अगर आपके जीवन में कोई परेशानी है, जैसे: बिगड़ा हुआ दांपत्य जीवन , घर के कलेश, पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध, निसंतान माता पिता, दुश्मन, आदि, तो अभी सम्पर्क करे. +91-8602947815

Laxmi Tantra लक्ष्मी तंत्र laxmi Pujan vidhi लक्ष्मी पूजन विधि

Laxmi Tantra लक्ष्मी तंत्र laxmi Pujan vidhi लक्ष्मी पूजन विधि

तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। विश्वास है कि तंत्र ग्रंथ भगवान
शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है।
हमनेयहाँतंत्र द्वारा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विभिन्न सिद्ध तंत्र
विधियाँउपलब्ध कराईगईहैं।

हरिद्रा तंत्र
हरिद्रा का प्रचलित नाम हल्दी है। हरिद्रा (हल्दी) कई प्रकार की होती है। एक
हल्दी खाने के काम में नहीं आती पर चोट लगने और दूसरे औषधीय गुणों में उसे
महत्व दिया जाता है। ये रंग में सभी पीली होती है और पवित्रता का तत्व सभी में
होता है। हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाली हल्दी पीली (बसंती) और लाल (नारंगी)
दो प्रकार की होती है। यद्यपि वह वर्ण भेद बहुत सूक्ष्म होता है, सामान्य
दृष्टि में वह पीली ही दिख पड़ती है। इसी में कोई-कोई गाँठ काले रंग की निकल
आती है। हालाँकि ऐसा कदाचित ही कभी होता है, किन्तु यदि किसी को यह काली हल्दी
की गाँठ प्राप्त हो जाए तो समझना चाहिए कि लक्ष्मी प्राप्ति का एक श्रेष्ठ
दैवी साधन मिल गया है।

यह काली हल्दी (गहरे कत्थई रंग की) देखने में जितनी कुरूप, अनाकर्षक और
अनुपयोगी प्रतीत होती है, वस्तुतः वह उतनी ही अधिक मूल्यवान, दुर्लभ और दिव्य
गुणयुक्त होती है। यदि किसी को ऐसी हल्दी प्राप्त हो जाए तो उसे घर लाकर दैनिक
पूजा के स्थान पर रख दें। यह जहाँ भी होती है, सहज ही वहाँ श्री-समृद्धि का
आगमन होने लगता है। उसे नए कपड़े में अक्षत और चाँदी के टुकड़े अथवा किसी सिक्के
के साथ रखकर गाँठ बाँध दें और धूप-दीप से पूजा करके गल्ले या बक्से में रख दें
तो आश्चर्यजनक अर्थ लाभ होने लगता है। व्यापारी वर्ग इसे गल्ले (पैसों की थैली
या तिजोरी) में रखते हैं।

लक्ष्मी साधना के अंतर्गत इस हरिद्रा तंत्र की विधि यह है कि किसी भी अष्टमी
से इसकी पूजा आरंभ करें। सर्वप्रथम प्रातः उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हो, ठीक
सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठें। तत्पश्चात् इस हल्दी की
गाँठ को धूप-दीप देकर नमस्कार करें। यह क्रिया ठीक सूर्योदय के समय की जाती
है, परन्तु स्थान ऐसा हो कि साधक सूर्यनारायण के दर्शन कर सके। उदय होते हुए
सूर्यनारायण को नमस्कार करके, सामने आसन पर प्रतिष्ठित हरिद्रा खण्ड (हल्दी की
गाँठ) को नमस्कार करते हुए माला से 108 बार इस मंत्र का जाप करना चाहिए- 'ॐ
ह्रीं सूर्याय नमः'।

इस विधि से प्रतिदिन इसकी पूजा की जाए तो बहुत लाभ होता है। अष्टमी के दिन
उपवास रखकर, विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए। उस दिन व्रत रखने, फलाहार करने,
यथाशक्ति कुछ दान-पुण्य करने से इसका विशेष प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

हरिद्रा तंत्र की साधना में यह तथ्य स्मरण रखना चाहिए कि इसके साधक के लिए
मूली, गाजर और जमींकन्द (सूरन) का प्रयोग वर्जित है। अतः खाद्य रूप में इनका
सेवन नहीं करना चाहिए।


नैवेद्य तंत्र
यह एक अति सरल तंत्र प्रयोग है। इसकी साधना इस प्रकार की जाती है कि शुक्ल
पक्ष में प्रतिदिन सायंकाल चंद्रमा को धूप-दीप देकर श्वेत पदार्थ का नैवेद्य
अर्पित करें। नैवेद्य के पास ही दीपक जलाकर रख दें। यह क्रिया ऐसे स्थान पर की
जानी चाहिए, जहां चंद्रमा की किरणें आ रही हों। झरोखा, जीना अथवा छत पर जहां
चांदनी हो, वहीं नैवेद्य तथा दीपक रखें, अंधेरे में अथवा चंद्रमा के परोक्ष
स्थान पर रखने से साधना निष्फल हो जाती है। नियमानुसार की गई यह साधना भी
व्यवसायी, उद्यमी, राज्य कर्मचारी वर्ग को बहुत लाभप्रद सिद्ध होती है।

