श्राद्ध कैसे करे और किनका श्राद्ध कब करे
संसार में तीन ऋण प्रधान रूप से कहे गए हैं-देव-ऋण, गुरु-ऋण एवं पितृ-ऋण। इनमें पितृ-ऋण की प्रधानता बताई गई है। यद्यपि पित्र-ऋण से कोई भी उऋण नहीं हो सकता, तथापि पितरों के प्रति श्रद्धा-भाव रखना मनुष्य की उन्नति का कारण होता है। पितृ पक्ष में आप आसानी से श्राद्ध कर सकते हैं, इसकी विधि आपको बता रहे हैं।
हर विधि का एक विधान होता है। यदि कर्मकांड को उचित विधि से किया जाए तो ही उसका सही फल प्राप्त होता है। तो आइए जानते हैं कि श्राद्ध कर्म की उचित शास्त्रोक्त विधि के बारे में विस्तार से
श्राद्ध कर्म की उचित प्रामाणिक विधि
- सुबह उठकर स्नान कर देवस्थान व पितृस्थान को गाय के गोबर से लीपकर व गंगा जल से पवित्र करें।
- घर-आंगन में रंगोली बनाएं। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।
- श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्योता देकर बुलाएं। ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं।
- पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें।
- गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से 4 ग्रास निकालें। ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें। ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें और गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।
- पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है।
पितृ पक्ष का हिन्दू धर्म तथा हिन्दू संस्कृति में बड़ा महत्व है। श्रद्धापूर्वक पित्तरों के लिये किया गया कर्म श्राद्ध कहलाता है।
शास्त्रों के अनुसार जो पित्तरों के नाम पर श्राद्ध तथा पिण्डदान नहीं करता है वह हिन्दु नहीं माना जा सकता है।
हिन्दु शास्त्रों के अनुसार मृत्यु होने पर जीवात्मा चन्द्रलोक की तरफ जाती है तथा ऊँची उठकर पितृलोक में पहुँचती है इन मृतात्मओं को शक्ति प्रदान करने के लिये, उन्हें मोक्ष प्रदान करवाने के लिए उन्हें तृप्त, संतुष्ट करने के लिए तर्पण ,पिण्डदान और श्राद्ध किया जाता है।
पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का भाव ही श्राद्ध है। वैसे तो हर अमावस्या और पूर्णिमा को, पितरों के लिये श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। लेकिन आश्विन शुक्ल पक्ष के 15 दिन, श्राद्ध के लिये विशेष माने गये हैं। इन 15 दिनों में अगर पितृ प्रसन्न रहते हैं, तो फिर, जीवन में, किसी चीज़ की कमी नहीं रहती। कई बार, ग़लत तरीके से किये गये श्राद्ध से, पितृ नाराज़ होकर शाप दे देते हैं। इसलिये श्राद्ध में इन 54 बातों का खास ध्यान रखना चाहिये। श्राद्ध की मुख्य प्रक्रिया -तर्पण में दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त किया जाता है। -ब्राह्णणों को भोजन और पिण्ड दान से, पितरों को भोजन दिया जाता है। -वस्त्रदान से पितरों तक वस्त्र पहुंचाया जाता है। -यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है। श्राद्ध का फल, दक्षिणा देने पर ही मिलता है। श्राद्ध के लिये कौन सा पहर श्रेष्ठ? -
श्राद्ध के लिये दोपहर का कुतुप और रौहिण मुहूर्त श्रेष्ठ है।
कुतुप मुहूर्त दोपहर 11:36AM से 12:24PM तक।
रौहिण मुहूर्त दोपहर 12:24PM से दिन में 1:15PM तक।
कुतप काल में किये गये दान का अक्षय फल मिलता है।
पूर्वजों का तर्पण, हर पूर्णिमा और अमावस्या पर करें। श्राद्ध में जल से तर्पण ज़रूरी क्यों? -श्राद्ध के 15 दिनों में, कम से कम जल से तर्पण ज़रूर करें। -चंद्रलोक के ऊपर और सूर्यलोक के पास पितृलोक होने से, वहां पानी की कमी है। -जल के तर्पण से, पितरों की प्यास बुझती है वरना पितृ प्यासे रहते हैं। श्राद्ध के लिये योग्य कौन? -पिता का श्राद्ध पुत्र करता है। पुत्र के न होने पर, पत्नी को श्राद्ध करना चाहिये। -पत्नी न होने पर, सगा भाई श्राद्ध कर सकता है। -एक से ज्य़ादा पुत्र होने पर, बड़े पुत्र को श्राद्ध करना चाहिये। श्राद्ध कब न