अगर आपके जीवन में कोई परेशानी है, जैसे: बिगड़ा हुआ दांपत्य जीवन , घर के कलेश, पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध, निसंतान माता पिता, दुश्मन, आदि, तो अभी सम्पर्क करे. +91-8602947815

षोडशवर्ग Shodash varga


षोडशवर्ग Shodash varga

षोडश वर्ग का फलित ज्योतिष में विशेष महत्व है। जन्मपत्री का सूक्ष्म अध्ययन करने में यह विशेष सहायक है। इन वर्गों के अध्ययन के बिना जन्म कुंडली का विश्लेषण अधूरा होता है क्योंकि जन्म कुंडली से केवल जातक के शरीर, उसकी संरचना एवं स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है, लेकिन षोडश वर्ग का प्रत्येक वर्ग जातक के जीवन के एक विशिष्ट कारकत्व या घटना के अध्ययन में सहायक होता है।

षोडशवर्ग Shodash varga:
षोडशवर्ग  किसे कहते है ?

हम जानते हैं कि अगर राशिचक्र को बराबर 12 भागों में बांटा जाय तो हर एक हिस्‍सा कहलाता है 'राशि'। 

सूक्ष्‍म फलकथन के लिए राशि के भी विभाग किए जाते हैं और उन्‍हें वर्ग कहते हैं। वर्गों को अंग्रेजी में डिवीजन (division) और वर्गों पर आधारित कुण्‍डली (वर्ग चर्क्र) को डिवीजनल चार्ट (divisional chart) कह दिया जाता है। वर्गों को ज्‍योतिष में नाम दिए गए हैं जैसे 

अगर राशि को दो हिस्‍सों में बांटा जाय तो ऐसे विभाग को कहते हैं होरा। 
इसी तरह अगर राशि के तीन हिस्‍से करे जायें तो तो कहते हैं द्रेष्‍काण, 
नौ हिस्‍से किए जाय तो कहते हैं नवमांश। 

इसी तरह हर एक वर्ग विभाजन को नाम दिए गए हैं। 


वर्गों का प्रयोग खासकर ग्रहों के बल की गणना के लिए किया जाता है। सामान्‍य तौर पर जो ग्रह जितने ज्‍यादा उच्‍च वर्ग, मित्र वर्ग और शुभ ग्रहों के वर्ग पाता है वह उतना ही शुभ फल देता है। जो ग्रह जितना ज्‍यादा ताकतवर होता है वह अपना फल उतना ही ज्‍यादा दे पाता है। शुरुआती दौर में वर्ग बहुत कनफयूज करते हैं इसलिए आप अपना ध्‍यान सिर्फ नवांश पर लगाएं। अगर कोई ग्रह नवांश में कमजोर है यानि कि नीच राशि का या शत्रु राशि का है तो अपने शुभ फल नहीं दे पाता। अगर कोई ग्रह कुण्‍डली में उच्‍च का भी हो पर नवांश में नीच का हो तो वह ग्रह कुछ खास शुभ फल नहीं दे पाएगा।

इन सभी वर्गों में नवांश या नवमांश सबसे महत्‍वपूर्ण होता है।


वर्ग नामवर्ग संख्‍याविचारणीय विषय
लग्‍न1देह
होरा2धन
द्रेष्‍काण3भाई बहनें
चतुर्थांश4भाग्‍य
सप्‍तमांश7पुत्र – पौत्रादि
नवमांश9स्‍त्री एवं विवाह
दशमांश10राज्‍य एवं कर्म
द्वादशांश12मा‍ता पिता
षोडशांश16वाहनों से सुख दुख
विशांश20उपासना
चतुर्विशांश24विधा
सप्‍तविंशांश या भांश27बलाबल
त्रिशांश30अरिष्‍ट
खवेदांश40शुभ अशुभ
अक्षवेदांश45सबका
षष्‍ट्यंश60सबका

