सप्तमांश वर्ग Saptansh varga
D7 in Astrology
जन्म कुण्डली के पंचम भाव से संतान के बारे में पूर्ण रुप से विवेचन किया जाता है. इसी पंचम भाव के सूक्ष्म अध्ययन के लिए वैदिक ज्योतिष में सप्तांश कुण्डली का आंकलन किया जाता है. जन्म कुण्डली का पंचम भाव 30 अंश का होता है. इस 30 अंश को सात बराबर भागों में बाँटकर सप्ताँश कुण्डली बनाई जाती है.
सप्तांश कुण्डली से संतान पक्ष के बारे में विचार किया जाता है. इस कुण्डली से संतान का अच्छा बुरा सभी कुछ प्रत्यक्ष रुप से दिखाई देता है. इस कुण्डली के सभी सात भागों का फलित भिन्न-भिन्न होता है.
सप्तमांश मे राशि 30 अंश के सात भाग किये जाते है।
प्रत्येक भाग 4 अंश 17 कला 8 विकला का होता है।
सप्तमांश में विषम राशियो की गणना उसी राशि से और सम राशियो मे उससे सातवी राशि से करते है।
सप्तांश फल विचार :
संतान सुख ज्ञानार्थ सप्तांश कुंडली का परिशीलन नितांत आवश्यक है।
यदि सप्तांश लग्न विषम हो और उसमे शुभ ग्रह स्थित हो या शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तो पुत्र सुख होता है। यदि सप्तांश लग्न सम हो, तो कन्या होती है। यदि सप्तांश लग्न पाप ग्रह युत या दृष्ट हो, तो संतान सुख नही होता है।
सप्तांश लग्न का स्वामी जन्म कुण्डली मे जिस राशि मे हो उस राशि अंक की संख्या के समान संतान (पुत्र, पुत्री) होती है।
सप्तमांश लग्न मे पंचम स्थान शुभ ग्रह से दृष्ट या युक्त हो, तो पुत्र सुख होता है अन्यथा अभाव होता है।
सप्तांश लग्नेश पुरुष ग्रह सू, मं, गु, हो, तो विशेषतया पुत्र सुख होता है। यदि सप्तांश लग्नेश स्त्री ग्रह चं, शु हो, तो कन्या का सुख होता है।
सप्तांश का स्वामी (सप्तांशेश) अस्त हो और जन्म कुंडली मे अशुभ युक्त होकर लग्न मे हो, तो गर्भ का अभाव होता है। सप्तांशेश नीच का हो, तो संतान दुर्बल, अल्पायु, कुस्वभावी होती है। सप्तांशेश शत्रुगृही हो, तो सुपुत्रो की हानि होती रहे और कुपुत्रो का लाभ होता रहे।
ग्रहफल विचार :
यदि सप्तांश का स्वामी सूर्य के साथ हो, तो संतान नेत्र रोगी होती है। यदि सप्तांशेश गुरु या शुक्र के साथ हो, तो पुत्र भाग्यवान, दीर्घायु होता है।
यदि सप्तांशेश बुध हो, तो कन्याए अधिक होती है। यदि सप्तांशेश पाप ग्रह हो या जन्म कुण्डली मे पापग्रह की राशि मे हो, तो जातक की संतान नीचकर्मी, अल्पायु होती है।
यदि सप्तांशेश (सप्तांश का स्वामी) जन्म कुण्डली मे ग्यारहवे या बारहवे हो, तो जातक को मस्तिष्क, कमर, पैर मे वायु जनित पीड़ा होती है।
यदि उपरोक्त स्थिति मे पापग्रह का योग हो, तो जातक दुष्ट हृदय वाला होता है। शुभग्रह हो, तो जातक सुविचारी, सहृदयी होता है।
यदि सप्तांशेश जन्म कुण्डली मे शुभग्रह से युत या दृष्ट, शुभग्रह की राशि मे या उच्चस्थ या मित्रगृही हो, तो संतान सन्मार्ग पर चलने वाली, रूपगुण युक्त, सुशील होती है।
यदि सप्तांशेश जन्मांग मे सप्तांश लग्न से सातवे या आठवे पापयुक्त या पापदृष्ट या अस्त हो, तो जातक की संतति अल्पायु और दुर्बल होती है।
यदि सप्तांशेश पापग्रह हो और जन्मांग मे भी वह पापग्रह हो, तो जातक को संतान की कुछ-कुछ चिंता बनी रहती है। संतान सुख नही रहता है।
सप्तांश लग्नेश फल :
