12 राशियों के अनुसार उनके स्वामी ग्रह कौन-कौन से है ?
ज्योतिष के अनुसार 12 राशियों और 9 ग्रहों का वर्णन मिलता है | ये सभी 12 राशियाँ इन सभी 9 ग्रहों के द्वारा ही संचालित होती है | यानि प्रत्येक राशि किसी न किसी गृह के अधीन होती है | जिसमें से सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर सभी ग्रहों को 2-2 राशियाँ मिलती है | यानि सूर्य और चंद्रमा केवल एक-एक राशि के स्वामी है व अन्य सभी गृह दो – दो राशियों के स्वामी है(12 Rashi Swami Grah)| आइये जानते है कौन सी राशि किस गृह को संबोधित करती है : –
12 Rashi Swami Grah :
1. मेष राशि : मेष राशी का स्वामी गृह मंगल है | मंगलवार के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा करने से, मंगलवार को शिवलिंग पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होता है |
2. वृषभ राशि : वृषभ राशी के स्वामी गृह शुक्र गृह है | शुक्र देव को असुरों का गुरु माना गया है | इनकी आराधना के लिए आप शुक्रवार के दिन शिवलिंग पर दूध अर्पित करें | घर में पूजा के समय ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः इस मंत्र के अधिक से अधिक जप करने चाहिए
3. मिथुन राशि : मिथुन राशी के स्वामी गृह बुध गृह है | बुध को प्रसन्न करने के लिए हर बुधवार गाय को हरी घास खिलाना चाहिए। बुध को गणेश जी का दिन भी माना गया है | गणेश जी दूर्वा अर्पित करें व इस दिन उनकी पूजा करें |
4. कर्क राशि : कर्क राशि के स्वामी गृह चन्द्र देव है | चन्द्र देव का प्रिय दिन सोमवार है इसलिए चन्द्र देव को प्रसन्न करने के लिए सोमवार के दिन शिवलिंग पूजा करना विशेष रूप से फल प्रदान करने वाला है |
5. सिंह राशी : सिंह राशि के स्वामी गृह सूर्य देव है | सूर्य देव की पूजा करें | सूर्य देव को अर्ध्य ( जल अर्पित) दे |
6. कन्या राशी : कन्या राशी के स्वामी बुध गृह है | बुध को प्रसन्न करने के लिए हर बुधवार गाय को हरी घास खिलाना चाहिए। बुध को गणेश जी का दिन भी माना गया है | गणेश जी दूर्वा अर्पित करें व इस दिन उनकी पूजा करें |
7. तुला राशि : तुला राशि के स्वामी गृह शुक्र गृह है | शुक्र देव को असुरों का गुरु माना गया है | इनकी आराधना के लिए आप शुक्रवार के दिन शिवलिंग पर दूध अर्पित करें | घर में पूजा के समय ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः इस मंत्र के अधिक से अधिक जप करने चाहिए
8. वृश्चिक राशि : वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल गृह है | मंगलवार के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा करने से, मंगलवार को शिवलिंग पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होता है |
9. धनु राशि : धनु राशि के स्वामी गृह ब्रहस्पति है | इस राशी के लोग गुरु बृहस्पति की विशेष आराधना करें। गुरु ग्रह को प्रसन्न करने के लिए हर गुरुवार साबूत हल्दी का दान करें। साथ ही, पीले रंग के अन्न का दान भी कर सकते हैं, जैसे चने की दाल। शिवजी को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
10. मकर राशि : मकर राशि के स्वामी शनि देव है | शनिवार के दिन शानिमंदिर जाए | शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाएं | हनुमान जी की पूजा करें |
11. कुम्भ राशि : कुम्भ राशि के स्वामी शनि गृह है | शनि देव की पूजा करें | शनि मंदिर जाए और साथ ही हनुमान जी की भी पूजा करने से शनि देव प्रसन्न होते है |
12. मीन राशि : मीन राशी के स्वामी गृह ब्रहस्पति है | गुरुवार के दिन अधिक से अधिक दान कर्म आदि करें(12 Rashi Swami Grah) | गुरु देव की उपासना करें |
ग्रह | मित्र | शत्रु |
---|---|---|
सूर्य | चन्द्र, मंगल, गुरू | शनि, शुक्र |
चन्द्रमा | सूर्य, बुध | कोई नहीं |
मंगल | सूर्य, चन्द्र, गुरू | बुध |
बुध | सूर्य, शुक्र | चंद्र |
गुरू | सुर्य, चंन्द्र, मंगल | शुक्र, बुध |
शुक्र | शनि, बुध | शेष ग्रह |
शनि | बुध, शुक्र | शेष ग्रह |
