नवग्रह ऊर्जा नियंत्रण:-
ग्रहों से संबधित वस्तुओं के दान के अतिरिक्त ग्रहों को मनचाहे ख़ााने में पहुंचाने व निर्बल तथा पाप ग्रहों के अनेकों प्रावधानों का उल्लेख है। ग्रहों का भाव (ख़ाना) परिवर्तन लाल किताब के ज्योतिषीय विधान में कुण्डली के अकारक व निर्बल भाव में स्थित किसी ग्रह के सकारात्मक व मन चाहे फल की प्राप्ति हेतु भाव परिर्वतन की विधि का भी प्रावधान है जिस के द्वारा किसी भी ग्रह को किसी भी भाव में स्थापित करके शुभफल की प्राप्ति की जा सकती है।
किसी ग्रह को पहले भाव अर्थात लग्न स्थान में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को गले में धारण करना।
दूसरे भाव में किसी ग्रह को पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को किसी धार्मिक स्थान पर रखना।
किसी ग्रह को तीसरे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित रत्न व धातु को हाथ या उंगुली में धारण करना।
किसी ग्रह को चौथे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दरिया की बहती जल धारा में प्रवाहित करना।
किसी ग्रह को पांचवे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को पाठशाला में दान करना। किसी
ग्रह को छठे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को कुऐं में डालना।
यदि किसी ग्रह को सातवें भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन की सतह के अन्दर दबाना।
आठवें भाव में यदि किसी ग्रह को पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को शमशान की सतह में जाकर दबाना।
किसी ग्रह को नौवे भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को धारण करना।
किसी ग्रह को दसवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित कोई खाने की वस्तु अपने पिता को खिलाना या किसी समीप के सरकारी कार्यालय की जमीन की सतह पर गाड़ देना।
ग्यारहवें भाव में कोई भी ग्रह उच्च या नीच का नही होता इस कारण इस स्थिति में किसी भी प्रकार के उपाय की आवश्यकता नही पड़ती।
किसी ग्रह को बारहवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को घर की छत पर रखना।
कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है।
प्रबल व बलवान ग्रहों के हेतु निर्देशः-कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है।
ज्योतिष मे लाल किताब.
लाल किताब में ग्रह दोष निवारण के लिए सच्चरित्रता एवं सद्व्यवहारिकता को बहुत प्रमुखता दी गयी है। इस पद्धति में सकारात्मक और मनचाहे फल की प्राप्ति के लिए भाव परिवर्तन की विधि का भी प्रावधान है जिससे शुभ फल की प्राप्ति की जा सकती है। इस किताब के विधिवत सूत्र अर्थात ज्योतिषीय दृष्टिकोण, चमत्कारी उपाय व टोटके जनमानस की व्यवहारिकता की कसौटी पर दिन प्रतिदिन खरे उतरते चले गए तथा इस की लोकप्रियता बढ़ती रही।
ज्योतिषीय स्वरूपः- इस किताब के ज्योतिषीय स्वरूप में कुण्डली के भावों को ख़ााना अर्थात घर की संज्ञा दी गई है तथा जातकों के जन्म कुण्डली में लग्न को स्थाई रूप से मेष राद्गिा के रूप में बरकरार रखते हुए लग्न एक से लेकर बारह भावों की राशियों क्रमशः मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर, कुंभ व मीन के स्थानों को यथावत रखा गया है।