• सूर्य के सप्तांश मे जातक शूर, शक्तिशाली, सभ्य, उत्तम, व्यवहारी, प्रसिद्ध होता है।
• चंद्र के सप्तांश मे जातक पवित्र, धार्मिक, विनयशील, भोगी, रतिप्रिय, बुद्धिमान होता है।
• मंगल के सप्तांश मे जातक असहनशील, स्वाभिमानी, साहसी, शक्तिशाली होता है।
• बुध के सप्तांश मे जातक कवि, कोमल, शिल्प कला का ज्ञाता, विद्वान, बोलने मे निपुण होता है।
• गुरु के सप्तांश मे जातक पण्डित, स्थिर, साहसी, विद्वान, बुद्धिमान, ज्ञानियो मे श्रेष्ट होता है।
• शुक्र के सप्तांश मे जातक इन्द्रिय तुष्टी, कामी, विलासी, रति-हास्य-गायन-नृत्य मे रत रहता है।
• शनि के सप्तांश मे जातक मूर्ख, आलसी, दुष्ट, भ्रष्ट, टेडी मति वाला, विकर्मी, पापी होता है।
इन ग्रहो के उच्च अथवा नीच, स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री होने पर उस अनुसार फल होते है।
राशियो के पृथक-पृथक सप्तांश फलादेश
नॉट :- निम्नांकित फलादेश मे सप्तमांश मे ग्रह, लग्न, चन्द्रमा द्वारा जातक की आकृति एवं लक्षण का विस्तृत वर्णन है। यह यवनाचार्य मत अनुसार है।
मेष :
मेष के प्रथम सप्तांश मे जातक कृश देह, छोटे मुख व सिर वाला, लाल नेत्र, चोर, क्रूर, लड़ाई-झगडे मे जख्मी या मृत्य को प्राप्त होता है।
मेष के द्वितीय सप्तांश मे जातक चौड़े भाल, गाल, मुख वाला, अच्छी हसली वाला, सुन्दर नेत्र व ग्रीवा, चौड़े मोटे झुके कंधे, कृश जोड़ो वाला होता है।
मेष के तृतीय सप्तांश मे जातक नम्र, शूरवीर, लेखक, कामी, स्त्रियो मे रुचिवान, पापी, भ्रमण प्रिय होता है।
मेष के चतुर्थ सप्तांश मे जातक विशाल नेत्र, कपोल और उदर वाला, गौर हस्त, अध्यापन या प्रवचन या कथा करने वाला, स्नान-सुगंध से आनंदित, वस्त्राभूषण प्रिय होता है।
मेष के पंचम सप्तांश मे जातक ताम्र लाल कांति वाला, साहसी, घनी भौंहे, बड़ी भुजा, चौड़ा सिर व ललाट वाला, सुन्दर नाक और लाल मादक नेत्र वाला, शूरवीर होता है।
मेष के षष्ठ सप्तांश मे जातक विशाल शरीर और नेत्र वाला, गौरवर्ण, सुन्दर, लम्बा कद वाला, बुद्धिमान, धनवान, मधुर भाषी. ज्ञानी, विद्या मे श्रेष्ट होता है।
मेष के सप्तम सप्तांश मे जातक चौड़ा, लम्बा, श्यामवर्णी, कठोर शाग्र (नख) छितरे दांत, बिखरे बाल वाला, कलह प्रिय, निष्ठुर, कटु बोलने वाला होता है।
वृषभ :
वृषभ के पहले सप्तमांश मे जातक चौड़ा माथा, गाल, सीना वाला, पुष्ट स्कंध, छोटी भुजा, श्यामवर्णी, एकदम छोटे बाल या गंजे जैसा, विशाल नेत्र वाला होता है।
वृषभ के दूसरे सप्तमांश मे जातक कोमल देह, सुन्दर कांति, मधुर वाणी, सुन्दर नेत्र, कामी, वासना युक्त, ज्ञान विज्ञान और कला मे रत होता है।
वृषभ के तीसरे सप्तमांश मे जातक बुद्धिमान, पीत गौर वर्ण, मृग नेत्र, सुभग, रतिप्रिय, दानी, कोमल शरीर, कम बाल वाला, प्रभावशाली होता है।
वृषभ के चौथे सप्तमांश मे जातक ऊँचा मुख, गाल, नाक वाला, धनवान, सुन्दर नेत्र, शेखी बघारने वाला, गौर वर्ण, लाल नख, बगुले या गधे के समान कमर वाला होता है।
वृषभ के पांचवे सप्तमांश मे जातक लाल भूरे नेत्र वाला, सुकुमार, तीक्ष्ण बोलने वाला, स्वतंत्र रहने वाला, पर धन लोभी, रोगी, गायक होता है। स्त्री की मृत्यु या वियोग हो सकता है।