वर्ग क्या है ?  वर्ग वास्तव में गहो और लग्न का सूक्ष्म विभाजन है। यह इसलिए भी आवश्यक है की एक लग्न मे कई जातक जन्म लेते है। लेकिन हर एक का  गुण, शरीर, धन, पराक्रम, सुख, बुद्धि, भार्या, भाग्य एक सा नही होता।  अतः यही जानने के लिए वर्ग बनाये जाते है। एक राशि 30 अंशो की होती है इसके सूक्ष्म विभाजन करने पर कुल सोलह वर्ग बनते है। इनके नाम इस प्रकार है :- 01 लग्न, 02 होरा, 03 द्रेष्काण, 04 चतुर्थांश, 05 सप्तमांश, 06 नवमांश, 07 दशांश,  08 द्वादशंश, 09 षोडशांश, 10 विशांश, 11 चतुर्विंशांश, 12 त्रिशांश, 13 खवेदांश, 14 अक्षवेदांश, 15 भांश, 16 षष्टयांश (1 / 60)

षट्वर्ग :   लग्न, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, द्वादशांश, त्रिशांश ये छः वर्ग होते है।
सप्तवर्ग :  उपरोक्त षट्वर्ग मे सप्तांश जोड़ देने पर सप्तवर्ग हो जाते है।
दसवर्ग :  उपरोक्त  सप्तवर्ग मे दशांश, षोड़शांश, षष्टयांश जोड़ देने पर दस वर्ग होते है।