राहु, केतु | शुक्र, शनि | सूर्य, चन्द्र, मंगल |
मेष राशि
चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ
वृषभ राशि
ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो
मिथुन राशि
का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह
कर्क राशि
ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो
सिंह राशि
मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे
कन्या राशि
ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो
तुला राशि
रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते
वृश्चिक राशि
तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू
धनु राशि
ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे
मकर राशि
भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी
कुंभ राशि
गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा
मीन राशि
दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची
चर, स्थिर और द्विस्वाभाव राशि
ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियों को स्वाभाव के अनुसार तीन भागों में बांटा गया है।
चर, स्थिर और द्विस्वाभाव राशि।
मेष, कर्क, तुला व मकर राशि चर राशि कहलाती हैं।
वृषभ, सिंह, वृश्चिक तथा कुम्भ राशि स्थिर राशी होती है एवं मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशियां द्विस्वाभाव राशियां होती हैं।
इन स्वाभाव के कारण इन राशियों पर अलग अलग प्रभाव पडता हैंl
चर राशि- चर का अर्थ चलायमान होता है, जो स्थिर नही है। ये राशियां चंचल व अस्थिरता को दर्शाती है। इनके अंदर धैर्य नही होता अत: ये लम्बी अवधी के कार्यो से दूर रहने की कोशिश करते हैं। चर राशि का प्रभाव व्यक्ति को मोटापा कम ही देता है अर्थात इस राशि का प्रभाव व्यक्ति को दुबला पतला सा बनाता है। शिक्षा में बार-बार बदलाव होता है। ऐसे जातक शारीरिक उर्जा अधिक खर्च करते है, खेल-कूद के शौकिन होते हैं।
सूर्य, चन्द्र, बुध व शुक्र की सप्तम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि माना गया है अर्थात् यह ग्रह जिस भाव में स्थित होंगे वहां से सप्तम् भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
शनि की सप्तम् के अतिरिक्त तृतीय व दशम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि माना गया है अर्थात् शनि जिस भाव में स्थित हैं वहां से सप्तम्, तृतीय व दशम् भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
मंगल की सप्तम् के अतिरिक्त चतुर्थ व अष्टम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि की मान्यता प्राप्त है अर्थात् मंगल जिस भाव में स्थित हैं वहां से सप्तम्, चतुर्थ व अष्टम् भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
गुरू व राहु-केतु की सप्तम् के अतिरिक्त पंचम् व नवम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि माना गया है अर्थात् गुरू व राहु-केतु जिस भाव में स्थित हैं वहाँ से सप्तम्, पंचम् व नवम् भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
चर, स्थिर और द्विस्वाभाव राशि।
मेष, कर्क, तुला व मकर राशि चर राशि कहलाती हैं।
वृषभ, सिंह, वृश्चिक तथा कुम्भ राशि स्थिर राशी होती है एवं मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशियां द्विस्वाभाव राशियां होती हैं।
इन स्वाभाव के कारण इन राशियों पर अलग अलग प्रभाव पडता हैंl
चर राशि- चर का अर्थ चलायमान होता है, जो स्थिर नही है। ये राशियां चंचल व अस्थिरता को दर्शाती है। इनके अंदर धैर्य नही होता अत: ये लम्बी अवधी के कार्यो से दूर रहने की कोशिश करते हैं। चर राशि का प्रभाव व्यक्ति को मोटापा कम ही देता है अर्थात इस राशि का प्रभाव व्यक्ति को दुबला पतला सा बनाता है। शिक्षा में बार-बार बदलाव होता है। ऐसे जातक शारीरिक उर्जा अधिक खर्च करते है, खेल-कूद के शौकिन होते हैं।
ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टियां :- Graha dristi