वृषभ के छठे सप्तमांश मे जातक लम्बा कद, बड़े कान, चौड़ा शरीर, श्याम उन्नत नेत्र, कार्यकुशल, विपत्तियो मे धैर्यवान, कर्मठ होता है।
वृषभ के सातवे सप्तमांश मे जातक आकर्षक, गोल मुख वाला, श्वेत मुखर नेत्र, श्याम कृश शरीर, शूरवीर, क्रोधी, लोभी, वक्ता, चंचल, अल्पसाहसी, भ्रमणशील होता है।
मिथुन :
मिथुन के प्रथम सप्तांश मे जातक ज्ञानी, कवि, अधिक बोलने वाला, श्यामवर्णी, पवित्र, विलासी, प्रसिद्ध, नृत्य-संगीत व ललित कला प्रेमी, सुविख्यात होता है।
मिथुन के द्वितीय सप्तांश मे जातक धनवान, अधिक गौर वर्ण, दूरदृष्टि, बुद्धिमान, आलसी, मृदु स्वभाव वाला, संगीत व धर्म मे रत होता है।
मिथुन के तृतीय सप्तांश मे जातक दूरदृष्टि, ताम्र व विदीर्ण आभा वाला, बड़ी दाड़ी, शूरवीर, उदार कर्मी, हरण करने वाला, विनोदी स्वभाव का होता है।
मिथुन के चतुर्थ सप्तांश मे जातक सुगठित शरीर, सुन्दर नेत्र, श्याम वर्ण, व्यापार के प्रयोग मे निपुण, सुभग, अल्पभाषी, लेन-देन कुशल व्यापारी होता है।
मिथुन के पंचम सप्तांश मे जातक लाल गुलाबी अधर, नख, नेत्र वाला, साहसी, कृश, विभक्त भुजाओ वाला, रति चौर्य (बलात्कारी) कुटिल कर्म करने वाला, वाचाल, कामुक होता है।
मिथुन के षष्ठ सप्तांश मे जातक अधिक चौड़े और गौरे शरीर वाला, सुन्दर आँख नाक कान वाला, शास्त्र काव्य धर्म मे रत, कोमल, विशेष बुद्धि वाला, सबका प्रिय होता है।
मिथुन के सप्तम सप्तांश मे जातक स्त्रियो से मान सम्मान पाने वाला, कथा कहानी मे रत, जुआरी, अल्प साहसी, चंचल, समानुपाती व कोमल अंग वाला होता है।
कर्क :
कर्क के प्रथम सप्तमांश मे जातक विशाल वक्ष, श्याम वर्ण, सुशिक्षित, सुआचरणी, चौड़ा पेडू व नेत्र, कठोर केश और लम्बी भुजा वाला होता है।
कर्क के द्वितीय सप्तमांश मे जातक मोटे होंठ, भरे कपोल, मोटा व छोटा कण्ठ, ताम्र कान्ति, कृश, लम्बा, मजाकी स्वभाव, पीले नेत्र वला होता है।
कर्क के तृतीय सप्तमांश मे जातक विद्वान्, चौड़े शरीर वाला, सुन्दर नेत्र, निपुण कवि, संगीतज्ञ, कोमल और सुकुमार होता है।
कर्क के चतुर्थ सप्तमांश मे जातक दूरदर्शी, कोमल, सुन्दर बड़े नेत्र, महीन केश, सुन्दर नाक वाला, गीतकार, लम्बी भुजा वाला होता है।
कर्क के पञ्चम सप्तमांश मे जातक ताम्रवर्ण, सुन्दर कपोल, ऊँची तीखी नाक, लम्बी गर्दन वाला, कृश देह, पीत नेत्र, शूरवीर, पर स्त्री का इच्छुक होता है।
कर्क के षष्ठ सप्तमांश मे जातक लम्बा, सुन्दर नेत्र व नाक, बड़े कान, गौरवर्णी, जन सम्मानित, बुद्धिवाला, बाते व कार्य हितकारी करने वाला, यशस्वी होता है।
कर्क के सप्तम सप्तमांश मे जातक कर्कश वाणी वाला, रूखे शुष्क केश, लम्बा, कृश, श्याम देह, दुर्जन, भ्रमण शील, तीक्ष्ण नेत्र, तीव्र दृष्टि, ऊँची नाक वाला होता है।
सिंह :
सिंह के पहले सप्तांश मे जातक लाल नेत्र, लम्बा, साहसी, चतुर, चौड़ी नाक, मजबूत हड्डी वाला, लम्बे एवं धने रोम वाला, चुस्त, फुर्तीला होता है।
सिंह के दूसरे सप्तांश मे जातक भाग्यशाली, सुन्दर आंख, तीखी नाक, लम्बा, वक्ता, अर्थशास्त्री, स्त्रियो का सम्मानी, राजनीतिज्ञ होता है।
सिंह के तीसरे सप्तांश मे जातक लम्बा चौड़ा शरीर, चौड़ा भाल व सिर, दीर्घ सुन्दर नेत्र, धन संचय करने वाला, धैर्यवान, साहसी, संपन्न होता है।