अश्व-जिह्वा तंत्र
घोड़ी की शारीरिक संरचना में कुछ ऐसा वैचित्र्य है कि प्रसव के समय उसकी जीभ का
अग्र भाग अपने आप गिर जाता है। यह भी दुर्लभ वस्तु है, कारण कि एक तो
घोड़े-घोड़ी पालने का रिवाज समाप्त हो गया है, दूसरे जहां कहीं भी घोड़ी हो तो
उसके प्रसव के समय वहां उपस्थित रहने का संयोग ही नहीं बन पाता। फिर भी प्रयास
से सब कुछ संभव है।

मार्जारी की भांति घोड़ी की भी लगातार देखभाल की जाए तो प्रसव के समय उसके मुख
से गिरी हुई जीभ प्राप्त हो जाती है। विचित्र बात यह है कि घोड़ी के मुख से जीभ
गिरने के बाद उसे फिर नई जीभ आ जाती है। अस्तु बिल्ली की नाल की तरह उसे भी
सुखाकर और हल्दी लगाकर रख देना चाहिए। यह जीभ बहुत समृद्धिदायक मानी गई है।

किसी शुभ मुहूर्त में उस जीभ को धूप-दीप देकर लक्ष्मीजी को ध्यान करते हुए
बटुए में, भण्डार में, कोष में अथवा जेवरों की पिटारी में रख देना चाहिए। उसके
प्रभाव से घर में धन-धान्य की वृद्धि होने लगती है।

अडार तंत्र
दारिद्रय निवारण और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए अडार तंत्र की साधना करनी चाहिए।
स्मरण रहे कि यह साधना मुख्यतः स्त्रियों (गृहिणियों) के द्वारा की जाती है।
जिस घर में स्त्री न हो, वहां पुरुष भी यह साधना कर सकते हैं। अडार तंत्र का
परिणाम थोड़े ही दिनों में अपना प्रभाव दिखाने लगता है।

सायंकाल घर में जितनी भी लालटेन, चिमनी, कुप्पी, दीपक, बल्ब, ट्यूबलाइट, कंदील
आदि हों, उन्हें थोड़ी देर के लिए जला दें। कम से कम दो-तीन दीपक सभी घरों में
रहते हैं, उन्हें जलाकर घर में इस तरह से रखें कि सर्वत्र प्रकाश फैल जाए,
अंधेरा न रहने पाए। यथास्थान ऐसी प्रकाश व्यवस्था 10-15 मिनट अथवा 2-3 घंटे तक
के लिए की जा सकती है। बाद में अन्य प्रकाश यंत्रों को बुझाकर एक मुख्य प्रकाश
यंत्र को रातभर जला रहने दें। यहां यह भी स्मरण रखना चाहिए कि दीपक को कभी
फूंक से न बुझाएं।

मुख से फूंक मारकर दीपक बुझाना निषिद्ध है। किसी वस्त्र या हाथ के माध्यम से
हवा का झोंका मारकर ही उसे बुझाना चाहिए। इस क्रम में यह भी अनिवार्य नियम है
कि दीपक से कुछ जलाएं भी नहीं। बहुधा स्त्रियां दीपक से ही चूल्हा, तपता आदि
जलाती हैं। यह बहुत ही अमंगलकारी होता है। इस क्रिया से दरिद्रता, ऋण, अभाव
बढ़कर श्री-सम्पत्ति की हानि होती है। अतः दीपक से भूलकर भी कोई अग्नि प्रयोग न
करें। उसके लिए अलग से माचिस या अंगारों का प्रयोग करना चाहिए।

इस प्रकार प्रत्येक शनिवार और अमावस्या के दिन घर का कूड़ा-कचरा, रद्दी सामान
बाहर फेंकना चाहिए, फर्श की धुलाई (लिपाई-पुताई) करना, सायं पूरे घर को
प्रकाशित करना तथा समस्त वस्तुओं को झाड़-पोंछकर यथाक्रम रखना यही अडार तंत्र है।

नोट :-तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक
अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है। चूंकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः
हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से
पूर्व किसी योग्य तांत्रिक की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के
लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।


लक्ष्मी पूजन (सरलतम विधि)

सीमित समय में भी निष्ठा और श्रद्धा के साथ पूजा की जा सकती है । पूजा में
सबसे महत्वपूर्ण है श्रद्धा । श्रद्धा के साथ अगर आप आराधना करते हैं तो
विधि-विधान से की जाने वाली पूजा जैसी ही फलप्राप्ति हो सकती है । लक्ष्मीपूजन
की सुगम विधि यहां विद्वान पंडित जी द्वारा दी गयी है |पूजा की आधार विधि,
विधान नहीं श्रद्धा है ।
विष्णुप्रिया लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी मानी जाती है । जो भी श्रद्धा के
साथ उनकी आराधना करता है उसे वे समृद्धि और वैभव प्रदान करती हैं । वे सफलता
की भी देवी हैं । उनकी कृपा भक्तों पर सदैव बनी रहती है ।