प्रत्येक ग्रह की सप्तम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि माना गया है लेकिन कुछ ग्रहों की विशेष दृष्टियां भी होती हैं। आईए जानते हैं कि नवग्रहों की दृष्टियां कैसी होती हैं।सूर्य, चन्द्र, बुध व शुक्र की सप्तम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि माना गया है अर्थात् यह ग्रह जिस भाव में स्थित होंगे वहां से सप्तम् भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
शनि की सप्तम् के अतिरिक्त तृतीय व दशम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि माना गया है अर्थात् शनि जिस भाव में स्थित हैं वहां से सप्तम्, तृतीय व दशम् भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
मंगल की सप्तम् के अतिरिक्त चतुर्थ व अष्टम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि की मान्यता प्राप्त है अर्थात् मंगल जिस भाव में स्थित हैं वहां से सप्तम्, चतुर्थ व अष्टम् भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
गुरू व राहु-केतु की सप्तम् के अतिरिक्त पंचम् व नवम् दृष्टि को पूर्ण दृष्टि माना गया है अर्थात् गुरू व राहु-केतु जिस भाव में स्थित हैं वहाँ से सप्तम्, पंचम् व नवम् भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
जन्म कुंडली के बारह भाव
ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियों के आधार पर जन्मकुंडली के बारह भावों की रचना की गई है जिन्हें द्वाद्वश भाव कहते हैं। आकाश मण्डल में बारह राशियों की तरह कुंडली में बारह भाव (द्वादश भाव) होते हैं। जन्म कुंडली या जन्मांग जन्म समय की स्थिति बताती है। प्रत्येक भाव हमारे जीवन की विविध अव्यवस्थाओं, विविध घटनाओं को दर्शाता है। जन्म पत्रिका ग्रहों की स्थिति और लग्न बताती है। जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है। कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं। भाव की राशि के स्वामी को भावेश कहा जाता है। भिन्न राशि वाले हर भाव का कारक निश्चित होता है। सभी बारह भाव भिन्न काम करते है और कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे होते हैं।
पृथ्वी की दैनिक गति के कारण बारह राशियों का चक्र चौबीस घंटों में हमारे क्षितिज का एक चक्कर लगा आता है। इनमें जो राशि क्षितिज में लगी होती है उसे लग्न कहते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि उस भाव में 1 नंबर है तो मेष लग्न होगा, उसी प्रकार 2 नंबर को वृषभ, 3 नंबर को मिथुन, 4 को कर्क, 5 को सिंह, 6 को कन्या, 7 को तुला, 8 को वृश्चिक, 9 को धनु, 10 को मकर, 11 को कुंभ व 12 नंबर को मीन लग्न कहेंगे। जन्मपत्री के मूल उपकरण लग्न और राशियाँ तथा नवग्रह - सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि हैं। इनमें लग्न शरीर स्थानीय हैं और शेष भाव शरीर से संबंधित वस्तुओं के रूप में गृहीत हैं।
शास्त्रों में 12 भावों के स्वरूप हैं और भावों के नाम के अनुसार ही इनका काम होता है। पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय और द्वादश व्यय भाव कहलाता है़।
बारह भावों के विभिन्न नाम एवं उनसे संबंधित विषयों का विवरण
प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य आदि विषयों का पता चलता है।
द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमूल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि विषयों का पता चलता है।
तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, अपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि विषयों का पता चलता है।
चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख आदि विषयों का पता चलता है।
पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र। पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्ठा आदि विषयों का पता चलता है।
षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि विषयों का पता चलता है।
सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, साझेदारी के व्यापार आदि विषयों का पता चलता है।
अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि विषयों का पता चलता है।
नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों का पता चलता है।
दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुषृय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्घ यात्राएं, सुख आदि विषयों का पता चलता है।
एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भाव से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि विषयों का पता चलता है।
द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि विषयों का पता चलता है।
आइए इनके बारे में विस्तार से जानें:
प्रथम भाव : इस भाव से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है। इससे हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, जीवन के संबंध में जानकारी मिलती है। विस्तृत रूप में इस भाव से जनस्वास्थ्य, मंत्रिमंडल की परिस्थितियों पर भी विचार जाना जा सकता है।
द्वितीय भाव : इसे भाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे मंज जाना जाता है। इससे हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी, विचार, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आँख, स्मरण शक्ति, नाक, ठुड्डी, दाँत, स्त्री की मृत्यु, कला, सुख, गला, कान, मृत्यु का कारण जाना जाता है। इस भाव से विस्तृत रूप में कैद यानी राजदंड भी देखा जाता है। राष्ट्रीय विचार से राजस्व, जनसाधारण की आर्थिक दशा, आयात एवं वाणिज्य-व्यवसाय आदि के बारे में भी इसी भाव से जाना जा सकता है
तृतीय भाव : इस भाव से जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें भाई, पराक्रम, साहस, मित्रों से संबंध, साझेदारी, संचार-माध्यम, स्वर, संगीत, लेखन कार्य, वक्षस्थल, फेफड़े, भुजाएँ, बंधु-बांधव आदि का ज्ञान मिलता है। राष्ट्रीय ज्योतिष के लिए इस भाव से रेल, वायुयान, पत्र-पत्रिकाएँ, पत्र व्यवहार, निकटतम देशों की हलचल आदि के बारे में जाना जाता है।
चतुर्थ स्थान : इस भाव से मातृसुख, गृह सौख्यि, वाहन सौख्यर, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें माता, स्वयं का मकान, पारिवारिक स्थिति, भूमि, वाहन सुख, पैतृक संपत्ति, मातृभूमि, जनता से संबंधित कार्य, कुर्सी, कुआँ, दूध, तालाब, गुप्त कोष, उदर, छाती आदि का पता किया जाता है। राष्ट्रीय ज्योतिष हेतु शिक्षण संस्थाएं, कॉलेज, स्कूल, कृषि, जमीन, सर्वसाधारण की प्रसन्नता एवं जनता से संबंधित कार्य एवं स्थानीय राजनीति, जनता के बीच पहचान आदि देखा जाता है।
पंचम भाव : इस भाव से संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यशनौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय जानी जाती है।
छठा भाव : इस भाव से जातक के शत्रुक, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है। इससे हमें शत्रु, रोग, ऋण, विघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-चाची, अपयश, चोट, घाव, विश्वासघात, असफलता, पालतू जानवर, नौकर, वाद-विवाद, कोर्ट से संबंधित कार्य, आँत, पेट, सीमा विवाद, आक्रमण, जल-थल सैन्य के के बारे में पता चलता है।
सातवाँ भाव : इस भाव से विवाह सौख्य, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान होता है। इससे हमें स्त्री से संबंधित, विवाह, सेक्स, पति-पत्नी, वाणिज्य, क्रय-विक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मूत्राशय, सार्वजनिक, गुप्त रोग तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोण से नैतिकता, विदेशों से संबंध, युद्ध का पता चलता हैं।
आठवाँ भाव : इस भाव से आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है। इससे हमे मृत्यु, आयु, मृत्यु का कारण, स्त्री धन, गुप्त धन, उत्तराधिकारी, स्वयं द्वारा अर्जित मकान, जातक की स्थिति, वियोग, दुर्घटना, सजा, लांछन आदि का पता चलता है।