जिसमें सूर्य को पहले व पांचवें, चन्द्र को चौथे, मंगल को तीसरे व आठवें, बुध को छठे व सातवें, गुरू को दूसरे, नौवें व बारहवें, शुक्र को सातवें तथा शनि को आठवें, दसवें व ग्यारहवें भाव का कारक ग्रह माना गया है। रातु-केतु को कोई भाव नही दिया गया परन्तु छठे भाव में इनकी उपस्थिति को शुभ फल दायक कहा गया है। इस ग्रंथ के व्यवहारिक सिद्धांतों में राहु-सूर्य, राहु-चन्द्र, केतु-सूर्य, केतु-चन्द्र,शनि-राहू, शनि-केतु, शनि-चन्द्र तथा शनि-सूर्य की युतियों को शुभ फलदायक नही माना गया है। ग्रह-दोष निवारण में सच्चरित्र व सद्व्यवहारिकता को अधिक प्रमुखता दी गई है।
उदाहरणार्थ-यदि कुण्डली में सूर्य बलवान हो तो इस ग्रह से संबंधित वस्तु गुड़, गेहूं, लाल वस्त्र, तांबा, सोना, माणिक्य रत्न का दान करना वर्जित कहा गया है। ग्रह-दोषों का उपायः-कुण्डली व गोचर में किसी भी ग्रह की अनिष्टता के कारण उत्पन्न समस्या व उसके निवारण हेतु लाल किताब में अनेकों उपायों का उल्लेख है।
प्रत्येक उपाय को कम से कम 7 दिन व अधिक से अधिक 43 दिनों तक लगातार करने का निर्देश है। यदि प्रक्रिया का क्रम बीच में खंडित हो जाए तो पुनः विधिवत् इन प्रयोगों को फिर से पूर्ण करना चाहिए।
"सभी नौ ग्रहों की शांति के हेतु सूखे नारियल के अंदर घी व खांड भरकर सुनसान जगह में स्थित चीटियों के बिल के अन्दर गाड़ने के प्रयोग को सर्वोत्तम उपाय की संज्ञा दी गई है। इस के अतिरिक्त सभी नौ ग्रहों के दोषों के अलग-अलग विधिवत् उपायों के भी सूत्र बताए गए हैं।"
सूर्यः-यदि कुण्डली में सूर्य छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो अथवा गोचर में निर्बल व अशुभ अवस्था में हो तो यह राजद्गााही समस्या, दुर्धटना में हड्डी टूटने, रक्त-चाप, दाई नेत्र में कष्ट, उदर व अग्नि-तत्व से संबंधित रोग व पीड़ा का कारक माना गया है।
उपायः-राजा, पिता व सरकारी पदाधिकारी का सम्मान करें। उदित सूर्य के समय में संभोग न करें। सूर्य से संबंधित कोई वस्तु बाजार से मुफ्त में न लें। पीतल के बर्तनों का सर्वदा प्रयोग करें। रविवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में गुड़ व तांबा प्रवाहित करें।
चंद्रः-गोचर में चन्द्र निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में छठे, आठवें, दसवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो इस कारण मानसिक पीड़ा, जल तत्व से जुड़ा रोग व पशु हानि की समस्यांए उत्पन्न हो जाती है।
उपायः- रात को दूध का सेवन न करें। जल व दूध को ग्रहण करते समय चाँदी के पात्र का प्रयोग करें। सोमवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में मिश्री व चावल को सफेद कपड़े में बांधकर प्रवाहित करें। सोमवार के दिन अपने दाहिने हाथ से चावल व चाँदी का दान करें।
मंगलः-गोचर में मंगल निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे व आठवें भाव में अकेला विराजमान हो तो इस अकारक अवस्था के कारण रक्त विकार, क्रोध, तीव्र सिर दर्द, नेत्र रोग व संतान हानि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
उपायः- बुआ अथवा बहन को लाल कपड़ा दान में दें। मंगलवार को दरिया की बहती जलधारा में रेवड़ी व बताद्गाा प्रवाहित करें। मूंगा, खांड, मसूर व सौंफ का दान करें। नीम का पेड़ लगाएं। मीठी तंदूरी रोटी कुत्ते को खिलाएं। रोटी पकाने से पहले गर्म तवे पर पानी की छींटे दें।