सिंह के चौथे सप्तांश मे जातक लड़ाई-झगड़ा करने वाला, दुराचारी, साहसी, केकड़े के सामान आंखे व दृष्टि वाला, मध्यम कद, रक्त वर्णी होता है।
सिंह के पांचवे सप्तांश मे जातक आत्मविश्वासी, उत्साही, स्थिर, यश मान सम्मान युक्त, सुनयनी, गेहुंआ रंग, चौड़े सिर वाला होता है।
सिंह के छठे सप्तांश मे जातक शिशिर (ठण्डा) स्थूल देह वाला, छोटे नेत्र, अत्यधिक भ्रमणशील, सन्यास मे निहित, सुन्दर नाक वाला होता है।
सिंह के सातवे सप्तांश मे जातक कोमल ऊँचे गोल अंग वाला, बुद्धिमान, छोटी नाक, अल्प भाषी, सुवेशी, संकोचशील, गीत संगीत और स्त्री मे रत होता है।
कन्या :
कन्या के प्रथम सप्तमांश मे जातक प्रभावशाली वाग्मी, बुद्धिमान, विनीत, स्थूल देह, श्याम मुखर नेत्र, शांत, पतली कमर, साधारण नाक वाला होता है।
कन्या के द्वितीय सप्तमांश मे जातक मोटी जांघे कंधे वाला, मृदुभाषी, कोमल, पूर्ण मुखी, सुकुमार, स्त्रियो मे आसक्त होता है।
कन्या के तृतीय सप्तमांश मे जातक अभिमानी, छली, मिथ्यावादी (झूठा) रक्तवर्णी, लालनेत्र, चंचल, पतले रोम, अल्प चित्त वाला, ऊँचा मुख, कपटी या चोर होता है।
कन्या के चतुर्थ सप्तमांश मे जातक शिल्पज्ञ, वेद के अनुसार कार्य करने वाला, बड़ा सिर, नेत्र और दाढ़ी, बुद्धिमान, दानी धनाढ्य, कुशल वार्ताकार होता है।
कन्या के पंचम सप्तमांश मे जातक भीरु, हतोत्साहित, बोलने में डरपोक, क्रोधी, बडी ठोड़ी, लम्बा मुंह व सिर, श्याम शरीर, मृग सामान नेत्र, आकर्षक होता है।
कन्या के षष्ठ सप्तमांश मे जातक पूर्ण ऐश्वर्यवान, दृढ़, मानी, धनी, धार्मिक, श्याम नेत्र, टेडी नाक, चौड़ी धनी भोंहे वाला, स्थिर मति, परम्परावादी होता है।
कन्या के सप्तम सप्तमांश मे जातक मध्यम कद, सुनहरे केश, बड़े नेत्र, स्थूल अधर कपोल दांत गर्दन वाला, उग्र स्वभाव वाला, क्रोधी, तामसी होता है।
तुला :
तुला के पहले सप्तांश मे जातक कमल समान नेत्र, ऊँची नाक, तरुण अंग, स्वादिष्ट पकवान का इच्छुक, सुदृष्टि, सुन्दर शरीर, विद्वान्, धनार्जनी, सेवा करने वाला होता है।
तुला के दूसरे सप्तांश मे जातक कृषि, बागवानी, भूसम्पदा मे रत, गोल चेहरा, ऊँची नाक दीर्घ अधर, हिंसक, लालश्याम वर्णी, पर्यटन प्रेमी होता है।
तुला के तीसरे सप्तांश मे जातक धर्मशास्त्र व अर्थशास्त्र रचयिता, ऊँची नाक व सिर, छोटा मुख व नेत्र, शिरा बहुल, (उभरी नस व नाडी) वाला होता है।
तुला के चौथे सप्तांश मे जातक श्याम वर्णी, भारी आवाज वाला, लम्बा रुक्ष या कर्कश चेहरा, मोटे अधर, लंबी गर्दन, चौड़ा वक्ष, टेड़े स्वभाव वाला, ठगने के कर्म करने वाला, टेड़े नख वाला होता है।
तुला के पांचवे सप्तांश मे जातक धवल मुख, श्याम नेत्र, सुन्दर शरीर, धार्मिक व कला कार्य में निपुण, श्रेष्ठ सज्जनो की सेवा मे होता है।
तुला के छठे सप्तांश मे जातक टेडी भोंहे वाला, सुन्दर नेत्र, सम सुगठित शरीर, कला व अच्छा बोलने मे निपुण, सुन्दर मुख, पेट, नाक वाला, प्रतिभाशाली होता है।
तुला के सांतवे सप्तांश मे जातक स्थूल होंठ, स्थिर, कोमल भूरे केश, लाल नेत्र, शूरवीर, सोलह वर्ष की उम्र से कम या कोमलांगनी से प्रेम करने वाला होता है।
वृश्चिक :
वृश्चिक के प्रथम सप्तांश मे जातक लाल भूरे नेत्र वाला, धने भूरे केश, ऊँचा, असत्य वक्ता, यज्ञ मे रत, चंचल देह वाला, फुर्तीला, प्रगतिशील, योजनाबद्ध होता है।
