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मित्रों समय बड़ा बलवान है डॉक्टर भी बीमार पड़ जाते है और जज को भी वकील करने पड़ जाते है तो क्या ज्योतिष भाग्य बदल सकता है, क्या करे जीवन से समस्याओं को कम करने के लिए. 
·         सच्चाई ये है की ज्योतिष को वेदों की आँखे कहा जाता है अर्थात ये वो विद्या है जिसका प्रयोग करके हम भविष्य के बारे मे ग्रहों के प्रभाव को जान सकते हैं और उसके हिसाब से कार्यो को करते हुए सफलता अर्जित कर सकते हैं. ये कोई भाग्य बदलने की मशीन नहीं है, ये भाग्य को जानने का साधन मात्र है. 
·         ज्योतिष के द्वारा हम अपने जीवन की कमियों और ताकतों के बारे मे जान सकते हैं और उसके हिसाब से प्रयोग कर सकते हैं. उदाहरण के लिए अगर किसी के कुंडली मे मंगल शुभ और शक्तिशाली हो तो वो व्यक्ति भी काफी ताकतवर होगा अतः ऐसा व्यक्ति आर्मी, होटल, भूमि के कार्यो आदि मे सफलता अर्जित कर सकता है. ज्योतिष के द्वारा हम ये भी जान सकते हैं की किस समय कौन से ग्रहों का प्रभाव जीवन मे था, है और रहेगा  
·         आइये अब जानते हैं की ज्योतिष कैसे हमारी मदद कर सकता है ?
किसी भी कुंडली को जांचने के बाद ज्योतिष ये पता लगता है की आखिर जीवन मे समस्या का मुख्य ज्योतिषीय कारण क्या है, क्यों जीवन मे उथल पुथल है, क्यों असंतोष है, उसके बाद ज्योतिष जजमान को तंत्र, मंत्र, टोटके, दान आदि के बारे मे जानकारी देता है जिससे की जीवन मे समस्याएं कम हो. इसका अर्थ ये नहीं की भाग्य ही बदल जाता है.
तंत्र, मंत्र, द्वारा हम प्रार्थना करते हैं दूसरी शक्तियों से की हमारी मदद करे और उनके आशीर्वाद से जीवन सुखी भी होता है. 
·         भाग्य तो सिर्फ भाग्यविधाता ही बदल सकता है.
ज्योतिष विज्ञान का प्रयोग दशको से हो रहा है जीवन को समझने के लिए.
व्यपरिगण भी ज्योतिष से सलाह ले सकते हैं, नौकरी पेशा लोग भी ज्योतिष से परामर्श ले के जीवन को सुखी कर सकते हैं, गृहिणियां भी परिवार को सुखी करने के लिए सलाह ले सकते हैं, विद्यार्थी भी अपने जीवन को सफल बनाने के लिए परामर्श ले सकते हैं. प्रेमी भी जीवन मे बाधाओं को दूर करने के लिए सलाह ले सकते हैं, जिनको अपने वैवाहिक जीवन के बारे मे जो जानना चाहते हैं वे भी ज्योतिष से सलाह ले सकते हैं.