बुधः-गोचर में बुध नीच, अस्त व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे भाव में स्थित हो तो आत्म विश्वास की कमी, नशे, सट्टे व जुए की लत, बेटी व बहन को कष्ट, मानसिक तथा गले से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है।
उपायः- बुधवार के दिन भीगी मूंग का दान करें। मिट्टी के घड़े या पात्र में शहद रखकर किसी वीराने स्थान पर दबाएं। कच्चा घड़ा दरिया में प्रवाहित करें। तांबे का सिक्का गले में धारण करें। सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराएं व चूड़ी दान में दें। चौड़े हरे पत्ते वाले पौधे अपने घर की छत के ऊपर लगाएं।
गुरु :-गोचर में गुरु नीच, वक्री व निर्बल हो तथा कुण्डली में छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो तो मान-सम्मान में कमी, अधूरी शिक्षा, गंजापन, झूठे आरोप, पीलिया आदि जैसे रोग व समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
उपायः- माथे पर नित्य हल्दी अथवा केसर का तिलक करें। पीपल का वृक्ष लगाएं तथा केसर का तिलक करें। दरिया में गंधक प्रवाहित करें। पुरोहित को पीले रंग की वस्तु दान में दें।
शुक्र :-गोचर में शुक्र अशुुभ हो तथा कुण्डली में पहले, छठे व नौवें भाव में स्थित हो तो चर्मरोग, स्वप्न दोष, धोखा, हाथ की अंगूठी आदि निष्क्रिय होने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
उपायः- 43 दिनों तक किसी गंदे नाले में नीले फूल डालें। स्त्री का सम्मान करें। इत्र लगाएं। दही का दान करें। साफ सुथरे रहें तथा अपने बिस्तर की चादर को सिलवट रहित रखें।
शनिः-गोचर में शनि के अशुभ तथा कुण्डली में पहले, चौथे, पांचवें व छठे भाव में स्थित होने की अवस्था को आर्थिक हानि, कानूनी समस्या, गठिया रोग, पलकों के झड़ने, कन्या के विवाह में विलंब, आग लगने, मकान गिरने, नौकर के काम छोड़ने आदि घटनाओं का कारक माना गया है।
उपायः- लोहे का छल्ला अथवा कड़ा धारण करें। मछलियों को आटे की गोलियां खाने को दें। अपने भोजन का अंद्गा कौए को दें। सुनसान जगह के सतह पर सुरमा दबाएं।
राहु :-कुण्डली में राहु अशुभ व शत्रु ग्रह से युक्त हो तथा पहले, पांचवें, आठवें, नौवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो शत्रुता, दुर्धटना, मानसिक पीड़ा, क्षयरोग, कारोबार में हानि, झूठे आरोप आदि की समस्याऐं उत्पन्न होने लगती हैं।
उपायः- मूली दान में दें। जौ को दूध में धोकर दरिया में प्रवाहित करें। कच्चे कोयले को दरिया में प्रवाहित करें। हाथी के पांव के नीचे की मिट्टी कुऐं में डालें।
केतु :-कुण्डली व गोचर में अशुभ केतु फोड़े फुंसी, मूत्राद्गाय से संबंधित रोग, रीढ़ व जोड़ों का दर्द, संतान हानि आदि जैसी समस्या का कारक माना गया है।
उपायः- कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। मकान के नीव की सतह पर शहद दबाएं। कंबल दान में दें। सफेद रेशम के धागे को कंगन की तरह हाथ में बांधे।
अगर आप अपने कुण्डली का विश्लेषण करेंगे तो आपको सही उपाय अवश्य ही प्राप्त होगा।
