Makar Lagna/मकर लग्न
मकर लग्न :
मकर लग्न में जन्मे जातक यदि व्यापार करें तो इन्हें असफलता का मुंह देखना पड़ता है एवं लगातार असफल होने के कारण इनमें हीन भावना भी आ जाती है। इतने पर भी यदि इन्हें कोई इनका दोष बतला दे तो ये उस व्यक्ति पर अत्यंत क्रुद्ध हो जाते हैं एवं अपना संयम तो खो ही देते है साथ ही साथ वाणी से भी तीर की भाँती चुभने वाले शब्द कह देते हैं। ये स्वभाव से अडि़यल एवं जिद्दी होते हैं। जो बात एक बार इनके दिमाग में घर कर जाए उसे कर के ही मानते हैं चाहे उस कार्य को करने में कितनी ही हानि क्यों न उठानी पडें, उसकी भी परवाह नहीं करते। मकर लग्न में जन्मे जातक का भाग्योदय 25, 33, 35, 36 और 42वें वर्ष में होता है। वृष, कर्क, कन्या लग्न वाले व्यक्तियों से इनका अच्छा ताल मेल बैठ जाता है।
मकर लग्न में जन्में जातक शरीर से पतले, मध्यम कद, पैनी आंखें, नाक चपटी के और प्रायः श्यामवर्ण और फुर्तीले हुआ करते हैं। इनके शरीर का गठन सुव्यवस्थित नहीं होता। प्रायः इनके शरीर का कोई अवयव अनुपात में कम या अधिक हेाता है।
मकर लग्न वाले व्यक्ति प्रायः उग्र स्वभाव के होते हैं. इनके स्वभाव में उत्साह के साथ-साथ झगडालू प्रकृति भी होती है। क्रोध आता भी धीरे- धीरे आता है व शांत भी देरी से होता है।स्तिथियों के अनुरूप अपने स्वभाव को ढालना आपको बहुत अच्छे से आता है. आप बहुत ही परिश्रमशील व उद्यमी व्यक्ति है तथा हिम्मत हारना व निराश होना आपके स्वभाव में नहीं है.
मकरलग्न में उत्पन्न जातक शांत तथा उदार स्वभाव के व्यक्ति होते हैं तथा अन्य जनों के प्रति उनके मन में प्रेम तथा सहानुभूति सदैव विद्यमान रहता है. मुख पर विचारशीलता, शांति एवं गम्भीरता सदैव विद्यमान रहती है . मकर लग्न में जन्मे जातक अत्यंत ही कम्रशील एवं परिश्रमी होते हैं फलतः सांसारिक महत्व के कार्यों को सम्पन्न करके उनमें सफलता अर्जित करते हैं।
इनमें कार्य करने की क्षमता प्रबंल होती है तथा यही इनकी सफलता का रहस्य होता है। इनमें सेवा का भाव भी रहता है तथा समाज एवं देश सेवा के प्रति ये उद्यत रहते हैं। ये साहसी एवं संघर्षशील होते हैं तथापि इनके मन में यदा-कदा उदासीनता के भाव की उत्पत्ति होती है जिससे सुख-दुख के समान भाव की अनुभूति करते हैं एवं त्यागमय जीवन व्यतीत करने के लिए ये उत्सुक रहते हैं। इनका स्वभाव अड़ियल होता है। जिस बात को करने की ठान लेंगे, उसे अवश्य करेंगे, भले ही इन्हें उसमें कितनी ही हानि क्यों न उठानी पड़े। इसके अतिरिक्त परिश्रमी एवं अध्ययनशील होने के कारण ये अनुसंधान विज्ञान या शास्त्रीय विषयों का ज्ञान अर्जित करके एक विद्वान के रूप में सामाजिक पहचान प्राप्त करते हैं।
आप स्वस्थ्य एवं बलशाली पुरूष होंगे तथा अपने आदर्शों पर चलने के लिए स्वतंत्र होंगे। आप अपने सभी कार्य अपनी बुद्दिमता से संपन्न करते हैं. । देश सेवा का भाव भी आपमें विद्यमान रहता है. आपके गुणों के कारण शत्रु भी आपसे प्रभावित रहते हैं. संगीत के प्रति आपकी विशेष रूचि रहेगी तथा इस क्षेत्र में अधिक परिश्रम और प्रयासों के बल पर आप विशिष्ट उपलब्धि भी अर्जित कर सकते है। आपकी श्रेष्ठ कार्यों को करने की रूचि आपको समाज में मान सम्मान दिलाएगी. आपका पुत्र एक प्रिसद्ध व्यक्ति होगा और आपको भी उसके कारण ख्याति मिलेगी.
