यदि हम नक्षत्रों को साथ लेकर चलते हैं तो हम गहराई से किसी भी रिश्ते के बारे में जान सकते हैं।
जैसे कि मेरी ससुराल कैसी होगी | मेरी सास के साथ मेरी बनेगी या नहीं | साले और सालियाँ या जीजा और बड़ी बहन के विषय में राहू और राहू के नक्षत्रों से काफी कुछ जाना जा सकता है |
चंद्रमा माता है और सूर्य पिता हैं |
बुध से छोटी या बड़ी बहन का विचार किया जाता है | मंगल भाई का कारक है |
गुरु स्त्री की कुंडली में पति का परिचायक है । और किसी भी स्त्री की कुंडली में गुरु का अच्छा होना अच्छे विवाह के लिया जरूरी है.
राहू से ससुराल और ससुराल से जुड़े सभी लोगों का पता लगाया जाता है |
इसी तरह हम जन्मकुंडली में भी देख सकते हैं | पहला घर यानी आप | आपसे सातवाँ घर आपकी पत्नी का है |
यदि पत्नी के भाई का विचार करना हो तो पत्नी का स्थान यानी सातवाँ और सातवें से तीसरा पत्नी के भाई का होता है | इस तरह नौवें घर से आप अपने साले और सालियों के बारे में जान सकते हैं |
विवाह से पहले अधिकतर लड़कियां अपनी ससुराल के बारे में जानना चाहती हैं यानी उनके ससुर कैसे होंगे |
देवर, देवरानी जेठ, जेठानी, ननद, जीजा और सास ससुर के साथ सम्बन्ध कैसे रहेंगे |
क्या लम्बे समय तक आपके सम्बन्ध कायम रहेंगे ? क्या आपको सास या ससुर से प्यार मिलेगा?
इसी तरह के सवालों के जवाब के लिए आपको ये समझ होनी आवश्यक है कि जिस स्थान में पाप ग्रह या कुपित ग्रह या नीच का ग्रह बैठा है उस घर से सम्बंधित सभी रिश्तों से आपको निराशा ही मिलेगी |
जैसे कि दशम भाव में राहू होने से आपकी ससुराल आपके लिए न के बराबर रहेगी यानी संबंधों में न्यूनता |
यदि आपका शनि नीच का है तो आपके घर में बुजुर्गों का हमेशा अभाव रहेगा |
यदि राहू आपकी कुंडली में अच्छा नहीं है तो ससुराल से आपको कोई विशेष लाभ नहीं होगा और यदि आपका राहू अच्छा है तो ससुराल से न केवल आपके जीवन भर मधुर सम्बन्ध जुड़े रहेंगे अपितु समय समय पर ससुराल से मदद भी मिलेगी |
सास-ससुर और ज्योतिष:
सास के लिए स्त्री के घर से चौथे घर अर्थात दसवें घर से विचार करना चाहिए। ससुर के लिए स्त्री भाव से दशम घर अर्थात कुंडली के चौथे भाव से विचार करना चाहिए। छोटे साले और सालियों के लिए सप्तम भाव से तृतीय गृह अर्थात कुंडली के चतुर्थ भाव से विचार किया जाता है। बड़े साले व सालियों के लिए सप्तम भाव से ग्यारहवां घर अर्थात कुंडली के पांचवें भाव पर विचार करना चाहिए।
बड़े भाई एवं बहनों का विचार एकादश भाव से किया जाता है। पुत्र, बड़ी भाभी और बड़े जीजा का विचार एकादश भाव से सप्तम गृह अर्थात कुंडली के पंचम भाव से करना चाहिए। स्त्री जातक के जेठ और जेठानी का विचार करते समय पंचम भाव से जेठ का तथा एकादश भाव से जेठानी का विचार करना चाहिए। तृतीय भाव से देवरानी तथा नवम भाव से देवर का विचार करना चाहिए।
आइए ज्योतिषीय दृष्टिकोण से इस मामले को समझा जाय। कुंडली का सप्तम भाव जीवन साथी का भाव होता है और कुंडली का चौथा भाव मां का भाव होता है। अब इससे सास के बारे में कैसे जाना जाए?