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Navgrah Pujan Vidhi | नवग्रह पूजन विधि

नवग्रह पूजन | Navgrah Pujan Vidhi | नवग्रह पूजन विधि

॥श्री गणेशाय नमः॥
नवग्रह पूजन
पूजा करने के लिए स्नान इत्यादि से शरीर शुद्ध करने के पश्चात् घर अथवा कमरे की उत्तर पूर्व दिशा (ईशान कोण) में पवित्र स्थान पर एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर देवता की स्थापित करें पूजन सामग्री यथा स्थान पर रखे। पूजन सामग्री में जिस वस्तु का अभाव हो उसके लिए मनसा परिकल्प्य कहें। (आभूषणं समर्पयामि के स्थान पर आभूषणं मनसा परिकल्प्य समर्पयामि कहें।) मन से कल्पना कर के वस्तु समर्पित करना वास्तविक वस्तु समर्पित करने से उत्तम है।
1 आचमन   
ॐ केशवाय नमः।  ॐ नारायणाय नमः।  ॐ माधवाय नमः।
(एक-एक कुल तीन आचमन करें हथेली पर कुछ बुंदे जल की रख कर मनीबंध से पीयें पानी बस गले तक ही जाये।)
ॐ हृषीकेशाय नमः। (दाँये हाथ के अँगुष्ठ मूल से होठ पोंछे)
ॐ गोविन्दाय नमः। (अपनी बाँई ओर हाथ धो ले)
2 पवित्र धारण (अंगूठी या कुश की पवित्र पहने अंगूठी पहले से पहनी हुई हो तो स्पर्श करें)
ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्त ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयमः॥
3 पवित्र करण (मार्जन)
(अगले मंत्र को पढते हुए कुशा से अपने और पूजन सामग्री को जल से सींचे)
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
4 प्राणायम करें
5 आसन शुद्धि (आसन पर जल छोड़कर उसे छूते हुए निम्न मंत्र पढ़े)
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
तिलक धारण
चन्दन वन्दते नित्ये पवित्र पाप नाशन ।
आपदा हरते नित्य लक्ष्मी वस्तु सर्वेदा ॥  (इस मंत्र से अपना तिलक करें)
रक्षा विधान
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशा। सर्वेषामवरोधेन ब्रह्मकर्म समारभे।
अपसर्पन्तु ते भूताः ये भूताः भूमिसंस्थिताः। ये भूता विनकर्तारस्ते नष्टन्तु शिवाज्ञया।
(इस मंत्र से दशों दिशाओं मैं पीली सरसों छिटकें जिससे समस्त भूत प्रेत बाधाओं का निवारण होता है)
8 शिखा बन्धन (या गायत्री मंत्र बोलते हुए शिखा बांध ले शिखा बंधि हुई हो तो स्पर्श करें)
चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते । तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥

9 स्वस्ति वाचन (स्वति वाचन अगल पृष्ठ पर है)

10 संकल्प (हाथ में जल अक्षत आदि लेकर पूजा का संकल्प करें)
ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नमः। ॐ आद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूलोके अमुक द्वीपे अमुक क्षेत्रे अमुक नगरे अमुक ग्रामे अमुक नाम संवत्सरे अमुक मासे अमुक पक्षे पुण्यायाममावस्यां तिथौ रवि वासरे अमुक गोत्रोत्पन्नः अमुक  अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्ति-कामनया ज्ञाताज्ञतकायिकवाचिकमानसिकसकलपापनिवृत्तिपूर्वकं नवग्रह अनुकूलन प्राप्तये नवग्रह प्रीत्यर्थं नवग्रह पूजनं पूजनं करिष्ये।
(हाथ का जलाक्षतादि गणेश जी के समीप छोड़ दें)
12 न्यास (अगल पृष्ठ पर है) (न्यास से मनुष्य में देवत्व का आधान होता है)
नवग्रह पूजन
( ग्रहोंकी स्थापनाके लिये ईशानकोणमें चार खड़ी पाइयों और चार पड़ी पाइयोंका चौकोर मण्डल बनाये । इस प्रकार नौ कोष्ठक बन जायेंगे । बीचवाले कोष्ठकमें सूर्य अग्निकोणमें चन्द्र दक्षिणमें मङ्गल ईशानकोणमें बुध उत्तरमें बृहस्पति पूर्वमें शुक्र पश्‍चिममेंशनि नैऋत्यकोणमें राहु और वायव्यकोणमें केतुकी स्थापना करे । अब बायें हाथमें अक्षत लेकर नीचे लिखे मन्त्र बोलते हुए उपरिलिखित क्रमसे दाहिने हाथसे अक्षत छोड़्कर ग्रहोंका आवाहन एवं स्थापना करे ।)
१- सूर्य का आवाहन (मध्यमें गोलाकार लाल)  (लाल अक्षत-पुष्प से . . .)
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतंमर्त्यंच ।
हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्यन् ॥
ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम् ।
तमोऽरिं सर्वपापघ्न सूर्यमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः कलिंग देशोद्‍भव काश्यपगोत्र रक्‍तवर्णाभ सूर्य ।
इहागच्छ इहतिष्ठ ॐ सूर्याय नमः श्री सूर्यमावाहयामि स्थापयामि ॥
२- चन्द्र आवाहन (अग्निकोणमें अर्धचन्द्र श्‍वेत)  (श्‍वेत अक्षत-पुष्प से . . .)