पूजन विधि
पूजा स्थल को साफ़ करने के बाद फर्श पर एक ओर मुट्ठीभर अनाज बिखेर दें । उस पर
मिट्टी या चांदी का घङा रखें । उसे पानी से तीन चौथाई भर दें । घङे के अंदर
पान, सुपारी, फूल, चावल के अच्छत तथा एक सिक्का डाल दें । घतैयार हो गया । ङें
के मुंह पर आम का पल्लव रखें । मिट्टी के एक छोटे से पात्र में चावल रख कर घङे
का मुंह ढंक दें । पूजा के लिए यह कलश तैयार हो गया ।  यह ब्रम्हांड का प्रतीक
है । कलश के पास एक चौकी पर पिसी हल्दी से कमल दल बनाएं और उस पर लक्ष्मी की
प्रतिमा स्थापित करें । पास में सिक्के भी बिखेरें । चौकी पर सुंदर लाल कपङा
बिछा कर उस पर भी लक्ष्मी को बिठा सकते हैं ।
लक्ष्मी पूजन में विध्नहर्ता गणेश की पूजा भी जरुरी है । इसलिए चौकी पर
लक्ष्मी के साथ गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें । गणेश को लक्ष्मी के दाहिने
रखें । चौकी की बाई ओर कलश तथा दाहिनी ओर दीपक रखें ।लक्ष्मी के सामने चंदन से
अष्टदल बना कर उसके ऊपर सोने चांदी के सिक्के और श्री यंत्र आदि रख सकते हैं ।
प्रतिमा स्थापित करने के बाद उसके सामने मिट्टी के पांच दीये जलाएं । प्रतिमा
के सामने खील-बताशे और फल और मिठाइयां का प्रसाद रखें । धूप या अगरबत्ती जलाएं
उसके बाद शुद्ध चित्त और मन से परिवार सहित प्रतिमा के सामने बैठें |
कमल पर विराजमान लक्ष्मी जी का ध्यान करें तथा "ॐ कमलवासिन्यै नमः" का पांच या
उससे अधिक बार उच्चारण करें तथा अपने और परिवार की सुख, समृद्धि और सम्पन्नता
के लिए लक्ष्मी जी की आराधना करें । आराधना के बाद सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें |

            लक्ष्मी पूजन (वृहद् पूजन विधि)


सामान्य तौर पर लक्ष्मी जी की पूजा दीपावली के अवसर पर की जाती है परन्तु अछय
तृतीया एवं अन्य शुभ अवसरों पर भी लक्ष्मी पूजन का विधान है|
श्री गणेश और माँ लक्ष्मी सदैव आपके घर प्रतिष्ठान पर विराजते हैं इस लिए इनकी
पूजा प्रतिदिन भी सामर्थ्य के अनुसार की जानी चाहिए |विधान के अनुसार लक्ष्मी
पूजन के साथ गणेश ,गौरी ,नवग्रह ,षोडशमातृका,महालक्ष्मी ,महाकाली ,महासरस्वती
,कुबेर एवं अपने कारोबार से सम्वन्धित कलम ,बही ,तुला ,तिजोरी आदि की भी पूजा
की जाती है |



पूजन के लिए आवश्यक सामग्री :  लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ, लक्ष्मी सूचक सोने अथवा चाँदी का सिक्का अथवा कुछ भी धन, लक्ष्मी स्नान के लिए स्वच्छ कपड़ा, लक्ष्मी सूचक सिक्के को स्नान के बाद
पोंछने के लिए एक नया कपड़ा ,अपने कारोबार से सम्वन्धित बही,तुला तिजोरी आदि ,सिक्कों की थैली, कलम, , एक साफ कपड़ा, धूप,अगरबत्ती,हल्दी व चूने का पावडर, रोली, चन्दन का चूरा, कलावा, आधा किलो साबुत
चावल,कलश, सफेद वस्त्र, लाल वस्त्र, ,कपूर, नारियल, गोला, बताशे, मिठाई,
फल,सूखा मेवा, खील, लौंग, छोटी इलायची, केसर, सिन्दूर, कुंकुम, फूल, गुलाब
अथवा गेंदे की माला, दुर्वा, पान के पत्ते, सुपारी,कमलगट्टा,दो कमल। मिट्टी के
पांच दीपक,रुई, माचिस, सरसों का तेल, शुद्ध घी, दूध, दही, शहद,पंचामृत (दूध,
दही, शहद, घी व शुद्ध जल का मिश्रण),मधुपर्क (दूध, दही, शहद व शुद्ध जल का
मिश्रण),शुद्ध जल,एक लकड़ी का पाटा एवं कलश


पूजन की तैयारी :

              चौकी पर लाल कपड़ा बिछाए और लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस
प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की
दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी
के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल
का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो
बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें
व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। कलश के तरफ नौग्रह के प्रतीक के लिए एक
मुट्ठी चावल रक्खें |गणेश जी के तरफ सोलह मात्रिका प्रतीक के लिए एक मुट्ठी
चावल रक्खें |नवग्रह व षोडश मातृका के बीच में सुपारी रखें |अब पूजन की सभी
सामग्री पूजा स्थल पर रक्खें |जल भरकर कलश रखें। एक थाली में दीपक, खील,
बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर कुंकुम,सुपारी, पान, फूल,
दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप,सुगंधित पदार्थ,
धूप, अगरबत्ती,




पूजा की संक्षिप्त विधि :


सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर
छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की
सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।

     ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
     यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं व वाभ्यन्तर शुचिः॥
     पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः ||
     कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥


अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और माँ
पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-

     ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
     त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
     पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नम: ||


अब आचमन करे :-

पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-
     ॐ केशवाय नमः ||


और फिर एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-
     ॐ नारायणाय नमः ||


फिर एक तीसरी बूँद पानी की मुँह में छोड़िए और बोलिए-
     ॐ वासुदेवाय नमः ||



फिर "ॐ हृषिकेशाय नमः"कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को
पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक

लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व,आत्म
तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन

हो जाता है तथा तिलक व अंगन्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।

आचमन आदि के बाद आँखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी साँस
लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए

क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के
प्रारंभ में स्वस्ति वाचन किया

जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वस्तिन इंद्र वेद
मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता

परमात्मा को प्रणाम किया जाता है।


स्वस्ति-वाचन

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः
संकल्प-



संकल्प में पुष्प,फल, सुपारी, पान,चांदी का सिक्का या रूपए का सिक्का,मिठाई,
मेवा, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें –

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्यब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री
श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे
जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य(अपने नगर/गांव का नाम लें)क्षेत्रे
बौद्धावतारे वीरविक्रमादित्यनृपते(वर्तमान संवत),तमेऽब्दे क्रोधी नाम संवत्सरे
उत्तरायणे (वर्तमान) ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे (वर्तमान)मासे
(वर्तमान)पक्षे (वर्तमान)तिथौ (वर्तमान)वासरे (गोत्र का नाम
लें)गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें)सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट
शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया-श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित
कार्य सिद्धयर्थं श्री लक्ष्मी पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन
निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।

नवग्रह आवाहन

अस्मिन नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहा

देवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।

और अब नवग्रह का रोली,चन्दन,धूप,दीप,फल-फूल,मीठा आदि से पूजन करने के बाद
निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें -
प्रार्थना
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः
शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु ॥



षोडशमातृका आवाहन -

ॐ गौरी पद्या शचीमेधा सावित्री विजया जया |

देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः ||

हृटि पुष्टि तथा तुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता : |

गणेशेनाधिका ह्यैता वृद्धौ पूज्याश्च तिष्ठतः ||

ॐ भूर्भुवः स्व: षोडशमातृकाभ्यो नमः ||

इहागच्छइह तिष्ठ ||

और अब षोडशमातृ का रोली,चन्दन,धूप,दीप,फल-फूल,मीठा आदि से पूजन करने के बाद
निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें -

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी |

दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोSस्ते ||

अनया पूजया गौर्मादि षोडश मातः प्रीयन्तां न मम |




गणपति पूजन


हाथ में पुष्प लेकर गणपति का आवाहन करें.

ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ : |

और अब गणपति का रोली,चन्दन,धूप,दीप,फल-फूल,मीठा आदि से पूजन करने के बाद
निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें -


गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

कलश पूजन


हाथ में पुष्प लेकर वरुण का आवाहन करें.

अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,

ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥

और अब कलश का रोली,चन्दन,धूप,दीप,फल-फूल,मीठा आदि से पूजन करें -





लक्ष्मी पूजन

सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें

ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।

गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।

लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।

नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।


इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें. हाथ में अक्षत लेकर बोलें



“ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ,
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”


आसन :

आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि।
आसन के लिए फूल चढाएं

पाद्य :
ॐअश्वपूर्वोरथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियंदेवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवींजुषाताम्।।
पादयो:पाद्यंसमर्पयामि।
जल चढाएं


अर्घ्य :-
हस्तयोरर्घ्यसमर्पयामि। अर्घ्यसमर्पित करें।

आचमन :-

स्नानीयं जलंसमर्पयामि। स्नानान्ते आचमनीयंजलंचसमर्पयामि। स्नानीयऔर आचमनीय जल चढाएं।

पय:स्नान :-

ॐपय: पृथिव्यांपयओषधीषुपयोदिव्यन्तरिक्षेपयोधा:।
पयस्वती:प्रदिश:संतु मह्यम्।। पय: स्नानंसमर्पयामि।

पय: स्नानान्तेआचमनीयं जलंसमर्पयामि।

दूध से स्नान कराएं, पुन:शुद्ध जल से स्नान कराएं और आचमन के लिए जल चढाएं।


दधिस्नान :-

दधिस्नानं समर्पयामि,
दधि स्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।
दही से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल
समर्पित करें।

घृत स्नान :-
घृतस्नानं समर्पयामि,
घृतस्नानान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।

घृत से स्नान कराकर पुन:आचमन के लिए जल चढाएं।

मधु स्नान :-
मधुस्नानंसमर्पयामि, मधुस्नानान्ते आचमनीयंजलं समर्पयामि।
मधु से स्नान कराकर आचमन के लिए जल समर्पित करें।

शर्करा स्नान :-
शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्तेशुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयं जलं समर्पयामि।
शर्करा से स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।

पञ्चमृतस्नान :-
पञ्चमृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि,
शुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।

पञ्चमृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल चढाएं।


गन्धोदकस्नान :-
गन्धोदकस्नानंसमर्पयामि,  गन्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंसमर्पयामि।

गन्धोदकसे स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।

शुद्धोदकस्नान :-
शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि।
शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
वस्त्र :-
वस्त्रंसमर्पयामि,वस्त्रान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।
उपवस्त्र :-
उपवस्त्रंसमर्पयामि,
उपवस्त्रान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।

उपवस्त्रचढाएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।

हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें :-

ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:,
ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं
भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम: ||


यज्ञोपवीत :-

यज्ञोपवीतंपरपमंपवित्रंप्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्यंप्रतिमुञ्चशुभ्रंयज्ञांपवीतंबलमस्तुतेज:।।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
यज्ञोपवीत समर्पित करें।