ज्योतिष के अनुसार कुंडली का दशम भाव जो सप्तम से चतुर्थ भाव होता है उससे हम सास के बारे में जान सकते हैं। उस भाव में स्थित राशि, उसके स्वामी की स्थिति तथा उस भाव में बैठे ग्रह और दृष्टि आदि माध्यम से उस भाग को प्रभावित करने वाले ग्रहों के अनुसार हम जातक या जातिका की सास के स्वभाव के बारे में जान सकते हैं।
यदि दशम भाव में एक से अधिक पाप ग्रहों का प्रभाव होता है तो सास के साथ असमंजस से देखा जा सकता है। हालांकि ऐसा मेरे अनुभव में देखने को मिला है कि दशम भाव में स्थित पाप ग्रह जातक या जातिका के कार्यक्षेत्र को आगे बढ़ाते हैं लेकिन वही ग्रह सास के साथ संबंधों को कमजोर करते हैं। यदि किसी स्त्री जातिका की कुंडली में दशम भाव पर एक से अधिक पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातिका कामकाजी होती है लेकिन उसकी सास उसके काम का विरोध करती हुई देखी जाती है।
यदि कुंडली में के दशम भाव में एक से अधिक पाप ग्रहों का प्रभाव हो और जातिका हाउसवाइफ हो यानी कि कामकाजी न हो तो विवाद की संभावना अधिक रहती है। क्योंकि कामकाजी व्यक्ति को विवाद करने का समय नहीं मिलता, वह अपने काम में ही उलझा रहता है और जब थोड़ा बहुत समय मिलता है तो वह सुकून ढूंढता है, जिसे वह परिजनों के माध्यम से प्राप्त करना चाहता है। आपने देखा होगा कि कामकाजी महिलाएं दिनभर ऑफिस से काम करके जब घर लौटती हैं तो वह इतनी थक चुकी होती है कि अगर अपने घर वालों से थोड़ी सी बात करती हैं, घर के काम निपटाती हैं और आराम करना चाहती हैं। साथ ही दिन भर अलग अलग रहने से भी विवाद की संभावनाएं कम रहती हैं। अतः जिनकी कुंडली का दशम भाव एक से अधिक पाप ग्रहों के प्रभाव से युक्त हो ऐसी महिलाओं को घर से बाहर जाकर काम करने की सलाह हम दिया करते हैं।
यदि दशम में एक से अधिक पाप ग्रह बैठे हो तो वह चतुर्थ भाव को देखते हैं अथवा चतुर्थ में एक से अधिक भाव पाप ग्रह बैठे हो तो वह दशम भाव को देखते हैं यानी दशम यह चतुर्थ दोनो में से किसी भाव में अगर पाप ग्रह बैठे हैं तो वह घरेलू सुख शांति को बाधा पहुंचाते हैं, मानसिक अशांति देते हैं और चिड़चिड़ापन भी देते हैं। ऐसी स्थिति में घरेलू विवाद बढ़ जाता है।
इसके अलावा जन्मपत्री में उपस्थित कमजोर, नीच राशि या पाप ग्रह के साथ बैठा चंद्रमा भी सास बहू के बीच झगड़ा करवाता है। यह भी देखने को मिला है कि सास बहू दोनों की अथवा कम से कम 2 में से 1 की कुंडली में चंद्रमा केतु या चंद्रमा शनि का संबंध देखने को मिलता है।
सारांश की कुंडली का दशम भाव एक से अधिक पाप ग्रहों के प्रभाव में हो अथवा चतुर्थ भाव एक से अधिक पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तब सास बहू के बीच झगड़ा होता है। दूसरी स्थिति जो अक्सर देखने को मिलती है वो है चंद्रमा पर राहु, केतु और शनि जैसे पाप ग्रहों का प्रभाव। यह प्रभाव में मानसिक तनाव व घरेलू कलक के योग बनाता है। ऐसे में हमने सास बहू के बीच झगड़े होते हुए देखे गए हैं।
