दबाती नहीं है, यह हर प्रकार की मानसिक एवं शारीरिक बीमारी को जड़ से नष्ट करती हैं। यह हमारी ऊर्जा को संतुलित कर मन और मस्तिष्क का संतुलन बनती है।  रेकी के द्वारा मानसिक भावनाओं का संतुलन होता है। रेकी ब्रह्माण्ड की सभी बीमारियों से जैसे की शारीरिक तनाव, बैचेनी, दर्द, मधुमेह, गठिया, दमा, कैंसर, एसिडिटी, रक्तचाप, पक्षाघात, अल्सर, पथरी, बवासीर, अनिद्रा, मोटापा, गुर्दे के रोग, आंखों के रोग, स्त्री रोग, बाँझपन, शक्तिन्यूनता, पागलपन अदि दूर करने में समर्थ है। इसके अतिरिक्त रेकी हमारे आभा मंडल को शुद्ध एवं शक्तिशाली बना कर सर्व प्रकार के नकारात्मक ऊर्जा (नजर दोष, ऊपरी बाधा अदि) के प्रभाव से हमेशा मुक्त रखती है।

रेकी (Reiki) एक ऐसी आध्यात्मिक विद्या है जिसे पुस्तकें पड़ कर  नहीं सिखा जा सकता। पूर्व काल में गुरुजन इसे कुंडलनी शक्ति के रूप में शिष्य को प्रदान करते थे। इसलिए विद्यार्थी इसे रेकी मास्टर से ही सीखता है। रेकी को पाना व्यक्ति के पूर्व जन्मो के कर्म, संस्कार एवं सम्बन्धों पर निर्भर करता है क्यूंकि यह एक ऐसी जीवन दायनी शक्ति है जो स्वयं उस व्यक्ति का चयन करती है जो रेकी शक्ति को धारण करने योग्य हो। हमें कई कठिन से कठिन साधनाओं और सिद्धिओं में सहज ही सफलता प्राप्त हो जाती है परन्तु किसी आसान सी साधना में पूरे जीवन भर के परिश्रम से भी सफलता प्राप्त नहीं होती। पूर्व जन्म में जो साधनायें और सिद्धयाँ हमें प्राप्त होती हैं वह वर्तमान में सहज ही प्राप्त को जाती हैं क्योंकि उन साधनाओं और सिद्धियों से हमारा कर्म और सम्बन्ध जुड़ जाता है। इसी प्रकार रेकी शक्ति का प्राप्त होना भी पूर्व जन्म के सम्बन्ध और कर्मों पर निर्भर करता है।