गंध-अर्पण :-   गन्धानुलेपनंसमर्पयामि।
चंदनउपलेपित करें।

सुगंधित द्रव्य :-
सुगंधित द्रव्यंसमर्पयामि।  सुगंधित द्रव्य चढाएं।

अक्षत :- अक्षतान्समर्पयामि।
अक्षत चढाएं।

पुष्पमाला:-
पुष्पमालां समर्पयामि।
पुष्पमाला चढाएं।

बिल्व पत्र :-
बिल्वपत्राणि समर्पयामि।  बिल्व पत्र समर्पित करें।


नाना परिमलद्रव्य :-   नानापरिमल द्रव्याणिसमर्पयामि।
विविध परिमल द्रव्य चढाएं

धूप :-
धूपंमाघ्रापयामि। धूप अर्पित करें।

दीप :- दीपं दर्शयामि। 
दीप दिखलाएं और हाथ धो लें।

नैवेद्य :-
नैवेद्यं निवेदायामि।नैवेद्यान्तेध्यानम्
ध्यानान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।
नैवेद्य निवेदित करे, तदनंतर भगवान का ध्यान करके आचमन के लिए जल चढाएं।

ताम्बूल पुंगीफल :-
मुखवासार्थेसपुंगीफलंताम्बूलपत्रंसमर्पयामि।
पान और सुपारी चढाएं।

क्षमा प्रार्थना
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहोन चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनंपरं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणंविधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतयाविधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत् ।तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवेकुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाःपरं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः ।मदीयो7यंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवेकुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवतिजगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचितान वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषेकुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति
परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतयामया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसिइदानींचेन्मातः तव यदि कृपानापि भविता निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणंश्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरानिरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैःतवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदंजनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ
चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरोजटाधारी कंठे भुजगपतहारी पशुपतिःकपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवींभवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदंन मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमेन विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनःअतस्त्वां सुयाचे जननि जननं यातु मम वैमृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैःकिं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिःश्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधेधत्से कृपामुचितमंब परं तवैवआपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयंकरोमि दुर्गे करुणार्णवेशिनैतच्छदत्वं मम भावयेथाःक्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंतिजगदंब विचित्रमत्र किंपरिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयिअपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतंमत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहिएवं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु

Shree Ram Raksha Stotra श्रीरामरक्षास्तोत्रम्

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥

श्रीगणेशायनम: ।

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।

श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।  श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥


॥ अथ ध्यानम् ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।

पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥

वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।

नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥

॥ इति ध्यानम् ॥



चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।

जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।

स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥

रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।

शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।

घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।

स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।

मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।

ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।

पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।

स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।

न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।

नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।

य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।

अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।

तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।

अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।

पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।

पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।

रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।

रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥

संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।

गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।

काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।

जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।

अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।

स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।

काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।

वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।

रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।

श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।

स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।

नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।

पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।

कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।

तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।

रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।

रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥


इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥


॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

Lal Kitab ke totke upay लाल किताब के सिद्ध टोटके और उपाय (Lal Kitab ke Totke aur Upay )

लाल किताब का इतिहास (History of Lal Kitab)


कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण ने सूर्य के सारथी अरुण से यह विद्या प्राप्त की थी। रावण की दुनिया समाप्त होने के बाद यह ग्रंथ किसी प्रकार ‘आद’ नामक स्थान पर पहुंच गया, जहां इसका अनुवाद अरबी और फारसी भाषा में किया गया। आज भी यह मान्यता है कि यह पुस्तक फारसी भाषा में उपलब्ध है। यह ग्रंथ आजकल पाकिस्तान के पुस्तकालय में सुरक्षित है और उर्दू भाषा में है। परन्तु इस अरुण संहिता या लाल किताब का कुछ अंश गायब है। एक मान्यता के अनुसार एक बार लाहौर में जमीन खोदने का कार्य चल रहा था, उसमें से तांबे की पट्टिकाएं मिलीं जिनपर उर्दू एवं अरबी भाषा में लाल किताब लिखी मिली। सन 1936 में अरबी भाषा में लाहौर में प्रकाशित की गई और यह प्रसिद्ध हो गई।



भारत में पंजाब प्रांत के ग्राम फरवाला (जिला जालंधर) के निवासी पंडित रूप चंद जोशी जी ने 1939 से 1952 के बीच में इसके पाँच खण्डों की रचना की।

1. लाल किताब के फरमान — सन 1939 में प्रकाशित
2. लाल किताब के अरमान — सन 1940 में प्रकाशित
3. लाल किताब (गुटका) — सन 1941 में प्रकाशित
4. लाल किताब — सन 1942 में प्रकाशित
5 लाल किताब — सन 1952 में प्रकाशित


हर भाग अपने आप में संपूर्ण है। इस किताब के कई रूपांतर हिन्दी में उपलब्ध हैं जो कि मूलत: लाल किताब 1952 का रुपांतर हैं। चंडीगढ़ (पंजाब) में अरुण प्रकाशन नें सभी किताबों का हिन्दी में रुपांतर किया तथा इसे अरुण संहिता लाल किताब के नाम से प्रकाशन किया।



लाल किताब की विशेषताएं :