विभिन्न ऋण व उनके उपाय लाल किताब में वर्णित, पूर्व जन्मानुसार जातक के ऊपर विभिन्न ऋण व उनके उपाय इस प्रकार हैं। स्वऋण- जन्मकुंडली के पंचम भाव में पापी ग्रहों के होने से स्वऋण होता है। इसके प्रभाववश जातक निर्दोष होते हुए भी दोषी माना जाता है। उसे शारीरिक कष्ट मिलता है, मुकदमे में हार होती है और कार्यों में संघर्ष करना पड़ता है। इससे मुक्ति के लिए जातक को अपने सगे संबंधियों से बराबर धन लेकर उस राशि से यज्ञ करना चाहिए। मातृ ऋण- चतुर्थ भाव में केतु होने से मातृ ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक को धन हानि होती है, रोग लग जाते हैं, ऋण लेना पड़ता है। प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है। इससे मुक्ति के लिए जातक को खून के संबंधियों से बराबर चांदी लेकर बहते पानी में बहानी चाहिए। सगे संबंधियों का ऋण- प्रथम व अष्टम भाव में बुध व केतु हों, तो यह ऋण होता है। जातक को हानि होती है संकट आते रहते हैं और कहीं सफलता नहीं मिलती। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर किसी शुभ कार्य हेतु दान देना चाहिए। बहन ऋण- तृतीय या षष्ठ भाव में चंद्र हो तो बहन ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक के जीवन में आर्थिक परेशानी आती है, संघर्ष बना रहता है और सगे संबंधियों से सहायता नहीं मिलती। इससे मुक्ति के लिए जातक को परिवार के सदस्यों से बराबर पीले रंग की कौडियां लेकर उन्हें जलाकर उनकी राख को पानी में प्रवाहित करना चाहिए। पितृ ऋण- द्वितीय, पंचम, नवम या द्वादश भाव में शुक्र, बुध या राहु हो तो पितृ ऋण होता है इस ऋण से ग्रस्त व्यक्ति को वृद्धावस्था में कष्ट मिलते हैं, धन हानि होती है और आदर सम्मान नहीं मिलता। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर किसी शुभ कार्य के लिए दान देना चाहिए। स्त्री ऋण- द्वितीय या सप्तम भाव में सूर्य, चंद्र या राहु हो तो स्त्री ऋण होता है। इस ऋण के फलस्वरूप जातक को अनेक दुख मिलते हैं और उसके शुभ कार्यों में विघ्न आता है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर गायों को भोजन कराना चाहिए। असहाय का ऋण- दशम व एकादश भाव में सूर्य, चंद्र या मंगल हो तो यह ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उसकी उन्नति में बाधाएं आती हैं और हर काम में असफलता मिलती है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सभी सदस्यों से बराबर धन लेकर मजदूरों को भोजन कराना चाहिए। अजन्मे का ऋण- द्वादश भाव में सूर्य, शुक्र या मंगल हो तो अजन्मे का ऋण होता है जो जातक इस ऋण से ग्रस्त होता है उसे जेल जाना पड़ता है, चारों तरफ से हार मिलती है और शारीरिक चोट पहंुचती है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से एक-एक नारियल लेकर जल में बहाना चाहिए। ईश्वरीय ऋण- षष्ठ भाव में चंद्र या मंगल हो तो ईश्वरीय ऋण होता है। इस ऋण के फलस्वरूप जातक का परिवार नष्ट होता है, धन हानि होती है और बंधु बांधव विश्वासघात करते मिलते है इसके लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर कुत्तो को भोजन कराना चाहिए। खराब या अशुभ ग्रह के लक्षण सूर्य- जातक बाल्यावस्था में ही अपने पिता से अलग हो जाता है, उसके शरीर में विकार उत्पन्न हो जाते है , नेत्र रोग हो जाता है, यश कम मिलता है और नींद कम आती है। चंद्र- घर में पानी की समस्या रहती है, कल्पनाशक्ति कमजोर हो जाती है, घर में दुधारू गाय या भैंस नहीं रहती और माता का स्वास्थ्य खराब रहता है। बुध- जातक को नशे, सट्टे व जूए की लत लग जाती है और बेटी व बहन को दुख रहता है। गुरु- विवाह में देरी होती है, सोना खोने लगता है, चोटी के बाल उड़ जाते हैं, शिक्षा में बाधा आती है और अपयश का शिकार होना पड़ता है। शुक्र- जातक को प्रेम में धोखा मिलता है, उसका अंगूठा बेकार हो