रेकी (Reiki) किसी भी जात या धर्म से सम्बन्ध नहीं रखती। रेकी का कोई पंथ या वर्ग नहीं है। रेकी को पाने के लिए किसी विशेष धर्म का होना भी अावश्यक नहीं। आप किसी भी जात या धर्म के हों रेकी प्राप्त करके अपने आध्यात्मिक स्तर को और ऊँचा उठा सकते हैं। रेकी में कुछ नियम हैं जिनके अधीन रह कर ही रेकी का प्रयोग किया जाता है। रेकी के यह नियम हमें अपना और सरे संसार के कल्याण करने के लिए प्रेरित करते हैं। रेकी जिस व्यक्ति के पास होती है उसकी दिमाग की शक्ति अद्धभुत हो जाती है उसके सोचने मात्र से ही कार्य सफल होने लगते हैं। इसीलिए रेकी में नियम बनाये गए ताकि रेकी का कोई दुरूपयोग न कर सके। रेकी का प्रयोग मार्शल आर्ट़स विशेषज्ञ भी करते हैं। रेकी का प्रयोग करते समय व्यक्ति के हाथ गरम हो जाते हैं क्यूंकि ऊर्जा हाथों द्वारा निकर कर तीव्र गति से उस कार्य को संपूर्ण करने के लिए जाती है जिस कार्य के लिए उसे आदेश दिया जाता है। हमारे हाथों से एक ऐसी दिव्या प्राण उर्जा प्रवाहित होती है जो रोग और समस्याओ से मुक्ति कर हमारा एवं दूसरों का भी कल्याण करती है। हमारी नकारात्मक ऊर्जा को परिवर्तित कर उसे सकारात्मक ऊर्जा में बदलने देती है। रेकी विद्या रेकी मास्टर्स द्वारा व्यक्ति का शक्तिपात (एट्यूनमेंट) कर प्रदान की जाती है। इससे व्यक्ति के शरीर में स्थित शक्ति एवं ऊर्जा के केंद्र जिन्हें चक्र कहते है, पूरी तरह सक्रिय हो जाते हैं, जिससे उनमें जीनव शक्ति का संचार होने लगता है। रेकी का मूल आधार उसुई रेकी है जिसकी तीन डिग्रियां हैं और एक मास्टर डिग्री है। लेकिन रेकी के कुछ शोध करताओं एवं विशेषज्ञों ने अन्य कई प्रकार की रेकी दिद्याओं की खोज की। रेकी मास्टर्स एवं ग्रैंड मास्टर्स निम्न प्रकार की रेकी डिग्रियों का शक्तिपात (एट्यूनमेंट) करते हैं जिनमें उसुई रेकी की प्रथम, द्वितीय, एवम तृतीय डिगरी पहले लेनी अनिवार्य है।

  1. प्रथम डिगरी
  2. द्वितीय डिगरी
  3. तृतीय डिगरी
  4. मास्टर्स रेकी
  5. ग्रैंड मास्टर्स रेकी।
  6. करुणा रेकी
  7. वैभव लक्ष्मी रेकी
  8. विद्या रेकी
  9. मधुराम रेकी 
  10. मैग्नीफाइंग रेकी
  11. पास्ट लाइफ रिग्रेशन रेकी
  12. हिप्नोसिस रेकी
  13. थर्ड आई शक्तिपात
  14. डाउज़िंग


रेकी सीखने के लाभ – Reiki Seekhne Ke Labh :
रेकी से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि या संक्रमण नहीं होता है।
रेकी शक्ति एवम ऊर्जा को बड़ा कर हमारी कार्य करने की क्षमता को बढ़ती है।
रेकी हमारे शरीर का काया कल्प कर देती है।
रेकी जीवन में प्रेम और सद्भावना से भरा देती है।
रेकी शरीर में शक्ति का संतुलन स्थापित करती है।
रेकी रोगों को जड़ से समाप्त करती है।
रेकी तनाव एवं भावनाओं के बंधन से मुक्त करती है।
रेकी शरीर की अवरुद्ध ऊर्जा को सुचारुता प्रदान करती है।
रेकी शरीर में व्याप्त नकारात्मक प्रवाह को दूर करती है।
रेकी अतीद्रिंय मानसिक शक्तियों को बढ़ाती है।
रेकी शरीर की रोगों से लड़ने वाली शक्ति को प्रभावी बनाती है।
रेकी ध्यान लगाने के लिए सहायक होती है।
रेकी समक्ष एवं परोक्ष उपचार करती है।
रेकी सजीव एवं निर्जीव सभी का उपचार करती है।
रेकी हमारे अंदर दया भाव जागृत कर सद् बुद्धि प्रदान करती है।
रेकी हमारी चिंता एवं घबराहट को दूर करती है।
रेकी हमें मधुर व अच्छी नींद देती है।
रेकी पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करती है।
रेकी हमारी इच्छा शक्ति को बढ़ाती है।
रेकी हमारे पूर्व जन्मो के विकर्मो एवं दोषों को नष्ट कर उत्तम जीवन प्रदान करती है।
रेकी हमारे पारिवारिक संबंधों में मधुरता लाने में हमारी सहायता करती है।
रेकी हमारे आध्यात्मिक स्तर को ऊंच उठती है।
रेकी हमें क्रोध मुक्त जीवन प्रदान करती है।
रेकी हमारे अंदर क्षमा भाव जागृत करती है।
रेकी हमारी नीरसता एवं निराशा को दूर कर जीवन में आनंद भर्ती है।
रेकी से हर प्रकार की परिस्थितियों को बदल सकते हैं।
रेकी से अपने व्यक्तित्व, आदतें एवं स्वभाव को बदल सकते हैं।