मकर लग्न में जन्मे जातक की देह दुबली पतली होती है, इनका कद मध्यम ऊंचाई का होता है, एवं इनका वर्ण अधिकांशतः श्यामल ही होता है। इनकी देह सुव्यवस्थित रूप से गठित नहीं होती। प्रायः शरीर का कोई भाग अनुपात में कम अथवा अधिक होता है। मकर लग्न में जन्मे जातक के नेत्र सुन्दर होते हैं, ये जातक स्वभाव से गंभीर एवं मननशील होते हैं। आध्यात्म इन्हे अपनी ओर आकर्षित करता है। अपनी व्यवहार कुशलता के कारण सफलता प्राप्त करने वाले होते हैं। ऐसे जातक सदैव सतर्क रहने वाले एवं कुशल नीतिज्ञ होते हैं। धैर्य एवं संयम इनमें कूट कूट कर समाहित होता है। ये जातक अत्यंत महत्वाकांक्षी भावना लिए होते हैं। अनेक विघ्न बाधाओं के होते भी मेहनती एवं कार्यशील रहते हैं। स्वभाव से बेहद उग्र होते है, किन्तु समय देखकर ही ऐसे जातक उग्रता का प्रदर्शन करते हैं। इनका दाम्पत्य जीवन भी सुखमय एवं संतुष्ट नहीं कहा जा सकता, पति-पत्नी एक छत के नीचे भले ही रहें, किन्तु उनके मध्य वैचारिक मतभेद सदैव बने रहते हैं, एवं एक दूसरे से रूठना मनाना सदा ही लगा रहता है। ऐसे जातक अपनी आत्म प्रशंसा में विश्वास नहीं रखते।
ऐसे जातकों में वायु तत्त्व की प्रधानता रहती है। इनका व्यक्तित्व भी रहस्यमयी होता है, इनको समझना अथवा बूझना सरन नहीं होता। इनका कोई कार्यक्रम निश्चित नहीं रहता, अपनी मर्जी से मन में जब, जो आ जाए तब वही करना प्रारम्भ कर देते हैं।
मकर लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। Makar Lagn jatak – Capricorn Ascendent
लग्न स्वामी शनि होने से ऐसे जातक खोजी प्रवृत्ति के होते है । कालपुरष कुंडली में दसवसन स्थान मिलने से ऐसे जातकों में अथक परिश्रम की क्षमता पाई जाती है ।
यदि कुंडली में शनि की स्थिति भी अच्छी न हो तो ऐसे जातक स्वार्थी हो जाते हैं । इनके भाग्योदय में समय अपेक्षाकृत अधिक लग जाता है । शनि प्रधान लग्न , पृथ्वी तत्व व् चर राशि होने से ऐसे जातक नीतिज्ञ, विवेकवान व् व्यावहारिक बुद्धि वाले होते हैं । इनमें विशिष्ट संगठन क्षमता होती है। असाधारण सहनशीलता और धैर्य इन्हें बड़ा संगठन खड़ा करने में मदद करते हैं । इनका वैवाहिक जीवन सामान्य ही रहता है । इन तथ्यों के अलावा लग्नेश कुंडली में कहां या किसके साथ स्थित है , लग्न में कौन कौन से गृह हैं, ये काऱक हैं या मारक हैं, लग्न पर काऱक मारक ग्रहों की दृष्टि व् नक्षत्रों का विस्तृत विवेचन करने पर ही जातक के वास्तविक चरित्र के करीब पहुंचा जा सकता है ।
मकर लग्न के नक्षत्र Capricorn Lagna Nakshatra :
मकर राशि भचक्र की दसवें स्थान पर आने वाली राशि है । राशि का विस्तार 270 अंश से 300 अंश तक फैला हुआ है । उत्तराषाढ़ा के दुसरे , तीसरे , चौथे चरण , श्रवण के चारों चरण तथा धनिष्ठा के पहले दुसरे चरण के संयोग से धनु लग्न बनता है ।
लग्न स्वामी : शनि
लग्न चिन्ह : मरगमच्छ
तत्व: पृथ्वी
जाति: वैश्य
स्वभाव : चर
अराध्य/इष्ट : लक्ष्मी, बजरंग बलि
मकर लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह – Ashubh Grah / Karak grah Makar Lagn – Capricorn Ascendant
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं ।
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शनि :
लग्नेश सदा ही शुभ गृह माना जाता है । अतः कुंडली का काऱक गृह है ।
शुक्र :
पंचमेश , दशमेश है । अतः कुंडली का कारक गृह है ।
बुध :
छठे , नवें भाव का स्वामी होने से यहाँ एक कारक गृह है ।
मंगल :
चौथे और ग्यारहवें का स्वामी होने से इस लग्न में सम गृह बनता है ।
मकर लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Makar Lagn – Capricorn Ascendant
गुरु :
तीसरे , ग्यारहवें का स्वामी होने से एक मारक गृह बनता है ।
चंद्र :
सप्तमेश होने से मकर लग्न में एक मारक गृह बनता है ।
सूर्य :
अष्टमेश होने से मारक बनता है ।
मकर लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Capricorn Ascendant
लग्नेश-द्वितीयेश शनि, पंचमेश – दशमेश शुक्र व् षष्ठेश -नवमेश बुध मकर लग्न कुंडली काऱक गृह है । अतः इनसे सम्बंधित रत्न नीलम, हीरा व् पन्ना धारण किये जा सकते हैं । इस लग्न कुंडली में मंगल चतुर्थे, एकादशेश होकर व् लग्नेश शनि का अति शत्रु होने से एक सम गृह बनता है । ऐसे में कुछ विशेष परिस्थितियों में मंगल रत्न मूंगा धारण किया जा सकता है , जिसे कार्य विशेष सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है । किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को धारण किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है । यदि वह गृह विशेष तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच राशि में पड़ा हो तो ऐसे गृह सम्बन्धी रत्न कदापि धारण नहीं किया जा सकता है । कुछ लग्नो में सम गृह का रत्न कुछ समय विशेष के लिए धारण किया जाता है, फिर कार्य सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है । इसके लिए कुंडली का उचित निरिक्षण किया जाता है । उचित निरिक्षण या जानकारी के आभाव में पहने या पहनाये गए रत्न जातक के शरीर में ऐसे विकार पैदा कर सकते हैं जिनका पता लगाना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है |