जाता है, त्वचा में विकार उत्पन्न होते हंै और वह स्वप्नदोष से ग्रस्त होता है। शनि- घर में आगजनी होती है, मकान का नाश होता है, पलकों व भौंहों के बाल गिर जाते हैं और विपत्तियाँ आती रहती हैं। राहु- हाथ के नाखून झड़ जाते हैं, पालतू कुत्ता मर जाता है, दिमाग गुम रहता है और शत्रु बढ़ जाते हैं। केतु-पैरों के नाखून झड़ जाते हैं, जोड़ों में दर्द रहता है, मूत्र कष्ट होता है और पुत्र का स्वास्थ ठीक नहीं रहता है। रिश्तेदारों से ग्रहों के उपाय- लाल किताब में किसी खराब ग्रह को शुभ करने के लिए उस ग्रह से संबंधित रिश्तेदार की सेवा करना व उसका आशीर्वाद लेना ऐसा करने से वह खराब ग्रह अपने आप ठीक होने लगता है। उदाहरणस्वरूप खराब सूर्य को ठीक करने के लिए जातक स्वयं राजा, पिता या सरकारी कर्मचारी की सेवा करे और उनका आर्शीवाद ले। ग्रहों से संबंधित रिश्तेदार इस प्रकार हैं- सूर्य- राजा, पिता या सरकारी कर्मचारी। चंद्र- माता, सास या बुजुर्ग स्त्री। मंगल- भाई, साले या मित्र। बुध- बहन, बेटी या नौ वर्ष से कम आयु की कन्याएं। गुरु- कुल पुरोहित, पिता या बुजुर्ग व्यक्ति। शुक्र- पत्नी या कोई अन्य स्त्री। शनि- नौकर, मजदूर या ताया। राहु- ससुर या नाना। केतु- लड़का, भतीजा या नौ वर्ष से कम आयु के लड़के। पूजा द्वारा ग्रहों के उपाय- विभिन्न ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए लाल किताब के अनुसार निम्नलिखित क्रिया करनी चाहिए। सूर्य- हरिवंश पुराण का पाठ व सूर्य देव की उपासना। चंद्र- शिव चालीसा व संुदर कांड का पाठ। बुध- दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ। गुरु- श्री ब्रह्मा जी की उपासना व भागवत पुराण का पाठ। शुक्र- लक्ष्मी जी की उपासना व शराब से श्री सूक्त का पाठ। शनि – श्री भैरव जी की उपासना व शराब से परहेज राहु- सरस्वती जी की उपासना। केतु- श्री गणेश जी की उपासना। दान द्वारा ग्रहों के उपाय लाल किताब के अनुसार खराब ग्रहों के दुष्प्रभावों से मुक्ति के लिए निम्न वस्तुओं का दान करना चाहिए। सूर्य- तांबा, गेहूं व गुड़। चंद्र- चावल, दूध, चांदी या मोती। मंगल- मूंगा, मसूर दाल, खांड, सौंफ। बुध- हरी घास, साबुत मूंग, पालक। गुरु- केसर, हल्दी, सोना, चने की दाल का दाल। शुक्र- दही, खीर, ज्वार या सुंगधित वस्तु। शनि- साबुत उड़द, लोहा, तेल या तिल । राहु- सिक्का, जौ या सरसों। केतु- केला, तिल या काला कंबल। ग्रहों के अन्य उपाय ऊपर लिखित उपायों के अतिरिक्त ग्रहों के दुष्प्रभावों के और भी अनेक सामान्य उपाय जिनका विवरण यहां प्रस्तुत है। सूर्य- बहते पानी में गुड़ बहाएं, प्रत्येक कार्य मीठा खा कर व जल पी कर करें, सूर्यकाल में संभोग न करें, कुल रीति रिवाजों को मानें, सूर्य की वस्तुएं बाजरा आदि मुफ्त में न लें, अंधों को भिक्षा दें, पीतल के बर्तनों का उपयोग करें और सफेद टोपी पहनें। चंद्र- चांदी के बर्तन में दूध या पानी पीएं, सोने को आग में लाल कर दूध से बुझाएं व दूध पीएं, चारपाई के पायों पर तांबे की कील गाड़ें, समुद्र में तांबे का पैसा डालें, शिवजी को आक के फूल चढ़ाएं, सफेद कपड़े में मिश्री व चावल बांधकर बहाएं, वटवृक्ष में पानी डालें, दूध का व्यापार न करें, श्मशान का पानी घर लाकर रखें और रात को दूध न पीएं। मंगल- बुआ या बहन को लाल कपड़े दें, भाई की सहायता करें, रेवड़ियां बताशे पानी में बहाएं, आग से संबंधित काम