विभिन्न उपचारों में रेकी देने की अवस्थाएं – Vibhinn Upcharon Mein Reiki Dene Ki Avasthayen :
रेकी का हमारे ऊपर किसी भी प्रकार का नकारत्मक प्रभाव कभी भी नहीं हो सकता। रेकी सदैव हर क्षेत्र, कार्य और दिशा में हमारी सदा सहायक होती है। परन्तु किसी अन्य रोग ग्रस्त व्यक्ति को इस दिव्य ऊर्जा से स्वस्थ करने से पहले अपने आप को सुरक्षा कवच से सुरक्षित कर प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। सुरक्षा कवच एवं प्रार्थना के बिना रेकी का प्रयोग करना घातक हो सकता है। अगर आपके पास रेकी है पर उसको प्रयोग करके की सुरक्षात्मक विधि नहीं है तो अपने रेकी गुरु या रेकी गाइड से इसका पूर्ण ज्ञान लेकर ही इसका प्रयोग करें अन्यथा रोग एवं विपत्तियों से आप ग्रस्त हो सकते हैं। अगर आपके पास रेकी का विधि पूर्वक प्रयोग करने का ज्ञान है तो आपसे ज्यादा सौभाग्यशाली और कोई नहीं।

१. आज्ञा चक्र + हृदय चक्र
तनाव से मिकतु पाने के लिए।
क्रोध, घबराहट एवं चिंता को समाप्त करने के लिए।
अपनी एवं दूसरों की भावनाओं को समाप्त करने के लिए।
आत्मा की जाग्रति बढ़ने के लिए।
लक्षय को पाने हेतु आत्म बल बढ़ने के लिए।
स्मरण शक्ति बढ़ने के लिए।
नींद के कारन आ रही सुस्ती को भागने के लिए।
अपने हेतु घृणा भाव से मुक्ति पाने के लिए।
दया वान, हिम्मतवान, क्षमाशील बनाने के लिए।
हृदय रोगों को समाप्त करने के लिए।
पूरे शरीर की ऊर्जा का संतुलन बना कर ऊर्जावान बनने हेतु।
जीवन में निराशाओं से मुक्ति पाने के लिए।
सम्पूर्ण शरीर की दर्दों को ठीक करने के लिए।
आत्मा दाह जैसी भावनाओं से मुक्ति पाने के लिए।
दूसरों के प्रति वयवहार को ठीक करने के लिए।

२. आज्ञा चक्र + हृदय चक्र, मणिपुर चक्र + मूलाधार चक्र
जिद्दी स्वाभाव से मुक्ति पाने के लिए।
इच्छा शक्ति को बढ़ाने के लिए।
नकात्मक विचारों को समाप्त करने के लिए।
बार बार बीमार या अशक्त होने की अनुभति से मुक्ति पाने के लिए।
बार बार विचार या निर्णय बदलने की आदत को सुधरने के लिए।
योगयता से अधिक ऊँची भावनाओं से मुक्ति पाने के लिए।
मिरगी की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।
सोते समें नाक की ध्वनि (खरार्टे) से मुक्ति पाने के लिए।

३. मणिपुर चक्र + मूलाधार चक्र, आज्ञा चक्र के आगे व पीछे
गर्मी या सर्दी के अधिक प्रभाव से बचने के लिए।
बुखार से मुक्ति पाने के लिए।