ॐ इमं देवा असपत्‍न सुवध्वं महते क्षत्राय
महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय ।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी
राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना राजा ।
दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् ।
ज्योत्सनापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम ।
इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ सोमाय नमः सोममवाहयामि स्थापयामि ।
३- मंगल आवाहन (दक्षिणमें त्रिकोण लाल) (लाल फूल और अक्षत से . . .)
ॐ अग्निमूर्धा दिवःककुत्पतिः अयम् ।
अपा रेता असि जिन्वति ॥
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम ।
इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ भौमाय नमः भौममावाहयामि स्थापयामि ।
४- बुध आवाहन (ईशानकोणमें हरा धनुष) (पीले हरे अक्षत-पुष्प से . . .)
ॐ उद्‍बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वभिष्टापूर्ते स सृजेथामयं च ।
अमिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्‍वेदेवा यजमानश्‍च सीदत ॥
प्रियंगुकलिका भासं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र पीतवर्ण भो बुध ।
इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ बुधाय नमः बुधमवाहयामि स्थापयामि ।
५- बृहस्पति आवाहन (उत्तरमें पीला अष्टदल) (पीले अक्षत-पुष्प से . . .)
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्दधुमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यदीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा ॥
देवानां च मुनीनां च गुरुं कांचनसन्निभम् ।
वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्व सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो ।
इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः बृहस्पतिमावाहयामि स्थापयामि ।
६- शुक्र आवाहन (पूर्वमें श्‍वेत चतुष्कोण) (श्‍वेत अक्षत-पुष्प से . . .)
ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः ।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान शुकमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥
ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं आवाहयाम्यहम् ॥
ॐ भुर्भूवः स्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्रः ।
इहागच्छ इहतिष्ठ ॐ शुक्राय नमः शुक्रमावाहयामि स्थापयामि ।
७- शनि आवाहन (पश्‍चिममें काला मनुष्य) (काले अक्षत-पुष्प से . . .)
ॐ शं नो देवीरभिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्त्रवन्तु नः ॥
नीलांबुजसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्‍चर ।
इहगच्छ इह तिष्ठ ॐ शनैश्‍चराय नमः शनैश्‍चरमावाहयामि स्थापयामि ।
८ – राहु आवाहन (नैऋत्यकोणमें काला मकर) (काले अक्षत-पुष्प से . . .)
ॐ काया नश्‍चित्र आ भुवदूती सदावृधः । सखा कया सचिष्ठया वृता ॥
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भ संभूतं राहुं आवाहयाम्यहम् ।
ॐ भूर्भुवः स्वः राठिनपुरोद्भव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो ।
इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ राहवे नमः राहुमावाहयामि स्थापयामि ।
९ – केतु आवाहन (वायव्यकोणमें कृष्ण खड्‌ग) (धूमिल अक्षत-पुष्प से . . .)