करें, मीठी तंदूरी रोटी कुत्तो को डालें, तीन धातुओं की अंगूठी पहनं, चांदी गले में पहनें, मसूर की दाल पानी में बहाएं, नीम का पेड़ लगाएं, रोटी पकाने से पहले तवे पर पानी के छींटे दें, जंग लगा हथियार घर में न रखें, काने, गंजे या काले व्यक्ति से दूर रहें, और दूध वाला हलवा खाएं। बुध- नाक छेदन न करंे, तांबे का पैसा गले में डालें, कच्चा घड़ा जल में बहाएं, चांदी व सोने की जंजीर पहनें, किसी साधु से ताबीज न लें, मिट्टी के बर्तन को शहद से भर कर वीराने में दबाएं, पक्षियों की सेवा करें, गाय को हरी घास दें, बार-बार न थूकें, वर्षा का पानी छत पर रखें, साली को साथ न रखें, साझा काम न करें और ढाक के पत्तों को दूध से धोकर वीराने में दबाएं। गुरु- मंदिर में 43 दिनों तक बादाम अर्पित करें, गंधक जल में बहायें, केसर पानी में बहाएं, नीले कपड़े में चना बांध कर मंदिर में दें, वायदा निभाएं, ईष्र्या से बचें, पीपल न काटें, हल्दी व केसर का तिलक करें, पत्नी से गुरु का व्रत रखवाएं, परस्त्री गमन न करें। शुक्र- गंदे नाले में 43 दिनों तक नीला फूल डालें, स्त्री का सम्मान करें, प्रेम व ऐयाशी से दूर रहें, किसी की जमानत न दें और कांसे के बर्तन का दान दें। शनि- तेल या शराब 43 दिनों तक प्रातःकाल धरती पर गिराएं, कौओं को रोटी डालें, शराब व मांस का सेवन न करें, लोहे का दान दें, सुनसान जगह पर सुरमा दबाएं, वे चिमटे या अंगीठी का दान दें। राहु- बहते पानी में नारियल बहाएं, हाथी के पांव की मिट्टी कुएं में डालें, संयुक्त परिवार में रहें, पत्नी के साथ फिर फेरे लें, रसोई में बैठकर खाना खाएं, ससुराल से संबंध न बिगाड़ें, भाई बहन का बुरा न करें, सिर पर चोटी रखें और रात को तकिये के नीचे सौंफ व चीनी रखें। केतु- केसर का तिलक लगाएं, कुŸाा पालें, तिल का दान करें, परस्त्री गमन न करें, मकान की नींव में शहद दबाएं, काला व सफेद कंबल मंदिर में दान दें, पैरों के अंगूठों में चांदी पहनें, चाल-चलन ठीक रखें, गले में सोना पहनें, बायंे हाथ में सोने की अंगूठी पहनें। उपायों से पूर्व उपाय विभिन्न ग्रहों के विभिन्न उपाय करने से पहले निम्नलिखित उपाय अवश्य करें। शाकाहारी भोजन करें, विधवाओं और अतिथियों की सेवा करें, माता पिता का आदर करें, किसी को अपशब्द न कहें, दिन में संभोग न करें, देवी देवताओं की पूजा करें, ससुराल के सदस्यों का सम्मान करंे, शराब न पीएं, टूटे बर्तन घर में न रखें, घर में एक कच्ची जगह अवश्य रखें, प्रतिदिन बड़ों से आर्शीर्वाद लें और परस्त्री गमन न करें। कुछ विशेष उपाय बच्चे के सुरक्षित पैदाइश के लिए जौ का पानी बोतल में भरकर पास रख लें। स सुखी प्रसव हेतु व गर्भपात से बचने के लिए अपने भोजन का एक हिस्सा निकालकर कुŸो को दें। बार-बार गर्भपात होता हो, तो गर्भवती स्त्री के बाजू पर लाल धागा बांध दें। बेटे से संबंध सुधारने के लिए काले सफेद कंबल मंदिर में दें। कुछ विशेष सावधानियां सूर्य भाव 7 या भाव 8 का हो तो सुबह व शाम को दान न करें। चंद्र यदि भाव 6 का हो तो दूध या पानी दान न करें और यदि भाव 12 का हो तो साधु या महात्मा को खाना न दें और बच्चों को निःशुल्क शिक्षा न दिलाएं। गुरु यदि भाव 7 का हो तो मंदिर के पुजारी को वस्त्र दान न करें और यदि 10 का हो तो मंदिर न बनवाएं। शुक्र यदि भाव 9 का हो तो भिखारी को पैसा न दें और यदि 8 का हो तो सराय या धर्मशाला न बनवाएं।