४. मणिपुर चक्र + मूलाधार चक्र
हर प्रकार की एलर्जी से मुक्ति पाने के लिए।
मौसम के बदलाव के कारन होने वाली बिमारियों से मुक्ति पाने के लिए।
सूंघने की क्षमता क्षीण होने की स्थिति में बचाव के लिए।
पुरानी दुखद यादों से मुक्ति पाने के लिए।
किसी भी प्रकार की घृणा के विचारों से मुक्ति पाने के लिए।
वायरल इन्फेक्शन से मुक्ति पाने के लिए।

५. मणिपुर चक्र + आज्ञा चक्र
उदार की कीसी भी प्रकार की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।
वमन (उलटी) एवं दस्त को ठीक करने के लिए।
उदर में एसिड एवं गैस की बीमारी को ठीक करने के लिए।
कब्ज से मुक्ति पाने के लिए।
चार्म रोग से मुक्ति पाने के लिए।
सफ़ेद व काले दागों को ठीक करने के लिए।
मुहांसे की बीमारी से मुक्त होने के लिए।
समझदारी को बढ़ाने के लिए।
नापसंद चीजों को खाने एवं नुकसानदायक चीजों को न खाने की रूचि पैदा करने के लिए।
हर स्थिति में आनंद में रहने के लिए।

६. मूलाधार चक्र + विशुद्ध चक्र
आत्म शक्ति में वृद्धि के लिए।
नजर दोष से बचाव के लिए।
ऊपरी बाधा, भूत, प्रेत, टोना, टोटका, अदि से मुक्ति के लिए।
चक्रों की तकलीफ से मुक्ति के लिए।
ग्रह दोषों को दूर करने के लिए।

७. आज्ञा चक्र + स्वाधिष्ठान
कफ विकार को ठीक करने लिए।
सर्दी (जुकाम) की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।
स्व विकास (Self development) के लिए।
मूत्र विकार से मुक्ति पाने के लिए।
स्त्रियों के गुप्त रोगों को ठीक करने के लिए।
शरीर में सूजन (Swelling) को ठीक करने के लिए।
नपुंसकता को ठीक करने के लिए।
बांझपन को ठीक करने के लिए।
संतान होने में आ रही बाधाओं को ठीक करने के लिए।
हार्मोन्स को संतुलित करने के लिए।
उदार (Stomach) में अल्सर या कोई भी और बीमारी को ठीक करने के लिए।

८. आज्ञा चक्र + मूलाधार चक्र + रोग ग्रस्त स्थान पर
हड्डियों एवं जोड़ों के दर्द को ठीक करने के लिए।
स्फूर्ति एवं चेतना प्राप्त करने के लिए।
गुप्तांगों की बिमारियों को ठीक करने के लिए
ऊर्जा को बढ़ने के लिए।
सुस्ती एवं शरीर के भारीपन को दूर करने के लिए।
अस्थिर एवं बेकार विचारों को दूर कर भविष्य में स्थिरता लेन के लिए।

९. स्वाधिष्ठान चक्र + मूलाधार चक्र + किडनी
किडनी के हर प्रकार के रोगों से मुक्ति पाने के लिए।

१०. आज्ञा चक्र + हृदय चक्र, मणिपुर + मूलाधार, विशुद्ध चक्र
खान पान की बुरी आदतों से मुक्ति पाने के लिए।
सभी प्रकार के वाणी दोष से मुक्ति पाने के लिए।
प्रभावशाली वक्ता बनाने के लिए।

११. स्वाधिष्ठान चक्र + विशुद्ध चक्र
थाइरॉयड से मुक्ति पाने के लिए।
टॉन्सिल की बीमारी को ठीक करने के लिए।
जुकाम एवं खांसी की बीमारी को ठीक करने के लिए।
गले की सभी बिमारियों को ठीक करने के लिए।