‘लाल किताब’ ज्योतिर्विद्या की एक स्वतन्त्र और मौलिक सिद्धान्तों पर आधारित एक अनोखी पुस्तक है। इसकी कुछ अपनी निजी विशेषताएँ हैं, जो अन्य सैद्धान्तिक अथवा प्रायोगिक फलित ज्योतिष-ग्रन्थों से हटकर हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को ‘टोटकों’ का सहारा लेने का संदेश देना है। ये टोटके इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है। काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि। ऐसे कुछ टोटकों के नमूने हैं, जिनके अवलम्बन से जातक ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों से अनायास की बचा जाता है। कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि। में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय जातक इन टोटकों के सहारे बिना किसी खर्च के (मुफ्त में) या अत्यल्प खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है।



‘लाल किताब’ में धर्माचरण और सदाचरण के बल पर ग्रह दोष निवारण का झण्डा ऊँचा किया है, जिससे हमारा इहलोक तो बनेगा ही, परलोक भी बनेगा।  ‘लाल किताब’ में विभिन्न प्रकार के ग्रह दोषों से बचाव के लिए सैकड़ों टोटकों का विधान है। जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है, जिससे संबंधित टोटके न बतलाये गये हों।





यह ज्योतिष के सिधान्तो और हस्तरेखा के सिधान्तो को सरल रूप से समझाता है।


1. इस ग्रन्थ में मानव मस्तिष्क के 42 प्रभागों को जन्म कुंडली के विभिन्न घरों से संबंधित कर दिया गया है। हस्तरेखा के सिधान्तो और व्यक्ति की जन्म कुंडली में विभिन्न ग्रहों की स्थिति से व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओ का बताया जा सकता है।

2. लाल किताब में कष्ट निवारण के लिए कुछ सरल उपाय बताये गए है, जो की मुसीबत में फसे व्यक्ति के लिए वरदान स्वरुप है।
3. उपाय के तौर पर महंगे यज्ञ और हवन आदि महेंगी रस्मो की आवश्यकता नही है।
4. लाल किताब कुछ सरल उपायों की मदद से जटिल समस्याओ का हल बता सकती है।
5. यन्त्र मंत्र और तंत्र से ये उपाय बहुत अलग है।
6.लाल किताब में सुझाये उपाय बहुत ही सरल और सुरक्षित है। ये किसी भी तरह से किसीको हानि नही पहुचाते और पुरी तरह से ग्रहों के कस्त्दायक प्रभाव को नियंत्रित करते है।


        

लाल किताब के सिद्ध टोटके और उपाय


1.  आर्थिक समस्या के छुटकारे के लिए :

यदि आप हमेशा आर्थिक समस्या से परेशान हैं तो इसके लिए आप 21 शुक्रवार 9 वर्ष से कम आयु की 5 कन्यायों को खीर व मिश्री का प्रसाद बांटें !




2.  घर और कार्यस्थल में धन वर्षा के लिए :
इसके लिए आप अपने घर, दुकान या शोरूम में एक अलंकारिक फव्वारा रखें ! या एक मछलीघर जिसमें 8 सुनहरी व एक काली मछ्ली हो रखें ! इसको उत्तर या उत्तरपूर्व की ओर रखें ! यदि कोई मछ्ली मर जाय तो उसको निकाल कर नई मछ्ली लाकर उसमें डाल दें !


3.  परेशानी से मुक्ति के लिए :

आज कल हर आदमी किसी न किसी कारण से परेशान है ! कारण कोई भी हो आप एक तांबे के पात्र में जल भर कर उसमें थोडा सा लाल चंदन मिला दें ! उस पात्र को सिरहाने रख कर रात को सो जांय ! प्रातः उस जल को तुलसी के पौधे पर चढा दें ! धीरे-धीरे परेशानी दूर होगी !



4.  कुंवारी कन्या के विवाह हेतु :

१.       यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नामः” मंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयगी !
२.      प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर “ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे ! विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आयेगी




5.  व्यापार बढाने के लिए :
१.       शुक्ल पक्ष में किसी भी दिन अपनी फैक्ट्री या दुकान के दरवाजे के दोनों तरफ बाहर की ओर थोडा सा गेहूं का आटा रख दें ! ध्यान रहे ऐसा करते हुए आपको कोई देखे नही !
२.      पूजा घर में अभिमंत्रित श्र्री यंत्र रखें !
३.      शुक्र्वार की रात को सवा किलो काले चने भिगो दें ! दूसरे दिन शनिवार को उन्हें सरसों के तेल में बना लें ! उसके तीन हिस्से कर लें ! उसमें से एक हिस्सा घोडे या भैंसे को खिला दें ! दूसरा हिस्सा कुष्ठ रोगी को दे दें और तीसरा हिस्सा अपने सिर से घडी की सूई से उल्टे तरफ तीन बार वार कर किसी चौराहे पर रख दें ! यह प्रयोग 40 दिन तक करें ! कारोबार में लाभ होगा !


6.   लगातार बुखार आने पर :

१.       यदि किसी को लगातार बुखार आ रहा हो और कोई भी दवा असर न कर रही हो तो आक की जड लेकर उसे किसी कपडे में कस कर बांध लें ! फिर उस कपडे को रोगी के कान से बांध दें ! बुखार उतर जायगा !
२.      इतवार या गुरूवार को चीनी, दूध, चावल और पेठा (कद्दू-पेठा, सब्जी बनाने वाला) अपनी इच्छा अनुसार लें और उसको रोगी के सिर पर से वार कर किसी भी धार्मिक स्थान पर, जहां पर लंगर बनता हो, दान कर दें !
३.      यदि किसी को टायफाईड हो गया हो तो उसे प्रतिदिन एक नारियल पानी पिलायें ! कुछ ही दिनों में आराम हो जायगा !