जातक के जीवन के जिस पहलू के बारे में हम जानना चाहते हैं उस पहलू के वर्ग का जब तक हम अध्ययन न करें तो विश्लेषण अधूरा ही रहता है। जैसे यदि जातक की संपत्ति, संपन्नता आदि के विषय में जानना हो, तो जरूरी है कि होरा वर्ग का अध्ययन किया जाए। इसी प्रकार व्यवसाय के बारे में पूर्ण जानकारी के लिए दशमांश की सहायता ली जाए। जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानने के लिए किसी विशेष वर्ग का अध्ययन किए बिना फलित गणना में चूक हो सकती है। षोडश वर्ग में सोलह वर्ग होते हैं जो जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं की जानकरी देते हैं। जैसे होरा से संपत्ति व समृद्धि; द्रेष्काण से भाई-बहन, पराक्रम, चतुर्थांश से भाग्य, चल एवं अचल संपत्ति, सप्तांश से संतान, नवांश से वैवाहिक जीवन व जीवन साथी, दशांश से व्यवसाय व जीवन में उपलब्धियां, द्वादशांश से माता-पिता, षोडशांश से सवारी एवं सामान्य खुशियां, विंशांश से पूजा-उपासना और आशीर्वाद, चतुर्विंशांश से विद्या, शिक्षा, दीक्षा, ज्ञान आदि, सप्तविंशांश से बल एवं दुर्बलता, त्रिशांश से दुःख, तकलीफ, दुर्घटना, अनिष्ट; खवेदांश से शुभ या अशुभ फलों, अक्षवेदांश से जातक का चरित्र, षष्ट्यांश से जीवन के सामान्य शुभ-अशुभ फल आदि अनेक पहलुओं का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है। षोडश वर्ग में सोलह वर्ग ही होते हैं, लेकिन इनके अतिरिक्त और चार वर्ग पंचमांश, षष्ट्यांश, अष्टमांश, और एकादशांश होते हैं। पंचमांश से जातक की आध्यात्मिक प्रवृत्ति, पूर्व जन्मों के पुण्य एवं संचित कर्मों की जानकारी प्राप्त होता है। षष्ट्यांश से जातक के स्वास्थ्य, रोग के प्रति अवरोधक शक्ति, ऋण, झगड़े आदि का विवेचन किया जाता है। एकादशांश जातक के बिना प्रयास के धन लाभ को दर्शाता है। यह वर्ग पैतृक संपत्ति, शेयर, सट्टे आदि के द्वारा स्थायी धन की प्राप्ति की जानकारी देता है। अष्टमांश से जातक की आयु एवं आयुर्दाय के विषय में जानकारी मिलती है। षोडश वर्ग में सभी वर्ग महत्वपूर्ण हैं, लेकिन आज के युग में जातक धन, पराक्रम, भाई-बहनों से विवाद, रोग, संतान वैवाहिक जीवन, साझेदारी, व्यवसाय, माता-पिता और जीवन में आने वाले संकटों के बारे में अधिक प्रश्न करता है। इन प्रश्नों के विश्लेषण के लिए सात वर्ग होरा, द्रेष्काण, सप्तांश, नवांश, दशमांश, द्वादशांश और त्रिशांश ही पर्याप्त हैं। होरादि सात वर्गों का फलित में प्रयोग होरा: जन्म कुंडली की प्रत्येक राशि के दो समान भाग कर सिद्धांतानुसार जो वर्ग बनता है होरा कहलाता है। इससे जातक के धन से संबंधित पहलू का अध्ययन किया जाता है। होरा में दो ही लग्न होते हैं – सूर्य का अर्थात् सिंह और चंद्र का अर्थात् कर्क। ग्रह या तो चंद्र होरा में रहते हैं या सूर्य होरा में। बृहत पाराशर होराशास्त्र के अनुसार गुरु, सूर्य एवं मंगल सूर्य की होरा में और चंद्र, शुक्र एवं शनि चंद्र की होरा में अच्छा फल देते हैं। बुध दोनोें होराओं में फलदायक है। यदि सभी ग्रह अपनी शुभ होरा में हांे तो जातक को धन संबंधी समस्याएं कभी नहीं आएंगी और वह धनी होगा। यदि कुछ ग्रह शुभ और कुछ अशुभ होरा में होंगे तो फल मध्यम और यदि ग्रह अशुभ होरा में होंगे तो जातक निर्धन होता है। द्रेष्काण: जन्म कुंडली की प्रत्येक राशि के तीन समान भाग कर सिद्धांतानुसार जो वर्ग बनता है