करें? - कभी भी रात में श्राद्ध न करें, क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है। - दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं किया जाता है। श्राद्ध का भोजन कैसा हो? -जौ, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ है। -ज़्य़ादा पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिये। -गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है। -तिल ज़्यादा होने से उसका फल अक्षय होता है। -तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। श्राद्ध के भोजन में क्या न पकायें? -चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा -कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी -बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी -खराब अन्न, फल और मेवे ब्राह्णणों का आसन कैसा हो? -रेशमी, ऊनी, लकड़ी, कुश जैसे आसन पर भी बिठायें। -लोहे के आसन पर ब्राह्मणों को कभी न बिठायें। ब्राह्णण भोजन का बर्तन कैसा हो? -सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तन भोजन के लिये सर्वोत्तम हैं। -चांदी के बर्तन में तर्पण करने से राक्षसों का नाश होता है। -पितृ, चांदी के बर्तन से किये तर्पण से तृप्त होते हैं। -चांदी के बर्तन में भोजन कराने से पुण्य अक्षय होता है। -श्राद्ध और तर्पण में लोहे और स्टील के बर्तन का प्रयोग न करें। -केले के पत्ते पर श्राद्ध का भोजन नहीं कराना चाहिये। ब्राह्णणों को भोजन कैसे करायें? -श्राद्ध तिथि पर भोजन के लिये, ब्राह्मणों को पहले से आमंत्रित करें। -दक्षिण दिशा में बिठायें, क्योंकि दक्षिण में पितरों का वास होता है। -हाथ में जल, अक्षत, फूल और तिल लेकर संकल्प करायें। -कुत्ते,गाय,कौए,चींटी और देवता को भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को भोजन करायें। -भोजन दोनों हाथों से परोसें, एक हाथ से परोसा भोजन, राक्षस छीन लेते हैं। -बिना ब्राह्मण भोज के, पितृ भोजन नहीं करते और शाप देकर लौट जाते हैं। -ब्राह्मणों को तिलक लगाकर कपड़े, अनाज और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें। -भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को द्वार तक छोड़ें। -ब्राह्मणों के साथ पितरों की भी विदाई होती हैं। -ब्राह्मण भोजन के बाद , स्वयं और रिश्तेदारों को भोजन करायें। -श्राद्ध में कोई भिक्षा मांगे, तो आदर से उसे भोजन करायें। -बहन, दामाद, और भानजे को भोजन कराये बिना, पितर भोजन नहीं करते। -कुत्ते और कौए का भोजन, कुत्ते और कौए को ही खिलायें। -देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। कहां श्राद्ध करना चाहिये? -दूसरे के घर रहकर श्राद्ध न करें। मज़बूरी हो तो किराया देकर निवास करें। -वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ और मंदिर दूसरे की भूमि नहीं इसलिये यहां श्राद्ध करें। -श्राद्ध में कुशा के प्रयोग से, श्राद्ध राक्षसों की दृष्टि से बच जाता है। -तुलसी चढ़ाकर पिंड की पूजा करने से पितृ प्रलयकाल तक प्रसन्न रहते हैं। -तुलसी चढ़ाने से पितृ, गरूड़ पर सवार होकर विष्णु लोक चले जाते हैं।
अश्विन कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष शुरू माना जाता है हालाँकि कुछ लोग इसके अगले दिन से भी श्राद्ध पक्ष मानते है । इस पूर्णिमा को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा कहा जाता हैं।
- मान्यताओं के अनुसार जिस भी व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन होती हैं उनका श्राद्ध पूर्ण श्रद्धा से इसी दिन किया जाना चाहिए ।
- पूर्णिमा के बाद की पहली तिथि अर्थात प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध पुराणो के अनुसार नाना-नानी और ननिहाल पक्ष के पितरों का श्राद्ध करने के लिए सबसे उत्तम माना गया है।
- अगर नाना पक्ष के कुल में कोई न हो और आपको मृत्यु तिथी ज्ञात ना हो तो भी इस दिन ननिहाल पक्ष के लोगो का श्राद्ध करना चाहिए ।