नवम भाव: इसे भाव से आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताया जाता है। इससे हमें धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का निर्माण कराना, योजना विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य पता चलते है।
दसवाँ भाव : इस भाव से पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है। इससे हमें पिता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात, विद्रोह आदि के बारे में पता चलता है।
एकादश भाव : इसे भाव से मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है। इससे हमें मित्र, समाज, आकांक्षाएँ, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि पता चलता है।
द्वादश भाव: इस भाव से से कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है। इससे हमें व्यय, हानि, दंड, गुप्त शत्रु, विदेश यात्रा, त्याग, असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दुर्भाग्य, जेल, अस्पताल में भर्ती होना, बदनामी, भोग-विलास, बायाँ कान, बाईं आँख, ऋण आदि के बारे में जाना जाता है।
जन्म कुंडली के कारकत्व अर्थात 12 भावों से ज्ञात किये जा सकने वाले विषयों की जानकारी :
1. प्रथम लग्न, उदय, आद्य,तनु,जन्म, विलग्न, होय शरीर का वर्ण, आकृति, लक्षण, यश, गुण, स्थान, सुख दुख, प्रवास, तेज बल
2. द्वितीय स्व कुटुंब, वाणी, अर्थ, मुक्ति, नयन धन, नेत्र, मुख, विद्या, वचन, कुटुंब, भोजन, पैतॄक धन,
3. तॄतीय पराक्रम, सहोदर, सहज, वीर्य, धैर्य, भ्राता, पराक्रम, साहस, कंठ, स्वर, श्रवण, आभरण, वस्त्र, धैर्य, बल, मुल, फ़ल।
4. चतुर्थ सुख, पाताल, मातृ, विद्या, यान, यान, बंधु, मित्र, अंबु विद्या, माता, सुख, गौ, बंधु, मनोगुण, राज्य, यान, वाहन, भूमि, गॄह, हॄदय
5. पंचम बुद्धि, पितॄ, नंदन, पुत्र, देवराज, पंचक देवता, राजा, पुत्र, पिता, बुद्धि, पुण्य, यातरा, पुत्र प्राप्ति, पितृ विचार (सूर्य से)
6. षष्ठ रोग, अंग, शस्त्र, भय, रिपु, क्षत, रोग, श्त्रु, व्यसन, व्रण, घाव (मंगल से भी विचारणीय),
7. सप्तम जामित्र, द्यून, काम, गमन, कलत्र, संपत, अस्त। संपूर्ण यात्रा, स्त्री सुख, पुत्र विवाह (शुक्र से भी विचारणीय)
8. अष्टम आयु, रंध्र, रण, मॄत्यु, विनाश, आयु (शनि से भी विचारणीय)
9. नवम धर्म, गुरू, शुभ, तप, नव, भाग्य, अंक। भाग्य, प्रभाव, धर्म, गुरू, तप, शुभ (गुरू से भी विचारणीय)
10. दशम व्यापार, मध्य, मान, ज्ञान, राज, आस्पद, कर्म, आज्ञा, मान, व्यापार, भूषण, निद्रा, कॄषि, प्रवज्या, आगम, कर्म, जीवन, जिविका, वृति, यश, विज्ञान, विद्या,
11. एकादश भव, आय, लाभ संपूर्ण धन प्राप्ति, लोभ, लाभ, लालच, दासता
12. द्वादश व्यय, लंबा सफ़र, दुर्गति, कुत्ता, मछली, मोक्ष, भोग, स्वप्न, निद्रा, (शनि राहु से भी विचारणीय)
वर्तमान समय में व्यक्ति के व्यवसाय का प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण बन चुका है। जन्म कुंडली के आधार पर व्यवसाय के बारे में बताया जाता है। ये सब भावों की दशा जानकर बताया जा सकता है। आइये जानें 12 भाव और व्यवसाय विषय सम्बन्धी जानकारी :
1. पहले भाव में हो तो व्यक्ति सरकारी सेवा करता है या उसका निज का स्वतंत्र व्यवसाय होता है।
2. दूसरे भाव में हो तो बैंकिंग, अध्यापन, वकालत, पारिवारिक काम, होटल व रेस्तरां, आभूषण एवम नेत्रों का चिकित्सक या ऐनकों से सम्बंधित व्यवसाय होगा।
3. तीसरे भाव में हो तो रेलवे, परिवहन, डाक एवम तार, लेखन, पत्रकारिता, मुद्रण, साहसिक कार्य, नौकरी, गायन-वादन से सम्बंधित व्यवसाय होगा।
4. चौथे भाव में हो तो खेती -बाड़ी, नेवी, खनन, जमीन-जायदाद, वाहन उद्योग, जनसेवा, राजनीति, लोक निर्माण विभाग, जल परियोजना, आवास निर्माण, आर्किटेक्ट, सहकारी उद्यम इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
5. पांचवें भाव में हो तो शिक्षण, शेयर मार्केट, आढत-दलाली, लाटरी, प्रबंधन, कला-कौशल, मंत्री पद, लेखन,फिल्म निर्माण इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