वह दे्रष्काण कहलाता है। दूसरे शब्दों में यह कुंडली का तीसरा भाग है। दे्रष्काण जातक के भाई-बहन से सुख, परस्पर संबंध, पराक्रम के बारे में जानकारी के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त इससे जातक की मृत्यु का स्वरूप भी मालूम किया जाता है। द्रेष्काण से फलित करते समय लग्न कुंडली के तीसरे भाव के स्वामी, तीसरे भाव के कारक मंगल एवं मंगल से तीसरे स्थित बुध की स्थिति और इसके बल का ध्यान रखना चाहिए। यदि द्रेष्काण कुंडली में संबंधित ग्रह अपने शुभ स्थान पर स्थित है तो जातक को भाई-बहनों से विशेष लाभ होगा और उसके पराक्रम में भी वृद्धि होगी। इसके विपरीत यदि संबंधित ग्रह अपने अशुभ द्रेष्काण में हों तो जातक को अपने भाई-बहनों से किसी प्रकार का सहयोग प्राप्त नहीं होगा। यह भी संभव है कि जातक अपने मां-बाप की एक मात्र संतान हो। सप्तांश वर्ग: जन्मकुंडली का सातवां भाग सप्तांश कहलाता है। इससे जातक के संतान सुख की जानकारी मिलती है। जन्मकुंडली में पंचम भाव संतान का भाव माना जाता है। इसलिए पंचमेश पंचम भाव के कारक ग्रह गुरु, गुरु से पंचम स्थित ग्रह और उसके बल का ध्यान रखना चाहिए। सप्तांश वर्ग में संबंधित ग्रह अपने उच्च या शुभ स्थान पर हो तो शुभ फल प्राप्त होता है अर्थात् संतान का सुख प्राप्त होता है। इसके विपरीत अशुभ और नीचस्थ ग्रह जातक को संतानहीन बनाता है या संतान होने पर भी सुख प्राप्त नहीं होता। सप्तांश लग्न और जन्म लग्न दोनों के स्वामियों में परस्पर नैसर्गिक और तात्कालिक मित्रता आवश्यक है। नवांश वर्ग: जन्म कुंडली का नौवां भाग नवांश कहलाता है। यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ग है। इस वर्ग को जन्मकुंडली का पूरक भी समझा जाता है। आमतौर पर नवांश के बिना फलित नहीं किया जाता। यह ग्रहों के बलाबल और जीवन के उतार-चढ़ाव को दर्शाता है। मुख्य रूप से यह वर्ग विवाह और वैवाहिक जीवन में सुख-दुख को दर्शाता है। लग्न कुंडली में जो ग्रह अशुभ स्थिति में हो वह यदि नवांश में शुभ हो तो शुभ फलदायी माना जाता है। यदि ग्रह लग्न और नवांश दोनों में एक ही राशि में हो तो उसे वर्गोमता हासिल होती है जो शुभ सूचक है। लग्नेश और नवांशेश दोनों का आपसी संबंध लग्न और नवांश कुंडली में शुभ हो तो जातक का जीवन में विशेष खुशियों से भरा होता है। उसका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और वह हर प्रकार के सुखों को भोगता हुआ जीवन व्यतीत करता है। वर-वधू के कुंडली मिलान में भी नवांश महत्वपूर्ण है। यदि लग्न कुंडलियां आपस में न मिलें, लेकिन नवांश मिल जाएं तो भी विवाह उत्तम माना जाता है और गृहस्थ जीवन आनंदमय रहता है। सप्तमेश, सप्तम् के कारक शुक्र (कन्या की कुंडली में गुरु), शुक्र से सप्तम स्थित ग्रह और उनके बलाबल की नवांश कुंडली में शुभ स्थितियां शुभ फलदायी होती हैं। ऐसा देखा गया है कि लग्न कुंडली में जातक को राजयोग होते हुए भी राजयोग का फल प्राप्त नहीं होता यदि नवांश वर्ग में ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल होती है। देखने में जातक संपन्न अवश्य नजर आएगा, लेकिन अंदर से खोखला होता है। वह स्त्री से पेरशान होता है और उसका जीवन संघर्षमय रहता है। दशमांश: दशमांश अर्थात् कुंडली के दसवें भाग से जातक के व्यवसाय की जानकारी प्राप्त होती है। वैसे देखा जाए तो जन्मकुंडली में दशम