- श्राद्ध का दूसरा दिन अर्थात द्वितीय तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है,जिन लोगो की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की द्वितीय तिथि के दिन हुई हो , उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है।
- श्राद्ध के तीसरे दिन अर्थात तृतीय तिथि को उन व्यक्तियों का श्राद्ध किया जाता है जिन लोगो की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की तृतीय तिथि को होती है। इस दिन को महाभरणी भी कहते हैं। भरणी श्राद्ध का बहुत ही महत्व है । भरणी श्राद्ध गया श्राद्ध के तुल्य माना जाता है क्योंकि भरणी नक्षत्र का स्वामी मृत्यु के देवता यमराज होते है। इसलिए इस दिन के श्राद्ध का महत्व पुराणों में अधिक मिलता है।
- श्राद्ध के चौथे दिन अर्थात चतुर्थी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन होती है ।
- श्राद्ध का पाँचवा दिन अर्थात पंचमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिनकी मृत्यु विवाह से पूर्व ही हो गयी हो।
- इसीलिए इसे कुंवारा श्राद्ध भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की पँचमी तिथि के दिन होती है उनका भी श्राद्ध इसी दिन किया जाता है ।
- श्राद्ध के छठे दिन अर्थात षष्ठी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन हुई हो । इसे छठ श्राद्ध भी कहा जाता हैं।
- श्राद्ध के सातवें दिन अर्थात सप्तमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन हुई हो ।
- श्राद्ध के आठवें दिन अर्थात अष्टमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन हुई हो ।
- श्राद्ध के नवें दिन अर्थात नवमी तिथि को उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन हुई हो । इस दिन को बुढ़िया नवमी या मातृ नवमी भी कहते हैं। इस दिन माता का श्राद्ध किया जाता है। सुहागिनों का श्राद्ध भी नवमी को ही करना चाहिए । इस दिन दादी या परिवार की किसी अन्य महिलाओं का श्राद्ध भी किया जाता है।
- श्राद्ध के दसवें दिन अर्थात दशमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन हुई हो ।
- श्राद्ध के ग्यारवहें दिन अर्थात एकादशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन हुई हो । इस दिन परिवार के वह पूर्वज जो सन्यास ले चुके हो उनका श्राद्ध भी किया जाता है । इसे ग्यारस या एकदशी का श्राद्ध भी कहते है ।
- श्राद्ध के बारहवें दिन अर्थात द्वादशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन हुई हो । इस दिन परिवार के वह पूर्वज जो सन्यास ले चुके हो उनका श्राद्ध करने का सबसे उत्तम दिन माना जाता है ।
- श्राद्ध के तेरहवें दिन अर्थात त्रयोदशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन हुई हो ।यदि परिवार में किसी भी बच्चे का आकस्मिक देहांत हुआ हो तो उसका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है ।
- श्राद्ध के चौदहवें दिन अर्थात चतुर्दशी तिथि में शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों की अकाल-मृत्यु (दुर्घटना, हत्या, सर्पदंश, आत्महत्या आदि) हुई हो या जिनकी मृत्यु अस्त्र-शास्त्र के लगने से हुई हो ऐसे पितरों का श्राद्ध किया जाता है । इसे घात चतुर्दशी भी कहा जाता हैं।
- अमावस्या तिथि में श्राद्ध करने से सभी पितृ शांत होते है। यदि श्राद्ध पक्ष में किसी का श्राद्ध करने से आप चूक गए हों, अथवा गलती से भूल गए हों तो इस दिन श्राद्ध किया जा सकता है। अमावस्या तिथि में पुण्य आत्मा प्राप्त करने वाले पूर्वजों की आत्मा के लिए श्राद्ध भी इसी तिथि में किया जाता है। यदि हमें अपने किसी परिजन की मृत्यु तिथि का ज्ञान नहीं है तो उनका श्राद्ध भी इसी दिन किया जा सकता है ।
- इस अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा सर्व पितृ दोष अमावस्या अथवा महालया के नाम से भी जाना जाता है। अश्विन की अमावस्या पितरों के लिए उत्सव का दिन कहलाता है ।