7.   नौकरी जाने का खतरा हो या ट्रांसफर रूकवाने के लिए :
पांच ग्राम डली वाला सुरमा लें ! उसे किसी वीरान जगह पर गाड दें ! ख्याल रहे कि जिस औजार से आपने जमीन खोदी है उस औजार को वापिस न लायें ! उसे वहीं फेंक दें दूसरी बात जो ध्यान रखने वाली है वो यह है कि सुरमा डली वाला हो और एक ही डली लगभग 5 ग्राम की हो ! एक से ज्यादा डलियां नहीं होनी चाहिए !


8.  कारोबार में नुकसान हो रहा हो या कार्यक्षेत्र में झगडा हो रहा हो तो :

यदि उपरोक्त स्थिति का सामना हो तो आप अपने वज़न के बराबर कच्चा कोयला लेकर जल प्रवाह कर दें ! अवश्य लाभ होगा !


9.  मुकदमें में विजय पाने के लिए :

यदि आपका किसी के साथ मुकदमा चल रहा हो और आप उसमें विजय पाना चाहते हैं तो थोडे से चावल लेकर कोर्ट/कचहरी में जांय और उन चावलों को कचहरी में कहीं पर फेंक दें ! जिस कमरे में आपका मुकदमा चल रहा हो उसके बाहर फेंकें तो ज्यादा अच्छा है ! परंतु याद रहे आपको चावल ले जाते या कोर्ट में फेंकते समय कोई देखे नहीं वरना लाभ नहीं होगा ! यह उपाय आपको बिना किसी को पता लगे करना होगा !


10.  धन के ठहराव के लिए :

आप जो भी धन मेहनत से कमाते हैं उससे ज्यादा खर्च हो रहा हो अर्थात घर में धन का ठहराव न हो तो ध्यान रखें को आपके घर में कोई नल लीक न करता हो ! अर्थात पानी टप–टप टपकता न हो ! और आग पर रखा दूध या चाय उबलनी नहीं चाहिये ! वरना आमदनी से ज्यादा खर्च होने की सम्भावना रह्ती है !


11.  मानसिक परेशानी दूर करने के लिए :

रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा का पाठ करें ! प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल चढायें ! अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी गरीब को एक बार दान करें !


12.  बच्चे के उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु के लिए :

१.       एक काला रेशमी डोरा लें ! “ऊं नमोः भगवते वासुदेवाय नमः” का जाप करते हुए उस डोरे में थोडी थोडी दूरी पर सात गांठें लगायें ! उस डोरे को बच्चे के गले या कमर में बांध दें !
२.      प्रत्येक मंगलवार को बच्चे के सिर पर से कच्चा दूध 11 बार वार कर किसी जंगली कुत्ते को शाम के समय पिला दें ! बच्चा दीर्घायु होगा !


13.  किसी रोग से ग्रसित होने पर :

सोते समय अपना सिरहाना पूर्व की ओर रखें ! अपने सोने के कमरे में एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रखें ! सेहत ठीक रहेगी !


14.   प्रेम विवाह में सफल होने के लिए :

यदि आपको प्रेम विवाह में अडचने आ रही हैं तो :
शुक्ल पक्ष के गुरूवार से शुरू करके विष्णु और लक्ष्मी मां की मूर्ती या फोटो के आगे “ऊं लक्ष्मी नारायणाय नमः” मंत्र का रोज़ तीन माला जाप स्फटिक माला पर करें ! इसे शुक्ल पक्ष के गुरूवार से ही शुरू करें ! तीन महीने तक हर गुरूवार को मंदिर में प्रशाद चढांए और विवाह की सफलता के लिए प्रार्थना करें !


15.  नौकर न टिके या परेशान करे तो :

हर मंगलवार को बदाना (मीठी बूंदी) का प्रशाद लेकर मंदिर में चढा कर लडकियों में बांट दें ! ऐसा आप चार मंगलवार करें !


16.  बनता काम बिगडता हो, लाभ न हो रहा हो या कोई भी परेशानी हो तो :

हर मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में बदाना (मीठी बूंदी) चढा कर उसी प्रशाद को मंदिर के बाहर गरीबों में बांट दें !


17.  यदि आपको सही नौकरी मिलने में दिक्कत आ रही हो तो :

१.       कुएं में दूध डालें! उस कुएं में पानी होना चहिए !
२.      काला कम्बल किसी गरीब को दान दें !
३.      6 मुखी रूद्राक्ष की माला 108 मनकों वाली माला धारण करें जिसमें हर मनके के बाद चांदी के टुकडे पिरोये हों !


18.  अगर आपका प्रमोशन नहीं हो रहा तो :

१.       गुरूवार को किसी मंदिर में पीली वस्तुये जैसे खाद्य पदार्थ, फल, कपडे इत्यादि का दान करें !
२.      हर सुबह नंगे पैर घास पर चलें !