भाव जातक का कर्म क्षेत्र अर्थात् व्यवसाय का है। जातक के व्यवसाय में उतार चढ़ाव, स्थिरता आदि की जानकरी प्राप्त करने में दशमांश वर्ग सहायक होता है। यदि दशमेश, दशम भाव में स्थित ग्रह, दशम भाव का कारक बुध और बुध से दशम स्थित ग्रह दशमांश वर्ग में स्थिर राशि में स्थित हों और शुभ ग्रह से युत हों तो व्यवसाय में जातक को सफलता प्राप्त होती है। दशमांश लग्न का स्वामी और लग्नेश दोनों एक ही तत्व राशि के हों, आपस में नैसर्गिक और तात्कालिक मित्रता रखते हों तो व्यवसाय में स्थिरता देते हैं। इसके विपरीत यदि ग्रह दशमांश में चर राशि स्थित और अशुभ ग्रह से युत हो, लग्नेश और दशमांशेश में आपसी विरोध हो तो जातक का व्यवसाय अस्थिर होता है। दशमांश और लग्न कुंडली दोनों में यदि ग्रह शुभ और उच्च कोटि के हों तो जातक को व्यवसाय में उच्च कोटि की सफलता देते हैं। द्वादशांश: लग्न कुंडली का बारहवां भाग द्वादशांश कहलाता है। द्वादशांश से जातक के माता-पिता के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। लग्नेश और द्वादशांशेश इन दोनों में आपसी मित्रता इस बात का संकेत करती है कि जातक और उसके माता-पिता के आपसी संबंधी अच्छे रहेंगे। इसके विपरीत ग्रह स्थिति से आपसी संबंधों में वैमनस्य बनता है। इसके अतिरिक्त चतुर्थेश और दशमेश यदि द्वादशांश में शुभ स्थित हों तो भी जातक को माता-पिता का पूर्ण सुख प्राप्त होगा, यदि चतुर्थेश और दशमेश दोनों में से एक शुभ और एक अशुभ स्थिति में हो तो जातक के माता-पिता दोनों में से एक का सुख मिलेगा और दूसरे के सुख में अभाव बना रहेगा। इन्हीं भावों के और कारक ग्रहों से चतुर्थ और दशम स्थित ग्रहों और राशियों के स्वामियों की स्थिति भी द्वादशांश में शुभ होनी चाहिए। यदि सभी स्थितियां शुभ हों तो जातक को माता-पिता का पूर्ण सुख और सहयोग प्राप्त होगा अन्यथा नहीं। त्रिंशांश: लग्न कुंडली का तीसवां भाग त्रिंशांश कहलाता है। इससे जातक के जीवन में अनिष्टकारी घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। दुःख, तकलीफ, दुर्घटना, बीमारी, आॅपरेशन आदि सभी का पता इस त्रिंशांश से किया जाता है। त्रिंशांशेश और लग्नेश की त्रिंशांश में शुभ स्थिति जातक को अनिष्ट से दूर रखती है। जातक की कुंडली में तृतीयेश, षष्ठेश, अष्टमेश और द्वादशेश इन सभी ग्रहों की त्रिंशांश में शुभ स्थिति शुभ जातक को स्वस्थ एवं निरोग रखती है और दुर्घटना से बचाती है। इसके विपरीत अशुभ स्थिति में जातक को जीवन भर किसी न किसी अनिष्टता से जूझना पड़ता है। इन सात वर्गों की तरह ही अन्य षोड्श वर्ग के वर्गों का विश्लेषण किया जाता है। इन वर्गों का सही विश्लेषण तभी हो सकता है यदि जातक का जन्म समय सही हो, अन्यथा वर्ग गलत होने से फलित भी गलत हो जाएगा। जैसे दो जुड़वां बच्चों के जन्म में तीन-चार मिनट के अंतर में ही जमीन आसमान का आ जाता है, इसी तरह जन्म समय सही न होने से जातक के किसी भी पहलू की सही जानकारी प्राप्त नहीं हो सकती। कई जातकों की कुंडलियां एक सी नजर आती हैं, लेकिन सभी में अंतर वर्गों का ही होता है। यदि वर्गों के विश्लेषण पर विशेष ध्यान दिया जाए तो जुड़वां बच्चों के जीवन के अंतर को समझा जा सकता है। यही कारण है कि हमारे विद्वान महर्षियों ने फलित ज्योतिष की सूक्ष्मता तक पहुंचने के लिए इन षोड्श वर्गों की खोज की और इसका ज्ञान हमें दिया।

