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पृथ्वी माता का व्रत व पूजन Prithvi Pujan Vidhi

पृथ्वी माता का व्रत व पूजन| पृथ्वी पूजन विधि | Prithvi pujan
पृथ्वी माताका व्रत व पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों व पुराणादि में वर्णित है। सभी ने भू देवी का पूजनकर अपने-अपने योग्य मनोवांछित फलों को प्राप्त करते हुए जीवन का कल्याण किया है। प्रस्तुत है इस लेख में पृथ्वी माता के व्रत व पूजन की विधि। पृथ्वी माता व्रत के बारे में यदि विचार किया जाये तो यह नित्य व्रत है। प्रतिदिन पूजन करना भी श्रेयस्कर है। ब्राह्मण जन सभी पूजनों में पृथ्वी माता का पूजन कराते ही हैं। गृह निर्माण या गृहारंभ तथा किसी विशेष आयोजनार्थ (जैसे रामलीला, कृष्णलीला या विशेष प्रकार के यज्ञादि) भूमि पूजन की अनिवार्यता है। शास्त्रों में वर्णित भाद्रपद शुक्ल पंचमी, भाद्रपद शुक्ल तृतीया, श्रावण शुक्ल षष्ठी तथा चैत्र कृष्ण नवमी को पृथ्वी देवी का विशेष व्रत व पूजन का पालन करना ही चाहिए। इन तिथियों में भगवान् वाराह का प्राकट्य है और भगवान वाराह की दो पत्नियों में भूदेवी (पृथ्वी माता) का विशेष स्थान है अतः ये जयंती तिथियां पूजनीय व वंदनीय है। पृथ्वी माता के प्रति अपराध करने वाला नरकगामी व पृथ्वी माता का सम्मान करने वाला स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है। अतः प्रत्येक मानव मात्र का पृथ्वी माता के प्रति नित्य पूजन व सम्मान का शुभ संकल्प होना ही जीवन के चारों पुरूषार्थ (धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष) को प्रदान कराने वाला है। पृथ्वी मां की प्रसन्नता हेतु उनके उत्पत्ति-प्रसंग, ध्यान, स्तुति आदि के उपाख्यान का भी पठन-पाठन कल्याणकारी है। उत्पत्ति - प्रसंग: भगवान नारायण ने देवर्षि नारद जी को बताया कि यह आदरणीय पृथ्वी मधु और कैटभ के मेद से उत्पन्न हुई हैं। इसका भाव यह है कि उन दैत्यों के जीवनकाल में पृथ्वी स्पष्ट दिखायी नहीं पड़ती थी। वे जब मर गये, तब उनके शरीर से मेद निकला - वही सूर्य के तेज से ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में पृथ्वी माता के प्रकट होने से लेकर पुत्र मंगल को उत्पन्न करने तक की पूरी कहानी दी गई है। साथ ही देवी का पूजन किन मंत्रों व स्तुति से किया जाए कि देवी प्रसन्न हो। और भूमि सुख प्रदान करें। श्री वसुधा के पूजन में इन मंत्रों व स्तुति का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास से किया जाने से पृथ्वी माता को प्रसन्न किया जा सकता है।
दायें हाथ को पृथ्वी पर उलटा रखकर ॐ पृथिव्यै नमः इससे भूमि की पञ्चोपचार पूजा का आसन शुद्धि करें।

पुष्य अक्षत को श्रद्धापूर्वक पृथ्वी पर रख पुनः पुष्प अक्षत लें निम्न मन्त्र से देवी की प्रार्थना करें -
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै शतत् नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रार्य निहताः प्रणतास्म् ताम् ॥

पृथ्वी पूजन मंत्र
मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ह्रीं श्रीं वसुधायै स्वाहा।
पृथ्वी पूजन स्तोत्र
यज्ञसूकरजाया त्वं जयं देहि जयावहे। जयेऽजये जयाधरे जयशीले जयप्रदे।।
सर्वाधारे सर्वबीजे सर्वशक्तिसमन्विते। सर्वकामप्रदे देवि सर्वेष्टं देहि मे भवे।।
सर्वशस्यालये सर्वशस्याढये सर्वशस्यदे। सर्वशस्यहरे काले सर्वशस्यात्मिके भवे।।
मंगले मंगलाधरे मंगल्ये मंगलप्रदे। मंगलार्थे मंगलेशे मंगलं देहि मे भवे।।
भूमे भूमिपसर्वस्वे भूमिपालपरायणे। भूमिपाहंकाररूपे भूमि देहि च भूमिदे।।
अर्थ- सफलता प्रदान करने वाली देवी हे वसुधे। मुझे सफलता दो। आप यज्ञवराह की पत्नि हो। हे जये! आपकी कभी भी हार नहीं होती है। इसलिए आप विजय का आधार, विजय दायिनी, विजयशालिनी हो। देवी! आप सबकी आधारभूमि हो। सर्वबीजस्वरूपिणी और सभी शक्तियों से सम्पन्न हो। समस्त कामनाओं को देने वाली देवि! आप इस संसार में सभी चाही गई वस्तुओं को प्रदान करो। आप सब प्रकार के सुखों का घर हो। आप सब प्रकार के सुखों से सम्पन्न हो। सभी सुखों को देने वाली भी हो और समय आने पर उन सुखों को छुपा देने वाली भी हो। इस संसार में आप सर्वसुखस्वरूपिणी भी हो। आप मंगलमयी हो। मंगल का आधार हों मंगल के योग्य हो। मंगलदायिनी हो। मंगलदेने वाली वस्तुएं आपका ही स्वरूप हैं। मंगलेश्वरि! आप इस संसार में मुझे मंगल प्रदान करो। आप ही भूमिपालों का सर्वस्व हो। भूमिपालपरायणा हो। भूपालों के अहंकार का मूर्तिरूप हो। हे भूमिदायिनी देवी! मुझे भूमि दो।


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