मकर लग्न की कुंडली में में मन का स्वामी चंद्रमा सप्तम भाव का स्वामी होता है. यह जातक लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में चंद्रमा के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
सूर्य अष्टम भाव का स्वामी होता है और यह जातक व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
मंगल चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी होता है. चतुर्ठेश होने के नाते माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह संबंधी विषयों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि एकादशेश होने के नाते लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में मंगल के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
शुक्र पंचम और दशम भाव का स्वामी होता है. पंचमेश होने के कारण यह जातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि विषयों का और दशमेश होने के कारण राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति इत्यादि विषयों का अधिपति होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं. एक केंद्र और त्रिकोण का स्वामित्व मिलने शुक्र मकर लग्न में अति योगकारी होता है.
मकर लग्न की कुंडली के अनुसार बुध षष्ठ भाव का स्वामी होकर यह जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बृहस्पति द्वादश भाव का स्वामी होकर यह जातक के निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है.
जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में बृहस्पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
शनि प्रथम और द्वितीय भाव का स्वामी होता है. यह लग्नेश होने के नाते जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधि एवम द्वितीयेश होने के कारण कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
मकर लग्न में राहु नवम भाव का अधिपति होकर जातक के धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि बनकर अति शुभ हो जाता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में विशेष शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
केतु यहां तॄतीयेश होकर जातक के नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
आजीवन आप अपने पिता को आदर देंगे तथा उनकी सेवा करेंगे। आपकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ होगी तथा प्रचुर मात्रा में धन एवं लाभ अर्जित करेंगे। । आपकी युवावस्था संघर्षशील रहेगी परन्तु वृद्धावस्था में सुख एवं शांति प्राप्त करेंगे। मित्र एवं बन्धु वर्ग के आप प्रिय हेांगे तथा इनसे आपको पूर्ण लाभ सहयोग प्राप्त होगा। यदि आपका जन्म अभिजित नक्षत्र में है तो आपके अन्य भाई बहनों से सहायता की उपेक्षा हानि की सम्भावना अधिक है। आप के विनोदी स्वभाव के कारण अपरिचित से अपरिचित व्यक्ति भी आपके मित्र बन जायेंगे। सार्वजनिक कार्यों में आप बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे परन्तु आपका विवाहित जीवन पूर्णतः सुखी नहीं कहा जा सकता। पत्नी व आपके विचारों में असमानताऐं, आपके विवाति जीवन को कटुता से भर देंगी.
मकर लग्न के जातकों में व्यापार की समझ अच्छी होती है । आपका मस्तिष्क सक्रिय है। शनि के प्रभाव के कारण आपका भाग्योदय भी शनै-शनैः होता है। आपका भाग्य 30 वर्ष की आयु के पश्चात् चमकेगा, तथा 36 वर्ष के पश्चात् आपको भाग्य निर्माण तेजी से प्रारम्भ होना शुरू हो जाता है। आप विशिष्ठ प्रभाव वाले होने से आपकी राजकीय कार्यों में शीघ्र सफलता मिल जायेगी। आप ऊंची-ऊंची योजनाएं बनाने में सदा तत्पर रहते हैं। आय अधिक रहती है परन्तु व्यय उससे भी कहीं अधिक रहता है.
मकर लग्न के जातक अपनी दयनीय स्थिति का बोध अक्सर दूसरों के सामने करते हैं. ये बहुभोगी व विषयवासना से आसक्त रहने वाले व्यक्ति होते हैं। भोजन के बाद शीघ्र आराम करने की इच्छा रहती है। आपकी कथनी और करनी में प्रायः अंतर रहता है. अकेलापन आपको प्रिय है और आप स्वभाव से मिलनसार भी नहीं हैं . आपका व्यक्तित्व रहस्यमय हुआ करता है तथा कोई भी कार्यक्रम निश्चित नहीं रहता। कोई इनका दोष इन्हें बतला दे तो ये आपे से बाहर हो जाते है। ऐसे जातक वाचाल भी बहुत होते हैं तथा वाकशक्ति पर इनका कोई नियंत्रण नहीं होता। धर्म के प्रति भी आपके मन में श्रद्धा रहेगी।