कई मनीषियो का मत है कि षट्वर्ग मे लग्न नही जोड़ना चाहिए क्योकि उसमे सम्पूर्ण राशि है जबकि वर्ग मे राशि खंडित / भाग होती है।  यह तर्क उचित भी है। अतः षट्वर्ग मे 1 होरा, 2 द्रेष्काण, 3 सप्तमांश, 4 नवमांश,  5 द्वादशांश, 6 त्रिशांश की ही गणना करते है।

वर्ग साधन : वर्गों का साधन स्पष्ट लग्न (लग्न के राशि अंश कला विकला) तथा सूर्यादि सात ग्रहो को तात्कालिक स्पष्ट कर करते है। नवमांश मे कुछ विद्जन राहु केतु का विचार करते है।  अन्य वर्गों मे केवल सात ग्रहो का ही विचार किया जाता है।
⋆ आजकल सॉफ्टवेयर से कम्प्यूर  जन्म प्रत्रिका बनने लगी है इनमे सभी वर्गों की कुंडली मिल जाती है।

वर्गों अनुसार ग्रहो का नामकरण : जब कोई ग्रह एक से अधिक बार इन सोलह वर्गों मे एक ही राशि मे स्थित हो या प्रत्येक वर्ग मे जन्मांग वाली राशि मे ही रहे, तो उसका नया नामकरण हो जाता है। जो इस प्रकार है।
दोबार-परिजातांश, तीनबार-उत्तमांश, चारबार-गोपुरांश, पांचबार-सिंहासनांश, छहबार-पारावतांश, सातबार-देवलोकांश, आठबार-ब्रम्हलोकांश, नौबार-शक्रवाहनांश, दसबार-श्रीधामांश, ग्यारहबार-वैष्णवांश, बारहबार-नारायनांश, तेरहबार वैशिकांश। (इन नामकरण का फल तो उपलब्ध नही है किन्तु इतना अवश्य है कि ग्रह की शुभता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है)

वर्गों का शुभाशुभ : षट्वर्ग, सप्तवर्ग, दसवर्ग मे निम्न स्थिति ग्रहो की शुभ होती है। अर्थात इन स्थितियो में ग्रह का फल शुभ होता है।
01 वर्ग मे बलवान ग्रह, 02 वर्ग में उच्च ग्रह, 03 वर्ग में मूल त्रिकोणस्थ ग्रह, 04 वर्ग मे त्रिकोणस्थ ग्रह, 05 वर्ग मे स्वक्षेत्री ग्रह, 06 शुभ नवांश मे ग्रह,  07 वर्ग मे मित्रक्षेत्री ग्रह, 08 स्व नवांश मे ग्रह, 09 वर्ग मे केंद्र में स्थित ग्रह, 10 वर्ग मे अधिमित्र राशि मे ग्रह।

ग्रहो का शुभाशुभ : षट्वर्ग, सप्तवर्ग, दसवर्ग या वर्गों मे ग्रह कितनी बार शुभाशुभ राशियो मे है उस अनुसार फल देता है। मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर, कुम्भ ये पांच रशिया अशुभ तथा मीन, वृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु ये रशिया शुभ है।

यदि शुभ ग्रह चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र, शुभ राशियो मे अधिक बार हो तो शुभता बढ़ जाती है।

यदि शुभ ग्रह अशुभ राशियो मे हो, तो सामान्य फल देता है।

यदि अशुभ ग्रह शनि, मंगल, सूर्य अशुभ राशियो मे अधिक बार हो तो अशुभता बढ़ जाती है।

यदि अशुभ ग्रह शुभ राशियो मे अधिक बार हो, तो सामान्य फल देता है।

यदि लग्न व ग्रह जिस राशि का हो वह नवमांश मे भी उसी राशि का हो, तो वर्गोत्तमी होकर शुभ फल देता है।

वर्गों के अनुसार शुभाशुभ : इसका कई प्रकार से गणित किया जाता है जो कठिन है।  इसके लिए ग्रह का शुभ, अशुभ निकलना पड़ता है जिसका निम्न क्रम से गणित होता है।  01 वर्गों का शुभ अशुभ चक्र बनाना।  02 शुभ अशुभ पंक्ति बनाना।  03 शुभ गणित शुभ पंक्ति, अशुभ गणित अशुभ पक्ति, 04 वर्गेश का इष्टध्न, कष्टध्न, षटबलेक्य तथा ग्रह का इष्टध्न, कष्टध्न, षटबलेक्य का गुणन फल निकालना, 05 उपरोक्त गुणन फल का वर्गमूल निकालना, 06 वर्गमूल का बिंदु क्रम 03 से गुना करने पर ग्रह का शुभाशुभ स्पष्ट होगा।
                                                                                           - गणितागत सूक्ष्मता व्यवहार उपयोगी नही है।वर्गों से विचार : किस वर्ग से क्या विचार करे इस पर मतैक्यता नही है। विद्जन लग्न से शरीर, होरा से सम्पदा, द्रेष्काण से बंधु, भातृ - भगिनी का सुख-दुःख, सप्तमांश से सन्तान आदि, नवमांश से स्त्री सुख व अन्य सभी विषय, द्वादशांश से स्व आयु व माता-पिता, त्रिशांश से अरिष्ट का विचार करते है।
मानसागरी  मतेन - लग्न से शरीर, होरा से संपत्ति विपत्ति,  द्रेष्काण से कर्मफल, सप्तमांश से भाई बहन बंधु, नवांश से जातक फल व अन्य सभी विषय, द्वादशांश से भार्या, त्रिशांश से कष्ट और मृत्यु का विचार करते है।
कई विद्जन लग्न से शरीर, आकृति, होरा से शील स्वाभाव, द्रेष्काण से पद, सप्तमांश से धन संचय, नवमांश से वर्ण, गुण, रूप, बुद्धि, पुत्र या प्रायः सभी विषय, द्वादशांश से आयु, त्रिशांश से स्त्री का विचार करते है।