6. छठे भाव में हो तो जन स्वास्थ्य, नर्सिंग होम, अस्त्र -शस्त्र, सेना, जेल, चिकित्सा, चोरी, आपराधिक कार्य, मुकद्दमेबाजी तथा पशुओं इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
7. सातवें भाव में हो तो विदेश सेवा, आयात-निर्यात, सहकारी उद्यम, व्यापार, यात्राएं, रिश्ते कराने का काम इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
8. आठवें भाव में हो तो बीमा, जन्म -मृत्यु विभाग,वसीयत, मृतक का अंतिम संस्कार कराने का काम, आपराधिक कार्य, फाईनैंस इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
9. नवें भाव में हो तो पुरोहिताई, अध्यापन, धार्मिक संस्थाएं, न्यायालय, धार्मिक साहित्य, प्रकाशन शोध कार्य इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
10. दसवें भाव में हो तो राजकीय एवम प्रशासकीय सेवा, उड्डयन क्षेत्र, राजनीति, मौसम विभाग, अन्तरिक्ष, पैतृक कार्य इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
11. ग्यारहवें भाव में हो तो लोक या राज्य सभा पद, आयकर, बिक्री कर, सभी प्रकार के राजस्व, वाहन, बड़े उद्योग इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
12. बारहवें भाव में हो तो कारागार, विदेश प्रवास,राजदंड इत्यादि से सम्बंधित व्यवसाय हो सकता है।
भावों (Houses) से विचारित विषय
पहला भाव (1st house)
पहले भाव को ही लग्न कहा जाता है | जन्म कुंडली में सबसे पहले बालक या बालिका की जन्म तिथि , जन्म समय और जन्म स्थान के अक्षांश –रेखांश के आधार पर विशेष गणितीय प्रक्रिया से लग्न स्पष्ट किया जाता है | लग्न में स्थित राशि के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है | लग्न से आकृति,कद, आयु,वर्ण,शारीरिक स्वास्थ्य, सिर पीड़ा,गुण स्वभाव,सिर,चरित्र,बाल्यावस्था ,सुख-दुःख,दादी,नाना आदि का विचार किया जाता है |
दूसरा भाव (2nd house)
दूसरे भाव को धन भाव कहा जाता है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को धनेश कहा जाता है |धन भाव से धन ,चल संपत्ति ,वाणी,मुख ,चेहरा,पारिवारिक सुख,खान –पान ,स्वर्णादि धातुएं,नेत्र,आभूषण , संतान का व्यवसाय ,क्रय-विक्रय आदि का विचार किया जाता है |
तीसरा भाव (3rd house)
तीसरे भाव को पराक्रम कहा जाता है जिस में स्थित राशि के स्वामी को तृतीयेश या सह्जेश कहा जाता है| इस भाव से साहस,धैर्य , छोटे भाई-बहिन ,कान,बाजू,गले एवम श्वास के रोग, हाथ,शुभाशुभ समाचार,पति/पत्नी का भाग्य ,पिता की बीमारी अथवा शत्रु आदि का विचार किया जाता है |
चौथा भाव (4thhouse)
चौथे भाव को सुख कहा जाता है जिस में स्थित राशि के स्वामी को चतुर्थेश या सुखेश कहा जाता है | इस भाव से माता ,सुख,अचल संपत्ति,छाती ,हृदय ,फेफड़े,वाहन,जल,जनप्रियता,मन ,श्वसुर,मनोरथ,खेत,बाग़,मित्र,सम्बन्धी आदि का विचार किया जाता है |
पांचवां भाव ( 5thhouse)
पांचवें भाव को सुत तथा धी कहा गया है जिस में स्थित राशि के स्वामी को पंचमेश या सुतेश कहा जाता है|इस भाव से संतान,बुद्धि, योग्यता,शिक्षा,इष्ट देवता,लाटरी,जिगर,उदर ,लेखन,प्रबंध ,पिता की आयु ,पत्नी की आय इत्यादि का विचार किया जाता है |
छटा भाव ( 6thhouse)
छ्टे भाव को शत्रु कहा गया है जिस में स्थित राशि के स्वामी को षष्टेश या रोगेश कहा जाता है| इस भाव से रोग,शत्रु,मामा,मौसी,चोट,मुकद्दमा ,अंग-भंग ,जेलयात्रा ,ऋण ,कमर,आंत आदि का विचार किया जाता है |
सातवाँ भाव ( 7thhouse)
सातवें भाव को काम कहा गया है जिस में स्थित राशि के स्वामी को सप्तमेश या कामेश कहा जाता है| इस भाव से काम सुख ,विवाह,दाम्पत्य जीवन,यात्रा,व्यापार,पति अथवा पत्नी , साझेदारी ,मूत्राशय ,पुरुष और स्त्री के प्रजनन अंग इत्यादि का विचार किया जाता है |
आठवाँ भाव ( 8thhouse)