इस विवाद को शांत करने के लिए क्या करना चाहिए तो आप जान लें कि सबसे पहले किसी अच्छे ज्योतिषी को कुंडली दिखाकर झगड़े कारक ग्रह को ढूंढ़े। जब आप यह जान लेंगे कि इस ग्रह के कारण आपके घर में यह परेशानी आ रही है तो संबंधित ग्रह का उपाय करवाएं। संबंधित ग्रह के मंत्र का जप और हवन करवाएं। जब तक ग्रह शांति का अनुष्ठान हो पाए तब तक कुछ छोटे-छोटे टिप्स जो हम आपको बताने जा रहे हैं उन्हें अपनाएं।
टिप्स ये हैं कि-
कभी भी किसी बाहर के व्यक्ति से उपहार में सफेद चीजें, चांदी, पानी और दूध जैसी चीजें नहीं लेनी चाहिए बल्कि खाने या लगाने के रूप में केसर का प्रयोग करना चाहिए .
प्रत्येक चौथे महीने ‘रुद्राभिषेक‘ करवाना चाहिए।
रोज या कम से कम सोमवार के दिन शिवलिंग पर दूध मिला जल चढ़ाना चाहिए। इससे तुलनात्मक रूप से बेहतरीका अनुभव होगा।
जल्द ही हम अन्य लेखों के साथ साथ सास बहू से जुड़े अन्य पहलू भी रखेंगे।
जातक की जन्म कुंडली के नवम् भाव से पिता का विचार किया जाता है। जिस प्रकार स्त्री की कुंडली के सप्तम् भाव से पति का विचार किया जाता है, उसी प्रकार मातृ भाव अर्थात चतुर्थ भाव से सप्तम् घर अर्थात कुंडली के दशम भाव से ही पिता का विचार किया जाना चाहिए।
तृतीय भाव से सातवें घर अर्थात कुंडली के नवम घर से छोटे भाई की पत्नी और छोटी बहन के पति का विचार किया जा सकता है। पंचम भाव से सप्तम घर अर्थात ग्यारहवें भाव से पुत्रवधू का विचार किया जा सकता है।
मातृ भाव अर्थात तीसरे घर से मामा और मौसी का विचार किया जा सकता है। मातृ भाव से चतुर्थ अर्थात कुंडली के सप्तम भाव से स्त्री के अलावा माता की माता अर्थात नानी का विचार किया जाता है। नाना के विचार के लिए मातृ भाव से दशम भाव अर्थात कुंडली के प्रथम भाव से विचार किया जा सकता है। जातक के चाचा एवं बुआ का विचार पितृ भाव अर्थात दशम भाव से तीसरे गृह अर्थात कुंडली के द्वादश भाव से करना चाहिए। जातक के दादा का विचार दशम भाव से दसवें गृह अर्थात कुंडली के सातवें गृह से करना चाहिए। दादी के लिए कुंडली के प्रथम भाव से विचार करें।
जातक के ताऊ के विचार के लिए पितृ भाव से ग्यारहवें गृह अर्थात कुंडली के अष्टम भाव से विचार करना चाहिए। ताई के लिए अष्टम भाव से सप्तम भाव अर्थात कुंडली के द्वितीय भाव से विचार करना चाहिए। चाचा और बुआ का विचार बारहवें भाव से किया जाता है इसलिए चाची और फूफा का विचार कुंडली के षष्ठ भाव से करना चाहिए। मामी और मौसा का विचार छठे भाव से सप्तम गृह अर्थात कुंडली के बारहवें भाव से करना चाहिए।