वर्ग फलादेश सामान्य नियम : वर्गों मे निम्न निर्देशो के अनुसार ग्रह फल देते है।

उच्च ग्रह, मूलत्रिकोणस्थ (पाद छोड़कर) ग्रह शुभ फल देते है। स्वगृही, मित्रगृही (पाद मात्र मे) कीर्ति, यश यानि शुभ फल देने वाले होते है।

अर्ध पाद, अशुभ या नीच वर्ग, शत्रु वर्ग मे ग्रह अशुभ फल देते है।  शुभ वर्ग या मित्र वर्ग में ग्रह अत्यंत शुभ फल देते है।

पाप वर्ग, अशुभ वर्ग या शत्रु वर्ग मे अशुभ ग्रह जातक की दुःखद मृत्यु देते है। शुभ अथवा अशुभ, नीच वर्ग मे शुभ ग्रह सभी स्थानो पर शुभ फल देते है।

अंशात्मक नीच ग्रह यदि मित्रगृही या शुभ स्थानो मे हो, तो निर्बल हो जाता है। (ग्रहो के उच्च नीच अंश इस प्रकार है :- सूर्य 10 अंश, चंद्र 03 अंश, मंगल 28 अंश, बुध 15 अंश, गुरु 05 अंश, शुक्र 27 अंश, शनि 20 अंश)

यदि स्वगृही हो, तो उस स्थान का जिस स्थान मे हो पूर्ण फल देता है। ग्रह त्रिकोण (5, 9) मे त्रिकोण के सामान अंश फल देता है। ग्रह स्वक्षेत्र मे स्वगृही के सामान अंश फल देता है।  नीच अथवा  शत्रुक्षेत्री ग्रह जिस स्थान पर हो उस स्थान का जधन्य फल देता है।

लग्नगत ग्रह नीच का हो और वह वर्ग मे उच्च का होता है, तो जातक को नृप यानि राजा सामान बना देता है।

लग्नगत ग्रह उच्च का हो और वह वर्ग मे नीच का हो जाय तो उसकी शुभता व्यर्थ हो जाती है।