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्भिरजायथाः ॥
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुं आवाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भो केतो ।
इहागच्छ इहतिष्ठ ॐ केतवे नमः केतुमावाहयामि स्थापयामि ।
प्रतिष्ठा  (बायें हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से नवग्रह मंडल में अक्षत छोड़ते जायें…)
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुँ समिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयंतामो३म्प्रतिष्ठ ॥
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥
अस्मिन् नवग्रहमण्डले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहा देवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः आसनार्थे पुष्पं समर्पयामि । (पुष्प अक्षत दें।)
पाद्य अर्घ्य आचमन एवं स्नानीय आचमन
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्‌ ।
एतानि पाद्यार्घ्यचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि जलं समर्पयामि आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः ।
(पैर धोने अर्घ आचमन और फिर स्नान के आचमन के लिए जल दें।)
दुग्ध स्नान
ॐ पयः पृथिव्यां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।
पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्‌ ॥
कामधेनुसमुत्पन्नां सर्वेषां जीवनं परम्‌ ।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः दुग्धस्नानं समर्पयामि । (स्नान के लिए कच्चा दूध दें।)
दधिस्नान
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः ।
सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू गुँ षि तारिषत्‌ ॥
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्‌ ।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, दधिस्नानं समर्पयामि । (स्नान के लिए दही दें।)
घृत स्नान    ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम ।
              अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम् ॥
नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्‌ । घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, घृत स्नानं समर्पयामि । (स्नान के लिए घी दें।)
मधु स्नान
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव गुँ रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥
मधुमान्ना वनस्पतिर्मधुमाँ गुँ अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवंतु नः ॥
पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, मधुस्नानं समर्पयामि । (स्नान के लिए शहद दें।)
शर्करा स्नान
ॐ अपा गुँ रसमुद्वयस गुँ सूर्ये सन्त गुँ समाहितम् । अपा गुँ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्‌ ॥
इक्षुरसासमुद्भूतां शर्करा पुष्टिदां शुभाम् ।
मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, शर्करास्नानं समर्पयामि । (स्नान के लिए चीनी दें।)
! पंचामृत की धारा से निरन्तर स्नान करवाते हुए अगले श्लोक पढ़ें –
पंचामृत स्नान      ॐ पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।
सरवस्ती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्‌ सरित्‌ ॥
पंचामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु । शर्करया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, पंचामृत स्नानं समर्पयामि । (स्नान के लिए पंचामृत दें।)
शुद्धोदक स्नानं       ॐ अ गुँ शुना ते अ गुँ शुः पृच्यतां परुषा परुः ।
गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युतः ॥
गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि । (स्नान के लिए जल दें।)
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः । (आचमन के लिए जल दें।)

वस्त्र         ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः ।
              तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो३ मनसा देवयन्तः ॥
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्‌ ।
देहालंकरणं वस्त्रमतः शांति प्रयच्छ मे ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, वस्त्रं समर्पयामि । (वस्त्र दें।)
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । गणेशाम्बिकाभ्यां नमः । (आचमन के लिए जल दें।)
उपवस्त्र               ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः ।
                     वासो अग्ने विश्वरूप गुँ सं व्ययस्व विभावसो ॥
यस्याभावेन शास्त्रोक्तं कर्म किंचिन्न सिध्यति ।
उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम् ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि । (उपवस्त्र दें।)
उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । गणेशाम्बिकाभ्यां नमः । (आचमन के लिए जल दें।)
यज्ञोपवीत          
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तुतेजः ॥
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्‌ ।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि । (यज्ञोपवीत दें।)
यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (आचमन के लिए जल दें।)
चन्दन        
ॐ त्वां गन्धर्वा अखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः ।
त्वामोषघे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत ॥
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्‌ ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ ! चन्दनं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, चन्दनानुलेपनं समर्पयामि ।  (चन्दन अर्पित करें।)
अक्षत         ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत ।
अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजा न्विन्द्र ते हरी ॥
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः ।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, अक्षतान् समर्पयामि ।  (अक्षत अर्पित करें।)
पुष्पमाला           
ॐ ओषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः ।
अश्वा इव सजित्वरीवींरुधः पारयिष्णवः ॥
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।
मयाहतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, पुष्पमालां समर्पयामि ।  (फूल माला अर्पित करें।)
अबीर-गुलाल आदि नाना परिमल द्रव्य
ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति वाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा  गुँ-सं परि पातु विश्वतः ॥
अबीरं च केसरं च हरिद्रादिसमन्वितम्‌ ।
नाना परिमल द्रव्यं गृहाण परमेश्वर ॥
कुंकुमं कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम्‌ ।
अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि । (गुलाल अर्पित करें।)
सुगन्धित द्रव्य – पुष्पसार (इत्र)
ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति वाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा  गुँ-सं परि पातु विश्वतः ॥
              दिव्यगन्धसमायुक्तं महापरिमल अद्भुतम् ।
              गन्धद्रव्यमिदं भक्त्य दत्तं वै प्ररिगृह्यताम्‌ ॥
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, सुगन्धिद्रव्य समर्पयामि ।  (सुगन्धित द्रव्य अर्पित करें।)
धूप            ॐ धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान् धूर्वति तं धूर्व यं वयं धूर्वामः ।
देवानामसि वह्नितम गुँ-सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम् ॥
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गंध उत्तमः ।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, धूपं आघ्रापयामि । (धूप दिखायें।)
दीप   ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा ।
       अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा ॥
       ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ॥
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजतं मया ।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्‌ ॥
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिः नमोऽस्तु ते ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, दीपं दर्शयामि ।  (दीप दिखायें।)
हस्तप्रक्षालन  ॐ हृषीकेशाय नमः। (अपनी बाँई ओर हाथ धो लें)
नैवेद्य ( मिठाई पर जल छिड़क कर फूलों से सजाकर जल से चौकोर घेरा बनाकर नवग्रह मंडल के आगे रखें . . .)
ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्ष-गुँ शीर्ष्णो द्योः समवर्तन ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन् ॥
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा । ॐ प्राणाय स्वाहा ॐ अपानाय स्वाहा ॐ समानाय स्वाहा   ॐ उदानाय स्वाहा ॐ व्यानाय स्वाहा।  ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।
शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।
आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ॥  (मिठाई दें।)
पानीयम्‌ उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि
( पीने और हाथ – मुँह धोने के लिए जल दें।)
आचमनीयं जलं च समर्पयामि । (आचमन के लिए जल दें।)
ऋतुफल      ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः।
              बृहस्पतिप्रसूतास्ता नौ मुञ्चन्त्व-गुँ हसः ॥
इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव ।
तेन में सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्‌ ।
तस्मात्‌ फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, ऋतुफलानि समर्पयामि । (ऋतुफल अर्पित करें।)
फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए जल दें।)
उत्तरापोऽशन  उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि
(हाथ – मुँह धोने के लिए जल दें।)
तांबूल         ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
              वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥
पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्‌ ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, मुखवासार्थम् ताम्बूलं समर्पयामि ॥ (पान अर्पित दें।)
दक्षिणा       ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।
              स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ॥  (द्रव्य दक्षिणा समर्पित करें।)
आरती        ॐ इद-गुँ हविः प्रजननं में अस्तु दशवीर गुँ-सर्वगण-गुँ स्वस्तये ।
              आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभययसनि ॥
              अग्निः प्रजां बुहलां में कोरत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त ॥
ॐ आ रात्रि पार्थिव-गुँ रजः पितुरप्रायि धामभिः ।
दिवः सदा गुँ-सि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः ॥
              कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् ।
              आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य में वरदो भव ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, आरार्तिकं समर्पयामि ॥  (कर्पूर से आरती करके जल गिरा दें)
पुष्पाञ्जलि   ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
              ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च ।
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमःपुष्पांजलिं समर्पयामि ॥ ( पुष्पाञ्जली अर्पित करें।)
प्रदक्षिणा     ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः ।
              तेषा-गुँ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमःप्रदक्षिणां समर्पयामि ॥ ( प्रदक्षिणा करें।)
विशेशाधार्य  ( ताम्रपात्र या दोने में जल चन्दन अक्षत फल फूल दूर्वा अबीर और दक्षिणा रखकर अर्घ दें . .)
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः, विशेषार्घ्यं समर्पयामि ॥ (विशेष अर्घ्य दें।)
प्रार्थना
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः
सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्‍च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्योन्नतिं
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः ॥
ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमःप्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि ॥ (साष्टांग नमस्कार करें।)
निवेदन और नमस्कार – अनया पूजया सूर्यादिनवग्रहाः प्रीयन्तां म मम
(यह कहकर जल छोड़ दें। समस्त पूजन-कर्म भगवान् को समर्पित करें तथा पुनः नमस्कार करें।)


(यहीं पूजा समाप्त करनी हो तो क्षमा प्रार्थना और आवाहित देवता का विसर्जन करें, इस पूजा के बाद अन्य पूजा करनी हो तो समस्त पूजन हो जाने पर क्षमा प्रार्थना और आवाहित देवता का विसर्जन करें . . .)
क्षमा प्रार्थना
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ॥
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।  त्राहि माम्‌ परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।  दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥
(ब्राह्मण एवं गुरुजनों के प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे।)

विसर्जन    प्रतिमा जिनकी आप प्रतिदिन पूजा करना चाहते हैं उनमे आवाहित देवाता को छोड़कर अन्य सभी आवाहित एवं प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जत करें . . .
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च 





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