वृश्चिक के द्वितीय सप्तांश मे जातक जातक बड़े नेत्र और भोंहे ला, अल्प रोम, सुन्दर नाक वाला, कोमल पीली कांति, ज्ञान-विज्ञान व शास्त्र-विधि का ज्ञाता, कलाविद होता है।
वृश्चिक के तृतीय सप्तांश मे जातक बोलने मे निपुण, जीवन का प्रथम भाग (निरुद्ध पूर्वार्द्ध) अविकसित, वृद्ध काया, घृणित, विकृत शरीर होता है।
वृश्चिक के चतुर्थ सप्तांश मे जातक चौड़े गाल, बड़ी नाक, बड़ा पेट, धुंधराले केश, क्रोधी, अभिमानी, हठी, स्वयम के अहित मे बोलने वाला, लम्बी भुजाओ वाला होता है।
वृश्चिक के पंचम सप्तांश मे जातक पतला पेट, चौड़ा वक्ष, वक्ता, जुआरी, सुन्दर मुख व भुजा, पर सेवा युक्त, अल्प निपुण (कार्य क्षमता, दक्षता) होता है।
वृश्चिक के षष्ठ सप्तांश मे जातक नीलकमल के समान नेत्र वाला, बुद्धिमान, ऊँचा शरीर, ऊँची नाक, अंतर्मुखी, कोमल, सुकोमल पत्नी वाला, साहसी होता है।
वृश्चिक के सप्तम सप्तांश मे जातक कलह वैर विरोध का इच्छुक, लंबी नाक, चौड़ा सिर और जांघ वाला, भूरे रोम और नेत्र, प्रसिद्ध, स्थिर, धैर्यवान, साहसी होता है।
धनु :
धनु के प्रथम सप्तांश मे जातक मोटे चौड़े गाल व नाक वाला, चौड़ा पेट, व नेत्र, मादक नेत्र, ऊँचा सिर, स्थूल पैर वाला, सतगुणी, उज्जवल पक्ष से चर्चा रत होता है।
धनु के द्वितीय सप्तांश मे जातक मृग नेत्र, गोल जांघे, पर धन हर्ता, विशेष रहस्य को जानने वाला, लम्बे हाथ, चौड़े नाक, कान वाला होता है।
धनु के तृतीय सप्तांश मे जातक क्रोधी, वक्ता, त्यागी, कृश सुगठित देह, स्त्री से कलह व ईर्ष्या, लाल नेत्र, ठिगना, मोर के समान आवाज वाला होता है।
धनु के चतुर्थ सप्तांश मे जातक ऊँचे कंधे, सुन्दर नाक, स्थूल देह, स्थूल व छोटी दाढ़ी, मृग नेत्र, वानर के समान स्वभाव वाला, गीत प्रिय होता है।
धनु के पंचम सप्तांश मे जातक विषम और चौड़े शरीर वाला, सुन्दर नाक और नेत्र वाला, दृढ़ निश्चयी, काव्य आदि कलाओ का ज्ञाता होता है।
धनु के षष्ठ सप्तांश मे जातक तपस्वी, सुन्दर, मृदुभाषी, सुकर्मी, चौड़े मुख व नेत्र वाला, गुणवान, मृगाल के समान गौरवर्ण, प्रारम्भ से स्वरक्षक या भरण-पोषण करने वाला होता है।
धनु के सप्तम सप्तांश मे जातक के दीर्घ होंठ, नाक, नेत्र, सुन्दर, सत्यवक्ता, सन्यासी के समान शरीर, शूरवीर, त्यागी, बड़े ललाट और कान वाला होता है।
मकर :
मकर के प्रथम सप्तांश मे जातक लघु वंशी, छोटी नाक, लम्बा, यशस्वी, श्याम वर्णी, काळा वस्त्र पहिनने वाला, भीरु, टेड़े स्वभाव वाला होता है।
मकर के द्वितीय सप्तांश मे जातक गौरवर्ण, विशाल शरीर, सुन्दर मुख, धनवान, मदमाती क्रिया वाला, निपुण, चंचल, संघर्ष प्रिय होता है।
मकर के तृतीय सप्तांश मे जातक कृश देह, रक्त वर्ण, उग्र, अहंकारी, साहसी, पर स्त्री प्रेमी, मादक चेष्टा वाला, विषम स्वभाव और सुन्दर होता है।
मकर के चतुर्थ सप्तांश मे जातक प्रसन्नचित्त, मृदुभाषी, बुद्धिमान, विशाल गाल, नेत्र, मोती गर्दन, स्त्री का इच्छुक, कमल समान पेट, श्यामवर्णी होता है।
मकर के पंचम सप्तांश मे जातक संगीत कला मे निरत अथवा सेना सेवा मे निरत, विशेष सम्मानीय, लम्बा, सांवला वर्ण, हिरण के समान गाल वाला होता है।