इस प्रकार जन्म कुंडली के प्रत्येक भाव से किसी न किसी संबंधी का विचार किया जा सकता है। यदि जातक के अपनी माता से मधुर संबंध हैं तो उसका ससुर से संबंध मधुर ही रहेगा। यदि पति के साथ अच्छे संबंध हैं तो सास के साथ भी संबंध ठीक रहेंगे। नानी के सफल गृहिणी होने की स्थिति में पत्नी भी सफल गृहिणी होगी। यदि स्वभाव अपने नाना और अपनी दादी के समान है तो पत्नी का स्वभाव दादा और नानी जैसा तथा पुत्र का स्वभाव बड़े साले या बड़े जीजा के स्वभाव के समान होगा।
स्वयं लग्न और लग्नेश भी संपूर्ण शरीर तथा मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है। लग्न में बैठे ग्रह भी व्याधि के कारक होते हैं। लग्नेश की अनिष्ट भाव में स्थिति भी रोग को दर्शाती है। इस पर पाप-ग्रहों की दृष्टि भी इसी तथ्य को प्रकट करती है। विभिन्न ग्रह विभिन्न अंग-प्रत्यंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसे बुध त्वचा, मंगल रक्त, शनि स्नायु, सूर्य अस्थि, चंद्र मन आदि का। लग्न में इन ग्रहों की स्थिति उनसे संबंधित तत्व का रोग बताएगी और लग्नेश की स्थिति भी।
लग्न से जहां जातक की आत्मा देखी जाती है, वहीं दूसरे भाव से उसके परिवार के बारे में पता चलता है। तीसरा भाव भाइयों और मित्रों के बारे में जानकारी देता है। चौथा भाव पारिवारिक वातावरण और जिस घर में रह रहा है वहां के बारे में बताता है। पंचम भाव संतान के बारे में सूचित करता है। छठा भाव मामा और ननिहाल की जानकारी देता है, सातवां भाव पत्नी और सहयोगी के बारे में बताता है। आठवां भाव ससुराल और ससुराल से जुड़े रिश्तेदारियों के बारे में सूचना देता है, नौंवा भाव पिता और पिता के परिवार में शामिल दादा-दादी के बारे में बताता है, दसवां भाव पिता के कुल की जानकारी देता है। ग्यारहवां भाव बड़े भाई अथवा पथ प्रदर्शक के बारे में बताता है और बारहवां भाव पड़ोसियों और मामी-चाची आदि के बारे में जानकारी देता है।
लग्न : इसे आत्मकारक भाव भी कहते हैं। यह मूल रूप से जातक की स्थिति का वर्णन करता है। उसके शारीरिक ढांचे, उसकी सामाजिक हैसियत, उसकी आर्थिक स्थिति, उसका व्यवहार, जातक का चेहरा मोहरा आदि सभी लग्न से ही देखे जाते हैं। बाकी रिश्तेदारियां लग्न के सापेक्ष ही देखी जाती हैं। ऐसे में हम कहेंगे लग्न ही जातक खुद है। इससे आगे के भाव उसके संबंधों को खुलासा करते हैं।
द्वितीय भाव : दूसरा भाव पारिवारिक पृष्ठभूमि बताने का काम करता है। अगर जातक के दूसरे भाव में एक से अधिक शुभ व अनुकूल ग्रह हों तो जातक आमतौर पर बड़े परिवार का हिस्सा होता है। अगर द्वितीय भाव का अधिपति मजबूत स्थिति में हो तो जातक परिवार से जुड़ा रहता है। अगर द्वितीय भाव और द्वितीयेश दोनों खराब स्थिति में हों, पाप ग्रहों से दृष्ट हो अथवा दूसरे भाव में क्रूर और शत्रु ग्रह बैठे हों तो जातक का परिवार भले ही बड़ा हो, लेकिन जातक परिवार के साथ अधिक समय नहीं बिता पाता है। परिवार की खुशी और दुख को जीवंत रूप में साझा नहीं कर पाता है।