आठवें भाव को मृत्यु कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को अष्टमेश या रंध्रेश कहा गया है | इस भाव से आयु ,मृत्यु ,मृत्यु का कारण,गुदा ,दुर्घटना ,गुप्त धन ,दीर्घकालिक रोग,वसीयत-बीमा,जीवन साथी का धन तथा वाणी आदि का विचार किया जाता है |
नवां भाव ( 9thhouse)
नवेँ भाव को धर्म और भाग्य कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को नवमेश या भाग्येश कहा जाता है |इस भाव से धर्म, भाग्य ,पुण्य,तीर्थ यात्रा,आध्यात्म ज्ञान,गुरु,जांघ ,साला या साली,पौत्र या पौत्री आदि का विचार किया जाता है |
दशम भाव ( 10thhouse)
दसवें भाव को पिता ,कर्म और राज्य कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को दशमेश ,राज्येश,कर्मेश कहा जाता है | इस भाव से कर्म,व्यवसाय ,व्यापार,यश-मान,सफलता-असफलता,पिता,राज्य,सरकार,सरकारी नौकरी,पदवी, राजयोग ,पारितोषिक ,विदेश यात्रा ,हवाई यात्रा ,अधिकार,राजनीति,घुटना आदि का विचार किया जाता है |
ग्यारहवां भाव ( 11thhouse)
ग्यारहवें भाव को आय ,लाभ कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को एकादशेश ,लाभेश या आयेश कहा जाता है | इस भाव से व्यवसाय से होने वाली आय,लाभ ,सुख ऐश्वर्य के साधन, पिता और राज्य से मिलने वाला धन ,पुत्रवधू और दामाद ,घुटने से पैर तक टांग का भाग ,कान आदि का विचार किया जाता है |
बारहवां भाव ( 12thhouse)
बारहवें भाव को व्यय तथा हानि कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को द्वादशेश तथा व्ययेश कहा जाता है |इस भाव से सभी प्रकार के व्यय,हानि ,प्रवास,पतन,निद्रा,राजदंड ,परदेश गमन ,भोग,मोक्ष, बायाँ नेत्र,पैर ,चाचा- बुआ ,पुत्र या पुत्री की आयु ,पति –पत्नी के रोग आदि का विचार किया जाता है |
भावों की केन्द्र आदि संज्ञा
केन्द्र
पहले ,चौथे ,सातवें और दसवें भाव को केन्द्र कहा जाता है तथा इनके स्वामियों अर्थात इनमें स्थित राशियों के स्वामियों को केन्द्रेश अथवा केन्द्राधिपति कहा जाता है |
त्रिकोण
पहले ,पांचवें ,नवेँ भाव को त्रिकोण कहा जाता है तथा इनके स्वामियों अर्थात इनमें स्थित राशियों के स्वामियों को त्रिकोणेश कहा जाता है | लग्न अर्थात पहला भाव केन्द्र भी है और त्रिकोण भी |
केन्द्र और त्रिकोण में स्थित ग्रह बलवान और शुभकारक होते हैं |
त्रिक
छ्टे ,आठवें और बारहवें भाव को त्रिक कहा जाता है तथा इनके स्वामियों को त्रिकेश कहा जाता है | त्रिक में स्थित ग्रह तथा त्रिकेश अशुभ फल देने वाले होते हैं |
उपचय
तीसरा ,छटा ,दसवां ,ग्यारहवां भाव उपचय कहलाता है | इसमें स्थित बलवान ग्रह वृद्धि कारक होते हैं |
मारक
दूसरा और सातवाँ भाव मारक कहलाता है | इन भावों के स्वामी मारक कहलाते हैं जो अपनी दशा-अन्तर्दशा में मृत्यु कारक होते हैं |
भावों (Houses) से विचारित विषय
पहला भाव (1st house)
पहले भाव को ही लग्न कहा जाता है | जन्म कुंडली में सबसे पहले बालक या बालिका की जन्म तिथि , जन्म समय और जन्म स्थान के अक्षांश –रेखांश के आधार पर विशेष गणितीय प्रक्रिया से लग्न स्पष्ट किया जाता है | लग्न में स्थित राशि के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है | लग्न से आकृति,कद, आयु,वर्ण,शारीरिक स्वास्थ्य, सिर पीड़ा,गुण स्वभाव,सिर,चरित्र,बाल्यावस्था ,सुख-दुःख,दादी,नाना आदि का विचार किया जाता है |
दूसरा भाव (2nd house)
दूसरे भाव को धन भाव कहा जाता है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को धनेश कहा जाता है |धन भाव से धन ,चल संपत्ति ,वाणी,मुख ,चेहरा,पारिवारिक सुख,खान –पान ,स्वर्णादि धातुएं,नेत्र,आभूषण , संतान का व्यवसाय ,क्रय-विक्रय आदि का विचार किया जाता है |
तीसरा भाव (3rd house)
तीसरे भाव को पराक्रम कहा जाता है जिस में स्थित राशि के स्वामी को तृतीयेश या सह्जेश कहा जाता है| इस भाव से साहस,धैर्य , छोटे भाई-बहिन ,कान,बाजू,गले एवम श्वास के रोग, हाथ,शुभाशुभ समाचार,पति/पत्नी का भाग्य ,पिता की बीमारी अथवा शत्रु आदि का विचार किया जाता है |
चौथा भाव (4thhouse)