19.  पति को वश में करने के लिए :

यह प्रयोग शुक्ल  पक्ष में करना चाहिए ! एक पान का पत्ता लें ! उस पर चंदन और केसर का पाऊडर मिला कर रखें ! फिर दुर्गा माता जी की फोटो के सामने बैठ कर दुर्गा स्तुति में से चँडी स्त्रोत का पाठ 43 दिन तक करें ! पाठ करने के बाद चंदन और केसर जो पान के पत्ते पर रखा था, का तिलक अपने माथे पर लगायें ! और फिर तिलक लगा कर पति के सामने जांय ! यदि पति वहां पर न हों तो उनकी फोटो के सामने जांय ! पान का पता रोज़ नया लें जो कि साबुत हो कहीं से कटा फटा न हो ! रोज़ प्रयोग किए गए पान के पत्ते को अलग किसी स्थान पर रखें ! 43 दिन के बाद उन पान के पत्तों को जल प्रवाह कर दें ! शीघ्र समस्या का समाधान होगा !


20.  यदि आपको धन की परेशानी है, नौकरी मे दिक्कत आ रही है, प्रमोशन नहीं हो रहा है या आप अच्छे करियर की तलाश में है तो यह उपाय कीजिए :

किसी दुकान में जाकर किसी भी शुक्रवार को कोई भी एक स्टील का ताला खरीद लीजिए ! लेकिन ताला खरीदते वक्त न तो उस ताले को आप खुद खोलें और न ही दुकानदार को खोलने दें ताले को जांचने के लिए भी न खोलें ! उसी तरह से डिब्बी में बन्द का बन्द ताला दुकान से खरीद लें ! इस ताले को आप शुक्रवार की रात अपने सोने के कमरे में रख दें ! शनिवार सुबह उठकर नहा-धो कर ताले को बिना खोले किसी मन्दिर, गुरुद्वारे या किसी भी धार्मिक स्थान पर रख दें ! जब भी कोई उस ताले को खोलेगा आपकी किस्मत का ताला खुल जायगा !


21. यदि आप अपना मकान, दुकान या कोई अन्य प्रापर्टी बेचना चाहते हैं और वो बिक न रही हो तो यह उपाय करें :

बाजार से 86 (छियासी) साबुत बादाम (छिलके सहित) ले आईए ! सुबह नहा-धो कर, बिना कुछ खाये, दो बादाम लेकर मन्दिर जाईए ! दोनो बादाम मन्दिर में शिव-लिंग या शिव जी के आगे रख दीजिए ! हाथ जोड कर भगवान से प्रापर्टी को बेचने की प्रार्थना कीजिए और उन दो बादामों में से एक बादाम वापिस ले आईए ! उस बादाम को लाकर घर में कहीं अलग रख दीजिए ! ऐसा आपको 43 दिन तक लगातार करना है ! रोज़ दो बादाम लेजाकर एक वापिस लाना है ! 43 दिन के बाद जो बादाम आपने घर में इकट्ठा किए हैं उन्हें जल-प्रवाह (बहते जल, नदी आदि में) कर दें ! आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा ! यदि 43 दिन से पहले ही आपका सौदा हो जाय तो भी उपाय को अधूरा नही छोडना चाहिए ! पूरा उपाय करके 43 बादाम जल-प्रवाह करने चाहिए ! अन्यथा कार्य में रूकावट आ सकती है !


22. यदि आप ब्लड प्रेशर या डिप्रेशन से परेशान हैं तो :

इतवार की रात को सोते समय अपने सिरहाने की तरफ 325 ग्राम दूध रख कर सोंए ! सोमवार को सुबह उठ कर सबसे पहले इस दूध को किसी कीकर या पीपल के पेड को अर्पित कर दें ! यह उपाय 5 इतवार तक लगातार करें ! लाभ होगा !


23. माईग्रेन या आधा सीसी का दर्द का उपाय :

सुबह सूरज उगने के समय एक गुड का डला लेकर किसी चौराहे पर जाकर दक्षिण की ओर मुंह करके खडे हो जांय ! गुड को अपने दांतों से दो हिस्सों में काट दीजिए ! गुड के दोनो हिस्सों को वहीं चौराहे पर फेंक दें और वापिस आ जांय ! यह उपाय किसी भी मंगलवार से शुरू करें तथा 5 मंगलवार लगातार करें ! लेकिन….लेकिन ध्यान रहे यह उपाय करते समय आप किसी से भी बात न करें और न ही कोई आपको पुकारे न ही आप से कोई बात करे ! अवश्य लाभ होगा !


24. फंसा हुआ धन वापिस लेने के लिए :

यदि आपकी रकम कहीं फंस गई है और पैसे वापिस नहीं मिल रहे तो आप रोज़ सुबह नहाने के पश्चात सूरज को जल अर्पण करें ! उस जल में 11 बीज लाल मिर्च के डाल दें तथा सूर्य भगवान से पैसे वापिसी की प्रार्थना करें ! इसके साथ ही “ओम आदित्याय नमः “ का जाप करें !


नोट :

1. लाल किताब के सभी उपाय दिन में ही करने चाहिए ! अर्थात सूरज उगने के बाद व सूरज डूबने से पहले !
2. सच्चाई व शुद्ध भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए !
3. किसी भी उपाय के बीच मांस, मदिरा, झूठे वचन, परस्त्री गमन की विशेष मनाही है !
4. सभी उपाय पूरे विश्वास व श्रद्धा से करें, लाभ अवश्य होगा !
5. एक दिन में एक ही उपाय करना चाहिए ! यदि एक से ज्यादा उपाय करने हों तो छोटा उपाय पहले करें !    एक उपाय के दौरान दूसरे उपाय का कोई सामान भी घर में न रखें !

6. जो भी उपाय शुरू करें तो उसे पूरा अवश्य करें ! अधूरा न छोडें !



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...