१२. स्वाधिष्ठान चक्र + आज्ञा चक्र
डिप्रेशन से मुक्ति पाने के लिए।
भावनात्मक तनावों से मुक्ति पाने के लिए।
निराशा को दूर कर उमंग उत्साह से जीवन को भरने के लिए।

१३. मणिपुर चक्र + विशुद्ध चक्र, शरीर के रोग ग्रस्त भाग पर
शरीर को अच्छे आकर में बदलने हेतु।
शरीर का वजन घटने के लिए।
शरीक का वजन बढ़ने या संतुलित करने के लिए।

१४. मणिपुर चक्र + मूलाधार चक्र, हृदय चक्र + आज्ञा चक्र
मईग्रेन से मुक्ति पाने के लिए।
सल्वाईकल से मुक्ति पाने के लिए।
सर की हर प्रकार की दर्द को ठीक करने के लिए।
नसों की बाधाओं को दूर करने के लिए।

१५. हृदय चक्र + आज्ञा चक्र, मणिपुर चक्र + स्वाधिष्ठान, फेफड़े आगे पीछे से
फेफड़ों की हर प्रकार की बीमारी को ठीक करने के लिए।
अस्थमा की बीमारी को ठीक करने के लिए।

१६. स्वाधिष्ठान + मणिपुर चक्र, आज्ञा चक्र + हृदय चक्र
अधिक खाने से हो रहे भारीपन से मुक्ति पाने के लिए।
भूख या प्यास लगने पर भी खाने पीने की इच्छा न होने जैसी स्थिति के लिए।
भूख प्यास में समय व्यतीत करने हेतु सरलता से शक्ति प्राप्त करने के लिए।

१७. मणिपुर चक्र + पेन्क्रियाज (पेट के बायीं और), आज्ञा चक्र + हृदय चक्र, रोग गस्त स्थान
मधुमेह (डयबिटीज) से मुक्ति पाने के लिए।
मधुमेह के कारन शरीर के अन्य भागों में हो रहे रोगों से मुक्ति पाने के लिए।

१८. स्वाधिष्ठान चक्र, पैरों के तलवों के नीचे, आँखें
आँखों की हर प्रकार की तकलीफों से मुक्ति पाने के लिए।
चश्मे से मुक्ति पाने के लिए।

१९. मणिपुर चक्र + स्वाधिष्ठान चक्र, मूलाधार चक्र + रोग ग्रस्त स्थान
पत्थरी (स्टोन) की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।

२० रीढ़ की हड्डी के पहले एवं अंतिम मनके के ऊपर हाथों की एक एक उंगली से सहने योग्य दबाव डाल कर एवं बाद में दोनों हाथों से धीरे धीरे रख कर
२४ साल तक की उम्र तक लम्बाई बढ़ाने या बढ़ती हुई लम्बाई को रोकने के लिए ।
रीढ़ की हड्डी की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।
पीठ की दर्द से मुक्ति पाने के लिए।
गर्दन की दर्द या अकड़न से मुक्ति पाने के लिए।

२१. मणिपुर चक्र + लिवर, दोनों गलों पर
दांतों की रोगों से मुक्ति पाने के लिए।
मुख के सारे दाग-धब्भे ठीक करने के लिए।
मुहाँसों को ठीक करने के लिए।
मुख के अंदर हुए छालों एवं अल्सर को ठीक करने के लिए।

२२. कनपटियों के ऊपर , माथे के आगे पीछे + स्वाधिष्ठान चक्र
स्त्रियों के चेहरे से अनावश्यक बालों को हटाने के लिए।
शरीर से अनावश्यक बालों को हटाने के लिए।

२३. स्वाधिष्ठान चक्र + मूलाधार चक्र, हृदय चक्र + मस्तिष्क के आगे व पीशे
गर्भ को गिरने से बचने के लिए।
गर्भावस्था लेन के लिए।
गर्भ के समय माँ एवं बच्चे के स्वस्थ्य के लिए।
बिना ऑपरेशन एवं सहज डिलीवरी के लिए।