वर्ग मे विशेष फलादेश :
01 यदि षट्वर्ग मे शुभ ग्रहो का बल अधिक हो, तो जातक लक्ष्मीवान, दीर्घायु होता है।
02 यदि षट्वर्ग मे लग्न यानि प्रथम भाव अधिक बार क्रूर ग्रह की राशि मे हो, तो  जातक दीन, अल्पायु, शठ प्रकृति वाला होता है। परन्तु षड्वर्ग लग्नो के स्वामी बलवान हो, तो जातक नृप या पदाधिकारी होता है।
03 यदि नवांशेश, द्रेष्काणेश, लग्नेश बलवान हो, तो जातक क्रमशः से सुखी, राजा के सामान, भूपति, एवं भाग्यवान होता है। अर्थात नवांश बलि हो, तो सुखी, द्रेष्काण बलि हो, तो राजा के सामान, जन्मलग्न बलि हो, तो भूपति, भाग्यवान होता है।
04 जो फल स्वगृही, उच्च, मूलत्रिकोण, मित्रक्षेत्री का जन्म लग्न मे कहा है वह समस्त फल एक षट्वर्ग शुद्ध ग्रह जन्मांग मे देता है।
05 यदि एक भी ग्रह बली, सुस्थान, षट्वर्ग शुद्ध हो और सर्व गृह से दृष्ट हो, तो जातक कुलानुमान से बड़ा आदमी होता है।
06 शुभ स्थान में उच्चग्रह, मित्रवर्ग, सौम्यवर्ग गत हो, तो शुभ फल देता है। नीचग्रह, शत्रुवर्ग, अशुभवर्ग मे अशुभ फल देता है। इनमे अशुभ वर्ग और शुभ वर्ग का जो परस्पर अंतर द्वारा अधिक हो उससे शुभाशुभ फल कहना चाहिए। शुभ हो, तो विशेष शुभ होता है। अशुभ मे शुभ भी क्रूर और क्रूर अतिक्रूर हो जाता है।
संकेत - जो ग्रह दो से चार बार या अधिक बार षट्वर्ग मे निजोज्ज़, मित्र, शुभ ग्रह की राशि मे आवे और अस्त नही हो वह ग्रह षट्वर्ग शुद्ध और बलवान कहलाता है।

होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवमांश, द्वादशांश, त्रिशांश लग्नो के स्वामी ग्रह अपने उच्चवर्ग, मित्रवर्ग मे हो और शुभ ग्रह सहित हो, तो जातक मे बहुत गुण होते है। वह चतुर, गुणवान, दयावान, पवित्र, यशस्वी, राजाओ के सामान भोग भोगने वाला, पुत्रवान धनी होता है।

जिस भाव का फल षट्वर्ग, जन्म लग्न, ग्रह स्थिति से भी शुभ हो उसे विशेष शुभ कहना चाहिये।

षट्वर्ग से जिस भाव का फल शुभ और जन्म लग्न से अशुभ प्रतीत होता हो उसे मध्यम मिश्रित शुभाशुभ कहना चाहिये।

षट्वर्ग मे जिस भाव का फल अशुभ और जन्म लग्न से भी अशुभ हो, तो उसका फल अवश्य अशुभ होगा।

वर्ग एवं दशा विचार : वर्ग से प्राप्त फल के घटना के समय का आकलन महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा से हो सकता है।

षट्वर्ग के अधिकांश चक्रो मे जो ग्रह शुभ स्थान अथवा मित्र स्थान अथवा केन्द्र या त्रिकोण  मे हो. तो अपनी दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा मे शुभ व सुखप्रद होते है।  षट्वर्ग के अधिकांश चक्रो मे जो ग्रह अशुभ या पाप स्थान 6, 8, 12 अथवा पापयुक्त अथवा शत्रु स्थान मे हो, तो अपनी दशा, अंतर, प्रत्यंतर मे अशुभ व कष्ट प्रद होते है, उसकी दशादि मारक (मृत्यु तुल्य कष्ट) होती है।

जो शुभ या अशुभ ग्रह षड्वर्ग के अधिकांश चक्रो मे अपने नवांशपति की राशि या नवांशपति के मित्र की  राशि या नवांश पति से युक्त हो, तो उसकी दशा या भुक्ति शुभ व सुख प्रद होती है।

यदि दशानाथ उच्चस्थ या शुभ प्रभावो से युक्त या वर्गोत्तम हो और त्रिक भावो 6,8,12 का स्वामी नही हो, तो पाप या अशुभ ग्रह की भुक्ति भी अशुभ परिणाम नही दे पाती है। इसी प्रकार अशुभ या पापी ग्रह की दशा मे शुभ ग्रह की भुक्ति भी विशेष कल्याणप्रद नही हो पाती है।

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...