मकर के षष्ठ सप्तांश मे जातक स्वर्ण कान्ति वाला, विशाल, श्रेष्ठ, लोगो मे प्रिय, कमल समान नेत्र, तपस्वी, वेदो का ज्ञाता, कोमल होता है।
मकर के सप्तम सप्तांश मे जातक वृद्ध जांघे व शरीर वाला, संतानहीन, साहसी, लाल नेत्र, अभिमानी, चौड़ा नाक, कंठ, भोंहे व दांत वाला होता है।
कुम्भ :
कुम्भ के पहले सप्तांश मे जातक दुष्ट, दुर्बल देह, भेंगी आंख वाला, बड़े सिर वाला, शुक (तोता) जैसी नाक वाला, धृणित कार्य करने वाला, निंदनीय होता है।
कुम्भ के दूसरे सप्तांश मे जातक पके चमकदार बाल वाला, अधिक या अल्प बोलने वाला, विदीर्ण आँख या नाक वाला, प्यासा, मनस्वी, एकांत प्रिय होता है।
कुम्भ के तीसरे सप्तांश मे जातक बिल्ली के समान नेत्र वाला, चंचल मन, ताम्र वर्ण, मध्यम कद, भेद लेने वाला, चोर, नृत्य करने वाला, भूरे केश वाला होता है।
कुम्भ के चौथे सप्तांश मे जातक मधुर अल्प भाषी, पिपासु (तृष्णी) ऊंची नाक वाला, रक्त गौर वर्ण, मृग नेत्र, नीले वस्त्र धारण करने वाला, निपुण होता है।
कुम्भ के पांचवे सप्तांश मे जातक रूखे केश, झुके अंग, मिश्रित वर्ण वाला, सुन्दर मुख और नेत्र, प्रवास मे रुचिवान, शराब सेवन मे रुचिवान होता है।
कुम्भ के छठे सप्तांश मे जातक गौर वर्ण, निर्मल छवि वाला, विशाल नेत्र, सुन्दर मुख, व्रत व देव पूजा मे रत, अल्पभाषी, अंतर्मुखी होता है।
कुम्भ के सातवे सप्तांश मे जातक लम्बा, ताम्र नेत्र व शरीर, प्रसिद्ध, पराक्रमी, सत्यवादी, चौड़ी नाक व होंठ वाला, ऊँचा बोलने वाला भूरे केश वाला होता है।
मीन :
मीन के पहले सप्तांश मे जातक स्वाभाविक नेत्र, सुन्दर नाक व दांत, कमल समान कान्ति वाला, सुमति वाला, स्वतंत्र रहने वाला होता है।
मीनके दूसरे सप्तांश मे जातक ललाई युक्त श्वेत वर्णी, अल्प रोम, छोटा मुख, कमल सदृश्य हस्त, शूरवीर शत्रु संहारक, बलवान, साहसी होता है।
मीन के तीसरे सप्तांश मे जातक सुडोल देह, चौड़ा सुन्दर मुख, विशाल अंगो वाला, गीत जानने वाला, विनम्र, सुन्दर नाक, केश, भोंहे वाला होता है।
मीन के चौथे सप्तांश मे जातक मंत्री या सलाहकार, निश्चित अर्थ को जानने वाला, सम्पूर्ण, मृदुभाषी, पलाश के पत्तो जैसे विभक्त अंग वाला होता है।
मीन के पांचवे सप्तांश मे जातक गौर वर्णी, मांसल मुख, कमल समान कोमल नेत्र. पवित्र, निपुण, परामर्शदाता या मंत्री, शांत होता है।
मीन के छठे सप्तांश मे जातक धर्म मे निपुण, गौर वर्ण, गोल मुख, चौड़े सुन्दर कंधे, सुन्दर दांत , मछली के समान नेत्र वाला होता है।
मीन के सातवे सप्तांश मे जातक मलिन, भग्न यानि टेडी नाक वाला, टेड़ा स्वभाव, ख़राब वेश धारण करने वाला, दुष्ट मन, कुटिल आलसी होता है।
पहला सप्तांश (क्षार) ) 0 डिग्री से 4 डिग्री 17 मिनट 8 सैकंड तक | First Saptansh (Kshar) From 0 degree to 4 degrees 17 minutes and 8 seconds
प्रथम सप्तांश 0 से लेकर 4 डिग्री 17 मिनट 8 सैकंड तक होता है. पहले सप्तांश को क्षार भी कहा जाता है. यदि पंचम भाव या पंचमेश क्षार सप्तांश में हो तो इस सप्तांश को मिलेजुले परिणाम देने वाला माना गया है. पंचम भाव क्षार होने पर संतान माता पिता के लिए कष्ट प्रदान करने वाली हो सकती है .ऎसा होने पर माता पिता को संतान पक्ष की ओर से अपमान या अपयश भी प्राप्त हो सकता है.