२४. मणिपुर चक्र, मस्तिष्क के आगे व पीशे, रोग ग्रस्त स्थान पर
किसी भी प्रकार की दवाई या केमिकल रिएक्शन से मुक्ति पाने के लिए।
विष के प्रभाव को समाप्त करने के लिए।
खाने से हुए विष या बीमारी (फ़ूड पाइजन) को ठीक करने के लिए।
किसी जीव अदि के काटने से फैलते हुए विष को रोकने के लिए।

२५. स्वाधिष्ठान चक्र, रोग ग्रस्त स्थान
मुख की नसें खीचने की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।

२६. मूलाधार चक्र + स्वाधिष्ठान चक्र, मूलाधार चक्र पेशे से + रोग ग्रस्त स्थान
टांगों की नसें खीचने की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।

२७. मणिपुर चक्र + रोग ग्रस्त स्थान
शरीर में कहीं पर भी हुई गांठों की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।
उल्सर की बीमारी से मुक्ति लिए।

२८. दोनों कानो पर, मस्तिष्क के आगे पेशे, स्वाधिष्ठान चक्र
कानो की किसी भी प्रकार की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।

२९. मस्तिष्क आगे पीशे, स्प्लीन + मणिपुर चक्र, लिवर
पीलिया की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।
लिवर की बिमारिओं को ठीक करने के लिए।
रक्त सम्बंधित बिमारियों से मुक्ति पाने के लिए।

३०. मस्तिष्क आगे पीशे, हृदय चक्र, दोनों कंधे
भुजाओं एवं हाथों की बीमारी के लिए।
दोनों कन्धों की दर्द अदि बिमारियों को ठीक करने के लिए।
कंधो से ले कर हाथों की उँगलियों तक रक्त प्रवाह की सभी रुकावटों को समाप्त करने के लिए।

३१. अनाहत चक्र + स्वाधिष्ठान चक्र (पीशे से)
रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) को नियंत्रित करके के लिए।

३२. रोग ग्रस्त स्थान पर
नसों के खिचाव या खिसकने से पैदा हुए रोग को ठीक करने के लिए।
शरीर के जोड़ों में मोच या मरोड़ आने से पैदा हुए रोग और दर्द को ठीक करने के लिए।

३३. मस्तिष्क आगे पीशे, मणिपुर चक्र + रोग ग्रस्त स्थान
फुंसी या फोड़े की दर्द को ठीक करने के लिए।
कोई तीखी वास्तु (कांटा, सुई अदि) के चिभ्ने की दर्द से मुक्ति पाने के लिए।
गरम पदार्थ शरीर पर गिरने से हो रही जलन या दर्द को ठीक करने के लिए।
तेजाबी या विषैला पदार्थ शरीर पर गिरने से हो रही जलन या दर्द को ठीक करने के लिए।
की सी भी प्रकार के घाव या चोट की दर्द, जलन अदि से मुक्ति पाने के लिए।

३४. रोग ग्रस्त स्थान + अनाहत चक्र से थोड़ा सा नीचे, मस्तिष्क आगे पीशे
शरीर में कीसी भी हिस्से में कैंसर की बीमारी से मुक्ति पाने के लिए।
स्तनों के कैंसर एवं दर्द से मुक्ति पाने के लिए।

३५. सभी चक्रों पर, रोग ग्रस्त स्थान पर
आम तोर पर हम रोग ग्रस्त स्थान पर रेकी दे कर वहां से रोग या पीडा को ठीक कर सकते हैं।
लेकिन सातों चक्रों के साथ रोग ग्रस्त स्थान पर रेकी देने से रोग शीग्र ठीक हो जाता है और
शरीर को पर्याप्त ऊर्जा भी प्राप्त होती है जो लगातार रोग को समाप्त करने में सहायक होती है।


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