तृतीय भाव : सामान्य तौर पर इस भाव को सहज भाव या साहस का भाव कहा जाता है। भले ही कालपुरुष की कुण्डली में यह बुध का भाव है, लेकिन रिश्तेदार या संबंधों के स्तर पर यह अनुज अथवा आयु में आपसे छोटी उम्र के मित्रों का भाव है। अगर तृतीय भाव में अकेला चंद्रमा बैठा हो तो जातक में खेलकूद की नैसर्गिक प्रवृत्ति होती है। भले ही जातक खेल के क्षेत्र में बड़ा नाम करे या न करे, लेकिन तीसरे भाव में अकेले चंद्रमा वाले जातक अगर खेलकूद से जुड़े रहते हैं तो अपनी सहज अवस्था में रहते हैं। उनकी लय बनी रहती है। देखा जाए तो तीसरा भाव वास्तव में जातक को शक्ति का आधार देता है। पहले शारीरिक स्तर पर और बाद में मानसिक स्तर पर।
चतुर्थ भाव : अगर मुझे देखना हो कि किसी विद्यार्थी के पढ़ने के लिए अनुकूल वातावरण है या नहीं, तो मैं उसका चौथा भाव देखूंगा। चतुर्थ भाव जातक के पारिवारिक वातावरण के बारे में जानकारी देता है। जातक की माता को चतुर्थ भाव से देखा जाता है। इसे सुख का भाव भी कहा गया है। अगर किसी जातक की कुण्डली में चतुर्थ भाव सौम्य ग्रहों से प्रभावित हो और चतुर्थ भाव का अधिपति शुभ प्रभाव में हो तो जातक को अपनी प्राथमिक शिक्षा के दौरान न केवल घर में बेहतरीन वातावरण मिलता है बल्कि जातक की माता भी सुखी रहती है। चतुर्थ भाव में शनि होने पर मैंने जातक को घर से दूर रहने के लिए बाध्य होते देखा है। ऐसे जातक को घर की बहुत याद आती है, फिर भी उसे नौकरी अथवा दूसरे कारणों से घर और माता से दूर रहना पड़ता है।
पंचम भाव : कहने को यह संतान का भाव है, लेकिन इस भाव से व्यक्ति की उत्पादन क्षमता देखी जाती है। साथ ही लीजेसी भी। अपने ऑरा से जातक अगली पीढ़ी को क्या सौंपता है यह पंचम भाव बताता है। ऐसे में गुरू के लिए उसका शिष्य भी पंचम भाव है और एक फैक्ट्री मालिक के लिए उसकी फैक्ट्री पंचम भाव है। अगर जातक किसी को पुत्रभाव से देखता है और उसे शिक्षा और ज्ञान देता है तो वह भी जातक का पंचम भाव ही होगा। शिक्षक के लिए उसके छात्र पंचम भाव हैं तो रसोई का काम सिखाते वक्त सास के लिए उसकी पुत्रवधू पंचम भाव होगी। यह भाव तीसरे भाव से तीसरा है। अत: कह सकते हैं कि मित्र या अनुज के साहस का भाव भी यही होगा।
षष्ठम भाव : सामान्यतया इसे अरि या शत्रु भाव कहा जाता है। सातवां भाव जहां प्रतिद्वंद्वी का भाव है वहीं छठा भाव प्रतिद्वंद्वी के ह्रास का भाव है। अगर किसी जातक का छठा भाव बलशाली है तो उसके शत्रु भी बलशाली होंगे। यह चतुर्थ से तीसरा है। ऐसे में माता के अनुज (मामा) को भी इसी भाव से देखते हैं। सामान्य तौर पर देखा जाए तो ननिहाल को इसी भाव से देखा जाने लगा है। जो लोग आपसे सीधे प्रतिस्पर्द्धा में नहीं हैं, फिर भी आपके कार्यों में रूचि लेते हैं और आपको लगातार उसके नकारात्मक पक्ष बताते रहते हैं, उन्हें भी छठे भाव से ही देखा जाएगा।