दूसरा सप्तांश (क्षीर) 4 डिग्री अंश 17 मिनट 8 सैकंड से 8 डिग्री 34 मिनट 17 सैकंड तक | Second Saptansh (Kshir) From 4 degrees 17 minutes and 8 seconds to 8 degrees 34 minutes and 17 seconds
दूसरा सप्तांश 4 अंश 17 मिनट 8 सैकंड से 8 डिग्री 34 मिनट 17 सैकंड तक होता है. दूसरे सप्तांश को क्षीर नाम से जाना जाता है. यदि पंचम भाव या पंचमेश क्षीर सप्तांश में हो तो संतान माता पिता की सेवा करने वाली हो सकती है. बच्चे माता पिता की वृद्धावस्था में सहायता करने वाले होते हैं. बुढापे में जब माता पिता को संतान की सेवा की अत्यधिक आवश्यकता होती है तब यदि संतान पूर्ण निष्ठा भाव से सेवा करती है तो यह माता पिता के लिए बहुत ही सुखदायक स्थिति होती है.
तीसरा सप्तांश (दधि) 8 डिग्री 34 मिनट 17 सैकंड से 12 डिग्री 51 मिनट 25 सैकंड | Third Saptansh (Dadhi) From 8 degrees 34 minutes and 17 seconds to 12 degrees 51 minutes and 25 seconds
तीसरा सप्तांश (दधि) 8 डिग्री 34 मिनट 17 सैकंड से 12 डिग्री 51 मिनट 25 सैकंड तक का होता है. तीसरा सप्तांश दधि कलहाता है. पंचम भाव या पंचमेश दधि में पडे़ तो संतान सुंदर और रुपवान होती है. अच्छे गुणों से युक्त हो कर्त्तव्य परायण एवं कोमल गुण वाली हो सकती है. संतान द्वारा अभिभावक को सुख और सम्मान की प्राप्ति होती है. व्यक्ति संतान के सुख को भोगता है.
चौथा सप्तांश (आज्य) 12 डिग्री 51 मिनट 25 सैकंड से 17 डिग्री 8 मिनट 34 सैकंड | Fourth Saptansh (Aajya) From 12 degrees 51 minutes and 25 seconds to 17 degrees 8 minutes and 34 seconds
चौथा सप्तांश (आज्य) 12 डिग्री 51 मिनट 25 सैकंड से 17 डिग्री 8 मिनट 34 सैकंड तक का होता है. चतुर्थ सप्तांश को आज्य कहा जाता है. यदि पंचम भाव या पंचमेश आज्य भाव में होने से संतान श्रेष्ठ गुणों से युक्त हो सकती है तथा माता पिता को भरपूर सूख देने वाली कही गई है. ऎसी संतान से माता पिता को समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान की प्राप्ति कराने में सक्षम हो सकती है.
पांचवां सप्तांश (इक्षुरस) 17 डिग्री 8 मिनट 34 सैकंड से 21 डिग्री 25 मिनट 42 सैकंड | Fifth Saptansh (Ikshuras) From 17 degrees 8 minutes and 34 seconds to 21 degrees 25 minutes and 42 seconds
पांचवां सप्तांश (इक्षुरस) 17 डिग्री 8 मिनट 34 सैकंड से 21 डिग्री 25 मिनट 42 सैकंड तक का होता है. पंचम सप्तांश को इक्षुरस भी कहते हैं. पंचम भाव या पंचमेश यदि इक्षुरस में हो तो संतान बौद्धिक क्षमता वाली एवं शिक्षा में तेज होती है. संतान पक्ष की ओर से माता पिता को कोई कष्ट प्राप्त नहीं होता. ऎसी संतान कुटुम्ब को साथ लेकर चलने वाली हो सकती है तथा परिवार में संतुलन एवं शांति बनाए रखने का प्रयास करती है.
छठा सप्तांश (मद्य) 21 डिग्री 25 मिनट 42 सैकंड से 25 डिग्री 42 मिनट 51 सैकंड | Sixth Saptansh (Madya) From 21 degrees 25 minutes and 42 seconds to 25 degrees 42 minutes and 51 seconds
छठा सप्तांश (मद्य) 21 डिग्री 25 मिनट 42 सैकंड से 25 डिग्री 42 मिनट 51 सैकंड तक का होता है. छठा सप्तांश 21 डिग्री 25 मिनट 42 सैकंड से 25 डिग्री 42 मिनट 51 सैकंड तक का होता है. यह सप्तांश मद्य के नाम से भी जाना जाता है. पंचम भाव या पंचमेश का संबंध जब मद्य सप्तांश से होता है तब माता पिता को संतान की ओर से कष्ट प्राप्त हो सकते हैं. षष्ठेश से संबंध बनने पर संतान में नशीले पदार्थों का सेवन करने की प्रवृत्ति हो सकती है. बच्चे की यह बुरी आदत माता पिता के लिए कष्टकारक होती है.
सातवां सप्तांश (शुद्ध जल) 25 डिग्री 42 मिनट 51 सैकंड से 30 डिग्री तक | Seventh Saptansh (Shuddh Jal) From 25 degrees 42 minutes and 51 seconds to 30 degrees
सातवां सप्तांश 25 डिग्री 42 मिनट 51 सैकंड से 30 डिग्री तक होता है. यह सप्तांश शुद्ध जल कहलाता है. यदि पंचम भाव या पंचमेश सातवें सप्तांश में आता है तो संतान शुभ फलों को प्रदान करने वाली हो सकती है. संतान की ओर से माता पिता का हृदय सदा प्रसन्नचित रहता है. ऎसी संतान माता पिता के सभी आदेशों का पालन करने वाली और उनकी सेवा करने वाली होती है.