चौथे भाव को सुख कहा जाता है जिस में स्थित राशि के स्वामी को चतुर्थेश या सुखेश कहा जाता है | इस भाव से माता ,सुख,अचल संपत्ति,छाती ,हृदय ,फेफड़े,वाहन,जल,जनप्रियता,मन ,श्वसुर,मनोरथ,खेत,बाग़,मित्र,सम्बन्धी आदि का विचार किया जाता है |
पांचवां भाव ( 5thhouse)
पांचवें भाव को सुत तथा धी कहा गया है जिस में स्थित राशि के स्वामी को पंचमेश या सुतेश कहा जाता है|इस भाव से संतान,बुद्धि, योग्यता,शिक्षा,इष्ट देवता,लाटरी,जिगर,उदर ,लेखन,प्रबंध ,पिता की आयु ,पत्नी की आय इत्यादि का विचार किया जाता है |
छटा भाव ( 6thhouse)
छ्टे भाव को शत्रु कहा गया है जिस में स्थित राशि के स्वामी को षष्टेश या रोगेश कहा जाता है| इस भाव से रोग,शत्रु,मामा,मौसी,चोट,मुकद्दमा ,अंग-भंग ,जेलयात्रा ,ऋण ,कमर,आंत आदि का विचार किया जाता है |
सातवाँ भाव ( 7thhouse)
सातवें भाव को काम कहा गया है जिस में स्थित राशि के स्वामी को सप्तमेश या कामेश कहा जाता है| इस भाव से काम सुख ,विवाह,दाम्पत्य जीवन,यात्रा,व्यापार,पति अथवा पत्नी , साझेदारी ,मूत्राशय ,पुरुष और स्त्री के प्रजनन अंग इत्यादि का विचार किया जाता है |
आठवाँ भाव ( 8thhouse)
आठवें भाव को मृत्यु कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को अष्टमेश या रंध्रेश कहा गया है | इस भाव से आयु ,मृत्यु ,मृत्यु का कारण,गुदा ,दुर्घटना ,गुप्त धन ,दीर्घकालिक रोग,वसीयत-बीमा,जीवन साथी का धन तथा वाणी आदि का विचार किया जाता है |
नवां भाव ( 9thhouse)
नवेँ भाव को धर्म और भाग्य कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को नवमेश या भाग्येश कहा जाता है |इस भाव से धर्म, भाग्य ,पुण्य,तीर्थ यात्रा,आध्यात्म ज्ञान,गुरु,जांघ ,साला या साली,पौत्र या पौत्री आदि का विचार किया जाता है |
दशम भाव ( 10thhouse)
दसवें भाव को पिता ,कर्म और राज्य कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को दशमेश ,राज्येश,कर्मेश कहा जाता है | इस भाव से कर्म,व्यवसाय ,व्यापार,यश-मान,सफलता-असफलता,पिता,राज्य,सरकार,सरकारी नौकरी,पदवी, राजयोग ,पारितोषिक ,विदेश यात्रा ,हवाई यात्रा ,अधिकार,राजनीति,घुटना आदि का विचार किया जाता है |
ग्यारहवां भाव ( 11thhouse)
ग्यारहवें भाव को आय ,लाभ कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को एकादशेश ,लाभेश या आयेश कहा जाता है | इस भाव से व्यवसाय से होने वाली आय,लाभ ,सुख ऐश्वर्य के साधन, पिता और राज्य से मिलने वाला धन ,पुत्रवधू और दामाद ,घुटने से पैर तक टांग का भाग ,कान आदि का विचार किया जाता है |
बारहवां भाव ( 12thhouse)
बारहवें भाव को व्यय तथा हानि कहा गया है जिसमें स्थित राशि के स्वामी को द्वादशेश तथा व्ययेश कहा जाता है |इस भाव से सभी प्रकार के व्यय,हानि ,प्रवास,पतन,निद्रा,राजदंड ,परदेश गमन ,भोग,मोक्ष, बायाँ नेत्र,पैर ,चाचा- बुआ ,पुत्र या पुत्री की आयु ,पति –पत्नी के रोग आदि का विचार किया जाता है |
भावों की केन्द्र आदि संज्ञा
केन्द्र
पहले ,चौथे ,सातवें और दसवें भाव को केन्द्र कहा जाता है तथा इनके स्वामियों अर्थात इनमें स्थित राशियों के स्वामियों को केन्द्रेश अथवा केन्द्राधिपति कहा जाता है |
त्रिकोण
पहले ,पांचवें ,नवेँ भाव को त्रिकोण कहा जाता है तथा इनके स्वामियों अर्थात इनमें स्थित राशियों के स्वामियों को त्रिकोणेश कहा जाता है | लग्न अर्थात पहला भाव केन्द्र भी है और त्रिकोण भी |
केन्द्र और त्रिकोण में स्थित ग्रह बलवान और शुभकारक होते हैं |
त्रिक
छ्टे ,आठवें और बारहवें भाव को त्रिक कहा जाता है तथा इनके स्वामियों को त्रिकेश कहा जाता है | त्रिक में स्थित ग्रह तथा त्रिकेश अशुभ फल देने वाले होते हैं |
उपचय
तीसरा ,छटा ,दसवां ,ग्यारहवां भाव उपचय कहलाता है | इसमें स्थित बलवान ग्रह वृद्धि कारक होते हैं |
मारक
दूसरा और सातवाँ भाव मारक कहलाता है | इन भावों के स्वामी मारक कहलाते हैं जो अपनी दशा-अन्तर्दशा में मृत्यु कारक होते हैं |
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