अन्यत्र सप्तमांश विचार :- सप्तमांश से केवल संतान का विचार करना चाहिये।
सप्तमांश लग्न का पुरुष ग्रह हो, तो जातक को पुत्र उत्पन्न होते है। सप्तमांश लग्न का स्वामी स्त्री ग्रह हो, तो कन्याए अधिक उत्पन्न होती है। यदि सप्तमांश लग्न का स्वामी पापग्रह हो, पापराशि मे हो, पापग्रह के साथ हो, तो संतान नीच कर्म करने वाली होती है।
सप्तांश लग्न का स्वामी स्वराशि शुभग्रह से युत या दृष्ट हो या शुभग्रह की राशि में स्थित हो, तो संतान अच्छे आचरण करने वाली, सुन्दर, सुशील गुणी होती है। सप्तमांश लग्न से छठे, आठवे स्थान मे पापग्रह हो या पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो जातक संतानहीन होता है।
मानसागरी अनुसार फलादेश -
सप्तांश का स्वामी चन्द्रमा से युत या दृष्ट या शुभग्रह से दृष्ट हो, तो जातक के सहोदर भाई बहन होते है। जातक उग्र कांति, यश, मित्र, प्रगल्भता से युत होता है। सप्तांश मे सूर्य को छोड़कर जितने ग्रह नीच मे स्थित हो और जो बली हो उस अनुसार भ्राता की चिंता हो। सप्तमांश में ग्रह उच्च का हो या शुभग्रह की राशि मे हो, तो जातक राज्य पूज्य, कार्य में सफल, धन संपन्न होता है।
सप्तमांश लग्न के अंतिम अंश जो ग्रह हो और वह यदि उच्च या स्वराशि का हो, तो जातक धोडो की सवारी मे कुशल, शुर व बंधुओ से त्यक्त होता है। सप्तमांश लग्न का स्वामी यदि उच्च का हो, तो जातक महाधनी और यदि नीच का हो, तो दरिद्री होता है।
सप्तमांश के तृतीय स्थान मे सूर्य, मंगल, गुरु हो, तो जातक सत्यवादिनी वरदायिनी लक्ष्मी भोगने वाला तथा पिता की मृत्यु पश्चात पुत्र का जन्म होता है। सप्तांश के तृतीय स्थान में चंद्र, बुध, शुक्र हो, तो पिता की मृत्यु पश्चात कन्या का जन्म होता है।
पराशर अनुसार सप्तमांश फलादेश
महर्षि पराशर ने सप्तमांश के अधिपतियो का नामकरण कर संतान फलादेश मे सरलता और सुगमता उत्पन्न की है। सप्तांश मे विषम राशि के भाग अनुसार क्रमशः 1 क्षार, 2 क्षीर, 3 दधि, 4 आज्य, 5 इक्षु, 6 मद्य, 7 जल ये स्वामी होते है। सम राशियो मे यही क्रम उल्टा जल, मद्य, इक्षु, आज्य, दधि, क्षीर, क्षार हो जाता है।
• क्षार - विषम राशि मे यह प्रथम और सम राशि में अंतिम है। जातक को संतान सुख कम रहता है। उसकी संतान क्रोधी, कटुभाषी, व्यंग करने वाली, चिंता बढ़ने वाली, असफल, असहाय होती है।
• क्षीर - विषम राशि मे दूसरा और सम राशि मे छठा है। जातक की संतान सुशील, सुन्दर, आज्ञाकारी, गुणवान होती है। जातक को संतान सुख रहता है।
• दधि - विषम राशि मे तीसरा और सम राशि मे पांचवा है। जातक की संतान विनम्र, स्थिर मति वाली, कोमल स्वभाव, पूर्ण अधिकार की इच्छुक, परिस्थिति अनुकूल आचरण करने वाली होती है।
• आज्य या आजम = तरल घी। विषम राशि और सम राशि मे चौथा है। जातक की संतान धार्मिक विचार और व्यवहार वाली, पवित्र मन, आदर सत्कार करने वाली, त्याग और बलदानी होती है।
• इक्षु - विषम राशि मे पांचवा और सम राशि मे तीसरा है। जातक की संतान मधुर भाषी, सौम्य व प्रिय स्वभाव वाली, सरल हृदयी, सुख-सुविधा देने वाली होती है।
• मद्य - विषम राशि मे छठा और सम राशि मे पांचवा है। जातक संतान खुश मिजाज, संतान से सुखी, जिन्दा दिल, सुख की वृद्धि करने वाली होती है।
• जल - विषम राशि मे सातवा और सम राशि मे पहला है। जातक की संतान सुख सुविधा धन वैभव व सम्मान की वृद्धि कर सुख देने वाली होती है।